Thursday 23 May 2024

*छत्तीसगढ़ी अउ रंग संसार*


        *छत्तीसगढ़ी अउ रंग संसार*

            ------------------------------------

        


             छत्तीसगढ़ी में भी, प्रदर्शनकारी रूपंकर कला 'नाटक ' के बड़ समृद्ध आयाम अउ परम्परा हे। नाचा अउ गम्मत जइसन एम्पीथियेटर मन म तो ,पूरा सइघो खोल हर रंगमंच बन जाथे, तब 'रहस(रास -रास लीला) खेले के बखत तो खोल का पूरा के पूरा गांव भर हर,थियेटर बन जाय रइथे। कभु कभु तो तीर तखार के एक दु गांव तक ,घलव रंगमंच हर बगर जाथे। अउ येकर ले जो रस सिद्धि रस परिपाक होथे,वोला तो भाष्यकार हर  'ब्रम्हानन्द सहोदर ' तक कह देय हे। छत्तीसगढ़ ही क़ाबर? बनारस के रामलीला अउ बरगढ़ (उड़ीसा) के कृष्ण लीला म घलव ये बात आथे। अउ ये सब मिलके समग्र भारतीय नाट्य वांग्मय बनथे।


          अब बात पारंपरिक डोर परदा वाला रंगमंच या आधुनिक प्रकाश अउ ध्वनि प्रभाव वाला रंगमंच के बात करथन तब भी, छत्तीसगढ़ी हर कमसल नई ये। इहाँ घलव वैश्विक अपील वाला नाटक सिरझे हे। नाटक के वैश्विक लीडर हर छत्तीसगढ़ी नाटक खेले हे अउ आन आन देश म, वोमन के विक्कट अकन प्रदर्शन होय हे। वो महामना के नाम हबीब तनवीर ये,फेर उँकर नांव लेवत देवदास बंजारे के नाम ल घलव लेत हावन, जउन हर नाटक के संगे संग अनुषांगिक रूप ले,पंथी नृत्य ल अप्रतिम ऊंचाई अउ लोकप्रियता  देवाइस। आज घलव डॉ.नन्दकिशोर तिवारी असन शीर्ष छत्तीसगढ़ी रंग लेखक,अउ डॉ. योगेंद्र चौबे असन प्रयोगधर्मी अउ सिद्धहस्त रंग निर्देशक मौजूद हें, जउन मन अपन पूरा क्षमता के साथ छत्तीसगढ़ी रंग ल संवारत हें, निखारत हें।


        छत्तीसगढ़ी नाटक मन घलव शास्त्रीयता के पूरा पालन करत हें। फेरआजकल छत्तीसगढ़ी असन देशज भाषा मन म, जउन नावा नाटक लिखे जात हें।वोमन म  संस्कृत नाटक मन के सबो नियमों के पालन या  वो विषय मन  ल  शामिल करई अनावश्यक समझे जात हे। भारतेंदु हरिश्चंद्र कहत हें -'संस्कृत नाटक की भाँति हिंदी नाटक में उनका अनुसंधान करना या किसी नाटकांग में इनको यत्नपूर्वक रखकर नाटक लिखना व्यर्थ है; क्योंकि प्राचीन लक्षण रखकर आधुनिक नाटकादि की शोभा संपादन करने से उल्टा फल होता है और यत्न व्यर्थ हो जाता है।' ये में  ये गोठ सामने आथे कि नाटक के शास्त्रीय विधान हर गौड़ ये,वोकर प्रभाव हर पहिली ये, मुख्य ये। प्रभाव दिखना आवश्यक है। प्रभाव हर बाधित हो जाही तब ,वोकर शास्त्रीय रूप के का मतलब रह जाही। छत्तीसगढ़ी नाटक मन म,बस एईच प्रभाव के चिंता करे जाथे। येकर सेती वोकर शास्त्रीय रूप हर थोरकुन कमसल भी लग सकत हे।शास्त्रीय नाटक मन के गोठ उघारे ले,  जुन्ना ग्रीस अउ रोम के नाट्य परंपरा ल ,आज बुड़ती डगर के (पाश्चात्य )  के कला समीक्षक मन आदर्श मानथें।  ग्रीस अउ रोम के नाटक मन अब्बड़ कड़ाई ले  नाट्य तत्व मन ल नाटक मन म गूँथत रहिन। अउ ये बुता के बढ़िया उतारा (प्रतिसाद) घलव मिलिस।


            भारतीय नाटक के  इतिहास ल झांकबे तब प्राचीन वैदिक काल म नाटक के संकेत मिलथे। येकर बाद येहर आधुनिक रंगमंच के परंपरा -चलागत ल  को आगु बढोथे। जुन्ना ग्रन्थ मन  म , पुराण, उर्वशी, यम और यमी, इंद्र-इंद्राणी, सरमा-पाणि और उषा सूक्तस के  संग जुन्ना  नाटक मन के शुरुआत ऋग्वेद के स्मारकीय स्रोत सामग्री के कारण होथे।



भारतीय नाटक के तत्व


    बनेच अकन नाट्यशास्त्री मन तरी लिखाय तत्व मन ल ,एकठन  सफल नाटक बर आवश्यक मानथें -

1.विषय-वस्तु

2.कथानक

3.देखईया (श्रोता/दर्शक)

4.संवाद

5.मंच सज्जा

6.सम्मेलन

7.चरित्र चित्रण

8.संगीत

9.तमाशा

10.विराधाभास -द्वंद

11.प्रतीक


             ठीक अइसन नाटक हर घलव तीन रकम के भेंटाथे -

1.कॉमेडी (हास्य प्रधान -सुखांत)

2.ट्रैजेडी (करुणा प्रधान -दुखांत )

3.मेलोड्रामा (आपत्ति विपत्ति ल बतात कथा)


छत्तीसगढ़ी के रंग संसार -


       छत्तीसगढ़ ल बड़ गरब हे कि दुनिया के सबले जुन्ना थियेटर ,वोकर रामगिरि के गुफा म हे।अउ आज ले घलव सुरक्षित हे।तईहा जमाना म ,वोमे बरोबर नाटक होवत रहिस होही।आधुनिक स्टेज सज्जा के बनेच अकन अंश उहाँ मौजूद हे। ये रामगिरि के रस्ता हर,तो कालिदास के यक्ष के घलव डहर ये। छत्तीसगढ़ के धरती म,सिंघनपुर ,कबरा सोनबरसा, बोतलदा के शैल गुफा मन म, आदिमानव के धमक मौजूद हे। वोकर करा चित्र बनाय के कलात्मक संचेतना रहिस तब बोहर अपन बर भासरी (भाखा) भी गढ़ लेय रहिस। ध्वनि मन ले जिनिस मन ल जोड़त वोहर वोमन के नामकरण करत रहिस।आगी ल खुंदिस तब बग्ग ल करिस तब वोहर आग्गी हो गय। गाड़ी जइसन जिनिस हर गड़गड़ ढुलिस तब वोहर गाड़ी हो गय। कहे के अर्थ हे प्राकृत ल आदि मानव प्रकृति से सँजोइस।अउ वो भी नाटक खेलत रहिस होही, ठग -ठियाली के अभिनय करत रहिस होही।  


छत्तीसगढ़ी म नाटक -


           सन् 1903 म जब हिन्दी नाटक मन के कोई खास चिन्हारी नई रहिस।तब चित्रोत्पला महानदी के खंड़ म स्थित बालपुर (चंद्रपुर जिला सक्ती ) म बइठ के छत्तीसगढ़ी भाषा में पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय जी हर  'कलिकाल' नाम से छत्तीसगढ़ी नाटक के रचना करे रहिन। येकर बाद तो, कतको लेखक मन हिन्दी-छत्तीसगढ़ी म नाटक लेखन  करिन। येमे मुख रुप ले डॉ. शंकर शेष, विभू खरे, डॉ. प्रमोद वर्मा, प्रेम साइमन मन के बड़ नांव हे । ये लिखाय नाटक मन ल सत्यजीत दुबे, हबीब तनवीर जइसन रंगकर्मी मन मंच म मंचित करिन। हबीब तनवीर हर तो आगरा बजार, राजतिलक, मोर नाम दामाद गांव के नांव ससुराल, चरणदास चोर जइसन गजब के नाटक करिन। ये  नाटक मन ले छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़  कलाकारों की पहचान पूरा दुनिया में कराईन। 


       छत्तीसगढ़ म आज अनुप रंजन पाण्डेय, योगेन्द्र चौबे, राजकमल नायक, सुभाष मिश्रा, मिर्जा मसूद , हीरामन मानिकपुरी, अजय आठले, उषा आठले,चंद्रशेखर चकोर अइसन नाम आंय, जेमन रंग निर्देशन के क्षेत्र म जगमगात हें। वहीं नाटककार मन के एक पूरा पीढ़ी हर अभी नाटक सृजन म लगे हे जेमा डॉ नन्दकिशोर तिवारी ( मोर कुंआ गंवागे, अथ श्री कचना घुरूवा कथा,अहिमन कैना, रानी दई डभरा के),डॉ सुरेंद्र दुबे (पीरा),  डॉ. परदेशी राम वर्मा ( मंय बइला नो हंव), रामनाथ साहू(जागे जागे सुतिहा गो !, हरदी पींयर झाँगा पागा ) मन के नांव लिए जा सकत हे।


          आज भी छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी म,बढ़िया नाटक लिखे जात हे, पढ़े जात हे अउ मंचित भी होवत हें।


*रामनाथ साहू*



-

No comments:

Post a Comment