Thursday 5 January 2023

ओ हो ! कत्तेक जिनीस नंदावत जावत हे ? ======000======

 ओ हो !  कत्तेक जिनीस नंदावत जावत हे ?

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     *हमर छत्तीसगढ़ के खान-पान,रहन-सहन,वेशभूषा,तीज-तिहार,रोटी-पीठा, खेती-किसानी के औजार,कई ठन रीति-रिवाज म खूब तेज गति से बदलाव आवत जावत हे ! ए सब बदलाव ल देख के हमर बड़े-बुजुर्ग सियान-सियानीन, बबा-बूढ़ी दाई मन ल खूब दु:ख होथे अउ गुड़ी म बैठे-बैठे मन के पीरा ल गोठियावत रहिथें- का दु:ख ल गोठियावौं भाई बिपतराम ? अब तईहा के बात ल बईहा ले गे भाई !*

     *कईसे भईया संपतराम?*

      *भाई बिपतराम, अब देख न छट्ठी-छेवारी के रीत-रिवाज ह तहस-नहस होगे! पहिली पांच दिन म छट्ठी संस्कार होवय अउ छेवारी ल रोहिना छाली,अमर बेल,नींगुर के पत्ता ल मरकी म रात भर चुरोय पानी म नहवात रहेन | तेकर बाद  पथहा भात-साग  खवात रहेन, साग म बरी- बिजौरी,मुनगा,झुनगा अउ राहेर दार म गाय के घी म पीपर के भुरका देवत रहेन,    पीपरामोल के तीपे पानी देवत रहेन |*

   * *पांच दिन म अब्बड़ेच धूम-धाम से छट्ठी मनावत रहेन, तेमा जम्मो सगा-पहुना अउ गांव भर के मनखे ल "कांके पानी" देवत रहेन | वो कांके ( उरई घास के जरी) ल गांव के बरेठ ह छट्ठी घर म लावत रहिस, बदला म बरेठ (पौनी-पसारी) ल दार-चाउर देवत रहेन | वोही बरेठ ह छोहरहा परिवार के जम्मो ओढ़ना ल कांच के पवित करै | वोही कांके (उरई के जरी ह मृतक आत्मा ल शांति प्रदान करे बर तालाब के घाट म काठी के  दिन लगाय जाथे, तेमा मृतक परिवार अउ जुरियाय जम्मो मनखे मन। तिल-जवां संग पांच पसर पानी म तिलांजली देथैं, तभे मृतक आत्मा ल शांति मिलथे*

*पैकहिन ह नवजात लईका के अंवतरते ही नेरूहा छीनै,छेवारी के सेवा-जतन करै अउ ग्यारह दिन म बरही होवत तक वो पैकहिन ह लईका ल सेंकय अउ अंडी तेल चुपरय, छेवरिन ल घलो अंडी तेल म मालिस करे, तेकरे सेती वो पैकहिन ल घलो जेवर (रूपीया-पैसा) देवत रहेन | नाउ ह गांव भर के मनखे के हजामत बनावै, वोहू ल गांव म निर्धारित जेवर (रूपीया-पैसा) देवत रहेन*

    *छट्ठी के दिन कांके पानी के साथ कसावर (चाउर-गेहूं पीसान) के ढूढ़ी,तिल अउ अरसी के ढूंढ़ी देवत रहेन, तउन सब नंदा गे भाई बीपतराम*

   *अब अउ नवा चरित्तर ल सुन- अब छट्ठी ल साल भर अर्थात लइका के बर्थ डे म छट्ठी मनाथे ! ए कुछु छट्ठी ए  गा ? बता न भला तहीं !*?

    *अब सरकार के आदेश हवय-सरकारी अस्पताल में ही डिलवरी होना जरूरी हवय, तउन अस्पताल म डाक्टर मन डेरूहा देथे- लईका ह पलटी हो गए हे ! गंदा पानी पी डारे हे ! कहिके लगभग 50 प्रतिशत हमर बेटी,बहू के बिना प्रसव पीरा (समय के पूर्व) पेट ल चीर के सब बेटी-बहू ल कमजोर बनावत हवंय,ए अखरखन दु:ख के बात आय भाई बीपतराम !*

   *अउ सुन - पहिली हमर गांव म घरो-घर जंतवा,ढेकी होवत रहिस ! अब कोनो घर देखे बर मिलथे भला ? पक्का नंदा गे भाई !*

    *हमर पहरो म जब कोनो घर लईका अंवतरत रहिस,तव बधाई बर गंड़वा बाजा बजवात रहेन |  नवा मेहमान के सुंदर संगीतमय सुवागत करत रहेन, रामायण,भजन-कीर्तन,गीत-गोविंद से उच्छामंगल मनावत रहेन, तेकरे सेती लईका म नानपन ले ही धार्मिक भावना सिरजन होवत रहिस | अब तो कोनो घर लईका अंवतरथे,तव फटक्का फोरथें, तेकरे सेती लईकन के संस्कार ह फटक्का सहीं विध्वंसकारी होवत जाथे !*

      *पहिली गांव के गुंड़ी, चौंरा -आंट म आल्हा,किस्सा-कहानी, गीत-गोविंद होवत रहिस भाई | सब लईका-सियान जुर-मिल के एके जगह बैठे रहत रहेन | तव लईकन मन सियान-सियानीन तिर संस्कार सीखत रहिन | अब कहां पाबे ? सब लईकन उवत-बूड़त ले फकत मोबाईल,टी.वी. म गड़े रहिथैं ! ये मोबाईल ह हमर संस्कार,रीत-रिवाज,धरम-करम ल सत्यानाश करत जाथे भाई !!!*

     *पहिली घरो-घर गुडे़रिया चिरई के बसेरा रहिस, तेकरे सेती लईकन के मन म पशु-पंछी के प्रति दया भाव, अपनापन के सुभाव नस-नस म भरे रहय, अब दया भाव, स्नेह सहानुभूति, आत्मीयता के भाव कमती होवत जाथे भाई ! अब तो कौंआ घलो नंदागे !*

     *पहिली गौ माता के खूब सेवा करत रहेन,  गौ माता ल पहिली रोटी खवात रहेन, तेकरे सेती हमर संस्कार म सेवा भाव कूट-कूट के भरे रहत रहिस |*

      *अब गौ माता के सेवा ल छोड़ के कुकूर पाले रहिथें, तेकरे सेती सब मनखे कुकूर सहीं लड़त-भीड़त रहिथें !*

      *पहिली गांव-गांव म खूब तलाब,कुआं, बावली रहय | बड़े भिनसार ले सब मनखे तलाब म नहाए बर जावत रहेन, गांव भर के मनखे संग भेंट-भलाई हो जावत रहिस | आज कोन मनखे घर का दु:ख-सुख हवय ? तउन पता चल जावत रहिस | सिरिफ पता नइ चलत रहिस बल्कि सब मनखे के दु:ख- सुख ल बांटे बर जुट जावत रहेन | कोन्नो मनखे अपन आप ल अकेल्ला नइ समझत रहिन, बल्कि गांव म कोनो भी अमीर-गरीब रहत रहिन, सब मनखे के दु:ख-सुख ह व्यक्तिगत नइ होवत रहिस,सब मनखे एक्के रूखवा के डारा-पाना सहीं संवेदना,सहानुभूति,अपनापन नस-नस म भरे रहत रहिस! अब तो मानवीय संवेदना-सहानुभूति, अपनापन सब नंदावत जाथे भाई !*

     *वो बखत एक हाना प्रचलित रहिस- " नदी नहावय सम्मग पावै,*

    " *तालाब नहावै आधा |*

     " *कुआं नहावै कुछ नहीं पावै*,

     " *घर म नहावै ब्याधा!*

    *पहिली घरो-घर बईला,भैसा,गाय-बछरू सब रहय | तउन गाय-भैसी ह दूध के साथ गोबर भी देवै | ओही गोबर (जैविक खाद) के द्वारा हमर खेत ह खूब उपजाऊ रहय अउ फसल म कुछू बीमारी नइ होवत रहिस ! शुद्ध चाउर-दार खावत रहेन,तेकरे सेती हम ल कुछू बीमारी नइ होवत रहिस !*

     *अब हर फसल ल जादा ले जादा उपजाए के लोभ म कई किसम के रासायनिक खाद,अउ दवाई ल ढकेल-ढकेल के सब अनाज अउ साग-भाजी ल जहरीला बनावत जावत हवंय, तऊने ल खा-खा के सब मनखे बीमरहा हो गईन ! बीपतभाई, ए खूब चिंता-फिकर के बात हो गए हवय!*

    *अब कोनो घर गरूवा-बछरू हवय भी,तऊन गाय ल दुह के दूध ल पीयत हवंय अउ गऊ माता के सेवा नइ करे सकैं !*

     *बीपत भाई का दु:ख ल गोठियावौं- कभू पूजा-पाठ म गौरी-गनपति बनाए बर एक चोता गोबर नइ मिलय ! तेकरे सेती शहर के दुकान म रेडीमेट "गौरी-गनपति" बिसाए बर पड़थे ! गौ माता ल घर म पेज-पसिया नइ देवंय, गौ माता ह भूख मरत रहिथे ! गली-खोर सड़क म अवारा किंजरत रहिथें,भूख मिटाय बर पालीथीन खा के गऊ माता मरत जावत हवंय! कतको गाय मन बस,ट्रक अउ रेलगाड़ी म कट-कट के मरत जाथें, तभे तो गऊ माता के श्राप से कतको मनखे अकाल मौत के गाल म समावत जावत हवंय!*

    *गाय,भैसी के दूध ल बढ़ाय खातिर खूब नुकसानदायक सूजी लगा के गाय-भैंसी के तन ल खुवार करत हवयं ! गाय-भैंसी ल स्वाभाविक रूप से जतका दूध देना चाही, तउन ल सूजी के बल म वो गाय-भैंसी के लहू ल पतला करके दूध बढ़ावत जाथें ! ए कत्तेक अजगुत होवत हे भाई ! मोर तो रोवासी जीव होवत हवय !*


     *हमर धरती माता म अखरखन जहरीला रासायनिक खाद अउ जहरीला दवाई डाल-डाल के उर्वरक क्षमता ल बर्बाद करत जाथें !* *


    *धान फसल हमर कोठार म आए के पहिली खेत म ही थ्रेसर या हार्वेस्टर से कटाई-मिंजाई करके पैरा ल घर म लाबे नइ करैं,सब गाय-बछरू फर्रा-फर्रा के भूख मरत रहिथैं, अउ  बुजदिल, निर्दयी किसान मन सब पैरा ल खेत म आगी लगा के नष्ट करत जाथैं ! ए सब निर्दयी बुजदिल किसान के मति म आगी लग गए हवय ! एहू खूब चिंता के बात आय !*

    *पहिली एक-एक कडिका पैरा-भूंसा ल गऊ माता ल खवाय बर जतन के राखत रहेन | दउरी या बेलन म मीसे धान के पैरा ल गऊ माता पेट भर खावत रहिन, अउ कोटना-,कोटना पेज-पसिया पीयत रहिन, तभे घरो-घर खूब दूध,दही अउ घी होवत रहिस ! नानपन ले हमन पेट भर दूध,दही, घी पीयत रहेन ! वो दिन के सुरता आथे तव खूब रोवासी आथे भाई बीपतराम !*

     

    *अब वो नांगर,बईला, दऊरी,बेलन, जंतवा,ढेंकी,कमरा-खुमरी सब नंदा गे भाई !*

     *हमर भारत माता अउ छत्तीसगढ़ महतारी के तीज-तिहार,पूजा-पाठ, संस्कृति सब भ्रष्ट होवत जाथे | अब कोनो टुरी-टुरा अपन ददा-दाई, बबा-बूढ़ी दाई,बड़े भाई,बहिनी-दीदी के आदर -,सम्मान नइ करैं, छोटे-बड़े, अउ गुरूजी  के कोनो लिहाज नइ करैं ! सब अवारा हो गईन भाई ! टुरी-टुरा मन खुले आम बांह म बांह जोरे रेंगथें ! थोरको लाज-शरम नइ रहिगे ! "लिव इन रिलेशन" ( पश्चिमी संस्कृति )अपनावत हवंय, तेकरे सेती भ्रूण हत्या, वर्णशंकर औलाद बाढ़ते जावथे ! कतको टुरी मन विधिवत विवाह के पहिली गर्भवती हो जाथैं, फेर लोकलाज के चिंता सताथे, तब अपन अवारा प्रेमी ल बिहाव करे बर दबाव डालथैं ! लेकिन खूब दुर्भाग्य के बात आय- वो अवारा प्रेमी मन अपन वो प्रेमिका ल धोखा दे के कहूं फरार हो जाथें,या गर्भपात करे बर मजबूर करथैं या कतको प्रेमिका ल  मौत के घाट उतार देथें ! ए बदमिजाज अवारा टुरी-टुरा मन हम सियान-सियानीन बुजुर्ग ल "लकीर के फकीर" कहिके उपहास करथैं !  हमर संस्कार,तीज-तिहार,के उपहास करथें,तेकरे सेती सब नष्ट-भ्रष्ट होवत जाथैं भाई !*

    *पर्यावरण प्रदूषण चिंताजनक बाढ़ते जावत हवय ! अब कहां पाबे शुद्ध हवा ? अब कहां मिलथे शुद्ध पानी ? अब हवा-पानी ही बदलत जावत हे भाई बीपतराम ! अब खूब अचरित हवा चलत हे !* *ध्वनि प्रदूषण अतेक बाढ़त जाथे - तेकरे सेती मनोरोगी अउ पागलपन बाढ़ते जाथे भाई*

     *पहिली दू रूपीया लीटर म शुद्ध दूध -दही बिसावत रहेन | अब बीस रूपीया लीटर म पानी बाटल बिसावत हवन!*

     *आज एक्का-दुक्का गऊ सेवक मन शुद्ध दूध ल चालीस रूपीया लीटर म बेंचना चाहथें, तव ओकर दूध के खरीददार नइ मिलय, दूध माढ़े-माढ़े बेकार  हो जाथै ! अउ दारू पीयैयन मन रोज कई सौ  रूपीया के दारू पी के  मूत डारथैं ! ओहो ! ए कईसन जमाना आ गे भाई ?*

     *पहिली ए हाना प्रसिद्ध रहिस- "गांव घर के जान-पहिचान, तव शहर के महापरसाद " ! माने गांव-घर के मनखे मन खूब मिलनसार रहैं, अउ शहर के मनखे मतलबिहा रहिन ! अब तो गांव-घर के मनखे के घलो व्यवहार बदलत जाथे ! अब पहिली जैसे निरमल,निस्कपट, सहयोगी सुभाव वाले मनखे के दिनोंदिन अमिल होवत जाथे ! अब गांव होय या शहर ? सब मनखे खूब तिकड़मबाज, अटल स्वार्थी, धोखाबाज, छलिया, कपटी होवत जाथें ! आजकल न जाने कइसे हवा चलत हवय ? समझ से परे हवय भाई बीपतराम !*

    *सहीं कहत हस भईया संपतराम, मोरो बुद्धि काट नइ करत हवय ! आजकल सब आनेच-तान नजर आवत हवय भईया जी !*

     *आजकल के टुरी-टुरा मन खूब पढ़त तो हवंय,फेर कढ़त नइ हवंय भईया जी ! बी. ए. पढ़ के बयावत जावत हवंय, एम. ए. पढ़ के मेटावत जाथैं भईया जी ! आजादी के नाव म अवारा हो गईन ! हमर संस्कृति, सभ्यता, मान-सम्मान, लाज-शरम, हया, छोटे-बड़े के लिहाज खतम होवत जाथे ! शिक्षित के नाव म बेशरम, फूहड़पन, अवारगी अत्तेक बाढ़त जाथे - हमर भारतीय संस्कृति सभ्यता धीरे-धीरे नष्ट होवत जाथे ! पश्चिमी संस्कृति हावी होवत जाथे ! मोला तो अइसे शंका होवत हवय- " तैं-हम तो अपन बेटी-बेटा के बिहाव ल वैदिक रीति से करे हवन, तव कुछ लाज-शरम अउ मान-मरजाद बांहचे हवय | हमर नाती-पोता के बिहाव हम करेच नइ पाबो, सब अपन मन-मरजी गंधर्व शादी करहीं, "तऊन शादी ह चार दिन म मुरझाय फूल सहीं साबित होही  भईया जी ! चार दिन म पति-पत्नी के तलाक हो के फेर कई स्त्री-पुरूष के मिलन होही ! तब  औलाद ह काकर आय ? निर्धारित कर पाना मुश्किल हो जाही!!! ओ हो !!!  ए नवा संस्कृति,उच्श्रृंखल अउ अवारगीपन ह मनखे ल पशु से बद्तर बनावत जाथे भईया जी !*

     *भाई बीपतराम, मैं अपन मन के पीरा ल कईसे वर्णन करौं ? ये अवईया संस्कृति है खूब तेज गति से मानवीय प्रवृत्ति ल समाप्त करत जाथे अउ पशुता से बदतर नीच आचरण पनपत जावथे भईया !!!*

      *ए सुंदर  संस्कृति के विनाश होय के सब ले बड़े कारण हवय-हमर वैदिक रीति से सोलह संस्कार समाप्त होवत जाथे | जन्म,विवाह के साथ-साथ मृतक संस्कार ल घलो शिक्षित के नाव म भटके हुए बुजदिल टुरी-टुरा  मन विरोध करत रहिथें ! अब दाई-ददा के मृतक संस्कार ल बेटा-बहू मन करहीं के नहीं ? कोई भरोसा नइ हवय भईया जी !*

     *ले भईगे  बीपत भईया, ए गोठबात ल एही मेर विराम देवत हन!  अब बिड़ी-चोंगी के चुलूक लगथे, दे बिड़ी सुलगा,बिड़ी पी के अपन मन के व्याकुलता ल चिटिक कम कर लेथन | अब तक बहुरिया ह जेवन रांध डारे होही, जेवन जुड़ा जाही | चल घर चली !*

     *चल भईया संपतराम, आज के बिगड़े हवा-पानी, चाल-चलन के संबंध म गोठिया के आने वाला भयानक समय  के चित्र ल देख के जीव कांप गे भईया जी !!!!*

    *राम-राम भईया*

    *राम-राम भईया जी* ................

    

   

दि. 02.01.2023


आपके अपने

*गया प्रसाद साहू*

   "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)


👏☝️✍️❓✍️🙏

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