Sunday 15 January 2023

गुनान -सरला शर्मा

 गुनान -सरला शर्मा

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  कुछु काहीं पढ़े के मन लागिस त अल्मारी मं " भागवत पुरान दरसन " मोठ रोठ किताब लगभग 400 पृष्ठ के दिखिस जेकर लिखइया आयं पंडित दानेश्वर शर्मा ...पहिली तो उंकर सुरता आइस त कान मं उंकर जोरहा हांसी सुनाइस ...चिंहुक गएंव जाना उन कहत हें " बड़े नोनी ! अवइया 24 जनवरी के दिन तो तिथि अनुसार मोला ए धरा धाम छोड़े साल भर हो जाही त चिटिक थिरा के ए पोथी ल पढ़ ले । " ओइसे भी " भगवता प्रोक्तं इति भागवतम् " कहे गए  हे ..श्रीमद्भागवत के लिखइया तो व्यास मुनि आयं फेर समय सुजोग पा के भारत के कई ठन भाषा मं टीकाकार मन एकर टीका लिखे हें । छत्तीसगढ़ी मं सार संक्षिप्त टीका लिखे हें पंडित दानेश्वर शर्मा जी उन तो भागवती पंडित रहिबे करिन । उंकर मतानुसार श्रीमद्भागवत मं ज्ञान , भक्ति , कर्म , योग , सांख्य , वेदांत ऐसन कोनो विषय नइये जेकर गम्भीर चर्चा नइ होए हे । कृष्ण चरित के ओढ़र मं मनसे ल संसार मं कइसे जीना चाही जेकर से जनम सकारथ हो जावय एकरे व्याख्या करे गए हे । मनसे जनम के प्रयोजन का ए ? उत्तर हे सत्य ल जानना त ओ सत्य का ए ? समस्त पृथ्वी ल , कण कण ल , जीव मात्र ल माने जड़ चेतन सब ल आप रूप मानना ..काबर ? एकर बर के सब मं उही परमात्मा के निवास हे जौन परमात्मा हमर भीतर , हमर अंतरात्मा मं बइठे हे । 

अब प्रश्न उठथे ओ परमात्मा / ईश्वर ल पाए बर ज्ञान , भक्ति के रस्ता तो हई हे , एक ठन रस्ता योग घलाय तो हे जेहर सहज सरल हे ....रोजमर्रा के जिनगी जियत जियत भी ए योग के पालन करे जा सकत हे ...। चिटिक ध्यान देहव भाई ....

1/ यम .....माने सत्य , अहिंसा , चोरी नइ करना , ब्रम्हचर्य , निर्लोभ भाव से रहना । 

2/  नियम .... पवित्र रहना , संतोष , तपस्या , अध्ययन , मनन , चिंतन 

3/ आसन ....शरीर ल ध्यान अउ समाधि के लायक बनाना 

4/  प्राणायाम ..... शरीर , मन अउ बुद्धि के योग्य सांस लेना , छोड़ना के अभ्य्यास 

5/   प्रत्याहार ....अपन शरीर के सबो इन्द्रिय ल विषय वासना से दुरिहाना , मन ऊपर अंकुश 

6 / धारणा ....चित्त ल एकाग्र करना माने एके ठौर मं थिर करना । 

7/  ध्यान ....एक चित्त होके अपन काम करना , मैं कर्ता नोहवं , भगवान के सौंपे काम ल करत हंव ए भाव रखना माने निस्पृहता ..। 

     अष्टांग योग कहिथें त आखिरी योग आय ' समाधि ' ...। एमा मनसे , साधक या योगी अपन इष्ट ल आठों पहर अपन सन्मुख देखथे । समाधि के मतलब घर , परिवार छोड़ के जंगल मं जा के धूनी रमाना नोहय बल्कि इही संसार मं रहिके अपन सबो कर्तव्य के पालन करते हुए भी ईश्वर के ध्यान अउ सबो काम ल उही भगवान ल समर्पित करना आय ...। 

" यद्यतकर्म करोमि  तद्दखिलम् , शम्भो तवाराधनम् " ..तो आय । 

       ये किताब ल पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महराज के आशिर्वाद मिले हे ..। किताब के शुरू च मं भागवत सप्ताह के सातों दिन के कथाक्रम घलाय देहे गए हे ...। आज तो सिर्फ भूमिका पढ़े हंव ...डॉ. सुरेश चंद्र शर्मा के भूमिका पढ़ के पूरा पोथी ल पढ़े के लोभ जगर मगर करे  लग गिस फेर गुरु गम्भीर पोथी ल पढ़े बर मन के एकाग्रता जरुरी हे ... धीरे  बाने पढ़िहंव त जौन थोर बहुत समझे पाहौं तेला इही लोकाक्षर मं लिखे के कोशिश करिहंव ....। 

 अभी के मान पंडित जी ल प्रणाम करके श्री कृष्णाय नमः कहत हंव ...।

     सरला शर्मा 🙏🏼

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