Friday 26 July 2024

बरसात मा महँगाई-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 बरसात मा महँगाई-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                 असाढ़ ले सब ला आस रथे, काबर कि असाढ़ आथे धरके पानी, अउ पानी आय जिनगानी। चाहे वो जीव जंतु होय या पेड़ पउधा या फेर तरिया नदिया, सबे इहिच बेरा अघाए दिखथे, फेर भुखाय दिखथे ता हाँड़ी, काबर कि बरसात लगत साँठ खेत खार बारी बखरी मा पानी भर जथे, अउ जम्मो खड़े साग भाजी के फसल चोरोबोरो हो जथे। ना बने भाजी भाँटा मिले ना मिर्चा धनिया पताल। बंगाला,आदा,मिर्चा, धनिया, लहसुन,पियाज, गोभी कस अउ कतकोन साग भाजी महँगा हो जथे। ये बेरा मा हरियर  साग-भाजी छोट मंझोलन के हाथ घलो नइ आय। चारो मुड़ा महँगाई महँगाई राग सुनावत दिखथे।  एक समय रोज टीवी पाकिस्तान मा टमाटर के खबर बतावत हाँसत, नइ थकत रिहिस, ते आज  खुदे टमाटर, अदरक, मिर्चा के महँगाई के मारे थर्रा गेहे,मुँह ले बख्खा नइ फूटत हे। आज बंगाला,आदा,दार,कस अउ कतको साग भाली दोहरा, तीसरा शतक मारत हे, हाय रे महँगाई। 

                  कथे कि, यदि प्रकृति के संग चलबे ता प्रकृति वोला पालथे, फेर मूरख मनखे मन तो प्रकृति ले मुँह मोड़ लेहे, ता महँगाई भर का अउ कतको आफत झेले बर पड़ही। कटत पेड़, अँटत नदिया नरवा, भँठत बखरी ब्यारा, बढ़त प्रदूषण अउ कांक्रीटीकरण के मारे प्रकृति खुदे आकुल- ब्याकुल हे,ता का मनखे अउ का जीव जानवर। आधुनिकता के मोह मा चूर मनखे प्रकृति ला लात मारत जावत हे। फ़्रिज,टीवी,कूलर, महल,मीनार,टॉवर,कल कारखाना, खच्चित नवा जमाना मा कूदा सकथे, फेर पेट मा कूदत मुसवा ला नइ चुप करा सके। एखर बर खेती किसानी, बखरी ब्यारा जरूरी हे। कृषि भूमि भारत  के कृषक छबि,धीर लगाके  आज धूमिल होवत जावत हे। किसान अउ कृषि भुइयाँ दिन ब दिन कमती होवत हे। सब ले ले के खाना चाहत हे, उपजा के खवइया गिनती के हे। अइसन मा जे धर पोटार के रखे रही, ओखरे बोलबाला  तको रही, अउ इही होवत हे। कोल्ड स्टोरेज के जमाना मा नफा व्यापारी, अड़तिया मन कमावत हे। *मैं तो कथों जे दिन तक कोठी मा धान रही, ते दिन तक ईमान रही।* आज कोठी,काठा के जमाना नइहे, अइसन मा ईमान, धरम ल भूले बर पड़त हे, सब आफत मा अवसर खोजइया हे। किसान के बारी बखरी ले जब इही बंगाला भक्कम निकले, ता सड़क तक मा कोल्लर कोल्लर फेकाय दिथे, अउ जब बरसा घरी धान, पान अउ पानी बादर के सेती बखरी उजड़ गे, ता ये  स्थिति हे। बरसा घरी फकत इही साल अइसन महँगाई आय हे, यहू बात गलत हे। काबर कि अइसन स्थिति हर बछर बनथे। हरियर साग भाजी  सहज नइ मिले, अउ मिलथे ता बनेच महँगा। पेड़ प्रकृति, बखरी ब्यारा, खेत खार ले जतका दुरिहाबों ओतके दुख भोगेल लगही।


             मोला मोर ननपन के सुरता आवत हे, जब डोकरी दाई अउ ममा दाई मन रोज गरमी घरी कभू तूमा, कभू कोंहड़ा, कभू रखिया ता कभू पोगा कस कतकोन किसम किसम के बरी बनाये, अउ रोज रोज रंग रंग के भाजी पाला ,साग सब्जी ला घाम मा सुखाए। पूछंव ता काहय कि,  चौमासा के जोरा करत हन बेटा। अउ उही जोरा के सेती, वो बेर उन मन ला कभू बाजार हाट के मुँह ताके के जरूरत तको नइ पड़िन। गर्मी मा चौमास बर जोरा सबो चीज के होय, चाहे छेना लकड़ी, पैरा भूँसा, चाँउर-दार, भाजी खोइला होय या छत छानी, पंदोली या फेर टट्टा झिपारी। अउ एखरे सेती चौमासा बढ़िया बीते तको। अइसे नही कि रात दिन बरी बिजौरी ही खाएल लगे, रोज बदल बदल के साग बने। एकात दिन सेमी भाँटा खोइला, ता एकात दिन आलू मसूर-चना। कभू लाखड़ी ता कभू चना चनवरी भाजी, कभू काँदा, कभू बड़ी ता कभू कढ़ी-डुबकी। एखर आलावा हरियर साग भाजी बारी बखरी के तको निकले, जइसे जरी, खोटनी, चेंच, चरोटा,खेकसी, कुंदरू। संग मा खेत खार ले रंग रंग के पुटू, बोड़ा अउ करील। तरिया नरवा मा चढ़त मछरी कोतरी तको ये समय सहज मिल जाय। घरों घर नींबू,पपीता, केरा, मुनगा के पेड़ तको रहय। अदरक के पत्ता चाहा बनाये के काम आ जाय, चाहा तको बढ़िया लगे, फेर आज कहाँ कोनो पीथे। ये प्रकार ले चौमास के जोरा अउ पेड़ प्रकृति ले जुड़े रहे मा, कभू साग सब्जी के किल्लत नइ होवत रिहिस। फेर आज मनखे कर न बखरी ब्यारा हे न खेत खार,  अउ थोर बहुत हे उहू मा क्रांकीट अउ मार्बल लगे हे, अइसन मा कहाँ खेकसी कुंदरू, चेंच चरोटा अउ कहाँ के पुटू, बोड़ा अउ काँदा कुसा।

                         आज मनखे रोज रोज बाजार ले भाजी पाला लाथे ता रांधथे खाथे। जबकि पहली के सियान मा कतको दिन के झड़ी, झक्कर अउ पूरा तक मा घर के ही साग भाजी ला खाये। कोन जन आजो अइसने हो जही ता का होही? घर मा ना बरी हे, ना बिजौरी न कुछु सुक्सा अउ न बारी बखरी। मनखे के जिनगी चुक्ता बाजार मा टिके हे, अइसन मा बाजार बाजा बजाबे करही। कभू नरियात, ता कभू कोनो ला गरियात काटव बरसा ला, फेर यहू बात ला झन भुलव कि दोषी खुदे हरव, काबर कि अपन संसो खुदे नइ करत हव। काली बर धन दौलत तो जोड़त हन,फेर जिनगी, नइ जोड़त हन। आज मनखे ला, हाय हटर अउ ताजा ताजा खाबो वाले चोचला, ले डूबत हे। तभे तो रोज रोज लेवत खावत हन। भले बोतल अउ पाउच के बासी पानी, लस्सी, मटर,मशरूम कतको दिन के होय। टमाटर, समाटर तको तुरते के टोरे नइ रहय। ताजा ताजा कहिके राग लमइया, फ्रिज मा पन्दरा पन्दरा दिन साग भाजी ल रख के खवइया संग कोन मुँह लड़ाय। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

अपन अपन रुख

 अपन अपन रुख

रुख रई जंगल झाड़ी के , बिनाश देख, भगवान चिंतित रहय। ओहा मनखे मन के बइठका बलाके , रुख रई लगाये के सलाह दिस । कुछ बछर पाछू ,भुँइया जस के तस । फोकट म कोन रुख लगाहीं । भगवान हा मनखे मन ल , लालच देवत किहिस - रुख रई के जंगल लगाये बर , मनखे ल , मुफ्त म भुँइया अऊ नान नान पौधा बितरण करहूँ , संगे संग घोषणा करिन के , जे मनखे मोर दे भुँईया म बहुत अकन रुख , रई , झाड़ झरोखा लगाही , अऊ वोला सुरक्षित राखही , ओमन ल जीते जियत परिवार समेत सरग देखाहूँ ।

समे बीते के पाछू ... भगवान ला धरती म ..रुख लगइया मन ला देखे के इच्छा जागृत होइस । समय पाके उँकर मन तिर पहुँचगे भगवान । एक झिन रूख लगइया हा बतइस - हमन अइसे जंगल लगाये हाबन , जे न केवल हमन ल सुख देवत हे , बल्कि अवइया हमर कतको पीढही ल सुख अऊ समृद्धि दिही । भगवान उँकर लगाये जंगल ला देखे के सऊँख करिस । ओ मनखे हा भगवान ला अपन जंगल देखाये बर दूसर दिन लेगे । उहां बड़े जनीस भुँइया म बिशाल सभा के आयोजन रिहिस जिंहा घंटों भाषण , तहन राशन , सांझ कुन कुछ कुछ अऊ ......., रथिया कुछ अऊ.......। शरम के मारे भगवान देख नइ सकिस ....... कसमसावत अपन आँखी मूंद लिस । दूसर दिन बिहाने ले भगवान फेर पचारिस - आज तोर रुख ल देखाते का जी ? ओ मनखे किथे – या .. काली नइ देखेव का भगवान ? चलव फेर देखावत हँव । एक ठिन गाँव म बड़े जिनीस सभा सकलाये रहय जेमा कोरी खइरखा मनखे ...... पाँव धरे के जगा निही ..... चारों डहर खोसकिस खोसकिस ......। भगवान पूछथे - कती करा हे तुँहर रुख , देखा मोला .... खाली भीड़ भडक्का म धुर्रा खाये बर ले आनथस । मनखे किथे - अतका कस मनखे रुख तोला नइ दिखत हे भगवान ......। मुहूँ ल फार दिस भगवान । भगवान पूछिस - ये कइसे रुख आय जी ? मेंहा रुख रई के जंगल लगाये बर केहे रेहेंव , तूमन मनखे के जंगल लगा देव ? मनखे किथे -जे रुख लगाये ले सरग के सुख मिलही , तिही ल लगाये हाबन जी । भगवान रटपटा के किहिस - तूमन ल सरग लेगना तो दूर ,जुर्माना होही । बिगन हमर आज्ञा ,हमरे जगा भुँइया म दू गोड़िया रुख लगा डरेव । मनखे किथे - जुर्माना .... काये के जुर्माना जी ..... । रुख लगाये बर तोर भुँइया के एक इंच इस्तेमाल नइ करे हाबन , अऊ तो अऊ ये रुख के बाढ़हे बर ... तोर सुरूज के घाम तोर प्रकृति के हावा तक नइ ले हाबन । तैं खुदे देख ...। 

भगवान ध्यान लगाके देखे लागिस । वाजिम म , भाषण के खेत म , आश्वासन के खातू , लालच के पानी अऊ मौकापरस्ती के घाम म खसकस ले उपजे रहय , बन बांदुर कस , मनखे रुख। बीच बीच म राहत के कीटनाशक के छिड़काव करके , कीरा परे ले बचा डरय ।भगवान पूछिस -  एकर फल फूल म ,तूमन ल कायेच फयदा होवत होही ? वो किथे - इहाँ के बात तोर समझ म नइ आवय , ये रुख म जे फूल खिलथे , तेकर महक म कतको झिन बौरा जथे । पाँच बछर म एक बेर फूलथे , ये फूल के नाव वोट आय । इही वोंट फूल हा खुरसी फर बन जथे , जेला एक बेर तहूँ चिखबे ते , सरग ल भुला जबे , वापिस नइ जाँवव कहिबे । भगवान किथे - त मोर दे भुँइया अऊ पौधा के का होइस जी ? ओ मनखे किथे – ओला हम नइ जानन ..... अपन जमीन म मनखे के पेंड़ ल लगाथन अऊ पालथन भगवान .... रिहिस बात तुँहर पौधा के , होही कहूँ करा फेंकावत , हमर सरग इँहे हे , हम का करबो तोर पौधा ल , लेग जा वापिस । मुड़ी पीटत , रुख लगइया दूसर मनखे खोजे लागिस भगवान हा.......। 

कुछ धूरिहा म , एक झिन ला रूख तिर देख पारिस त ... ओला पूछे लगिस भगवान हा –तहूँ रुख लगाथस का जी ? देखा भलुक , कइसने लगाये हस ? ओ किथे - तैं सी. बी. आई. के मनखे तो नोहस ? भगवान किहिस - अरे नोहो रे भई , मेंहा भगवान अँव ...। वो फेर किथे - अच्छा ..... तोला कन्हो जाँच वाले समझत रेहेंव । तूमन ल हमर रुख का दिखही भगवान ? हमर साहेब खानदान म , हमन अपन रुख इहाँ नइ लगावन , हमर रुख स्वीस बैक म जामथे । का..... मुहुँ ला फार दिस भगवान ? ओ किथे - हव भई , हमन पइसा के रुख लगाथन , जेला कन्हो ल देखन नइ देवन । जे देख डरथे , तेला नान नान चँटा देथन । भगवान खिसियइस - कस रे साहेब , अइसने रुख लगाये म तूमन ल सुख मिलथे रे ? जुर्माना लागही , बिन आज्ञा के हमर दे जगा भुँइया म दूसर रुख जगो डरे ।ओ जवाब दिस – का के जुर्माना भगवान , न तोर भुँइया , न तोर हवा , न तोर प्रकाश । भगवान पूछिस - त कइसे जाम जथे तोर रुख ? वो किथे - कागज के खेत म , भ्रस्टाचार के खातू , जनता के लहू ले सिचई अऊ हेराफेरी के घाम म मोर रुख लहलहाथे भगवान ..... तैं का जानबे...... । लबारी के कीटनाशक ओकर रक्षा करथे । मोर लगाये रुख म , मोर सात पीढ़ही बइठे बइठे सरग कस खा सकत हे । भगवान किथे – त मोर भुँइया ल का करेव ? ओ मनखे बतइस – ओहा को जनी ….. कबके बिदेश म गिरवी धराहे ........... ।

कुछ धूर म .... खँचका खनत मनखे देख भगवान पूछिस – रुख जगोये बर खनत हस का जी ? वो किथे – का रुख लगाबे भगवान , ओला रात दिन , राजनीति के ढोर डांगर मन चर देथे । भगवान पूछिस - त खँचका काबर खनत हस ? ओहा किथे - रुखेच जगोये बर आय , फेर अपन रुख जगोहूँ । भगवान फेर पचारिस - हमर दे रुख नइ लगावस का जी ? ओ किथे -ओला का करबे , आज लगाबे , काली उखानबे , नइ उखानबे तभो उखनही , वइसे भी हमर देश के सरकारी भुँइया म तोर रुख जगोये के अऊ ओला खड़े राखे के ताकत निये । आज गड्ढा कोड़थन , महीना भर पाछू , रुख के जगा बिल्डिंग खड़ा हो जथे । भाखा , जाति ,क्षेत्र अऊ धरम के गड्ढा भले कभू नइ पटाये , फेर रुख लगाये बर खने गड्ढा दूसरेच दिन पटा जथे । तोर दे रुख लगइच देबो त , तामझाम के भुँइया म , प्रचार के खातू अऊ स्वारथ के सिचई , खइत्ता ताय , कतिहाँ ले जामही .....। किरागे तँहंले , अवसरवादिता के कीटनाशक म कतेक दम ...... । तेकर सेती , तोर दे रुख के ओधा म , हमन अपन रुख , अइसे जगा जगोथन ,जेहा जामथे ते जगा भुँइया हा , शहर बन जथे । का ...... भगवान सोंच म परगे  ? ओ मनखे हा ..... देखइस अपन रूख ला .......जेती देख तेती घरेच घर , बड़े बड़े बिल्डिंग , फेक्ट्री ....... अऊ कांक्रीट के जंगल । भगवान सुकुरदुम होगे ।

 चिरहा कुरता पहिरे , बीता भर खोदरा पेट के मनखे का रूख लगावत होही ...... इही सोंच ओला अनदेखी करत रेंगत रिहिस भगवान हा । तभे अवाज अइस , रुख तो मोरो करा बहुत हे भगवान , फेर लगावँव कति .... ?  जे भुँइया ल मोर किथँव , तेला सरकार नंगा लेथे , बिन भुँइया के कामे जगो डरँव । जियत जियत सरग जाये के साध म , रुख लगाये के उदिम जहू तहू ... महूँ कर पारथँव , फेर ओला पेंड़ाये म काटे बर पर जथे । भगवान किथे – अब समझ अइस , हमर जंगल ल कोन काट बोंग के पर्यावरण ल नकसान पहुँचाथे , लेगव ले नरक म एला । वो किथे – वा....... कइसे करथस भगवान ? तैं कहत हस ते रुख ल काटना तो दूर , ओकर सुखाये डारा पाना ल सकेले म हमन पकड़ा जथन , ओ रुख मन ल ट्रक ट्रक भरके शहर म बेंचइया मन मलई खावत हे , अऊ हमन ल नरक लेगहूँ किथस । में तो अपन रुख के बात करत हँव । भगवान किथे - देखा , तोरो रुख ल , कइसना हे ? वो रोवत किहिस - का देखावँव भगवान , गरीबी के खेत म , मेहनत के खातू अऊ पछीना के सिचई म , अरमान के रुख लगाथँव भगवान । फेर उहू ल , कलह अऊ स्वारथ के किरवा मन , सरकारी बिकास के पइसा कस चुहँक देथे । कतको साम्प्रदायिकता के बन बांदुर ल नींदथँव , तभो जामिच जथे । त्याग अऊ तपस्या के दवई हा .....  मंहंगई के घाम झेले नइ सकय ..... लेसा जथे । ओहा बताये लगिस -ले दे के मोर अरमान के रुख बाढ़िच जथे तब उही ला मसक के , ओकर बोटी बोटी करके , अपन लइका ला पढ़हाथँव । इही रुख के कुटका कुटका करथँव तब हमर चूलहा म आगी सिपचथे , रंधनी खोली म कुहरा गुंगवाथे , मोर बिमार दई के दवई आथे , अऊ अपन बई के लाज ढाँकथँव । मोर अरमान के रुख , मोला आज तक सुख नइ दिस ......, त मोर नोनी बाबू ल का सुख दिही । ये रुख जबले जामे हे , मन म दुखेच उपजथे । मोर अइसन रुख ल तोरे तिर लेग जते भगवान । भगवान किथे - में काये करहूँ , इही रुख के सेती खुदे किंजरत हँव ... ये दुआर ले वो दुआर ...........।

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

बजार अउ छत्तीसगढ़ी गाना*

 *बजार अउ छत्तीसगढ़ी गाना*


तइहा जमाना म जब दुकानदारी मन कोनो जघा म स्थायी रुप ले नइ खुलत रिहिन तब गांव गंवतरी के मनखे मन बर अपन जरुरत के जिनिस बिसाय के एके ठिकाना रिहिस-बजार।जेला पहिली हाट ज्यादा कहे जाय।रोंठ असन गांव या जेन गांव के अबादी बने रहय तइसन गांव मा बजार भराय।बजार बइठे बर बजार के लिए अलग से जघा रहे जेमा बैपारी अउ गांव गंवतरी के भाजी पाला बेचइया मरार,बर्तन बेचइय्या कसेर,हडि़या कुडे़रा बेचइय्या कुम्हार,कपड़ा बैपारी कोस्टा,मसाला बेचइय्या बनिया,सोन चांदी वाले सोनार,चप्पल जूता बेचइय्या मोची मन अपन दुकान लगावय।

मनिहारी दुकान मन मा माइलोगन मन के अड़बड़ भीड़ रहे।

बइला भैंसा के बजार घलो लगय।कतको अकन गांव के बजार एकरे सेती नामही रहे।गांव मन के नाम घलो बजार के सेती पर जावय जैसे बरोंडाबजार,बलौदाबजार।

बजार ह सिर्फ लेन देन के जगह मात्र नी रिहिस।उंहा सुख दुख के संदेश घलो पठोय जाए।मिल भेंट घलो होवय।बजार में सगा सोदर,मित मितान मन संग बइठे के सुख अउ संग म चाय पानी पीके नीते बंगला पान खावत के बजार किंजरे के सुख के बाते निराला रिहिस।

बजार ले लहुटत दाई ददा के अगोरा मा नान्हे नान्हे नोनी बाबू मन खड़े रहे।बजार के खजानी के का कहिना!!!चना मुर्रा,तिल,करी अऊ भक्का लाड़ू ला खावत बगरावत लइका मन के खुशी के बखान नी करे जा सके।

बजार आज घलो भराथे फेर तइहा कस मजा नी रहि गेहे।काबर कि अब हर जिनिस घर मुहाटी म मिल जाथे।

बजार के महत्तम ऊपर छत्तीसगढ़ी मा बहुत अकन गीत बने हे।जेमा के कुछ गीत मन घातेच धूम मचाइस हे। परसराम यदु जी हा कमला वर्मा अउ एलिस जान संग बेमेतरा के बजार चले आबे ओ अउ ले जाहूं तोला ओ बेमेतरा के बजार गावत बेमेतरा बजार घूमाय हे।त लोकरंग अर्जुंदा वाले कार्तिक सोनी हा अर्जुंदा के बजार चले आबे काहत अर्जुंदा के बजार के बारे म बताय हवै।

पंडित दानेश्वर शर्मा जी के लिखे कुलेश्वर ताम्रकार अउ रजनी रजक के स्वर मा ए चैती सुन एती जाबो उतई के बजार....मन मोह लेथे त मिथलेश साहू अउ ममता चंद्राकर के स्वर मा चल किंजर आबो संगी सुपेला के बजार...सुपेला बजार घूमा देथे।इही क्रम मा आरंग तीर के समोदा गांव के बजार के बारे मा रमा,प्रभा अऊ रेखा जोशी बहिनी मन एदे कुरुद कुटेला....गीत मा बताय हवै।

बजार सिर्फ जिनिस बिसाए के जघा मात्र नइ होवय।बजार मा मेल मुलाकात ले मया घलो बढ़थे।त घूमौ अपन लकठा के बजार ला....


रीझे यादव टेंगनाबासा (छुरा)

ग्रामीण अर्थव्यवस्था(छत्तीसगढ़ी गीत कविता के माध्यम ले) मा छत्तीसगढ के नारी मन के योगदान-खैरझिटिया*

 *ग्रामीण अर्थव्यवस्था(छत्तीसगढ़ी गीत कविता के माध्यम ले) मा छत्तीसगढ के नारी मन के योगदान-खैरझिटिया*


               नारी मन न सिर्फ गृहस्थी के बल्कि जिनगानी रूपी गाड़ी के घलो दू पहिया मा एक ए। नारी शक्ति के बिगन सृष्टि-समाज के कल्पना करना निर्थक हे। नर जब ले ये धरा मा जनम धरे हें उंखर संगनी बनके नारी सदा संग देवत आवत हे, अउ एखरे प्रताप आय कि आज दुनिया चलत हे। आवन"ग्रामीण अर्थव्यवस्था मा छत्तीसगढ़ के नारी मन के योगदान" ऊपर चर्चा करीं। वइसे तो जब अर्थ के बात होथे, ता नगदी रकम नयन आघू झूले बर लग जथे। शहरी अर्थव्यवस्था मा लगभग काम कर अउ पइसा ले चलथे फेर ग्रामीण अर्थव्यवस्था आजो कतको प्रकार के विनिमय मा चलथे, जइसे वस्तु विनिमय,श्रम विनिमय--। नगद या फेर अर्थ तो बहुत बाद मा आइस, पहली जिनगानी विनिमय मा ही चलत रिहिस। पौनी पसारी परम्परा मा घलो सेवा के बदला मा चाँउर,दार अउ जरूरत के चीज बस मिलत रिहिस। पहली हाथी घोड़ा,गाय भैस वाले घलो धनवान कहिलात रिहिस,फेर आज फकत पइसा वाले ही धनवान हे। आज गांवों मा घलो काम,बूता अउ सेवा सत्कार के अन्ततः मोल अर्थ ही होगे हे। पहली ग्रामीण महिला मन घर मा ही रहिके, घर के अर्थव्यवस्था ल बरोबर नाप तोल मा चलावत रिहिस, आज भले बाहिर नवकरी, व्यवसाय अउ सेवा कारज मा जावत हे। पहली घर मा ही दाई महतारी मन अर्थ के भार ला कम करे बर, चाउंर दार ला घरे मा कुटे अउ दरे, संगे संग साग भाजी बोवत तोड़त, बरी बिजौरी घलो बनावय। घर के जम्मो बूता के संग खेत खार मा घलो श्रम देवयँ। पहली ग्रामीण महिला मन फेरी लगा लगा के सामान, साग भाजी घलो बेचे अउ आजो बेचते हें। दुकान, हाट बाजार,खेत खार,स्कूल कालेज,आफिस दफ्तर,खेल-रेल सबें जघा आज महिला मन अपन बरोबर योगदान देवत हे। 

     गाँव मा लोहार, नाई, मरार, कुम्हार, धोबी, मोची, रौताइन, मालिन--- आदि कतको समाज के जातिगत व्यवसाय रहय। जेमा वो समाज के महिला अउ पुरुष मन अपन सेवा अउ श्रम देवयँ। जइसे मरारिन मन बाजार हाट अउ गली खोर मा घूम घूम के भाजी पाला बेंचे, तुर्किन मन चुरी चाकी, कुम्हारिन मन गगरी-मटकी,रौताइन मन दूध दही अउ देवार जाति के महिला मन गोदना गोदत रीठा अउ मंदरस------


             मैं ये विषय के अंतरगत, छत्तीसगढ़ी गीत कविता मा ग्रामीण अर्थव्यवस्था ला बढ़ाय बर नारी मन के योगदान के झलकी खोजे के प्रयास करना चाहत हँव। काबर कि कवि मनके गीत कविता समय के पर्याय होथे, जे वो समय ला परिभाषित करत नजर आथे। वइसे तो छत्तीसगढ़ी मा असंख्य गीत अउ कविता हे, जे कतकोन विषय मा लिखाय,गवाय जनमानस बीच रचे बसे हे, अउ कतको कापी पुस्तक मा कलेचुप लुकाये हे। मोला जउन मिलिस उही ला आप सबो के बीच रखे बर जावत हँव,अउ आपो मन के मन मा काम बूता/अर्थव्यवस्था ले सम्बंधित कोनो गीत कविता होही ता जरूर बताहू-----


               छत्तीसगढ़ी दान लीला भगवान कृष्ण के लीला ऊपर आधारित हे, फेर एखर पृष्ठ भूमि गोकुल वृन्दावन ना होके छत्तीसगढ़ लगथे, काबर कि पं सुंदरलाल शर्मा जी मन भगवान कृष्ण,गोप गुवालिन अउ सखा सम्बन्धी सबें ला छत्तीसगढिया अंदाज मा चित्रित करे हे। गोप गुवालिन मन वइसे तो भगवान कृष्ण के मया मा मोहित  किंदरत दिखथें, फेर दूध दही अउ लेवना बेचत घर परिवार ला पालत पोसत घलो नजर आथें--

चौपाई

*जतका-दूध-दही-अउ-लेवना। जोर-जोर-के दुधहा जेवना*

*मोलहा-खोपला-चुकिया-राखिन। तउला ला जोरिन हैं सबझिन॥*

*दुहना-टुकना-बीच मड़ाइन। घर घर ले निकलिन रौताइन*

*एक जंवरिहा रहिन सबे ठिक। दौंरी में फांद के-लाइक॥*


ये परिदृश्य पहली कस आजो हे,कतको रौताइन मन गांव गली मा घूम घूम दूध दही मही बेचथे अउ पार परिवार बर आर्थिक योगदान करथें।


                       मरार समाज के नारी मन पहली अउ आजो साग भाजी बारी बखरी के काम मा बरोबर लगे दिखथें, तभो तो  छत्तीसगढ़ के दुलरुवा गायक शेख हुसैन जी कहिथे--

*एक पइसा के भाजी ला, दू पइसा मा बेचँव दाई*

*गोंदली ला राखेंव वो मँड़ार के*

*कभू मचिया वो, कभू पीढ़ी मा वो बइठे मरारिन बाजार मा*

 ये गीत सिरिफ गीत नही बल्कि वो समय के झांकी आय। जेमा साग भाजी बेच के नारी शक्ति मन ग्रामीण अर्थव्यवस्था मा अपन योगदान देवत दिखथें। एखर आलावा अउ कतको गीत हे जेमा भाजी भाँटा पताल बेचे के वर्णन मिलथे।

    

          छत्तीसगढ़ के नारी मन चूल्हा चौका, बारी बखरी  के बूता काम के संगे संग खेत खार मा घलो काम करथें, बाँवत, बियासी,निंदई,कोड़ई,लुवई-मिंजई कोनोअइसन बूता नइहे जेमा मातृ शक्ति के योगदान नइ हे- तभे तो जनकवि कोदूराम दलित जी नारी शक्ति के नाम गिनावत उंखर किसानी खातिर योगदान बर लिखथे-

*चंदा, बूंदा, चंपा, चैती, केजा, भूरी, लगनी।*

*दसरी, दसमत, दुखिया,ढेला,पुनिया,पाँचो, फगनी।*

*पाटी पारे, माँग सँवारे,हँसिया खोंच कमर-मा,*

*जाँय खेत, मोटियारी जम्मो,तारा दे के घर- मा।*

               धान लुवाई म घलो महिला मनके योगदान के एक अंश दलित जी के काव्य पंक्ति मा देखव-

*दीदी लूवय धान खबा खब, भांटो बांधय भारा।*

*अउहा, झउहा बोहि-बोहि के, लेजय भौजी ब्यारा।*


               अर्थोपार्जन करे बर नारी मन कुटीर उघोग कस कतको छोटे मोटे काम धंधा करयँ जेमा- मुर्रा लाड़ू बनाना, बाहरी,दरी,चटाई बनाना, सूपा चरिहा बनाना-----आजो ये सब चलत हे, संग मा नवा जमाना के चीज जइसे दोना पत्तल बनाना, बाँस शिल्प अउ कतको सजावटी सामान जुड़ गेहे। अइसन बूता मा घलो नारी मन ना पहली पाछू रिहिस ना आजो हे। 

ये सन्दर्भ मा, दलित जी के काव्य के एक पंक्ति देखव-

*ताते च तात ढीमरिन लावय,  बेंचे खातिर मुर्रा।*

*लेवँय दे के धान सबो झिन, खावँय उत्ता-धुर्रा।।*

धान देके मुर्रा लाड़ू लेय बर कहना वस्तु विनिमय प्रणाली ल घलो बतावत हे।


              निर्माण अउ विनिर्माण के काम मा घलो नारी शक्ति मन सबर दिन अपन जांगर खपावत आयँ हे, चाहे घर,सड़क, पूल- पुलिया, महल- अटारी होय या फेर ईटा भट्ठा अउ कोनो उधोग धंधा। छत्तीसगढ़ के नारी मन अपन घर परिवार के स्थिति देखत सबें क्षेत्र मा काम करके पार परिवार ला पाले पोसे के उदिम करे हे। मरारिन,रौताइन, तुर्किन, कुम्हारिन, बनिहारिन, पनिहारिन, मालिन, कड़ड़िन,देवारिन,रेजा ना जाने का का रूप धरके, नारी शक्ति मन जीवकायापण बर जांगर बेच के धनार्जन करें हें- 

रोज रोज काम के तलास मा चौड़ी मा बइठे रेजा मन के मार्मिक चित्रण करत वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुशील भोले जी लिखथें-


*चौड़ी आए हौं जांगर बेचे बार, मैं बनिहारिन रेजा गा*

*लेजा बाबू लेजा गा, मैं बनिहारिन रेजा गा...*

*सूत उठाके बड़े बिहन्वे काम बुता निपटाए हौं*

*मोर जोड़ी ल बासी खवाके रिकसा म पठोए हौं*

*दूध पियत बेटा ल फेर छोड़ाए हौं करेजा गा*

*लेजा बाबू लेजा गा, मैं बनिहारिन रेजा गा॥*


             हमर छत्तीसगढ़ मा नाना किसम के जाति हे, ओमा एक जाति हे- देवार जाति। ये जाति के नारी शक्ति मन गाँव गली मा फेरी लगावत मंदरस,रीठा बेचत गोदना गोदे के बूता करयँ। मनखे के मरे के बाद घलो गोदना साथ नइ छोड़े ते पाय के हमर छत्तीसगढ़ मा ना सिर्फ महिला मन बल्कि पुरुषों मन गोदना गोदवाथें। हाथ,पाँव,नाँक,ठुड्डी अउ  गला मा गोदना गोदवाये के रिवाज हे। फूल, चँदा, सितारा, नाम,गाँव, अउ देवी देवता के चित्र गोदना मा दिखथें। पारम्परिक ददरिया मा छत्तीसगढ़ के कतको लोक गायिका मन *गोदना गोदाले रीठा लेले वो मोर दाई* ये गीत ला गायें हे। तभो ये गीत ममता चन्द्राकर जी के स्वर मा जादा सुने बर मिलथे। किस्मत बाई देवार, रेखा बाई देवार, लता खापर्डे, कुल्वनतींन बाई, दुखिया बाई कस कतको लोक गायिका मन गोदना उपर कतको गाना गायें हे।

         

         माटी के दुलरुवा कवि गायक लक्ष्मण मस्तूरिहा के लिखे गीत - *ले चल गा ले चल* मा साग भाजी बेचइया महिला के मार्मिक पुकार हे। जेमा वोहा मोटर वाले ला अपन गाँव ले चल कहिके किलौली करत हे, संगे संग बदला मा भाजी भाँटा देय के बात कहत हे,काबर कि ओखर एको सौदा गंडई बाजार मा नइ बेचा पाय हे। पंक्ति देखन----


*ले चल गा ले चल, ए मोटर वाला ले चल*

*रुक तो सुन वही धमधा डहर बर हावै मोला जाना*

*बेर ढरकगे साँझ होगे, थक गे पाँव चलई मा।*

*सौदा कुछु बेचाइस नही, अई गंडई मड़ई मा।*

*पइसा तो नइ पास हे मोरे,लेले भाजी पाला।*

         कुछु सामान बेचे बर का का दुख झेलना पड़थे, पइसा कमाए बर कतका धीर धरेल लगथे,कतका दुरिहा दुरिहा के बाजार हाट,मेला-मड़ई (धमधा ले गंडई),कइसे कइसे आय जाय बर पड़थे, ये सब दुख दरद ला मस्तूरिहा जी अपन कलम ले उकेरे हे। अउ ओतके मधुर गायें हे लता खापर्डे जी अउ कविता वासनिक जी मन।

               पंचराम मिर्झा अउ कुल्वनतीन बाई के गाये गीत- *"सस्ती मा बेचे वो, बस्ती मा बेचे"* मा घलो साग भाजी बेचे के चित्र मिलथे। अउ कतको जुन्ना अउ नवा गायक गायिका मन घलो भाजी भाँटा पताल करेला--- बेचे के वर्णन करे हे, फेर कतकोन गीत मन द्विअर्थी हे,जुन्ना गीत कस सुने मा आनंद नइ दे सके। 


              सुराज मिले के बाद सरकार डहर ले गांव गांव मा, विकास लाये बर काम बूता खुले लगिस, जइसे सड़क, पुल, नदिया, नहर  बांध बनई-बंधई आदि आदि। जेमा नारी शक्ति मन के श्रम ला कभू नइ भुलाये जा सके। आजो मनरेगा कस कतको बूता मा श्रम साधत नारी शक्ति मन धनार्जन करत माटी महतारी सँग देश अउ राज के सेवा करत हे,अउ देश राज ला आघू बढ़ावत हें। माटी पूत गायक कवि लक्ष्मण मस्तूरिहा जी के लिखे ये अमर गीत ला  स्वर कोकिला कविता वासनिक जी के स्वर मा सुन, मन मन्त्र मुग्ध हो जथे 


*चल सँगी जुरमिल कमाबों गा, करम खुलगे*

*पथरा मा पानी ओगराबों, माटी मा सोना उपजाबों*

*गंगरेल बाँधेन पैरी ला बाँधेन*

*हसदेव ला लेहन रोक।*

*खरखरा खारुन रुद्री के पानी*

*खेत मा देहन झोंक।*

*महानदी ला गांव गांव पहुँचाबों गा---*


       अर्थ भार कम करके अर्थव्यवस्था ला सुदृढ़ बनाय बर ग्रामीण महिला मन सबर दिन अघवा रहिथे, चाहे घरे मा साग भाजी उपजई होय या घरे मा चाँउर दार सिधोई या फेर घरे मा बरी बिजौरी बनई। रखिया बरी बनाये के विचार के एक बानगी वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण निगम जी के घनाक्षरी मा देखव--

रखिया   के    बरी   ला    बनाये   के   बिचार    हवे


*धनी  टोर  दूहू   छानी  फरे  रखिया के  फर*

*उरिद  के  दार  घलो   रतिहा   भिंजोय  दूहूँ*

*चरिह्या-मा  डार , जाहूँ   तरिया  बड़े  फजर*

*दार  ला नँगत  धोहूँ  चिबोर  -  चिबोर  बने*

*फोकला  ला  फेंक दूहूँ , दार  दिखही  उज्जर.*

*तियारे  पहटनीन  ला  आही    पहट   काली*      

*सील  लोढ़हा मा दार पीस देही  वो सुग्घर।।*


               हमर छत्तीसगढ़ चारो कोती ले जंगल झाड़ी के घिरे हे,जिहाँ किसम किसम के रुख राई, महुवा कोसा, लासा मन्दरस सँग नाना प्रकार के जीव जंतु निवास करथे,अउ संग मा रहिथे वनवासी मन,जउन मन जंगल ल ही जिनगी मानत ओखरे सेवा श्रम मा लगे रथे। चाहे महुवा बिनई होय, या तेंदू पाना टोरई या फेर कोसा लासा हेरई। जइसे मैदानी भाग मा काम बूता करत मनखे सुवा ददरिया गाथे,वइसने वनवासी मन घलो काम बूता संग अपन गीत रीत ला नइ भुलाये,येमा ना पुरुष लगे  ना महिला। 


*चल संगी मउहा बीने बर जाबों।*


*तेंदू पाना टोरेल आबे,डोंगरी मा ना।*

अइसने अउ कतकोन मनभावन सुने सुनाये गीत हे, जे वनवासी महिला मनके योगदान,समर्पण धनार्जन मा कतका हे तेला दिखाथें। चाहे तेंदू पाना टोरई होय या फेर मउहा बिनई या फर फुलवारी लकड़ी फाटा ल जतनई-- अइसन सबें बूता मा नारी शक्ति मा सतत लगे रिहिन अउ आजो लगे हे।    

 

         मालिन फूल चुनके हार अउ गजरा बनाके कभू माता ला चढ़ावत दिखथें ता कभू भक्तन मन ला बेचत, एक पारम्परिक जस गीत देखन-

*तैं गूथे वो मैया बर मालिन फूल गजरा।*

*काहेंन फूल जे गजरा*

*काहेंन फूल के हार।*

*काहेन फूल के माथ मुकुटिया सोला वो सिंगार*

             अइसने होली मा पिचका, बाजार हाट मा काँदा कुशा,भाजी पाला, चूड़ी चाकी, होटल मा बड़ा भजिया,पान ढेला मा पान अउ दुकान मा सामान बेचे के तको गीत सुने बर मिलथे, फेर ओतिक प्रचलित अउ ग्राह्य नइ हे।


             मनखे के जिनगी बराबर चलत रिहिस उही बीच मा बछर 2019 मा घोर विकराल महामारी कोरोना धमक दिस, खाय कमाए बर शहर नगर गे सबें कमइया ला बिनजबरन  सपरिवार अपन ठाँव लहुटे बर लग गिस। गाड़ी मोटर थमे के बाद,होटल ढाबा, बाजार दुकान  मा ताला लगे के बाद कोन कइसे छइयां भुइयाँ लहुटिस तेला उही मन जाने। *कहिथे जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसि* इही भाव के दर्द वो समय मोरो आँखी मा दिखिस, तब महूँ लिखेंव, जेमा पत्नी अपन पति ला काहत हे--

*चल चल जोड़ी किरिया खाबों,सेवा करबों माटी के।*

*साग दार अउ अन्न उगाबों, मया छोड़ लोहाटी के।*

*चरदिनिया सुख चटक मटक बर,छइयां भुइयाँ नी छोड़न।*

*परके काज गुलामी खातिर, माटी के मुँह नइ मोड़न।*

*ठिहा बनाबों जनम भूमि मा,माटी मता मटासी के----*

           शहर नगर मा जाके नकदी कमाना ही धनार्जन नोहे, जइसे जिनगी जिये बर माटी मा पाँव रखना पड़थे,वइसने माटी ले जुड़ाव जरूरी हे। अपन ठिहा ठौर मा खेती किसानी करत, दू पइसा कमावत दया मया के धन दोगानी जोड़त सुकून के जिनगी बिताए जा सकत हे, जादा अउ चमक धमक के प्यास भारी घलो पड़ जथे। श्रम, सेवा के बदला पइसा मिले, वस्तु मिले या फेर मया, जीवकोपार्जन बर धन ही आय। जेखर थेभा मा सुकूँन के जिनगी जिये जा सकत हे। ग्रामीण अंचल मा आजो ये सब चलत हे,अब जब बात नारी मन के होवत हे ता, उन मन घलो जम्मो प्रकार के,सेवा - श्रम मा बरोबर योगदान देवत हे, जेला गीत कविता के माध्यम ले देख सुन सकथन। गीत कविता भले नारी मनके सबे बूता अउ योगदान तक नइ पहुँचे होही पर नारी मन आज आगास-पताल, जल-थल, खेल-रेल,घर-खेत, उत्तर दक्षिण,पूरब पश्चिम सबें कोती अपन श्रम सेवा,गुण गियान के परचम लहरावत हे, जेमा हमर छत्तीसगढ़ के नारी मन उन्नीस नही बीस हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

हाना मुहावरा मा साग भाजी अउ महँगाई

 हाना मुहावरा मा साग भाजी अउ महँगाई



               एक समय *"खाय बर भाजी बताये बर आलू"* कहिके परोसी परोसी ला ताना मारे। माने आलू खवई शान, अउ भाजी खवई अपमान समझे। फेर आज भाजीच हा आलू ला ताना मारत हे, अइसन मा कखरो मुख ले न ताना निकलत हे न हाना अउ न गाना। बस आज मनखे बढ़े महँगाई ला मजबूर होके माथ नवावत हें। भाग मा पहिली सूपा सूपा मिलइया भाजी पाला आज पाव अउ किलो मा बिकत हे। पहिली भाजी पाला के गत ला देखत अइसे लगे कि, भाजी भुइयाँ मा अइसनेच भाग बनके जिनगी भर माढ़े रही जही, कभू तराजू बाट के सवारी नइ कर पाही। फेर आज बिना नापे मिलबे नइ करत हे। सुरता आथे *एक रुपिया के एक सूपा भाजी अउ कँसके एक मूठा पुरौनी के* वाह रे दिन, फेर आज ग्राम ग्राम के नाप तोल के जमाना मा पुरौनी शब्द बोले बर लाज लगथे। भाजी पाला के गुण अउ उत्पादन ले जादा मांग, आज भाजी के भाव बढ़ावत हे। परोसी घर के साग भाजी मा पारा भर हाँस के खायँ, भाजी पाला अइसने मया पिरित मा मिल जावत रिहिस। आलू ला बिसाएल लगे अउ भाजी बखरी ब्यारा मा चरिहा चरिहा निकले, ते पाय के सब पहली हाना के बहाना ताना मारे, फेर आज तो देखते हन।

                 *"भाजी कोदई"* कहे ले मनखे के खानपान एकदम लिरीझिरी लगे। फेर आज बढ़े भाजी के भाव तो दिखते हे, अउ कोदई कोनो ला नसीब होय तब तो। माने भाजी कोदई खाना आज सहज नइहे। कोदो कुटकी के उपज आज कमती होगे हे, संगे संगे बड़े बड़े बीमारी मा एखर माँग रथे, ते पाय के सहज मिले नही अउ मिलथे ता दवाई बरोबर। *महाभारत मा एक प्रसंग आथे कि भगवान श्री कृष्ण हा दुर्योधन के अहंकार ल तोड़े बर ओखर मेवा मिठाई ला त्याग के, विदुर घर भाजी कोदई खाय रिहिस*। आज मनखे ला यहू नसीब नइ होवत हे।

                  भुइयाँ के सेवा कभू अकारथ नइ जाय। माटी महतारी सेवा करइया ला धान, गेहूँ, चना कस कतकोन खाद्यान कहकुल्ला देथे। अइसने एक समय सबके घर,खेत, मेड़ अउ भर्री भांठा मा उपजे राहेर अउ घरों घर चुरे रोज रोज दार, जेला खायें हाँस हाँस पार परिवार। इही बहुलता ला देखत एक हाना बनगे रिहिस कि *"घर के मुर्गी दाल बरोबर"* माने घर के जिनिस हा दार बरोबर बिना मोल या महत्व के होथे। ये वो समय के बात रिहिस जब दार घरों घर होय, फेर आज जेखर कर दार हे वोला पहरेदार रखे बर पड़त हे। काबर की दार के भाव हा आसमान छूवत हे। भले मुर्गी मिल जावत हे, फेर दार नसीब नइ होवत हे। डेढ़हा दोहरा शतक मार के दार आज इतिहास रचत हे। रोज रोज के दार भात कहाँ पाबे अब सिर्फ सगा सोदर या फेर लइका लोग के कारण भर बर दार बनत हे। दार मुर्गी ला तो पटक दिस संगे संग बड़े बड़े मनखे अउ कतको महँगा साग भाजी ला तको पछाड़ देहे।

                   एक समय मनखे काहत नइ थके कि- *ररुहा सपनाये दार भात*। माने भूखमर्रा मनखे दार भात खोजे। फेर आज बने बने मनखे ला दार भात नसीब नइ होवत हे, ता भूखमर्रा या जे सुते सुते सपना देखत हे, तेला का मिलही? पहली दार भात खाना सहज रहय,फेर आज दूभर होगे हे। भात संग दार के व्यवस्था रोज रोज बड़े बड़े मनखे मन नइ कर पावत हे, वाह रे महँगाई।।

               *"मथुरा के पेड़ा अउ छत्तीसगढ़ के खेड़ा"* हव हमर जरी,खेड़हा हा मथुरा के पेड़ा ले कोनो भी प्रकार ले कमती नइहे। चाहे खेड़हा भाजी होय या चिक्कट चिक्कट जरी, गजब मिठाथे। एखर सुवाद खवइयच ही जानथे। पानी गिरत साँठ घरों घर बखरी मा खुदे उपजइया जरी, आज क्रांकीट ले लड़त हार गेहे। बिन बखरी बारी के जरी तको सहज नइ मिलत हे। आज पेड़ा मिल जावत हे,फेर खेड़हा ले देके मिलथे।

                  गलत संगति बर बने ये हाना बड़ चलथे कि *"एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ेला"* माने करु(गलत) होके करु(गलत) के संगत।  फेर ये हाना मा बउराय दूनो करु आज नोहर होगे हे। नीम के पेड़ तो दिनों दिन कमती होवत जाते हे, सँग मा करेला सब्जी तको अपन करु सुभाव होके भी सब ला ललचावत हे। करेला के भाव  चाहे बरसा होय या घाम सबे समय बढ़ेच रथे। आज करेला नीम नइ चढ़त हे मनखे मन के मूड़ मा चढ़त हे, अउ नाचत हे।

                  कास अभी बाढ़े महंगाई मा गाले हा बंगाला बन जतिस, काबर कि सियान मन रीस मा काहय- *चर्रस ले पड़ही गाल, हो जही बंगाला कस लाल*। आज बंगाला के लाली मनखे ला गुररावत हे, जड़काला मा खेत सड़क मा पड़े रहय ते बंगाला पानी पाके तांडव करत हे। छोट मोट का बड़े बड़े आदमी मन बाजार मा बंगाला के सुबे शाम सिरिफ भाव पूछ पूछ के आवत हे। जे मन उपजाये ते मन दाँत निपोरत हे ,अउ संकेल के धरे व्यापारी मन हाँसत हे। कथे न धरे धन कभू  बिरथा नइ जाय, फेर ये तो जँउहर होगे। धरेच हस एखर मतलब मनमानी करबे। करबे का करत हे, अउ कोनो नकेल तको नइ कसत हे। किसान के सबे चीज बोहाथे, चाहे खेत खार होय, धनधान होय, भाजी भाँटा होय, पार परिवार होय,लहू होय या फेर आँसू। कोई मोल नइहे। व्यापारी  मनके तिनका तिनका के मोल हे। वइसे तो समय के लिए साथ इंकम घलो बढ़त हे, फेर नगण्य, अउ बढ़े चीज के फायदा छोट मंझोलन ला कब मिले हे? सबें जानथन। खातू, कचरा, बीज भात सब महगाये हे, उपज के दाम बढ़बे करही, तभो किसान बीके हाथ मा नइ रहय ता, वैपारी वर्ग जादा अति करथे। बात बंगाला के होवत हे ता कखरो बबा कका कहूँ गाल ला मार के बंगाला बना देहुँ कही ता अभी बाढ़े महँगाई मा कोन नही कही।

                     *गाजर लटकाना* अइसनो काहत सुने होहू, एखर मतलब होथे लालच दिखाना। गाजर तो मनखे ला जमाना से लालच दिखावत आवत हे। एक समय तो लालच मा,लेके खा तको लेवत रहेंन फेर आज , सिरिफ लटके भर देखत हन, महँगाई के मारे लेके खाना मुश्किल हे। आज सिरिफ गाजर भर नही कतको साग भाजी गाजर बरोबर टँगाय हे, अउ मनखे मन ललचावत हे।

                 *किस खेत की मूली* एक दूसर ला कम आँके बर बने ये हाना मा आज मुरई मनखेच मन ला ताना मारत हे। आदमी मुरई के आघू मा लल्लू पंजू साबित होवत हे। मुरई के भाव बढ़ते जावत हे, फेर मनखे के भाव के ग्राफ सरलग गिरत हे। खेत अउ मूली दूनो मिल जाय ता कतको मनखे तराजू के पल्ला मा पोनी बरोबर तउला जाही। कहे के मतलब मूली जइसन साग भाजी तको आज मेछा अँइठत गरजत हे।

                *बेंदरा का जाने आदा के सुवाद*। आदा सुनके 350 रुपिया आँखी आघू झुलगे न। भाग मा बिकईया आदा आज तोला, मासा मा बिकत हे, वाह रे समय। चारो कोती हांहाकार मचे हे। अइसन मा आदमी ला आदा नसीब होय तब तो बेंदरा चखे।  बाढ़े महँगाई के मारे आदमी बेंदरा बरोबर येला वोला खाय बर मजबूर हो जावत हे। एक छोट कन टुकड़ा भर लगथे चाहा मा , उहू दूभर होवत हे। हाना तो अउ बहुत हे, कुछ सुरता मा हे कुछ खोजे मा मिल जही। फेर आलेख बनेच बढ़ जही, एकात पढ़इया तको हिम्मत नइ कर पाही।

              *तेल आगर नून आगर ते बहू के गुण आगर* ये कहावत बोलत सुनेच हन, फेर आज महँगाये तेल,नून,मिर्ची मशाला के कारण, कम डारे के चक्कर मा,बहू हाथ के साग भाजी तको मिठावत नइहे।

               कथे कि *"महतारी के परसे अउ मघा के बरसे*" सही च ताय। जइसे मघा नछत्र मा बरसा के कोनो कमी नइ होय वइसने महतारी के मया अउ ओखर  रांधे पोरसे भात बासी कभू नइ कमती होय। फेर जातरी मनखे के आय हे जे महतारी ले दुरिहावत हे। हव होटल ढाबा मा इज्ज़ा पिज़्ज़ा खवइया एक दिन महतारी के मया अउ आशीष बर तड़पही, लिख के लेले। माटी घलो महतारी आय, एखरो गत वइसने हे, यहू ला मनखे ठोकर मारत हे, सेवा जतन छोड़ समय के फसल बोके, सोन के अंडा देवइया मुर्गी समझत हे। लालच मा चंद पइसा मा कामधेनु बरोबर माटी महतारी ला ठुकरा देवत हे, अउ शहर मा दू अंगुल जघा मा घुटत हे। खेती किसानी जिनगी आय। बारी, बखरी ,खेती किसानी ले नइ जुड़बो, शहरी बरोबर अलाली जिनगी जीबों ता मंहगाई  के असर साग भाजी भर मा नही,हवा, पानी  तको मा दिखही। कथे *"खेत खार छोड़ के जे परदेश जाय, तेखर जातरी आय"*। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

डोकरी बुड़े चारी म त डोकरा पीये के बीमारी म (हास्य)

 डोकरी बुड़े चारी म त डोकरा पीये के बीमारी म (हास्य)

चंदा डोकरी बिहनिया ले खोर म निकल के खड़े हावय। अंगना द्वार लिपा बहरा गे हावय। आगी ल सुलगा दे हावय। डोकरा ह नहा धो के आये हावय  अउ  अंगना म बइठे बाहिर डाहर ल देखत हे।  ओतके म ओला बलाये बर एक झन आथे। दूनों झन निकले ले लगथें त चंदा डोकरी कहिथे " कहाँ जाथस? मरे बर, फेर पी के आबे।" आज पीबे त घर झन आबे।"

" घर नइ आवंव, भट्ठी म सुत जहूँ।"

" नाली म सुत जबे , थोरिक जुड़ा घलो जाबे"

" हव, कोनो मेर सुतंव,रात तक तो घर आ जहुं। पीये के मजा ल तैं का जानबे। कहाँ कहाँ नइ घूमंव? फिल्म म देखाथे तइसने जगह मन म घूमत रहिथंव।"

"जा मर"

"मोला कोनो मिलत नइये, अतेक जुवर ले खड़े हावंव"

उही बेरा म जानकी आवत दिखथे। 

" आ जानकी आ

तोर रद्दा देखत हावंव"

"आज मोर करा समय नइये चंदा"

" अरे सुन तो, रामहिन के बेटा ह शहरनिन टूरी ल लान ले हावय"

जानकी ह मुंह फार के कहिथे " अइ बिन बिहाव करे चंदा।"

"हव आजकल तो बिन बिहाव करे रहिथें तेन ल " ले रहिले" कहिथें।

" अच्छा ले रहिले ह तो बने नोहय"

तभे मितानिन आ जथे त जानकी ह  ओला बताथे के शहर ले चंदू ह एक झन टूरी लाने हावय। तेखर स़ग" ले रहिले " म हावय।


ये काये होथे मितानिन ह कहिथे त चंदा कहिथे। बिन बिहाव करे रहिथें तेन ल " ले रहिले "कहिथें। 

अरे तू मन ल तो बस मसाला चाही चारी करे बर। ओला " लिव इन रिलेशनशिप " कहिथें।

हाँ अउ सुन न मितानिन  सागर के बेटी भाग गे हावय सुने हंव।

मितानिन पूछथे "काखर संग भागे हावय?" जानत हस।

" नहीं " 

"त काबर पूछत हावस। अपन होने वाला पति संग शहर घूमे बर गे हावय। आजकल अपन पसंद के कपड़ा लेथें। त ओखर सास ससुर मन रयपुर म मिलही अउ सब झन संग म जाहीं। होगे तोर मन साफ। बस तोला तो कुछु पता भर चलना चाही तहांले पूरा कहिनी तैयार हो जथे। रांधबे कब?"


"आगी ल सिपचाये हंव। बर गे होही। अब भात भर बनाहुं अऊ दूनो जुवर बोर के खाहूँ।"

मितानिन कहिथे " डोकरा कहाँ गे ओखर बर नइ रांथस।"

"डोकरा मर गे हावय भट्ठी डाहर।" रात तक परे रहिही कोनो मेर।"

"जा अब रांध" मितानिन रेंगे ले धरथे त ओखर हाथ पकड़ के कहिथे  "बड़े गौंटिया घर म झगरा माते हावय सास बहू के सुने हंव।"

जा ना उहें जाके पूछ ले। जब तक चार झन के चारी नइ करबे तब तक तोर खाना नइ पचय। तोला काम नइये त हमर मन के तो बुता हावय।" मितानिन चल देथे.

चंदा अपन असन मुँह ले के भितरी आथे। जानकी मुँह म कपड़ा रख के हाँसत तरिया डाहर चल देथे।

चंदा के आज के खुराक पूरा होगे।

सुधा वर्मा, 13/7/2024

आजादी अउ छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के सिपाही - डा. खूबचंद बघेल

 19 जुलाई - 124 वीं जयंती म विशेष 


आजादी अउ छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के सिपाही - डा. खूबचंद बघेल 

  


  हमर छत्तीसगढ धान के कटोरा कहे जाथे। इहां ऋषि अउ कृषि संस्कृति के दर्शन होथे। इहां के रहवासी मन के सिधवापन जगजाहिर हे। छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया नारा इहां के मनखे मन के भोलापन बर कहे गे हावय। इही सिधवापन के खातिर इहां के रहवासी मन के अब्बड़ शोषण घलो होय हे अउ आजो घलो होथे।आजो इहां बाहरी मनखे मन के दबदबा देखे ल मिलथे। इहां के रहवासी मन ल शोषण ले बचाय खातिर हमर छत्तीसगढ म अइसे माटी पुत्र जनम ले हावय जेमन न सिरिफ आजादी के लड़ाई म बढ़ चढ़ के भाग लिस बल्कि किसान, मजदूर मन के दसा सुधारे बर अपन सुख सुविधा ल तियाग करके जोम देके लड़िन।  छत्तीसगढ़ के अइसने रतन बेटा मन म  शहीद गेंद सिंह, हनुमान सिंह,वीर नारायण सिंह, वीर गुंडाधुर,पं. सुंदर लाल शर्मा, ठाकुर प्यारेलाल लाल सिंह, स्वामी आत्मानंद,पं. रविशंकर शुक्ल,वामन राव लाखे,  माधव राव सप्रे,बैरिस्टर छेदी लाल, कुंज बिहारी चौबे, वीर बालिका दयावती,शहीद रामाधीन गोंड, मिनीमाता, अउ खूबचंद बघेल के नांव अव्वल हे।

  आजादी के सेनानी, साहित्यकार, राजनीतिज्ञ अउ छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के सिपाही डा.खूबचंद बघेल के जनम  किसान परिवार म 19 जुलाई सन् 1900 म होइस। उंकर पिता के नांव जुड़ावन प्रसाद अउ महतारी के नांवि केकती बाई रिहिस। प्राइमरी स्कूल के पढ़ाई गांव म अउ हायर सेकंडरी स्कूल के पढ़ाई रायपुर म होइस। बालक खूबचंद होनहार लइका रिहिन। वोला पढ़ाई म छात्रवृत्ति मिलय। वोकर मन म देशप्रेम के भावना जागृत होइस।बछर 1917 म लोकमान्य बालगंगाधर तिलक रायपुर ले गुजरत आगू बढ़िन त उंकर सुवागत बर बालक खूबचंद घलो पहुंच गिस। 

खूबचंद नागपुर मेडिकल कॉलेज म एल. एम. पी. के पढ़ाई करे लागिस। वोहर तिलक अउ गांधी जी ल अब्बड़ प्रभावित रिहिन। 


आजादी के लड़ाई म भागीदारी 


वोहर बछर 1920 के असहयोग आंदोलन म भाग लिस। गांधी के आह्वान म खूबचंद ह पढ़ाई छोड़ दिस। येकर ले उंकर माता - पिता चिंता म पड़गे। पिताजी के समझाय के बाद खूबचंद अपन पढ़ाई पूरा करे बर फेर नागपुर गिस।इही बीच उहां झंडा सत्याग्रह सुरु होगे वोमा घलो भाग लिस। आजादी के लड़ाई म भाग लेत- लेत खूबचंद एल. एम.पी. परीक्षा पवसर करके डाक्टर बनगे। नागपुर म वोला नौकरी मिलगे।

  बछर 1930 म गांधी जी नमक सत्याग्रह सुरु करिन। येकर असर छत्तीसगढ़ म घलो पड़िस।इही बीच खूबचंद नौकरी छोड़के अपन कर्मभूमि छत्तीसगढ़ आगे अउ विदेशी जिनीस के बहिष्कार अउ शराबबंदी के आंदोलन म भाग लिस। बछर 1930 म अंग्रेज सरकार ह खूबचंद ल जेल म डाल दिस। जनवरी 1932 म ठाकुर प्यारेलाल लाल सिंह ह लोगन मन ले आहृवान करिन कि अंग्रेज सरकार ल टैक्स देना  बंद कर देय।15 फरवरी 1932 म खूबचंद बघेल ह सत्याग्रह करिन त गिरफ्तार कर ले गिस अउ वोला छै माह के कठोर सजा देय गिस। अंग्रेज सरकार ह उंकर महतारी अउ पत्नी ल घलो सत्याग्रह के आरोप म जेल म डाल दिस।


   अछूतोद्धार के काम 


खूबचंद बघेल हिजाति -पाति अउ भेदभाव के अब्बड़ विरोध करिस । चंदखुरी गांव म अछूतोद्धार के काम अनन्त बर्छिया ह करिन त पंचइत के बइठका म उंकर पवनी पसारी बंद कर दे गिस। ये घटना ले खूबचंद बघेल ल नंगत पीरा पहुंचिस अउ समाज सुधार खातिर बीड़ा उठा लिस। अछूतोद्धार खातिर वोहा " ऊंच - नीच" नांव ले एकठन नाटक लिखिस अउ ये नाटक ल चंदखुरी गांव म ही खेले गिस। ये नाटक ल देख के गांव वाले मन के हिरदे परिवर्तन होइस अउ अनन्त बर्छिया ल उंकर सनमान वापिस मिलगे।

    

  बछर 1942 म गांधी जी ह भारत छोड़ो आंदोलन के घोषणा करिस। खूबचंद ह आंदोलन म भाग लिस अउ 21अगस्त 1942 म गिरफ्तार कर ले गिस। ढाई बछर बाद वोहा जेल ले छूटिस।

     बछर 1946 म डा. बघेल विधानसभा के सदस्य चुने गिस। समाज सेवा बर मंत्रिमंडल ले स्तीफा दे दिस।वोहर कुर्मी समाज म क्रांतिकारी बदलाव लाइस। 

     बछर 1950 म राष्ट्रीय स्तर पर आचार्य कृपलानी ह किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाइस। कृपलानी कांग्रेस घलो छोड़ दिस। येकर ले प्रभावित होके ठाकुर प्यारेलाल लाल सिंह के अगुवाई म राज्य स्तर म किसान मजदूर प्रजा पार्टी के गठन करिन।येमा खूबचंद बघेल ह खास भूमिका निभाइस। 17 मई1951 म आचार्य कृपलानी रायपुर आके एक बड़का जन सभा ल संबोधित करिन। इहां वोहा बताइस कि वोहा कांग्रेस ल छोड़ के एकठन नवा दल महाकौशल संयोजक समिति बनाय जाथे। येकर ले प्रेरित होके ठाकुर प्यारेलाल सिंह अउ खूबचंद बघेल ह घलो कांग्रेस ले स्तीफा दे दिस। दूनों ल महाकौशल संयोजक समिति के सदस्य बनाय गिस।


  विधायक अउ राज्यसभा सदस्य बनिस 


 डा. खूबचंद बघेल अपन सक्रियता अउ समाज सेवा के चलते जनता के बीच म अब्बड़ लोकप्रिय रिहिन। येकरे सेति वोहर 1951, 1957 अउ 1962 म विधायक बने के संगे संग 1967 म राज्यसभा सदस्य चुने गिस।


छत्तीसगढ़ महासभा के गठन 


 28 जनवरी 1956 म डा. खूबचंद बघेल ह राजनांदगांव म छत्तीसगढ़ महासभा के गठन करिस ‌‌। येकर आयोजक दाऊ भूषण दास अउ दशरथ लाल चौबे रिहिन। छत्तीसगढ़ महासभा के माध्यम ले खूबचंद बघेल ह अब्बड़ अकन काम 

करिस। किसान मन के उपज के कीमत बढ़ाय बर आंदोलन करिस। समाज सुधार के काम म घलो अब्बड़

 मिहनत करिस।


    पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के मांग 


डा. खूबचंद बघेल के मानना रिहिन कि जिहां शोषण, अन्याय अउ दमन हे उहां सुराज आ ही नइ सकय।  अउ हमर छत्तीसगढ म अइसने होवत हे। फेर 1957 म बालोद म आयोजित किसान मजदूर प्रजा पार्टी के बड़का जन सभा म पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रस्ताव पारित करवाइस।अब डा. बघेल ह अपन पूरा ताकत पृथक छत्तीसगढ़ निर्माण बर लगा दिस।


डा. बघेल ह 25 सितंबर 1967 म छत्तीसगढ़ ल दुबारा संगठित करे बर बैठक बुलाइस। येमा 500 लोगन मन सामिल होइस। इहां महासभा के नवा नांव" छत्तीसगढ़ भातृ संघ" करे गिस। ये संघ के माध्यम ले डा. बघेल ह सबो शासकीय अउ गैर शासकीय उद्योग अउ संस्थान मन म स्थानीय लोगन मन ल नौकरी म प्राथमिक देय के मांग करिस।

  डा. बघेल ह साहित्य सृजन,लोक मंचीय प्रस्तुति अउ बोल चाल म छत्तीसगढ़ी के पक्षधर रिहिन। वोहर खुद छत्तीसगढ़ी म ऊंच नीच,करम छंड़हा जइसे कालजयी नाटक लिख के लोगन मन म जागरण के भाव पइदा करिन। समाज सेवा, राजनीति अउ साहित्य सृजन के माध्यम ले छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ल जगाय खातिर अपन पूरा ताकत लगा दिस। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के मांग करिन फलस्वरूप आगू जाके येहा 1 नवंबर  सन् 2000 म साकार होइस। छत्तीसगढ़ के ये रतन बेटा ह 22 फरवरी 1969 म दिल्ली म अपन नश्वर सरीर ल छोड़ के सरगवासी बनगे। छत्तीसगढ़ शासन ह उंकर स्मृति म खूबचंद बघेल सम्मान स्थापित करे हे जउन ह खेती किसानी क्षेत्र म महत्व, उपलब्धि अउ अनुसंधान ल प्रोत्साहित करे बर देय जाथे। 


            - ओमप्रकाश साहू अंकुर 

              सुरगी, राजनांदगांव

धान मंडी में "गरकट्टा" - एक" किसान-समस्या- प्रधान" नाटक





 भूमिका




धान मंडी में "गरकट्टा" - एक" किसान-समस्या- प्रधान" नाटक

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डॉ. खूबचन्द बघेल का नाम राजनीति, समाज के साथ-साथ, लोक रंग व साहित्य के क्षेत्र में भी प्रसिद्ध नाम हैं। वे छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्न द्रष्टा के साथ-साथ, किसानों के दुःख-दर्द के सहभागी रहे हैं। निधन के पूर्व वे किसान - आंदोलन के सूत्रधार भी रहे। वे अपनी मुहावरे द्वारा भाषा के महारथी, एवं नाटकों के संवाद योजना में, पारंगत रहे।


नाटक "गरकट्टा" प्राप्त होने की एक कथा है। डॉ. बघेल, मेरे पति स्व. मनहर आड़िल को "मानस पुत्र" वत् मानते थे। अत्यंत स्नेह करते थे। 1968 में हम सिहोर (भोपाल) में थे। मेरे पति वहाँ कृषि महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के पद पर पदस्थ थे। चार सितंबर 1968 को अकस्मात् डॉ. बघेल हमारे घर आए, दिल्ली से बनारस होते डुए। हमें कोई सूचना नहीं थी। यह संयोग ही था कि उस दिन मेरे पुत्र का जन्मदिन था। हमें व उन्हें अपार प्रसन्नता हुई। वे हमारे बेटे को गोद में लेकर बहुत प्यार किए। उन्हें देर तक खिलाते रहे। वे 2 दिन रूके। वे राज्यसभा सदस्य थे। पत्रकारों व मिलने वालों की भीड़ लग गई। सेठ  नारायणदास कम्पाउण्ड में स्थित हमारा छोटा सा घर गुलजार हो गया।


6 सितंबर को, वे वापस रायपुर जाने के लिए, रेलवे स्टेशन गए। हमने "नब्बू मियां" टांगे वाले को बुलाया। मेरे पति साथ में स्टेशन गए। टांगे में बैठने से पूर्व, उन्होंने मुझसे कहा- "सत्या बेटी मंय ह "गरकट्टा" नाटक लिखे हंव। अब फेर आहंव, त, तोला पढेबर दुहूं।" मैंने उनके पाँव छुए। उन्होंने आशीष दिया और मेरे बेटे का चुम्बन लेकर चले गए। हम तो मई जून में ही अपने घर जाते थे। पर, एक दिन 22 फरवरी 1969 को संविद सरकार में उपमुख्य मंत्री बनें स्व. बृजलाल वर्मा का पूरा परिवार मेरे घर मौजूद था। बच्चे भोजन कर रहे थे। उनके पास सूचना आई कि "शीघ्र भोपाल आएं। दिल्ली से मालगाड़ी में डॉ. बघेल का शव लाया जा रहा है। उनका देहावसान हो गया।"


बृजलाल वर्मा जी मेरे पति के साथ भोपाल गए दर्शनार्थ। परिवार बाद में गया।


"यह क्या हो गया?" अकस्मात् समझ में नहीं आया। इस घटना के बरसों बाद, स्व. बृजलाल वर्मा सपत्नीक रायपुर में, मेरे निवास, पर आये। हमारा पारिवारिक सम्बन्ध था। उन्होंने एक स्कूली कॉपी, जर्जर स्थिति में, मुझे दी, यह कहते हुए-


"तुम्हारे लिए, डॉक्टर साहब ने दिया था" वह "गरकट्टा" नाटक की पाण्डुलिपि थी।


मैं चकित थी- विश्वास नहीं हुआ, इतने दिनों तक रखी रही पाण्डुलिपि? उन्होंने स्पष्टीकरण दिया- "मैं बहुत" व्यस्त रहा, भूल गया था बेटी। निरेन्द्री (पत्नी का नाम) ने याद दिलाया, तब ध्यान आया। 

और फिर मेरी व्यस्तता में एक लंबे अंतराल के बाद यह नाटक "गरकट्टा" निकला प्रकाशन के द्वार में। यह सही समय है "गरकट्टा" के प्रकाशन का। आजादी के 63 वर्ष बाद और पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने के 20 वर्ष बाद यह नाटक प्रकाशन के द्वार पर है। आज छत्तीसगढ़ कृषि आधारित राज्य बन गया है। 60 वर्ष पहले की मण्डी समस्या नाटक में मुंह बांए खड़ी है। आज डॉ. बघेल होते तो कितने प्रसन्न होते "गरकट्टा विहीन" छत्तीसगढ़ को देखकर ?


आइए इस नाटक की समीक्षा करें -

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1. शीर्षक "गरकट्टा" यानी गला काटने वाला। जो किसानों का गला काटे यानी गंज या मंडी मे "दलाल" धान की ढेरी की अफरा तफरी, करते हैं। दस ढेरी को ग्यारह ढेरी में बदल देते हैं। दस ढेरी से थोड़ा-थोड़ा धान निकाल कर ग्यारहवां ढेरी तैयार कर के अपना कमीशन निकालते हैं। यही दलाल, "गरकट्टा" कहलाता है। शीर्षक एकदम स्पष्ट व सटीक है।


2. परिवेश/समय / वातावरण- "गरकट्टा" के कथानक का समय 1948-49-50 के वर्ष का है। भारत आजाद हो चुका था। गाँधी जी का अवसान हो गया था, व उड़ीसा के "अंगुल वाले बाबा" के चमत्कार, प्रचार का समय था- जिसका जिक इस नाटक के प्रारंभ में ही हैं। गाँधीजी के अवसान के बाद सरकार में कथनी-करनी का जो अंतर आया उसका जिक है। छत्तीसगढ़ की धान मंडी में व्याप्त भ्रष्टाचार का खुल्लमखुल्ला चित्रण किया गया है यह वह काल था, जब मध्यप्रदेश की राजधानी "नागपुर" में थी। और उड़ीसा का कुछ क्षेत्र छत्तीसगढ़ में आता था। उस समय का भौगोलिक क्षेत्र इसी तरह का था। नाटक के पात्र "ओड़िया महाराज" भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करने वाला सकिय पात्र है।


3. स्थान व क्षेत्र - "गरकट्टा" नाटक में गंज यानी धानमंडी को प्रमुख स्थान बताया गया है। भाठागांव गंज के आसपास के गाँव का जिक है जैसे- "लवण", "बिटकुली", उड़ेला। "बलौदाबाजर"- के "चक्रधर शुक्ला" का नाम आया है। अर्थात नाटक काल्पनिक नहीं है। यथार्थ के धरातल पर गंज या मंडी का जीता जागता चित्र खींचा गया है। भाठागांव से बलौदाबाजार के आसपास का पूरा क्षेत्र डॉ. बघेल का जाना हुआ परिचित क्षेत्र था इसलिए नाटक में जीवंतता बनी हुई है। स्थान की चर्चा से नाटक में विश्वसनीयता आती है।


4. कथानक - स्पष्ट है कि गंज पड़ाव यानी भाठागांव की मंडी में धान बेचने आए चतुर सिंह, भोला मंडल ढेरी से धान चोरी होते देखते हैं। संवादों के माध्यम से कथा आगे बढ़ती है। ईमानदार गुरु की तरह बुजुर्ग ओड़िया महाराज को तारन हार मानते हुए, उनसे शिकायत करते हैं। ओड़िया महाराज जनसेवक की भूमिका में हैं। किसानों के हितैशी। "सुराज" मिलने के बाद "नंगरा नाच" जैसी स्थिति का वर्णन भोला करता है।


"गांधी के मरे ले बहुत करलई होगे जी"- इस तरह बतियाते, ढेरी बिगाड़ने वाले दलाल को पकड़ते हैं। पर गंज अध्यक्ष पं. राजबली, हवलदार निर्भयसिंह, दुर्जनलाल दरोगा, लोटनमल सेठ सब मिले हुए है एक दूसरे से। दलाली से प्राप्त रकम में इनका हिस्सा बंधा हुआ है- ऊपर से नीचे तक रिश्वत की श्रृंखला का बड़ा रोचक वर्णन किया गया है। ओड़िया महाराज खरी-खरी बात करके सभी की पोल खोलते हैं। भाठागांव के थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने के बावजूद न्यायपूर्ण कार्यवाई नहीं होती। उस "लीपापोती" का रोचक वर्णन है। ओड़िया महाराज के शब्दो में - "भाठागांव की जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। कोई सुनने वाला नहीं।" गांववाले सब किसान, गंज दरोगा, सेठ लोटनमल , सेठ मलखोरीलाल व चमरू नपैया- इन सबकी मिली भगत है।


गांव के किसान लोग भ्रष्टाचार से त्रस्त होकर, अलग पार्टी बनाकर ओड़िया महाराज को अध्यक्ष के चुनाव के लिए खड़ा करने को तैयार करते हैं। उस पार्टी का नाम "गरकट्टा विरोधी पार्टी" रखते हैं। पार्टी की नीति तय करते हैं- "शांतिमय, अहिंसात्मक तरीके से काम लेना।"


नाटक का अंत "बोलो, महात्मा गाँधी की जय"- इस नारे से होता है।


5. पात्र व चरित्रचित्रण-


भोला मंडल, चतुरसिंह, ओड़िया महाराज, ये सज्जन पात्र व चरित्र है।


लतखोरदास, डंडाशरण तिवारी, सेठ लोटनमल, दुर्जनलाल दरोगा हवलदार, प्रेसिडेंट राजबली, चमरू नपैया- ये दुर्जन पात्र व चरित्र हैं। 6. संवाद - नाटक का प्राण संवाद ही है। संवाद से ही पात्र का चरित्र ज्ञात होता है व कथानक का रहस्य उद्घाटित होता है। "गरकट्टा" नाटक में संवादो ने प्राण फूंक दिए हैं। छत्तीसगढ़ी, फिर हिन्दी मिश्रित एवंम बोलचाल की व्यावहारिक भाषा ने संवादों में जीवंतता ला दी है।


वाइस प्रेसिडेन्ट- "आपकी दो शिकायत है। आड़ी काठा मारने की और ढेरी से धान चुराने की।"


ओड़िया- "जरा ठहरिये, जरा वो खंभे के पास देखिये, कैसा काठा चला हैं।"


वा. प्रे.- "अच्छा वो है फेरहा तेली। अच्छा इसको भी हम अभी देखते हैं।"


पर बाद में सब रफा दफा हो जाता है। ये केवल सामने गरजते हैं। चमरू का कथन- "काठा तो आय महराज, उंच नीच होई जाथे। ये पइत छिमा करो महाराज। नान नान बाल बच्चा हे।"


ओड़िया का दर्द भरा कथन- "ये धान राजबली जी, धान नहीं है, ये किसानो का कलेजा है, जिसे आप लोग गिद्ध और सियार बनके भक्षण कर रहे हो। ये है आपकी प्रेसिडेंसी के काले कारनामे।"


यह भ्रष्टाचार व नाइंसाफी पर प्रहार है!


दरबारी लाल का कथन- "लाव खिरनी तमाखू खिलाव, अऊर बहती गंगा म हात धोव। छोड़ो इन रोज के चार सौ बिसिया नाटक को। अरे ऊ दरोगा सब को चुतिया न बनाई तो हमार नाम से कुकुर पोंस लेय भयी।"


इन संवादो से चरित्र और कथा दोनों का विकास होता है। दुर्जन व सज्जन पात्र तथा धान नापने में गड़बड़ी कर ,भ्रष्टचार का अंबार खड़ा कर, किसानों का खून चूसा जाता है - "गरकट्टा" द्वारा।


7. भाषा शैली - नाटक का प्रारंभ बोलचाल की शुद्ध--


छत्तीसगढ़ी भाषा से होता है --दो दृश्य तक। उसके बाद बोलचाल की हिन्दी मिश्रित छत्तीसगढ़ी में संवाद हैं। अंग्रेजी के दो शब्द भी प्रयुक्त हुए है- जो आवश्यक हैं। डॉ. बघेल की भाषा मुहावरेदार है। कई तरह के हाना यानी मुहावरों का प्रयोग करते हैं, जिससे भाषा व संवादों मे रोचकता आ जाती है।


भोला - "घर के मन अंगुल जाबो कथें, इहां तो लाल पइसा के आंखी आय हे ।"


चतरू- "ओदे उत्ती मुड़ा में एक ढेरी नवा बनगे हे ओमे "पंच मेल्ला" धान हे।"


"पंचमेल्ला"- शब्द, पांच ढेरी के पांच किसम के धानों का मिश्रण।


भोला के इस कथन में गांधी के प्रति अगाध श्रद्धा व उनके जाने की पीड़ा- "गाँधी के मरे ले बहुते करलई होगे जी।" - व्यक्त होती है ।


"हाथी के दांत खाय के आन देखाय के आन।"


"आन मर आंगुर भर करहीं तऊन हाथ भर लाम जाही और वोमन सइघो जीयत गाय खा देहीं, तभो ले कूकूर तक नहं भूकय।"


चतरु- "करिया नाग के छूये तो एक पईत बांची जाहय फेर ये राजवंशी के चुलकियाबे के कहूँ दवा नइये जी"


बात-बात में चुटीले संवाद बोलना डॉ. बघेल की भाषा शैली की विशेषता है। गंज में "हिस्सा बाँटा" की कड़ी- दरोगा प्रेसिडेन्ट को खुलकर कहता है- "हुजूर का आठ आना, सेठजी का चार आना, तीन आना हमारा अऊ एक आना नपैया हरे का हिस्सा रहत है। हुजूर अब बताव सेठजी का पांच आना कस दीन जाइ?"


इसका उत्तर व समाधान, प्रेसिडेन्ट इस तरह कहते हुए करते हैं- "सेठजी आप खामोश रहें म्युनिसिपाल्टी में अभी कई मकान उठने वाले हैं, तुम्हीं को ठेका दिया जायेगा।" इस तरह ऊपर से ही "खाना पीना," "लाभ कमाना" तय होता है राजवंशियों का। "गरकट्टा" नाटक में इसी भ्रष्टाचार का पोल रोचक ढंग से खोला गया है। "गंज पड़ाव" में धान बिकी की समस्या का कोई स्थायी समाधान आज तक नहीं मिला। किसी न किसी रूप में किसान की समस्या आज भी बनी हुई है। आज राष्ट्रव्यापी किसान समस्या भी उसी का बदला हुआ रूप है।


8. दृश्य योजना संपूर्ण नाटक 10 दृश्यों में विभाजित है। कहीं मण्डी का दृश्य, कहीं पु. दरोगा का कार्यालय, कहीं प्रेसिडेन्ट का कक्ष, कहीं राह चलते दृश्य की योजना की गई है।


सही समय में नाटक का प्रकाशन हो रहा है। पाठक रूचि लेकर पढ़ेंगे और ग्रामीण छत्तीसगढ़ी भाषा का आनन्द लेगे। "गरकट्टा" के प्रकाशन के साथ डॉ. खूबचन्द बघेल की लेखनी को एक बार नमन !!


दिनांक


14 जनवरी 2021


(मकर संक्रांति)


डॉ. सत्यभामा आड़िल


रायपुर

डोकरी के चारी

 डोकरी के चारी


डोकरी बुड़े चारी म त डोकरा पीये के बीमारी म (हास्य)

चंदा डोकरी बिहनिया ले खोर म निकल के खड़े हावय। अंगना द्वार लिपा बहरा गे हावय। आगी ल सुलगा दे हावय। डोकरा ह नहा धो के आये हावय  अउ  अंगना म बइठे बाहिर डाहर ल देखत हे।  ओतके म ओला बलाये बर एक झन आथे। दूनों झन निकले ले लगथें त चंदा डोकरी कहिथे " कहाँ जाथस? मरे बर, फेर पी के आबे।" आज पीबे त घर झन आबे।"

" घर नइ आवंव, भट्ठी म सुत जहूँ।"

" नाली म सुत जबे , थोरिक जुड़ा घलो जाबे"

" हव, कोनो मेर सुतंव,रात तक तो घर आ जहुं। पीये के मजा ल तैं का जानबे। कहाँ कहाँ नइ घूमंव? फिल्म म देखाथे तइसने जगह मन म घूमत रहिथंव।"

"जा मर"

"मोला कोनो मिलत नइये, अतेक जुवर ले खड़े हावंव"

उही बेरा म जानकी आवत दिखथे। 

" आ जानकी आ

तोर रद्दा देखत हावंव"

"आज मोर करा समय नइये चंदा"

" अरे सुन तो, रामहिन के बेटा ह शहरनिन टूरी ल लान ले हावय"

जानकी ह मुंह फार के कहिथे " अइ बिन बिहाव करे चंदा।"

"हव आजकल तो बिन बिहाव करे रहिथें तेन ल " ले रहिले" कहिथें।

" अच्छा ले रहिले ह तो बने नोहय"

तभे मितानिन आ जथे त जानकी ह  ओला बताथे के शहर ले चंदू ह एक झन टूरी लाने हावय। तेखर स़ग" ले रहिले " म हावय।


ये काये होथे मितानिन ह कहिथे त चंदा कहिथे। बिन बिहाव करे रहिथें तेन ल " ले रहिले "कहिथें। 

अरे तू मन ल तो बस मसाला चाही चारी करे बर। ओला " लिव इन रिलेशनशिप " कहिथें।

हाँ अउ सुन न मितानिन  सागर के बेटी भाग गे हावय सुने हंव।

मितानिन पूछथे "काखर संग भागे हावय?" जानत हस।

" नहीं " 

"त काबर पूछत हावस। अपन होने वाला पति संग शहर घूमे बर गे हावय। आजकल अपन पसंद के कपड़ा लेथें। त ओखर सास ससुर मन रयपुर म मिलही अउ सब झन संग म जाहीं। होगे तोर मन साफ। बस तोला तो कुछु पता भर चलना चाही तहांले पूरा कहिनी तैयार हो जथे। रांधबे कब?"


"आगी ल सिपचाये हंव। बर गे होही। अब भात भर बनाहुं अऊ दूनो जुवर बोर के खाहूँ।"

मितानिन कहिथे " डोकरा कहाँ गे ओखर बर नइ रांथस।"

"डोकरा मर गे हावय भट्ठी डाहर।" रात तक परे रहिही कोनो मेर।"

"जा अब रांध" मितानिन रेंगे ले धरथे त ओखर हाथ पकड़ के कहिथे  "बड़े गौंटिया घर म झगरा माते हावय सास बहू के सुने हंव।"

जा ना उहें जाके पूछ ले। जब तक चार झन के चारी नइ करबे तब तक तोर खाना नइ पचय। तोला काम नइये त हमर मन के तो बुता हावय।" मितानिन चल देथे.

चंदा अपन असन मुँह ले के भितरी आथे। जानकी मुँह म कपड़ा रख के हाँसत तरिया डाहर चल देथे।

चंदा के आज के खुराक पूरा होगे।

सुधा वर्मा, 13/7/2024

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य - गरू अउ गहिर ग्यान

 छत्तीसगढ़ी व्यंग्य - गरू अउ गहिर ग्यान 

मनखे पढ़थे-लिखथे-कढ़थे तभे आगू बढ़थे। शिक्षा के फरे-फूले ले मनखे अउ समाज तको फूलथे-फरथे। अब शिक्षा के जड़ अबड़े़ फूल-फर-फइल गे हे। जेकर ले मनखे साक्षर होके गजब गुरू, गहिर ग्यानी अउ घात गरू होगे हे। अब ओकर शब्दकोश म असंभव नाम के शब्द नइ रहि गे। खासकर हमर छत्तीसगढ़िया मन बर। 

मनखे के स्तर जस-जस गरू होइस शिक्षा के स्तर हरू हो गे। अतेक हरू हो गे कि गिरे से गिरे, उन्डे-घोन्डे अउ परे-डरे मनखे तको हँ खेले-खेल म बड़े-बड़े डिग्री ल उठा डरथे। डिग्री ल चेचकार के चिंगिर-चाँगर उठाए इहाँ-उहाँ डोलत रोजगार-रोजगार, साहित्य-साहित्य खेलत रहिथे।

जेन हँ बावन अक्षर ल सरलग ओसरी-पारी बोले-पढ़े नइ सकय तेनो हँ भाषा म मास्टर अउ डॉक्टर हो जथे। गणित के परेड ले जिनगी भर नौ दो ग्यारह रहइया हँ इंजीनियर बन जथे। स्कूल म सरी दिन तीन तेरह करइया हँ प्रावीण्य सूची म अव्वल रहिथे। 

जेन हँ पढ़ई के छोड़ कोनो तीन पाँच ल नइ जानिस। बस्ता बोहे-लादे घर ले स्कूल, स्कूल ले घर आइस-गिस उही बोदा होके बोहा गे। धोबी के टूरा, न स्कूल न घाट के। उही हँ निनान्बे के फेर म फँसके एके कक्षा म कई साल ले खुरचत-मुरचावत रहि जथे। शिक्षा के ये गिरत स्तर म अब जर-मूर ले सुधार लाए बर परही, ताकि हमर देश हँ फेर विश्व गुरू बन सकय। 

एकर खातिर जरूरी हे कि डिग्री मन ल चना-मुर्रा टाइप फोकट म बाँट देना चाही। जइसे दुनिया के झोला म जीरो ल डारे हवन। 

वोमन जीरो के आगू म एक लिख लिन। पीछू जुवर पूछी म कइठन जीरो लगा लिन। लाखो करोड़ो बना डारिन। हम रहि गेन कबीर के कबीर अउ उन कुबेर बन गे।

बीरो पान खा नाम कबीरा, कुबरा भए कुबेर कुबेरा।

येला कहिथे गुरू हँ गूरे रहिगे अउ चेला शक्कर बनत-बनत मिश्री-मेवा-मिष्ठान्न सबो हो गे। ये हमर स्वर्णिम इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठभूमि हरे। 

जब हर नागरिक डिग्रीधारी हो जही। तभे तो समाज हँ शिक्षित कहाही। होना नइ होना अलग बात हे। कोनो मायने घला नइ रखय। गिनती बर खाली साक्षर अउ डिग्री के होना बहुत बड़े बात होथे। 

सरकार ह पाँचवी अउ आठवी बोर्ड ल खतम करके बने काम करे हावय। गुनी अउ ग्यानी होए-कहाए बर पढ़ना-लिखना जरूरी नइ होवय। सौ बक्का एक लिक्खा। डिग्री हँ डिग्री होथे। फर्जी हे के असली, ये मायने नइ रखय। नाँव लिखे बर आना चाही उही गजब हे। एकर ले फर्जी स्कूल-कालेज अउ फर्जी मनखे मन के जन्मे-बाढ़े के समस्या खतम हो जही।


पढ़-लिखके मनखे चोखू हो जथे। सिंहासन के नींव ल कोड़े-खने बर चोखा-चोखा जोखा मड़ाए लगथे। सिंहासन ल हलाए-डोलाए लगथे। चोक्खा-चोक्खा अरई-तुतारी म हुदरे-कोचके लेथे। ओकर ले बने जनता ल साक्षर भर ही बनाना चाही। हुसियार झन करय। 

जे सड़क बनते-बनत उखड़ के खदर-बदर हो जाय। जे मकान बनते-बनत भरभराके ओदर-भसक जाय। ओकर इंजीनियर ल पुरूस्कार ले लाद देना चाही। जेकर ले प्रेरना लेके नवा-नवा इंजीनियर मन जोश म होश गवाँ डरय। बूता करे के लार बोहवावत रहय।

अइसे सड़क बनावय के बनाते-बनावत ओकर जम्मो समाने ल सफाचट कर देवय। सड़क अउ भूइयाँ ल बरोबर कर देवय । येकर ले सड़क उखड़े के समस्य-च् नइ रहिही। जनता ल तको ये शिकायत-परेशानी ले बचाके रखे जा सकही।

अइसन मनखे ल डाक्टर बनाए जाए जेकर इंजेक्शन लगाए ले मरीज अपन सरी दुख-पीरा ल भूलाके ये मया-मोह के दुनिय-च् ल सदादिन बर भूला-छोड़ देवय। 

हिन्दी म मास्टरी बर व्याकरण के कोई जगा नइ होना चाही। का के जगा की लिखय, की के जगा कि लिखय, चाहे उच्चारण सही होवय के गलत, डिग्री से मतलब।

हिंदी के मास्टर उही ल बनावय जेन हँ अपन चेला-चेलिनमन संग भावना के अदान-प्रदान ल ढंगलगहा कर सकय। तन के भले करिया रहय फेर मन मनभावन, मनमोहन अउ मनोहर होना चाही। काबर के हिंदी साहित्य बर हृदय के भावना अउ कल्पना जरूरी होथे। व्याकरण, मात्रा अउ हिज्जा के कोई मायने नइ होवय।

माइलोगन बरोबर बुजुर-बुजुर अउ पुचुर-पुचुर करत रहना उन्कर हृदय के अल्लार साहित्य भावना ल प्रगट करथे। एकर सेती साहित्य अउ कला के जानकार मन ल मेहला होना परम आवश्यक हे। जेकर एक ले जादा गोसइन होवय, तेन ल हिंदी म डाक्टरेट के उपाधि अइसेनेहे दे देना चाही।

अब इन सबले बड़का, पोठ अउ ठाहिल बात हे पढ़ई के। पढ़ई-लिखई म जुन्ना घिंसे-पिटे बात ल रटत रहना पिछड़ापन के परिचायक होथे। नवा-नवा खोज होना चाही। नवा-नवा विषय होना चाही। परीक्षा के पद्धति म तको जर-मूर ले बदलाव-सुधार होना चाही। 

भारत के राष्ट्रपति कोन हे, कहिथे। अरे भई ! जेन हे तेन हे। घेरी घँव उहीच्-उही बात ल पूछे-पचारे के का मतलब ? 

ये मामला म गणित जादा बिगड़े हवय। जब देख दो दूनी चार काहत रहिथे। उमर भर पढ़ डारथे। चार ले पाँच नइ करे सकय। एक ठन सूत्र ल रट लेथे। सबो सवाल म उहीच् ल उल्टा-पुल्टा के जोड़-घटा लेथे, ताहेन सिद्ध हो गे ! 

सिद्ध होए बात ल दस पइत सिद्ध करो कहिथे। एकर ले काय सिध परही ? सिद्ध ल सिद्ध करना भरम भर आवय। अरे दू धन दू बरोबर पाँच सिद्ध करे बर काहय तब देखातेन। हम कतका बड़ तोपचंद हवन तेन ल। 

अर्थशास्त्र म उहीच् बात, माँग बाढ़े ले पूर्ति म कमी के संग मूल्य म वृध्दि होथे। येला तो सबो जानथे। 

ओमा अब येहू जोड़ना चाही के माँग-पूर्ति के बीच इमान-धरम के टोपी पहिरे सेठ-साहूकार अउ सेवा के नाम म मेवा खवइया खखाए मन कतका घालमेल करथे ? जनता ल कइसे टोपी पहिराथे ? कतेक प्रतिशत लालच बाढ़े के पीछू उन गोदाम म कोन हिसाब से कतका माल दबाके रखथे ? 


भौतिकी वाले चिल्लाए जाथे-समान ध्रुव म टकराव अउ असमान ध्रुव म खिंचाव होथे। 


अरे भई ! टूरी-टूरा असमान ध्रुव होथे। वोमन में खिचाव होथेच्। एला तो सरीदिन के देखत आवत हवन। एहू म अपवाद होए लगे हे। देश-विदेश म बाढ़त समलैंगिक मन के जोड़ा ल देखत हुए ध्रुव मनके ये तीरिक-तीरा, खिचावन-सिंचावन, संकोच-तनाव के नियम ल अब बदले बर परही। 

अइसन सब बात ल लिखत बइठे रहिहूँ त संसार के सरी कागज सिरा जही। बोलत रहिहूँ त बरसो बीत जही। सुनइया के मुड़ी चार भाँवर घूम जही। चुँदी उखड़े ले खोपड़ी म चाँद पर जही। ओकर ले बने पाठक मन ल ये सलाह देवत हौ। सुलह कर लै अउ मोर संग चलय- 

आगू-आगू ले ग्यान बटोरना हे त मोर अप्रकासित ग्रंथ जेकर नाँव हे - ‘‘जनतंत्र के हुँकड़त गोल्लर अउ साहित्य ल कतरत कीरा के बीच राजनैतिक अउ सांस्कृतिक अवैध संबंध के समाज अउ शासन म परत प्रभाव’’ के अध्ययन कर लेवयं। 

अइसे ये किताब म ये गुन हे के जेन एकर सुमिरन भर कर लेही तेन हँ मनचाहे विषय म मास्टर हो जही। जेन हँ घोलन्ड के प्रणाम करही तेन डाक्टर हो जही। 

अब सबो बड़े गुन जेन ल गुरू-मंतर कहिथे। जेन ल सिरिफ ट्यूशन भर म पढ़ाए-बताए-सिखाए जाथे, कक्षा म नइ बताए जाए। उही ल देश-समाज हित म खाल्हे म बतावत हौं - जेन हँ ये किताब के दर्शनमात्र कर लेही तेला साक्षात मुख्यमंत्री के कुर्सी हँ खींचके बइठार लेही। वोहँ चमचागिरी अउ चुनई-फुनई के झंझट ले डायरेक्ट पास हो जही। 

मैं ओमा तोता रटन्तवाले पढ़ई ल छोड़के नवा-नवा ग्यान के तरीका बताए हववँ। एकर ले बिगर पढ़े दिमाग बाढ़ही। काबर के सोंच-समझके बताना हे। पढ़बे त समय अउ दिमाग दूनो खराब अउ खतम भर होही। फोकट मगजमारी के जरूरते नइ हे। समय अउ दिमाग के कम उपयोग करके जादा परिणाम पाना समझदार मनखे के पहिचान होथे। 

जेन हँ लिखा गे हे तेन ल अउ का पढ़बे ? 

सिर्फ दर्शन, सिर्फ चढ़ावा, 

देख जिनगी के बढ़ावा।  

ये दफे मोर बनाए प्रश्न ल आईएएस, आईपीएस के परीक्षा म पूछे जाही। ताकि उन्कर दिमाग म कतका खोल हे, ये पता चल सकय। उही खोल के सहारा कुछ झोल करे जा सकय। जेकर ले लायक के फर्जी प्रमानधारी नालायक अफसर, वैज्ञानिक अउ मंत्री मन के सही चयन हो सकय।

 

जम्मो परीक्षा मंडल म मोर गोंटी फिट होगे हे। अवइया समे म मोरे सेट करे प्रश्न पूछे जाही अउ मोरे सेट करे अपसेट बेरोजगार मन ल अफसर, वैज्ञानिक बनाए जाही। शिक्षा ल धंधा-व्यवसाय बनाके पूरा देश ल तो गदहा-घोड़ा बनइच् डारे हौं। 

जे मनखे मोर ये ग्रंथ ल पढ़के बने नंबर पा लेही। ओला ’’शिक्षा बाजार के बेंवारस हुसियार’’ नाँव के उपाधि से लादके जोंते जाही। 

ये जगा मैं थोरिक उदाहरण पेश करत हौं। जेकर ले तुमन मोर किताब के अच्छई अउ मोर गुन के गहिरई के अनुमान लगाके अपन परम गदहई के प्रमाण दे सकत हौ।

सिरिफ हाँ या ना म जुवाब देना हे। 

‘का तैं चोरी करे बर छोड़ दे हवस ?’ एला हल करना अनिवार्य हे । 

अब सही उत्तर म चिन्हा भर लगाना हे। ‘तोर बाप के झन हे- चार, दू, छै, पाँच ?’ 

‘मुड़ी ल के डिग्री घूमाके मनखे अपन चेथी ल देख सकथे ?’ 

मनखे हँ मुँह के छोड़ अउ कोन-कोन कोती ले बोलथे-गोठियाथे ? उपरहा बोले म दू नंबर उपरहा काटे जाही अउ कम बोले म चुकता फैल कर दे जाही। 

अब बिना सोचे-विचारे संझा अउ बिहिनिया के स्थिति म सिर्फ एक वाक्य म उत्तर देना हे - 

‘साफ, सुग्घर, चमकदार अउ खूश्बूदार टायलेट बर का करना चाही ?’ 

‘मनखे-मनखे झगरा होथे त कुत्ता, कमीना, हरामजादा कहिथे-कुकुर मन झगरा होथे त का कहिथे ?’ 

‘आधुनिक संत के आश्रम म का-का सीखे बर मिलथे ?’ 

‘बापू के मुताबिक कोनो एक गाल ल मारय त दूसर गाल ल दे। जब दूसरो गाल हँ लोर के परत ले पीटा-सोंटा गे, त काला देना चाही ?’ 

‘पाकिस्तान घेरी-बेरी अभरथे-हुदरथे-कोचकथे, छेड़खानी करथे तभो हमार चूरी टूटय न घूँघट उठय। ये हँ अर्धनारी के पहिचान ये के पूर्णनारी के ? ये पौरूष के निचतई-नकटई, नारी गुण के निर्लल्जता म बृध्दि करे के उदीम-उपाय बतावव।’ 

‘सुसु (स्विस) बैंक के बिला म घुसरे-घुसरे हमर देशी मुसुवामन के बछर म भलुवा बन सकत हे ?’ 

‘अब कम से कम तीन सौ शब्द म उत्तर देना हे। 

‘सिद्ध कर कि तोर बाप हँ सहींच म तोर बाप ये अउ एकमात्र बाप हरे।’ 

प्रमाण पत्र म जात के उल्लेख जरूरी नइ हे वोहँ बाद म घलो बनत रहिही। 

‘भारतीय ज्योतिष के अनुसार दमांद ल का गिरहा माने गे हे ? दमांद गिरहा के शनि अउ सकराएत संग तुलना करव।’ 

‘खोपड़ी के उल्टा का होथे ? बीसो अंगरी म बीस खोपड़ी होतिस त मनखे कतेक ऊपर उड़ सकतिस अउ कतेक नीच करम कर सकतिस ? बने फरियाके जुवाब देवव।’ 

‘चमचामन के अंधियार पीछवाड़ा म फोकस डारते हुए भविष्य के दलदल म भ्रष्टाचार के बस्सावत फूल खिलावब म उन्कर योगदान बतावव।’ 

‘देश ल भ्रष्टाचार अउ घोटालाबाजी म विश्व म अव्वल बनाए बर का करना चाही ? नवा-नवा उदीम लिखव। उपाय बतावव।’ 

‘कऊँवा, घुघुवा, चील, चमगेदरी, सुरा, कुकुर, कोलिहा, बेंदरा, बइला, बिच्छी, कोकड़ा, गदहा इन्कर के-के प्रतिशत स्वभाव मिलके मनखे-स्वभाव ल संपूर्ण करथे ? सत्य, प्रमाणित, सर्वसुलभ अउ सार्वभौमिक उदाहरण देके समझावव।’

नोट के लाइक मोठ गोठ ये हे कि पोठ, वजनदार अउ मालदार उम्मीद्वार नइ मिले म ये विज्ञापन निरस्त करे जा सकत हे। येकर पूरा-पूरा दोष उम्मीद्वारमन के होही।

पहिली अपन आप ल तन, मन अउ धन से काबिल बनावव। हमन ल काबुली चना खवाना कबूल करव। तेकर पीछू पद म बइठके जिनगी भर वसूल करहू, येकर सोला आना गारण्टी हे।



धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

परीक्षा म कोचिंग-कोचिया के खब-डब

 [7/22, 5:31 AM] महेंद्र बघेल: परीक्षा म कोचिंग-कोचिया के खब-डब

                      (महेंद्र बघेल )


पर के इच्छा के मतलब का होथे तेला बिना उदीम के न तँय ह जान सकस, न तोर अंतस म का इच्छा जागत हे तेला कन्हो पर ह जान सके। पहिली तो ककरो इच्छा ल जाने बर आपस म एक- दूसर संग गोठ-बात, बोली-बचन के होना जरूरी होथे।गोठियई- बतरई के बिना ककरो इच्छा के थेभा ले पाना बड़ मुश्कुल काम आय। या तो कागज-पत्तर म लिखवाके पर के इच्छा ल घलव जाने जा सकत हे।जिहाँ तक मन के बात हे ओहा अंजोर कस सोज्झे रेखा म दउड़-भाग करे ये जरूरी नइहे।वोहा तो चोबीस घंटा अपन पोजिशन ल तैय्यार मोड म राखे रहिथे अउ नेटवर्क मिलते भार कवरेज एरिया कोति एकसस्सू दउड़ लगा देथे। फेर मन के बाते ह अलग हे येहा जे डहर चलथे उही डहर अपने-अपन एक ठन नवा रस्ता बना लेथे। अब येहा अनुभवी मन के समझ के ऊपर निर्भर हे कि वो रस्ता ह सोझ रेखा म हे कि रस्ता ह तीड़ी-बीड़ी हे।कन्हो भी विषय के बारे म कोन ह कतिक समझ रखथे येहा वोकर सोच के स्तर के बात आय। काबर कि मन अउ इच्छा के छतरंग चाल के लीला ह तो अपरंपार हे।इहाँ के प्रसंग म मन अउ इच्छा के विषय ह कन्हो आध्यात्मिक अउ तात्विक गुनानवाद नइ होके आम आदमी के सरोकार बर गोठबात के उदीम मात्र आय।आप मन ल लगत होही कि ये मामला ह बड़ गम्भीर होवत हे फेर अइसे कुछु नइहे। सही कहिबे ते ये मामला ह एकदम लोकल हे मतलब लोक के लोकाचार..।

          जब मनखे मन कन्हो बड़े जन अलहन म अरहज जथें अउ कतरो कोशिश करे के बाद वो अलहन ले उबर नइ सके तब उनकर जुबान ले एके ठन गोठ निकलथे-'' का करबे गा भगवान ह हमर परीक्षा लेवत हे।'' अउ एती स्कूल म भरती होवइया लइका मन बर पढ़ई-लिखई के मतलब.., परीक्षा में पास होवई ले रहिथे। परीक्षा म पास होवइया लइका मन ले मयारू समाज ह बड़ मान-सम्मान के साथ वेवहार करथे।उनकर नजर म पढ़े-लिखे के मतलब स्कूली परीक्षा म पास होवई ले हे।तेकरे सेती परीक्षा म पास होय लइका के घर परिवार अउ संगी-संगवारी के बीच म वोकर कद ह बाढ़ जथे मने वोहा सब के कदरदान बन जथे।जिहाँ तक परीक्षा के सवाल हे येहा नान्हे कक्षा ले लेके बड़े कक्षा तक पढ़ईया लइका मन के योग्यता के मूल्यांकन करथे। समाज म अलग-अलग किसम के मनखे मन के भरमार हे।इही समाज म पढ़ई-लिखई ले दूर भगइया 'भगेड़ू' मन के घलव विशेष स्थान हे ,जिंकर उपर भगऊ के ठप्पा लग जथे। ये संज्ञा ले बाचे बर ये भगेड़ू मन के मुँहुँ ले अक्सर सुने बर मिल जथे कि खेती-किसानी अउ धंधा- पानी करे बर पढ़े-लिखे के होना जरूरी नइ रहय।

             परीक्षा के नाम ल सुनके मनखे-मनखे के हिरदे म धुकधुकी, हाथ-गोड़ म कपकपी,मूड़ म पीरा, माथा म पसीना अउ ऑंखी ले पानी ढुलक जथे। तब लगथे ये तो हमर संस्कृति के हिस्सा आय,अब ये परीक्षा ल भगवान ह लेवय.., चाहे एनटीए ह।पास होय बर आखिर परीक्षा ल देवानच पड़थे न..।स्कूल अउ कॉलेज म लइका मन के पढ़ई अउ परीक्षा के महत्व ल उही मन जान सकथे जे मन कभू परीक्षा देवाय के जतन करे रहिथें। स्कूल में लोकल अउ बोर्ड दो प्रकार के परीक्षा होथे, लोकल परीक्षा के पेपर ल उही स्कूल के गुरुजी मन छाँटथे अउ जाँचथे जेन स्कूल म लइका मन पढ़त रहिथें।बोर्ड परीक्षा के पेपर ला आन गुरुजी मन छाँटथे अउ जाँचथे।

                     परीक्षा म हुशियार लइका के पास होवई तो सरल हे, फेर येहा कमजोर लइका के धुकधुकी ल बढ़ा के रख देथे। कमजोर लइका के धड़कन ल सुनके वोकर  दाई-ददा के माथा म संसो के लंबा लकीर उपक जथे। जब लइका मन पढ़ई के सोज रद्दा म रेंगई ल छोड़ के घुमई-फिरई वाले टेड़गा रद्दा म दौड़ना शुरू कर देथें तब दाई-ददा के माथा म संसों के रेखा के उपकना ह कोनो बड़े बात नोहे।अइसन समय म लइका के धुकधुकी ल शांत करे बर अउ अपन संसों के फारम हाउस म आशा के फसल लुवे बर पालक के पालकत्व दिमाग म गुरुजी संग जोहर भेंट करे के एक ठन क्रूर आईडिया ह जनम लेथे।पालक अउ शिक्षक के बीच कई परत के भेंट-मुलाकात के पाछू मामला ह कन्हो फिट होगे तब तो ठीक नइते पालक ह सीट ले अउ बालक ह बोटबीट ले होके रहि जथे।लइका के मोह म परे पालक मन के इही वेवहार ह परीक्षा के  महत्व ल हरू करके रख देथे। लगथे.., नीचे ले ऊपर तक परीक्षा व्यवस्था म सेंधमारी के काम ह कुछ अइसने ढंग ले पनपथे। ये परीक्षा लीक होय के मामला ह होनहार लइका मन के मेहनत ऊपर पानी फेरई के संग उनकर सुग्घर भविष्य के सपना ल छर्री-दर्री करे के उदीम आय। सरकार के नजर म येहा नानमुन घटना आय फेर मेहनतकश लइका मन बर ये कन्हो दुर्घटना ले कम नइहे।

                 हमर देश म पूंजीपति के कन्हो कमी नइहे ,कहुँ इनकर बस चलतिस ते धन के परसादे ऊपरवाला ल घलव सिंहासन ले धकिया के वोकर सत्ता ल हथिया लेतिन। रात-दिन परीक्षा म धांधली होवई के समाचार ह पूंजीपती अउ कोचिंग-कोचिया मन के खब-डब करई के खतरनाक इरादा ल संकेत करथे। येमन पैसा अउ पहुँच के दम म अच्छा-अच्छा के इमान ल डोलाय के ताकत रखथें। अपन काम ल सधाय बर ककरो ईमान ल डोलाना इनकर चुटकी के काम आय।येमन साम दाम दंड भेद सबो प्रकार के चाल ल अजमाय म थोरको कमी नइ करें अउ अंगरी ल सीधा नइते टेगड़ा करके घीव ल निकाली लेथें। कारपोरेट जगत के धाम-धूँसर पूंजीपति मन के एके काम होथे घीव निकालना..,  भला येमा ककरो जीव ह निकल जाय,उनला येकर ले  कोई फरक नइ पड़य।

              उच्च शिक्षा खातिर बीपीएड, डीएड, बीएड,नर्सिंग, नेट, सेट, गेट, नीट,जेईई के माध्यम ले होनहार लइका मन ल खोजे के बूता होय चाहे व्यवस्था ल चलाय बर एसएससी, पीएससी, यूपीएससी के माध्यम ले अधिकारी-कर्मचारी मन के तलाश..,हर हाल म इनकर योग्यता के थाह लेय बर परीक्षा के आयोजन तो करनाच पढ़थे।अइसन म ये सरकार ह परीक्षा लेवइया एजेंसी के ऊपर भरोसा नइ करही ते भला काकर ऊपर करही। फेर वाह रे व्यवस्था..,पूंजीपति मन अपन पैसा अउ पहुंच के भरोसा म एनटीए म खुसरके परीक्षा होय के पहली पेपर ल लीक करवा लेथें। लाखों रुपया म ईमान खरीद के अपन लइका के भविष्य ल बनाय बर जनता के भविष्य ल बरबाद करके रख देथें।आजकल जे डहर देखबे ते डहर पेपर लीक के उलेंडा पूरा चलत हे। खेती-बाड़ी अउ घर द्वार ल बेच-भांजके कोचिंग करइया लइका मन के भविष्य  ह ये पूरा-पानी म धारेधार बोहावत हें। पेपर लीक करवइया के औलाद मन साल भर मटरगश्ती करथें। अउ रिजल्ट म मेरिट म आके बड़े-बड़े संस्था म फौलाद कस तन जथें।

               सुने म आथे कि परीक्षा लेवइया एजेंसी म अउ सरकार म बड़े-बड़े कोचिया मन के पैठारो हो गेहे। तेकरे सेती ये पेपर लीक के मामला ह अब धंधा बनके बिन डर भाव के चलत हे। चाहे पुलिस के भर्ती, शिक्षक के भर्ती होय चाहे कन्हो भी भरती होय परीक्षा म धांधली करई अउ अपन- अपन ल रेवड़ी बटई ह इनकर बर आम बात हो गेहे। रात-दिन पेपर लीक अउ भर्ती रद्द होय के सेती बेरोजगार मन के उमर ह साय-साय बाढ़त जात हे, घर-परिवार के फिकर म उनकर मानसिक दशा ह बड़ खराब होवत हे। अपन हक बर आंदोलन करे म पुलिस के डंडा चलथे, भूखे-प्यासे रहिके हड़ताल करइया बेरोज़गार मनके कोई सुनवाई नइहे।कोन सरकार ह कतिक कोंदा-भैरा हे तेकर देश म कंपीटिशन चलत हे। आदरणीय मन के महिमा ल  का कहिबे वोमन तो डबल इंजन के बुलडोजर म चढ़के ओदारो- ओदारों के नेशनल गेम खेले म मस्त हें।नीट परीक्षा पेपर लीक के मामला म कोचिंग सेंटर मन के करोड़ो रुपया के खुलेआम कोचियई के खबर ह पेपर म रात-दिन छपत हे। एक दिन अचानक सेंटर बदले के विकल्प बर पोर्टल के खुलई अउ थोक के भाव म अपन गांव-गंवई ल छोड़के बड़ दूर लंका म सेंटर के चुनई ह परीक्षा एजेंसी के कड़क- करेंसी डहर मया ल बखान करथे।उपराहा म परीक्षा के पहली रातकुन पेपर के लीक होवई अउ एके सेंटर वाले मन के थोक के भाव म मेरिट म पास होवई ह व्यवस्था के पोल पट्टी ल खोल के रख देहे।

                 एसो के नीट वाले अनीत के सेती पैसावाले मन के धांधली पुत्र मन जब डॉक्टर बन जही तब मरीज मन के का दशा होही तेकर अंदाजा लगायेच म डर के मारे पूठा ह कांप जथे, रूवा ठाढ़ अउ तरुआ ह गरम हो जथे। पता नइ हमर देश म अइसन कोचियई के धंधा-पानी ह कतिक पुराना हे अउ कतका गदहा मन अपन नरी म स्टेथेस्कोप अरो के घोड़ा के नसल ल बरबाद करत हे..? कभू बात-बात म आरक्षण के डॉक्टर कहिके ताना मरइया ललमुँहा मन अउ समाज म ज्ञान के गंगा बोहइया खानदानी गँउहा ,डोमी अउ करैत मन पता नइ सरकारी चश्मा पहिन के कते बील म खुसरे बइठे हें, अभी तक उनकर फूसरे के आरों नइ मिल पाय हे। एती पेपर लीक होय के कतको सबूत मिले के बाद घलव बड़े मछरी ल फाँसे-धाँधे बर व्यवस्था के हाथ ह काबर काँपत हे ते उही मन जाने।फेर आसामी मन ले दूरी बनाके जनता ल बेमझाय बर सरकार डहर ले अल्लू-खल्लू टाइप के कोचिया मन के झोपड़ी म छापा मरई के रिहर्सल कार्यक्रम ह जारी हे..।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव


भाव बढ़िस बंगाला के*. ब्यंग

 *भाव बढ़िस बंगाला के*.               

                                     ब्यंग 

       भोरहा मा झन रबे बाबूजी, समय आथे न तब घुरवा के दिन घलो बहुरथे। काली तक मोला कोनों सोजबाय देखत पूछत नइ रिहिन। आज मोर नाँव लेके सुनके सबके खीसा मा जड़कला अमावत हे। खीसा मा हाथ डारत कपकपी धरत हे। ओकर कारन अतके हे कि आज मँय हर कालर ऊँचा करके रेंगत हवँ। भले मोर ठाठ बाठ कतको दिन बर रहय फेर मोला मउका मिले हे तब तो मेंछराबेच करहूँ। मोला अइसे लगत हे कि कइयो जमाना के बाद मोर औकात ला जनता जाने हे। ये बात मँय हर निहीं रे भाई, वो बजार के बंगाला माने टमाटर माने पताल हर कहत हवे। अइसे लगत हे जानो मानो दसो चुनाव लड़े के बाद लटपट मा आज गिनवा वोट ले जीतके विधानसभा के मोहाटी तक पाँव रखे हे। अब सम्मान के जगा मा चलिदेय हे तब कतको अनपढ़ गदहा रहय कलेक्टर के फरज बनथे सलामी ठोंके के। बस ये दसा मा बंगाला के मेछराना सहज हे। आज वो हर सब्जी मंडी के सरदार कस या तो थाना के सिपाही ले उपर दू फीता वाला एस पी के पद मा हे। अइसन मा सौ रुपिया पार होइच गेय हे तभो कालाबाजारी के मोल बेचरउहा नेता तो नोंहे।

       ओकर ठसन ला देखके सरकारी बंगला मा बिना पद के काबिज चेंच अमारी जेकर तारी कभू बंगाला के सँग पटबे नइ करे ताना मारत कहत रहय----- चारे दिन अँटिया ले रे बंगाला।ये तो बेरा बखत के बात आय अउ फेर जेन कुरसी मा आज तैं बइठे हावस काकरो नइ होवय। सदा दिन के गठबंधन के राग म राग मिलाने वाला आगू के दुकान ले गोंदली उर्फ पियाज कहत हे हम तोर हश्र ला जानत हवन बंगाला वो रायगढ़ वाले बन तोला टेक्टर मा जोर के लानथें अउ सड़क बाजू घोंडा के जाथें। तब तँय हर घर के रहस ना घाट के। ये तो सरकार के नाइंसाफी के सेती हम बैपारी मन के कालाबाजारी जमाखोरी ले बोचक के सफेद बजार मा फटेहाल डालर के भाव मा जाथन। बंगाला कथे------कभू काल आज मँय हर उपर उठेंव तौ सबके आँखी गड़त हे। आज मँय रोज बजार अखबार मा अउ मनखे मन के जबान मा समाये हवँ तब सबके सब जलन मरत हव। ये सहानुभूति के बाँटे पोरसे ई व्हीएम के बटन नोंहे जेमे जनता दया करके चपके हे। ये तो मोर खुदके योग्यता अउ क्षमता के असर हे जेकर ले अखबार अउ बजार मा जगा बनाय हँव। जेन दिन मोर मोल सरहा भाजी के लाइक नइ रिहिस दस रुपिया मे दस किलो रेहेंव तब कोनों मोर तिर आँसू पोछे बर नइ आयेव। हारे नेता के तिर मनखे तो का माछी नइ ओधे तइसे मोर हाल रिहिस। कोनो उजबक नेता के मंच मा सरहा के जगा टाटक ताजा ला फेंके तब नेता के जगा मोर कतका हिनमान होवय मिंहीं जानथों। तब मँय अपन तकदीर मा आँसू बोहावत खुद ला कोसवँ तब कोनो मोर हाल पूछे बर नइ आयेव। मोर सौभाग्य हे कि आज तुँहर मनले उँचहा जगा पाये हव। तुँहर मन कस छुटभैया चिरकुटहा नोंहों। ताना मारे के मिले मउका ला कड़हा भाँटा जेकर ले बइद अउ डाक्टर तक परहेज करे बर कथें। इन चिरकुट पाखंडी किसम के भाँटा जे समाज मा खस्सू खजरी अउ बतहा के संक्रमण कभू कसर नइ छोड़े गवाना नइ चाहत रिहिस, कथे-----अतको ऊँचा का काम के रे बंगाला जेकर ले आदमी उपर कोती देखबे नइ करे।

            मुँहूँ अँइठत गोंदली ला देखके बंगाला कथे--------जादा भाव खाना छोड़दे गोंदली, जतका आदर सम्मान मनखे समाज मा तोर हे ओतके मोरो हे। फेर तँय कहू जमाखोरी मुनाफाखोर बैपारी मन के फाँदा मा फँदबे तब तोला जबरन ऊँचा उठाए जाही। एकर ले साफ हे कि तोर खुद के औकात नइये। मोर अपन पहिचान हे इज्जत हे, भले मँय दस रुपिया के दू किलो रहवँ चाहे सौ रुपिया किलो। मोर स्वाभिमान ला तँय नइ गिरा सकस। मोर उमर भले चरदिनिया हे फेर कोनो बनिया के गोदाम मा कैद होके नइ रहन। अउ वो तोर बाजू मा बइठे आलू जे हर मोला देख देख के हाँसत हे ओकर औकात पंचायत के सचिव आउ सचिवालय मा लेखापाल ले जादा नइये। वो मोर ले का बात करही। एक तो बिना गठबंधन के ओकर सरकार नइ चले। अपन इज्जत बनाके रखे बर चना केरा जइसे निर्दली मन के पाँव पखारत रथे। मँय मानत हवँ कि ओकर व्यक्तित्व गाँधीजी अउ अटलजी कस हे। फेर अकेला चना भाड़ नइ फोरय तेकरो मुँहुँ खुलत हे। हम भारी बहुमत ले हारे जीते निर्दली कस हवन, फेर अपन शान रुतबा ला गिरन नइ देवन। राजनीतिक लफड़ा ले दूर छेल्ला बुद्धिजीवी कस रथन। अरे तोर नाँव लेके संसद मा हल्ला मचत रथे कि पियाज के कालाबाजारी जमाखोरी बंद करौ कहिके। चिरकुच असन नेता मन धरना मा बइठ जाथें। फेर तोर खैंटाहा आदत हे जनता ला रोवाय के सरकारी कुरसी हलाय के। बैपारी के खीसा भरे मा कभू कमती नइ करे। किसान के सुध लेते ते तोरो मान अउ बाढ़तिस। आज मोर खुशी के बेरा मा दाँत झन कटर।

        अतका तो तय हे कि जे किसान मोला पाल पोसके जतन करथे तुँहरे मन कस महूँ उँखर खीसा भर नइ पावत हँव। दलाल कोचिया के दम ले किसान के नाँगर नाँस गँसिया नइ पाय। बिचारा मन के कालर ऊँचा करे मा मोरो हाथ बात हो जतिस तौ अहोभाग मनातेंव। फेर का कबे महूँ बजारु होके रहि गेय हँव। मोला तो अतको भान हे कि चार दिन मा सर के मर जाहूँ, अउ उही चार दिन बाद किसान करही। भले आज दुरिहा ले पाँव लागी महराज कहत हे महूँ खुश रहो बेटा कहिके आशिष दे देथँव। साग मा नेंगहा डारयँ चाहे ठोमहा भर। आम जनता के सँग चुलहा फुँकइया सुवारी तको बजरहा के झोला भितराय के पहिली पूछत तो हे कि बंगाला के आज का भाव हे।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

     (ब्यंग संग्रह "का के बधाई" ले)

छत्तीसगढी कहानी-- बदला

छत्तीसगढी कहानी-- बदला

                         चन्द्रहास साहू

                         मो 8120578897

चौमासा के घरी बरखा रानी अपन करिया-करिया चुन्दी बगराके आथे तब उमड़-घुमड़ के पानी गिरे लागथे। गरमी मा उसनावत जीव-जिनावर अउ पियास मा बियाकुल धरती दाई के ओन्हा फिले ले जम्मो कोती हरियर-हरियर दिखत हाबे। मेचका के टर्र-टर्र, झिंगुरा के झिंगीर-झिंगीर हा.... हा.... तो... तो..... अरई-तुतारी के राग-रंग,रिमझिम-रिमझिम, टिपीर-टिपीर, बरखा के स्वर लहरी अउ बादर के गरजना चिरीरिरी...फट.....। कभू संगीत के सातो स्वर हाबे तब कभू डरभुतहा लागत हाबे वातावरण हा।

फेर..... माहुर लगे दू गोड़ जंगल के रद्दा रेंगत हे। तब कोंवर भुइयां मा मोटियारी गोमती के पाॅंव के छप्पा, छपा जावत हाबे। शीतला तरिया के चढ़ाव-उतार मा चिकचिकावत पाॅॅंव-पाॅंव के चिन्हा गजबेच सुघ्घर लागत हाबे।

"....... अब्बड़ सुघ्घर दिखत हाबे दाई पाॅॅंव-पाॅंव के चिन्हा हा।''

आठवी क्लास के लइका किहिस अउ देखे लागिस अपन पाॅंव के चिन्हा ला। अब उछाह मा दूनो कोई हाॅंसे लागिस खुल-खुल हाॅंसी। ....अउ अपन दाई संग अपन गोड़ ला देखे लागिस। मटासी माटी अउ मुरुम ले लगे माहुर ला। मुड़ी मा टुकनी, टुकनी मा बासी-पेज,हॅंसिया, डोरी, खांध मा टंगिया अउ कोस्टहू लुगरा माड़ी ले उप्पर....बस अतकी तो सवांगा आवय मोटियारी के ।.... अउ लइका तो स्कुल ड्रेस मा जावत हाबे जंगल।... बघमार जंगल। अब जंगल अमरके अपन नत्ता-गोत्ता, लाग-मानी ला जय जोहार अउ बंदगी करत हाबे। कतका सुघ्घर होथे मनखे अउ प्रकृति के नत्ता हा ?

"जय जोहार हो महुआ दाई !''

"पाॅंव पैलगी हो सरई बड़की काकी !''

"राम राम हो मंझली भौजी तेंदू !''

"राम राम बहिनी सीताफल !''

"सीता राम हो परसा कका !''

"गुड मार्निंग हो सइगोना मैडम !''

मोटियारी गोमती बड़का रुख ला दुरिहा ले पैलगी करत हाबे अउ नान्हे झाड़ झखोरा मन ला हला-डोला के दुलार करत हाबे। ...अउ जम्मो रुख राई हा अपन पाना पतई मा माढ़े पानी के छिटका छितके आसीस देथे अपन बेटी गोमती अउ नतनीन फुलवा ला। सिरतोन कतका सुघ्घर होथे प्रकृति अउ मनखे के बीच के मूक संवाद हा।

सब बने-बने हावव ना,मोर मयारुक हो ... ! मोटियारी गोमती अगास के अमरत ले चिचियातिस।

"हांव ! .....बने-बने।''

चिरई चिरगुन जीव जिनावर रुख राई ले प्रतिध्वनि आतिस। जम्मो कोई उछाह मनावत दुलार देतिस मीठ आमा-जाम, टोट्ठाहा कसैला जामुन, अम्मट अमली अउ चार,तेंदू फन्नस सब रोदरिद ले गिरे लागथे। मोटियारी गोमती अपन ओली मा अउ नोनी फुलवा अपन फ्राक मा‌ सकेले लागिस। ...फेर आज तो बड़की काकी सरई ले कुछू स्पेशल जिनिस मांगत हाबे। .......सरई बोड़ा खोजत हाबे गोमती हा।

"दाई! सरई बोड़ा का हरे जानथस ?''

गोमती के चेहरा जोगनी बरोबर बरिस अउ बुतागे। अपन ननपन मा अपन दाई ला इही प्रश्न पुछे गोमती हा बोड़ा निकालत-निकालत। धमतरी के जंगल मा कटाकट सरई रुख राहय। उदुप ले सुरता आगे। दुगली के जंगल ला तो देख के अंग्रेज मन के आँखी फुटगे अउ रेलवे के स्लीपर बनाये बर जंगल के भादो उजाड़ करे लागिस। सरई रुख ला विदेश लेगे बर रेलगाड़ी चलाये लागिस। दुगली सिहावा बोरई ले ...ओड़िशा। रिही-छिही,  तिड़ी-बिड़ी होगे। सिरतोन शहर के विकास बर गाॅंव के कतका विनास होगे ? कोन हाबे जिम्मेदार ?

गोमती गुने लागथे। अपन ननपन ला सुरता घला कर डारिस।

"दाई!भैरी होगे हावस का ? मेंहा पुछे हॅंव सरई बोड़ा का हरे ? कइसे फुटथे जानथस ?''

''हम अप्पढ़ का जानबो वो ! चौमासा के घरी सरई रुख के जर मा फुटू बरोबर फुटथे बोड़ा हा वोतकी ला जानथन वो ! तेहां बता तुमन ला तोर मास्टर बताये होही ते ...!''

दाई गोमती किहिस। फुलवा तो मन लेये बर पुछत हाबे भलुक जानथे जम्मो ला।

"दाई ! जब असाढ़ सावन के महिना मा दंद कुहर अब्बड़ रहिथे वो बेरा वातावरण मा आद्रता माने नमी घला अब्बड़ रहिथे। तब सरई रुख के जर ले एक केमिकल के रिसाव होथे तब वोमा फंगस अपन ग्रोथ करथे अउ इही ला हमन बोड़ा कहिथन। अइसना फुटू घला होथे लाल, नीला, पीयर, हरियर, संतरा रंग के फुटू ला नइ खाना चाहिए। वोमा टाक्सिन रहिथे। भलुक सादा रंग अउ गोल मुड़ी वाला फुटू सुघ्घर होथे। चिटको, सुगा, छेरकी, चरचरी कठवा करिया तितावर जम्मो जहरीला होथे।''

फुलवा सुरता कर करके जम्मो फूटू के किसम ला बताइस हाथ ला झुला-झुला के। गोमती के चेहरा दमकत हाबे अब बिद्वान बेटी ला देख के। वोकर मनमोहनी बेटी सिरतोन आज मन ला मोह डारिस। बेटी जतका पढ़बे वोतका पढ़ाहूं। एक बेरा कमती खाहूं, तन के जम्मो गाहना ला बेच दुहूं। कड़ी मेहनत करहूं, भलुक  करजा घला कर लुहूं फेर तोला अब्बड़ पढ़ाहू गोमती किरिया खा डारिस मने-मन। ...अउ गरीब घर का गहना ?  नरी मा मंगलसूत्र अउ गोड़ के बिछिया- सुहाग के चिन्हारी। अतकी तो हाबे गोमती करा । गोमती अउ फुलवा सरई बोड़ा  निकाले लागिस अब। सरई के जर ला चाकू ले हलु-हलु खरोचे लागिस अउ बोड़ा ला बिने लागिस। सुघ्घर गोल-गोल बोड़ा। माटी मा सनाये भुरवा-भुरवा बोड़ा ला देख के फुलवा मुचकावत हाबे ।‌ तब दाई गोमती घला अघागे हाबे सरई काकी के मया पा के। आज अपन बेटी मन ला बोड़ा के रुप मा अब्बड़ दुलार देवत हाबे। .... नान्हे टुकनी भरगे अब बोड़ा ले। गोमती रुख ला पोटार लिस अब धन्यवाद देये के भाव लेके।... अउ सरई काकी आसीस देवत हाबे अपन पाना-पतई ला झर्रा के। जइसे काकी सरई के नेवता घला आवय बेटी हो काली झटकुन आहू अइसे। 

बोड़ा के टुकनी ला फुलवा बोहे हाबे अउ गोमती अब बियारी बर लकड़ी सकेलत हाबे। .....फेर फुलवा ला ?

अब्बड़ भुख घला लागत हाबे।....अउ अब जंगली जानवर अउ हाथी के घला डर बने हाबे।''

"डर के तो गोठ हाबे बेटी ! मनखे हा जंगल मा घर बनाही तब जंगल के रहवासी कहाॅं जाही...? कतका सहही एक दिन पलट के जवाब तो दिही येमन ? अपन घर ले खेदारे के उदिम तो करही ।''

"अतका दुरिहा ले काबर लकड़ी सिल्होथस दाई ! गाॅंव तीर ले सकेल लेबो लकड़ी ला। चल घर जाबोन अब झटकुन।

"गाॅंव तीर मा सुक्खा लकड़ी नइ मिले बेटी ! भलुक दुरिहा ले बोहो के लेग जाहूं फेर तीर के हरियर रुखवा मन ला नइ कांटव वो ! जीयत मनखे के गोड़-हाथ ला मुरकेटबे तब पीरा होथे वइसना रुख-राई ला घला पीरा होथे। वहूं मन दंदरत ले रोथे फेर मनखे तो भैरा आवय। आने के दुख नइ दिखे अउ‌ नइ सुनावय।''

"हंव दाई ये रुख-राई मन सिरतोन सजीव होथे। सांस लेथे, बढ़वार होथे...। हमन ला जीवन दायिनी आक्सीजन देथे।...अउ रुख-राई मा देवता मन के वास होथे। पीपर मा विष्णु, बरगद मा शिव जी, लीम मा माता शीतला अउ दुबी घास मा गणपति जी बिराजथे दाई ! हमू मन जम्मो ला पढ़थन वो अपन क्लास मा।''

गोमती अपन गुणवती बेटी के गोठ सुनके मुचकावत हाबे।  कोनो कोती ले अगास मा करिया बादर फेर आइस अउ टिपीर-टिपीर फेर शुरु होगे। ....अउ गाॅंव के साहड़ा देव ला नाहकिस अउ अब मुसलाधार बरसे लागिस। लकर-धकर लकड़ी ला तिरियाइस अउ अपन घर मा खुसरगे अब दूनो कोई।

             आज सिरतोन ये करिया बादर अब्बड़ पानी दमोरत हाबे। बड़का बूंद अइसे कि खपरा फुट जाही। ...अउ खपरा नइ फुटही अभी तभो का बांचे हाबे गोमती घर। छानी अब्बड़ चुहे लागिस। लोटा थारी गिलास कटोरी जम्मो ला बगरा दिस पालिथीन बनइया वैज्ञानिक मन ला पैलगी करत चाउर के मइरका ला तोपीस-ढ़ाकिस तभो ले घर ला कइच्चा होये ले नइ बचा सकिस गोमती हा। जम्मो कोती अब रोहन-बोहन होगे। ...अउ आधा घर उजार परे हाबे तौन ला देखथे ते आँसू बोहा जाथे। 

                 दुब्बर ला दू असाढ़ कस दुख होगे हाबे गोमती ला। हाथी दल आके गोमती के घर के भादो उजार कर डारिस। गाॅंव के आने घर घला नुकसान होइस फेर गोमती के तो सर-बसर चल दिस। ......अउ मुआवजा ? जेकर चौरा भसकिस तौनो ला अब्बड़ मुआवजा मिलिस साहेब  !  ......फेर गोमती बर तो अटागे। सिरिफ बीस हजार रुपिया मिलिस। वोतका मा का होही..? बीस हजार रुपिया मा तो नेंव घला नइ निकले। कोतवाल के परसार के भसकाहा दीवार टूटिस अउ मुआवजा के पइसा मा चमकट्ठा घर बनगे। सरपंच घर तीन मंजिला मकान ठाड़े होगे। ...अउ पटइल घर चकाचक टाईल्स लगगे। 

"चढ़ोतरी चढ़ाबे तभे तो बुता होही भौजी गोमती ! फोक्कट मा तो देवता घला नइ माने। कुकरी बोकरा चढ़ाये ला परथे।'' 

कोतवाल किहिस अउ हाॅंसे लागिस। 

"तब लेग जा न बाबू करिया कुकरी ला सगा समझ के खा लुहूं।''

"......वो तो खाबोच भौजी! तुंहर देये कुकरी ला अउ बोकरा ला घला फेर अतकी मा बुता नइ बने। बुता बनाये बर फिफ्टी परसेंट देये ला परथे। मुआवजा के फिफ्टी परसेंट  मिलही तब अउ वोकर पहिली पचास हजार एडवांस देये ला परथे।''

कोतवाल एजेंट बरोबर काहत रिहिस। गोमती संसो मा परगे। वोतका पइसा तो बाप पुरखा एक संघरा नइ देखे हाबे। अउ कतको खुरच लिही तभो वोतका के  बेवस्था नइ हो सके।..... अउ बेवस्था हो जाही तब ? घूस देना सही रही....? नही, बुढ़ादेव ! आंगा महराज ! येहां तो पाप आवय। .....अउ मेंहा पाप मा बुड़के अपन बेटी ला सुघ्घर मनखे नइ बना सकंव। घर नइ बनही ते का होही ? छइयां तो मिल जाही....? गोमती गुणत हाबे। 

"का करबे भौजी ! साहब मन ला अब्बड़ पइसा बांटे ला परथे। ले, भइयां संग सुंता-सलाह होके बताबे।'' 

कोतवाल किहिस अउ टूंग-टूंग रेंग दिस। 

...अउ सिरतोन जम्मो घर भक्कम पइसा मिलिस मुआवजा के फेर गोमती घर बर सरकार के खजाना कमती परगे।....बीस हजार भर मिलिस। इही गोठ ला पुछे बर गोमती के गोसइया हा जिला के फारेस्ट आफिस चल दिस अउ उही हा जी के काल बनगे। तोला देख लुहूं किहिस अधिकारी हा अउ सिरतोन देख डारिस। अपन बियारी बर सुक्खा लकड़ी ला बिन के लानत रिहिस अउ जंगल कांटे के धारा लगगे। जेल मा हाबे दू बच्छर होगे। जबानत घला नइ मिले।


आज गोसइया के अब्बड़ सुरता आवत हाबे। सुरता करके ससन भर रो डारिस गोमती हा।


"गोमती !  का करत हावस वो...?''

बड़की आवय आरो करइया। गाॅंव के गौटनीन  आवय बड़की हा। 

"आवव काकी ! भीतरी कोती।''

गोमती अपन घर के भीतरी कोती सत्कार करत बलाइस।

"काला जाबे गोमती तुंहर घर। पानी चुहई मा तुंहर घर तो गैरी माते हाबे। जम्मो कोती छिपीर-छापर हाबे। न बइठे के जगा, न ठाड़े होये के। बैंगलोर ले मोर बेटा के पठोये माहंगी सैंडिल हा मइला जाही। वोकर ले तो गली के सीसी रोड सुघ्घर हाबे।''

बड़की सीसी रोड वाला गली मा ठाड़े-ठाड़े किहिस। बड़की के गोठ सुनके मुॅंहू करु होगे गोमती के। चुरचुर लागगे गोठ हा। मुरझाये चेहरा मा हाॅंसी-मुचकासी लानत किहिस।

"कइसे आये हस काकी ? बता ।''

"आज सुघ्घर मौसम हाबे। चार महिना गरमी मा उसनावत रेहेंन ते चौमासा के पानी ले सबके मन हरियावत हाबे। शहर ले बहु-बेटा अउ देवर-देवरानी माई-पिल्ला घला आय हाबे।  जम्मो परिवार जुरियाये हाबन तब ये बरसात मा पकौड़ा खाये के मन हाबे। बरा बनाये बर उरीद अउ मूंग दार ला घला भिंगो डारे हॅंव। झटकुन चल अउ बनाबे। तोर हाथ के बनाये बरा अउ पताल चटनी अब्बड़ मिठाथे। पीतर पाख मा खवाये रेहेस तौन ला अब्बड़ सुरता करथे मोर बहुरिया हा।''

"हंव !''

बड़की किहिस अउ गोमती हुंकारु दिस। का करही बपरी हा ? इही बहाना दू पइसा मिल घला जाथे। अउ कभु-कभु तो बांचल-खोंचल घला खाये बर मिल जाथे। तभो ले फुलवा ला एक फोहई के चाउर चढ़ाये बर घला किहिस।

गोमती दरपन मा अपन चेहरा देखिस कंघी मा आगू के बाल ला सोझियाइस अउ नानकुन लाल टिकली लटका के चल दिस बड़की घर।

बड़का घर-दुवार, टीवी, फ्रिज, एसी, टाइल्स संगमरमर लगे खोली-कुरिया। चकाचक करत इंटीरियर डेकोरेशन जतका मनखे नइ राहय वोकर ले जादा कुरिया टायलेट....। अब्बड़ भागमानी आवय वो ये बड़की के परिवार हा। पाछू जनम मा कोनो पुण्य करे होही तेखर सेती ये जनम मा सरग कस सुविधा मिलत हाबे। गोमती बरा बनाये बर दार पिसत हाबे सील पट्टी मा अउ गुणत हे। 

"मिक्सी मा कतको सुघ्घर दार पिसा जावय फेर सुवाद तो सील पट्टी मा आथे।''

"हांव काकी ! सिरतोन काहत हावस।''

बड़की अब गोमती ला पंदोली देये लागिस अउ गोठ-बात घला होइस। शहरनीन देवरानी स्वेटर बुनत हाबे अपन नाती नातिन बर। बड़की के बड़की बहुरिया लइका सम्हाले हाबे अउ नान्हे मास्टरीन हा देवरानी के इंजीनियर  बहुरिया  संग मेहंदी लगावत हाबे। बबा जात मन बैठक रुम मा टीवी देखत हाबे अउ राजनीतिक गोठ-बात करत हाबे। बड़की के गोसइया हा गाॅंव के खेती-बाड़ी के हियाव करथे अउ छोटका भाई हा पहिली फारेस्ट मा रेंजर रिहिस फेर अब बड़का अधिकारी बनगे हाबे। जम्मो कोई आज जुरियाये हाबे गाॅंव मा अउ बाचे हाबे तौनो आवत हाबे। रेंजर के नान्हे बेटा-बहुरिया घला अब अमरतेच होही। ये जम्मो कोई मन अइसना सकेलाथे अउ बरसात के मजा लेये के संग कभु-कभु खेती-किसानी के हाल-चाल ले जानबा हो जाथे।

               बड़की के पंदोली ले गोमती हा  जम्मो तेल-तेलई ला बना डारिस अब,बरा भजिया मिरचा भजिया गुलगुला  ला। गोमती अब परोसे के तियारी करत हाबे फेर मन मा अब्बड़ गोठ घला उमड़त हे। बेरा-बेरा मा रेंजर कका ला अपन गोसइया बर अरजी कर डारे हाबे तभो ले अउ पुछे के साध लागत हाबे।

"सुघ्घर बनाये हस गोमती ! तोर हाथ के बरा खाबे ते दाई के सुरता आ जाथे वो।''

बड़का किहिस गोमती के तारीफ करत।

"...अउ ये चिरपोटी बंगाला के चटनी ? सेजवान चटनी घला फेल हाबे हा...हा..।''

रेंजर बाबू किहिस अउ हाॅंसे लागिस। गोमती ला अइसे लागिस जइसे राजा हा उछाह होगे। गोमती के अंतस के अटके गोठ अब उछाल मारत हाबे। मुॅंहू मा गोठ अउ आँखी मा आँसू तौरे लागिस। 

"रेंजर कका ! मोर बनौती बना दे गा ! हम गरीब मन के सबरदिन सुध लेवइया आवव तुमन। मोर गोसइया ला छोड़ा दे कका !''

"मोर गाहना जेवर अन-धन कही नइ बाचिस कका पुलिस कछेरी मा। तिही कुछू कर ....अब तोरे आसरा हाबे।''

गोमती के आँखी ले आँसू बोहागे अउ तरी-तरी दंदरे लागिस। 

"हा... हा...... तोरो घरवाला हा तो अब्बड़ अइबी हाबे गोमती ! राजनीति करे ला धर ले रिहिस। दू मुठा खावव अउ परे राहव ये जंगल मा तुमन। ....का‌ कमती हाबे इहां। अभिन मुआवजा नइ मिलिस ते का‌ होगे..?  अउ मिल जाही  कभु...? अब न हाथी हा आये-जाये ला छोड़े अउ न तुमन जंगल छोड़ो। बनत रही प्रकरण। मिलत रही मुआवजा।''

रेंजर साहब अपन बड़का बिल्डिंग ला ससन भर देखिस अउ मिर्ची भजिया ला मसकत किहिस। .... फेर चुरपुर गोमती ला लागगे।.... गोठ के चुरपुर। 

"आजकल भ्रष्टाचार अब्बड़ बाढ़गे हाबे गोमती। जम्मो कोती चढ़ोतरी चढ़ाबे तब बुता हा सिद्ध होथे। ...... तोर करा का हाबे देये के ?''

रेंजर बाबू गोमती ला अपन एक्स-रे आँखी ले देखत किहिस।

"एक गोठ हाबे गोमती .....''

गोमती के चेहरा मा जोगनी बरे लागिस।

"तोर बेटी ला हमर मन संग शहर पठो दे गोमती ! खवई-पियई, पढ़ई-लिखई के जिम्मा मोर रही। 

"....अउ बदला मा का लेबे रेंजर कका ?''

गोमती मन ला पोठ करत किहिस। 

"......कु...कुछू नही । शहर के दू कुरिया के साफ-सफई कर दिही।  बाकी रंधई-गढ़ई तो बहुरिया मन कर डारथे। तिही तो कहिथस लइका ला पढ़ाये बर कुछू भी कर लुहूं अइसे। शहर मा कामवाली के अब्बड़ समस्या हाबे। मोला थोकिन बुता करइया मिल जाही अउ तोर बेटी ला सुघ्घर स्कूल।''

गोमती अब धर्म संकट मा परगे। 

गोमती ला अपन बेटी ला पढ़ाये-लिखाये के अब्बड़ साध हाबे। कोठा-कोठार, जल-जंगल-जमीन जम्मो जगा लइका ला पढ़ाये के ढिंढोरा पीट डारे हाबे फेर कइसे पढ़ाये ?..... ये तो सुघ्घर मौका हाबे। गोमती के मन मा मथनी चलत हाबे। फेर का करही ? 

"एक उपाय अउ हाबे।''

"का ।''

"मेन रोड ले लगे दू एकड़ खेत ला दे दे गोमती ! ताहन कुछू उदिम करबो तोर गोसइया ला छोड़ाये के।

"उही बंजर खेत हा तो बांचिस कका ! न उहा धान होवय ना उरीद मूंग ।''

"वोकरे सेती तो कहिथो मोर बेटा-बहुरिया के नाव मा चढ़ा दे ताहन रजिस्ट्री के बिहान दिन तोर गोसइया आ जाही.....?''

"आज आवत घला हाबे बेटा-बहुरिया मन हा इही गाॅंव। गोठ-बात कर लेबो। ...अउ बहुरिया के अगले महिना बर्थडे घला हाबे। बहुरिया के नाव ले तोर खेत मा पेट्रोल पंप खुल जाही तब बहुरिया ले जादा वोकर विधायक ददा हा उछाह हो जाही। अब तोर हाथ मा हाबे गोसइया कब आही........छुटके।'' 

रेंजर साहब किहिस अउ गोमती के आँखी कोठ मा टंगाये हिरण ला दबोचे बघवा के फोटू मा गड़ गे।

"सिरतोन कका !''

"हंव!''

अब तो कोनो रद्दा नइ दिखत हाबे गोमती ला। सिरतोन अब खेत के बली चढ़ाये ला परही। भलुक कतको बंजर कहि ले तभो ले घर खरचा के पुरती उरिद मूंग तो हो जाथे।  गोमती गुणत हाबे।


"कका ! कका....!

तोर छोटे बेटा-बहुरिया.........?''

गाॅंव के एक झन जवनहा आइस धकर-लकर अउ कुछू बताये के उदिम करिस फेर नइ बता सकिस।

"का होगे रे ?''

रेंजर किहिस वोकर रोनहुत चेहरा ला देख के अउ अब तो कोतवाल पटइल मन घला दोरदिर ले आगे। 

"रेंजर कका ! तोर बेटा-बहुरिया ला हाथी पटक-पटक के मार डारिस।''

"सब राई-छाई होगे। रद्दा भर लहू बोहाये हे।''

"अंग-अंग बिखरे परे हाबे।"

"कोनो जगा हाथ परे हाबे तब कोनो जगा गोड़ अउ छाती।''

"उकर कार ला तीस पैंतीस ठन हाथी दल घेर डारिस अउ......।''

बतइया मन... नइ बता सकिस भलुक जम्मो कोती रोवा-राई परगे। रेंजर अउ घर के जम्मो कोई अब जंगल कोती दउड़े लागिस।

गोमती घला दउड़त हाबे पाछू-पाछू। आज जंगल के जम्मो लरा-जरा, रुख-राई, नदिया-पहार  बर रिस लागत हाबे। गाॅंव अवइया मन के रक्षा नइ कर सकिस। 

कइसे  सरई बड़की काकी...? 

कइसे महुआ दाई ...?  

कइसे तेंदू कका...? 

कइसे सागौन मैडम...? 

काबर मूक हाबो तुमन ! 

गोमती सन्न होगे अउ कान सून्न। 

"सी.........टी.........!''

कान बाजे लागिस अउ जीव-जिनावर,नदिया-पहार, रुख-राई जम्मो के एक संघरा आरो आइस गोमती के कान मा।

"अपन बेटी के अहित करइया ला छोड़ देबो का ?''

"जल जंगल अउ जमीन के बिनास करइया नइ बांचे अब ?''

"मोर मयारुक बेटी नातिन ला दुख देवइया मन ला छोड़ देबो का ?''

"जौन जइसे बोही तइसन लुही गोमती! येहां प्रकृति दाई आवय बिन बदला लेये नइ छोड़े।''


गोमती बेसुध होगे अब। 

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

   

छत्तीसगढ़ी रंगमंच के अद्वितीय कलाकार श्री शिवकुमार "दीपक" ला अश्रुपूरित श्रद्धांजलि……*


 

*छत्तीसगढ़ी रंगमंच के अद्वितीय कलाकार श्री शिवकुमार "दीपक" ला अश्रुपूरित श्रद्धांजलि……*


वारे मोर पंडकी मैना, तोर कजरेरी नैना

मिरगिन कस रेंगना तोर नैना

मारे वो चोखी बान, हाय रे तोर नैना


दाऊ रामचंद्र देशमुख कृत चंदैनी गोंदा के एक दृश्य मा छत्तीसगढ़ के एक नवा-नवा बिहाव होय युवा सैनिक "शिव", देश के सुरक्षा बर सीमा मा तैनात हे। उहाँ ओला अपन सुवारी के चिट्ठी मिलथे जेकर शब्द-शब्द मा ओकरे सूरत दिखत हे अउ वो कुछ छिन बर ओकर सुरता मा खो गेहे। बैक ग्राउंड मा लक्ष्मण मस्तुरिया के भावपूर्ण आवाज मा उँकरे लिखे एक गीत बजत हे - वा रे मोर पंडकी मैना…..बिरह- रस पागे ए सिंगार गीत मा जनमानस संवेदित हो उठे हे।


चंदैनी गोंदा का दूसर दृश्य - खलिहान मा आए फसल ला महाजन बोरी मा भर के ले जात हे। युवा "शिव" ह आक्रोशित होके साहूकार के नरी मा "कलारी" ला फँसा देहे। दुखित ओला अइसन करे ले रोकत हे। बहुत मुश्किल मा "शिव" अपन आक्रोश उपर काबू पाथे। फेर पार्श्व ले लक्ष्मण मस्तुरिया के स्वर मा आक्रोश, गीत बन के फूटत हे  - जुच्छा गरजै म बने नहीं, अब गरज के बरसे बर परही। चमचम चमकै मा बने नहीं, बन गाज गिरे बर अब परही। जनमानस के मन मा घलो शोषक के प्रति आक्रोश आंदोलित होवत हे।


चंदैनी गोंदा का तीसर दृश्य - शिव कुमार दीपक अपन मोनो प्ले “हरितक्रान्ति बाई” मा नारी के वेशभूषा मा हरितक्रांति के भूमिका निभावत हें। हास्य के संगेसंग व्यंग्य के बान घलो चलत हे। जनमानस हाँस-हाँस के लोटपोट होवत हे। 


तीनों दृश्य मा  - नायिका के सुरता मा डूबे सैनिक शिव, साहूकार बर आक्रोशित जवान शिव अउ महिला पात्र के भूमिका मा हरितक्रान्ति बाई, अउ कोनो नइ हम सबके दुलरुवा कलाकार शिव कुमार दीपकेच आँय जउन मन महिला-पात्र के भूमिका तको ला  बखूबी निभावत हें ।


आज ले करीब 91 बछर पहिली दुर्ग जिला के नानकुन गाँव पोटियाकला मा जन्मे लइका के नाम शिवकुमार साव रहिस। आप मन ला शिव कुमार साव एक अनचिन्हार नाम लगत होही, शिव कुमार "दीपक" कहूँ त झटकुन चीन्ह लेहू। असल मा "शिवकुमार साव" अउ शिव कुमार "दीपक" एक्के मनखे के नाम आँय। शिव कुमार जी के प्राथमिक शिक्षा बैथर्स्ट प्राथमिक शाला, गंजपारा दुर्ग मा होइस। उन मन अध्यापक एवं जनकवि कोदूराम “दलित” के वे शिष्य रहिन। शाला के अनेक सांस्कृतिक समारोह मन मा दलित जी, लइका मन ला बाल-नाटक मन मा अभिनय करात रहिन। छात्र शिव कुमार घलो उन नाटक मन मा अभिनय करत रहिन। 


नान्हें-पन मा भाग-भाग के, लुका-लुका के नाचा और लीला देखे के शउँक लइका शिवकुमार के नैसर्गिक प्रतिभा बर खातू के काम करत रहिस अउ मात्र 22 बछर के उमर मा उन नागपुर मा आयोजित "अखिल भारतीय युवक महोत्सव" मा जीवन-पुष्प (मोनो प्ले) मा श्रेष्ठ अभिनय करे बर देश के प्रहिली प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू जी के करकमल ले सम्मानित होइन। इही महोत्सव मा पं. जवाहरलाल नेहरू जी, शिव कुमार ला "दीपक" उपनाम दिन अउ वो दिन ले शिवकुमार साव हर शिवकुमार "दीपक" बन गिन।


शिवकुमार "दीपक" द्वारा रचित अउ अभिनीत मोनो प्ले - जीवन-पुष्प, हरितक्रान्ति, सौत झगरा, छत्तीसगढ़ महतारी, छत्तीसगढ़ रेजीमेंट, बीस सूत्री, लमसेना, चक्कर भिलाई का, आदि देखइया मन के सिर चढ़ के बोलन लगिस। उँकर लोकप्रियता अउ अभिनय क्षमता के कारण 1965 मा उन मन ला पहिली छत्तीसगढ़ी फ़िल्म कहि देबे संदेश मा महत्वपूर्ण भूमिका मिलिस। एकर बाद वोमन छत्तीसगढ़ी फ़िल्म घर-द्वार मा अभिनय करिन। इन दुनों फिल्म के बाद छत्तीसगढ़ी फिल्मी जगत मा करीब 30 बछर के लंबा सन्नाटा रहिस, फेर अनेक लोककला मंच मा दीपक जी के अभिनय साधना सरलग चलत रहिस। 


छत्तीसगढ़ राज्य बने के बाद छत्तीसगढ़ी फिल्म के निर्माण हर जोर पकड़िस अउ दीपक जी मोर छैंया भुइयाँ, मया देदे-मया ले ले, परदेसी के मया, तोर मया के मारे, कारी, टूरी नंबर 1, लेड़गा नंबर 1, दो लफाड़ू, टेटकुराम, मयारू भौजी, तीजा के लुगरा, ये है राम कहानी, तहूँ दीवाना, धरती मइया, मितान 420, धुरंधर, सोन चिरइया, बाँटा, सलाम छत्तीसगढ़, भोला छत्तीसगढ़िया आदि करीब 50 छत्तीसगढ़ी फिल्म मन मा अभिनय करिन। 


छत्तीसगढ़ी के अलावा उन मन मालवी भाषा के फ़िल्म मादवा माता, भोजपुरी फ़िल्म सीता अउ गाँव आजा परदेसी, हिन्दी फीचर फिल्म हल और बंदूक अउ  सौभाग्यवती मा अपन अभिनय के लोहा मनवाइन। आप मन ला ए जान के अचरिज होही कि शिवकुमार दीपक जी,  अफगानी फ़िल्म मा घलो महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर चुके हें। करीब 50 फीचर फिल्म के अलावा उन मन 25 ले आगर वीडियो फिल्म मा तको सशक्त अभिनय अभिनय करिन हें। 


अतिक ज्यादा फिल्म मा अभिनय करे के बावजूद शिव कुमार "दीपक" जी मूलतः लोक कलाकार आँय। उन मन सन् 1971 ले सरलग एक दशक तक दाऊ रामचंद्र देशमुख कृत चंदैनी गोंदा मा पात्र शिव के बहुते महत्वपूर्ण भूमिका अदा करिन। चंदैनी गोंदा मा उनमन हरितक्रान्ति बाई के रूप धर के  नारी पात्र के भूमिका घलो करिन। इही दशक मा दीपक जी आने-आने महत्वपूर्ण लोककला मंच सोनहा बिहान, लोरिक चन्दा और हरेली आदि मा तको अपन उत्कृष्ट अभिनय के कारण जनमानस के अपार मया-दुलार पाइन। 


शिव कुमार दीपक जी ला उँकर बेहतरीन अभिनय बर अनेक संस्था मन सम्मानित करे हवँय। विशेष उल्लेखनीय सम्मान मन मा दीपक जी 5 पइत "लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड" ले सम्मानित होइन हें। बछर 2020 मा छत्तीसगढ़ शासन उन मन ला, छत्तीसगढ़ राज्य अलंकरण के अंतर्गत दाऊ मंदराजी राजकीय सम्मान ले सम्मानित करिस हे। मोला अचरिज होथे कि सरलग सात दशक ले अभिनय के मैराथन मा सक्रिय रहइया इन महान अभिनेता ला "पद्म-पुरस्कार" ले सम्मानित करे के बारे मा ककरो ध्यान काबर नइ गिस ? का स्वाभिमानी होना, पद्म-पुरस्कार बर कोनो किसम के अयोग्यता आय? अइसन सवाल के उठना  स्वाभाविक हे।  


काली शिवकुमार दीपक जी के स्वर्गवास 91 बछर के उमर मा होगे। आज उनकर अंतिम संस्कार उनकर गृह-ग्राम पोटियाकला मा सम्पन्न होही। । माटी के चोला, माटी मा मिल जाथे फेर कला-जगत मा शिवकुमार के कला के दीपक सदा दिन अँजोर बगरावत नवा कलाकार मन ला रद्दा देखावत रही। छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर परिवार डहर ले मँय महान कलाकार शिव कुमार दीपक जी ला अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करत हँव।

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अरुण कुमार निगम