Saturday 21 January 2023

बिलासा : अरपा के बेटी* (छत्तीसगढ़ी लघु नाटिका)

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*बीरता, बहादुरी अउ सुंदरता के दूसर नांव - बिलासा*-


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             *बिलासा :अरपा के बेटी*

          

            (छत्तीसगढ़ी लघु नाटिका)



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पात्र -


परसू -लगरा गांव के एकझन केंवटा जवान (बिलासा के ददा)


विशाखा - परसू के सुआरी बिलासा के महतारी


बंशी - बिलासा के गोंसान


कल्याण साय - रतन पुर के कल्चुरी राजा 


      अउ आन आन।  


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                  *पूर्व पीठिका*


                जय गौरी गजानन

                जय शारदा भवानी

  

नेपथ्य म सुत्रधार -झन समझव छत्तीसगढ़ के ये माटी लल निच्चट सोझवा। इहाँ घलव नदिया मन म गहिल दहरा हे, तब डोंगरी के ऊंच पहरा भी हे।समतल मैदान हे तब कठर्री  वन- डोंगरी घलव भी हे। निच्चट गउ- गंगा असन कौशल्या- सगरी जगत म पूजा पवईया राम के महतारी हे, तब हुंकार भरत गरजत परम् विरांगना बिलासा सुंदरी घलव हे। आवव आज वोई सुंदरता- बीरता- बुध- अकिल अउ हिम्मत के भंडार  बिलासा ल थोरकुन सुरता कर ली,जउन हर छत्तीसगढ़ी के नारी रतन ये।जउन हर छत्तीसगढ़ के न्यायधानी बिलासपुर के आदि महतारी ये।जउन हर अपन स्वाभिमान- आन -बान अउ शान बर अपन जीवन ल होम चढ़ा दिस।


नारी स्वर -


मंय बिलासा अंव। मंय अरपा के बेटी, अउ बिलासपुर के महतारी अंव। मंय छत्तीसगढ़ के चिन्हारी अंव...

    

                           *गीत*


                    तँय बने देय दाता 

                    मोला भेंट उपहार... ।


            घाम          कस    उज्जर मोर 

            हाथ      गोड़      सबो     अंगा

            लाली होंठ     हावे वोकर संगा

            करिया        चुंदी नयन रतनारे

            देख मोला दई ददा दुख बिसारे

            नहीं काकरो से मोर बैर व्यवहार।



          मैना मंजूरनी मंय नइये काकरो पहरा

          चाल म मोर    मचले अरपा के लहरा

          बहाँ भुजा मोर सरई के गोल   पेड़वा

          हांसी मोर जइसे     छलकत हे नरवा

          हिम्मत बुद्धि अंव सबके मया दुलार।

          

                   तँय      बने देय दाता 

                   मोला भेंट उपहार... ।


           मंय बिलासा अंव....


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                        *दृश्य-1*

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ठउर - परसू केंवटा अउ वोकर सुआरी विशाखा के कुंदरा।


परसू -विशाखा !


विशाखा - हाँ जोहीं ! का कहत हव?


परसू - चल हमन कनहुँ आन जगहा म जाके बसबो।


विशाखा(अचंभा करत) - वो काबर ओ...? भले ही ये जगहा हर मोर जनम भूमि नई होइस,फेर तुँहर तो आय न।


परसू-कहत तो ठीक हस। जनम भूमि ल तियागे के काम तो नइये।फेर ये जगहा म हमरेच मनखे हमरेच कुटुंब कबीला मन भर बोजाइन न।अब हमन बर सबो जिनिस हर कम परत जात हे...


विशाखा - कहत तो तूं सोलह आना सच हव।


परसू -येकरे बर तो मंय कहत हंव...चल हमन कनहुँ आन जगहा चली जिये खाये बर।


विशाखा - फेर कहाँ जइबो ?


परसू -अरे हमन तो ठहरेंन जलछत्री मछी कोतरी धरने वाला। किसान के खेत ये खार विंयार तब हमन के खेत ये अरपा महतारी के अथाहा जल हर। हमन जाबो तब भी अपन ये जलदेवती महतारी अरपा ल छोड के कनहुँ आन नई जान।


विशाखा (हाँसत) - ठीक कहत हवा।


                 परदा गिरथे


***




                    *दृश्य 2*


(अरपा नदी के खंड़ म बने एकठन कुंदरा)


परसू (हाँसत)- देखे बिशाखा  !हमर देखा- हिजगा कतेक न कतेक झन मनखे कतेक न कतेक परिवार ये जगहा  म आ ठुला गिन न।ये  दूसर लगरा गांव बन गय।


बिशाखा (विसनहेच हाँसत )- मोला तो बने लागिस हे।अपन गांव घर ल छोड़े के दुख हर अब नई जनात ये। ये सब मन के आय ले अइसन लागत हे, जइसन अपन जुन्ना च गांव म हावन।


परसू - वो तो ठीक हे फिर...


बिशाखा -त एमे अउ का फिर,बबा ? सब अपन बहाँ भुजा के कमई ल खाहीं।हाँ...सुख दुख म जरूर सँग दिहीं।


परसू -वो तो हे। वोहर जानब बात ये। अभी मोइच ल देख न । जब ले येमन आईंन हें, मंय तोला एकेझन छोड़ के नदिया म उतर जांथव बेधड़क।तोर अइसन दिन पुरताही अवस्था म,मोला एको फिकर नई रहे। अतेक झन म कनहुँ न कनहुँ रहहीं आरो- गारो लेय शोर -संदेशा बजाय बर।


बिशाखा(हाँसत) -अउ मोला अब एको डर नई लागे।नहीं त पहिली दुइक दुवा आये रहेन।तब मोला विक्कट डर लागे।


परसू (हाँसत)- फेर अब तो दुइक- दुवा कहाँ बांचबो। अब तो दु ल तीन चार होवत जाबो।


बिशाखा (लजात )- फेर येती तो हुर्रा अउ खेखल्ली मन के भरमार ये। देखत रहिथों न कईसन रात भर खे खे खे खे हाँसत रहिथें वोमन।


      ( नेपथ्य म कोलिहा हुर्रा लकड़बग्घा अउ आन जंगली जानवर  मन के आवाज आवत रहिथे।)


परसू -अरे येहर तो वो जनाउर के आवाज ये।ये कोती हुर्रा लकड़बग्घा मन के तो भरमार ये।सार चेत रहे बर लागही।


(अचानक बिशाखा के मुख मुद्रा बदल जाथे। वोहर पेट ल धर के बइठ जाथे।)


परसू (हड़बड़ात) -लागत हे येकर दुखान- पीरा उबक आइस। जात हंव कनहुँ नारी परानी ल येकर संग देय बर बला लानहां,तभे तो बनही।


      (परसू जाथे फेर तुरन्त एक झन आन मई लोग के संग म प्रवेश करथे)


अवइया नारी -परसू दउ !तूँ थोरकुन बाहिर बईठा। भीतर मंय देख लेवत हंव।


परसू (हाथ जोरत )-हाँ, भौजी !


  (  परसू बाहिर निकल आथे। वो एक घरी ल एती वोती किंजरथे। तभे भीतर कोती लइका रोय के अवाज आथे। बड़खा भौजी नवजात लइका ल ओनहा म लपेट के निकलथे।)


बड़खा भौजी -परसू दउ !नोनी ये। पहिलात ये। पहिली नोनी होवई हर सदाकाल शुभ मंगल आय। नोनी होये ले ददा हर पुरखा मन के करजा ले,धरती माई के करजा ले छुटकारा पा जाथे।फेर ये लइका हर देखा तो कईसन अगास के बिजली कईना असन दिखत हे। अइसन कईना हर ही कंस राजा के हाथ ल छूट के अकास म बरिस होही। येकर नांव बिजली नहीं...नही... बिजली असन सुंदर नांव  बिशाखा के बेटी बिलासा धरबो।


परसू (हाथ जोड़ के )- जोहार हे भउजी जोहार हे! बिशाखा ल पार लगा देया। अउ...अउ सुंदर नांव घलव धर देया... बिशाखा के बेटी बिलासा! (लइका ल ओझियात ) बिलासा !ये बिलासा... बिलासा मोर बेटी!


      (परसू लइका ल अपन हाथ म लेके चुम लेथे।)



                परदा गिरथे


***








                      *दृश्य 3*


(अरपा नदी के तीर के मैदान।बहुत अकन लइका मन खेलकूद म मगन हें। सुघ्घर बिलासा नोनी घलव खेले के नांव म उहाँ जाथे।)


चंपा -ये आ गय बिलासा ?


बिलासा - हाँ चंपा !


चंपा - आ ये दे  कईंचा बालू ले घरगुंदिया बनाबो।फिर नोनी बाबू के बिहाव के खेल खेलबो। मंय बाबू के ददा बनहां अउ तँय नोनी के दई।


बिलासा - खेलबो तो सही। फेर मंय दउ के ददा बनहां, तभे खेलबो।


चंपा - चल ठीक हे।फेर तँय आ !मोला तोर संग म खेले के बड़ मन करथे।


      (दुनों के दुनों खेले लग जाथें।तभे तीर म गुल्ली -डंडा खेलत टूरा मन के किलबोल हर बड़ जोर ले सुनाथे। बिलासा वो कोती ल खड़ा होके देखथे।तब फिर वोहर अपन घरगुंदिया ल एक लात मार के फोर देथे अउ वोकरा ले भाग पराथे।)


चंपा - ये... !ये बिलासा...कइसे करत हस?अभी तो दूल्हा के मउर नई पउरछाय ये।भाँवर नई  परे ये। दूल्हा -दुलहिन बइठे नइये।आ...! आ...!


बिलासा -तँय एके झन खेल !मोला ये बार बिहाव वाला खेल मा मन नई लागत ये।मंय तो जावत हंव टूरा मन संग गुल्ली खेलहां।


चंपा(आंखी बटेरत)- ये दई !तँय टूरा मन असन गुल्ली खेलबे। का तँय टूरा अस।


बिलासा -हाँ, मंय टूरा अंव।


     (हाँसत बिलासा चंपा तीर ले भाग जाथे अउ टूरा मन के तीर म जाके डमरू के हाथ ले डंडा ल लुटके गुल्ली के ऊपर रटाक...ले चला देथे ।तभे टूरा मन के दुनों दल तीरा- घिंचा होथें)


डमरू (खुश होवत)-–आ गय बिलासा ! हमर कोती रहही।वोकर बलदा ये साखी लाल ल तोर कोती ले ले बदलू।


बदलू -नहीं ...!नहीं...! बिलासा हर अकेल्ला जितवा देथे।येहर इचक दुचक गुल्ली उचका के फोरथे तब पांच ले कम तो कभु आबे नई करे।येहर हमर कोती रहही।


डमरू - नहीं ...नहीं। येहर हमर कोती रहही।


बदलू -अरे नहीं।


डमरू -पहिली मंय कहे हंव।


बिलासा -अरे लड़व झन न!मंय खड़ मुरदुंग जावत हंव। तुमन हाथ तय कर लेवा।


बदलू -ठीक हे।


डमरू -चल ठीक हे। फेर गुल्ली के बाद डुडुवा कबड्डी खेलबो तब येहर मोर कोती रहही हाँ !


बिलासा (कंझात)-हाँ...! चल पहिली गुल्ली तो शुरू कर !


             परदा गिर जाथे।


***

 



                      *दृश्य 4*


    (रात के समे ये। अंजोरी तेरस के चंदा उये हे।जवाली नाला के तीर म बसे अपन घर म  ददा परसू अउ दई बिशाखा के मंझ म बिलासा बइठे हे। )


बिशाखा -बिलासा के ददा !


परसू -हाँ,का कहत हस?


बिशाखा- देखत हव ,ये लइका के हाथ -गोड़ ल ! 


परसू -का हो गिस?लाख म निमरा हे मोर बेटी हर।


बिशाखा - येई हर तो मरना आय।


परसू -अरे का हो गिस, बने फरिया के बता ? तब समझ आही, तोर गोठ हर।


बिशाखा -  नई देखत हव, येकर बहाँ -भुजा ल,कइसे बाबू लइका मन कस दिखत हे। बहाँ म पइनहा मछरी हर तउरत दिखथे, जब येहर बहाँ मन ल एती वोती करथे तब।


परसू (खुश होवत)- तब तो कहत हंव। मोर बेटी लाख म एक हे।अउ वोहर मोर म गय हे।


बिशाखा - अउ होही काबर नहीं। दिन- रात टूरा मन संग खेलत कूदत हे।अउ येकर खेल...दई ...दई !काल तो येहर लउठी चालत रहिस। बने पोठ सटका हर पान बरोबर येकर हाथ म उड़ियात रहिस।


परसू -अउ अउ का...?बस अतकिच देखे हस। वो घोड़ा ल बेशरम गोजी के लगाम खवा के सुध्दा भर कुदा थे,वोला तँय नई देखे अस काय।


बिशाखा (खुश होवत) - तूँ नई देखे आ। टूरा मन ल धर के दलाक दलाक कचारत रहिथे पटकी धरा खेलत तउन ल।


परसू -मंय सब ल देखे हंव,बिशाखा !


बिशाखा (चिंता करत)-फेर अइसन हर अच्छा तो नोंहे। येकर बर कोन सगा पहुना आही?सुनही तउन हर दु हाथ धुरिहा घुच जाही।


परसू -तँय वोला छोड़ !वोला तो विधाता जानही...


      (परसू के गोठ पूरे नई पाय रहिस हे कि परोस कोती ल एकझन नारी कंठ ले किल्ली- गोहार  सुनाथे...कुदव रे !कुदव ग बबा हो !मोर सुतत लइका ल हुर्रा हर उठा के ले जात हे वह दे...! बिलासा येला सुनके अपन महतारी- बाप करा ले छूट के, एक ठन सटका ल धर के वो हुर्रा के दिशा म  सरनटात छुटथे।अउ कूदत जाके वोला छेंक डारथे। वो हुर्रा ल डंडा म पीटत लइका ल छोड़ा लेथे।  )


बिलासा -ले बदली काकी !तोर लइका ल।


बदली -जुग जुग जिवव मोर बेटी ! आज तूँ नई रहथा तब तो मोर बर अँधियार हो गय रहिस।


बिलासा (हाँसत )- काकी ये तो चंदा चंदैनी के जश ये। अंजोर रहिस तब छेंक डारें हुर्रा ल।अँधियारी रहिथिस तब कोन जानी का होय रहिथिस।


बिशाखा - ये बेटी, तोर माढ़ी -कोहनी हर छोला गय हे...!


बिलासा (हाँसत) - छोलान दे वोतका तो छोलातेच रहिथे।


बिशाखा (अपन आप म)-येहर छोकरी ये कि छोकरा?फेर छोकरा मन घलव कहाँ करे सकत हें येकर बरोबरी येकर असन बुता मन ल।


                 परदा गिर जाथे


***


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                    दृश्य- 5


( बिलासा  एक पइत फेर टुरा मन संग खेल म माते हे।फेर ये पइत के खेल हर कुश्ती पटकी -धरा ये। बिलासा हर दांव पेंच लगात हे।एक एक करके वोहर दु तीन झन ल चित्त कर देय हे।)


बिलासा - आ बंशी !अब तोर बारी ये।


         (बंशी हाँसत आगु आ जाथे। बिलासा दांव आजमाथे फेर हाँसत बंशी के पार पा जांहाँ अइसन नई लागे वोला। बिलासा के चेहरा म थोरकुन तनाव  अउ दुख के भाव दिखथें। तब हाँसत बंशी सहज सरल दांव म पट्ट ल  चित्त पर जाथे अउ बिलासा ले हार जाथे।तभे घर कोती ल बिलासा के महतारी बिशाखा वोला हाँका पारत बलाथे।बिलासा अखरा डाँड़ ल छोड़ के महतारी के संग आ जाथे।)


बिशाखा (थोरकुन रिस म)- तोला कै न कै पइत मंय बरज डारें न ।अइसन कुचरई- पटकई के खेल झन खेल  कहत।फेर तोर बर का ये न का। बेटी अब तँय सज्ञान हो गय हस। पथरा ढेला कस तोर शरीर हर दिखत हे।अउ पटकी धरा के खेल, वोहू ल टूरा मन करा ।


बिशाखा (हाँसत)-कुछु नई होय दई ! सब हर खेल -खेलवारी ये।फेर आज मोर  जीवरा हर थीर नइये...


बिशाखा -वो काबर ओ ?


बिलासा - बंशी हर मोला आज फिर जितवा दिस अपन खुद हार के।


बिलासा -  बंशी...!मोपका कोती ले आये  जगेसर निषाद के पूत ।फेर तोर ले अउ सुंदर ओ बिलासा ! पुनिया वोकर महतारी।हमन सखी बदबो कहत  रहेन।


बिलासा (अपन म )- हाँ दई !बंशी हर मोर ले अउ सुंदर हे।अउ वोकर ताकत घलव मोर ले कतेक न कतेक जादा हे।फेर हाँसत मोर ले हार जाथे अउ मोला जितवा देथे। यही तो मरना आय। सत- ईमान ले खेलबो तब बंशी हर ही मोला हराय सकही। कनहुँ मोला हराय नई सकें...बंशी ल छोड़ के।


बिशाखा - मंय तो आनेच गुनथंव जब भी बंशी ल देखथंव तब।


        (परदा गिर जाथे।)



                    दृश्य 6


(बिलासा बाढ़े नदिया नदिया म असनान करे जावत हे। तीर म बंशी हर अपन धुन म मगन, बांस बजात भईंस चरात हे।)


                 नदिया   गहरी रे

                  पूरा         पहरी

                  देख   ले   नोनी

                  पानी कहाँ ठहरी।


                  जाम के लोर  म

                  कदम्ब नई फरे रे

                  तोरे हाँसी ले ये

                  हीरा लरी झरे रे।


(बिलासा वोकर गीत अउ बांस ल एक घरी खड़ा होके सुनाथे। फेर बंशी के ध्यान वोकर कोती नई जाय।तब बिलासा मुचमुचात नदी घाट कोती बढ़ जाथे।)


बिलासा - ओहो !अरपा रानी के तो आज गजब के ठाठ हे।दुनों पाट ल चपकिच डारे हे।

अउ येमा ये रंग- रंग के जिनिस मन बोहात जात हें।


    ( बिलासा स्नान करे बर लग जाथे तभे वोकर आगु थोरकुन बनेच गहिल अउ तेज धार म एकठन विचितर फेर बहुत ही सुघ्घर लाल फूल हर बोहात जात रहिथे।बिलासा वोला नजर भर देखथे अउ वोला पाय के मन म इच्छा पोस लेथे। अब तो वोहर वो बोहात फूल ल पाये बर नदिया म झँपा जाथे।फूल हर हाथ तो आथें फिर बिलासा हर बुड़ा उबका हो जाथे।वोला लगथे कनहुँ वोकर सहाय नई होहीं तब अरपा म वो समा जाही।तब वो बल भरके हाँक पारथे।)


बिलासा - बंशी...!!!


(बंशी बिलासा के हाँका ल एके पइत म  सुन डारथे अउ आवाज ल चिन्ह के वो आवाज कोती कूदथे। तब तक ल बिलासा हर पानी भीतर हो जाय रहिथे फेर वो फूल के संग म हाथ भर हर ऊपर दिखत रहिथे। बंशी सब समझ के पानी म कूद देथे अउ बिलासा के तीर जाके वोकर चुंदी ल धर डारथे ।अब वोला तीर म लांन के अलगा के लानथे। फेर ये बुता म वो विचित्र लाल फूल हर अछोप हो जाय रहिथे।)


बंशी -बिलासा !बिलासा !!


बिलासा -हाँ बंशी !तँय मोला आज बचाय हावस।तँय नई आय रहिथे तब तो ये अरपा हर मोला लीलते रहिस।फेर मोर वो फूल कहाँ हे...?


बंशी (चकरात )- फूल...? तोर फूल तो बोहा गय।


बिलासा - मोर फूल नई बोहाय ये।वोहर मोर अंतस म समा गय हे अउ वोकर महमहाई हर अभी ले ये जगहा म हे।


बंशी(हाँसत)- वाह ! 


बिलासा (गंभीर स्वर म )- बंशी !


बंशी - हाँ !


बिलासा - मोर ये नावा जनम ये।अउ येहर तोर देय दक्षिणा आय। तँय मोला अंग लगाय तब मंय बाँचे हंव।अब तँय मोला सब दिन बर अपन अंग म लगा ले।


      (बिलासा तरी मुड़ कर लेथे अउ बंशी एक पांव पीछू घुच जाथे।)


बंशी -बिलासा ! मंय अइसन कुछु नई सोंचे अंव।फेर तँय कहत हस तब मोला घलव मंजूर हे।फेर तोर मोर दाई ददा मन घलव मान जतिन तब ये अरपा महतारी के बड़ दया होतिस।


बिलासा(खुश होवत )-मानहीं !सबो मानहीं। अब मंय समझें ये अरपा महतारी हर मोला तोर से मिलाय बर अइसन भेवा रचे रहिस। मोर हाथ गोड़ ल कनहुँ तीरत मोला विवश कर देत रहिस। नहीं त मंय येकर ये खंड़ ले वो खंड़ अभी नहाक के बता देत हंव।


बंशी -नहीं ...! नहीं... ! तँय एती आ! 


 (बंशी मांग के बिलासा के हाथ ल धर लेथे। बिलासा के कंठ ले गीत हर फुट परथे-


                     गीत

                 

ये भव सागर के लहरा ले


जिनगी  पार लगा दे नैया 


पार लगादे        मोर नैया


मोर पींयर              सैया


पार लगा दे       मोर नैया


मोर      पींयर        सैंया ।



एक     हाथ तोर नांव गोदायें


दूसर             म     तोर गांव


तीसर चउथा होथिस त राजा


छापथें       दुनों पांव हो सैंया


पार लगा दे...



पींयर     पींयर धोती कुरता


पींयर    हावे         उरमाल 


पींयर पींयर फूल के मंझ म


चिलके हे दुनों गाल हो सैंया


पार लगा दे...



राजा रानी महल अटारी


कै            पैसा के मोल


सोन तराजू तउले लाइक


मया के दू  बोल हो सैया


पार लगा दे...



मया।      के मंधुरस छाता


चुही         चुही        जाय 


डर     मोला     लागे सैंया


व्याधा। झनि आय हो सैंया


पार लगा दे...



               परदा गिर जाथे।



***




                       दृश्य 7


( रतनपुर राज म अरपा खंड़ के कटकट  कठर्री डोंगरी भीतर म बिलासा अउ बंशी ,दुनों जोड़ी- जांवर आये हांवे। बंशी हर अपन भईंस  -भैंसा मन ल चरात हे। बीच बीच म ,जब मन म तरंग आथे,तब वोहर अपन बंसरी ले बड़ मीठ मीठ  धुन निकालत रहिथे। बिलासा हर अपन टुकनी म चार चिरौंजी ल संकेलत हे) 


बिलासा -  अब घर फिरे के बेरा हो गय। चला अब ये जनाउर मन ल संकेला।


बंशी -मंय तोला हजार पइत कह डारे न । हमन दुइक दुवा रहिबो तब तँय मोर नांव लेके बलाबे हाँका पारबे,फेर तोर बर का ये  न का।


बिलासा - वोकर पहिली मंय फिर दहरा म डूब नई मरहां न।फेर एकठन गोठ मंय पुछंव ?


बंशी -वो का जी...?


बिलासा -हमन रोज ये बन डोंगरी कोती आथन फेर अतेक आड़ हथियार धरके।ये सब ख़ईता ये।येमन कभु काम नई आंय। तुंहर ये चिलकत भाला हर तो अउ निमगा बोझा च आय।


बंशी -अइसन नई कहें बिलासा !कोन जनी का हर कब काम पर जाय...


     (बंशी के गोठ पूरे नई पाय रहे कि थोरकुन धुरिहा म बघवा के  दहाड़ सुनाई परथे। संग म घोड़ा के हिनहिनाय के आवाज के संग , वोकर टाप के आवाज घलव  वोमन के नजदीक कोती आत  सुनई परथे। देखते देखत घोड़ा म चढ़े  राजा राठी मन कस बाना वाला घुड़सवार हर परगट हो जाथे। वोकर पीछू पीछू बघवा हर घलव दहाड़त आत दिखथें। बिलासा हर ये सब देख के समझ जाथे कि घुड़सवार उपर बघवा हर चढ़ बइठत हे।वोकर जान खतरा म हे। बिलासा अपन मुड़ के चार के टुकनी ल फेंक देथे अउ बंशी के हाथ ले वोई भाला ल लेके निशाना साध के बघवा ऊपर बने पोठ बल लगा के फ़ेंकथे। वोकर अचूक निशाना सीधा बघवा के करेजा म जा के गड़ जाथे। बघवा घुड़मुड़ी खाके  वोइच करा गिरथे अउ चित हो जाथे। फेर ये सब ल देखत वो घुड़सवार के आंखी अचंभा म बटरा जाथे)


घुड़सवार -शाबाश नोनी ! आज तँय मोर जान बचाय। तोर बहुत बहुत जश होय।


बंशी - आप...आप कोन अव। पिंधना- ओढ़ना हर हमर बनगींहा मन असन नईये। कनहुँ बड़े मनखे होवा,अइसन लागथे।


घुड़सवार - मंय कनहुँ रहंव।अभी तो मोर जीवन हर ये अतेक बलखरही अउ बीर ये नोनी के जीवनदान देय जिनिस आय।


बंशी -अतका हर तो येकर खेल खेलवारी ये।


बिलासा (हाँसत)- अउ ये खेल खेलवारी बर ये मोर गुरु  होइन।


घुड़सवार (थोरकुन उदास होवत) -अब मंय तोला का भेंट देंव नोनी।


बिलासा अउ बंशी (एके स्वर म )- कुछु नहीं !कुछु नहीं...! 


घुड़सवार(थोरकुन गुनत) - तुमन रतन पुर ल जाँनथा न...?


बंशी (हाँसत )- महाराजा कल्याण साय के शहर रतन पुर !रईया रतन पुर...!


घुड़सवार -तब बस दाउ !मंय वोइच कल्याण साय अंव। 


बंशी अउ बिलासा (एके संग  )- महराज  !


 राजा कल्याण साय -  हाँ, मंय हर ही राजा कल्याण साय अंव। शिकार खेले आए रहें। वन बीच म रस्ता भटक गंय। मोर संग -संगवारी सिपाही मन कोन जानी कोन कोती छूट गय हें।  मंय अकेला डहर खोजत येती आवत रहंय अउ ये बघवा हर घात लगा के मोर ऊपर कूद देय रहिस। तब पहिली मोर ये घोड़ा अउ दूसर म तुमन मोर जान बचाय हावा।


बंशी (प्रणाम करत) -आप महाराज अव आपके  जयजयकार हे।आप महाराज नई भी रहतव तब ले भी आपमन के वोइच सेवा होतिस। आपमन ल बनेच चोट लगे हे।येकर ददा बड़ गुनिक बईद हें। चलव आप मन के वहीं सेवा जतन होही।


राजा कल्याण साय - मंय तुमन के संग तुँहर घर  पहुँनई करे जांहाँ,फेर तुमन ल मोला अमराय बर मोर घर रतनपुर तक जाय बर लागही।


बिलासा - जाबो महराज जरूर जाबो।पहिली तो आप अभी हमर छितका कुरिया के पहुनई करव।


राजा कल्याण साय - चलव !



             परदा गिरता हे।



***




                        दृश्य 8


        (रतनपुर म राजा कल्याण साय के दरबार सजे हे। राजा कल्याण साय अपन सिंहासन म बईठे  हें । वोकर जेवनी हाथ 

 कोती बिलासा अउ बंसी बईठे  हें। महामंत्री हर महाराजा कल्याण साय ल जोहारत, दरबार शुरू करे  के हुकुम मांगथे।)


राजा कल्याण साय-  आज के हमार दरबार म पधारे- बईठे हमर खास पहुना बिलासा अउ वोकर गोंसान बंसी के  मैं स्वागत करत हंव। अउ बहुत ही भावना के साथ मैं सब झन ला बतावत हंव कि ये सब ल बोले बर  मैं जिंदा हंव  त वोहर हे ये दुनों जांवर- जोड़ी के दया ये। वो दिन जब मंय डोंगरी म भटक गय रहें तब मोर ऊपर बघवा हर झपट परे रहिस, तब ये बहादुर नोनी बिलासा हर एक भाला म वोला चित्त कर दिस। नहीं त मंय वो बाघ के ग्रास बन गय रहें।


महामंत्री -जोहार हे !जोहार हे हमर राजा के प्राण बचईया बर लाख लाख जोहार हे।


सबो सभासद (खड़ा होके) - जोहार हे !जोहार हे!


(बिलासा अउ बंशी दुनों खड़ा होके सबो ल।जोहार थें)


राजा कल्याण साय - अतेक बड़े मोर ऊपर करे उपकार के बदला म,  मंय नानबुटी भेंट देना चाहत हंव । कृपा करके नहीं  झन कहिहा। तुमन जउन जगह म रहत  हव। वो सब हर मोर राज के सिवाना सीमा म आथे। मंय अरपा खंड़ के  वो  दुनों गांव के मालगुजारी- जागीर बिलासा ल देवत हंव। वो साल मालगुजारी वसुलत प्रजा के सुख दुख  ल देखत वोमन ल समोखत अपन जीवन चलाय। अउ आज के बाद हमर मीत -मितानी सगा- पूतानी बने रहे।


सभासद - धन्य हे हमर राजा !धन्य हे बिलासा !


                   परदा गिर जाथे



***

                 

             

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                  *दृश्य 9*

        

( राजा कल्याण साय के महल। एक लंबा समय कटे के बाद बिलासा अउ बंशी फेर  महल म आय हें। बिलासा अउ बंशी थोरकुन बने भेस म हें)


राजा कल्याण साय -आवो बिलासा अउ बंशी।बने बने हावा न। सबो मनखे बने हे न।


बिलासा अउ बंशी (दुनों खड़ा होके)-  हाँ, महाराज।आपके दया ले सब कुशल -मंगल हें।


राजा कल्याण साय (हाँसत)- मंय जानत हंव।तुमन के करे -धरे सब निकता ही होही।


बंशी -महाराज !हमन बर कुछु हुकुम हे?


राजा कल्याण साय -  हाँ बंशी !दिल्ली दरबार जहाँपनाह जहाँगीर हर हमन ल सुरता करत हे।हमन ल दिल्ली जाए बर हे। हमु मन कोई कम थोरहे हावन जी।पूरा सेना साज के दल- बल के साथ जाबो। 


बंशी - बढ़िया महाराज !


राजा कल्याण साय - तब फिर तुमन दुनों घलव चलव अपन  सेना कुटी ल धरके! कइसे बनही न बिलासा ?


बिलासा -महाराज  के जय हो !बनही महराज काबर नई बनही।ये तो बड़ खुशी के बात आय।


राजा कल्याण साय -तब फिर पांच दिन बाद चइत सुदी पंचमी के हमर डेरा उसल ही।सब आओ तियार होके।


               परदा गिर जाथे।


***





                 दृश्य 10


        ( दिल्ली म मुगल सम्राट जहांगीर के दरबार सजे हे। कई जगह के राजा मन आके अपन हाजिरी बजात नजराना भेंट करत हें। नाम पुकारने वाला हर रईया रतनपुर के राजा कल्याण साय के नाम  पुकारथे।राजा कल्याण साय उठके जहांगीर के आगु म  थारी म ढंकाय भेंट ला चढाथे। तभे अपने आप बिलासा अउ बंसी उठ के राजा कल्याण सहाय के अंगरक्षक बरोबर आ खड़ा होथें। पूरा मुगल दरबार हर गर्दन ऊंचा करके, यह दोनों के सुंदरता अउ शरीर ल देखथें।)


जहांगीर - दिल्ली दरबार में इस्तकबाल हे राजा कल्याण साय !


राजा कल्याण साय-  जहांपनाह के जय हो !


जहांगीर-  जय  तो तोर होय कल्याण साय , जेकर करा आइसन सुंदर अंगरक्षक मन हांवे। 


राजा कल्याण साय - येमन  अंगरक्षक नोंहे महाराज ! येहर बिलासा आय अउ येहर एकर पति बंशी आय।ये मन तो स्वतंत्र सामंत आंय। अभी भावना में आके मोर अंगरक्षक असन आ खड़ा होइन हें।


जहांगीर - अरे ये तो बढ़िया ये।का नाम बताये राजा कल्याण साय ? 


राजा कल्याण साय -  ये बिलासा अउ ये बंसी !


जहांगीर - बहुत बढ़िया !  चला चला  तुंहु मन के भी बहुत-बहुत इस्तकबाल  हे दिल्ली म वि बंसी  अउ बिलासा ।


बंसी- जय हो जहाँपनाह !


 जहाँगीर - राजा कल्याण साय ! जब ये मन  तोर संग म आये हें, तब जरूर कोई खास बात होही।


राजा कल्याण साय -  हां महाराज ! खास नहीं... बहुत ही खास ! ये बिलासा के चलते ही आज मैं जियत हंव।नहीं त डोंगरी म शिकार के बखत बघवा हर मोला शिकार बना डारे रहिस।


जहांगीर-  ये का कहत हस राजा? मैं समझ नहीं पाँय। सब फरिया के बता !


(राजा कल्याण साय  हर जहांपनाह जहांगीर  अउ सबो सभासद मन ल, अपन ऊपर बीते घटना का बताथे।)


जहांगीर-  शाबाश...! शाबाश...!! फेर जब  अतकी अचूक हे येकर निशाना हर, तब ओला देखे के हम सब ल लोभ लागत हे।


राजा कल्याण साय - कइसे बिलासा...? कइसे बंसी ...?


बंसी- महाराज के जय हो ! जहांपनाह के जय हो! जब आ गय हावन अतेक धुरिहा ले चल के तब हमरो मनोरंजन हो जाय और जहांपनाह के भी मनोरंजन हो जाय। यह तो बड़ बात ये ।हमन तियार हावन।


राजा कल्याण साय -  जहाँपनाह ! तब  काल कुश्ती अउ निशाना के प्रतियोगिता करावा।  बिलासा बंसी अउ आन सैनिक मन अपन करतब  दिखाहीं।


जहांगीर(ताली पीटत) -  बहुत खूब ! बहुत खूब !कल जरूर प्रतियोगिता होही।



      (परदा गिर जाथे।)

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     *बिलासा :अरपा के बेटी*


(लघु नाटिका )


अंतिम अंश-

*



  


                     दृश्य 11 


         (दिल्ली म जहांपनाह जहांगीर के लाल किला में बने अखाड़ा । बनेच झन कुश्ती लड़ईया पहलवान, तलवारबाज, धनुषधारी अउ भाला फेंकने वाला खिलाड़ी योद्धा मन तियार हें। राजा कल्याण साय के संग बिलासा और बंसी घलव उहाँ हाजिर हें। सब के सब जहांपनाह जहांगीर ला अगोरत हें। अखाड़ा के जगह म जहांगीर के आना होथे। सब के सब अपन जगह म खड़ा होके  वोकर स्वागत करथें। वोहर हाथ के  इशारा ले सबो झन ल बइठे बर कहथे )


दरबारी उद्घोषक-  जहाँपनाह के जय हो ! सब तियार हें। बस आप मन के अगोरा रहिस।


जहांगीर -ठीक है। अब मंय आ गय हंव।अब प्रतियोगिता ला शुरू करव।


उद्घोषक - जहांपनाह के हुकुम मिल गय हे। चलो ,अब प्रतियोगिता शुरू करे जात हे।  सबले पहिली तलवारबाजी के प्रतियोगिता होही। हमर दिल्ली दरबार की छंटे हुए तलवारबाज मन खड़े हें।अलग अलग राज के जउन भी राजा मन जुरे हव अउ आप मन अपन जउन श्रेष्ठ तलवारबाज मन ल लाने हव, वोमन ल येमन करा प्रतियोगिता पर भेजो ।


( ये घोषणा ल सुन के  मेवाड़ बंगाल कांगड़ा के तलवारबाज मन आगु आथें।)


उद्घोषक-  येहर ये मेवाड़ ल आए अमरसिंह !


(अमर सिंह आगु आके पहिली जहाँगीर ल फिर सबो झन बर नमस्कार मुद्रा बनाथे) 


उद्घोषक - यह बंगाल ल आए समसुद्दीन अउ  येहर कांगड़ा ल आए नलपत ।येमन बारी-बारी से दिल्ली के हमार तलवारबाज जुनेद करा मुकाबला  करहीं।



            (तलवारबाजी के मुकाबला होवत हे। समसुद्दीन हर तीनों के तीनों तलवारबाज मन ला हरा देथे )


उद्घोषक- आज के तलवारबाजी के मुकाबला म समसुद्दीन हर श्रेष्ठ हे।


राजा कल्याण साय - जहांपनाह !  अभी मुकाबला हर छेवर नई  होय ये। अभी तो मोर संग आए संगवारी मन उठे भी नई यें अउ मुकाबला हर छेवर हो गय।


जहांगीर-  हां, कल तँय कहे रहे ।हम तो बिलासा के हाथ के करतब देखना चाहबो।


राजा कल्याण साय-  जरूर महाराज... ! (बिलासा अउ बंसी कोती मुंह करके) बिलासा- बंसी ! तुमन दुनों के दुनों बराबरी हव।तुमन तय कर लव कोन पहिली समसुद्दीन करा आगु आही।


बिलासा-  नहीं महाराज ! मंय तो  चेला अंव। ये तो मोर गुरु आंय। चेला के रहत ले गुरु ल गुरु ल क़ाबर उठे बर लागही।


जहांगीर -  वाह भाई वाह !आनंद आ गय...!


      ( बिलासा दोनों ला प्रणाम करके अपन तलवार धर के समसुद्दीन के आगु म आ जाथे   अउ दु चक्र म ही वोकर ऊपर हावी हो जाथे। शमसुद्दीन की तलवार गिर जाथे)


जहांगीर( खड़ा होके ताली पीटत) -शाबाश !शाबाश !(घेंच के मोती के माला ल इनाम म देथे) शाबाश !



 सब के सब - शाबाश बिलासा !


जहाँगीर - बस हो गय मुकाबला ! खुद बिलासा कहत हे तब हम मान लेत हावन कि बंसी हर बड़े तलवारबाज होही ।नहीं त आज के ये मुकाबला म सर्वश्रेष्ठ तलवारबाज बिलासा हर आय।



                    ( नेपथ्य म)


अइसन खेल खेलिस बिलासा 

तलवार चलाईस

सब ला आगू 

कुश्ती म दांव दिखाइस

सब ला आगू 

धनुष चलाइस 

बंसी 

सब ला आगू 

भाला फेंक दिखाइस 

बिलासा 

सबला आगू !

पूरा होगे 

राजा के मन के अभिलाषा 

आंखीं मन  जुड़ाइन

जहांपनाह जहांगीर के 

चकरा गिन सब खेल-खिलाड़ी ।


( राजा कल्याण साय के दल रतनपुर राज फिर आथे)


राजा कल्याण साय- शाबाश बिलासा !शाबाश बंसी! रतनपुर राज्य के  नांव दिल्ली म जगा देया! चलो अइसने आना- जाना लगे रही। सचेत होके जावा अपन जगह में राज पाठ ला बने करिहा।


बिलासा अउ बंशी - महराज के हुकुम हमर सिर  माथा म (दुनों प्रणाम मुद्रा बनाथें।)




           परदा गिर जाथे



***


      -


                     दृश्य 12 


         कई दिन ले झमाझम बरखा होवत हे। ये पाय के तीर- तखार के आन आन नदी नाला के संग जवाली नाला घलव पानी में ऊभ चुभ होवत हे। देखते- देखत  अरपा हर घलव विकराल रूप धर के तीर मा चढ़े  लग गय। अपन सतखंडा घर में बईठे-बईठे बिलासा अउ बंसी दुनों के दुनों चिंता में पड़ गय  हें। )


बंसी-  देखत  हस बिलासा नदी के बउराय रूप ल ! अइसन लागत हे कि ये अरपा हर  पूरा के पूरा  गांव ल लील  लिही।


बिलासा- हाँ ।फेर अरपा हर हमर महतारी आय। वोहर हमन ल कइसे लीलही ?


बंसी-  कहना तो ठीक हे फिर अभी के समय हर अच्छा नई लगत ये। मंय अपन डोंगी लेकर जावत हंव। 


बिलासा-  तू जावत हा, त मैं घर में बइठ के का करहाँ ? चला महुँ घलव आन डोंगी ल धरके निकलत हंव।


बंसी-   येमन हमन ल मालगुजारी देवत हें तब तो  वोमन के थोर -मोर  सेवा सहायता कर के जरूरत हे।


बिलासा -जरूर !जरूर !फेर अभी गोठ करे के बेरा नइये । (चिल्लावत) देखव न देखते देखत वो पीपर के कनिहा भर ल चढ़ गय पूरा हर...


   (बिलासा अपन घर ल बाहिर निकल के खोल- गली म आथे। वो जोर से चिल्ला - चिल्ला के सबो झन मन ल अपन गाय गरु मन ल लेके चले बर कहत किंजरत रहिथे।)


बिलासा -सब के सब अपन डोंगी मन ल  बउरो । चलव ऊपर कोती चलव।


       (कई ठन डोंगी चलथें।ये पाय के पूरा गांव  भर के मनखे जीव- जनाउर ऊपर पहुंच जाथें। बिलासा हर खुद कै न कै पइत डोंगी ल येती ले वोती ले जाथे।)


सपूरन (अपन डोंगी ल खेवत) - चल काकी !अब वापिस फिर । अब कोई नई बाँचे यें।मंय देख डारे हंव।


बिलासा -ठीक हे बेटा !तभो ले मंय एक पइत अउ देख लेवत हंव।


सपूरन (किल्लावत)-पूरा हर चढ़तेच जात हे। भँवना मन के डर हे काकी !


बिलासा -बेटा !वो मन तो मोर संगवारी यें।वोमन ले का के डर ...?


(बिलासा के डोंगी बाढ़त पूरा म , कनहुँ छेवर मनखे के खोजार म बढ़ जाथे)


                  परदा गिर जाथे



***


   -

                    दृश्य 13


     (बिलासा अउ बंशी अपन सतखंडा घर म बइठे हें।ये साल के पूरा मालगुजारी संकेला गय हे। कोठी मन म धरे के जगहा नई ये।)


बंशी -बिलासा !


बिलासा -हं...बतावा ?


बंशी(कनखी करके बिलासा के चेहरा ल पढ़त) - अतेक मालगुजारी आ गय हे।धान- पान के पहार खड़ा हो गय हे। अतेक जिनिस ल अइसन राख के का करबो? मंय गुनत हंव...तोर बर तीन खंड़ के एकठन अउ महल बनवा दँव अउ रतनपुर ले सोन के तीन लरी के तीन ठन  माला गूँथवा लांनव।


बिलासा (अपन कान छुवत)- राम जोहार !राम जोहार मालिक ! ये कुछु भी नहीं।दाता ये कुछु भी नहीं।ये सतखंडा हर राजकाज चलाय बर जरूरत रहिस। झाला झोपड़ी म राज काज थोरहे चलतिस।ये पाय के येला बनवा लेन।अब हमन ल कुछु के जरूरत नइये।आज भी सब मन कस कोदो कुटकी घलव खा लेथन...


बंशी -बस बिलासा... बस ! मंय तो तोर मन के थहा लेत रहें।ये सब हर धान नोंहे।ये सब मन हर वोकर उपजाने वाला मन के तरुवा ले चूहे पसीना अउ रकत के बूंदी आंय। 


बिलासा -अउ वो उपजाने वाला मन हमरेच भाई बन्धु यें। ये पाय के ये सब के सब ये बच्छर के दरब हर सिंचाई के जोखा मढ़ाय।म खरचा होही। थोरमोर हर हमरो जउन सेना हो गय हे वोमन के ख़र्चरी म जाही।


बंशी(हाँसत) -अउ बिलासा अउ बंशी बइठ के बासी खाहीं...


बिलासा(भाव म भरके )- बिलासा हर अपन धनी के पेट भरे बर अभी घलव समरथ हे। रुख म चढ़ही अउ चार तेंदू लान दिही।अरपा म बुड़ही अउ...


बंशी (हाँसत )-बस बस... बिलासा !मोर पेट भर गय।


( बिलासा अउ बंशी गोठ बात करतेच रहिथें कि वोमन के दरवाजा म गांव के एकझन महिला फुलकी आथे )


फुलकी (हाथ जोरत)- रानी दई !रानी दई !


बिलासा (फुलकी कोती ल देखत)- ये आ काकी !


फुलकी (हाथ जोरत)-रानी दई !


बिलासा -काकी...!काकी...!मंय तोर वोइच बिलासा अंव। कब ले मंय रानी दई हो गंय ओ। मोला बिलासा बेटी कह पहिलीच असन...


फुलकी -बेटी...!मोर घर के चोरी होय जिनिस बरतन भाँड़ा ल तोर मनखे मन खोज के लान दिन हें। वो चोर हर आन देश राज नेगुवा डीही के रहिस। वोकरे शोर सुनाय तोर जस गाय आंय हंव।


बिलासा - जश तो मोर सेना के मनखे मन के हे काकी। बइठ ये फरा खा के जाबे।


फुलकी - नहीं नहीं बेटी।राजा राठी मन के अलग खान पान होथे वो।


बिलासा- वह दे काकी फिर शुरू हो गय तँय। बिलासा माने बिलासा !वोइच मछिधरी बिलासा वोइच रुखचेघी बिलासा।फेर अभी मुड़ म पागा अउ हाथ म तलवार भर हर आगर हे पहिली ले। नहीं त बिलासा हर सब के जइसन आम मनखे आय। बिलासा के दुवारी सब बर खुला हे।सब आके अपन गोठ इहाँ कह सकत हें।सबके अउ सबके सुनवाई हे इहाँ।अउ अउ सब के सब संग म जीबो म अउ संग म मरबो...!


फुलकी(अशीष देवत)- जुग जुग जी बेटी !


                   परदा गिर जाथे



***


                       दृश्य 14


(नेगुरा डीही के भेलवां राजा  अपन महल -घर म बइठे हे।  वोकर समधी परसा खोल राज के दामु राजा पहुना आय हे। दुनों समधी गोठ - बात म मगन हें। संगे संग नेवता- भक्ता के बुता चिखना अउ पव्वा- पानी घलव बने जोर शोर ले चलत हे।)


भेलवां राजा - जोहार हे समधी महराज !भेलवां राजा  के घर म तोर जोहार हे।


दामु राजा - जोहार हे भई जोहार हे !


भेलवां राजा - का हाल चाल हे समधी महराज ? सब बने तो हें देश राज तीर तखार ...?


दामु राजा - हाँ बने तो हे अभी महराज।फेर जवाली जोरान म नावा नावा चलागत चलत हे जी।


भेलवां राजा - वो का ये जी।


दामु राजा - अरे हमर तो पुरखा हर राजा महाराजा ये।आन ऊपर राज करईया जातेच अंन हमन ,फेर उहाँ एकझन पोठ मोटियारी केंवटिन बिलासा ल राजा कल्याण साय हर मालगुजारी सौंप के राजा असन बना दिस हे।


भेलवां राजा - बने गोठ तो ये ग । बने पोठ खाये  अउ  हमीं मन असन पोठ पिये।कोन छेंके हे वोला ...?


दामु राजा (गिलास उठात) -येई तो मरना आय। वो खात नइये।  वो तो सबो के सेवा करहाँ कहत ये बच्छर के पूरा मालगुजारी ल लगा के तीर के सबो खेत मन म सिंचाई हो जाय कहके नहरी सगरी बंधवात हे नहरी खनवात हे अउ कतेक न कतेक नावा नावा चलागत चलात हे।


भेलवां राजा - हुंह ! ये तो बहुत अच्छा नई होत ये जी।


दामु राजा -अरे वईच तो मंय कहत हंव। वोकर देखा सीखा हमर राज के मनखे मन घलव अइसन चाहहीं तब हमन का के सगरी नहरी मंदिर  बनवाया सकबो । दवा -बईदई कराय सकबो जी ? सबो मालगुजारी के मालिकदार हम ।अउ हम जउन चाहबो वो करबो। खाबो अउ पीबो (फिर गिलास ढरकाथे )


भेलवां राजा - अउ का नावा चलागत ये जी।


दामु राजा - अरे वोकर मरद बंशी हर पीछू हो जाथे।वोहर खुद मुड़ म पागा अउ हाथ म तलवार लेके अकेल्ला किंजरत रहिथे।


भेलवां राजा - येहर तो अच्छा गोठ नई होइस।नारी जात के ठिकाना चुल्हा अउ दसा दसना भर ये न। ये राज काज के बुता वोकर काम नई होय।


दामु राजा -फेर वोहर तो ये सब करत हे।


भेलवां राजा - वोला रोके ल परिही।


दामु राजा - कोन रोकही वोला ?


भेलवां राजा (उत्तेजित होके) - तँय रोकबे मंय रोकहाँ।अउ हम सब रोकबो फब ल अनफब जिनिस ल सबो रोकहीं।


दामु राजा ( लडखडात उठ खड़ा होथे )- सुनथन संगी!वोहर तलवार लाठी बिड़गा सबो चलाथे। रतनपूर नरेश ऊपर झपटत बघवा ल एके भाला म चित्त कर देय हे।अउ राजा के संग दिल्ली जाके घलव उहाँ तलवार भाला कुश्ती म अब्बड़ नांव कमा आइस हे।


भेलवां राजा - तभे तो वोकर मन हर बाढ़ गय हे जी।


दामु राजा -फेर एकठन जिनिस म चुकत हे।


भेलवां राजा - वो का...?


दामु राजा - वो सबो मालगुजारी आवक ल जस के तस परजा ल कुछु कुछु करके फ़िरो देत हे। वोकर सेना बर कुछु नई बाँचत ये। वोला अपन गोंसान बंशी उप्पर बड़ भरोसा हे।


भेलवां राजा(हाँसत) - अउ बंशी ल अपन नारी बिलासा उप्पर न ...?


दामु राजा -हाँ...!फेर वोकर राज कोष म माल खजाना के कमी नई ये।(आंखी ल मिचकत)कइसे का कहत हस।हो जाय कुछु का ...?


भेलवां राजा - हाँ...!एकझन उतीआइल उतपतिया नारी ल हमन कभु सहे नई सकन।येला पाठ पढोयेच बर लागही।


दामु राजा -तब भेज नेवता हमर अउ संगवारी मन ल। नरेठी के भेलनसाय अउ खड़साल के चिचोला राजा ल । अंधियारी अमावस के दिन चारों कोती ल घेरना हे।


भेलवां राजा - पक्का !


दामु राजा -पक्का !फेर माल सब म बराबर !


भेलवां राजा - हाँ पक्का !


                 परदा गिर जाथे



***




                   दृश्य 15


(अपन सतखंडा घर म बिलासा अउ बंशी फिर बइठे हें। बिलासा हर बंशी के झुलुप म अंगठी फँसो के उलटा पलटा कर के देखत हे। )


बिलासा -चलव ये वच्छर के बुता मन के बने पया धरा गय । शुरू होय बुता हर तो पूरा होबे करही। 


बंशी -बिलासा !सबो मनखे मन हमरेच जन परिवार कुटुम्बी जन आंय। सिंचाई के जोखा हर माढ़त जातिस तब हमन भूख के लड़ई ल जीत जाये रहथेन।


बिलासा -खुद तूँ  खुद मंय अउ हम सब तो ये बुता म भिड़ेच हावन। जरूर तुँहर सपना पूरा होही।


बंशी -तोर मुँहू म दूध- भात...!


बिलासा (हाँसत)- अउ तुँहर मुँहू म का...?


बंशी(हाँसत) - रात के दार भात अउ दुपहर के बोरे बासी।फेर तँय कब तक मोर चुंदी मुड़ी झुलुप ल छुवत रईबे बिलासा।


बिलासा -सब दिन !सब जनम !


बंशी (हाँसत) - समझ ले मंय सब दिन बर चल देंय तब...


बिलासा -वोहर दिन रहही त रात नई लगे अउ रात रहही तब दिन नई पहाय , मंय तुँहर ठउर  पहुंच जांहाँ।


बंशी - वाह !ठउका कहे तँय(बंशी के गोठ पूरे नई पाय रहे कि एकझन सैनिक वेश वाला मनखे हर आके वोमन ल पांव परत कहथे कि टीड़ी फांफ़ा असन सैनिक मन चारों खूंट ले हमर कोती आवत हें )


बंशी -ये का ये...!


बिलासा -कुछु नहीं । पड़ोसी राज मन घेरत हें हमन ल लूट मचाय बर। फेर मोर  रहत ले मोर सिवाना के भीतर कनहुँ पांव नई मढ़ाय सकें।(तलवार ल  खींच लेथे ) तूँ देखिहा एती ल ।मंय रैनी म जात हंव।


बंशी (चिल्लावत) -मोर रहत ले तँय काबर जाबे।


बिलासा -तूँ अभी बड़ धुर ले काम -बुता देख के आय हव। अउ तूँ मोर बर मोर जान ले जादा कीमती जिनिस अव।


बंशी (चिल्लावत )- नहीं !तँय हमर रानी अउ मंय तोर सेनापति बस्स...अउ कुछु नहीं आन। अउ सेनापति के रहत ले राजा हर थोरहे जाही रैनी म !अब मोला हुकुम दे। बेर होवत हे...


     (बिलासा भारी मन ले बंशी के तरुवा म तिलक टीका लगाथे।)


***


                   दृश्य 16



    (बिलासा सतखंडा म व्याकुल एती वोती किंजरत हे।)


बिलासा (व्याकुल होके)-  जुवार भर हो गय।उँकर कोती ल कुछु शोर सन्देशा नई आइस। का होवत हे रैनी म...? महुँ चल दँव का ...?


    (एकझन सैनिक कुदत आथे अउ बिलासा के गोड़ ल धर दारथे।)


बिलासा (वोला उठात) - उठ ! उठ...!बोल का ये तउन ल?


सैनिक (रोवत) -हमर सेनापति (तरी मुड़ कर लेथे) 


बिलासा -  रो झन ! येहर तो बीर बहादुर के  बीरता के ईनाम ये। चल लहुट !मंय संग म चलत हंव ।


    (बिलासा तलवार अउ  भाला ल धरके घोड़ा म उचक के जा बइठ थे।)


सैनिक (नावा जोश ले भरके ) - रानी बिलासा के जय ! माटी महतारी के जय।


      (युद्ध हर एक पइत फेर भड़क जाथे।बिलासा हर पूरा दिन भर शत्रु सेना में ल कुदात थर खवा देथे फिर वो तो समलाती आक्रमण रहिस। फेर बेर बुड़े के पहिली वोहर भुईंया म गिर जाथे। गिरते ही वोहर माटी ल चुमथे।)


बिलासा - बिलासा के  आखिरी जोहार झोंक ले माटी महतारी ! धनी ! मोर प्रण पूरा होवत हे बेरा बुड़े के पहिली मंय तोर करा पहुँचत हंव। (चिल्लावत ) माटी महतारी तोर जय होय...!


     (बिलासा हर शांत हो जाथे।सबो के सब तलवार धनुष रोक के तरी मुड़ी कर लेथें।)


  

                 परदा  गिर जाथे।


***



***



                 दृश्य 17


(राजा कल्याण साय युद्ध भूमि म पहुँचथे । वोकर आगु म बिलासा अउ बंशी के दुश्मन मन ल बंदी बना के लानथें।)


राजा कल्याण साय  (भारी मन ले )- जउन हर मोर जान ल बचाय रहिस।वोकर मंय जान ल बचाय नई सकें ...येहर मोर बर बड़ दुख के बात ये (गुस्सा म ) सेनापति !


सेनापति -हाँ महराज !


राजा कल्याण साय - कहाँ हें वो नीच लोभी अउ नारी  रकत के धार बोहाने वाला मन ?


   (बंदी मन ल पेश करे जाथे।)


राजा कल्याण साय - अरे दुष्ट हो !ये भुईंया हर तो मोर राज सिवाना आय। बिलासा ल तो येकर सेवा करे बर मंय ये सब ल देय रहें। का समझत रहा तुमन ...


बंदी मन (हाथ जोरत) - छिमा महराज ! छिमा करव !


राजा कल्याण साय -तुँहर फैसला तो राजधानी म होही। (तरी मुड़ करके ) माफ करबे बिलासा !माफ करबे बंशी!!मंय खबर नई पाँय !मोर आय म देरी हो गय। (सेनापति कोती देखत) -सेनापति !जउन जगहा म बिलासा हर बीर गति ल पाय हे, वो जगहा म वोकर मठ वोकर समाधि बनवा दो अउ अउ बिलासा के ये गांव हर आज ले वोकर नांव म बिलासपुर कहाही।


सेनापति -महराज कल्याण साय की जय!



                   परदा गिर जाथे।

                          *समाप्त*


*रामनाथ साहू*







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