Saturday 7 January 2023

भारत में खुलेंगे विदेशों के विश्वविद्यालय ndtv. in "

  सरला शर्मा: गुनान 

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 " भारत में खुलेंगे विदेशों के विश्वविद्यालय ndtv. in " 

             उच्च शिक्षा के क्षेत्र मं एक ठन क्रांतिकारी बदलाव के सुनगुन सुनावत हे के अब हमर देश मं विदेशी  विश्वविद्यालय ऑक्सफोर्ड , केम्ब्रिज , येल असन नामी गिरामी विश्वविद्यालय मं  हमर देश के लइकन मन इहें रहिके पढ़ाई कर सकहीं मन कुलकुल्ला होगिस , उहां आए जाए , रहे खाए के पइसा बांचही दूसर लइकन नवा नवा विषय पढ़े पाहीं । देश विदेश मं साहेब सूबा बनहीं , बहुत पईसा कमाहीं । लइकन के सुग्घर भविष्य के सपना देखे बर सुरु करे च रहेंव के कान मं काकर न काकर हांसी सुनाए लागिस त गुने बर पर गे । मुड़ी खजुवा के गुने लागेंव हमर देश के विश्व विद्यालय मन मं काय कमी हे ? भूला कइसे गएंव के कभू हमर देश हर विश्व गुरु कहावत रहिस चला ये बात ल जाए देइ तभो तो अभी सन् 1974 के सम्पूर्ण क्रांति तो हमरे देश के विश्व विद्यालय मन से निकल के चारों मुड़ा बगरे रहिस न ? उच्च तकनीकी विश्वविद्यालय , मेडिकल कॉलेज मन के कमी तो हमर देश मं भी नइये । दूसर जरूरी बात के देशी विश्वविद्यालय मन के पढ़ाई तो आज लाखों रुपिया मं होवत हे जिक्र बर बैंक शिक्षा लोन देथे , मध्यम वर्गीय परिवार बर इही खर्चा जिउ लेवा हे त विदेशी विश्व विद्यालय मन तो अपन मुताबिक पौंड अउ डॉलर हिसाब से फीस लेहीं गुनव न भारतीय रुपिया के हिसाब से एक लइका ऊपर करोड़ दू करोड़ खर्चा विषय मुताबिक लग जाही ....खर्चा बर लोन तो भारत  सरकार ही देही । 

 लोन देही हमर सरकार फेर पढ़ाई के फायदा मिलही विदेशी कम्पनी मन ल काबर के लइकन मन नौकरी तो मल्टी नेशनल कम्पनी मन मं करहीं त बहुत लइका तो विदेश चल देहीं , अतेक सांसत मं पर के महतारी बाप लइकन ल पढ़ाहीं कोन काम के उन तो महतारी बाप ल भर नहीं देश ल छोड़ के चल देहीं । सेरा लइकन ए विदेशी विश्व विद्यालय मं पढ़हीं फेर तड़ी घड़ी देश ल छोड़ देहीं इही ल तो प्रतिभा पलायन कहिथें । उन लइकन के उच्च शिक्षा के फायदा तो हमर देश ल नइ मिल पाही । 

       थोरकुन आउ आघू के गुनव ..विदेशी विश्व विद्यालय के पढ़ाई मं तो हमर देश के इतिहास , संस्कृति , संस्कार , भाषा , साहित्य बर कोनो जघा च नइ रहिही त हमर लइकन जनम के भारतीय पर संस्कृति , भाषा से तो विदेशी हो जाहीं । अइसन लइका मन घर , परिवार , समाज , देश से बिलगा के पईसा कमाए के मशीन बन जाहीं , अधेड़ होवत नइ होवत अकेल्ला हो जाहीं त अपन लइकन ल काय सिखोहिं ? नता रिश्ता के मया दुलार , सगा सोदर के चिन्हारी कइसे करहीं ? 

युवा वर्ग के  एतरह के पलायन हर भारत ल सियान सदन बना देही , बड़का जानी वृद्धाश्रम बन जाही हमर देश हर ..। 

मैं मानत हंव के आधुनिक युग हर भूमंडलीकरण के युग आय , ए विदेशी विश्वविद्यालय मन इही भूमंडलीकरण के हिस्सा आय 

समय के मांग इही हर आय तभो गुने बर परत हे के अपन देश भारत के उन्नति , सुख सनात के बदला मं कोनो तरह नहीं , कोनो समझौता नहीं । मैं अपन अवइया पीढ़ी के शुभचिंतक अंव तभो गुनत हंव , हमर देश के विश्व विद्यालय मन के शैक्षणिक स्तर मं

 तो कोनो किसिम के कमी नइये ।दूसर  बात लइकन ल अगर मल्टी नेशनल कम्पनी मं नौकरी करना हे त कोनो रोक टोक तो हम करन नहीं । जरुरी बात एहू हर तो आय के देश के संसाधन  लगा के स्थापित करे गए हमर उच्च स्तरीय विश्व विद्यालय / संस्थान मन के का होही ? हमर देश के शिक्षा , संस्कार , इतिहास , भाषा के का होही ? 

 संगवारी मन ! आप मन भी गुनव न ...जुर मिल के गुनबो तभे तो कोनो किसिम के सुराहा मिलही उही जेला कहिथन सांप भी झन मरय लाठी भी झन टूटय या कहवं के दूध अउ दूहना दूनों ल बंचाये के उदिम करिन । 

     सरला शर्मा

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: *दीदी प्रणाम......विदेशी विश्वविद्यालय* पहुना कस आवत हे कि शिक्षा के क्षेत्र म हमन ला पहुना बनाय बर आवत हे? का जानी?....न कोई गोठ-बात न कोई विमर्श- सीधा खबर पढ़े ला मिलथे कि फलाँ-फलाँ आवत हे, ओखर स्वागत करव-आरती उतारव! अउ सरकार के गोठ ला नि मानिहा, विरोध करिहा त राष्ट्र-विरोधी!.....का हमर देश म बुद्धिजीवी मन के अकाल पर गे हे- विद्वान मन के अकाल पर गे हे कि अतेक महत्वपूर्ण नीतिगत मामला म न तो लोगन के बीच गोठ-बात के जरूरत समझिन न ही विधायिका म कोनो गोठ-बात होइस! आजकालि तो सीधा समाचार पढ़-सुन के ही बड़े-बड़े खबर के जानकारी मिलथे।...... एके-दू उदाहरण देवत हौं-आप मन समझ जाहू कि हंडी के चाउँर चुर के भात बने हे कि नि बने हे?...... नोटबंदी के खबर अचानक आइस!- हमन तो सोझवा गऊ आदमी अन! ए टी एम के लाइन म जाके चार बजे रात ले खड़े हो गेन! हमर काम बन जाय फेर बाकी भाड़ म जाँय! हमला का करे बर हे!..... लाक डाउन के आदेश ला 15 दिन आघू घोषणा नि कर सकत रिहिन का? - हजारों आम आदमी, मजदूर, किसान,  व्यापारी परेशानी ले बच जाय रतिन। असंगठित कामगार मन के रोजगार छूट गे त भूख के आगी ला नि सहे सकिन अउ नान-नान लोग-लइका ला लेके पैदल, साइकिल म हजारों किलोमीटर चले बर बेबस हो गिन, कतकोन झन रद्दा म मर घलो गिन!

       सत्ता के मद म राजा के आँखी मुंदा जाथे त ओला कोन समझाय जाही? मरना हे का?..... हो सकत हे कि विदेशी विश्वविद्यालय के हमर देश म आय ले हमन ला फायदा मिले - मगर एखर उपर सरकार ह विमर्श काबर नि कराइस-एहा समझ ले बाहिर हे!🙏🌹


           - विनोद कुमार वर्मा

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