Friday 24 February 2023

लोक अउ साहित्यिक चेतना"

 "" "लोक अउ साहित्यिक चेतना" ""

       लोक अउ साहित्यिक चेतना एकर उपर बड़का विद्वान मन के गोठ जाने सुने बर मिलत रथे। अउ ये बिषय उपर कतको चर्चा होही कमती ही हो सकथे। आज कुछ विचार मन मा हिलोर मारिस त कुछ लिखागे। पहिली बात लोक - लोक माने आम जन मानस होथे। लोक समूह वाचक शब्द आय जेमा लिंग भेद नइ रहय। स्त्री पुरुष बुढ़वा जवान सब के समूह हर ही लोक आय। आगू के बात मा साहित्य चेतना आथे। अब यहू विचार करे जा सकथे कि आम जन मानस मा साहित्य के चेतना या चेतना मा साहित्य कइसे पनपिस होही। एकर सुत्रधार कोन हरे, कब के हरे। अउ कतको सवाल मन मा उथत रथे। चेतना माने चेतन या जागृत  अवस्था। जे हर लोक के संतुलित मानसिकता संतुलित व्यवहार ला दर्शाथे। चेतन या जागरूक अवस्था हर ही मनखे के पहिचान हो सकथे। नइते आदमी अउ पशु पक्षी मा भेद नइ रही जाही।

             मानवीय विकास के प्रक्रिया मा चेतना चैतन्यता विवेक अउ विचारशीलता हर नवा सृजन नवा निर्माण बर प्रेरित करिस होही। लोक के हर विकास क्रम मा एक ठन प्रयोग हर अंतिम रूप धारण करिस होही। लोक के बीच मा  आर्थिक विकास के चेतना संस्कृति अउ संस्कार के चेतना समाजिक स्वरूप के चेतना के सँग मनोरंजन के विकास बर चेतना जागिस। कभू कभू अइसे लगथे कि इन सब के कोनो न कोनो वाचिक या लिखित साहित्य हर ही चेतना जगाइस होही। हर छोटे बड़े क्रमिक विकास के प्रवृत्ति हर ही संस्कार हर बनत चले आगे। इही क्रम मा लोक के सँग एक बड़का प्रभावशाली तथ्य जुड़े मिलथे जेला साहित्य चेतना कहे जा सकथे। इही साहित्यिक चेतना हर मानवीय विकास के मूल हो सकथे। एकरे सेती साहित्य ला समाज के दर्पण अभी से नहीं बल्कि जबले साहित्य हर विचार अउ भावना ला लोक मा एक दूसर ले बाँटे के माध्यम बनिस तब ले कहत हे ये सोच हो सकथे। साहित्य समाज ला रसता देखाथे लोक के भीतर लोक कल्याणकारी भावना जगाथे। लोक मा व्याप्त विसंगति ला दूर करे के सीख देथे। उही कारण हे कि साहित्य सदा अमर रथे। अउ समय काल परिस्थित के हिसाब ले साहित्य के अलग अलग विधा नवा सँवागा के सँग लोक के बीच आवत रथे।

      मानवीय विकास के प्रक्रिया मा मनखे चेतना जागे ले डारा पाना मा तन ढकने वाला मनखे कपड़ा लत्ता के आश्रय तक आगे। अपन विचार ला लोक तक पहुंचाय बर लोगन वो तरकीब ला घलो अपनाइन जेकर माध्यम ले  कमती मा जादा सरल सहज के सँग गहिरा चिंतन शीलबात ला कहे जा सके। शायद इही प्रयास के  नाम हर ही साहित्य परगे। ये हमर कल्पना हो सकथे। साहित्य के दू विधा हे एक गद्य अउ दुसर पद्य। दुनो विधा मा अपन वात ला प्रभावशाली शब्द शिल्प के माध्यम ले लोक तक रखे जाथे। शुरुआती वाचिक परम्परा से लेके लिखित अउ आधुनिक मिडिया के जमाना तक साहित्य लोक के बीच समाहित हे। या यहू कहे जा सकथे कि  लोक हर साहित्य सँग जीथे। साहित्य मा सम्पूर्ण लोक कल्याण सम्पूर्ण मानवीय विकास के चिन्तनशील विषय वस्तु रथे। इही कारण हे कि लोक मा साहित्य के प्रति चेतना कतको जुग ले जुड़े हे। अउ आगू घलो जुड़े रही।

           आज हम जौन पढ़त लिखत या सुनत हावन सब साहित्य चेतना के परिणाम आय। मानव समाज मा साहित्य के प्रति चेतना या लगाव नइ रही तौ ये सच हे कि सामाजिकता अउ मानवीय व्यवहार मा सुन्यता आ जही। विज्ञान के जोर ले विकास तो संभव हे फेर साहित्य के सुन्यता ले व्यवहार मा पशुता के भाव उभर सकथे। दुनिया मा सम्हल के तमड़ के रेंगे बर साहित्य रूपी गोटानी जरूरी हे।

         साहित्य के प्रति लगाव सबो मनखे ला रथे। कोनो सुनेके कोनो पढ़ेके त कोनो लिखे के रूचि रखथे। विचार अउ भावना के समुन्दर मा गोता लगाके शब्द ला पिरोके लिखथे तब वो साहित्य के रूप ले लेथे। लिखित साहित्य कतको जुग ले जिन्दा रहिके समाज ला रसता देखावत रथे। अब इँहा मन मा बात उभरथे कि आज के दुषित व्यवस्था गंदगी भरे वातावरण मा साहित्य कतका सामर्थ्यवान हे। दूसर आज जौन साहित्य रचे जावत हे लोक सँग जुड़े मा कतका बलकारी हे। साहित्यिक चेतना साहित्य के प्रति चेतना के स्तर का हे? लोक के प्रति चेतना या लगाव तभे होथे जब कोनो भाषा के साहित्य मा भाषा भाव कथ्य शिल्प अउ साहित्यिक सौन्दर्यता के दर्शन होथे। वो हर सहज रूप ले लोक   सँग जुड़ जथे। उही ला लोक चेतना कहे जा सकथे। इही कारण हे कि चार लाईन के दोहासोरठा चौपाई के भाव प्रधान कथ्य हर लोक मा जगा बनाके जबान मा रमे रथे।  तब अपन कथ्य ला  शब्द शिल्प मा ढालके लोक तक परोसे जाथे तब जेन लगाव या जुड़ाव के भाव लोक मा अवतरित होथे उही हर साहित्यिक चेतना हो सकथे। माने जौन लिखित या वाचिक साहित्य बर चित्त मा चिन्तन होय ले चेतना या चैतन्यता जागथे वो साहित्य हर लोक के होके मानविय विकास मा जुड़ जाथे तब कहि सकथन कि लोक के सँग साहित्य चेतना जुड़े हे। अउ हर साहित्य सृजन आ लोक के ही हर क्रिया कलाप आचार विचार व्यवहार अउ लोक जीवन के हर हिस्सा के किस्सा जुड़े रथे। तब लोक मा साहित्य चेतना कहन कि साहित्य चेतना मा लोक संदर्भ। एके बात हो सकथे।


               राजकुमार चौधरी "रौना"

            टेड़ेसरा राजनांदगांव 🙏🏻

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