Monday 8 March 2021

घर के जोगी जोगड़ा आन गाँव के सिद्ध*(यात्रा संस्मरण)-सूर्यकांत गुप्ता

 



*घर के जोगी जोगड़ा आन गाँव के सिद्ध*(यात्रा संस्मरण)-सूर्यकांत गुप्ता


जम्मो संगवारी मन ल मोर जय जोहार. मैं हा ऊपर मा लिखे मोर राज के मिठ बोली के हाना (कहावत) ल ए पाय के लिखे हँव के लोकल मा, तीर तखार मा जउन रथे ओकर कोनो पुछारी नई रहय. दुरिहा के चाहे मनखे होय या जघा, उंखर देवता कस पूजा होथे।  कुदरत हा अपन खूबसूरती ल कहाँ नई दे हे. जरूरत हे ओला सम्हाल के रखे के. हमर  देश माँ सबले बढ़िया सरग (स्वर्ग) उत्तर भारत माँ  हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तरांचल,  पूरब  मा दार्जिलिंग, सिक्किम, पश्चिम मा मुंबई अउ  गोवा  के बीच  सतारा उतर  के जाथें  जेला महाबलेश्वर कथें, अउ खंडाला माथेरान घलो, दक्खिन मा ऊटी,  कोडेकनाल  ये सब  बरफ वाले  पहाड़ अउ उहाँ के सुग्घर हरियर हरियर पेड़ पौधा से सजे कुदरत ल मानथन.  बात गलत नई ये. फेर इहाँ जाय बर सबके टेंटुआ मा मनीराम होना चाही. " *चाहे वो दार्जिलिंग होवे या सिक्किम, काश्मीर होवे या ऊटी" लगत रथे सबोला जाँव येती ओती.  अउ एक दू जघा अउ  हे जेमा शामिल हे माउंट आबू.  ये सब जघा के बारे माँ सुन के मन ल नई कर सकन काबू.*       


     लेकिन   हमरो छत्तीसगढ़ मा कुदरती सुन्दरता के कमी नई ये. हमन अपन समाज के दुरुग भिलाई के समिति "छत्तीसगढ़ी केशरवानी सेवा समिति दुरुग-भिलाई " बनाए हन. अब समिति डहर ले सोचेन के हमन तो येती ओती घूम फिर के अपन मन बहला लेथन. बपरी   घर गोसैनिन मन (अरे आजकल घर देखैया तो हवेच, घर बाहिर दुनो जघा देखैया घलो हे,  याने नौकरी वाले घलो हावे )   काम बूता मा बिपतियाये रथें. ओहू मन ल लागथे  के कभू बाहिर घूमे फिरे बर जाना चाही. अउ इही हा बने समाज के अउ परिवार संग जाए जाय त झन पूछ ओखर मजा ला. बीते साल ले हमन इही सब ला गुन के पिकनिक मनाये बर बाहिर जाए बर धरे हन. पउर साल राजिम चंपारन  गे रेहेन. घटा रानी तभो ले बांच गे रहिसे.  


शिवरीनारायण, मैनपाट,  अचानकमार जंगल, बार नवापारा अभ्यारण, अउ सब के मन मोहैया जगदलपुर के चित्रकूट, तीरथगढ  झरना अउ कई स्थान हे जी जिहां प्रकृति हा ये धरती ला कतेक सुग्घर सजाये हे अपन हरियाली से, अउ नाना प्रकार के आकृति वाले झरना, पहाड़ चट्टान, जंगल के जानवर अउ कई जीव जंतु से . अच्छा!  रद्दा घलो कम घुमावदार नई ये चाहे आप केसकाल घाटी जाव चाहे चिल्फी घाटी जाव. अइसे लगे  लगथे    जैसे हमन हिमाचल प्रदेश के घाटी माँ आ गे हन. ऐतिहासिक  अउ पौराणिक धार्मिक स्थान माँ शिवरीनारायण, रतनपुर, खैरागढ़, डोंगरगढ़, सकती, रायगढ़ , सारंगढ़, कवर्धा, भोरमदेव राजिम बेलासपुर के ही तालागांव मल्हार अउ कई ठन जघा हवे. एकदम से सुरता नई आवै. 


         तौ ए दारी कवर्धा, भोरम देव,  सरोदा दादर के चोटी, सूपखार जाए के प्रोग्राम बनिस. ओइसे ये सब स्थान के बारे माँ  हमर समाज के भूतपूर्व प्रदेश अध्यक्ष श्री अश्विनी केशरवानी जी हा शायद अपन ब्लॉग माँ जिक्र करे हे. अब प्रोग्राम  बन गे रहिसे. इतवार के दिन तय होय रहिसे. आधा ग्रुप ला हमर  घर  अउ आधा ला हमर एक झन अउ सक्रिय मयारू संगवारी घर  जुरियाना  रहिसे. शनीच्चर रात धुकपुकी लगे रहय काबर के  सवा सौ - डेढ़ सौ किलोमीटर के यात्रा करना रहै. बिहनिया ले मोटर ला आना रहिसे. कइसनो करके सात बजे रवाना होए के फिक्स होए रहिसे.  ३२ सीटर मोटर के बेवस्था करे रेहेन. 


भिनसरहा ले उठे बर परिस. हमर तो नींद इसने खुल गे. जेखर नींद नई खुले रहिसे ओमन  ल अलारम हा जगाईस. जल्दी जल्दी कोला बारी ले निपट के नहा धो के तैयार होएन.   जाड़ कम नई होय रहिसे. कुहरा छाये रहै. कइसनो करके जुरियायेन. हमर घर ले रवाना होए के बाद दूसर पॉइंट कादंबरी नगर दुरुग  गेन. उहें ले बांचे खोंचे मन सकलाएन.  लम्बा दूरी के जात्रा मा देखे बर जाए वाले जघा मा बनाये खाए के  टाइम नई रहै. तेखरे पाय के घर घर ले कुछु कांही बना बना के धर ले रेहेन.  गाड़ी रवाना होए के पहिली बने बने रेंगे गाड़ी हा, रद्द मा कांही अड़चन झन आवै कहिके देवी देवता ल संउर के गाड़ी के चक्का तरी नरियर मड़ा के गाड़ी ल रेंगाएन. चरचरा के नरियर फूटिस त खुरहौरी के परसाद बांटेन. हमन लईका पिचका मिला के ३०-३२ झन होगे रेहेन. एमा एक ठन बिसेस बात ये रहिसे के माई लोगन मन एके टाइप के लुगरा पहिर के जाबो कहिके डिसाइड करे रहिन अउ बने लाल लुगरा म ललियावत रहिन. गाड़ी रवाना होगे. इहाँ शुरू होगे माई लोगन के अन्ताक्षरी, गीत भजन, लईका मन घलो शामिल होगे. उही मन ल त एक एक लाइन सुरता रथे गाना के . येती हमन अपन गोठ बात म मगन रेहेन. इहाँ एक बात ख़ास हे के जेन जघा म हमन गेन वो हा कवर्धा (जिला बन गे हे कवर्धा) ले  25-30 किलोमीटर हवे. कवर्धा हा समझ लौ तीन स्थान; रायपुर, राजनंदगांव अउ दुरुग ले करीब करीब समान दूरी म हे,  ओही करीब 116-120 किलोमीटर. 


हमन दुरुग ले धमधा गंडई रोड होवत गेन. धमधा -गंडई रोड म ५-६ किलोमीटर दूर बिर्झापुर  गाँव हे. ओ हा आज कल हमर छत्तीसगढ़ के शिगनापुर  होगे हे. उहाँ शनि देव ल बइठारे हें. मोटरेच मा बैठे बैठे दुरिहा ले हाथ जोड़ के प्रणाम कर लेन.  दुरुग ले धमधा 35 किलोमीटर, धमधा ले कवर्धा करीब 80 किलोमीटर होही. पहिली गंडई पहुचथेंं उहाँ ले राजनंदगांव कवर्धा रोड जुड़ जाथे. गंडई ले करीब 35-40 किलोमीटर होही. अब मोटर मा लाल लुगरा  वाले मन अउ लईका मन के अन्ताक्षरी चलते रहिस. एती जेंट्स  मन के गोठ बात अलग.  कतका जुअर गंडई आगेन पता नई चलिस. उहाँ थोरकिन  सुस्ता  के चाय नाश्ता करेन. अउ करीब 10-30 बजे कवर्धा पहुच गेन. कवर्धा मा वापसी के समय के भोजन के बेवस्था एक भोजनालय मा करके आगू  बढेन.  


हमन पहिली पहाड़ी एरिया मा सरोदा दादरी पहाड़ मा जाबो कहिके सोचे रेहेन. उहाँ जाए बर चिल्फी घाटी होके जाय बर परथे. अउ चिल्फी या तो बोडला होके जाव या भोरमदेव जउन ल छत्तीसगढ़ के खजुराहो कथें उहाँ ले होके जाय बर परथे. त हमन भोरमदेव वाले रद्दा (रस्ता) ल चुनेन. ओ मेरन ले वोइसे बड़े गाड़ी जाय बर मना हे.  फेर भैया कानून काखर बर आय, जन साधारण बर. वी आई पी बर थोरे आय. त हमू मन अपन  वी आई पी वाले जुगुत भिड़ा के  अपन गाड़ी ल ओही रद्दा ले लेगेन. बहुतेच बढ़िया घुमावदार रस्ता हे जी. ऐसे लगे  

जइसे हमन शिमला डहर घूमत हन. मोला तो जब नैनीताल गे रेहेंव त उहाँ के कैंची टेम्पल वाले रद्दा के सुरता देवा दिस. त चिल्फी अउ भोरम देव के ये रद्दा के बीच मा एक ठन टॉवर सरिक मचान बनाये गे हे. उहाँ ले चढ़ के बने पहाड़ी एरिया के दर्शन करौ. ऊपर देखौ त बढ़िया सीन अउ तरी डहर झान्कौ त गिरिच जाबो तैसे लगई. कइसनो  होय मजा आगे. 


उहाँ चढ़ के देखौ चारों मुड़ा ल. निहारते च रहौ लगइया नयनाभिराम दृश्य हवै. त उहाँ चढ़ के फोटू खीचेन. उहाँ ले थोरकिन देरी मा चिल्फी बर चलेन. चिल्फी पहुचे के बाद सरोदा दादरी बर बड़ अन्दर मा गाड़ी ल घुसेरे के कोशिश करेन एक जघा मोटर सटक गे रहिसे त जम्मो जात्री मन उतर के फेर ओला ओ प्वाइंट मेरन लेगेन. उहाँ के एक बिसेसता बताइन के हमर देस के बीचो बीच ले गे कर्क रेखा ए जघा ले गुजरे हे. एक ठन टीला असन ओला पॉइंट बना के संकेत करे गे हे. ए जघा ल पर्यटन स्थल बनाये के सरकार के योजना ल रोके बर परत हे काबर के इहाँ साइंटिस्ट मन कुछ प्रयोग करेके सोचत हें. अइसे चर्चा चलत रहिसे. अब इहाँ घलो सुंदर भियू (दृश्य) देखे बर गोल ऊँच म गोल छतरी वाले मचान  बनाये हेंं उहाँ ले चारों मुड़ा के भियू (View) देखथें ।इहाँ तो पर्यटक मन के रुके के घलो बेवस्था करे बर रेस्ट हाउस जइसे बनाये के  प्लानिंग रहिस  हे जी.  


अब इहाँ चारो मुड़ा घुम फिर लेन. कुदरती सुन्दरता के आनंद लेन. फेर ये पापी पेट, अउ बिचारी जीभ जउन ल नाक हा आनी बानी के खाए के आइटम के सुगंध लेके  उकसावत रहिसे के अब झन अगोर, मांग खाए बर कहिके त ओकर उदिम करत   दरी उरी बिछाएन. माई लोगन मन अपन अपन घर ले लाये माल पानी ल मढ़ावत गइन. पेपर प्लेट ले गे रेहेन. पिऔ पानी अउ फेंकौ गिलास वाले गिलास जेला डिस्पोजेबल गिलास कथें. परसत गिन ललवाइन(लाली लुगरा वाले मन) मन अउ जम्मो झन चटकार चटकार के खात गेन.

 *हाँ एक बात के हमन कसम खा के आये रेहेन के पर्यटन स्थल मा गंदगी नई फैलाना हे. तेखर पाय के जम्मो पेपर प्लेट, गिलास अउ कांही वेस्टेज निकलिस ओला एक ठन बोरा मा भर के कचरा फेंके के जघा मा  ही फेंकेन*


अब इहाँ ले जी भर गे त सूपखार बर निकलेन उहाँ जादा घूम त नई पायेन काबर के जल्दी वो भोरमदेव चिल्फी वाले रद्दा हा बंद हो जाथे कहिके. अच्छा सूप खार मा जादा घूमन नई दे उहाँ के रेंजर मन. जंगली जानवर के खतरा हे कहिके. उहाँ के गेस्ट हाउस ल देखेके लाइक हे कहिके उहें थोरकिन देर बइठेन पानी पी के आजू बाजू के  सीन देख के भोरमदेव बर रवाना होगेन. सूपखार के गेस्ट हाउस देखौ: एखर बारे मा कहे जाथे के ये अंग्रेज जमाना के आय बिजली नई रहिस त झुलावन पंखा लगे रहिसे शायद अभी भी लगे हे. अउ ओखर घास फूस के छपरा दिखते हे. ओइसे अन्दर बहुत सुन्दर हे भरपूर सुविधा जनक अउ कहे जाय त आरामदायक (लक्झरियस) हे. 


भोरम देव के दरसन बर अब रवानगी करेन. बेरा बूड़त रहिसे. मड़वा  महल देखेच नई पायेन. हाँ त भोरम देव पहुँँचे के बाद मंदिर मा दरसन करेन अउ तारीफ के बात ये हे के सरकार हा इहाँ बने बगीचा बनवा दे हे. भोरम देव हा बहुत प्राचीन ऐताहिसक जघा आय. एखर इतिहास बर मैं अत्केच लिख सकथौं के ये हा नौवींं सदी से लेके चौदहवींं सदी तक शासन करे नागवंशी राजा मन के बनवाये मंदिर आय. राजा गोपाल देव के शासन काल मा राजा लक्ष्मण देव हा बनवाए रहिसे. ये मंदिर हा खजुराहो अउ कोणार्क मंदिर कस  हे. इहाँ के मंदिर के अउ सरकार द्वारा ए जघा ल बढ़ावा दे बर बनवाये गे बगीचा के सुन्दरता के घलो हमन फोटो ले हन ओहू ल देखौ; वैसे   संझा पांच साढ़े पांच बजे पहुंचे के बाद सीधा भोरमदेव मंदिर मेरन लगे  बजार ले ताजा ताजा सब्जी ल देख के अउ सस्ता मिलत  रहै ते पाय के पहिली दू किलो पताल  (टमाटर) लेंव मैं हा. फेर मंदिर मा जाके भगवान् शंकर के पूजा अर्चना करेन. नवा बने बगीचा के भी घूम घूम के आनंद लेन. का होथे लहुटत खानी के जर्नी मा लरघियाये (अलसाए) बरोबर लगे लागथे तभो ले हमन कस के मजा लेन पिकनिक के. पूरा कार्यक्रम जोरदार रहिस. देखते देखत कइसे बेरा बूड़ गे पता नई चलिस. रात हो गे रहिसे करीब सात बज गे रहिसे. अब दुरुग पँहुचे बर कम से कम तीन घंटा लगतिस. कहूं भोजन बेवस्था नई होय रहितिस त सबके घर गोसइनिन मन का सोचतिस. अतेक दुरिहा ले घूम के आव अउ फेर रान्धौ. भोनालय मा खाएन मोटर स्टैंड मा मारवाड़ी भोजनालय हे उँँहचे.  सब झन बइठ गेन मोटर मा अउ करीब ८   बजे रवाना होएन. दुरुग पँहुचत ले ग्यारा बज गे रात के. सबो झन अपन अपन घर पँहुचेन. हम तो नींद के देवी के शरण मा जल्दी  चल देन. 

                                 

      *ये पिकनिक खातिर हमर कहना हे के हमर राज मा घलो देखे के लाइक अब्बड़ अकन जघा हे. प्रचार प्रसार के आभाव मा ये मन ल बढ़ावा नई मिलत हे. भले बर्फीला जघा के मजा अलग होथे फेर ओतेक दुरिहा जाए बर एक सामान्य आदमी के खीसा (जेब) ल घलो देखे बर परथे. 

सूर्यकांत गुप्ता"कांत"

दुर्ग

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