घोटुल
(एक शिक्षा ठाना /शक्ति उपासना केंद्र)
आज के पढ़े-लिखे पीढ़ी मा 'घोटुल' शब्द ले अनजान तो बहुते कम होही। काबर के 'घोटुल' ह छुटमुट नहीं, जग जाहिर शब्द हरय। जइसे घोटुल के बात होथे, लोगन मन मस्तियाय लगथे। जहुँरिया कुँवारा-कुँआरी टूरा-टूरी, नाच-गाना अउ मनपसंद के जाँवर-जोड़ी खोजे-निमारे के ठिहा, का पुछबे! अइसन बिचार ले रंगरेला मन ह तो मस्तियाबे करही। परदेशिया-बिदेशिया मन तो 'घोटुल' ल 'नाईट क्लब' के उपाधि ले तको नवाजे हे।
अही बात ल सब जानथे अउ मानथे। फेर अब ले कउनो कइसे बिचार नइ करिन के जिंहा के संस्कृति अउ संस्कार के सेती भारत ह विश्वगुरू कहात रहिस हे, का वो हमर संस्कृति अतका गिरे होही? का हमर संस्कार अतका नीच हो सकथे? दिगर मन के बात म बिना सोचे -समझे झट ले आ जथँन अउ मान लेथँन। विचारक मन के कमि तको नइ हे! फेर सोंचे के बात हे के हमर पबरित संस्कार उपर बुता अभी ले नइ होय हे? अइसे मा हमर कतको संस्कृति मन मान खोवत अपन अस्तित्व ले खतम होवत हे। एकर उपर हमन ल हियाव करे ल परही। घोटुल के बारे म जतेक जानत हँव आज ओ जानकारी ल मँय बतावत हँव।
*घोटुल -* घोटुल ह आदिवासी मन के स्कूल होथे। जिंहा संस्कार, शक्ति, तंतर-मंतर अउ आयुर्वेद के सँगे -सँग जिनगी के तमाम शिक्षा लइकन मन पाथें।
*घोटुल के संचालन-* घोटुल, जेन शिक्षा पाय के ठान(स्कूल) होथे, वोला गाँव के एक समिति चलाथे। ए समिति मा गाँव भर के कुँआरी-कुँआरा लइकन मन सदस्य होथे, जेमा मुखिया घलो होथे।
इँहा अपन गोडी शास्त्र/ किताब ले लइकन मन रीति-रिवाज, गीत संगीत, नाच-गाना, तंतर-मंतर, जड़ी-बुटी, शक्ति साधना अउ संस्कार सँग जिनगी के जम्मो जरूरी शिक्षा के ज्ञान-बिज्ञान ल सीखथें- पढ़थें अउ अपन संस्कार ल आगू लेगथें।
*घोटुल के नियम-* घोटुल के कानहूँन-कायदा सक्त होथे। समिति के सबो सदस्य मन भाई बहिनी के रूप मा रहिके काम करथें। इँहा प्यार-मोहब्बत मनाही होथे। कहूँ कोनो गलती करथे त समिति वोला सुलझाथे, भाई-बहिनी बनवाथे, देबी के आगू किरिया खवाके माफी मँगवाथे। नइ माने म समिति ले निकाल देथे। वो समस्या ल गाँव के पंचइत ह निपटाथे। अउ समे परे मा कठोर सजा तको देथे। इहाँ तक के कसूरवार ल समिति, जात-समाज ले बहिष्कार तक होय ल परथे।
तीज-तिहार अउ परब-परब मा नाच-गाना तको होथे। ए समे टूरा-टूरी मन संग मा नाचथें-गाथें। एमा गोत के बिसेस हियाव रहिथे। जोड़ी बने के पहिली अपन जोड़ी के गोत ल पहिली जानी-जाना होथे। एके गोत वाले जोड़ी नइ बनय। काबर के अइसन मा दूनो भाई-बहिनी होथे। ए मामला ल बिलकुल परहेज मा रखे जाथे अउ तनमन ले मानथें।
जब शक्ति-साधना के बात आथे त परब-परब मा जम्मो साधक मन देव ठाना मा अउ नवरात्रि मा नवों दिन ले रातभर तंतर-मंतर के साधन करथें। माता के सेवा म जस गाथे नाच-गा के देबी ल मनाथें अउ अपन सीखे बिद्या के शक्ति ल जगाथें।
घोटुल के अइसन पबरित संस्कृति हा आज बदनाम हो के नँदावत हे। गोंडी संस्कृति हा प्रकृति वादी होथे। हर संस्कार ह अपन भेद बताथे। फेर हमन वोला समझे के बिगर आधुनिक हँसी ठिठोली म बिसार देथँन।
समाज के जागरूकता ले आज नँदावत घोटूल संस्कृति ह फेर अस्तित्व म आवत हे। बस्तर के गाँव-गाँव मा घोटूल खुलत जावत हें। जेखर बर सरकार ह घलो हर समिति ल पाँच लाख के सरकारी मदद देवत हे।
अभी तक के जानकारी म अहिच बात आथे के 'घोटुल' ह एक पबरित शिक्षा के ठान (स्कूल) हरय। समाज के बदलाव के सँग भले एकर नेंग -नियम टूटगे होही। अउ संचालन के तौर-तरीका म फरख होगे होही, तेखर बिगड़े रूप ल आज हमन देखत हावँन। जइसे आज के हमर स्कूल ह होगे हे।
ये जानकारी ह दिसंबर 2015 म सी.सी.आर.टी. के प्रशिक्षण संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ मा सँघरे बस्तर के शिक्षक सँगवारी मन ले, जेन मन आज ले घलो घोटूल संस्कृति बर बुता करत हें, के साक्षातकार म मोला मिरे रहिस उही ल बताए हँव। तत्काल मा मोर ले शब्द रखे म चूक घलो होगे होही। आप मन आगर जानत हव समीक्षा करके सहीं-गलत के खोज बज्जूर कर लेहू।
देवचरण 'धुरी'
कबीरधाम
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