Thursday 5 January 2023

कहानी-दू रुपिया

 कहानी-दू रुपिया 


                                 चन्द्रहास साहू

                           मो  8120578897


             बस ठेसन के ठेला मा  पेपर पढ़त- पढ़त असकट लाग गे आज । कोनो ढंग के एको खबर नइ हावय । मरनी- हरनी  के खबर ले शुरू होथे अउ उही मा खतम । आज एक परिवार हा रेलवे ठेसन मा....? हाय राम ! कोन जन का खबर आये ते  ? आगू पढ़े ला नइ भाइस। सरकार गरीबी हटाये बर अपन विकास मॉडल के विज्ञापन देये रिहिस। ससन भर देखेंव अब्बड़ सुघ्घर रिहिस मॉडल हा। अउ सुघ्घर नारा घला लिखाये रिहिस।

"अब सब उछाह मा रही ..! भगा जाही गरीबी हा ।'' 

मेहां केहेव पानवाला ला।

"गरीब करा कुछु राहय कि नही ..फेर नारा सबरदिन रही साहब गरीबी हटाओ के । ये नारा हा आजादी के सत्तर बच्छर पहिली ले आवत हावय अउ मोला लागथे अवइया बेरा..... ? नारा भलुक बदल जाथे फेर गरीबी...? गरीबी तो अंगद के पांव आवय।''

पान वाला किहिस।

 "फेर हमर जागरूक सरकार के ये मॉडल मा गरीबी पल्ला भाग जाही अइसे लागथे।''

मेहां केहेव। अब बड़का क्लर्क बाबू तिवारी जी घला आ गे रिहिस। हमर गोठ मा ओखर गोठ मिंझरगे ।

"ओखरे सेती तो भइयां ! शहर के सुघराई बढ़ाना हावय तब जम्मो गरीब मन ला हटा देना चाहिए...।''

"हटा देना..? ये का गोठ आय जकहा बरोबर ?''

 तिवारी जी के गोठ सुनके अकचका के केहेंव।

"हव भई मारे मा का पाप..? धरती के बोझ तो आवय साले गरीब मन।''

"गलत गोठ आय येहा तिवारी जी! मानवता अउ संवेदना नाव के घला कोनो जिनिस होथे। चिरई - चिरगुन,कुकुर - माकर, किरा -मकोरा जम्मो ला जिये के अधिकार हावय तब गरीब मन ला काबर नइ रही..?''

तिवारी जी के आँखी ललियागे अउ चेहरा लाल होगे मोर गोठ सुनके। पानवाला घला बिरोध करिस तिवारी के गोठ के।

" हाव जम्मो कोई ला जिये के अधिकार हाबे भई । फेर कभु - कभु अइसने लागथे तेला केहेंव।''

 तिवारी किहिस मुरझावत ।

"अइसन बिचार घला पबित्तर नइ हे तिवारी जी। कभु झन कहिबे ।''

समझायेंव ।

हमन दुनो कोई बस ठेसन मा ठाड़े होके गोठियावत हावन। एक झन माइलोगिन आइस कोन जन के दिन के नइ नहाए हावय ते .? संग मा तीन झन तारा - सिरा  लइका । घोंघटाहा ओन्हा, हाथ मा कटोरा धरे। दू चार ठन सिक्का ला उछाल के खनखनावत हावय खुनर - खुनर।

"दू चार रुपिया दे दे साहेब ! लइका मन लांघन हावय।'' 

भिखारिन के गोठ ला अनसुना कर दिस तिवारी जी हा। लइका मन मोर करा झुम गे अब। 

जतका खाहु तुमन, खवाहु ।... फेर पइसा नइ देवव। मेंहा किरिया खा डारे हँव । पाछू दरी  बड़का मंदिर मा मंगइया मन ला जइसे पइसा देयेव वइसने झोकिस अउ मंदिर के पाछू कोती जाके दारू अउ गांजा पीयत रिहिस। 

"हे भगवान...? ''

भिखारिन अउ जम्मो लइका ला बरा अउ समोसा के पुड़िया देयेव। झटकुन खा डारिस। पुड़िया ला डस्टबिन मा डारिस अउ अब चाहा पीयत हावय। तिवारी जी घला ठेसन के फर्श मा पान पीक ला पूरक के विश्व के छप्पा छाप डारे रिहिस। 

"कहाँ जावत हस तिवारी जी ?''

पुछेंव।

"रायपुर मंत्रालय जाए बर निकले रेहेंव भइयां फेर साहब मन फैमिली टूर मा हमरे कोती आवत हावय। अगोरत हावव ओमन ला। महराज मइनखे आवव भइयां ! दू चार झन ला गंगा असनान्द करवाना हावय। ट्रांसफर के सीजन हावय अभी। एसी हाल के फ्रंट टेबल ला बुक कर दे हावव मेंहा साहब बर।''

तिवारी जी मुचकावत किहिस। 

"मोर गंगा हा माइके गे रिहिस उही ला अगोरत हँव मेंहा।''

अब दुनो कोई ठठाके हाँस डारेंन।


छेरीक छेरा छेर मरकनीन छेर छेरा ...।

माई कोठी के धान ला हेर हेरा... ।।


लइका जवनहा मनके टोली गली खोर मा किंजरत हावय । कतको झन मन  बाजा मोहरी बजावत छेरछेरा मांगत हाबे , तब कतको झन मन झोला टुकनी चुंगड़ी धरके । कोनो लइका बटकी गंजी ला धर के छेरछेरा मांगत हावय। रमायेन  वाला मन भक्ति गीत , राउत मन दोहा पार के ,पंथी दल मन बाबाजी ला सुमरत , लीला रामसत्ता वाला मन झांकी निकाल के , करमा दल गा के अउ डंडा नाचा वाला मन नाचत हु..कु...हु..कुहहू  कुहकी मारत रिहिस। जम्मो , अब्बड़ सुघ्घर बरन गाँव के। जम्मो के मन गमकत हावय अउ गाँव गदबदावत हावय। लइका मन रोवत हे , गावत हे । तब कोनो झगरा घला होवत हे। अन्न लछमी कोठी मा जतना गे हावय अउ बाचल - खोचल हा ससुरार जाए के तियारी करत हावय मंडी के रस्दा मा। गाँव मगन हे अऊ शहर घला माते हे उछाह मा ।

बड़का चमचमावत गाड़ी फाइव स्टार होटल के आगू मा ठाड़े होगे। तिवारी जी के सिकल मा उछाह हमागे।


 छेरिक छेरा छेर मरकनीन छेरछेरा..।

माई कोठी के धान ला हेरहेरा ...।।


लइका -जवनहा,डोकरा-डोकरी, छेरका मन अब गाड़ी वाला ला मांगत हावय छेरछेरा। 

"व्हाट आर यू डूइंग बेगर पीपल ? छत्तीसगढ़ में विश्व की बेहतरीन आयरन ओर मिलती है, सुना था। खनिज संपदा से सम्पन्न छत्तीसगढ़ लेकिन यहाँ इतने भिखारी ...ओ माई गॉड ।''

आधुनिकता के चद्दर ओढ़े कोरा मा कुकुर पाये साहब के सारी किहिस। साहब घला पंदोली देवत रिहिस।

साहब अउ परिवार वाला मन गाड़ी ले उतर गे रिहिस अब। 

तीर मा ठाड़े डोकरा टप्प ले किहिस।

    "भीख नइ मांगत हावन साहब ! छेरछेरा मांगत हावन। येहाँ हमर राज के पोठ लोकपरब आय।'' 

"कोई लोक परब वरब नही है। कटोरा लेकर हाथ फैलाकर  मांगना ....भीख ही है।'' 

"मांगना ही भीख आवय तब तोर दाई-ददा हा कुछु जिनिस मांगही तहु भीख आय का....? गोसाइन  स्नो पावडर बर पइसा मांगही तहु भीख आय ..? लइका मन खेल-खेलउना कापी किताब बिसाये बर पइसा मांगही तहु हा भीख आय साहब.. ।  भिखारी तो .. तुमन सादा ओन्हा पहिरइया आवव साहब ! हमर छत्तीसगढ़ के खनिज संपदा बर हाथ लमात रहिथो।''

जिला कार्यालय के बड़का बाबू तिवारी जी देखते रहिगे ओखर ले आगू सियान हा तिवारी के बड़का साहेब ला जोहार दिस। 

साहब सुकुरदुम होगे।..मुक्का, आरुग मुक्का।

" ये मंदहा - गंजहा संग झन उलझ सर जी ! दू कौड़ी के ...येमन । ''

सियान संग जोमत किहिस तिवारी जी हा

अउ  डंडासरन होगे। 

"अइसना पंवरी चटइयां कुकर मन के सेती छत्तीसगढ़ बोहावत हाबे रे सुकालू !''

सियान ठोसरा मारत अपन संगवारी सुकालू संग चल दिस आने गली मा छेरछेरा मांगे बर।

                     फ्रेंच फ्राई, पोटेटो ट्विस्टर, पिज़्ज़ा,बर्गर  मन्चूरियन अउ सलाद संग जीरा राइस। टेबल साज गे रिहिस। साहेब के सास-ससुर, गोसाइन, सारी अउ लइका पिचका जम्मो झड़कत हावय अब। तिवारी जी रिसेप्शन मा बइठ के ललचावत हावय। घर के टीवी मा देखे तब ललचा जावय । ये तो लाइव टेलीकास्ट हावय । कइसे बिहनिया खपुर्री रोटी ला पानी पी पी के, अटेस के खाये रिहिस।

"ठीक है तिवारी जी ! बढ़िया स्वादिष्ट भोजन करवाये। हमलोग चलते है अब। आओ रायपुर कभी..।''

साहब ढ़कार मारत, पेट रमजत किहिस।

"जी सर!'' 

डंडासरन होवत पांच बेरा जी सर कहि डारिस तिवारी जी हा।

"अच्छा ! रायपुर आओगे तब यहां का विश्व प्रसिद्ध नगरी दुबराज और कड़कनाथ मुर्गा लेकर आना बहुत नाम सुना हूं।''

"जी सर!

 जम्मो कोई सीढ़ी उतर गे अउ गाड़ी कोती चल दिस अब। ससन भर देखिस आधा छोड़े पिज़्ज़ा बर्गर कोल्डड्रिंक जीरा राइस पनीर ला। जम्मो ला डस्टबीन मा डारत हावय बाई हा। देखे लागिस मुचकावत साहब ला , हाँसत गोसाइन, दांत खोटत सास- ससुर, खिलखिलावत लइका लोग  अउ बाब कटिंग हेयर स्टाइल वाली  नान्हे ओन्हा पहिरे पीठ उघरा वाली सारी ला..। 

चार हजार चार सौ तिरालिस रुपिया मात्र।

"अई.... ''

तिवारी जी के मुँहू  उघरा होगे। 

"एक ठन टेबल के ...।''

हांव तिवारी जी ! होटल मैनेजर किहिस अउ तिवारी हा पइसा पटाइस। अपन गोसाइन ला धन्यवाद दिस लइका के कापी किताब अउ किराना जिनिस  बर लिस्ट संग पइसा देये रिहिस बिहनिया ।

तिवारी जी दउड़त खाल्हे आगे अब। आखरी दरी जोहार भेट करना चाहिस फेर गाड़ी आगू कोती रेंग दिस। तिवारी जी के मुँहू ओथरगे।

...अउ थोकिन दुरिहा मा ठाड़े होइस साहब के गाड़ी हा तब तिवारी जी के चेहरा फेर दमके लागिस। अब धन्यवाद कहिके हाथ मिलाही साहब हा। मन गमकत रिहिस।

"अरे तिवारी जी ! हम सब को भर पेट खाना खिला दिए और इस टॉमी को..? इनके लिए भी बिस्किट लेकर आ जाओ।

"जी सर ।''

तिवारी दुकान ले बिसा के दिस।

"अच्छा ठीक है। अब चलते है ...ओ नगरी दुबराज और कड़कनाथ को याद रखना...जब भी आओगे तब.... ।''

 गाड़ी अब भुर्र  ...होगे। जम्मो कोई चल दिस। तिवारी जी कठवा बनगे रिहिस। फेर मने मन अब्बड़ होले पढ़ डारे रिहिस। 


छेरिकछेरा छेर मरकनीन छेरछेरा..।

माई कोठी के धान ला हेरहेरा ...।।


जवनहा के आरो सुनके सुध मा आइस। 

"चल भाग बे..! अतका बड़का सांगर-मोंगर होके लइका मन बरोबर छेरछेरा मांगत हावस।''

"का करबे भइयां..? बारो महीना पंडित पुजारी मन मांगथो। आज के दिन हमन बावहन महराज बन के  मांग लेथन। तब काबर बमियावत हावस गा !''

"बने ठोसरा मारथस रे नानजात ।'' 

          /तिवारी जी हाँसत रिहिस बनावटी हाँसी। डेरी खीसा ले सौ पांच सौ के गड्डी निकालिस। ससन भर देखिस अउ फेर खीसा मा डार दिस। जेवनी खीसा ले सौ पचास के दू चार ठन नोट निकालिस अउ..फेर धर लिस। अब पाछू खीसा ले सिक्का निकालत हावय।  हथेली मा मड़ाइस अउ अंगरी ले निमारे लागिस- दस पांच दू एक..। ..अउ  अब दू के सिक्का ला अल्थी - कल्थी करके देखिस अउ जवनहा ला दे दिस। 

"धर रे ये दू रुपिया ला। दू रुपिया के पुरती हावस तेहां।''

जवनहा हा ससन भर देखिस दू रुपिया ला अउ  असीस दिस।

"जय होवय महराज तोर । लइका मन दुधे खाय दुधे अचोवय । तोर गोड़ मा कांटा झन गड़े।'' 


छेरीक छेरा...। 

आरो आय लागिस।

जवनहा आने कोती रेंग दिस अब। 

                मोरो गोसाइन के बस आ गे रिहिस अब। बेग मन ला कन्डेक्टर उतारत रिहिस। 

"झटकुन नइ आवस । बेग मन ला उतारे ला लाग..। आरुग दू रुपिया के पुरती घला नइ होवस कभू -कभू।''

गोसाइन के मीठ गोठ आवय।

 मुँहू ओथरा के ठाड़े तिवारी जी ला ससन भर देखेंव अउ गोसाइन ला फटफटी मा बइठारेंव अब घर कोती जावत हँव गुनत - गुनत दू रुपिया के पुरती कोन आय...?

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

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समीक्षा


छत्तीसगढ़ अपन संस्कृति अउ परम्परा ले सिरिफ भारत म नइ भलुक दुनिया भर म अपन अलगेच पहिचान रखथे। इहाँ कृषि संस्कृति अउ ऋषि संस्कृति के सुग्घर मेल दिखथें। अन्न उपजाना कृषि संस्कृति आय त दान धरम ऋषि संस्कृति के मूल म मिलथे। अन्न दान वहू ल तब जब लक्ष्मी दाई अन्नकुँवारी के रूप म घर बिराजथें। सब के पेट भरय, कोनो भुखाय झन रहयँ, इही भावना ल सँजोये एक ठन अनोखा परम्परा आय छेरछेरा। छेरछेरा छत्तीसगढ़ के पबरित भुइयाँ म तइहा ले मनत आवत हे। सब हाथ खोल के दान करथें। न जात-धरम देखे, न अमीर गरीब। सबे माँगथें अउ सबे देथें। कोनो काकरो अंतस् ल नइ दुखाय। *सर्वे भवंतु सुखिनः* के भाव इहाँ के जन-जन के अंतस् म हे। एकर पाछू कतको किस्सा अउ मानता हें।

       'दू रुपिया' कहानी म जिहाँ गरीबी ल लेके सदाकाल बर सोला आना गोठ हे कि गरीब करा कुछु राहय कि नहीं, फेर नारा सबर दिन रही, साहब! 'गरीबी हटाओ के'। सिरतोन गरीबी समाज म, देश म अंगद के पाँव सहीं जमे रही। गरीब मन बर कतको चुनावी गोठ होही फेर गरीब के भाग म रही त, गरीबी अउ नेता-अफसर मन के कथनी कुछु अउ करनी कुछु के भेद ले सनाय हेव/घिन।

      कहानी के मूल आधार डाँड़ लकीर लगिस- ...."दू चार झन ला असनान्द करवाना हे।"

    तिवारी जी जइसन हमर समाज म कतको हें जउन मन आफीस म बइठे भ्रष्टाचार अउ रिश्वतखोरी ल बढ़ाय बर एक टाँग म खड़े मिलथे। चमचागिरी के चक्कर म अपन स्वाभिमान ल घलव नि बचा पाय। तभे तो विलायती कुकुर के सेवा घलव बजाथें। संगेसंग कतको लुटाथें अउ लुटे के उदिम करथें। अमरबेल जउन सरी रस ल चूसत अपन बाढ़ देखथे, अइसन मन ल आश्रय देवइया तिवारी जी जइसन मनखे मन बर सुग्घर ठोसरा घलव कहानी म मिलथे-"अइसन पंवरी परइया कुकुर मन के सेती छत्तीसगढ़ बोहावत हाबे रे, सुकालू!"

     जघा-जघा म मानवीय सुभाव के चित्रण घलव बढ़िया हे- तिवारी जी रिसेप्शन म बइठ के ललचावत हावय। घर के टीवी म देखे तब ललचा जावय। ये तो लाइव कास्ट आय।

     उहें साहब अउ उँकर परिवार वाले मन मनमाने अकन खरचा करवा, लहुटथें तब...तिवारी के होले पढ़ई होय ते छेरछेरा मँगइया मन तिर साहब के अपन खीझ उतरई।  एकर-दूसर उदाहरण आय। त कहानी ल आघू विस्तार देवइया पात्र कहानीकार के गोसाइन के कहना- "....आरुग दू रूपिया के पूरती नइ होवस कभू-कभू।" एकदम स्वाभाविक जनाथे।

       छत्तीसगढ़िया कतका संतोषी होथे अउ उँकर हिरदे कतका बड़े होथे, एकर समाव कहानी म बड़ सुग्घर ढंग ले करे गे हे। उदाहरण देखव-  जब तिवारी जी  छेरछेरा के रूप म दू रुपिया देथे, तब दिल खोलके असीस देथे-  ''जय होवय महराज तोर। लइका मन दुधे खाय, दुधे अँचोवय। तोर गोड़ म काँटा झिन गड़े।" जेन ह सदा दिन इहाँ असीस बन के सब ल फूरथे। सुरता करव न सुआ गवइया बहिनी दीदी मन के, राउत भइया अउ डंडा नचइया मन के असीस ल। 

         साहब! नाँव भर बड़े मनखे आय, उँकर हिरदे साँकुर हे, तभे तो धन्यवाद नइ कहिस, भलुक दुबराज अउ कड़कनाथ मँगाथे।

       कहानी के शीर्षक 'दू रुपिया' आँचलिकता ल समेटे हावय। छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान ल बचाय म सफल हे।

      भाषा शैली गजब के हे, संवाद म अँग्रेजी  शब्द के समाव प्रासंगिक अउ प्रभावी हे। साहित्यकार अपन लेखनी ले अपन संस्कृति, परम्परा के धरखन ल सँजोवत नवा पीढ़ी तिर पहुँचाथें। ए कहानी म छत्तीसगढ़िया के बड़का तिहार छेरछेरा के आरो हे। व्यंग्य के पुट पाठक के मन मोह लिही। "भिखारी तो तुमन सादा ओन्हा पहिनइया आवव साहब!  हमर छत्तीसगढ़ के खनिज संपदा बर हाथ लमात रहिथो।"

       छेरछेरा अन्न दान के परब आय। शहरीकरण के चलत अन्न के बलदा म कोनो-कोनो मन पइसा दान करथें। फेर गाड़ी वाला मन ले/डहरचलती मनखे मन ले छेरछेरा मँगई नवा बात लगिस। छेरछेरा तो घर-घर माँगे जाथे, अतके पता रहिस।

 सुग्घर कहानी बर चंद्रहास साहू जी ल बधाई💐🌹

पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

जिला बलौदाबाजार छग.

6261822466

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