Sunday 15 January 2023

घोटुल

घोटुल

 मैं ह बहुत पहिली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम के किताब म बिहाव के बारे म पढ़े रहेंव। ए अलग बात आय कि मैं वो विषय म पढ़ई नि करे हवँ। 

      घोटुल म बिहाव के योग्य नोनी बाबू मन सकलाथें, सियान मन के सियानी म बड़ नेम जोग ले मिलथें। पारिवारिक माहौल म एक दूसर के विचार ले परिचित होथें। अउ पसंद आय ले घर के सियान मन ल जानबा देथें। इहाँ कोनो किसम के मस्ती नइ होय। भलुक एकर ले जिनगी बर जरूरी संयम अउ संस्कार के सीख दे जाथे। ए ह आज के सभ्य समाज म आयोजित होवइया *युवक-युवती परिचय* के जुन्ना अउ मान्य स्वरूप आय कहे जा सकत हे।

         एक बात अउ कि हटरी म जिनिस बेचे बिसाय जाथे।  अइसन म हटरी जइसन शब्द के घोटुल ले दुरिहा दुरिहा ले कोनो प्रकार के जुड़ाव नइ च हे।

        घोटुल एक पबरित परम्परा आय एमा कोनो संशय नि हे। फेर एला शिक्षा अउ संस्कार के केन्द्र कहई ह सही आय, काबर कि इहाँ बहुत अकन सीख अउ संस्कार मिलथे। फेर शक्ति उपासना कहई ह मोला सही नइ लागत हे। हो सकत हे मोर जानकारी कमती होही।

        घोटुल के बारे म अतका तइहा च ले सुने बर मिलथे कि इहाँ नोनी मन घलव अपन मनपसंद के जीवनसाथी चुन सकथें। इहाँ के खास बात ए हे कि इहाँ मर्यादा म सबो रहिथें। इही मर्यादित घोटुल ले प्रेरित होके शायद आज 

के तथाकथित सभ्य 

अउ शिक्षित समाज मन युवक-युवती परिचय के आयोजन रखथें।

          

पोखन लाल जायसवाल

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