Sunday 9 June 2024

कोरा म लइका ,गाँव भर ढिंढोंरा

 कोरा म लइका ,गाँव भर ढिंढोंरा 

मंडल कहत लागे । बड़ अकन खेती । बड़े जिनीस बारी बखरी । कतको झिन कमइया । एके झिन नोनी लछवंतिन । दिखम म बड़ खबसूरत । फेर एक ठिन काम के न बूता के । बड़ जांगरचोट्टी ... दिन भर छलरिया मारत घूमत रहय । उही गाँव म रामू नाव के मनखे रहय । मंडल घर के सबर दिन के नौकर , ओकरो एके झिन बेटा मंगलू । बड़ होनहार । जे करा के भुंइया ल कमा देतिस , सोना उपजतिस । अतका मेहनती के , परिया परे टिकली भाँठा तको ल , उपजाऊ बना डरे रहय । ओकर हाथ में कोन जनि का जादू रहय के , जे काम ओकर हाथ म आय , चुटकी म सिरा जाय । जतका जमगरहा कमइया , ततका आदत बेवहार म सुघ्घर । तिर तखार तक म ओकर बड़ नाव रहय ।

लछवंतिन सग्यान होगिस । ठँई के गाँव म रहवइया गौंटिया के बेटा बर , अपन बेटी के बिहाव के प्रस्ताव रखे के सोंचिस । गाँव के पटिला हा मंडल ल समाझावत केहे लगिस - रामू के लइका मंगलू ल छोंडके , तेंहा काबर दूसर जगा खोजे बर जावत हस । मोर नोनी सग्यान होतिस ते , दूसर डहर झाँकतेंव तको निही । मंडलिन किथे – अई कमइया खवइया नौकर घर देबो तेमा हो , अपन लइका ल । दुनिया म अकाल परगे हे का .. ? फूले फूल म रहवइया , कइसे रही बम्बरी कांटा कस जगा म .. । भले मोर बेटी जिनगी भर कुंआरी रहि जही , फेर नि दँव ओकर घर । 

गौंटिया के बड़े बेटा संग रिश्ता के चलत बात , सुन डरिस लछवंतिन । ओकर मन तो मंगलू म बसे रहय । सगा आय के तैय्यारी म किसिम किसिम के खाये पिये के समान चुरे लागिस घर म । उचित मुहूरत देख रिश्ता पक्का करे बर गौंटिया हा बेटा संग पहुँचगे । लछवंतिन हा पानी धरके नि निकलिस  । मंडल केहे लगिस– लजावत हे नोनी हा । खाये बर बइठगे सगा मन । परोसे बर हाँक पारिस । लछवंतिन तभो नि निकलिस । कुरिया म जाके देखिन, करम फाटगे ....... । लछवंतिन हा खिड़की डहर ले कूद के भागगे रहय । मुंधियार होवत ले गाँव भर पता चलगे । रामू के बेटा मंगलू अऊ लछवंतिन के भगई ला सब जान डरीन । रामू के कुछ नि बिगड़िस ... मंडल के नाक कटागे । 

रामू कुछुच नि बता सकिस । रामू हा ओकर घर के बहुत विश्वासपात्र नौकर रिहिस । ननपन ले कमावत रिहिस । बाहिर भितर सबो डहर बेरोकटोक ओकर आना जाना रिहिस । घटना के पाछू बपरा हा मंडल के घर आवय जरूर फेर कोई ओकर संग न गोठियाय न बताय ... । चार दिन अइस .. कोई ओकर कोति निहारिन निहि । बिहान दिन ले रामू घला ओकर घर जवई बंद कर दिस । उही दिन मंडलिन के गहना गूठा चोरी होगे । बिन खोजे - परखे , चोरी के इलजाम रामू के ऊप्पर लगा दिन । रामू के घर खाना तलासी करे गिस .. पइन कुछु निहि तभो ले ओला चोट्टा अस कहिके गाँव म भारी डांड़ बोड़ी लगा दिन । मंडल घर के बूता छूटगे । बीमार परगे । बछर नहाकगे । खेती किसानी के दिन लकठियागे । ददा के बीमारी अऊ अपन माटी के प्रेम हा मंगलू ल परिवार सुद्धा ,गाँव लहुँटे बर मजबूर कर दिस । बहू बेटा अऊ नाती पाके खुश रामू हा , मंडल करा , मिले आये के संदेशा भेजिस । मंडल तरमरागे । फेर महतारी के मन कहाँ माढ़ही ..। साग बेचइया ल , दही मही वाली ल , कभू येला , कभू वोला अपन बेटी अऊ नाती के हाल पूछय । कतका बेर , कइसेच भेंट लेतेंव चंडालिन ल .. जी बड़ चुटपुटावय । 

लछवंतिन के मन घला , दई ददा संग मिले बर उदाली लेवत रहय । फेर पहिली के जमाना म जब तक मइके के लेनहार नि आवय , बेटी मइके म पाँव नि दय । तीजा लकठियागे ...। गाँव भर के बेटी बहिनी मन मइके पहुँचे लागिन । दई कलपत हे..... । ददा नी पसीजिस । कलपत दई बिमार परगे । रोवा राही परगे । ददा मजबूर । बेटी ल लेहे जाये के सुनतेच साठ मंडलिन खटिया ले उठ के बइठगे । ठेठरी खुरमी के बैना जोर डरीस । लाजे काने , मंडल पहुँचगे रामू घर ..।  

दई बेटी के मिलन होगे । कतका खवा डरतीस , कतका जोर डरतिस , नाती बर का कर डरतिस , तइसे होगे रहय जी हा । नाती मड़ियाये लइक होगे हे । पानी बरसत हे । इड़हर साग रांधे बर दार फिजो डरीस , पहटनिन दार पीस के चल दिस । महतारी बेटी गोठियावत , गोरसी तापत , कोचई पान के अगोरा म बइठे रहय । बेरा ढरत देख मंडलिन खुदे बखरी कोती रेंग दिस पान बर । 

अई बने बने या काकी ......., बाहिर म कतको तिजिहारिन मिलगे । चरबत्ता म समे नहाकगे , दिया बाती के बेरा होगे । लकर धकर पान टोर के घर पहुँचिस, पाछू पाछू मंडल घला घर आगे । लछवंतिन आगी तापत बइठे बइठे उंघावत रहय , लइका कोरा ले गायब ..... । लछवंतिन ल उठा के पूछे ल छोंड़ , लइका के खोज शुरू होगे । गाँव भर खोजा खोज मातगे । 

गाँव म खोजत , रामू घर पहुँचगे । लइका ल चोरा के लाने होही कहिके , ओला गारी बखाना कर डरिन । एती घर म , नोनी उचिस । महतारी ला घर म नइ पाके  संझा के दिया बार , दिया देखाये बर , खोली म  निंगिस , फूला तिर भुँइया हा गिल्ला लागिस । निहरके देखिस , लइका पेटी के सेंध म सुते रहय । धरके बाहिर निकल गिस , अऊ दई ल अगोरत गौरा चौंरा म बइठ , लइका ल गोदी म धरके खेलाये लागिस । मंडल घर गाँव भर के मनखे सकलाए लगिन , ओमन देखथे , लइका लछवंतिन के गोदी म खेलत रहय । लछवंतिन बताइस के , पेटी के सेंध म खुसरे अपन हाथ म एदे पोटली ल किड़किड़ ले धरे सुते रिहिस , येला हेर के नी देखे हँव काये तेला .....। पोटली ला तुरते हेर के देखिन ... सोन चांदी के गहना गूठा ... । सबो मुहुँ ला फार दिन । लछवंतिन के दई किथे - अई हाय ... कते करा पाये बइरी तेंहा एला । येहा उही गहना गूठा आये बेटी , जेकर चोरी के इलजाम म , तोर ससुर , बइसका म अपमानित होये रिहिस । गाँव के पटेल भड़कगे , ओकर ले रेहे नी गिस -  तूमन अपन तिर म खोजव निही , बाहिरे बाहिर टमड़थव । तुँहर घरे म सबो मिल जथे । फोकटे फोकट गाँव भर ढिंढोरा पीट डरथव । जेवर तुँहरे घर म हे अऊ लइका घला तुँहरे कोरा म ।  तुँहरे कोरा म खेले बाढ़े अतेक सुघ्घर लइका मंगलू ला  घला अपना नि सकेव ... बाहिर म दमाद खोजे बर निकलेव ... ओकर काय हस्र होइस ... बदनामी के सिवा काय पायेव ... ? पटेल के बात के समर्थन म कतको हुँकारू भरागे । रामू निर्दोष साबित होगे । मंडल अपन गलती सँवासिस , दमाद ल अपना डरिस , रामू संग समधी जोहार डरिस । कुछ महिना म .. मंगलू हा मंडल के बेटा के भूमिका म आगे .. अब ओहा गाँव के नावा मंडल होगे । बिगन खोजे जाने सुने , बाहिरे बाहिर उपरे उपर टमड़इया मनखे बर पटिला के गोठ “ कोरा म लइका , गाँव भर ढिंढोरा “ हाना बनगे । 

  हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

No comments:

Post a Comment