Monday 8 March 2021

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ( 8 मार्च )

 अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ( 8 मार्च ) 


*आधुनिक भारत म नारी के दशा*

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यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। (मनुस्मृति ३/५६ )

(मनु स्मृति में लिखे ये श्लोक आप सबो झन कभू न कभु जरूर सुने होहू। येकर भावार्थ हवय कि- जिंहाँ नारी के पूजा होथे उँहा देवता निवास करथे अउ जिंहाँ नारी के पूजा / सम्मान नइ होय उहाँ करे सबो काम निष्फल हो जाथे।)


अतका सब जानत हुए भी महिला मन प्रताड़ित काबर होवत हे ये यक्ष प्रश्न आय ? बहन, बेटी बहू के रूप म नारी ल जो सम्मान मिलना चाही का समाज में वो सम्मान इनला मिलत हे ? शायद नहीं.. ।  एक बात अउ कहे जाथे - "हर सफल पुरुष के पाछू कोनो न कोनो नारी के हाथ होथे।" ये निर्विवाद सत्य आय कि पुरुष अपन हर काम ल  यदि निर्विध्न करत हवय त येकर पाछू नारी के ही हाथ होथे।  महिला मन  चारदीवारी म रहि के पूरा जिम्मेदारी निभाथे।  रसोई, झाड़ू पोछा बर्तन से लेके घर ला व्यवस्थित करे के पूरा दायित्व महिलाओं मन के होथे तब कहूँ पुरुष वर्ग स्वतंत्र होके अपन जम्मो कारज ल कर पाथे। परिवार के देखरेख म महिला मन अपन सर्वस्व न्यौछावर कर देथे।  घर म यदि महिला मन नइ होही ता पुरुष मन के  जीवन घलो ये चार दीवारों के बीच में उलझ के रहि जाही अउ उन अपनी तरक्की के बात सोच भी नइ सकय। 


लइका मन ला संभालना वोला टाइम पर खाना खवाके स्कूल भेजना, टिफिन ये जम्मो काम महिला मन ही करथे। फेर जब बात महिला मन के सम्मान के होथे तब का हमन उनला वो सम्मान दे पाथन जेकर हकदार उन हवय? पुरुष ला  प्रसिद्धि अइसने नइ मिल जाय, वोकर पाछू महिला मन अपन सब कुछ न्योछावर कर देथे। 


शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।

न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।।( मनुस्मृति ३/५७ )

अर्थात- जेन कुल में नारी कष्ट भोगथे वो कुल के शीघ्र ही नाश हो जाथे अउ जिंहाँ नारी हा प्रसन्न रहिथे वो कुल सदैव फलथे फ़ूलथे अउ समृद्ध रहिथे। 

           आधुनिक भारतीय समाज मा महिला मन  कई नवा आयाम स्थापित करे हे । मेडिकल, इंजीनियरिंग, वैज्ञानिक अनुसंधान, नैवी, इंडियन एयर फोर्स, आर्मी आदि जघा मा महिला मन अपन परचम लहराय हवय। फेर दूसर डहर महिला मन के साथ रोज रोज होने वाला हिंसा ह चिंता के लकीर ल अउ गहरा कर दे हावय। कानून के कड़ा प्रावधान होय के बावजूद भी बेटी मन सुरक्षित नइ हे। संचार और सुरक्षा के आधुनिक माध्यम होय के बाद भी हमन हिंसा ल नइ रोक पाथन। फास्ट ट्रैक कोर्ट होय के बावजूद न्याय म देरी होना कानून व्यवस्था उपर सवालिया निशान आय। 

              महिला संग होने वाला अत्याचार के कई कारण हे। नारी के साथ जेन घरेलू हिंसा  होथे वोकर सबसे ज्यादा जिम्मेदार महिला मन ही हवय। उदाहरण यदि बहू के साथ कोई अन्याय होवत हवय ता अक्सर येमा सास,ननंद,जेठानी के भूमिका देखे जात हे जेन स्वयं भी महिला ही आय। यदि उन नइ चाही तो कभी भी कोनो बहू के साथ घरेलू हिंसा हो ही नइ सकय। अक्सर ये देखे जाथे कि दहेज के नाम म जब भी महिला मन  प्रताड़ित होथे तब वोमा महिला मन घलो  शामिल होथे जेन पुरुष वर्ग ला उकसाय के  काम करथे । अगर महिला मन  पुरुष के साथ झन दँय तब घरेलू हिंसा ल 80% तक रोके जा सकत हे। 


         बहू ल प्रताड़ित करे के पहली सास ये काबर नइ सोंचय कि उहू ककरो बेटी आय। वोकरो बेटी एक दिन ककरो घर बहु बन के जाही अउ ओकरो संग अइसन अत्याचार होही तब ..? यदि अतका बात सास ल समझ आ जाय तब बहू मन के साथ काबर अत्याचार होही। ठीक अइसने बहू अपन सास ल महतारी सही मानही तब कोनो भी सास के साथ दुर्व्यवहार नइ हो सकय। येकर ले ये बात तो साफ हवय कि महिला मन के सबले बड़े दुश्मन महिला ही हवय। 

               समाज म महिला मन के दैहिक शोषण के सबले प्रमुख कारण विकृत मानसिकता अउ उपभोक्तावादी संस्कृति हे। पुरुष महिला मन ला केवल उपभोग के वस्तु मानथे अउ   विकृत मानसिकता के चलते अइसन  घृणित काम ल अंजाम देथे।  पुरुष ये काबर नइ सोंचय कि जेकर साथ वो ये घृणित काम करत हे उहू ककरो माँ, बहन अउ बेटी आय। यदि उँकर माँ,बहन अउ बेटी के संग ये प्रकार के कोनो घृणित काम करे जाहीं तब उन ला कइसे लागही ?

           छोटे छोटे बालिका मन के साथ होवत अनाचार के एक अउ कारण नशा आय। जब तक समाज म नशा के जाल होही तब तक महिला मन के संग अनाचार होते ही रइही। शराब,ड्रग्स,गाँजा, ब्रॉउन सुगर जइसन घातक नशीले जिनिस के सेवन करइया मनखे मन ही हत्या बलात्कार जइसन अमानवीय काम ल करथे। काबर कि नशा के हालत म उन सोंचे समझे के स्थिति म नइ रहय कि उन का करत हे। 

           घर ले बाहिर स्कूल कॉलेज या अन्य जघा मा नोनी अउ युवती मन के साथ जे दुष्कर्म होवत हे येकर पाछू संस्कार के की कमी आय। हमन केवल बेटी ला संस्कारित करने के काम करथन । उन ला कहिथन ये नइ करना हे, वो नइ करना हे अइसे रहना हे वइसे चलना हे। फेर अपन बेटा ला खुला छूट दे देथन , वोकर हर गलती ला माफ कर देथन। इही छूट के कारण बेटा मन अपन संस्कार ल भुला जाथे । जतका पाबन्दी बेटी उपर लगाए जाथे वतका बेटा उपर भी काबर नहीं ? यदि लड़का मन  संस्कारित होही ता कोनो भी प्रकार के दुष्कर्म बेटी मन से नइ हो सकय। 

              समाज के एक अउ विकृत पहलू ये कि दुष्कर्म पीड़िता के साथ सहानुभूति ना होके उल्टा उही ला दोषी ठहराथे जेन गलत हे। पीड़िता ल त्वरित न्याय के साथ समाज म सम्मान से जीये के अधिकार भी होना चाही । समाज ल उँकर भावना के सम्मान करना चाही। आखिर कब तक नारी ल अबला कहिके हम उँकर अपमान करत रहिबों।   भारत ल हम सदियों से विश्वगुरु के संज्ञा देवत हन, का महिला के अधिकार के प्रति हम आज संजीदा हवन....? अपन कलेजा म हाथ रख के विचार करव। 


अजय अमृतांशु 

   भाटापारा

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