Friday 12 November 2021

छत्तीसगढ़ी कहानी )*

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          *(  छत्तीसगढ़ी कहानी )*




              *आधा पूरे कहानी*

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-रामनाथ साहू




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                        *1.*


"जनकलाल के मुंड़ ल कलशराम हर फोर देय हावे ।"

"वो काबर ग...?"

"अरे अब तहूँ नई जानत अंव अइसन गोठियाथस ! पीयई -खवई म कुछु ऊंच- नीच हो जाथे ,तब अइसन हर सधारण बात आय ।"

"चल होही !बने जतनवा लेय शहर जाके ।"

"अरे वो तो होबे करिही, जेकर मुंड़ म आगे तउन हर अब निबटबे करिही ;फेर सिरतो म बनेच लग गय हे का ?"

"अरे बनेच लगे हे तभे पद परत हे बाबू, नही त मतवार मन के का मार पिटान के का गिरई -कुचरई !थोर-मोर हर तो वोमन बर सधारण आय ।रोज के जिनिस ये ।"

"फेर कब तक चलही अइसन... ?" बस स्टैंड के छपरी वाला परसार म बइठे सरवन अउ विश्राम ये गोठ ल करतेच रहिन । विश्राम के चेहरा म जनकलाल के पीरा हर दिखत रहे तब सरवन  के आँखी म वो धान के बोरा हर  झूलत रहे जउन हर बनिया दुकान म इकन्नी दुअन्नी म बेचाय रहिस  अउ वो इकन्नी -दुअन्नी हर घर नई आके आन डहर चल देय रहिस ।

"का अइसन सब समे सब जुग म चलही ?" विश्राम फेर कहिस ।

"इहाँ तोर हमर उदक मरत हवन अउ जउन मगन हवें, तउन मन के मौज हे।"

"कहत तो तँय ठीक हस, फेर हमन का कर सकत हावन ।कुछु कहिबे तब... अरे चुप ! हम  अपन कमई ल खात हन । तँय कोन होत हस बोलने वाला कहिके चुप परवा दिही ।" विश्राम कहिस , तभे वोमन के आगु म शहर जाने वाला बस आके खड़ा हो गय ।

"चल चल वोह दे बस आके ठाढ़ हो गय अउ हमन गोठ म माते रहि गेन ।" सरवन कहिस अउ अपन जगहा ल उठ खड़ा हो गिस । वोमन शहर पेशी जात रहिन । वोमन सरकारी गवाहा बने रहिन, जब आबकारी विभाग हर ये  गांव म आके कार्रवाई करे रहिस । तब पूरा गांव के कनहुँ मनखे गवाहा बने बर तैयार नई रहिन । अइसन समे म ये दुनों मनखे हिम्मत करके सरकारी गवाहा बने रहिन ।


          सरकारी गवाहा बने के सेती बाकी मनखे मन येमन ल नफरत करे के शुरू कर देय रहिन ।गांव म महुआ के कच्चा दारू बनाय के बुता हर अघोषित कुटीर -उद्योग असन पनपत रहिस । का डउकी का लइका सब के सब ये बुता म लगे रहिन, फेर एको औरत ' बहादुर कलारिन ' नई बन सकिन ।काकरो देह म रत्ती- माशा भर गहना -गुरिया नई चढ़े सकिस । अतकी जोरदार ये धंधा चलत रहे तब वो कमई हर कहाँ जात रहे येकर पता न पीने वाला ल रहे न पिलाने वाला ल ।बस... ये बूड़त उबुक- चुबुक होवत गांव म सिरिफ ये दुनों मनखे रहिन,जेमन हिरदे कमल ल ...आत्मा के अतल गहराई ले चाहत रहिन कि कछु भी करके ये दारू बनाय के धंधा हर बन्द हो जाय । ये बुता के सेथी विश्राम ल अंधीयारी कारी रात म अनजान मनखे के हाथ दु रहपट खाय बर पर गय रहिस अउ सरवन के  घर तीर म तो गारी -गुप्ता के होरी- सार गडेच रहे ।


                         *2*


"आज हर तीसर पेशी रहिस । अउ कै पेशी आय बर लागही सरवन ...?" सरवन घर ल लाने अंगाकर के आधा कुटी विश्राम कोती बढोत कहिस ।

"भई न तँय जानत अस न मैं..."विश्राम बिना कुछु संकोच के वो रोटी कुटी ल लेके सुक्खा लीलत कहिस । वोकर नजर आगु के केंटीन म वोमन के वकील  सहाब जउन  हर  अभी  चहा पीयत रहिस हे ,तेकर ऊपर बरोबर रहिस।

" एक लम्बरी नई बाँचे । पचास ओकील के... बीस आती बीस जाती अउ दस लइका मन बर चना-फुटेना ...होगे एक लंबरी के हिसाब ।" विश्राम फेर कहिस ।

" ये पईत के जुगाड़ कोन कोती ल करे रहे विश्राम ?"सरवन पूछिस विश्राम ले , वोला अइसन लागत रहिस,जइसन ये खचित गोठ ल वोहर अतेक बेर ल कइसन नई पूछ पाय रहिस ।

"धंवरी गाय हर तो अब बकेना हो गय हे, तब ले भी दु पव्वा देत हे गोरस ल । तोर भौजी वोला बिना नागा दुहाय के बाद पटवारी घर दे आथे। एकोरंच टइम-टेबुल हर एती -वोती होथे कि पटवारी घर के पटवरनीन आ धमकथे लोटा ल धरके...कइसे नई दुहाय ये अभी ल कहत । भई राम !ये लंबरी हर वोइच गोरस बेचा पइसा ये ।"

"दूध के पइसा मंद -मउहा के गवाही म सिरात हे...बढ़िया हे...!"सरवन कहिस अउ खलखलाके हांस परिस ।

"अउ तोर हर ...?"अब विश्राम पूछिस सरवन ल।

"समझ ले मोर हर बताय के लइक नई ये ...!" वो कहिस ।

"वो काबर जी ?"     

" येहर तोर बहुरिया के पैसा ये ।  तेंदू पाना के पाय छेवर पैसा ?"सरवन तरी मुड़ करके कहिस ।

"चल निभ तो गय आज हर!" विश्राम कहिस ।


             कूदत -धाँवत अइन तब फेर लहुटती के बस ल पा गिन । बस म दुनों एके सीट म बइठे रहिन फेर वोमन के बीच म कुछु गोठ -बात नई होइस । दुनों के दुनों अपन अपन  विचार म डूबत -उतरत रहिन । बस वोमन के अपन ठउर पहुंच गय ।

"सरवन ...!"

"हां भइया...!" विश्राम पूछिस तब सरवन ओझी दिस ।

"कइसे करबो अब ...?"

"अउ कइसे करबो !जतका कर सकत हन वोतका बरोबर करबो । जरूर अउ जरूर... अवइया काल के दिन हमर मनखे मन ये बात ल जरूर समझहीं । मनखे के रूप म ईश्वर हर अवतार देय  हे तब वो रूप ल थोरकुन शुद्ध रूप म राख । मनखे जनम लेके के कुकर शूकर कस नाली म झन परे रह ! अउ येकर बर ये मउहा पानी हर ही जिम्मेवार हे ।"

"तब  फेर ...?"

"लड़बो ये मउहा पानी के लड़ई  ल  ! हरकबो बरजबो ...पानी बनाने वाला मन ल पकड़वाबो सरकारी गवाही बनबो ।"

"फेर उहाँ ले तो ये सब नाम मात्र के डाँड़ -जुर्माना भर के छूट ऑथें ।"

"वोमन के ल वोमन जानें हमर बुता ल हम जानबो...!"सरवन कहिस जइसन येहर वोमन के अटल फैसला रहिस ।

"हां... फेर एकठन बुता ल करे बर हे ।"

" वो का...?"

"हमन ल हमीं मन कस अउ मनखे मन ल जुरियाना हे ।"विश्राम कहिस अउ चुप हो गय।एक घरी ल चुप्पी छाये रहिस । दुनों संगवारी   चुपे चाप चलत रहिन ।

"भाई ददा !अनमोल वचन कहे तँय । बस बस एईच हर रास्ता आय बस एईच हर रास्ता आय । हमनल लड़ाई लड़े बर जनबल बढ़ाय के जरूरत हे । जोरबो अउ जोरबो हमरेच असन अउ मनखे मन ल जरूर जोड़बोन , जब हमर ये दु के लड़ाई हर सबके लड़ाई हो जाही तब हमन जरूर सफल होबो ।" सरवन हर विश्राम के ये गोठ ल सुनके कुलक उठे रहिस । वोला लागत रहिस कि बोहत नदिया म वोमन ल ये विचार के खोभा मिल गय ...अंधियारी कारी रात म मशाल बर गय ।


       वोकर हाथ जुड़ गय रहिस काबर के चलत चलत वोमन विश्राम के खोल- मुहाटी म आ गय रहिन ।

"चल चल घर भीतर ...!एक कप चहा चाहे गोरस पी के जाबे ।" विश्राम कहिस ।

"पटवरनिन ...?" सरवन प्रश्नावाला नजर ले देखत कहिस ।

"वो बिहना वाला ल अभी के ल नहीं ।"विश्राम हांसत कहिस ।



*रामनाथ साहू*

*देवरघटा डभरा

*जिला -जांजगीर चम्पा (छ.ग.)*

 



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