Thursday 18 March 2021

रचनाकार अउ प्रकाशक-अरुण कुमार निगम

 *रचनाकार अउ प्रकाशक-अरुण कुमार निगम


 जैसे रक्षक के अर्थ रक्षा करइया, भक्षक के अर्थ भक्षण करइया होथे वइसने प्रकाशक के अर्थ प्रकाश करइया होना रहिस फेर प्रकाशक के अर्थ प्रकाशन करइया होथे, प्रकाश न करइया नइ। अंग्रेजी मा एला पब्लिशर कहे जाथे फेर आजकाल छपाई करइया (प्रिंटर) मन तको अपन आप ला प्रकाशक कहिथें अउ रचनाकार मन तको प्रिंटर मन ला प्रकाशक (पब्लिशर) मान लेथें। प्रिंटर के काम बिहाव, जनम दिन, गृह-प्रवेश आदि के निमंत्रण पत्र छापथें। पाम्पलेट अउ शोक-पत्र तको छापथें। प्रकाशक के काम किताब के पाण्डुलिपि के संपादन ले चालू होके किताब के प्रचार-प्रसार, विक्रय अउ वितरण तक होथे। एमन गुणवत्ता के ध्यान रखथें। प्रकाशक ला किताब के मुख-पृष्ठ, पन्ना के गुणवत्ता, छपाई के गुणवत्ता के अलावा प्रकाशित-सामग्री के गुणवत्ता बर सजग रहना पड़थे। इही गुणवत्ता के कारण प्रकाशक के ख्याति (गुडविल) बजार मा बनथे। इही ख्याति के कारण पाठक के मन मा विश्वास जनम लेथे। कुछ अच्छा प्रकाशक मन विमोचन के दायित्व के निर्वाह घलो करथें। किताब ला समीक्षा बर कई विद्वान तक भेजके समीक्षा करवाथें। ये सबके संग वोकर अंतिम उद्देश्य होथे लाभ कमाना। कई प्रकाशक मन ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाए के चक्कर मा गुणवत्ता के ख्याल नइ रखें तेपाय के बाजार मा उनकर गुडविल नइ बन पाए। इलाहाबाद के एक प्रकाशक अपन अनुभव के आधार मा बताए रहिस कि बजार मा कविता के किताब के मांग नइ रहे, गद्य साहित्य के मांग ज्यादा होथे। कुछ प्रकाशक मन गद्य के पाण्डुलिपि ला बिना पइसा लिए छापथें अउ बिक्री के अनुपात मा लेखक ला रॉयल्टी देथें। अपन प्रकाशन के बिक्री ला बढ़ाये बर कुछ प्रकाशक मन पुस्तक मेला के आयोजन या आयोजन मा सहभागिता तको करथें। कुछ प्रकाशक मन बहुत कम राशि मा किताब छापे के वचन देथें अउ रचनाकार ला वो राशि मा किताब के 10-20 प्रति दे देथें। इनकर लाभ कमाए के गणित मोला कभू समझ मा नइ आइस। एला कोनो प्रकाशके समझा सकथे। 


अब रचनाकार के अपेक्षा के बात करे जाए। ज्यादातर रचनाकार मन के अपेक्षा होथे कि प्रकाशक कम से कम लागत मा अच्छा से अच्छा अउ ज्यादा से ज्यादा प्रति छाप के देवँय। पन्ना अउ छपाई के गुणवत्ता बढ़िया देवँय। जल्दी से जल्दी छाप के देवँय। रचनाकार के मूलभूत अपेक्षा ज्यादा करके अतके बिंदु तक सीमित रहिथे। त्रुटिमुक्त पाण्डुलिपि तैयार करे के अउ प्रूफ रीडिंग के बारीक जाँच के जवाबदारी रचनाकार के होथे। डॉ. सुधीर शर्मा से मोर पहिली परिचय संजीव तिवारी जी के माध्यम से मोर पहिली अउ अभी तक के एकमात्र छत्तीसगढ़ी किताब "छन्द के छ" ला छापे के दौरान सन् 2015 मा होइस। ये किताब के मात्र 200 प्रति, सर्वप्रिय प्रकाशन, दिल्ली ले छपे रहिस। किताब मा नाम भले दिल्ली के हवय फेर ये रायपुर छत्तीसगढ़ मा छपे रहिस। आज मोर तीर ये किताब के मात्र एक प्रति बाँचे हे। शायद प्रकाशक के पास भी अब ये किताब के एको प्रति विक्रय बर नइ बाँचे होही। पर साल के पुस्तक मेला मा वैभव प्रकाशन के स्टॉल मा ये किताब (छन्द के छ) उपलब्ध नइ रहिस। मोर तीर जो एकमात्र प्रति हे वोकर बाइंडिंग अउ कलेवर अतिक शानदार हालत मा हवय कि ऐसे लागथे ये अभी अभी प्रेस से निकल के आइस हे। ये किताब के मांग आज भी बहुत ज्यादा हे फेर किताब के उपलब्धता नइये। छत्तीसगढ़ के प्रकाशक डॉ. सुधीर शर्मा द्वारा अगस्त 2015 मा प्रकाशित मोर एकमात्र छत्तीसगढ़ी किताब "छन्द के छ" मई 2016 मा छत्तीसगढ़ी भाषा ला समृद्ध करे के एक आंदोलन मा परिवर्तित होंगे अउ आज तक सुचारू रूप से चलत हे। "छन्द के छ" के किताब मन न मोर तीर हे अउ न प्रकाशक के पास तभो ले ऑनलाइन गुरुकुल मा एला छत्तीसगढ़ के कई नवोदित रचनाकार मन पढ़त हें, पढ़ात हें, सीखत हें, सिखावत हें अउ छत्तीसगढ़ी भाषा ला समृद्ध करत हें। मँय ये सोचथंव कि कोनो-कोनो किताब के लोकप्रियता मा प्रकाशक ले यश घलो महत्वपूर्ण भूमिका रखथे। मोर निजी अनुभव मा मँय अपन प्रकाशक के सेवा अउ काम ले सोला आना संतुष्ट रहे हँव अउ अगर भविष्य मा एकाध किताब छपवाए के महूरत बनगे तो मोर बर सर्वप्रिय प्रकाशन / वैभव प्रकाशन जिंदाबाद रही। 


*अरुण कुमार निगम*

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