Saturday 21 January 2023

विमर्श: यूरोपीय देश के नामी-गिरामी विश्वविद्यालय हमर देश माये के बाद के परिकल्पना*

 *विमर्श: यूरोपीय देश के नामी-गिरामी विश्वविद्यालय हमर देश माये के बाद के परिकल्पना*


पोखन लाल जायसवाल

      

       आज भूमंडलीकरण के प्रभाव सबो चारों डहन देखब म आवत हे। एक कोति पर्यावरण म तेजी ले होवत बदलाव सब के बुध ल हर ले हे, उहें सरी संसार ल संसो के गहिर सागर म चिभोर दे हे। दूसर कोति कोनो देश के आर्थिक रूप ले आत्मनिर्भरता एक-दूसर के सहयोग बिगन पटरी म नि चल सकय। सहयोग बर हाथ मिलाय म बड़ सावचेत रेहे के जरूरत हे। नइ ते आर्थिक मंदी के चलत मटियामेट होय के डर घलव हे। आत्मनिर्भरता के दिशा म आगू बढ़े बर समुचित शिक्षा के जरूरत ल अनदेखी नि करे जा सकय। सही शिक्षा विकास के डगर ल गढ़थे।

         एक समे रिहिस जब शिक्षा बर भारत के सिक्का जमे रिहिस। विदेश ले शिक्षार्थी मन इहाँ अध्ययन करे बर आवयँ। आज यूरोपीय देश के नामी-गिरामी विश्वविद्यालय के हमर देश म आय के आरो मिलत हे। एकर आये ले शिक्षा के स्वरूप म बदलाव होना तय हे। एकर ले इहाँ के आर्थिक, सामाजिक, साँस्कृतिक, शैक्षिक सबो क्षेत्र के दशा अउ दिशा दूनो म बदलाव घलव स्वाभाविक हे।

      ए विषय म जे मनखे, ते विचार हो सकथे। मोर विचार म यूरोपीय विश्वविद्यालय के आय ले सब ले बड़का खतरा इहाँ के संस्कृति ऊपर आही। भारत अनेकता म एकता के देश आय। ए एकता ल संस्कृति ह एक माला म पिरो के रखे हे। जब यूरोपीय विश्वविद्यालय रही, त वो ह इहाँ के संस्कृति बर काबर चेत करही। शिक्षा अउ साहित्य ले संस्कृति के बढ़ोतरी होथे। अपन पइसा लगा के भला ओमन इहाँ के संस्कृति ल काबर बढ़ावा दिहीं।

      मालदार मनखे मन अपन लइका ल आजो बाहिर भेज के कहूँ पढ़ा सकत हें, गरीबहा मनखे इहें के विश्वविद्यालय म ले दे के पढ़ावत हे, त गरीब ल का फायदा मिल पाही? बने होतिस इहें के विश्वविद्यालय ल स्तरीय बनाय के दिशा म विचार करे जाय। एकर पहिली अउ जरूरी हे कि स्कूली पढ़ई बर जरूरी जम्मो जोखा दुरुस्त हो जय। दूरांचल म घलव शिक्षा के अप्रोच बढ़ाय के उदिम होवय।

      शिक्षा के नाँव म अभियो विदेशी मुद्रा के रूप म पइसा खरचा होवत हे। फेर एकर सीमा कमती हे। विदेशी विश्वविद्यालय के खुले ले जम्मो बेवस्था (पठन संसाधन, खासकर मानवीय संसाधन) बर विदेश के मुँह ताके ल परही। विदेशी मुद्रा चाही। ओकर चकाचौंध के पाछू हमर विश्वविद्यालय के का हाल रही? एकरो विचार करे के जरूरत हे।

        इहाँ पढ़ लिख के निकले प्रतिभा ल पर्याप्त अवसर नि मिले ले पलायन के खतरा घलव बढ़ जही। जे आज घलव आगू खड़े एक समस्या आय। कतको प्रतिभा इहाँ ले पलायन कर चुके हें। इहाँ रहना नि चाहय।

     जरूरी हे कि प्रतिभा बर इहाँ अवसर बनाय जाय। पढ़ई म लागत के अनुरूप पगार दे सकन अइसन योजना होवय। 

        उच्च शिक्षा के नाँव म लगे पइसा कौड़ी ले मनखे मशीन बन जथे। पइसा च छापे के उदिम करथें।

       दूनो किसम के विश्वविद्यालय के रेहे ले समाज म वर्ग भेद बाढ़ जही। जे पारिवारिक महौल म कलहा पैदा कर सकत हे। 

         विदेशी विश्वविद्यालय ले वैश्विक मुकाबला करे म सुविधा जरूर होही। फेर एकर फायदा गिनती च के लोगन ल होना हे। अइसन म भारतीय समाज बर विदेशी विश्वविद्यालय हितकर कमती अउ विघ्ना डरइया जादती लगत हे।


पोखन लाल जायसवाल

(पठारीडीह) पलारी

जिला बलौदाबाजार

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