Sunday 19 February 2023

लइका मन के सगा-पुतानी बन उँकर मन जीतही: सगा-पुतानी के गीत*


 

*लइका मन के सगा-पुतानी बन उँकर मन जीतही: सगा-पुतानी के गीत*


        ननपन ले ही मनखे गीत सुने के आदी रहिथे। गोदी म रखे लइका रोय ल धरिस तहाँ ले मनखे के गुनगुनई शुरु, भले गीत याद राहय ते झन राहय। कभू-कभू तो इही गीत ले थपकी दे सुताय के उदिम घलव करे जाथे। सुर कइसन हे माने नइ रखय। मूल रहिथे नान्हे लइका ल भुलवारना। कोनो-कोनो किस्सा-कहिनी कहिथे। 

          ननपन ले ही मनखे बनाय के उदिम आय गीत। गीत ले ही मनखे म मनखेपन के विकास होथे। मनखे के अंतस् म गीत के उद्गार होथे। मनखे अकेल्ला रहिथे त कुछु न कुछु गुनगुनाथे, इही ए बात के प्रमाण आय कि मनखे के अंतस् गीत प्रेमी होथे। गीत लइकापन म गोरस के संग लोरी बन के रग-रग म समा जथे, लइकापन ले अंतस् म गीत के नेंव रखा जथे। भाषाविद् अउ साहित्यकार डॉ. चितरंजन कर कहिथें - "जब तक माँ है तब तक ममता है, ममता है तब तक लोरी है, लोरी है तब तक गीत है, गीत है तब तक संवेदना है, संवेदना है तब तक मनुष्यता है।" संवेदना ले भरे गीत जिनगी के जम्मो उतार-चढ़ाव ल घलो समेटे रहिथे।

          बाल साहित्य के बुता ए लइका मन के मनोरंजन संग ओमन ल सीख देना, ए सीख संग मानवीय मूल्य ल सजोर करना प्रमुख होथे। लइका मन म जिज्ञासा, वैज्ञानिकता, जागरूकता लाय अउ साँस्कृतिक अउ राष्ट्रीय चरित्र निर्माण म बाल साहित्य के बड़ भूमिका हे। एकर ले शब्द भंडार म बढ़ोतरी घलव होथे। बालगीत ले लइका मन मोहाथें, एक सुर म खींचत चले आथें, एक जघा सकलाथें। छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य लम्बा समय ले वाचिक रेहे हे। अब एला लिखित रूप म सहेजे अउ सिरजाय दूनो के बढ़िया उदिम होवत हे। अभी के बेरा म छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य डाहन कतको रचनाकार मन सरलग लिखत हें। जउन म उभरत नाम हे मिनेश कुमार साहू।

      साहित्य सिरजन कभू सरल नइ रेहे हे, कहूँ बाल साहित्य के बात होगे तब तो ए अउ कठिन हो जथे। बाल रचना दिखब म बड़ सरल दिखथे। जे जतका सरल दिखथे, वो ओतका सरल रहय नहीं। बाल साहित्य सिरजन परकाया सिरजन माने जाथे, काबर कि ए सिरजन बाल मन म प्रवेश करे पाछू संभव हो पाथे। ए अलग बात आय कि जादातर लेखक ए उमर के अनभो रखथें, फेर पीढ़ी के फरक तो रहिबे करही। बालगीत /बालसाहित्य अइसे साहित्य आय जेला पढ़के लइका ल मजा आथे, जे उँकर मानसिक विकास के रद्दा खोलथे। छोटे छोटे रचना म मनोरंजन के संग बाल सुभाव, मनोविज्ञान, लोक संस्कृति ले जुड़ाव, स्वच्छता के महत्तम, प्रकृति प्रेम, पर्यावरण संरक्षण, देशभक्ति अउ आचार-व्यवहार  जइसे रकम-रकम के विषय के सिखौना बाल साहित्य म जरूरी ए। बालमन के थाह लगा उँकर नस पकड़े म मिनेश साहू जी पारंगत हें। बालसाहित्य बर जरूरी जिनिस उँकर लिखे बालगीत म दिखथे। मिनेश जी के एक खास बात ए हे कि उन मूल रूप ले गीतकार आयँ। आज इँकर लिखे सिंगार गीत सोशल मीडिया म बड़ चलत हे। 

         अभी के चरचा मिनेश जी के लिखे बालगीत ऊपर हे। जेन म विषय के विविधता हे। मनोरंजन संग वैज्ञानिकता हे। बाल सुभाव के झलक हे। सीख हे। पर्यावरण बर संसो करत संदेश हे। देशहित बर चिंतन हे। जीव जनावर बर लगाव हे।

        पुरखा रचनाकार मन के रद्दा म चलत मिनेश जी जउन गीत लिखे हें, ओमा गेयता के कोनो कमी नइ हे। छंदबद्ध भले नइ हे जउन ओकर सँघरा बालगीत लिखइया कन्हैया साहू 'अमित' के गीत मन म मिलथे। अमित जी जइसे मिनेश जी लइका मन के मनोरंजन के पूरा खियाल करत लिखथें-

          बेंदरा ममा के हवय शादी, कुरता धोती पहिरे खादी।

         भालू कका बजावै ढोल, धिन्नक धिन्नक जेखर बोल।

         एमा जिहाँ मनोरंजन हे, उहें संस्कार अउ परम्परा के आरो हे। 'खादी' गांधीजी के सुरता करावत देशभक्ति के भाव मन म भरे म सक्षम हे।

         माँ खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊँ।

        लइकापन म पढ़े ए कविता सहज सुरता आ जथे।

        जिनगी म स्वच्छता के का महत्तम हे?  सबो ल पता हे। गंदगी ले बीमारी सँचरथे। तन म दुख आथे, पइसा के बरबादी अलगे। अइसन म स्वच्छता जिनगी म सुख के आधार आय।  इही बात लिखें हे-

        राखौ बढ़िया साफ-सफाई।

        जिनगी भर सुख पाबो भाई।।

        भारतीयता के दर्शन मीनेश जी के रचना म होथे। जब उन सर्वे भवंतु सुखिनः ... के सूत्र वाक्य ल अपन शिशु गीत गणपति वंदना म जघा देवत लिखथें-

        सुखी सबो राहय, विनती हावय मोर।

        लइका मन म अइसन विचार अउ सोच पैदा करे के सुग्घर उदिम मिनेश जइसे विचारवान रचनाकार ही कर सकथे।

         घर म टँगाय टिक टिक करत घड़ी हम ल जउन संदेश देथे ओला आप लिखथव-

         घड़ी के गोठ धियान ले सुनव।

         सरलग बुता बर जी गुनव।

         बेरा हाथ म रखाय रेती सहीं होथे, जउन मुठा बाँधत खिसल जथे। जेकर बीते ले पछतावा भर हाथ लगथे। अइसन म बड़ कीमती बेरा ल बिरथा झन जावन दन, लइका मन ल ए संदेश दे म मिनेश जी अव्वल नंबर म पास हे। तभे तो संसो करत लिखथें-

        बेरा कोनो गवाँ न जावय।

       बीते बेरा फेर नइ आवय।।

बेरा (समय) के कीमत समझावत आगू लिखथें-

        बेरा हवय बड़ अमोल।

        समझव एखर  जानव मोल।।

        केरा कब खाना अउ नइ खाना चाही एकर विज्ञान सम्मत् डाँड़ देखव- 

        बवासीर अनपचक अलसर, रोग राई ल लेथे हर।

        जेन ल हवय कफ सुगर, झन खावय वो केरा फर।।

         दूसर रचना म कुनकुन पानी के फायदा के बानगी हे-

       बड़े बिहना झटकुन उठ।

       कुनकुन पानी पी घुट-घुट।

       पेट ल साफ करही भाई।

       कटही कतको रोग-राई।।

           आज जब लइका के हाथ म मोबाइल अउ रिमोट आ गे हे। लइका मन टीवी कम्प्यूटर म चिपके रहिथें। वहू ल मिनेश जी 'टीवी कार्टून' म गजब ढंग ले लिखें हें।

        कृष्णा अउ शिवा, बाल हनुमान।

        डबलू डबलू ले, लख्खा परेशान।।

          मोबाइल आज सब के जिनगी म घुसर गेहे। एकर नफा-नुकसान दूनो म सुग्घर समन्वय बिठा उन सावचेत करत सुग्घर संदेश दे हें।

         आज घलव गँवई-गाँव म साधन विहीन (जिंकर तिर खेलौना नइ रहय) लइका मन धुर्रा-माटी खेलथें, अक्ती तिहार के पहिलीच उन मन पुतरा-पुतरी के बिहाव रचथें। सगा-पहुना बनके आय-जाय के खेल खेलथें। लइकामन के इही खेल ऊपर लिखे गीत के भाव ल किताब के नाम रखे गे हे। जउन बताथें कि मिनेश जी लइकामन ले कतेक जुरे हें। 

       बालसाहित्य ल लइका के चंचल मन ल एकाग्र करे के उपक्रम के रूप म देखना सही रही। एमा साहित्य के गहिर शिल्प अउ भाव खोजई बिरथा रही। बालगीत म काव्य के जम्मो काव्य सौंदर्यं ल सँघारे ले गीत लइका के समझ नइ आही, अइसे मोर मानना हे। 

            छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य म मिनेश जी के ए संग्रह अपन नवा छाप छोड़ही। आकर्षक कव्हर पेज के संग भीतर बने चित्र मन मनभावन हें। एमा सँघरे गीत मन लइका मन के सगा-पुतानी बन के उँकर मन जीते म जरूर सफल होही।

संग्रह के नाम - सगा-पुतानी

रचनाकार- मिनेश कुमार साहू

प्रकाशक- आशु प्रकाशन रायपुर

प्रकाशन वर्ष- 2021

पृष्ठ सं.- 75

मूल्य -150/-


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला -बलौदाबाजार छग

6261822466

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