Sunday 9 June 2024

रूपिया के दुख

 रूपिया के दुख


पहिली घाँव रूपिया ला रोवत देखिन लोगन । जंगल म आगी लगे जइसे खबर बगरगे ।   कतको झिन ला विश्वास नइ होइस । सचाई जाने बर कतको मनखे बेचेन होए लागिन । सरी दुनिया ला अपन तमाशा अउ करतब ले रोवइया ल ....उदुप ले रोवत सुनना अउ देखना अचरज अउ सुकुरदुम होए के विषय रिहिस । जम्मो सोंचे लागिन काबर रोवत होही रूपिया हा ....? काए बिपत्ती परे हे ओकर उप्पर । सकलागे उही जगा म कतको मनखे । रूपिया ला मुहुँ तोपे देख … पूछे लागिन । एक झिन किहिस - काए पिरावत हे तेमा .. डेंहक डेंहक के रोवथस ? रूपिया रोतेच रहय । बड़ किरोली के पाछू तैयार होइस बताए बर । रूपिया हा केहे लागिस - मोला गिर गे .... गिर गे ..... कहि के घेरी बेरी बदनाम करथव अउ पूछे ला घला आथव ? तूमन ला थोरको लाज शरम नइये ? जम्मो सकलाये मनखे मन हाँसिन अऊ केहे लागिन - हमन तोर संग कहीं कुछु होगिस होही सोंच के आए हाबन । गिरथस तेला.. गिर गे केहे म.. काए लाज ? ऐमे रोए के का बात हे । रूपिया किथे- उहीच ल बतावत हँव भई । मेंहा गिरत रहिथँव फेर उठत घला रहिथँव का ...... ? आज तुँहरे संगवारी हा गोठ गोठ में मोला ..... नेता कस गिर गे रूपिया हा ...... कहि के बदनाम कर दिस । इही बात हा मोर छाती म बाण मारे कस लागिस ।ओकरे पीरा के मारे बेचेन हो के रोवत हँव ।

एक झिन किथे -बने तो किहिस । तेंहा वाजिम म नेता कस गिरथस ..... ऐमे गलत कहींच निये । रूपिया हा अउ गोहार पार के दंड पुकार के रोए लागिस । लोगन मन ब‌ड़ समझइस । थोरकिन बेरा म शांत होए के पाछू भावुक होके रूपिया हा केहे लागिस - मोला चाहे चोट्टा मन कस गिरे समझ लौ ..... चाहे बईमान कस .... चाहे बईजात कस .... चाहे झुठल्ला धोखाबाज लबरा कस गिरे समझ लौ .... फेर नेता कस गिरे झिन समझौ । चोट्टा कभू न कभू पछताथे । बईमान ल ओकर हिरदे कभू न कभू धिक्कारथे। बईजात सतसंगत के असर म कभू न कभू सुधरीच जथे। अउ झुठल्ला धोखाबाज लबरा मनखे .. सजा पाके फेर सोज रद्दा मरेंगे ल धर लेथे । फेर कोन जनी नेता ला कते माटी म गढ़हे हे भगवान घला । न वोहा कभू पछताए । न होकर हिरदे ओला कभू धिक्कारे । न कभू सतसंग के असर म सुधरे । न सजा पाके लबारी मरई अउ धोखा देवई बंद करय । 

 रूपिया हा मनखे मन ला अपन जान के बताये लागिस - मेंहा गिरथों जरूर फेर उठ घला जथँव । अउ ये नेता मन केवल गिरथें .. उठे निही । अइसन मन संग मोला संघेरहू त मोर हिरदे म कतका छेदा होए होही अउ ओहा कतका पिरावत होही तेला मिही जानहूँ । इही क्लेश मोला रोवावत हे । एक ठिन बात अऊ बतावँव ...... मेंहा गिरँव निही बलकी गिराए जाथँव । तभो ले .. गिरत गिरत घला .. मोला गिरवइया के भला घला कर देथँव। जबकि नेता मन अपन ले गिरथें अउ जतका घाँव गिरथें.... अपनेच सुख बर गिरथें अऊ दूसर ल दुख पहुँचाए बर गिरथें । जेमन सत्ता के खुरसी ऊप्पर गिरथें तेमन देश ला फोंगला करथें । जेमन धरम के खुरसी म गिरथें तेमन जनता के आस्था ल मुसेट के मार डारथें ।जेमन समाज के खुरसी म गिरथें तेमन भई भई ला लड़ाथें घर घर ल टोरथें । में कोन्हो ला गिरावँव निही हमेशा उठाथँव .... खड़ा करथँव । फेर येमन कोन्हो ला उठाए निही केवल उठाए के नाटक करथें । एमन कोन्हो ला खड़ा होवन नइ दे । अउ उठाथें केवल गिराए के मजा ले खातिर । एक ठिन बात अउ .... में गिरथँव त बड़ मुश्किल ले चलथँव ...... फेर ये मन जतका गिरथें ततके जादा चलथें ।  

एक झिन किथे - अइसन म तोला खुश होना चाहि के तोर तुलना अतका चलने वाला मनखे संग होवत हे । उहू बड़े ..... तहूँ बड़े । रूपिया किथे - निही भई में बड़े नोहों । में छोटे ले छोटे मनखे के पछीना के गरमी ले उपजे हँव। अउ येमन एसी कूलर के ठंडा म जनम धरे मनखे आए । एक झिन मनखे हा फेर चुट ले मारिस - फेर तिहीं ह येमन ल अउ बड़े बनाए हाबस जी । रूपिया किथे- में कहाँ बड़े बनाए हँव । एमन ला तुँहर वोट के ताकत बड़े बनइस । एक झिन सुजान मनखे किथे - फेर ये वोट तोरे हिम्मत ले खरीदे अऊ बेंचाथे यार । रूपिया बड़ दायसी ले केहे लागिस -ये सोलह आना सच आए । मोरे ताकत अउ हिम्मत ले येमन वोट ल खरीदथें अऊ खुरसी पाके अपन स्वार्थ पूरा करथें । फेर यहू गोठ ओतके सच आए के .. बेंचाये अऊ बिसाये के बूता ल येमन अपन संग मोला गिरा के करथें । जे खुद नइ गिर सकय अऊ मोला गिरा नइ सकय अऊ मोला गिरत नइ देख सकय ...... वो मनखे वोट नइ खरीद पाय अउ राज नइ कर सकय । 

थोकिन पानी घुटकके लम्भा साँस भरत रूपिया केहे लागिस - एक आखिरी बात अऊ बतावत हँव ....... मेंहा जेकर संग रेंगथँव या चलथँव तेकर उद्धार कर देथँव जबकि ये मन जेकर संग रेंगथे या चलथे तेकरे गोड़ ल टोर के खोरवा लंगड़ा बना देथे । में जेकर पीछू रहिथँव या परथँव तेला मंडल अऊ धनवान बना देथँव अउ एमन जेकर पीछू परथें तेकर दुर्दशा निश्चित हे .... वोला स्वर्गवासी बनाके दम लेथें । अइसन संग मोला काबर संघेरथव ?  ये हा न्याय आए का ?

रूपिया बड़ गोठिया पारिस । दूसर दिन समाचार म छपगे । नेता मन भड़कगे । बइठका सकलागे । निंदा प्रस्ताव पास होगे । रूपिया के बहिष्कार कर दिन । थोरकुन दिन म ... ये रूपिया नंदागे अउ चलन ले बाहिर होगे । एकर जगा करिया रूपिया ( काला धन ) प्रचलन म आगे ।

      हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

नौतप्पा म धरती नइ तिपय त का‌ होथे ?

 नौतप्पा म धरती नइ तिपय त का‌ होथे ?


दू दिन मूसा कातरा, दू दिन टिड्ढी ताव।

दू दिन पाछू जल हरय, दू विषधर दू वाव।।

माने नौटप्पा म पहिली दू दिन तक धरती म गरमी (लू) नइ चलय, त धरती म अब्बड़ मुसुवा अउ फसल ल नुकसान करइया कीरा- मकोरा (कातरा) बाड़ जथे। अगला दू दिन तक गरमी नइ परय, त टिड्ढी, फांफा अउ पतंगा मन के अंडा ह नाश नइ होवय अउ बुखार लवइया जीवाणु- कीटाणु मन नइ मरय। अगला दू दिन तक गरमी नइ होवय, त सांप- बिच्छी,  जहरीला जीव-जंतु मन अब्बड़ पनपथे अउ ककरो काबू म नइ आवय। अगला दू दिन तक गरमी नइ होय ले अँधउर गरेर आथे, पानी टिपकथे। जेकर ले अवइया बरस म दुकाल परे के संभावना रइथे। 


अशोक धीवर "जलक्षत्री"

( पेंटर, मूर्तिकार अउ साहित्यकार /छंद साधक )

तुलसी (तिल्दा-नेवरा)

परलोभन पत्र"

 "परलोभन पत्र"

         कतनो बेरा लेड़गा ल लेड़गा कहना घलो उटपुटांग लगथे।काबर कि लेड़गा दूं किसम के होथे, एक दिमाग ले दूसर नाम के।हमी ल हमर काकी मन कोंदा काहय भले हमर मुहूं आज ले चलत हे।कतको बेरा लेड़गा मन के हाजिर जवाबी देवई बड़ मुश्किल रहिथे। दिमाग ले लेड़गा पूछ परिस आज आजादी के अमृत महोत्सव मनाय के बाद घलो नेता मन सड़क, बिजली, पानी बर चुनाव लड़त हे भईया ।इही ह त ऊंखर बुता (धंधा) आय रे लेड़गा।अऊ ये हर ऊंखर जनम सिद्ध अधिकार आय।अऊ विकास के डोंगा हर ऊपरे ऊपर तंउरथे ।कतरो जगा सड़क घलो बनथे फेर चांटी के रेंगे ले उखड़ जथे त बिचारा मन के का दोष हाबे,वो तो चांटी ल चाही न नवा सड़क ले दूरिहा घूंच के रेंगय।हमन तो इक्कीसवीं सदी म हन रे लेड़गा इंजिनियर मन डामर गिट्टी के मात्रा ल पूरा 'क्वालिटी 'के संग नाप तउल के डलवाथे,एको कन करिया आईल कस नी लगे।लईका राहन त डामर गिट्टी चप्पल म लटके त काड़ी म कोचके म कतिक मजा आय। 

         बिजली पानी के घलो उही किस्सा आय रेंगत हे पैदल यात्री कस।यहू मन हिता (रुक)जथे रद्दा म रेंगत- रेंगत डोंगरगढ़ के उड़नखटोला कस।ये मन ल जनता के दुख पीरा देखे नइ जाय।थोकिन गरेरा म घलो बिजली आंखी मुंद लेथे।कहईया मन तो काहत रहिथे बिजली के बिल हाबे हाफ युनिट के पईसा ल बड़हादे रद्दा हाबे साफ।

   लेड़गा काहय सुने हंव नेता मन मन प्रेम -पत्र (पाती)घलो लिखथे? नही रे लेड़गा वो हर प्रेम पत्र नो आय, वो हर "परलोभन पत्र "आय।जईसे कुकर मन ल रोटी के कुटका फेंक के लालच देखाथन।समे के संगे संग इंखरो नाम मन बदलत रहिथे।पहिली येला घोषणा पत्र काहय अब, संकल्प पत्र, न्याय पत्र, गारंटी पत्र होंगे।यहू ल रोजगार गारंटी मत समझबे।जेमा चार इंच कोड़ अऊ दांत ल निपोर।ये मन जस जस चुनाव आथे जनता ल ललचाथे।ये मन तो अईसे गोठियाथे जईसे बवासीर वाले डाक्टर मन परची म छपवाय रहिथे "बवासीर का ईलाज किया जाता है गारंटी के साथ "-वैधराज फलाना -फलाना।

          प्रेम- पत्र पहिली के जमाना म चले रे लेड़गा। अब तो मोबाइल के आय वहू नंदागे।

मोर प्रिय फलानी तै कब आबे, तोर सुरता म सुररत हंव। 'शोले' हर मोर एक ठन सहारा हे।

        तोर फलाना।

       समाचार म पढ़ें रेहेंव रे लेड़गा कोनो काहत हे हमर सरकार आही त गरिबी ल एक झटका म दूर कर देबो तो का अतिक दिन ले राम मंदिर के उद्घाटन ल देखत रिहिस?अतिक अकन रोजगार देबो ताहन बांकी मन भजिया तलही?वईसे चाय वाला मन घलो जब्बर परसिध (फेमस)हे।चाहे वो डाली चाय वाला राहय,या एम• बी •ए चाय वाला।इही चाय के दम म देश बिदेश घुमत हे। वईसे चाय बेचना कोनो गिनहा बुता ( काम )नो आय।ऐकर बर कोनो डिगरी घलो नी लगे।"हर्रा लगे न फिटकरी रंग लगे चोखा "।

          त कईसे बर बिहाव नी करते रे लेड़गा?ये गारंटी के साढ़े साते सनी चलत हे भईया बाई नी मिले। अब उंखरो मन के भाव बाढ़ गेहे।किसम -किसम योजना म महिना पुट पईसा मिलत हे त भाव बढ़नच हे। कोनो काहत हे हजार देबो, कोनो काहत हे लाख देबो तो भाव बाढ़नाच हे। सरकार ल बनाय म इंकरे मन के हाथ बात हे।कहिथे न "नारी ले दुनियां हारी "।हमू ल मिलतिस त कमाय धमाय ल नी लागतिस।कभू के दिन ले यहू हर जिव के काल झन बन जाय।अइसने रही त कभू के दिन ले मरद जात मन ल झाड़ू पोंछा,चौंका बरतन करे के सौभाग्य घलो मिल सकत हे।

              फकीर प्रसाद साहू 

                "फक्कड़ "

               ग्राम -सुरगी

कोरा म लइका ,गाँव भर ढिंढोंरा

 कोरा म लइका ,गाँव भर ढिंढोंरा 

मंडल कहत लागे । बड़ अकन खेती । बड़े जिनीस बारी बखरी । कतको झिन कमइया । एके झिन नोनी लछवंतिन । दिखम म बड़ खबसूरत । फेर एक ठिन काम के न बूता के । बड़ जांगरचोट्टी ... दिन भर छलरिया मारत घूमत रहय । उही गाँव म रामू नाव के मनखे रहय । मंडल घर के सबर दिन के नौकर , ओकरो एके झिन बेटा मंगलू । बड़ होनहार । जे करा के भुंइया ल कमा देतिस , सोना उपजतिस । अतका मेहनती के , परिया परे टिकली भाँठा तको ल , उपजाऊ बना डरे रहय । ओकर हाथ में कोन जनि का जादू रहय के , जे काम ओकर हाथ म आय , चुटकी म सिरा जाय । जतका जमगरहा कमइया , ततका आदत बेवहार म सुघ्घर । तिर तखार तक म ओकर बड़ नाव रहय ।

लछवंतिन सग्यान होगिस । ठँई के गाँव म रहवइया गौंटिया के बेटा बर , अपन बेटी के बिहाव के प्रस्ताव रखे के सोंचिस । गाँव के पटिला हा मंडल ल समाझावत केहे लगिस - रामू के लइका मंगलू ल छोंडके , तेंहा काबर दूसर जगा खोजे बर जावत हस । मोर नोनी सग्यान होतिस ते , दूसर डहर झाँकतेंव तको निही । मंडलिन किथे – अई कमइया खवइया नौकर घर देबो तेमा हो , अपन लइका ल । दुनिया म अकाल परगे हे का .. ? फूले फूल म रहवइया , कइसे रही बम्बरी कांटा कस जगा म .. । भले मोर बेटी जिनगी भर कुंआरी रहि जही , फेर नि दँव ओकर घर । 

गौंटिया के बड़े बेटा संग रिश्ता के चलत बात , सुन डरिस लछवंतिन । ओकर मन तो मंगलू म बसे रहय । सगा आय के तैय्यारी म किसिम किसिम के खाये पिये के समान चुरे लागिस घर म । उचित मुहूरत देख रिश्ता पक्का करे बर गौंटिया हा बेटा संग पहुँचगे । लछवंतिन हा पानी धरके नि निकलिस  । मंडल केहे लगिस– लजावत हे नोनी हा । खाये बर बइठगे सगा मन । परोसे बर हाँक पारिस । लछवंतिन तभो नि निकलिस । कुरिया म जाके देखिन, करम फाटगे ....... । लछवंतिन हा खिड़की डहर ले कूद के भागगे रहय । मुंधियार होवत ले गाँव भर पता चलगे । रामू के बेटा मंगलू अऊ लछवंतिन के भगई ला सब जान डरीन । रामू के कुछ नि बिगड़िस ... मंडल के नाक कटागे । 

रामू कुछुच नि बता सकिस । रामू हा ओकर घर के बहुत विश्वासपात्र नौकर रिहिस । ननपन ले कमावत रिहिस । बाहिर भितर सबो डहर बेरोकटोक ओकर आना जाना रिहिस । घटना के पाछू बपरा हा मंडल के घर आवय जरूर फेर कोई ओकर संग न गोठियाय न बताय ... । चार दिन अइस .. कोई ओकर कोति निहारिन निहि । बिहान दिन ले रामू घला ओकर घर जवई बंद कर दिस । उही दिन मंडलिन के गहना गूठा चोरी होगे । बिन खोजे - परखे , चोरी के इलजाम रामू के ऊप्पर लगा दिन । रामू के घर खाना तलासी करे गिस .. पइन कुछु निहि तभो ले ओला चोट्टा अस कहिके गाँव म भारी डांड़ बोड़ी लगा दिन । मंडल घर के बूता छूटगे । बीमार परगे । बछर नहाकगे । खेती किसानी के दिन लकठियागे । ददा के बीमारी अऊ अपन माटी के प्रेम हा मंगलू ल परिवार सुद्धा ,गाँव लहुँटे बर मजबूर कर दिस । बहू बेटा अऊ नाती पाके खुश रामू हा , मंडल करा , मिले आये के संदेशा भेजिस । मंडल तरमरागे । फेर महतारी के मन कहाँ माढ़ही ..। साग बेचइया ल , दही मही वाली ल , कभू येला , कभू वोला अपन बेटी अऊ नाती के हाल पूछय । कतका बेर , कइसेच भेंट लेतेंव चंडालिन ल .. जी बड़ चुटपुटावय । 

लछवंतिन के मन घला , दई ददा संग मिले बर उदाली लेवत रहय । फेर पहिली के जमाना म जब तक मइके के लेनहार नि आवय , बेटी मइके म पाँव नि दय । तीजा लकठियागे ...। गाँव भर के बेटी बहिनी मन मइके पहुँचे लागिन । दई कलपत हे..... । ददा नी पसीजिस । कलपत दई बिमार परगे । रोवा राही परगे । ददा मजबूर । बेटी ल लेहे जाये के सुनतेच साठ मंडलिन खटिया ले उठ के बइठगे । ठेठरी खुरमी के बैना जोर डरीस । लाजे काने , मंडल पहुँचगे रामू घर ..।  

दई बेटी के मिलन होगे । कतका खवा डरतीस , कतका जोर डरतिस , नाती बर का कर डरतिस , तइसे होगे रहय जी हा । नाती मड़ियाये लइक होगे हे । पानी बरसत हे । इड़हर साग रांधे बर दार फिजो डरीस , पहटनिन दार पीस के चल दिस । महतारी बेटी गोठियावत , गोरसी तापत , कोचई पान के अगोरा म बइठे रहय । बेरा ढरत देख मंडलिन खुदे बखरी कोती रेंग दिस पान बर । 

अई बने बने या काकी ......., बाहिर म कतको तिजिहारिन मिलगे । चरबत्ता म समे नहाकगे , दिया बाती के बेरा होगे । लकर धकर पान टोर के घर पहुँचिस, पाछू पाछू मंडल घला घर आगे । लछवंतिन आगी तापत बइठे बइठे उंघावत रहय , लइका कोरा ले गायब ..... । लछवंतिन ल उठा के पूछे ल छोंड़ , लइका के खोज शुरू होगे । गाँव भर खोजा खोज मातगे । 

गाँव म खोजत , रामू घर पहुँचगे । लइका ल चोरा के लाने होही कहिके , ओला गारी बखाना कर डरिन । एती घर म , नोनी उचिस । महतारी ला घर म नइ पाके  संझा के दिया बार , दिया देखाये बर , खोली म  निंगिस , फूला तिर भुँइया हा गिल्ला लागिस । निहरके देखिस , लइका पेटी के सेंध म सुते रहय । धरके बाहिर निकल गिस , अऊ दई ल अगोरत गौरा चौंरा म बइठ , लइका ल गोदी म धरके खेलाये लागिस । मंडल घर गाँव भर के मनखे सकलाए लगिन , ओमन देखथे , लइका लछवंतिन के गोदी म खेलत रहय । लछवंतिन बताइस के , पेटी के सेंध म खुसरे अपन हाथ म एदे पोटली ल किड़किड़ ले धरे सुते रिहिस , येला हेर के नी देखे हँव काये तेला .....। पोटली ला तुरते हेर के देखिन ... सोन चांदी के गहना गूठा ... । सबो मुहुँ ला फार दिन । लछवंतिन के दई किथे - अई हाय ... कते करा पाये बइरी तेंहा एला । येहा उही गहना गूठा आये बेटी , जेकर चोरी के इलजाम म , तोर ससुर , बइसका म अपमानित होये रिहिस । गाँव के पटेल भड़कगे , ओकर ले रेहे नी गिस -  तूमन अपन तिर म खोजव निही , बाहिरे बाहिर टमड़थव । तुँहर घरे म सबो मिल जथे । फोकटे फोकट गाँव भर ढिंढोरा पीट डरथव । जेवर तुँहरे घर म हे अऊ लइका घला तुँहरे कोरा म ।  तुँहरे कोरा म खेले बाढ़े अतेक सुघ्घर लइका मंगलू ला  घला अपना नि सकेव ... बाहिर म दमाद खोजे बर निकलेव ... ओकर काय हस्र होइस ... बदनामी के सिवा काय पायेव ... ? पटेल के बात के समर्थन म कतको हुँकारू भरागे । रामू निर्दोष साबित होगे । मंडल अपन गलती सँवासिस , दमाद ल अपना डरिस , रामू संग समधी जोहार डरिस । कुछ महिना म .. मंगलू हा मंडल के बेटा के भूमिका म आगे .. अब ओहा गाँव के नावा मंडल होगे । बिगन खोजे जाने सुने , बाहिरे बाहिर उपरे उपर टमड़इया मनखे बर पटिला के गोठ “ कोरा म लइका , गाँव भर ढिंढोरा “ हाना बनगे । 

  हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

दुदपिया के मौज-मस्ती अउ निबंध महेंद्र बघेल

 दुदपिया के मौज-मस्ती अउ निबंध 

                          महेंद्र बघेल 


पढ़इया लइका मन बर परीक्षा म निबंध लिखे के का महत्व होथे वोला उही ह अनुभो कर सकथे जेन ह कभू निबंध लिखे के मजा लूट सके होही। अब इहाँ मजा लूटे के मतलब दही लूटे कस हड़िया फोड़ इन्ज्वाय करे ले बिल्कुल नइहे, भलुक बिना नकल-चकल के निबंध लिखे के पढ़ंतापन ले हे। एक तरह ले यहू कहे जा सकथे कि जनमानस म निबंध के कलेवर ह भाषा के मान-सम्मान ल बढ़ाय के काम करथे। येला पाठ्यक्रम बनइया अउ पेपर छटइया विद्वान मन के महान कृपा कहे म कोनो हरज घलव नइहे। काबर कि इँखरे परसादे निबंध अउ वोकर महापरसाद आवेदनपत्र ह गिरे-परे-हपटे अउ डगमगडोल करत लइका (विद्यार्थी) मन के बैतरनी पार लगाय के काम करथे। सहीच म ये दूनो के नइ रहे ले  कतको विद्यार्थी मन पढ़त-पढ़त बूढ़ा जतिन फेर भासा म पास नी हो पातिन।अइसन बीपीएल वाले मन ल पुलू ढकेले बर निबंध के दस अउ आवेदन के छे नंबर ल न्याय के गारंटी समझ..।भाषा विषय के निबंध संग दस अउ बारा नंबर के गहरा नाता हवय। हमर जानत म निबंध ह येकर ले कभू पार नी पा सके हे अउ भविष्य म कोनो गुंजाइश घलव नी दिखे।

         जती देखबे तती देश के चारो मूड़ा म निबंध के जलवाच-जलवा दिखत हे। ये निबंध ह परीक्षा अउ साहित्य जगत म अपन उपस्थिति दरज कराके ग्लोबल तरीका ले न्यायपालिका म घूसरत एकतरफा धाक जमाना शुरू कर देहे।कभू-कभू तो अइसे लगथे कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के जज साहेब ह निबंध म नहावत-अचोवत होही का..।तभे तो वोकर मगज म देवता खेले बरोबर निबंध लिखवाय के भूत सवार होगे हे। दुनिया जहान ह जानथे कि तब ले लेके अब तक परीक्षा म निबंध के दस नंबरी प्रश्न ल हल करे के जरूरत पड़थे। फेर आजकल निबंध के सेती दू-दी झन ल एक्सीडेंट करइया रईस के बिगड़े बेवड़ा औलाद ऊपर रहम करई ह समझ ले बाहिर हे। सेटिंग के कमाल अइसे कि जज साहेब ह जजमेंट देय बर न्यायपालिका म अपन बायोलॉजिकल उपस्थिति ल नकारात अवतारी महामानव बरोबर एवमस्तु कहिके निबंध ले धांसू अनुबंध कर डरिस।

         एक समय अइसे घलव रहिस जब हमर पड़ोसी गांव के भुखऊ ल खीरा चोरी के आरोप म हप्ता भर ले अंदर रहे के संग साल भर ले पेशी खटना पड़िस। रद्दा चलत धनवा के साइकिल म मनवा के कुकरी ह रेताके आंखी ल नटेर दिस।कुकरी के अनचाहे मर्डर के आरोप में धनवा ऊपर अइसे धारा लगिस कि धारे-धार बोहागे अउ जुर्माना म वोकर कनिहा-कुबर ह टेड़गागे।पता नइ खीरा अउ कुकरी के केस म फैसला देवइया जज साहेब मन ह कोदो देके पढ़े रहिन ते का देके पढ़े रहिन उही मन जाने। फेर ये मन भुखऊ अउ धनवा ले,न तो नानकुन निबंध लिखवा सकिन न आवेदन पत्र..। इहाँ ले लेके उहाँ तक हमर देश म भूखऊ अउ धनवा जइसे जुच्छा जेब वाले ठनठन गोपाल मन ल आज घलव पेशी म रगड़ावत अउ पीसावत अपन आँखी म देख सकथो।

            ये तो पुणे जैसे शहर म जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के किस्मत आय जिहाँ ऊपर वाले के कृपा ले निबंध ह उहाँ के जज जैसे अवतारी पुरुष के झोली म आके गिर गे।नइते आदरणीय निबंध जी ह उही परीक्षा के पेपर म आठ-दस नंबर के भरोसा म अपन ऐसी तैसी करवात रहितिस।अवयस्क अउ रसूख के नाम म नाच नचावत बारवीं पास मंदहा रईसजादा ल निबंध के आड़ म बरी करे के फैसला ह तीसरा अउ चौथा खंभा के खाल्हे म खलबली मचा के रख देहे।मोटहा भासा म कहे जाय तो पढ़इया लइका मन बर निबंध के मतलब गाय, मेरी पाठशाला, विज्ञान के चमत्कार, राष्ट्रीय पर्व ,महापुरुष,होली अउ दीवाली जैसे शीर्षक ले भला हवय। फेर भुक्तभोगी भुखऊ अउ धनवा मन अपन अंतस के पीरा ल कोन ल समझाय..। तीन सौ शब्द म निबंध लिखे के खबर ल जब ले सुने हे तब ले येमन मनचलहा कस होगे हें। कुछु-कहीं गोठियाय के उदीम करथें फेर उनकर मन के बात ह मने म चभक जथे।

             संविधान म कानून के धारा ह सब बर एकसमान होथे। वो अलग बात आय कि ये धारा के प्रभारी मन नोट के बंडल के आगू म धारा के दिशा ला बदले बर विशेष रुचि लेवत अपन टुच्चईपन के खुलेआम प्रदर्शन कर देथें।जिनकर माथा म रहिसी के जलवा नइ रहय उनकर नानुक गलती म धारा के ऐसे बौछार हो जथे कि वोकर जिनगी ह धारेधार बोहावत बेअधर हो जथें।जिनकर हस्तक अउ मस्तक के भाग्य रेखा म पोर्श लिखाय रहिथे उनकर सोर्स ह कहाॅं-कहाॅं दस्तक देवत होही तेकर अंदाजा आप खुदे लगा सकथो।

          तेकरे सेती कहे सुने बर मिल जथे कि कानून ह अमीर मन के जेब म रहिथे। कोर्ट के खईरपा ल संडे के दिन खुलवा लेना, डॉक्टर के परखनली ले खून के सैंपल बदलवा देना अउ तीन सौ शब्द म एक्सीडेंटल निबंध लिखवाना ह रसूखदार मन बर कन्हो भारी बात नोहे। पुलिस, डॉक्टर अउ जज ले लेके पता नहीं कोन-कोन ल सेट करे बर कतिक- कतिक रेट देना पड़े होही ते..। पैसा के असर म बिगड़े मंदहा टूरा (दुदपिया) के समाचार ल छापे बर दू-तीन दिन ले अखबार के स्याही ह अपने-अपन सूखागे रहिस। पीरकी ल घोर-घोर के घाव बतइया बकबकहा टीवी एंकर मन के बक्का नी फूटत रहिस। भला होय जनता जनार्दन के.., जिनकर जागरूकता के सेती ये बिकाऊ कंपनी के हटहा माल मन के हलवा टाइट हो सकिस।

              पता नइ हमर देश के मनखे मन के खोपड़ी के डिजाइन ह कते साँचा म ढलाय रहिथे..।एक डहर येमन अपन हक-अधिकार बर रपेट के लड़ना जानथें त दूसर डहर बड़े- ले-बड़े मामला ल लघियाँत भुलवार घलव डारथें।एक तो लापरवाही के कारण होय दुर्घटना अउ उपर ले प्रशासनिक ढिलाई ह जनता के अंतस म गुस्सा ल भर देथे। तुरते ताजा मामला म खखवाय -गुस्साय जनता ह जोशे -जोश म कैंडल मार्च घलव निकाल लेथें। फेर जैसे-जैसे मामला के उपर समय के परत चढ़त जथे सबे जोश-खरोश ह अपने- अपन ठंडा पड़ जथे।जनता-जनार्दन म इही जोश (एकता) के कमी ल रसूखदार मन बिलई ताके मुसवा कस जोहत रहिथे। मउका मिलते साट ये रसूखदार मन अपन पाढ़ू मन ले उल्टा-सीधा काम ल सीध करवई लेथें।मौजमस्ती करत बिगड़े औलाद ह चाहे दारू पिये, अपन गर्लफ्रेंड संग रंग-झांझर मताय, दू सौ के रफ्तार म अँखमुंदा कार चलाय तभो ले वो कानून के नजर म दूदपिया लइका आय।व्यवस्था के इही आत्मघाती झोल ह रसूखदार मन के परवरिश के पोल ल दबाय बर टानिक के काम करथे। हे जज महोदय.., दारू पीके दू झन ल कार म कुचले के अपराध म काश तँय पंद्रह घंटा म बरी करे के जगा म वो बेवड़ा टूरा ल तीन लात जमाके ओइला दे रहितेस..। तब तोर खुरापाती खोपड़ी म तीन सौ शब्द म निबंध लिखवाय के नौबते नइ आय रहितिस।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

धोबी के कुकुर न घर के न घाट के

 धोबी के कुकुर न घर के न घाट के 


रतनपुर के राज खानदान म एक ले बढ़के एक प्रतापी राजा होइन । राजा के संगे संग रानी के घला सुरक्षा बेवस्था मजबूत रहय । अइसने एक काल म एक झिन रानी के सुरक्षा म दरोगा लगे रहय । रानी के नजदीकी होय के कारन दरोगा के अबड़ दबदबा रहय । ओकर हुकुम के पालन बर मनखे मन , राजाज्ञा कस जी जान लगा देवय । ओकरो सरी बूता हा फोकट म हो जाय । 

उही समे के बात आय । रतनपुर म एक झिन लच्छू नाव के धोबी रिहिस । राजमहल के सरी मइलहा कपड़ा ला धोय के जुम्मेवारी ओकरे रिहिस । लच्छू धोबी तिर एक ठिन गदहा अऊ कुकुर रिहिस । धोबी हा गदहा के उपर महल के कपड़ा लाद के तरिया लेगे । काँचे कपड़ा ला तरिया पार म सुखाये बर बगरा देवय जेकर रखवारी कुकुर करय । कुकुर ला धोबी हा अपन संग म राजमहल तक रोज लेगे तब रानी हा राजमहल के जूठा ला धोबी के कुकुर बर पोटली बना के दे देवय । कुकुर हा राजसी भोजन ला तरिया पार म सुखावत कपड़ा तिर बइठके छक के खा डरय । रोज रोज के हाड़ा गोड़ा मछरी कोतरी खा खाके कुकुर हा मोटागे रहय । दरोगा के घर के कपड़ा ला घला लच्छू धोबी हा रनिवास कस बड़ इज्जत से रोज लेगय अऊ धो सुखाके असतरी करके सांझ तक अमरा देवय ।   

एक दिन बिहिनिया ले लच्छू धोबी हा जइसे कपड़ा लाने बर रनिवास गिस तइसने पता चलिस के रनिवास म चोरी होगे । रानी के बहुत अकन गहना गूठा हा गायब रहय । राजमहल म हड़कम्प मातगे रहय । धोबी हा अंगना म धोवाये बर बाहिर निकले कपड़ा ला कलेचुप धरके निकले लगिस तइसने म , रानी हा धोबी ला देख परिस तहन , अपन नावा लुगरा ला भितरि ले निकालत धोबी ला विशेष हिदायत देवत किहिस के , येला धियान से धोबे । येमा रातकुन साग के फोरी गिरगे , रसा चुचुवागे अऊ दाग लगगे । धोबी हा मुड़ी हलावत लुगरा ला लपेट के अलग से धरिस अऊ गदहा म लादके कुकुर संग तरिया कोती सुटुर सुटुर मसक दिस । जावत जावत दरोगा घर झांकत गिस त , दरोगा के घर म तारा संकरी लगे पइस । ओ दिन जादा कपड़ा नइ रहय । तरिया पहुंचके धोबी हा कपड़ा ला गदहा के पीठ ले उतारके पार म मढ़हा दिस अऊ मुखारी घसरत रनिवास म होय चोरी के बात ला दूसर घाट म नहवइया गाँव के अपन संगवारी मन ला बताये लगिस । 

धोबी के कुकुर हा रोज के राजसी जूठा खाये मारे टकरहा रिहिस । ओ दिन रनिवास ले कुछु नइ मिले रिहीस । तभे कुकुर के नजर हा पोटली म परिस । ओहा पोटली ला सूंघिस । ओकर नाक म बोकरा मांस के गंध खुसरगे । मालिक हा दे बर भुलागे होही सोंच के कुकुर हा पोटली ला छोर डरिस । नानुक हाड़ा लटके रहय । ओला हेरत ईंचत रानी के नावा लुगरा फरफर ले चिरागे । तब तक मुहुँ कान धोके धोबी पहुँचगे । कुकुर के हरकत देख धोबी तिर मुड़ी पीटे अऊ करम ठठाये के अलावा कुछ नइ बाँचिस । एक तो रनिवास म उही दिन चोरी होय रहय उपर ले रानी के नावा लुगरा चिरागे ....... धोबी हा अवइया परिणाम के कल्पना ला सोंच सोंच के जोर जोर से रोय लगिस । कुकुर ला कोटेला कोटेला अतका छरिस के कुकुर खोरवा होगे । 

सांझकुन कपड़ा धरके धोबी हा रनिवास पहुँचिस तब ओला पता चलिस के , रानी के गहना गूठा के चोरइया मिलगे । रनिवास के दरोगा हा चोरी करे रहय । भागे के तइयारी म पकड़ागे । राजा हा बहुत दयालु रहय । फेर अइसन चोर हा समाज के दुश्मन आय कहिके , दरोगा ला राज के सरी सुभित्ता ले पाँच बछर बर वंचित कर दिस । घर भितरि कपड़ा अमराये बर पहुँचे , धुक पुक धुक पुक करत लच्छू हा , अंगना म बइठे रानी ला देखते साठ , रानी के डंडासरन होगे । बहुत मुश्किल ले किस्सा सुना सकिस अऊ अपन गलती ला घला आसानी ले स्वीकार करत , अपन नान नान नोनी बाबू के जिनगी के दुहाई देवत , रानी तिर माफी उपर माफी के याचना करे लगिस । धोबी के काँपत देंहें , थरथरावत जबान अऊ धारे धार बोहावत आँसू ला देख सुन , रानी के हिरदे पसीजगे । वइसे भी रानी हा अपन चोरी गे गहना गूठा के वापिस मिले ले खुश रहय । ओहा तुरते धोबी ला माफ कर दिस । रानी हा बहुतेच घुस्सेलहिन रिहिस तेकर सेती , धोबी हा कल्पना नइ करे रिहिस के ,आज ओकर जीव बाँचही । मने मन भगवान ला धन्यवाद देवत अऊ रानी के प्रणाम करत धोबी हा अपन घर आगे । फेर कुकुर ला अपन घर म खुसरन नइ दिस । 

चोट्टा दरोगा हा रानी के बहुतेच नजदीकी रिहिस तेकर सेती , राज भर म ओकर बहुतेच दबदबा रिहिस । फेर चोरी पकड़ाये अऊ दंड पाये के पाछू , ओकर मान सन्मान एकदमेच गिरगे । सामाजिक बहिस्कार के सेती ओकर घर के नौकर मन काम छोंड़ दिस । नाऊ हा साँवर बनाये बर मना कर दिस । रऊत छोंड़ दिस । पहटनिन हा गोबर कचरा करे बर मना कर दिस । धोबी हा कपड़ा काँचे ले इंकार कर दिस । गाँव म कन्हो बइठ घला नइ कहय । दरोगा हा एक कनिक के लालच म , अपन सरी इज्जत ला खो डरिस । जेकर तिर जातिस तिही दुतकारतिस ।गाँव के सियान मन लीम चौंरा म बइठके पासा खेलय त , दरोगा ला चौंरा म जगा तक नइ मिलय । बपरा हा टुकुर टुकुर देखत ताकत रहय । 

देखते देखत चौमासा आगे ।अपन बलबूता म , पहिली घाँव खेती कमावत दरोगा के रगड़ा टूटगे । फोकट के खाये मारे टकराहा दरोगा के देंहें , चार महिना म हाड़ा हाड़ा होगे । खेती किसानी के समे नहाके के पाछू , राम बाँड़ा के तिर , कन्हो के पुछे के आस म सियान मनके मुहुँ ताकत , धीरे धीरे रेंगत जावत दरोगा ला , गाँव के कतको झन चिन नइ सकिन । पाके चुंदी , बाढ़हे डाढ़ही अऊ मइलहा ढिल्लम ढोल्लो कपड़ा म , पातर दुबर जुन्ना दरोगा ला देख , कुछ मन ओला मंगइया भिखारी समझिन । ओला देखके दूसर चौंरा म खजवात बइठे धोबी के खोरवा खर्रू कुकुर तको , भुँकत ओकरे कोती दऊँड़े बर धर लिस । है है घुच घुच .. कहत .... जुन्ना दरोगा हा हांथ म धरे कुबरी लउड़ी ले कुकुर ला हुदेरे लगिस । तब ओकर अवाज सुन लोगन ला पता चलिस के , येहा जुन्ना दरोगा आय । ओकर नहाकते साठ , गाँव के मनखे मन आपस म , जुन्ना दरोगा म चारे छै महिना म आये अंतर के बारे म गोठियाये लगिन । तभे लइका मन के ढेला ले आहत काँय काँय करत खर्रू कुकुर ला देख गाँव के एक झिन सियान कहे लगिस - न कन्हो पारा म पूछय .. न गाँव म ... त अइसन हालत तो होनाच हे । बिलकुल धोबी के कुकुर कस होगे हे , जेहा आजो कभू घर के दुवारी म लुहुर टुपुर करत रहिथे ... कभू घाट म पुछी हलावत प्रेम के आस म ताकत रहिथे । खाना तो दूर बलकी दू टेम्पा ये घर म पाथे त चार ओ घर म ... । का करबे भइया ..... करनी के फल ला तो इहीच जनम म भोगेच ला परथे गा । 

अपन करम दंड ला भोगइया अनपुछना बहिस्कृत त्याज्य मनखे बर , धोबी के कुकुर न घर के न घाट के ..... जनता के मुखार बिंद ले आजो घला मौका मौका म सुने बर मिल जथे । 


हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

हिजगा पारी (छत्तीसगढ़ी कहानी) कमलेश शर्माबाबू

 हिजगा पारी


(छत्तीसगढ़ी कहानी)


                कमलेश शर्माबाबू


   गाँव गँवई मा बड़ेजक अस्पताल अउ उहाँ पढ़े-लिखे डिगरीधारी डाँक्टर बिकट भाग्य ले मिलथे।जब ले गाँव मा बड़ेजक अस्पताल खुले रिहिस तब ले गाँव अउ आसपास के जनता मन भारी खुश रिहिन।अउ हो न घलो काबर कि वो डाँक्टर कोनो आने डाहन के नहीं ऊखरे गाँव के रामसिंग रजक के बेटा ये।

    कतको झन तो वोला डाँक्टर साहब नहीं वोखर नामे लेके पुकारँय,,,सेऊक डाँक्टर ,,,सेऊक डाँक्टर ।घर के मुरगी दाल बरोबर।नाम से तो वो सेवक राम रजक राहय फेर गाँव वाला मन कब सेऊक बना दीन पता नइ चलिस।

      डाँक्टरी तो कतको लइका मन पढ़िन अउ सीखिन फेर डिगरी लेके कोनो गाँव मा खोले बर तइयार नइ होइन।पइसा के चकाचौंध मा सब शहर कोती बसेरा कर लीन।बड़े-बड़े दवाखाना बना लीन।

   आखिर उनला पढ़ई लिखई के खरचा वसूलना हे, बड़े-बड़े नर्सिंग होम बनाना हे।अउ अतका भर नहीं,,,अपने बरोबर के डाँक्टर डिगरीधारी छोकरी संग बिहाव करना हे।पइसा ह पइसा कमाथे।शहर मा खटाखट,फटाफट,चकाचक पइसा मिलथे।

     फेर गाँव गँवई मा रइही त कहाँ तरक्की कर पाहीं ?अउ इही दकियानूसी सोच के सेती सब डिगरीधारी डाँक्टर मनला शहर जाय के भूत सवार होगे हे।

   कई झन दाई ददा मन अपन डिगरीधारी बेटा मनला गाँव मा या आस-पास के चऊक-चौराहा मा अस्पताल खोले बर किहिन फेर,,,कोनो मूड़ नइ उठाइन ‌!अउ उल्टा नाक मुहु सिकोड़त दाई ददा मनला दू-चार बात सुना दीन,,,हमर लइका मन इहाँ कहाँ पढ़हीं, अच्छा इस्कूल कालेज नइहे,घूँमे बर गार्डन पिकनिक स्पाट नइहे काहत बेलबेला दीन।

    जइसे हजारों कोइला खदान मा एक न एक हीरा मिल जथे वोइसने हजारों मनखे मा कोनो न कोनो अइसे मनखे भगवान जरुर बनाथे जेखर सोंच सब ले अलगे होथे।वो पइसा कम नाम जादा कमाथे।

     उही हजारों मनखे मा राहय डाँक्टर सेवक राम रजक । माँ-बाप के सरवन बेटा सेवक राम एम.बी.बी.एस.डिगरी धरके सीधा अपन गाँव 'बेरा बतर' आ गे।अउ अपन गाँव ल ही जन्मभूमि के संग कर्मभूमि बनावत दवाखाना के शुरुवात करिस।

        बहुत ही कम समय मा वोखर दवाखाना के जघा-जघा शोर उड़गे। बिना फीस के मरीज मनला देखय,कम खरचा मा बढ़िया ईलाज के सेती मरीज मनके लाइन लगे राहय।

    कतका बेर काखर भाग्य बदल जही केहे नइ जा सकय।फेर,, गाँव के एक छोटे घर के लइका भगवान के किरपा ले अतका बड़े डाँक्टर बनगे,,,चमत्कार बरोबर लगथे।शुरु ले होनहार सेवक राम हर कक्षा मा टाप करे रिहिस। बारहवीं साइंस मा तो पूरा जिला मा अव्वल रिहिस।नीट के परीक्षा बिना ट्यूशन करे दूसरा नंबर मा निकाले रिहिस।सेवक ल अउ आगे पढ़ाय बर तो वोखर बाप साफ-साफ नाहना हार दे रिहिस फेर ममा मामी मन अधरे ले उठालिन,,,वोला थोरको भार नइ लगन दीन।    

   कल तक गाँव के एक साधारण सा दिखइया लड़का सेवक राम,,पढ़ते-पढ़त कब अतका बड़े डाँक्टर बनगे पता नइ चलिस।आज दुरिहा-दुरिहा के मरीज मनके वोखर दवाखाना मा तांता लगे रहिथे।

       आज गाँव भर तिहार मानत रिहिन। कोतवाल रात के घलो हाँका पारे हे अउ सुबे ले घलो चिचियावत हे,,,सात बजे ले मतदान चालू होगे हे,,,, सब अपन-अपन वोट डारे बर स्कूल में जावत जाव हो।

        डाँक्टर सेऊक साते बजे जवइया रिहिस फेर का करबे एकझन जचकी वाले इमरजेंसी केस आगे।अइसे-तइसे ग्यारह बजगे। दू-चार झन अउ मरीज ल निपटाइस अउ थोरिक पोंडा समय देख के जल्दी आवत हँव कहिके कम्पोटर मनला चेताइस,,, अउ फटफट-फटफट मतदान केन्द्र पहुँचगे।

      मिडिल इस्कूल मा भारी भीड़, लंबा लाइन लगे राहय।मई के महिना,,,ऊपर ले नवटप्पा आसमान ले आगी बरसावत राहय,,, ४२डिगरी ले उप्पर तापमान सब के मूड़ मा चढ़ के नाचत राहय।सबझन जल्दी-जल्दी वोट डार के घर आय के फिराक मा लगे राहँय।कतको झन अपन-अपन उरमाल अउ पंछा मा रहि-रहि के धुँकत राहँय।

   भारी लंबा लाइन हे भई,,,,येखरे सेती सुबेच ले आवत रेहेंव काहत डाँक्टर सेवक राम पुरुष मनके लाइन मा आघू डाहन जाके खड़ा होगे।

     पाछू डाहन ले एक दमकरहा आवाज आइस,,,,,हमन घंटा भर ले इहाँ आलू छिने बर खड़े हन का जी ? हमन ल बेवकूफ गँवार समझथस का ? चल पाछू कोती लाइन लग।

,,,'आय बर पाछू अउ खाय बर आघू',,,तोरे असन ल कीथे डेड़ हुसियारी,,,इहाँ नइ चले तोर डाँक्टिरी गिरी। रिखी राम के दमकरहा आवाज संग पाछू डहन ले अउ दू-चार झन मुड़पेलवा मनके आवाज आय लागिस।

      तीर मा खड़े एक-दू झन सियान मन टोकिन बरजिन अउ दमकाइन कि,,,अरे मूरख हो तुमन ला थोरको छोटे-बड़े के लिहाज नइहे,,,तुँहर अक्कल मा पथरा परगे हे का? या पैरा- भूषा खाय बर चल दे हे।निच्चट बइला बुद्धि हो जहू का?,,,अरे भई कोनो भी डाँक्टर, मास्टर, अधिकारी, कर्मचारी के हिजगा नइ करे जाय। ईखर कतको काम रिथे, जनता के सेवक होथें,,, ईखर बर लाइन लगाना अच्छा बात नोहय।ईखर समय बड़ा कीमती होथे।कुछु भी बोले के पहिली बने ढंग के सोच ले करव,,कहिके जुन्ना सियान मन समझाय लागिन।

                    फेर मूरख मनला कतका समझाबे।ज्ञानिक ल ज्ञान मारे पखरा ल टाकी,मूरख ल का मारे पखरा अउ लाठी,,,,अकडू मन सियान मनके बात ल अपेल दीन। थोरको धियान नइ दीन ऊपर से चिल्लाय लागिन। आज के लइका मन बर,,, जुन्ना सियान मन कोन खेत के ढेला बरोबर होगे हें।

      डाँक्टर सेवक राम हँसमुख मिलनसार सीधा-साधा सज्जन आदमी रिहिस,फालतू छाप बकवास करना वोला थोरको पसंद नइ आय।फेर कहिथे न खोजइया मन चंदा मा घलो दाग खोज लेथें,,,राम मा घलो दोष देख लेथें अउ कृष्ण मा घलो लांछन लगा देथें,,,त फेर ये सेऊक राम कोन खेत के मूली ये।

        जब ले सेऊक राम के दवाखाना के शोर चारोमुड़ा बगरिस तब ले कईझन कामचोर जलनहा कयराहा मन के छाती फाटगे।अपने-अपन, अपने तेल मा चुरे लागिन। खुद तो दाई ददा मन के ऊपर बोझ बनके ऊखर छाती मा मूंग दरत रिहिन अउ दूसर बर खाँचा  कोड़त राहँय।

   रात दिन डाँक्टर ल गिराय के कोशिश मा कुछ मनखे मन अतका गिरगें रिहिन कि झगरा बर नान-नान ओखी खोजत राहँय।कोनो सीरियस मरीज अस्पताल लावत-लावत पहुँच के मर जाय त फोकटे-फोकट बदनाम करँय।येमा कईझन माछी हँकइया खोद्दा डाँक्टर मन घलो शामिल रिहिन।

   एक इस्तरी (आयरन) चलइया धोबी के बेटा अतका बड़े डाँक्टर बनगे,,,अनदेखना जलकुकड़ा मन के आँखी फूटगे।अउ इही जलकुकड़ा गैंग के सरदार रिहिस रिखी राम उठमिलवा।

     सब के जोर-जोर से आवाज ल सुनिस त दू-झन ड्यूटी मा तैनात फौजी मन दउँड़त आइन अउ रिखी राम ल रोसियावत देख के डाँक्टर ल पाछू कोती लाइन लगे बर ईशारा करिन।

     डाँक्टर सेऊक राम लाइन मा लगे सोंचे लागिस,,,,, येमा तो कम से कम घंटा डेड़ घंटा लगी जही,,,एकेठन बूथ हे चलो कोई बात नहीं फेर सीरियस मरीज आ जही त का होही? फेर मोबाइल घलो अस्पताल मा छूटे हे,इहाँ लाना मनाही हे। येती मतदान घलो एक यज्ञ बरोबर आय ,,,ये प्रजातंत्र के हवन कुंड मा हम सबके आहूति जरुरी हे।

          चलो ठीक हे! भगवान ये मनला एकदिन सद्बुद्धि जरुर दिही। फेर समझ नइ आय,,, एक डाँक्टर बर हिजगा पारी करथें,,अतका संवेदनहीन अउ मूरख कइसे होगे मनखे,,,,अगर आदमी सहीं-गलत,नियाव-अनियाव मा फरक नइ कर पाहीं त अइसने मा भविष्य भयावह हो जही। धरम,करम,सेवा,उपकार सब धीरे-धीरे नँदा जही।

      मने-मन डाँक्टर सोंचत जाय,,, अउ जइसे-जइसे लाइन आघू बढ़य अपनो तिल-तिल खिसकत जाय।

   ,,,,चलो एक घंटा तो गुजरगे,,,अब दस पन्द्रह झन के बाद मोरो पारी आ जही,, काहत मन ल संतोष करत माथा के पछीना पोछे लागिस।

      कोनो ल जब अपन बात में समर्थन मिल जथे त वो फूले नइ समाय अपन आप ल बहुत बड़े लीडर समझथे।रिखी राम उठमिलवा अपन कउँवा मितान मन संग वोट डार के दांत निपोरत,,, मेछा अईठत,,,विजयी मेघनाद बरोबर अकड़त बाहर निकलगे।

    दूसर बर खाँचा खनइया खुद गड्डा मा झपाथे ये बात आज घलो सोला आना सच हे। कुछ देर बाद रिखी राम उठमिलवा बइहा पागल बरोबर चिल्लावत मतदान केन्द्र डाहन पल्ला भागत आवत राहय। एकझन बेटा सोनू आज अस्पताल मा परे सेप-सेप करत हे,,आँखी मा चंदरजोत लगगे हे,,,जेने डाँक्टर ल बइरी मानिस वोखरे अस्पताल मा तड़फत परे हे। 

      देखइया मन बताइन,,,, बिजली के खंबा मा फटफटी सुद्धा टकराय हे त मूड़ सइघोजर फूटे हे,मरहम पट्टी करे के बाद घलो लहू रिसत हे,,कम्पोटर मन कतका चेत करँय,,,डाँक्टर तो इहाँ वोट डारे बर लाइन लगे हे। मोबाइल घलो घर मा छूटे हे।जेन टूरा मन वोला धरके अस्पताल लानिन तेनो मन छोड़ के फरार होगें।एक-दू झन टूरा मन बताइन कि सोनू एजेंट बने हे रातभर अपन सँगवारी मन संग घर-घर दारू बांटे हे। रात दिन के उसनिंदा कतेक ल सइही,,,,झपागे।

     सोनू के हालत ल देख के रिखी राम के जीव छटाक भर होय राहय,,,बइहा बरन होय अपन आप ल दुत्कारत, कोषत, हँफरत जाय अउ बड़बड़ावत जाय,,,,,

     नहीं!,,, नहीं!,,,मोर सोनू ल कुछ नइ होय!

     अउ हो जही त,,,,,,

नहीं! नहीं,,,,सारी दुनिया मोला हत्यारा कइही,,,बेटा के हत्यारा बाप कइही,,,मोर मुँहु मा खखार के थूंकहीं,,, धिक्कारहीं ।

    नहीं! नहीं!मोर गलती के सजा मोर बेटा ल झन देबे भोलेनाथ,,,सियान मन सही काहत रिहिन मही बनमानुख नइ मानेंव,,अगर आज डाँक्टर अस्पताल मा होतिस त मोर बेटा के हालत अतका नाजुक नइ होतिस।घंटा भर ले बेहूश परे हे,येखर बर मैं जुम्मेवार हँव।येमा डाँक्टर के कोनो गलती नइहे,,, वोला तो लाइन मा लगे बर मही मूरख करमछंडा मजबूर करे हँव,,

,,,,, आज तो मँय अपने गोड़ मा कुल्हाड़ी मार डरे हँव,,,मोर बर चारोंमुड़ा अँधियार होगे,,,,

नहीं! नहीं! सोनू तोला कुछ नइ होय बेटा,,,काहत अपटत गिरत मतदान केन्द्र डाहन गिस अउ डाँक्टर के पाँव तरी घोलंडगे।

,,,,मोर बेटा ल बचा ले डाँक्टर साहेब,,,मोर बेटा तड़फत हे डाँक्टर साहेब,,,,मोला माफी दे दे डाँक्टर साहेब,,,जल्दी चलव नइ तो मोर बेटा नइ बाँचही डाँक्टर साहेब काहत भारी गिड़गिड़ाय लागिस।

     डाँक्टर लाइन कोती ल देखिस त बस दू  झन के बाद पारी आगे रिहिस।एक नजर घड़ी कोती देखिस अउ एक नजर रिखी राम कोती देखिस,,,,,,तुरंत फटफटी म रिखी राम ल बइठार के फौरन अस्पताल पहुँचिस फेर का करबे,,,,,,तब तक सोनू के प्राण पखेरू उड़गे राहय।


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू

 कटंगी गंडई

जिला केसीजी छत्तीसगढ़ 

9977533375


समीक्षा---

 पोखनलाल जायसवाल: 

मनखे जेकर मन म कखरो बर सहयोग के भाव नइ राहय। अइसन मनखे ल कखरो समय के कीमत अउ ओकर करतब(कर्तव्य) के मरम के पता नइ राहय। या रहिथे त अपन आप ल होशियार समझत उन ल नीचा दिखाय के उदिम करथे।  जुबान म लगाम नइ राखय अउ अनाप-सनाप बोलत रहिथे। सियान मन के बरजई अउ सियानी गोठ ले उन ल कोनो फरक नइ परय। कहूॅं दू-चार झन अपेलहा सॅंघर गे तब तो अउ फालतू च मान।

       अइसने अपेलहा मन के नादानी कब, कइसे अउ कतेक भारी अलहन के कारण हो सकथे? एकर आरो देवत कहानी आय -  हिजगा-पारी।

         पढ़े-लिखे अउ गुणवान मनखे कभू अइसन हिजगाहा अउ अपेलहा लोगन ले बाॅंचे के उदिम करथे। उन मन सफाई देवत विवाद/झगरा-झांसी ले बचना चाहथें। कलेचुप बुता निपटाय के कोशिश करथें। फेर अबुझ मनखे तो आगी लगाय के जतन करत रहिथे। चुनाव घरी तो इॅंकर बुद्धि ह बिनाश करे बर बरेंडी म चढ़े रहिथे। आगू देखे न पाछू , बस बुता बिगाड़ना हे। सज्जन मन के मान-सनमान ले कोनो मतलब नइ। जलनहा अउ कइराहा मनखे मन इही बेरा के अगोरा रहिथे। मन के भड़ास ससन भर कोनो बहाना ले सुनाय ले चुकय नहीं। सिरिफ बिगाड़े के सुध रहिथे। जबकि सज्जन मनखे सदा दिन सब के भला करे के सोंचथे। मन सफ्फा रहिथे। इही सफ्फा मन के सेवाभावी डॉ. सेवक गाॅंव ले पलायन नइ करिन। फेर दू-चार झन रइबे करथे जेन ल कखरो सीधापन घलव नइ भाय। दूसर के मीन-मेख देखे के चक्कर म घर के लइका के लाइन रद्दा के सुध नइ रहय। 

           रिखीराम के संग इही होइस। जवान लइका शराब के चंगुल म फॅंस चुनावी सीजन म दारू बाॅंटत उसनिंदा के चलत खंभा म झपागिस।

        एती डार के चूके बेंदरा सही रिखी पछताय लगिस। अब पछताय का होही, जब चिरई चुगगे खेत। 

       कहानी के भाषा शैली अनुपम हे। प्रवाह अइसे हे कि पाठक ले कहानी पूरा पढ़वा लेथे। हाना-मुहावरा के गजब प्रयोग। संवाद ऑंखी म फोटू खींचत जीवंत लगत हे। कहानीकार पात्र मन के मुताबिक संवाद लिखे म सफल हें।

      " हमन घंटा भर ले इहाॅं आलू छिने बर खड़े हन का जी? हमन ल बेवकूफ गॅंवार समझथस का? चल पाछू कोती लाइन लग।"

       एकर अलावा घलव अउ कतको संवाद हें।

       कहानी म लेखकीय प्रवेश उॅंकर लेखन कौशल के आरो देवत हे। इही कौशल कहानी ल नवा उॅंचास देथे।

       समाज हित म लगे मनखे अउ उॅंकर समय के महत्तम बतावत संदेशपरक कहानी बर कमलेश प्रसाद शर्मा बाबू जी ल हार्दिक शुभकामना।

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पोखन लाल जायसवाल 

पलारी (पठारीडीह)

बाल कहानी एकदंत

 बाल कहानी 


                एकदंत 


बड़ दिन के गोठ आय। एक बेर परशुराम जी ह कार्तवीर्य अर्जुन (सहस्त्रअर्जुन) ल मार के बड़ खुश होके ये बात के खुशखबरी देय बर  कैलाश मा भोले बबा ले मिले बर गीस। जइसनेच  परशुराम जी हा कैलाश मा पहुंँचीस त घर के दुवारी मा चौकीदार कस रखवारी करत, पहरा देवत गणेश जी ह खड़े रहिस।

परशुराम जी ह भगवान गणेश जी ल कहिथे–" मोला भोले बबा ले मिलना हे त भीतरी मा जावन दे।"


गणेश जी ह कहिथे –"अभी आप भीतरी मा नइ जा सकव।"


परशुराम जी ह घेरी-भेरी कहिथे–" मोला भीतरी मा जावन दे। मोला भोले बबा ले मिलना हे।"


भगवान गणेश हा घलो सहज होके हाथ जोरके कहिथे –"में अपन दाई-ददा के आज्ञा के पालन करत हों। आप मोर राहत ले भीतरी मा नइ जा सकव।"


अतका ल सुन के परशुराम जी ह एकदम घुसिया के गणेश जी ल कहिथे–" में कोन हरवँ तेला तैं नइ जानस? जानतेस त मोला भीतरी जाय ले नइ रोकतेस।"


गणेश जी कहिथे –"आप कोन हरव येकर ले मोला कोनो मतलब नइ हे।"


अतका ल सुन के परशुराम जी ह फेर तमतमाके कहिथे –" रे मुरख लइका! तोला बड़ देर ले सहन करत हों अब तोला मोरसन लड़ई करे बर पड़ही अउ में कोनो लड़ई मा जीत जाहूँ त भोले बबा ले मिले बर मोला कोनों नइ रोक सकय।"


चतुर, बलशाली, बुद्धिशाली, आज्ञाकारी गणेश जी लड़ई बर तियार हो जथे। परशुराम जी अउ गणेश जी के बीच मा जब्बर लड़ई होथे। गणेश ऊपर परशुराम जी के वार ह सबों बखत निष्फल हो जाथे। एक बेर तो गणेश जी परशुराम जी ल अपन सूंड मा लपेट के चारों कोती ल घूमाके भुइयाँ मा भर्रस ले पटक देथे। जेमा परशुराम जी मूर्छा हो जथे। जब मूर्छा ले उठथे त भगवान शिव के देय फरसा (जे फरसा के सेती परशुराम नाम पड़े हे) ले भगवान गणेश जी ऊपर वार कर देथे।

          परशुराम ल देय ददा भोले के फरसा ल अपन तीर आवत देख के भगवान गणेश ह वोला प्रनाम करथे। परशुराम के फरसा के वार ले गणेश जी के डेरी दांत ह टूट के भुइयाँ मा गिर जथे। पीरा मा कराहवत गणेश जी दाई वो कहिके गोहराथे। गणेश जी के पीरा ल सुनके दाई पार्वती ह भीतरी ले "बेटा गणेश! बेटा गणेश!" कहिके भागत दुवारी मा आथे।


दाई पार्वती ह गणेश के टूटे दांत ल देखके पीरा मा कराहवत अपन लइका ल गोदी मा उठा लेथे अउ परशुराम ऊपर गुस्सा होवत चंडी दुर्गा के रुप मा आके कहिथे –"आप जइसन शिव भक्त ज्ञानी पुरुष मोर नानकुन लइका ले लड़ई करे हो ये काम आप ल नइ फभे। येकर परिनाम आप ल भुगते ल परही परशुराम जी।"


परशुराम जी चंडी दुर्गा के बगियाय रूप ला देखके शांत करेबर बाल गणेश जी के विनम्रता के बखान करत कहिथे –"ये बाल गणेश बड़ चतुर, बलशाली अउ बुद्धिमान हे। में येला अपन तेजबल, ज्ञान, कौशल ल आशीष के रुप मा देवत हौं। मोर फरसा ले गणेश जी के दांत टूटे हे त आज ले संसार मा गणेश जी हा एकदंत के नाम ले जाने जाही ये मोर आशीर्वाद हे।" 

      अतका ल सुनके दाई पार्वती के क्रोध हा शांत हो जथे अउ भगवान गणेश परशुराम जी ल प्रनाम करथे। भोले बबा हा परशुराम ल अपन दर्शन देथे। सब देवता मन चारो कोती एकदंत की जय, एकदंत की जय कहिके जयकारा बुलाथे।


डॉ. पदमा साहू "पर्वणी"

खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य

भाव पल्लवन* धन हाबय थोड़ी, गाय लेववँ ते घोड़ी

 *भाव पल्लवन*



धन हाबय थोड़ी, गाय लेववँ ते घोड़ी

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कहे गे हे--मनखे के मन के गति अपरम्पार होथे। महाभारत मा यक्ष अउ युधिष्ठिर के प्रसंग आथे जेमा यक्ष हा प्रश्न पूछथे के--सबले तेज गति काकर होथे तब युधिष्ठिर हा उत्तर देवत कहिथे के--सबले तेज गति मन के होथे।

   ये  मन हा अतका चंचल होथे के कभू पल भर थिरबाँव नइ राहय,हरदम एती-वोती दँउड़ते रहिथे।कभू पल मा धरती ला नाप लेही ता, कभू सात समुंदर ला नहाक के सरग ला अमरे ला धर लेही।कभू जिनगी के भूतकाल मा भटकत रहिथे ता कभू रंग-रंग के सपना देखत भविष्य बर आनी-बानी के जाल बुनत रहिथे। 

   मन के एही चंचलता हा मनुष्य ला चिंता अउ तनाव के भँवरजाल मा तको बूड़ो देथे। मनेच के करनी आय जेन मनखे ला चौबट्टा मा लाके खड़ा कर देथे जेकर ले अइसे असमंजस हो जथे के सोचें ला पर जथे--कती जाँव ,कती नहीं।

   मन हा बहुतेच ललचाहा तको होथे। एला खाँव ता वोला छोंड़ँव,एला सकेलवँ ता वोला रपोटँव--इही उधेड़बुन मा दिन-रात लगे रहिथे। धन-दोगानी बर तो एकर लार चुचुवावत रहिथे। 

   मनखे के मन हा बैपारी तको होथे। एला एक गाँठ हरदी मा दुकानदारी करत देर नइ लागय। पइसा जादा राहय ते कम ये हा किसिम-किसिम के योजना बनाये मा उलझेच रहिथे । पइसा कम हे ता गाय लेववँ या फेर घोड़ी लेववँ---का लेना ठीक होही---कामा जादा फायदा मिलही --इही तरकना करत परेशान होवत रइथे अउ कुछु सही निर्णय नइ ले पावय।

     मन के अइसनहे चाल-चलन हा दुख के कारण होथे। एकर ले उबरे बर--मन रूपी सरपट दँउड़त घोड़ा मा लगाम लगाये बर --योग अउ ध्यान ला उपाय बताये जाथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

 हथबंद,छत्तीसगढ़

हरियर आदेश म गुलाझाॅंझरी

हरियर आदेश म गुलाझाॅंझरी

                           (महेंद्र बघेल)


विकास के ढुलत चक्का मा फॅंसे खटर-खटर नामक आशीर्वाद ले चातर राज म रूख राई ह पहिलीच ले चतरागेहे।ले देके बाॅंचे रूख राई के ठुड़गा मन म फूटे फूटू मन ह अपन प्रकृति प्रेम के प्रमाण पत्र सौंपे के आखिरी कोशिश म विकास के प्लास्टिक युग के फसल म अपन नसल ल बरबाद होवत देखत हे।अउ जंगल राज के बाते झन पूछ विकास बर चिक्कन-चिक्कन सड़क बनाय के नाम म जंगल ह चिक्कन होवत हे। हमर धरती के करिया सोन्ना (कोयला) ल अपन कोठी म भरे बर गोटारन ऑंखी वाले नंबरदार मन सरकार के खाॅंध म चघके करोड़ों नग रूख राई के पूजवन देवत हे। जंगल के सवाॅंस नली ल पंचर करके धीरे-धीरे जंगलिहा मन ला आइसोलेशन म खुसेर के हाथ के सफाई ले कोयला के कमाई तक के स्मार्ट योजना चलाय जात हे। मने जंगल म डोंगरी पहाड़ ल फोर के रटाटोर बिनाश के गरभ म ललमुहा मन ला लाल बनाय बर करिया कारीडोर के करकराती एंट्री...।जंगल के धड़ाधड़ उजाड़ ल देखके पर्यावरण ल खुदे सौ डिग्री के बुखार धर लेहे, ओकर चेत-बुध हरा गेहे।इहाॅं उलट आदमी के पुलट खोपड़ी कस सब अंते-तंते हे अउ सुलट के सूचकांक ह दिन-रात टिपुल म चढ़त हे। हाल-चाल ल का कहिबे.., हाल के देखे चाल खराब, चाल के मारे सबके बारा हाल हे।मड़िया- कोदो ल राॅंधे बर नदी -नरवा के पानी सुखागे, लगार के करार ल श्रद्धांजलि देवत जम्मो चोरहन गढ़ागे। ॲंधना के अगोरा म लाॅंघन कनोजी ह मुॅंहुॅं फार के देखत हे..., बइरी ह कब सनसनइही तब धोवन चॅंउर ल ओइरहूॅं। फेर ॲंधना अही तब.., अरे वो बपरी ॲंधना के 'अ','ध' अउ 'न' ल तो नंबरदार ह कब के नजरा देहे।विकास के एकसस्सूॅं बड़ोरा म घर-दुवार के खदर छानी ह उड़ावत हे , खइरपा ह एती-ओती फेकावत हे। जंगल भीतरी खड़दंग -खड़दंग के अवाज म कोलिहा-हुर्रा, बघवा- चितवा के टोंटा सुखा गेहे।तेंदू-चार ल फोले बर सुआ-मैना के चोंच ह भोथवा होगेहे।पेज-पसिया के सादा रंग ल का कहिबे झिरिया के पानी ह ललहू होगे हे।

              जिनगी भर जेन एक ठन पेड़ नइ लगा सकिन उनकर आलीशान घर म लकड़ी के कुंदवा-कुंदवा अलमारी अउ फर्नीचर के भरमार हे।ओ दिन दूरिहा नइहे जब जंगल म बसे आदिवासी मन बर एक ठन बहेंगा अउ तुतारी लउठी ह नोहर हो जही।सभ्यता अउ संस्कार के चोला पहिरके माडर्न विधाता मन जंगल के साजा-सइगोना ल पहिलीच ले चीथ डरिन। अब इनकर नजर ह धरती के गरभ म छुपे खजाना उपर अटक गेहे।अपन सुवारथ के खातिर येमन बड़े -बड़े पहाड़ ल ओदारके अउ जंगल-झाड़ी के नरी मुरकेटके सुवारथ के चाकर-चाकर रस्ता बनावत अपन किस्मत के सींग दरवाजा खोल डरिन। अउ उपराहा म नदिया-पहाड़ी ल जबरन टोर-फोर के प्रकृति संग दगाबाजी करत हें।

                     हरियर-हरियर रूख राई, मेड़-पार, बारी -बखरी, खेत-खार ल देखके मनखे ते मनखे माल-मवेशी मनके मन ह घलव हरिया जथे।जइसे पानी के सिंगार ह ओकर फरियर होय म हे वइसे रूख राई के पाना -पतउव्हा बर हरियर रंग हा ओकर सिंगार होथे।हमर बर सहुॅंराय के बात आय कि ये प्रकृति के परसादे खाय -पीये के सरी जिनिस ह रूख राई ले मिलथे।मनखे ला जिनगी के सुवाॅंसा ले लेके रोटी कपड़ा अउ मकान सबे बर तो रूख राई के आसरा रहिथे।येकर बिना जिनगी ह अबिरथा हे। फेर मनखे मन ह अपन सुवारथ के खातिर हरियर-हरियर रूख राई ल काट- काटके  पर्यावरण के दुरगति कर डरे हे।मन मा तो कई ठन सवाल उठथे कि महतारी बरोबर ये रूख राई ल कोन ह अउ काबर काटत होही। का रूख राई ल काटे बिना देश के विकास ह रूक जही, देश मा भूखमरी आ जही या कि बेपारी मन कंगला हो जही। पर्यावरण के खराब तबियत ल देखके आपमन समझ सकथो कि सवाल हा कतना वाजिब हे फेर आखिर मा ये उठत सवाल ल मने मा दबाके रखना पड़ जथे। जब एको सदन म उठे सवाल के कन्हो ढंग के जुवाब नइ मिल पाय तब जनता ल अपन सवाल के भ्रूणहत्या करे म भलई दिखथे।

                 एती दिन लट्ठाती देख साल भर ले अजगर कस सुते  वनविभाग अउ पर्यावरण विभाग के आफिस के जम्मो होनहार किरदार मन विश्व पर्यावरण दिवस के पूर्व संध्या के बेरा म अटियावत-  सलमलावत नींद ले जागथें  अउ जम्हावत- कसमसावत उठथें।फेर केचकेचहा लोहाटी अलमारी म धुर्रा खावत परे हरियर देश बनाय वाले हरियर आदेश के दिन ह बहुर जथे। तहाॅं उत्ता-धुर्रा राष्ट्रीय धरम निभावत ये सरकारी हरियर आदेश ह सबो विभाग के फाइल म बुलेट ट्रेन के रफ्तार म ॲंखमुंदा दॅंउड़ना शुरू कर देथे।आदेश ल पाते साट सबो विभाग के मुखिया मन सावचेत हो जथें। धरती ल हरियर बनाय बर जे-जे आफिस म हरिहर बजट के आमद होथे उहाॅं के मुखिया मन हरियर मद ल देखके मदमस्त होय म जादा देरी नइ लगाय। मंत्रालय वाले कर्मचारी मन के आवासीय मोहल्ला के एक झन हरियर मद के कद उपर शोध करइया अउ ये विषय के भुईंफोर जानकार ले होय खुसुर-फुसुर गोठबात के मुताबिक सरी जानकारी ह अंडरलाइन करे के लइक हे। ओमन बताथें कि हरियर मद के आमद होते साट ये बाबू-साहेब मन के अंतस म उमंग के पीकी फूट जथे अउ सोच के डारा-जकना म उम्मीद के उलव्हा-उलव्हा पाना पतउव्हा जामना शुरू हो जथे।बजट के चरचा अउ खरचा के योजना बनावत कते साहेब के भला लार ह नइ टपकत होही। विश्व गुरु बने के सपना संजोए हमर देश के आफिस मन म लरहा बाबू -साहेब मन के कन्हो कमी हे का।

               येला हरियर मद कहव चाहे हरियर फंड येकर फंडा ल समझे बर थोकिन फंडामेंटल नियम-धियम ल जानना घलव जरूरी होथे।विश्व पर्यावरण दिवस मनाय खातिर वन विभाग के कर्ता-धर्ता मन तय तिथि के आगू दिन एक ठन बैठका सकेलिन।जेमा वनविभाग के जम्मो अधिकारी -कर्मचारी, पंच-पार्षद , महिला समूह अउ मुहल्ला के पुचपुचहा टाइप के नेता मन ल घलव नेवता पठोय गिस। फंड म खारा- मीठा लाय के लिखित आदेश ह गाढ़ा अक्षर म फदफद ले लिखायच रहिस हे तेकर सेती टेंशन के कोई बाते नइ रहिस।अइसे भी जेन काम म हरियर होय के गुंजाइश रहिथे ओमे साहेब -सुभा मन बनेच चेतलगहा भिड़के काम ल सिरजाय के उदीम करथें। तभे तो जगा-जगा म सरकार अउ समाज सेवी संस्था मन डहर ले पौधारोपण के कार्यक्रम चलाय जाथे।नरसरी ले पौधा लाय बर पाॅंच छे झन मनखे संग गाड़ी के वेवस्था अउ उनकर पेट्रोल पानी के वेवस्था ल हर हाल म करना परथे।उही शोधार्थी ह फंड जारी होय के किस्सा ल आगू बतावत कहिस.., पौधारोपण कार्यक्रम के खातिर हरिहर प्रदेश बनाय के योजना बर बजट जारी करइया वित्त विभाग के सबले बड़े साहेब ह.., अपन राष्ट्रीय जुम्मेदारी के सुरता करत सबले पहिली सबो जिला के फंड म खुद ल हरियर रखे के सुग्घर जतन कर लेथे..। तेकर सेती कुनुन-मुनुन करे बिना अपन ह कलेचुप कतको ल जतन देथे..। बाबू-साहेब होय के ये सुग्घर संस्कार अउ सोज्झे अंदर करे के मुद्रा बेवहार ह बड़ सात्विक भाव ले बड़े आफिस ले छोटे आफिस म मिलखी मारत पहुॅंच जथे। फाइव जी अउ सिक्स जी के अमरित काल म यहू ह हमर देश के सशक्त संचार बेवस्था के एक ठन धाॅंसू उदाहरण आय।एनजीओ अउ समाज सेवी संस्था वाले मन पाॅंच जून के झाॅंझ चलत भरे मॅंझनिया म पौधारोपण करत अपन  शक्ति प्रदर्शन करे के बूता म थोरको ढिलई नइ करॅंय।एक तरह ले हम कहि सकथन कि येमन विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर म नागरिक बोध के हरियर धरम निभाय के काम करथें। वो अलग बात आय कि घर लहुटती बेरा म वो पौधा ह ताते-तात हवा म खुदे उसनावत-अटियावत परलोक सिधार जथे। पौधा ह भुॅंजाय, उसनाय कि चूल्हा म जाय.., फोटू के खींचत ले ओला जिंदा रखना जादा जरूरी रहिथे।फेर तो वाट्सेप म ढिले अउ अखबार म छपे भर के देरी रहिथे, पौधारोपण के कार्यक्रम ह अमर तो होई जथे।

          असाढ़ मा बरसा होय के पाछू हर साल सही यहू साल हरियर प्रदेश के हरियर आदेश ल विभाग -विभाग म शहर-शहर म अउ गांव- गांव म फेर दॅंउड़ाय गीस।जनता ल जागरूक करे बर सबो विभाग के संगे-संग पंचायत विभाग के सीईओ,सचिव, अध्यक्ष, सरपंच, अउ जम्मो पंच मन शहर अउ गांव म हरियर तिहार मनाइन। पौधारोपण कार्यक्रम बर जनता के बीच कुछ हटके करे के नवाचारी उदीम म पंचायत के सबे दीदी मन हरियरे रंग के लुगरा, बलउस, स्कार्फ, चूरी, टिकली- फूंदी नखपालिस अउ हरियर चप्पल पहिर के अइन। पंचायत के कका- भइया मन हरियर मनीला, पेंट, पटका ,पेन अउ बंगला पान दबा के अइन।हरियर पेंट लगे सब्बल अउ कुदारी म भुकूर-भुकूर गड्ढा खने गीस।पंचायत विभाग के जम्मो अधिकारी अउ पदाधिकारी मन गड्ढा के गोल भाॅंवर खड़े होके पौधारोपण करत हरियर क्रांतिवीर बने बर अपन फेस (थोथना) ल कैमरा डहर घुमाइन अउ एंगल बदल-बदल के फोटू खिचाइन अउ विडियो बनवाइन।फेर अपन हरियर फेस (स्मार्ट थोथना) ल फेसबुक, वाट्सेप अउ स्टेटस  जइसन सोसल मीडिया म बुगबुगाय बर ढील दिन। देखते देखत समाज म बगरे नंबरदार अउ लरहामन के लाइक अउ शेयर करई म जम्मो मीडिया ल थोथनामय होवत देरी नइ लगिस।एती बपरी पौधा मन हरियर सुझे कस छे महीना ले हरियर-हरियर खुशी मनाइन तहाॅं माॅंग- फागुन म बेर के बैरी बरोबर घाम के आगू म मुॅंहुॅं -कान ल लोम दिन त एती आपदा म अवसर खोजत दियाॅंर समाज के जम्मो केन्द्रीय पदाधिकारी अउ क्षेत्रीय कार्यकर्ता मन बपरी हरियर पौधा मन ल ताजा माजा कस स्ट्रा लगाके चुहक डरिन।इहाॅं ले लेके उहाॅं तक के जम्मों जुम्मेदार मनखे मन पियास म बियाकुल छटपटात पौधा मन ल एक पसर पानी नइ पीया सकिन।आखिर हरियर प्रदेश के हरियर आदेश के किरपा ह इहीच कर तो अटकगे न..।अब तॅंय समोसा खवास चाहे फरा कुछ उद जलने वाला नइहे।

         चमक-दमक के आगू म  मनखे के सोच ह अतिक ॲंखरी होगे हे कि सुवारथ के रद्दा म रेंगे बर एक गोड़ म खड़े हो जथें।

                   पौधारोपण के नाम म हर साल करोड़ों रूपया के बजट पास होथे, ये अभियान ले धरती ह कतिक हरियर होथे येहा खोज के विषय आय फेर आफिस के फाफा-मिरगा मन ह खच्चित हरियर होई जथें।ये हरियर फाफा-मिरगा मन प्रकाश संश्लेषण करत अपन ओंड़ा म हराचार के पूंजी ल जमा करे बर चटकारा लगावत जनता -जनार्दन ल अभिजात्यक टूहूं घलव देखाथें।येहा गुलाझाॅंझरी नोहे त अउ का आय..।हरियर आदेश म गुलाझाॅंझरी वाले किस्सा के आखिरी हिस्सा के उद्यापन करत वो जजमान ह फेर बताइस..,कि  सरकार के कई ठन योजना ल  शपथ,नारा, रैली अउ वाट्सेप म शेयर करे के लिटमस टेस्ट से होके गुजारना घलव बहुत जरूरी रहिथे।जेकर जुम्मेदारी बर एक ठन गऊ बरोबर बड़ भागमानी संस्था देश के ओन्टा-कोन्टा म हवय। सचमुच म येकर नाम ल तो पाठशाला के जगा गऊशाला होना चाही।अइसे भी पाठशाला ह आधा पाकशाला तो बनिच गेहे।लरहा नंबरदार मन के हरियर सियाही म नहा-धोके हरियर आदेश ह जइसे पाठशाला म अमरथे।फेर शुरू हो जथे शपथ,नारा,रैली, क्वीज, निबंध अउ रंगोली प्रतियोगिता।येहा आज नहीं कई साल ले होवत आत हे।देश ल हरियर राखे बर लइका मन शपथ लेथें। इही मेके कतको लइका मन जब नेता अउ बाबू-साहेब बनथे तब धरती ल हरियर करे के जगा खुद ल हरियर करे म लग जथें।मने अपन शपथ लेय वाले पथ ल बदल देथें।शपथ लेवई अउ पथ बदलई के खेल म हरियर धरती के सपना ह लथफत हो जथे।

                  अब बता.. काकर मानी पीबे! आखिर यहू लरहा नंबरदार मन ह कभू लइका तो रहिन होही का..?सरकार ह देश-प्रदेश म हरियर योजना ल अमलीजामा पहिराय बर का-का जतन नइ करय फेर आफिस म बइठे डिग्री धारी बोरर मन सरी योजना ल पइजामा पहिराय म लग जथें।जनता मन वो दिन ल कइसे बिसरा सकथें जब आक्सीजन के कमी ले जिनगी ह त्राहि-त्राहिमाम करत रहिस। अमीर-गरीब, लइका- जवान अउ सियान कन्हो मन येकर बड़ोरा ले नइ बच सके रहिन। हवा के जहर- महुरा होय के सेती अवइया दिन- बादर म अइसने बड़े जान अलहन आय के अंदेशा ह अभी टरे नइहे। तब लगथे कि धरती म जतका पेड़ -पौधा अभी जिंदा हे सबले पहिली उही ल बचाय के उदीम करत पर्यावरण ल हरा-भरा करे जाय। कुलमिलाके जनता ल जागरूक करे बर अउ फाफा-मिरगा, बोरर जइसे खतरनाक परजीवी मन ले समाज ल फरिहर करे बर हरियर तिहार के संगे-संग एक ठन फरिहर तिहार मनाना जरूरी हे।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव


तेल न तेलई, बरा-बरा नरियई

 भाव पल्लवन*



तेल न तेलई, बरा-बरा नरियई

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बरा खाना हे त उरिद दार के पीठी भर ले काम नइ चलय ।वोला बनाये बर तेल अउ तेलई(कड़ाही),चुल्हा-आगी के तको जरूरत होथे। समान अउ इंतजाम अधूरा हे त बरा खाहूँ---बरा खाहूँ--झटकुन बरा चाही --चिल्लाये भर ले नइ मिल जवय।कतेक झन अइसने बिना मतलब के चिल्ल पों मचावत रहिथें। 

  कोनो चीज के साध करना बुरा नोहय फेर साध तभे पूरा होथे जब पर्याप्त सराजाम होथे--बढ़िया तैयारी होथे।

  जे मन बिना तइयारी के कोनो प्रतियोगी परीक्षा म बइठहीं वो मन ला भला सफलता कइसे मिलही? अधमरहा मन ले, आधा-अधूरा  तइयारी करे ले सफलता मिलबेच नइ करय।कतेक झन तो दसों साल ले तको अइसनहे तइयारी करत रथें अउ बार-बार असफल होके निराश हो जथें।ये मन ला तो शांत मन ले कारण ला खोजके निवारण के उपाय करना चाही। 

                    किसान हा बिना बिजहा, खातू-माटी ,पानी के खेती करही त फसल कहाँ ले लूही? जमीने रहे भर ले कुछु नइ होवय ।फसल बर माटी म माटी मिलके,पसीना ओगारे बर परथे।

  अइसने कोनो आयोजन के सफलता बर वोकर हर पहलू मा ध्यान देके मुकम्मल तइयारी करे बर लागथे।छोटे-छोटे जिनिस मन के चेत रखे बर लागथे नहीं ते कभू-कभू अइसे देखे म आथे के उद्घाटन के समे, दीपक जलायेच के बखत छिहीं-छिहीं माचिस खोजे ल पर जथे।कार्यक्रम म बाधा आये ले हल्ला-गुल्ला तो होबे करथे अतिथि मन के आगू म आयोजक मन ला शर्मिंदा होये ल पर जथे।

   मनखे के जिनगी ल संग्राम कहे जाथे। कई प्रकार के बाधा-बिपत्ति ले लड़े बर लागथे।लड़ना हे त साहस अउ हथियार दूनों चाही। सैनिक ह युद्ध के मैदान म बिना हथियार के लड़े बर जाही त मरही धन बाँचही तेन ह गुने के बात आय।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद छत्तीसगढ़