Friday 24 February 2023

विश्व महतारी भाषा दिवस” - छत्तीसगढ़ी*

 

 *“विश्व महतारी भाषा दिवस” - छत्तीसगढ़ी*


घर के जोगी जोगड़ा, आन गाँव के सिद्ध - तइहा के जमाना के हाना आय। अब हमन नँगत हुसियार हो गे हन, गाँव ला छोड़ के शहर आएन, शहर ला छोड़ के महानगर अउ महानगर ला छोड़ के बिदेस मा जा के ठियाँ खोजत हन। जउन मन बिदेस नइ जा सकिन तउन मन विदेसी संस्कृति ला अपनाए बर मरे जात हें। बिदेसी चैनल, बिदेसी अत्तर, बिदेसी पहिनावा, बिदेसी जिनिस अउ बिदेसी तिहार, बिदेसी दिवस वगैरा वगैरा। जउन मन न बिदेस जा पाइन, न बिदेसी झाँसा मा आइन तउन मन ला देहाती के दर्जा मिलगे।


हमन दू ठन दिवस ला जानत रहेन - स्वतंत्रता दिवस अउ गणतन्त्र दिवस। आज वेलेंटाइन दिवस, मातृ दिवस, पितृ दिवस, राजभाषा दिवस, पर्यावरण दिवस अउ न जाने का का दिवस के नाम सुने मा आवत हे। ये सोच के हमू मन झपावत हन कि कोनो हम ला देहाती झन समझे। काबर मनावत हन ? कोन जानी, फेर सबो मनावत हें त हमू मनावत हन। बैनर बना के, फोटू खिंचा के फेसबुक मा डारबो तभे तो सभ्य, पढ़े लिखे अउ प्रगतिशील माने जाबो।


एक पढ़े लिखे संगवारी ला पूछ पारेंव कि विश्व मातृ दिवस का होथे ? एला दुनिया भर मा काबर मनाथें? वो हर कहिस - मोला पूछे त पूछे अउ कोनो मेर झन पूछ्बे, तोला देहाती कहीं। आज हमन ला जागरूक होना हे। जम्मो नवा नवा बात के जानकारी रखना हे। जमाना के संग चलना हे। लम्बा चौड़ा भाषण झाड़ दिस फेर ये नइ बताइस कि विश्व मातृ दिवस काबर मनाथे। फेर सोचेंव कि महूँ अपन नाम पढ़े लिखे मा दर्ज करा लेथंव।

फेसबुक मा कुछु काहीं लिख के डार देथंव। 


भाषा ला जिंदा रखे बर बोलने वाला चाही। खाली किताब अउ ग्रंथ मा छपे ले भाषा जिंदा नइ रहि सके। पथरा मा लिखे कतको लेख मन पुरातत्व विभाग के संग्रहालय मा हें फेर वो भाषा नँदा गेहे। पाली, प्राकृत अउ संस्कृत के कतको ग्रंथ मिल जाहीं फेर यहू भाषा मन आज नँदा गे हें  । माने किताब मा छपे ले भाषा जिन्दा नइ रहि सके, वो भाषा ला बोलने वाला जिन्दा मनखे चाही।


भाषा नँदाए के बहुत अकन कारण हो सकथे। नवा पीढ़ी के मनखे अपन पुरखा के भाषा ला छोड़ के दूसर भाषा ला अपनाही तो भाषा नँदा सकथे। रोजी रोटी के चक्कर मा अपन गाँव छोड़ के दूसर प्रदेश जाए ले घलो भाषा के बोलइया मन कम होवत जाथें अउ भाषा नँदा सकथे। बिदेसी आक्रमण के कारण जब बिदेसी के राज होथे तभो भाषा नँदा सकथे। कारण कुछु हो, जब मनखे अपन भाषा के प्रयोग करना छोड़ देथे, भाषा नँदा जाथे। 


छत्तीसगढ़ी भाषा ऊपर घलो खतरा मंडरावत हे। समय रहत ले अगर नइ चेतबो त छत्तीसगढ़ी भाषा घलो नँदा सकथे। छत्तीसगढ़ी भाषा के बोलने वाला मन छत्तीसगढ़ मा हें, खास कर के गाँव वाले मन एला जिंदा रखिन हें। शहर मा हिन्दी अउ अंग्रेजी के बोलबाला हे। शहर मा लोगन छत्तीसगढ़ी बोले बर झिझकथें कि कोनो कहूँ देहाती झन बोल दे। छत्तीसगढ़ी के संग देहाती के ठप्पा काबर लगे हे ? कोन ह लगाइस ? आने भाषा बोलइया मन तो छत्तीसगढ़ी भाषा ला नइ समझें, ओमन का ठप्पा लगाहीं ? कहूँ न कहूँ ये ठप्पा लगाए बर हमीं मन जिम्मेदार हवन। 


हम अपन महतारी भाषा गोठियाए मा गरब नइ करन। हमर छाती नइ फूलय। अपन भीतर हीनता ला पाल डारे हन। जब भाषा के अस्मिता के बात आथे तब तुरंत दूसर ला दोष दे देथन। सरकार के जवाबदारी बता के बुचक जाथन। सरकार ह काय करही ? ज्यादा से ज्यादा स्कूल के पाठ्यक्रम मा छत्तीसगढ़ी लागू कर दिही। छत्तीसगढ़ी लइका मन के किताब मा आ जाही। मानकीकरण करा दिही। का अतके उदिम ले छत्तीसगढ़ी अमर हो जाही?


मँय पहिलिच बता चुके हँव कि किताब मा छपे ले कोनो भाषा जिंदा नइ रहि सके, भाषा ला जिन्दा रखे बर वो भाषा ला बोलने वाला जिन्दा मनखे चाही। किताब के भाषा, ज्ञान बढ़ा सकथे, जानकारी दे सकथे, आनंद दे सकथे फेर भाषा ला जिन्दा नइ रख सके। मनखे मरे के बादे मुर्दा नइ होवय, जीयत जागत मा घलो मुर्दा बन जाथे। जेकर छाती मा अपन देश बर गौरव नइये तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन गाँव के गरब नइये तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन समाज बर सम्मान नइये, तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन भाषा बर मया नइये, तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर स्वाभिमान मर गेहे, तउन मनखे मुर्दा आय। 

जउन मन अपन छत्तीसगढ़िया होए के गरब करथें, छत्तीसगढ़ी मा गोठियाए मा हीनता महसूस नइ करें तउने मन एला जिन्दा रख पाहीं। 


अइसनो बात नइये कि सरकार के कोनो जवाबदारी नइये। सरकार ला चाही कि छत्तीसगढ़ी ला अपन कामकाज के भाषा बनाए। स्कूली पाठ्यक्रम मा एक भाषा के रूप मा छत्तीसगढ़ी ला अनिवार्य करे। अइसन करे ले छत्तीसगढ़ी बर एक वातावरण तैयार होही। शहर मा घलो हीनता के भाव खतम होही। छत्तीसगढ़ी ला रोजगार मूलक बनावय। रोजगार बर पलायन, भाषा के नँदाए के एक बहुत बड़े कारण आय। इहाँ के प्रतिभा ला इहें रोजगार मिल जाही तो वो दूसर देश या प्रदेश काबर जाही? छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार, लोक कलाकार ला उचित सम्मान देवय, उनकर आर्थिक विकास बर सार्थक योजना बनावय।


छत्तीसगढ़ी भाव-सम्प्रेषण बर बहुत सम्पन्न भाषा आय। हमन ला एला सँवारना चाही। अनगढ़ता, अस्मिता के पहचान नइ होवय। भाषा के रूप अलग-अलग होथे। बोलचाल के भाषा के रूप अलग होथे, सरकारी कामकाज के भाषा के रूप अलग होथे अउ साहित्य के भाषा के रूप अलग होथे। बोलचाल बर अउ साहित्यिक सिरजन बर मानकीकरण के जरूरत नइ पड़य, इहाँ भाषा स्वतंत्र रहिथे फेर सरकारी कामकाज बर भाषा के मानकीकरण अनिवार्य होथे। मानकीकरण के काम बर घलो ज्यादा विद्वता के जरूरत नइये, भाषा के जमीनी कार्यकर्ता, साहित्यकार मन घलो मानकीकरण करे बर सक्षम हें।


सरकार छत्तीसगढ़ी बर जो कुछ भी करही वो एक सहयोग रही लेकिन छत्तीसगढ़ी ला समृद्ध करे के अउ जिन्दा रखे के जवाबदारी असली मा छत्तीसगढ़िया मन के रही। यहू ला झन भुलावव कि जब भाषा मरथे तब भाषा के संगेसंग संस्कृति घलो मर जाथे।


“स्वाभिमान जगावव, छत्तीसगढ़ी मा गोठियावव”


*लेखक - अरुण कुमार निगम*



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 सारगर्भित आलेख।  सूत्र रूप म छत्तीसगढ अउ छत्तीसगढी भाषा के पीरा ला समेटे विचारपरक उत्कृष्ट आलेख। ए सदी म विश्व के कतकोन बोली-भाषा मन विलुप्त होवत जात हें। वैश्वीकरण के युग आ गे हे.....कतकोन बोली-भाषा मन विलुप्त होहीं.....ओमन ला बचा पाना संभव नि दिखत हे। छत्तीसगढ के कतकोन स्थानीय बोली मन विलुप्ति के कगार म ठाढ़े हें! छत्तीसगढी के नंदाय के संभावना तो बिल्कुल भी नि हे फेर भाषा के रूप म आठवीं अनुसूची म स्थान पाना जबर चुनौती हे। शासन स्तर म ये विषय के प्रति लगातार उदासीनता बने हुए हे!शासन स्तर म छत्तीसगढी ला एक विषय के रूप म पाठ्यक्रम म शामिल करना बहुतेच्च जरूरी हे, एकर साथ यदि छत्तीसगढी भाषा ला रोजगारपरक बनाय के उदिम सरकार कर सकही त छत्तीसगढी के संरक्षण-संवर्धन अउ बढ़वार तेजी ले  होही। अभी ये उदिम छत्तीसगढी बर समर्पित साहित्यकार मन के एक बड़े समूह एला करत हे फेर शासन स्तर म ओमन ला कोई आर्थिक मदद नि मिलत हे। कतेक शरम के बात हे कि एक-दू किलोमीटर स्मार्ट रोड बनाय बर शासन 10-15 करोड़ रूपिया खर्च कर देत हे अउ भाषा के संरक्षण-संवर्धन बर अतका बजट पाँच साल म घलो नि देवत हे!! सत्ता के आँखी कब उघरही- भगवान जाने??🙏🌹


             - विनोद कुमार वर्मा

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