Saturday, 8 March 2025

लोभतंत्र

 *" *लोभतंत्र**"

         लेड़गा चिल्लात राहय लोभतंत्र की जय, लोभतंत्र की जय।तब मे कहेव लेड़गा ल लोभतंत्र नी काहय रे लेड़गा ओला लोकतंत्र कहिथे।लेड़गा पूछथे ये लोकतंत्र काय होथे भईया?तब मे कहेव मनखे (जनता)ल अपन गांव के पंच, सरपंच, विधायक, सांसद,अपन वोट (मत)देके, बिना कोनों लालच के अपन मन ले चुने के हक रहिथे तेला लोकतंत्र कहिथे। लोकतंत्र दू शब्द मिलके बने हे रे लेड़गा। लोक+तंत्र लोक के अरथ (मतलब)जनता अऊ तंत्र के अरथ शासन।ऐमा मनखे मन समाजिक, राजनैतिक, धार्मिक रुप ले उछंद ( स्वतंत्रत)रहिथे। 

             लेड़गा कथे तहू का गोठियाथस भईया बिगर लालच के का होही।"ददा लगे न भईया सबले बड़े रूपईया"। इहां तो हम देखत हन वारड के पंच असन हर हजारों रूपिया उड़ा देवत हे त सरपंच असन के का पूछना। चुनाव जीते बर सब बारा उदिम लगाथे। कोनो लुगरा,कंबल, कोनो पईसा , कोनो टिफिन, कोनो रसगुल्ला, कोनो बिछिया,सांटी,बांटथे।अईसे लागथे जईसे देवारी तिहार आगे।अऊ बोनस मिलत हे।अऊ आने मनखे मन बर आने -आने बेवस्था घलो रहिथे।ये आने आने बेवस्था के का मतलब हे लेड़गा?तहूं ह ग भईया मंद महुआ ताय जी।ऐकरे ले तो चुनाव गदबदाथे।ये चुनाव ल बछराहा (सलाना) तिहार कर देतिस त कतिक मजा आतिस?

कोनो लुगरा बांटत हे

कोनो कंबल बांटत हे 

कोनो   बांटत        हे 

शोले     पारा - पारा,

चखना   बर    हाबे

मिच्चर          खारा।

            ते सही काहत हस रे लेड़गा "ददा लगे न भईया सबले बड़े रूपईया"।आज बड़े -बड़े चुनाव म घलो ऐकरे चलन हे। न तो कोन्हो पारटी (दल) कारखाना खोले के गोठ करथे,न काम बुता, न पढ़ें -लिखे के। सबके ऐके धंधा लालच देके कुरसी पाना (हथियाना)। अभी के चुनाव म बोली पच्चीस पार हो गे। "अब के बार पच्चीस पार "। मनखे मन ल फोकट के बिजली,पानी, चांऊंर, के फिकर हे, देश के नई हे रे लेड़गा।

     अभी छत्तीसगढ़ म एक झन सरपंच के घोषणा पत्र म,बराती गाड़ी फोकट,छठ्ठी म पांच किलो शक्कर आधा किलो चायपत्ती फोकट,दसनाहन म दू कट्टा चांऊर फोकट, धार्मिक कामकारज म माईक टेंट फोकट,

कोन जनी रे लेड़गा ओ गांव के अऊ सरपंच के काय होही? में तो सोचता(गुनत)रहेव मिही हर लेड़गा हंव भईया।वईसे ते नारा सही लगात रहेस रे लेड़गा "लोभतंत्र की जय "।


लालची मतदाता 

ईमानदार नेता के

खोज करही,अऊ

हमर लईका मन इही 

विषे म शोध करही।

        लेड़गा पूछथे भईया ये शिक्षित, कर्मठ, जुझारू, मिलनसार, ईमानदार मन के जनम पांचे साल म कईसे होथे।अऊ घोड़ा हर कांदी संग संगी बदही त खाही काला? ये मन फूटू कस आय रे लेड़गा सबो मेड़ पार म नई फूटे,समे देख के फूटथे। कोनो डोहरु फूटू,कोनो छत्ता, कोनो पेरा फूटू कस फूटथे। फेर सबो हर मिठाथे।

ऐमन दुवारी म हाथ जोड़ के कहिथे देखे रहू भईया त अइसे लागथे जईसे करन सुवा बोलत हे।अब सुन रे लेड़गा एक ठन सुने कहानी सुनात हंव।

        एक झन राजा भेड़ मन ले वादा करिस चुनाव जीतहू ताहने सबो झन ल एक -एक ठन कंबल देहूं। भेड़ के दल खुशी ले झूम उठिस। फेर एक ठन मेमना ह अपन महतारी ल पूछ परिस,राजा हर हमर कंबल बर ऊन कहां ले लाही? भेड़ के दल मन अक बका गे।(सन्नाटा पसरगे)


    *फकीर प्रसाद साहू* 

         *फक्कड़*

          *सुरगी*🙏

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