*कोठी काठा अउ कोठा*
कका - कस रे लेड़गा बादर ह घप घप ले दिखत हे धान पान सकला गे ते बाचे हे।
लेड़गा - काहा सुते सच कका अठुरिहा पंद्रह दिन होगे मोर खाता में धान के पइसा आय, बैंक भारी भीड़ हे ते पाय के अभी नइ निकाले हो।
कका - ता कतेकन बीजहा रखे अउ कतेक ला माई कोठी मा छाबे रे लेड़गा छेरछेरा आवत हे।
लेड़गा - काला रखबे कका जीजहा ल तो लेथन अउ कोठी तो तोरे मूंह ले सुनत हो अउ मॅंय तो झंझट ले दूर कहीके सोझ्झे मंडी मा लेग के बेचें हो।उहा ले बाच के दस किलो आय हे तेने ला छेरछेरा देहा।
कका - बने हे बेटा तै तो मंडी ले दु आगर तीन काठा बचा के ला ले हमर घर तो बाचे धान ला बनिया ला बेंच दीस अउ उपराहा में बोलेव ता कोरी भार सुना के अटियावत रेंग दिस।
लेड़गा - कका बाकी सब तो ठीक हे फेर तै ये आगर काठा कोठी कोरी कहे तेन मोला काही समझ नइ आइस अउ हमर बाबु बोलथे के हमन कोठा ला रंधनी खोली बनाय हन ता इखर मतलब का होथे कका।
कका - हत रे पगला तै यहु नइ जानच ता सुन।
चार पैली (किलो) मतलब एक काठा।
बीस काठा मतलब एक खांडी़।
बीस खांडी मतलब एक गाड़ा।
बीस नग मतलब एक कोरी।
आगर मतलब कम।
कोठी जेन मा अन्नपुर्णा दाई ला सुरक्षित रखथन धान ल मंडी म नइ पहिली घर ला के पुजा पाठ कर के बीजहा निकाल के कुटवा के खाय बर अलग कर देथन फेर जेन बाचथे वोला बेचथन। अउ कोठी के धरे अन्न हा विपत के बेरा अउ परब परब मा काम आथे। जइसे मरदनीया बरेठ पहाटिया लोहार मन ला उखर बंधे सलाना अन्न अउ दुवारी मा पहुंचे साधु महात्मा ला सेर सिधा दे के काम आथे।
लेड़गा - कका कोठा ल नइ बताय गा काला किथे।
कका - रुक न बेटा बतात हो रे सियान मन कहे हे धिरज के फल अड़बड़ मिठ होथे।
लेड़गा - हव कका।ई
कका - बेटा लेड़गा अभी के जमाना उल्टा हे बेटा कभी गाय मन गली में घुमत हे अउ कुकुर घर मे संगे संग खात पियत हे।उ एक जवाना राहय के गाय घर मे रहाय अउ जेन मेर गाय बंधाय के ठउर रहे उही ला कोठा कहीथे रेउ लेड़गा।
लेड़गा - कका मोला एक बात समझ नइ आइस।
कका - का बात समझ नइ आइस रे लेड़गा पुछ मॅंय अउ बताहू।
लेड़गा - कका तै काहत हच पहिली गाय मन घर मे राहाय त गाय मन का गलती करीस होही ते गाय मन ला बाहीर मे खेद दीन।
कका - हव बेटा सवाल तो तोर सही हे सुन गाय के बखान करहा ते आज के ये छेरछेरा पुन्नी के दिन घलो कम पर जही कोनो दिन आबे बइठे ला सब बने बताहू कभी अतने जान के गाय जेन घर मा राहय उहा सब देवी देवता के वास राहय।
लेड़गा - कका आज तॅंय मोला बने बने बात बतिय अब मै रोज तोर घर बइठे ला आहु अउ तोर ले ज्ञान पाहु।
अउ ह कका रोज के मोर घर के चाय घलो बचाहु।
कका अउ भतिजा दात निकाल के हा हा हा हा हासत अपन अपन रद्दा चल दीस।
ईश्वर निषाद ✍️✍️✍️
ग्राम - सलधा (बेरला)
जिला - बेमेतरा छ.ग.
🙏🙏🙏🙏
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