Friday 5 March 2021

गुनान -सरला शर्मा


 

गुनान -सरला शर्मा

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   " मोला कोनो वाद छुअय झन राम 

     अलगे रहि के लिखत रहंव निहकाम । " 

शेषनाथ शर्मा " शील " लिखे हंवय ..। त पढ़ लेंव ...कुछु काहीं पढ़े के बान पर गए हे जेहर अब ए उम्मर मं छूटही तइसे तो लगत नइहे । गुनत हंव काबर अइसना लिखे रहिन होहीं ? 

वाद के मतलब तो छायावाद , प्रगतिवाद , प्रयोगवाद ही होइस न ? नहीं ..एमेरन वाद के इशारा कोनों विशेष धरन के लिखाई होइस । 

अलगे रहिके लिखना माने तो कोन काय लिखत हे तेला देख के नइ लिखना अपन मन के भाव ल लिखना होइस त  कोनों संग संघर के  नइ लिखना  भी तो होइस न ? दूसर बात के कोनो मोर लिखे के अनुकरण करत हें के नहीं , मोर लिखे संग सहमत हें या नहीं तेकर संसो करे बिना अपन विचार ल सुछंद लिखना घलाय तो होइस । 

   फेर निहकाम लिखना ...इही मेर तो मोर कलम ठाड़ होगिस ...गुनत हंव निहकाम माने तो जस -अपजस , लाभ- हानि से परे  लिखना होइस फेर मैं तो चार आखऱ लिखते साठ कोनो पत्र पत्रिका मं छपे बर उतियाइल हो जाथंव सम्पादक के सरन परथंव । आजकल तो सोशल मीडिया के सरन परे हर सहज उपाय बन परे हे तुरते फल घलाय मिल जाथे ...मुलाजा मं नहीं त बलदा मं लोगन मोर लिखे ल ...वाह ...वाह ..बढ़िया हे , सुग्घर रचना कहि देथें फेर का पूछना हे मोर कलम उत्ता धुर्रा चले लगथे , देंह मन विचार सब मोटाये सुरु कर देथे । 

एकरे ले बांचे बर शील जी लिखे रहिन होंही निहकाम लिखे के बात ...सिरतो तो आय नांव जस के लोभ मं पर के मन के सुख शांति काबर खतम करना ? दुनिया मं आजतक कतको भाषा मं जाने कतका झन लिखत आवत हें ..उनमन के रचना उंकर जियत जागत ले संतोष , मान सनमान जौन दिस जतका दिस उन देखिन सुनिन फेर उंकर जाए ले उंकर रचना ल कोन पढ़त हे , नइ पढ़त हे , कोन सराहत हे , कोन आलोचना करत हे तेला देखे , सुने तो उनमन आवयं नहीं ....त छपास रोग काबर पालना ? दूसर बात के निहकाम लिखे ले " मैं " के भाव घुंचही ...नहीं त उम्मर भर मैं ये लिखें , मैं एकर ओकर ले अतकिहा लिखें , बढ़िया लिखें । 

मैं ऐ विधा मं पहिली लिखें , मैं सबो विधा मं कलम चलाएं ....मैं , मैं अउ सिरिफ मैं ....काबर भाई ? त इही मैं ले उबरे बर शील जी निहकाम लिखे के बात कहिन होहीं ...। 

  अतेकन किताब विनय पत्रिका , कवितावली , गीतावली , राम लाल नहछू , पार्वती मंगल अउ कई ठन किताब लिखइया तुलसीदास रामचरित मानस लिखे धरिन त मैं ले  दुरिहाये बर लिखे रहिन "  स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा ..। " माने ..भाई मन जेकर मन लगय पढ़व ...। 

गीतांजलि असन विश्व प्रसिद्ध किताब के लिखइया गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर लिखिन ...मोर विचार ल , लिखे ल पढ़ के मोर संग चलिहव त ठीक नइ चलिहव तभो ठीक हे ...बल्कि चेताइन घलाय " जदि तोर डाक शोने केउ ना आसे , तबे एकला चलो रे ...। " गुरुदेव इही मेरन " मैं " ले उबर गए रहिन ...।  

    फेर मैं सरला शर्मा तो उबरे नइ सके हंव जी ...इही देखव न ..लोकाक्षर मं लिखत हंव अउ गुनत हंव कतका झन मोर लिखे ल पढ़हीं , कोन कोन लिखहीं सुग्घर , बढ़िया हे आउ कुछु काहीं ..जेला पढ़ के मोर भीतरी मं आसन मार के बइठे " मैं " हर फूलही , फरही , हरियाही ....।

मैं कभू निहकाम लिखे सकिहंव , कभू एकला चले सकिहंव , कोनो दिन स्वान्तः सुखाय लिखे पाहंव ??? 

    सरला शर्मा

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