Friday 26 July 2024

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य - गरू अउ गहिर ग्यान

 छत्तीसगढ़ी व्यंग्य - गरू अउ गहिर ग्यान 

मनखे पढ़थे-लिखथे-कढ़थे तभे आगू बढ़थे। शिक्षा के फरे-फूले ले मनखे अउ समाज तको फूलथे-फरथे। अब शिक्षा के जड़ अबड़े़ फूल-फर-फइल गे हे। जेकर ले मनखे साक्षर होके गजब गुरू, गहिर ग्यानी अउ घात गरू होगे हे। अब ओकर शब्दकोश म असंभव नाम के शब्द नइ रहि गे। खासकर हमर छत्तीसगढ़िया मन बर। 

मनखे के स्तर जस-जस गरू होइस शिक्षा के स्तर हरू हो गे। अतेक हरू हो गे कि गिरे से गिरे, उन्डे-घोन्डे अउ परे-डरे मनखे तको हँ खेले-खेल म बड़े-बड़े डिग्री ल उठा डरथे। डिग्री ल चेचकार के चिंगिर-चाँगर उठाए इहाँ-उहाँ डोलत रोजगार-रोजगार, साहित्य-साहित्य खेलत रहिथे।

जेन हँ बावन अक्षर ल सरलग ओसरी-पारी बोले-पढ़े नइ सकय तेनो हँ भाषा म मास्टर अउ डॉक्टर हो जथे। गणित के परेड ले जिनगी भर नौ दो ग्यारह रहइया हँ इंजीनियर बन जथे। स्कूल म सरी दिन तीन तेरह करइया हँ प्रावीण्य सूची म अव्वल रहिथे। 

जेन हँ पढ़ई के छोड़ कोनो तीन पाँच ल नइ जानिस। बस्ता बोहे-लादे घर ले स्कूल, स्कूल ले घर आइस-गिस उही बोदा होके बोहा गे। धोबी के टूरा, न स्कूल न घाट के। उही हँ निनान्बे के फेर म फँसके एके कक्षा म कई साल ले खुरचत-मुरचावत रहि जथे। शिक्षा के ये गिरत स्तर म अब जर-मूर ले सुधार लाए बर परही, ताकि हमर देश हँ फेर विश्व गुरू बन सकय। 

एकर खातिर जरूरी हे कि डिग्री मन ल चना-मुर्रा टाइप फोकट म बाँट देना चाही। जइसे दुनिया के झोला म जीरो ल डारे हवन। 

वोमन जीरो के आगू म एक लिख लिन। पीछू जुवर पूछी म कइठन जीरो लगा लिन। लाखो करोड़ो बना डारिन। हम रहि गेन कबीर के कबीर अउ उन कुबेर बन गे।

बीरो पान खा नाम कबीरा, कुबरा भए कुबेर कुबेरा।

येला कहिथे गुरू हँ गूरे रहिगे अउ चेला शक्कर बनत-बनत मिश्री-मेवा-मिष्ठान्न सबो हो गे। ये हमर स्वर्णिम इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठभूमि हरे। 

जब हर नागरिक डिग्रीधारी हो जही। तभे तो समाज हँ शिक्षित कहाही। होना नइ होना अलग बात हे। कोनो मायने घला नइ रखय। गिनती बर खाली साक्षर अउ डिग्री के होना बहुत बड़े बात होथे। 

सरकार ह पाँचवी अउ आठवी बोर्ड ल खतम करके बने काम करे हावय। गुनी अउ ग्यानी होए-कहाए बर पढ़ना-लिखना जरूरी नइ होवय। सौ बक्का एक लिक्खा। डिग्री हँ डिग्री होथे। फर्जी हे के असली, ये मायने नइ रखय। नाँव लिखे बर आना चाही उही गजब हे। एकर ले फर्जी स्कूल-कालेज अउ फर्जी मनखे मन के जन्मे-बाढ़े के समस्या खतम हो जही।


पढ़-लिखके मनखे चोखू हो जथे। सिंहासन के नींव ल कोड़े-खने बर चोखा-चोखा जोखा मड़ाए लगथे। सिंहासन ल हलाए-डोलाए लगथे। चोक्खा-चोक्खा अरई-तुतारी म हुदरे-कोचके लेथे। ओकर ले बने जनता ल साक्षर भर ही बनाना चाही। हुसियार झन करय। 

जे सड़क बनते-बनत उखड़ के खदर-बदर हो जाय। जे मकान बनते-बनत भरभराके ओदर-भसक जाय। ओकर इंजीनियर ल पुरूस्कार ले लाद देना चाही। जेकर ले प्रेरना लेके नवा-नवा इंजीनियर मन जोश म होश गवाँ डरय। बूता करे के लार बोहवावत रहय।

अइसे सड़क बनावय के बनाते-बनावत ओकर जम्मो समाने ल सफाचट कर देवय। सड़क अउ भूइयाँ ल बरोबर कर देवय । येकर ले सड़क उखड़े के समस्य-च् नइ रहिही। जनता ल तको ये शिकायत-परेशानी ले बचाके रखे जा सकही।

अइसन मनखे ल डाक्टर बनाए जाए जेकर इंजेक्शन लगाए ले मरीज अपन सरी दुख-पीरा ल भूलाके ये मया-मोह के दुनिय-च् ल सदादिन बर भूला-छोड़ देवय। 

हिन्दी म मास्टरी बर व्याकरण के कोई जगा नइ होना चाही। का के जगा की लिखय, की के जगा कि लिखय, चाहे उच्चारण सही होवय के गलत, डिग्री से मतलब।

हिंदी के मास्टर उही ल बनावय जेन हँ अपन चेला-चेलिनमन संग भावना के अदान-प्रदान ल ढंगलगहा कर सकय। तन के भले करिया रहय फेर मन मनभावन, मनमोहन अउ मनोहर होना चाही। काबर के हिंदी साहित्य बर हृदय के भावना अउ कल्पना जरूरी होथे। व्याकरण, मात्रा अउ हिज्जा के कोई मायने नइ होवय।

माइलोगन बरोबर बुजुर-बुजुर अउ पुचुर-पुचुर करत रहना उन्कर हृदय के अल्लार साहित्य भावना ल प्रगट करथे। एकर सेती साहित्य अउ कला के जानकार मन ल मेहला होना परम आवश्यक हे। जेकर एक ले जादा गोसइन होवय, तेन ल हिंदी म डाक्टरेट के उपाधि अइसेनेहे दे देना चाही।

अब इन सबले बड़का, पोठ अउ ठाहिल बात हे पढ़ई के। पढ़ई-लिखई म जुन्ना घिंसे-पिटे बात ल रटत रहना पिछड़ापन के परिचायक होथे। नवा-नवा खोज होना चाही। नवा-नवा विषय होना चाही। परीक्षा के पद्धति म तको जर-मूर ले बदलाव-सुधार होना चाही। 

भारत के राष्ट्रपति कोन हे, कहिथे। अरे भई ! जेन हे तेन हे। घेरी घँव उहीच्-उही बात ल पूछे-पचारे के का मतलब ? 

ये मामला म गणित जादा बिगड़े हवय। जब देख दो दूनी चार काहत रहिथे। उमर भर पढ़ डारथे। चार ले पाँच नइ करे सकय। एक ठन सूत्र ल रट लेथे। सबो सवाल म उहीच् ल उल्टा-पुल्टा के जोड़-घटा लेथे, ताहेन सिद्ध हो गे ! 

सिद्ध होए बात ल दस पइत सिद्ध करो कहिथे। एकर ले काय सिध परही ? सिद्ध ल सिद्ध करना भरम भर आवय। अरे दू धन दू बरोबर पाँच सिद्ध करे बर काहय तब देखातेन। हम कतका बड़ तोपचंद हवन तेन ल। 

अर्थशास्त्र म उहीच् बात, माँग बाढ़े ले पूर्ति म कमी के संग मूल्य म वृध्दि होथे। येला तो सबो जानथे। 

ओमा अब येहू जोड़ना चाही के माँग-पूर्ति के बीच इमान-धरम के टोपी पहिरे सेठ-साहूकार अउ सेवा के नाम म मेवा खवइया खखाए मन कतका घालमेल करथे ? जनता ल कइसे टोपी पहिराथे ? कतेक प्रतिशत लालच बाढ़े के पीछू उन गोदाम म कोन हिसाब से कतका माल दबाके रखथे ? 


भौतिकी वाले चिल्लाए जाथे-समान ध्रुव म टकराव अउ असमान ध्रुव म खिंचाव होथे। 


अरे भई ! टूरी-टूरा असमान ध्रुव होथे। वोमन में खिचाव होथेच्। एला तो सरीदिन के देखत आवत हवन। एहू म अपवाद होए लगे हे। देश-विदेश म बाढ़त समलैंगिक मन के जोड़ा ल देखत हुए ध्रुव मनके ये तीरिक-तीरा, खिचावन-सिंचावन, संकोच-तनाव के नियम ल अब बदले बर परही। 

अइसन सब बात ल लिखत बइठे रहिहूँ त संसार के सरी कागज सिरा जही। बोलत रहिहूँ त बरसो बीत जही। सुनइया के मुड़ी चार भाँवर घूम जही। चुँदी उखड़े ले खोपड़ी म चाँद पर जही। ओकर ले बने पाठक मन ल ये सलाह देवत हौ। सुलह कर लै अउ मोर संग चलय- 

आगू-आगू ले ग्यान बटोरना हे त मोर अप्रकासित ग्रंथ जेकर नाँव हे - ‘‘जनतंत्र के हुँकड़त गोल्लर अउ साहित्य ल कतरत कीरा के बीच राजनैतिक अउ सांस्कृतिक अवैध संबंध के समाज अउ शासन म परत प्रभाव’’ के अध्ययन कर लेवयं। 

अइसे ये किताब म ये गुन हे के जेन एकर सुमिरन भर कर लेही तेन हँ मनचाहे विषय म मास्टर हो जही। जेन हँ घोलन्ड के प्रणाम करही तेन डाक्टर हो जही। 

अब सबो बड़े गुन जेन ल गुरू-मंतर कहिथे। जेन ल सिरिफ ट्यूशन भर म पढ़ाए-बताए-सिखाए जाथे, कक्षा म नइ बताए जाए। उही ल देश-समाज हित म खाल्हे म बतावत हौं - जेन हँ ये किताब के दर्शनमात्र कर लेही तेला साक्षात मुख्यमंत्री के कुर्सी हँ खींचके बइठार लेही। वोहँ चमचागिरी अउ चुनई-फुनई के झंझट ले डायरेक्ट पास हो जही। 

मैं ओमा तोता रटन्तवाले पढ़ई ल छोड़के नवा-नवा ग्यान के तरीका बताए हववँ। एकर ले बिगर पढ़े दिमाग बाढ़ही। काबर के सोंच-समझके बताना हे। पढ़बे त समय अउ दिमाग दूनो खराब अउ खतम भर होही। फोकट मगजमारी के जरूरते नइ हे। समय अउ दिमाग के कम उपयोग करके जादा परिणाम पाना समझदार मनखे के पहिचान होथे। 

जेन हँ लिखा गे हे तेन ल अउ का पढ़बे ? 

सिर्फ दर्शन, सिर्फ चढ़ावा, 

देख जिनगी के बढ़ावा।  

ये दफे मोर बनाए प्रश्न ल आईएएस, आईपीएस के परीक्षा म पूछे जाही। ताकि उन्कर दिमाग म कतका खोल हे, ये पता चल सकय। उही खोल के सहारा कुछ झोल करे जा सकय। जेकर ले लायक के फर्जी प्रमानधारी नालायक अफसर, वैज्ञानिक अउ मंत्री मन के सही चयन हो सकय।

 

जम्मो परीक्षा मंडल म मोर गोंटी फिट होगे हे। अवइया समे म मोरे सेट करे प्रश्न पूछे जाही अउ मोरे सेट करे अपसेट बेरोजगार मन ल अफसर, वैज्ञानिक बनाए जाही। शिक्षा ल धंधा-व्यवसाय बनाके पूरा देश ल तो गदहा-घोड़ा बनइच् डारे हौं। 

जे मनखे मोर ये ग्रंथ ल पढ़के बने नंबर पा लेही। ओला ’’शिक्षा बाजार के बेंवारस हुसियार’’ नाँव के उपाधि से लादके जोंते जाही। 

ये जगा मैं थोरिक उदाहरण पेश करत हौं। जेकर ले तुमन मोर किताब के अच्छई अउ मोर गुन के गहिरई के अनुमान लगाके अपन परम गदहई के प्रमाण दे सकत हौ।

सिरिफ हाँ या ना म जुवाब देना हे। 

‘का तैं चोरी करे बर छोड़ दे हवस ?’ एला हल करना अनिवार्य हे । 

अब सही उत्तर म चिन्हा भर लगाना हे। ‘तोर बाप के झन हे- चार, दू, छै, पाँच ?’ 

‘मुड़ी ल के डिग्री घूमाके मनखे अपन चेथी ल देख सकथे ?’ 

मनखे हँ मुँह के छोड़ अउ कोन-कोन कोती ले बोलथे-गोठियाथे ? उपरहा बोले म दू नंबर उपरहा काटे जाही अउ कम बोले म चुकता फैल कर दे जाही। 

अब बिना सोचे-विचारे संझा अउ बिहिनिया के स्थिति म सिर्फ एक वाक्य म उत्तर देना हे - 

‘साफ, सुग्घर, चमकदार अउ खूश्बूदार टायलेट बर का करना चाही ?’ 

‘मनखे-मनखे झगरा होथे त कुत्ता, कमीना, हरामजादा कहिथे-कुकुर मन झगरा होथे त का कहिथे ?’ 

‘आधुनिक संत के आश्रम म का-का सीखे बर मिलथे ?’ 

‘बापू के मुताबिक कोनो एक गाल ल मारय त दूसर गाल ल दे। जब दूसरो गाल हँ लोर के परत ले पीटा-सोंटा गे, त काला देना चाही ?’ 

‘पाकिस्तान घेरी-बेरी अभरथे-हुदरथे-कोचकथे, छेड़खानी करथे तभो हमार चूरी टूटय न घूँघट उठय। ये हँ अर्धनारी के पहिचान ये के पूर्णनारी के ? ये पौरूष के निचतई-नकटई, नारी गुण के निर्लल्जता म बृध्दि करे के उदीम-उपाय बतावव।’ 

‘सुसु (स्विस) बैंक के बिला म घुसरे-घुसरे हमर देशी मुसुवामन के बछर म भलुवा बन सकत हे ?’ 

‘अब कम से कम तीन सौ शब्द म उत्तर देना हे। 

‘सिद्ध कर कि तोर बाप हँ सहींच म तोर बाप ये अउ एकमात्र बाप हरे।’ 

प्रमाण पत्र म जात के उल्लेख जरूरी नइ हे वोहँ बाद म घलो बनत रहिही। 

‘भारतीय ज्योतिष के अनुसार दमांद ल का गिरहा माने गे हे ? दमांद गिरहा के शनि अउ सकराएत संग तुलना करव।’ 

‘खोपड़ी के उल्टा का होथे ? बीसो अंगरी म बीस खोपड़ी होतिस त मनखे कतेक ऊपर उड़ सकतिस अउ कतेक नीच करम कर सकतिस ? बने फरियाके जुवाब देवव।’ 

‘चमचामन के अंधियार पीछवाड़ा म फोकस डारते हुए भविष्य के दलदल म भ्रष्टाचार के बस्सावत फूल खिलावब म उन्कर योगदान बतावव।’ 

‘देश ल भ्रष्टाचार अउ घोटालाबाजी म विश्व म अव्वल बनाए बर का करना चाही ? नवा-नवा उदीम लिखव। उपाय बतावव।’ 

‘कऊँवा, घुघुवा, चील, चमगेदरी, सुरा, कुकुर, कोलिहा, बेंदरा, बइला, बिच्छी, कोकड़ा, गदहा इन्कर के-के प्रतिशत स्वभाव मिलके मनखे-स्वभाव ल संपूर्ण करथे ? सत्य, प्रमाणित, सर्वसुलभ अउ सार्वभौमिक उदाहरण देके समझावव।’

नोट के लाइक मोठ गोठ ये हे कि पोठ, वजनदार अउ मालदार उम्मीद्वार नइ मिले म ये विज्ञापन निरस्त करे जा सकत हे। येकर पूरा-पूरा दोष उम्मीद्वारमन के होही।

पहिली अपन आप ल तन, मन अउ धन से काबिल बनावव। हमन ल काबुली चना खवाना कबूल करव। तेकर पीछू पद म बइठके जिनगी भर वसूल करहू, येकर सोला आना गारण्टी हे।



धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

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