कहानी- मोंगरा (चन्द्रहास साहू)
मो 8120578897
बादर के गरजना भड़भड़-भड़भड़ बिजली के कड़कना कड़कड़-कड़कड़ अउ बरखा रानी के बरसना झमा-झम । ...कतका सुघ्घर लागथे ये चौमासा हा। फेर कभु-कभु येकर बिकराल बरन ले डर घला लागथे। कतको डरवा ले इन्द्र भगवान के मांदर हा फेर ओमन कभु नइ डर्रावय। सिरतोन किसान अउ जवान ही तो आवय जौन बिन डरे अपन बुता मा डटे रहिथे तभे तो हमन ला सुरक्षा अउ जेवन एक संघरा मिलथे।
एसो के पानी बरसात मा गली खोर छिपिर-छापर करत हाबे अउ खार खेत चभरंग-चभरंग फेर अपन बुता मा जाये बर कभु नागा नइ करे वोमन। भलुक सूरज देव ओतिया दिही फेर वो दल कभु नइ थके।
गाँव गमकत हाबे वोकर हाँसी-ठिठोली ले। गाय-बईला के खड़पडी घुम्मर के संग ग्वाला के बंसी अउ लजकुरहीन मोटियारी ले महाबीर चौक अघा गे। इंद्रधनुष उतरगे हावय गाँव मा- रंग-बिरंगी लुगरा, धोती कुरता पंछा के रंग मा। रंग -बिरंगी मनकापड़ खुमरी छतरी रेनकोट अउ उघरा। जम्मो रंग हाबे गाँव के। मुड़ी मा झउहा बोहे, झउहा मा बासी पानी अउ कुदारी हँसिया। सलमिल-सलमिल करत रद्दा-बाट, बिच्छल मातादेवाला के मेड़-पार अउ वोमा रेंगइया जम्मो कोई। बड़का,नान्हे पड़री माहुर लगे गोड़ । खार मा बगरगे अब जम्मो दल हा। पच्चीस तीस झन माई मन के दल महुआ झरे कस हाँसत-गोठियावत कन्हैया दाऊ के खेत मा अमरगे। भागमानी मन कन्हैया दाऊ घर कमाये ला आथे। गाँव जोरातरई के मन खलक उजरके जाथे फेर पलारी गाँव के मन घला सधाये रहिथे कमाये बर। ये पारी तो टूरा मन के दल टेड़गी बोइर रुख वाला खेत मा दत गे हाबे। बड़का बईला चरवाहा मुंशी आवय जम्मो कोई ला समझावत हाबे आज के बुता ला। खिसियावत घला हाबे बिलम ले अवइया मन बर।
"कइसे गोड़ीन टूरी ? कइसे पछवागेस ?''
टिफिन मा बासी धरे मनकापड़ ओढ़े मोटियारी काँपगे मुंशी के गोठ सुनके। अंगरा कस आँखी अउ कर्रा-कर्रा मेंछा मुंशी के-डरभूतहा बरन।
"दाई नइ आये हाबे त.....बदला मा... बिलम ले बताइस बुता मा नइ जावव कहिके।''
मोटियारी के सांस अटकगे बतावत ले।
"आ नोनी ये कोती....।''
मनटोरा के आरो सुनके परसाडोली कोती चल दिस अब मोटियारी हा। मेड़ ला नाप डारिस अपन गोड़ मा झटकुन अउ परसा रुख तरीं जा के हिताइस-जुड़ाइस। पानी अतरगे रिहिस। मनकापड़ ला हेर के जुड़ सांस लिस। ससन भर चारो खूंट ला देखिस। हरियर-हरियर मेड़-पार रुख-राई जम्मो मुचकावत हाबे। करिया बम्बूर हाँसे लागिस अउ अपन पिवरी फूल ला झर्रा दिस। मोटियारी मोंगरा हा फूल ला बिनके कान मा खोसिस ते सुघराई बाढ़गे। कजरारी आँखी, चंदा कस गोल चेहरा, दाड़ी मा गोदना लौंग के -सुघ्घर। खीरा बीजा कस दांत,अउ उल्हा पाना कस गुलाबी होंठ,कौहारुख कस पड़री काया, केरा गभोति कस माहुर लगे गोड़, महुआ झरे बरोबर हाँसी अउ मंदरस कस मीठ बोली। इन्द्रलोक ले उतरे अपसरा बरोबर लागत हाबे मोटियारी मोंगरा हा।
"मेड़ पार ला बने उतर नोनी मोंगरा !''
"हँव भौजी !''
सुशीला के गोठ सुनके मोंगरा हुंकारु दिस अउ
लहलहावत धान ला पैलगी करके खेत मा उतरिस। कमेलिन मन खुदुर-फुसुर करे लागिस, हाँसे लागिस। सिरतोन लजकुरहीन बहुरिया घला अब बेटी बनके ठठ्ठा-दिल्लगी करत हाबे मोटियारी संग। सिरतोन ये खेत के कोरा आवय इहाँ जम्मो कोई बेटी बन जाथे।
"आज ठेका हाबे तुंहर। ये दुनो खेत ला निंद लेव ताहन तुंहर पूरा छुट्टी।''
"नइ बने मुंशी भइयां ! अब्बड़ बन-बदौर हाबे।'' सियनहीन कमेलिन किहिस।
"दू नरियर घला देबे तब बनही गा !''
रमसीला डोकरी मिंझरगे।
"दू नरियर भर काबर ? चार नरियर अउ चना मुर्रा घला दिही मुंशी हा। कइसे भाटो ..?''
मोटियारी सुलोचना आवय मुचकावत किहिस।
"लेना अब तोला भाटो कहि दिस। अब काबर नइ बनही ..रमसीला डोकरी गोठ मा पालिस करिस। जम्मो कोई एक उरेर के अउ हाँस डारिस। कभु नइ हँसइया मुंशी घला कठल गे। अउ बात हार गे। "डन'' होगे आज के ठेका। सुशीला,सुलोचना, रमसीला, सतरूपा के रणनीति घला बनगे अब झटकुन उरका के जाये बर। जइसे हाथ चलत हे ख़बल-ख़बल वइसने मुँहू घला चलत हाबे चकर-चकर जम्मो कोई के। ....अउ हाँसी ? वो कहाँ अतरही। चारी-चुगली घला कर लेवत हे हाँस-हाँस के फेर मोंगरा के आँखी तो कोनो ला अगोरत हाबे। कतको हाँस ले, गोठिया ले फेर आँखी सुन्ना हाबे मयारुक के अगोरा मा। टेड़गी रुख वाला खेत मा पलारी गाँव वाला टूरा मन के दल हाबे न। अउ ओमा हाबे मोंगरा के मयारुक मोहन। अब्बड़ दुरिहा हाबे-चार खेत दुरिहा। मन उदास हो जाथे मोंगरा के। सरिता तो बताये रिहिस मोहन घला आही अइसे,कोन जन आये हावय कि नही ? मोंगरा संसो करत हाबे।
"तुंहर सास-बहुरिया के चुगली पुराण कभु नइ उरके डोकरी ! कुछु कथा कंथली गीत कविता सुनातेस ते चुगली मा बूड़े हावस।''
सतभामा आवय खिसियावत रिहिस रमसीला डोकरी ला।
"ले ओ असकट लाग गे तब कहानी सुनावत हावव इन्द्र अउ देवीअहिल्या के कथा।''
"टार वो ये कथा ला कोन नइ जाने डरपोकना नियत खोट्टा इन्द्र ला......!''
जम्मो कोई कठल-कठल के फेर हाँसिस।जवनहा दल मन काली के ठेका ला उरका के अब मोंगरा के खेत के बाजू मा आगे रिहिस।
"लेना सतरूपा ! चालू कर तोर गीत संगीत के प्रोग्राम ला।''
बुधियारिन कोहनी मारत किहिस।
"नइ आवय ओ मोला।''
"धान लुवाई मिंजाई मा नाच-नाच के गाय बजाये रेहेस ओ ! भुला गेस का ? सब आथे तोला ले सुना बहिनी !''
सुलोचना घला पंदोली दिस। जवनहा दल के मन घला गिलोली करिस।
"ले दीदी हो सुनावव कुछु कही।''
सतरूपा लजावत राग लमाइस।
होई रे....होई रे.... हो.....।
बटकी मा बासी अउ चुटकी मा नून।
मय गावत हँव ददरिया, तै कान दे के सुन रे चना के दार....।।''
"रहा ले, रहा ले .... सुर लमा ले रागी।''
सुलोचना आवय।
ददरिया सुनावत हाबे बही सुलोचना !..अउ तेंहा पंडवानी कस राग झोकत हावस खी... खी..। जम्मो कोई एक बेरा अउ हाँसे लागिस। मोंगरा घला अब गमकत हाबे। मयारुक मोहन ला कनख्खी नजर ले देखत हाबे-घेरिबेरी। फेर जवनहा तो आज उदास हाबे। कोन जन काबर.?
"चना के दार राजा चना के दार रानी ...।''
सुलोचना सुनाइस अउ मीठ बोली सुनके जम्मो मोहा गे। चिरई-चिरगुन, कोइली सल्हाई उड़ाये ला बिसरा दिस अउ जवनहा दल मन घला कलेचुप सुने लागिस।
"तोर तो पेट तरी दांत हाबे सुलोचना ! अब्बड़ सुघ्घर सुर लमायेस वो !''
अब मोंगरा के पारी रिहिस।
"ले नोनी....सुना।''
सुलोचना कहाँ छोड़ही अब कोनो ला। जम्मो कोई के कलाकारी ला निकालही।
"थोकिन बइठ तो ले ले राजा मोर ...!
करमा ददरिया के मजा ले ले।
थोकिन मजा ले ले न,थोकिन मजा ले ले।
भूले बिसरे एको दिन तो हमरो गली आतेव।
रुखा सूखा बइठके राजा हमरो सेती खातेव।।
बासी संग अम्मट मा भाजी के मजा ले ले।
थोकिन बइठ तो ले ले राजा मोर.....।
जम्मो कोई वाह वाह किहिस फेर मोंगरा के मन अइला गे हाबे। कनिहा मा पीरा भरगे। ओखी करके खेत ले निकले के मन हाबे। जवनहा के काया मा हजारों लाखों चाटी चढ़े बरोबर झुरझुरी होगे। रुआ ठाड़ होगे। मोंगरा आधा होंठ ला मसक के ससन भर देखत हाबे मयारुक ला। चाकर छाती, मोंगरी फड़के कस भुजा, मुड़ी मा पागा पहिरे दाऊ पारा के तेली के टूरा आवय मोहन हा। दुनो कोई संग मा पढ़त हाबे शहर के कॉलेज मा। ईमानदार समझदार जिम्मेदार जम्मो गुण हाबे मोहन मा। अतकी तो चाहिए टूरा मा। मोंगरा घला मन हार गे मयारुक बर।
अब तो मात गे ददरिया के सुर हा। मोंगरा के दल अउ मोहन के दल कोनो कमती नइ हाबे। मोहन कलेचुप रिहिस। अब्बड़ बेरा ले टाल मटोल करिस मोला नइ आवय गीत गाना अइसे फेर कोन बाचही अइसन जमघट मा। मोहन राग धरके गाइस तब मोंगरा के जी धक्क ले लाग गे।
आमा ला टोरे खाहुँच कहिके।
मोला दगा मा डारेस आहुँच कहिके।।
उदुप ले सुरता आगे मोंगरा ला। काली अपन गाँव के बजार बलाये रिहिस मोहन हा फेर ददा के डर अउ भइयां के खिसियाई। नइ जा सकिस।
"मुँहफुल्ला ...ऊँह.... !''
मुँहू ला मुरकेटत किहिस मोंगरा हा। भलुक गोठ नइ सुनाइस फेर मूक सम्प्रेषण तो अमरगे मोहन करा। माफी घला मांग डारिस मोहन ला फेर वो तो टस ले मस नइ होवत हाबे।
कया के पेड़ मा कया नइ हे...।
निरदई तोर शरीर मा दया नइ हे....।। मयारुक ...।।
मोंगरा के आँखी मा अरपा-पैरी समा गे। फेर मोहन कहाँ मानने वाला हाबे ?
तिली तिलवरी सादा उरीद कबरी..।
मोला दगा मा डारे ओ गोड़ीन लबरी..।।
मोहन के शब्दबाण मा अधमरही होगे मोंगरा हा। लबारी कभु नइ कहे हाबे फेर "लबरी,दगाबाज ?'' अब तो धरती फाट जावय अउ ओमा समा जावव अइसे लागत हाबे मोंगरा ला। जी कलप गे। रो डारिस मने-मन। घाम घला टड़ेड़े लागिस अब। नारी परानी हा धंधाये मिट्ठू आवय। मीठ गोठियाथे कहिके जम्मो कोई मोहाये रहिथे फेर उड़ाये बर अगास नइ देवय-चिरई अउ टूरी एक बरोबर। मान मरजाद के सुरता देवा के बेरा कुबेरा कहांचो आये जाये ला नइ देवय। सिरतोन मोंगरा रो डारिस। कोनो नइ रहितिस तब गोहार पार के रो डारतीस फेर..? जम्मो कोई तो हाबे सुलोचना सतभामा बिसाहिन रमेसरी। माते हाबे जम्मो कोई गीत गाना मा। हाँसी ठठ्ठा मा खार गमकत हाबे। अब तो सिरतोन कलेचुप होगे मोंगरा हा। का करही मानत नइ हाबे तब ? इही तो मया के मिठास आवय। बैर कोनो नइ राखे फेर रिसाये अउ मनाये के गुरतुर मीठपन के मजा लेथे जहुरिया हा। मोहन बियाकुल होगे अब। वहु माफी मांग डारिस।... फेर मनाये के उदिम करिस।
पीपर के पाना डोलत नइ हे...।
का होगे टूरी हा बोलत नइ हे...।।
मोंगरा कलेचुप रिहिस।
कारी संवरेगी गाले मा तिल वो....।
जब ले देखेव तोला रानी आगे दिल वो...।।
अनार गोंदा फूल....।।
मोहन अउ किहिस अब तड़पत।
"अच्छा जवाब दे मोंगरा तेंहा। अब्बड़ बेरा होगे तेंहा कुछु नइ सुनाये हावस तेखर सेती तोला टेचरही मारत हाबे।''
सतभामा आवय निन्दा के जूरी ला मेड़ कोती टप्प ले फेंकत किहिस। अब्बड़ बेरा ले कुछु गुनिस अउ कहि डारिस अंतस के गोठ ला । अपन साध ला बतावत राग अलापिस।
गाये चराये हियाव कर ले....।
दोस्ती मा मजा नइ हे बिहाव कर ले....।।
मयारुक.....।
मन मगन होगे, गमके लागिस मोहन हा अब। सिरतोन तो आवय जौन ला कहे बर कागज पोथी कमती हो जाथे तौन गोठ ला ददरिया के दू डाँड़ मा कहि डारिस मोंगरा हा।
पांच के लगइया पच्चीस लग जावय...।
बिना लेगे नइ छोड़व चाहे पुलिस लग जावय...।
मयारुक.....।
भीषम किरिया खा डारिस मोहन हा। अब सोचउल-गुनउल के पारी मोंगरा के हाबे। कतका कठिन होथे नारी जीवन हा। दाई-ददा हा जिहां गांठ जोर देथे तिहां निभाये ला परथे। ...अउ ऊंच-नीच के कहाँ नइ हाबे। दाऊ पारा के मोहन तेली अउ खाल्हे पारा के मेंहा गोड़ घर के लइका। समाज हा मानही कि बेंदरा बिनास करही....? मोंगरा के जी घुरघुरासी लाग गे। आज इक्कीसवीं सदी मा घलो झूठी शान मा अपन बेटी-बेटा ला मौत के घाट उतार देवत हाबे। खाप पंचायत ला कोन नइ जाने ? टीवी रेडियो पेपर मा अइसन अब्बड़ खबर रहिथे। ये मया के रद्दा मा अब्बड़ कांटा-खूंटी दिखत हाबे। का होही विधाता मोर मया के। तही जान बूढ़ादेव। मोरो रद्दा ला चतवार गौरी-गौरा। मोंगरा के मन मा आनी-बानी के प्रश्न बादर कस गरजत हाबे।
मोहन घला अइसने गुनत हाबे।
"तोला अतका डर लागत हाबे घर-समाज ले तब चल उड़हरिया भाग जाथन।''
मोहन आँखी-आँखी मा गोठिया डारिस। मोंगरा सिरतोन संसो मा परगे। चेहरा अइलागे। काबर ऊंच नीच बनाये भगवान ! मोंगरा के आँसू टपकगे।
बासी खाये के बेरा होगे अब। जम्मो कोई खेत ले निकल के मेड़ मा आइस। कोनो हा पम्प हाऊस मा तब कोनो हा कुआँ के पार मा बइठके जेवन करे लागिस धरती दाई अउ धान ला भोग लगाके।
''मोर गाँव के संगवारी मन गुजरात जावत हाबे कमाये खाये बर काली। चल हमू मन भाग जाबो उड़हरिया।''
मोहन किहिस आमा अथान के खोटली ला चुचरत।
"उड़हरिया भाग जाबोन तब काखर मुँहू मा हमाबो। बेटी के जनम होते साठ बिहाव के जोरा-जारी हो जाथे। मोरो घर मा पांव पखारे बर फुलकांस के थारी भांवर किंजरे बर सील अउ साटी बिछिया बिसा डारे हाबे। तहुँ एकलौता टूरा आवस। तोर दाई-ददा अब्बड़ सपना देखे होही ....?
मोहन मुड़ी ला गढ़िया दिस। अब मुंशी तुतारी मारिस।
चलो उसलो वो। अब जेवन के बेरा सिरागे। जम्मो कोई ओरी-ओरी अब खेत मा फेर निंगगे निन्दे बर। ....अउ फेर मातगे अब ददरिया के सुर तान हा। मोहन सिरतोन मोंगरा के समझदारी मा मोहागे आज। अपन मन के भाव ला ददरिया मा गाये लागिस।
काजर ला राखे हँव कजरौटी मा भरके..।
मय लानत हँव चिन्हा नागमोरी ला धरके...।।
थोरिक करबे अगोरा, दाई के पांव परके चले आहुँ गाँव रे मिलौनी.......।।
"ददा अब्बड़ खर सुभाव के हाबे मोंगरा फेर मोर दाई हा मना लिही ददा ला। नागमोरी ला धरके आहुँ।''
मोहन बताये लागिस।
तरिया मा नइ हे पानी सुक्खा हे झिरिया...।
जीव हा तालाबेली होथे, तोला मोरे किरिया..।।
काही गहना झन लानबे नइ हे धन के पिरिया रे..।।
चले आबे मोर गाँव रे मिलौना .....।।
"सिरतोन मोहन मोला तुंहर धन दोगानी के लालच नइ हे। मोला तोर ले मया हाबे,तोर मया के छइयां चाही मोला।''
मोंगरा अउ फरिहाके किहिस मोहन ला।
अब तो संसो बाढ़गे। का होही भगवान ? हाँसी ठठ्ठा गाना संग दिन बूड़े लागिस। सुरुज नारायेन ला पैलगी करत राग अलापिस।
बूड़त सुरुज के दिखत लाली वो... ।
अब लहुट जाबो घर, मिलबो काली वो..।।
मोर संगवारी हो ....।।
जम्मो कोई अब अपन-अपन घर चल दिस। मोंगरा अउ मोहन घला अपन दल के संग घर लहुट गे।
आज बिहनियां नवा सुरुज नवा लाली धरके आइस। उछाह मा सरोबोर होगे मोंगरा अउ जम्मो परिवार के। मोंगरा तो फुरफुन्दी बनगे। गोड़ नइ थिरावत हाबे।
"ददा दाई हो मोर मास्टरीन नौकरी लग गे।''
उछाह मा मुचकावत किहिस मोंगरा हा। ददा तो बूढ़ादेव मा नरियर चढ़ाये बर चल दिस अउ दाई इही दिन के अगोरा करत रिहिस। बेटी अपन गोड़ मा ठाड़े हो जावय।अब बेटी के बर-बिहाव के सपना देखे लागिस। बेटी मोंगरा बताइस तब तो दाई संसो मा बूड़गे।
संसो मा तो मोहन घला रिहिस। फेर मनाइस अपन ददा ला।
"नौकरी लग जाही बेटा ! ताहन कर देबो तोर बर-बिहाव।''
"नही ददा ! मेंहा नौकरी नइ करव। जेकर घर खेत-खार नइ हाबे तौन नौकरी करे। मेंहा किसानी करहुँ अउ मोर जोही मोंगरा हा नौकरी करही।''
मोहन के समझाये ले खर बाप अपन बेटा के आगू मा नवगे। अक्ति तिहार के भांवर के दिन तिथी धराइस। उछाह मा अब दुनो परिवार जोरा-जारी करे लागिस।
"ये भांची ! ये मोंगरा ! तोर भइयां केरा बारी गेये हाबे जातो बासी अमरा देबे।''
मोंगरा के ममा आवय आरो करत किहिस मोंगरा ला। लाल भूंजाये मिरची लिम्बू के अथान अउ जेवन धर के जावत हाबे केरा बारी के रद्दा मा मोंगरा हा। लोहार घर छट्ठी के पोंगा बाजत हाबे।
कते जंगल कते झाड़ी कते बन मा रे...।
"कहाँ हस भइयां ?''
मोंगरा आरो करिस केरा बारी मा अमर के।
"आवव बहिनी टेड़ा टेड़ के पानी पलोवत हँव।
भइयां नरोत्तम देखते रहिगे मोंगरा ला। पातर कनिहा। पसीना बोहाये लाल गाल। कजरारी आँखी अउ कुंदरू चानी कस होंठ।
मुड़ी के बासी ला उतार के लहुटे ला धरिस मोंगरा हा फेर नरोत्तम के हाथ मोंगरा के मरवा मा अटक गे।
"बासी खावन दे मोंगरा ताहन चल देबे।''
नरोत्तम किहिस। मोंगरा देखिस ससन भर भइयां ला, आँखी लाल, कर्रा मेंछा,माखुर चभलावत हे।
"मोर में का कमती हाबे मोंगरा ! मोर मया ला नइ पतियायेस अउ तेली टूरा के फांदा मा फँसगेस। बारी के कुन्दरा मा करसा कलोरी पर्रा बिजना हाबे अउ पांच गांठ हरदी घला हाबे। गोरसी के आगी ला साक्षी मान के बिहाव कर लेथन, चल।''
नरोत्तम के गोड़ अउ जबान दुनो लड़खडावत हाबे।
आँखी तोरे फूटी जातिस, छाती तोर फूटी जातिस
अगा अगा भइयां मोर.. ! बहिनी नत्ता ला तो नइ जानेस रे.....।
छट्ठी के पोंगा बाजत हाबे।
"नइ बने भइयां ! अइसन।''
मोंगरा हाथ ला झटकार के किहिस।
"काबर नइ बनही ? रमसीला हिरौदी संतोषी पिंकी जम्मो अपन ममा के बेटा संग बिहाव करिस हे। हमर गोड़ गोड़वानी मा ये जम्मो चलथे। हमर आदिवासी परम्परा ऊपर गरब कर।''
नरोत्तम अब बरपेली जोमे लागिस।
"हमर परम्परा संस्कृति मा नोनी मन ला बड़का पिड़हा देथे। घोटुल मा मन के राजा चुनई करे के अधिकार हाबे बेटी ला। बेटी के मान करे बर सीखोथे हमर संस्कृति हा फेर तोर असन मइलाहा गुनइया के सेती हमर सुघ्घर संस्कृति ऊपर प्रश्न चिन्ह लग जाथे।''
मोंगरा अब्बड़ झंझेटिस फेर नरोत्तम के बैगुन बाढ़ गे।
"तेंहा मोर नइ हो सकस ते काखरो नइ हो सकस माँ कसम।''
नरोत्तम किरिया खा डारिस।
तिलक तेल रिकोये बिल में...।
रही रही समझायेव नइ धरे दिल में...।।
पोंगा के आरो फेर आइस। सिरतोन अब्बड़ तो समझावत हाबे मोंगरा हा फेर नरोत्तम के मति मा कोनो गोठ नइ धरत हाबे। मोंगरा ला अब दबोच डारिस नरोत्तम हा। वोकर बरन अब राच्छस बरोबर दिखत हाबे। अब मर जाहि या फेर मार डारही.....? छटपटावत हाबे मोंगरा हा। नरोत्तम के मइलाहा ले अपन आरुगपन ला बचाये के उदिम करत हाबे मोंगरा हा फेर मोठ डाँट नरोत्तम ले बाच सकही का ....? अपन जम्मो सामरथ ला लगा के छोड़ाइस मोंगरा हा। रानी पदमावती के सुरता कर डारिस। आगी मा कूद के जौहर होगे फेर मइलाहा नइ होइस। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई घला बैरी के हाथ नइ आइस। मोंगरा नरोत्तम के चंगुल ले छूटे के अब्बड़ उदिम करत हाबे...।
इछलगे बिछलगे राहेर फुलगे....।
करिया ला देख के नजर झुलगे....।।
केराबारी मा दोस.....।
....अउ सिरतोन गोड़ बिछलगे। टेड़ा लगे महानदी के दाहरा मा समागे । सीता माई कस धरती के कोरा मा हमागे मोंगरा हा। काया ले सांस सुरुज ले अंजोर फूल ले ममहासी अउ चंदा रानी ले जुड़पन ला हेर देबे तब का बाचही...? सब जुच्छा हो जाही। मोहन घला माटी के पुतरा होगे। अब महानदी के पानी मा वहु जल समाधि धर लिस। मोहन मोंगरा के ममहासी महानदी के पानी ला महका डारिस। लहरा मारत हाबे मया के कथा कंथली ला बगराये बर महानदी हा।
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ये कहानी मा बउरे जम्मो लोकगीत/ददरिया, लोक/ मौलिक आय अउ जम्मो गीतकार मन ला सादर समर्पित हे।
कहानी रचना बेरा मा विशेष सहयोग बर आदरणीय श्री सीताराम साहू श्याम जी, श्री पोखन लाल जायसवाल जी, श्री मिनेश कुमार साहू जी, श्री बलराम चन्द्राकर जी, श्रीमती मेनका वर्मा जी जम्मो कोई ला सादर धन्यवाद।
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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी
जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़
पिन 493773
मो. क्र. 8120578897
Email ID csahu812@gmail.com
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समीक्षा 1/13, 9:00 PM] पोखनलाल जायसवाल:
लोकजीवन के समाव लोकसंस्कृति म हे। लोकजीवन अउ लोकसंस्कृति के आपस म जुड़ाव अइसे हे के एकर जोड़ अलग नि दिखय। लोकजीवन अउ लोकसंस्कृति के तार ल जोड़े रखे म लोकसंगीत के बड़ भूमिका हे।छत्तीसगढ़ी लोकसंगीत के सात सुर महानदी अउ इंद्रावती के निर्मल धार सहीं सरलग प्रवाहमान हे। ए लोकसंगीत लोकजीवन ल गति देथे। ऊर्जा देथे अउ मन म उछाह भरथे। तभे तो कर्मा, ददरिया, सुआ, जसगीत, पंथी गीत, बिहाव गीत, सोहर, नाना प्रकार के गीत मन के सुर ताल लोकजीवन म सहज रूप ले मिलथे। करमा ल लोकगीत के राजा त ददरिया लोकगीत के रानी माने जाथे। ददरिया म मया-पिरीत के ममहासी भरे रहिथे। मिहनतकश लोगन खेत खार म ए गीत ल गुनगुनात रहिथे। ए गीत ले अपन अंतस् के बात ल मन के मिलौना तिर पहुँचाय के उदिम होथे। ए गीत ल नंदकिशोर शुक्ल जी मन मधुर प्रणय गीत माने हें। सिरतोन ददरिया म एक कोति मन के पीरा रहिथे, त दूसर डहन मान-मनौवल अउ टेचरही उलाहना के सुर घलव रहिथे। ददरिया मया के पाग म पगाय मनुहार के गीत आय।
ददरिया ले श्रमशील लोकजीवन ह हाँसी-ठिठोली करत कनिहा टूटत कमई के पीरा बिसराय के उदिम करथे। अइसने जम्मो लोकसंगीत अउ लोकगीत ल लोकगायक के संग सहेजे म साहित्यकार मन आघू आय हें। लोकजीवन अउ लोकसंस्कृति ल जोड़इया सेतु आय साहित्य। साहित्य जेमा लोकजीवन के दर्शन मिलथे अउ लोकजीवन ल नवा रस्ता घलव मिलथे। इही कारण आय के साहित्यकार ल संंस्कृति के संवाहक माने जाथे। साहित्यकार अपन लेखनी के दम म लोकजीवन म नवा उछाह के संचार करथे।
छत्तीसगढ़िया लोकपरम्परा अउ संस्कार ल अपन कहानी म सँघारत चंद्रहास साहू ह अकसर इहाँ के परम्परा अउ संस्कार ल नवा जीवन देथे। इहाँ के लोकजीवन अउ लोकसंस्कृति के ताना-बाना इँकर कहानी मन म दिखथें।
इही क्रम म चंद्रहास साहू ह लोक प्रचलित ददरिया मन ले मोंगरा कहानी ल गढ़े हे। जउन म कहानी ददरिया के आश्रय पा के आघू बढ़थे। ददरिया के मोहनी म फँसे पाठक आखिर तक कहानी पढ़ लेथे। कहानी म नारी विमर्श हे, अउ नारी के पीरा हे। मोंगरा के अंतस् के गुनान ल देखव न--कतना कठिन होथे नारी जीवन ह, दाई ददा ह जिहाँ गाँठ जोर देथे, तिहाँ निभाये ल परथे...।
इक्कीसवीं सदी माने नवा जमाना के आरो घलव ए कहानी म देखब म मिलथे। जब लइका के खुशी बर दाई-ददा ह जात-पात के बँधना ल टोरे बर तियार हो जथे। ए ह कहानीकार के कल्पना नोहय, सिरतोन आय। आप ल अपन तिर तखार अइसन मिल जही।
गोड़ समाज म ममा-फूफू के लइका मन के बिहाव होय के परम्परा रिवाज ल सरेख कहानी नवा मोड़ लेथे, अउ नरोत्तम जइसन मइलाहा मन के मनखे घोटुल परम्परा ल बिसार के नारी ऊपर अत्याचार करथे।
कहानीकार के चतुरई आय कि ओमन गोड़ समाज के दूनो पक्ष ल बड़ सजोर ढंग ले रखथे। गोड़ समाज के घोटुल परम्परा तथाकथित सुशिक्षित समाज बर एक संदेश आय कि ओमन घलव नारी जाति ल अपन जीवनसाथी चुने के अवसर देवयँ। ए अलग बात आय कि अब समाज म नोनी के इच्छा अउ पसंद के खियाल करे जावत हे।
कहानी के अंत दुखांत जरूर हे, फेर अपन जान दे के अपन अस्मत अउ स्वाभिमान ल बचाना इहाँ के गौरवशाली परम्परा रेहे हे। ए परम्परा के निर्वाह कहानी म होय हे।
कहानी के भाषा सरल सहज हे। लोकजीवन के जीवंतता आँखी आँखी म झूले लगथे। संवाद सटीक अउ प्रसंग के मुताबिक हे। "कइसे गोड़िन टूरी कइसे पछवागेस?"
"दाई नइ आये हाबे त... बदला म...बिलम ले बताइस...।" ए संवाद ले हमर गँवई गाँव म बदला म काम बूता करे अउ नागा ले बाँच रोजी मँजूरी के सुग्घर परम्परा के आरो घलव मिलथे।
ददरिया मन के डाँड़ ले कहानी आघू बढ़थे, अइसन म ए कहानी ददरिया बर अमृत कलश साबित होही, कहे जा सकत हे। नवा प्रयोग संग सुग्घर कहानी बर चंद्रहास साहू जी ल बधाई🌹💐🙏
*पोखन लाल जायसवाल*
पठारीडीह पलारी
जिला बलौदाबाजार
6261822466
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