*खाँसी (नानकुन कहिनी)*
प्रोफेसर शर्मा आज प्रेक्टिकल परीक्षा लेहे बर हबर हें बगल के कॉलेज में। जइसे ही हबरीन गेट म त, बुढ़वा चौकीदार हाथ के इसारा करत किहिस-
"ओ..डहर साहब!.. .ओती मोटर खड़ा करे बर छाइहा (शेड) बने हे ...उहें लगा देवा"
अतकेच गोठियाय म घलव चौकीदार खोख..खोख करत खांस दारिस।
प्रोफेसर शर्मा मनेमन सोचिन -कि "आज तो स्वागत खाँसी ले होत हे..कोन जानी.. दिन कईसे निकलही?"
पूछत- पूछात प्रोफेसर शर्मा डिपार्टमेंट म पहुँचिन।
"अरे ! आव- आव सर ...आपेमन के डहर देखत बइठे हन।"
विभागाध्यक्ष प्रोफेसर टण्डन किहिन।
"अरे मोला पहिली वाशरूम के जगा बताव सर..जल्दी- जल्दी म घर म मौका ए नी मिलिस।" प्रोफेसर शर्मा टण्डन सर मेर हलो- हाय करत किहिन।
प्रोफेसर टण्डन प्रोफेसर शर्मा ल समझा दिन -
"पहिली डेरी हाथ जाना हे सर ..फेर उहाँ ले सिद्धा दिख जाहि ...दीवार म लिखाय घलव हे - 'केवल स्टाफ हेतु'।"
प्रोफेसर शर्मा वाशरूम डहर पहुँच के अकचका गे। उहाँ ले हाथ ल सुखात एकठन मेडम निकलत रहय। सोच म परगे.. कि अंदर जाय कि निहि ?
उहिं समे एक्ट स्टाफ के कोनो करमचारी खाँसत- खाँसत अंदर हमा गे। एकझन अउ आगे.... उहू खाँसत- खाँसत अंदर हमा गे।
प्रोफेसर शर्मा विभाग म लहुट गे।समझे नी अइस ओला कि का करे?
"कईसे पांडे जी ! ..आपमन के कॉलेज म जेन देख त उही खाँसत हे भई!..सब ठीक तो हे...।"
प्रोफेसर पांडे पहिली तो समझे नी पइन। फेर ...जब समझ म अइस त ठठा के हाँसत- हाँसत किहिन -
"अरे ..! डरावव झन सर....कहूँ ल कोरोना - वोरोना नी होय हे । एकठन वाशरूम हे न स्टाफ बर... एकरे कारण जेन भी अंदर जाथे ...वो सचेत करे बर खांस देथे....जइसे पहिली घर म नावा बोहासिन आय त सियान मन खाँस - खंखार के भीतर हमांय न .. बस ओइसने।"
प्रोफेसर शर्मा घलव ठठा के हांस दारिस ।
उहू हबरे हे वाशरूम के मुहटा म एदे ...अउ अभिनय करत हें खांसे के -
"खोख ..खोख..खँव....!
डॉ. सी.एल. साहू
शिवा रेसिडेंसी, रायपुर
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