Friday 12 November 2021

छत्तीसगढ़ी लोककथा

छत्तीसगढ़ी लोककथा



                 *पान अउ ढेला*

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         *(छत्तीसगढ़ी लोककथा)*


-रामनाथ साहू



                 ये जगह म ,आज  खेत  नइये। बहुत पहिली...बहुत- बहुत पहिली,येकरा एक ठन खेत रहिस।येकर संग म अउ बहुत अकन ,खेत रहिन । 


                    खेत रहिन, तब रुख- राई मन रहिन ,एकदम गझिन...सघन वन ..अइसन । अउ जब रुख राई मन रहिन ,तब  पान-पतइ मन गिरबे करें । खेत म माटी के एकठन ढेला रहिस ।वोकरे तीर म एक ठन  चौड़ा थारी असन  पान हर आ गिरीस। दुनों के दुनों ,एक दूसर ल पसन्द करे लॉगिन । अउ आपस म सुख-दुख गोठियाय लॉगिन । धीरे- धीरे वोमन के  मित्रता हर परवान चढ़े लागिस,अउ वोमन आपस  मितान घलव बद डारिन ।मितान बनिन।संग म जिये मरे के कसम खाईन । 



               एक दिन बड़ जोर से बड़ौरा आइस,अउ  पान हर उड़ियाय कस करिस। तब ...मोर रहत ले तुंहला कुछु नइ होय मितान...कहत ढेला,पान उप्पर चढ़ के बोला लदक दिस । पान उड़ियाय ले बांच गय । पान वोला हृदय कमल ले आभार दिस ।



                           अइसनहेच एक दिन रटा -तोड़,मूसलाधार वर्षा होइस । ढेला के मूड म एक बूंदी गिरीस के,पान हर तुरतेच वोकर उप्पर म चढ़ गिस ।ढेला हर घूरे ले बांच गइस  ।   


                  अइसन  सुख -दुख म एक दूसर के काम आवत,वोमन बड़ दिन ल हाँसी -खुशी रहिन । फेर एक दिन,विधाता के लीला...!गर्रा-धुंका, आंधी-तूफान...बरसात...सकल पदारथ  एके संग म आइन। ढेला हर कूद के पान उप्पर चढ़ गय।फेर पानी के मोठ... मोठ बूंदी ले वोकर अङ्ग -भङ्ग होय लागिस।वोहर गले के शुरू हो गय रहिस । मितान...!मोर रहत ल तुंहला कुछु नइ होय, कहत पान, वोकर उप्पर चढ़ गय।तभे जोर से गर्रा वोला,उड़ियाय लागिस।मितान... मोर रहत ल तुंहला कुछु नइ होय ।ढेला ललकारिस अउ पान उप्पर फेर चढ़ गय। कभु पानी...कभु ....गर्रा -धुंका।कभु  पान तरी,ढेला उपर त कभु ,त कभु पान उप्पर म ढेला ल बचावत । पान चिथात गिस, अउ ढेला घुरत...!फेर जीवन अउ मृत्यु के ये  जंग ल दुनो मिल के बहादुरी के साथ लड़त, छेवर म पान चिथा-पुदका के उड़ गय, अउ अपन मित्र ल बचाते -बचात ढेला घूर गय ।                        

             अउ ये कत्था हर पुर गय ।

      



*छत्तीसगढ़ के लोकप्रसिद्ध लोककथा*

*प्रस्तुति - रामनाथ साहू*


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 अउ पड़की

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नदिया के तीर एक ठन पेड़ म कउवा अउ पड़की रहय।कउवा बड़ घमंडी अउ पड़की रहय ते सिधवा ।उकर दुनों के मितानी होगे।एक दिन के बात आय कउवा कथे मितान पड़की भूख के मारे मोर पोटा ऐंठत हे मेहा तोर पीला ल खाहु तभेच मोर भूख मिटाहि।

  पड़की सोच म परगे फेर कहिस :-मितान तै खाए बर तो खाबे फेर मोरो एक ठन बात हवय।तै हा पहिली अपन चोंच ल धो के आ जातेस।

   कउवा उड़ावत-उड़ावत नदियाँ कर गिस।नदियाँ के पानी म जइसने मुँहू धोय लागथे नदिया कथे तैहा चोंच ल मोर पानी म बोरबे त मोर पानी ह जूठा हो जाही तेकर ले तइहा कुम्हार तीर के करसा लाले अउ पानी डुम के अपन चोंच ल धो डार।

    कउवा उड़ावत-उड़ावत कुम्हार कर गिस अउ कहिन- भइया मोला करसा बना के देव।

 कुम्हार पूछिस करसा ल कइसे करहु कउवा भाई।

 कउवा कहिस-

    लेगबो करसा ,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच...

   कुम्हार कहिस ठीक हे भाई मैं करसा तो बना देहु फेर तँय माटी लान दे।

    कउवा माटी कर गिस अउ किहिस-

   "खनबो माटी बनाबो करसा,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच"

    माटी कइथे मोर कर माटी तो हवय फेर तय कोड़बे कइसे।

    कउवा उड़ावत-उड़ावत हरिणा कर गिस अउ कइथे-

 "लेगबो सींग, कोड़बो माटी,लेगबो करसा ,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच"...

      हरिणा कइथे भइया कउवा ये सबो तो बने हे फेर सींग ल उखानबे कइसे।

  कउवा हरिन के बात सुन कुकुर कर गिस अउ कइथे:-

     "लेगबो कुकुर,लुभाबो हरिना,तोड़बोन सींग, कोड़बो माटी,बनाबो करसा ,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच."

    कुकुर ह कहिस बात तो तय बने कहत हस फेर मोला ताकत बढ़ाये बर दूध पिये ल लागहि।

    कुकुर के बात सुन के कउवा नीलगाय तीर गिस।कउवा कहिस-

  "लेगबो दूध,पियाबो कुकुर,लुभाबो हरिना,तोड़बोन सींग, कोड़बो माटी,बनाबो करसा ,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच."

       नीलगाय कथे ये सब तो बने हे फेर दूध दे बर मोला कांदी लाग ही।

  कउवा कांदी के तीर पहुँचगे अउ कथे-

"लेगबो कांदी, खवाबो गाय, निकालबो दूध,पियाबो कुकुर,लुभाबो हरिना,तोड़बोन सींग, कोड़बो माटी,बनाबो करसा ,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच."

   कांदी किहिस बात तो बने आय फेर तय मोला लुबे कामे ।कउवा उड़ावत-उड़ावत लोहार कर गिस।अउ कहिथे भैया लोहार:-

" बनादे हँसिया ,लुबो कांदी, खवाबो गाय, निकालबो दूध,पियाबो कुकुर,लुभाबो हरिना,तोड़बोन सींग, कोड़बो माटी,बनाबो करसा ,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच."

    लोहार हँसिया बना देथे।कउवा जइसे हँसिया ल धर के उड़ाथे कउवा के चोंच ल जर जाथे।अउ कउवा के नाश हो जाथे।विश्वासघाती कउवा के नाश होय ले पड़की अउ उकर परिवार के जिनगी बाँच जाथे अउ हँसी खुशी ले उकर जिनगी चलथे।

              🙏

        छत्तीसगढ़ी लोककथा से साभार...

    द्रोणकुमार सार्वा

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           *डोकरी अउ अगास*

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        *( छत्तीसगढ़ी लोक कथा )*





                             अभी तो अगास हर कतेक न कतेक धूर म हावे । पहिली अइसन नि रहिस । पहिली अगास हर मनखे के अमरउ म रहिस । मनखे मन के, जइसन मन लागे तइसन अगास के तारा -जोगनी मन ल छू लेंय । वोमन ल एती - वोती हलचल कर लेंय । वोमन ल अपन मन मुताबिक सजा लेंय । सुरुज हर घलव तिरेच ल नाहके। वो बखत  वोहर थोर -थोर सुलगे के शुरू होय रहिस , तेकर सेती वोमे कम अंजोर अउ अउ कम गर्मी रहिस ।


                  आन मनखे मन के पीठ हर बने रहिस फेर डोकरी के पीठ हर कुबरी हो गय रहिस । एक दिन वोहर अपन ठूठी बहिरी ल धरके अंगना ल बाहरत रहिस खुरूर... खुरूर...!


                        तभे वोकर पीठ के कूबड़ ल अगास हर छू दिस ।डोकरी ल पिराईस तब वो रिस म भर गय अउ अगास ल अपन ठूठी बहिरी के मूंठ म मार दिस अउ कहिस -जा रे... जा ! बहुत धूर छिंगल जा !


                       तब ले अगास हर बड़ धूर छिंगल गय वोहर भाग पराइस ।



*संकलन* - 


*रामनाथ साहू*


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-: *लालच के फल*  (छत्तीसगढ़ी लोक कथा)

एक गाँव मा एक झन मरार डोकरा अउ मरारिन डोकरी रिहिस ।दुनो झन बखरी मा साग-भाजी बोंय अउ बेंचे।मरार डोकरा ह रोज बखरी ल राखे बर जाय । इन्द्र भगवान के घोड़ा ह डोकरा के बखरी मा रात के बारा बजे रोज आय अउ साग-भाजी ल चर देय।

मरार डोकरा अपन डोकरी ल बताथे - काकर गरवा ह आथे वो अउ बखरी ल चर के चल देथे।

मेहर पार नइ पावौ।

डोकरी कथे-डोकरा तैंहर आज दिन भर अउ रात भर बखरी मा रबे ।डोकरा हव काहत बखरी मा चल देथे।रात के बारा बजे इन्द्र के घोड़ा आइस अउ चरे लागिस,डोकरा उनिस न गुनिस अउ वोकर पुछी ल रब ले धरिस।घोड़ा उड़ावत डोकरा ल इन्द्र लोक ले जथे।

इन्द्र लोक मा बइठे डोकरा ल सैनिक मन पूछथे -ए डोकरा इहां ते काबर आय हस?तब डोकरा कथे-जा तोर मालिक ल बता देबे अन्नी लेय बिना मेहर इहां ले नइ जावव ,काबर कि तोर मालिक के घोड़ा हर मोर बखरी ल चर देय हे।

सैनिक,इन्द्र भगवान ल जाके सब बात ल बताथे अउ कथे मृत्यु लोक ले एक झन डोकरा आय हे तेहर अन्नी लेय बिना नइ जावव काहत हे।इन्द्र भगवान कथे -अरे सैनिक, डोकरा ल एक काठा हीरा मोती देके घोड़ा ल पहुंचाय बर भेज दे।

घोड़ा डोकरा ल मृत्यु लोक पहुंचा के चल देथे।डोकरी ह डोकरा के रद्दा देखत रथे,ओतकी बेरा डोकरा घर पहुंचथे,अउ अपन खोली के कोनहा मा काठा के हीरा मोती ल रख देथे।

हीरा मोती चमके लागिस ।मरार डोकरा ,डोकरी नइ जानै कि येहर हीरा -मोती आय।डोकरी कथे -ए तो चमकत हाबे डोकरा ।

डोकरी कथे-जा दू ठन ल धर ले अउ साहूकार के दूकान मा दे देबे कहूं खाये पीये के  समान दे दिही ते।साहूकार के दुकान मा डोकरा जाथे अउ देखाथे।साहूकार देख के जिन डारथे कि ये तो हीरा -मोती आय।साहूकार झट ले डोकरा ल पूछथे -काय-काय लागही ग।डोकरा खुश हो के खाय पीये के समान ल मांग डारथे।सामान ल धरके डोकरा ह घर मा आथे अउ डोकरी ल बताथे।डोकरी सुनके खुश हो जथे।अइसने -अइसने दिन बीतत गीस।

एक दिन साहूकार डोकरा ल पुछथे- कस ग तेहा  येला कहां पाय हस?

डोकरा ह सब बात ल बता दिस ,त साहूकार कथे महूं जातेंव जी तोर संग ।डोकरा कथे चल न भइ मोला का हे।

साहूकार ह अपन घरवाली ल बताथे कि मे हा डोकरा संग जावत हंव,एक काठा हीरा -मोती हमरो घर आ जही।साहूकारिन कथे-साहूकार महूं तूंहर संग जातेंव ते दू काठा आ जतिस।ये सब बात ल सुनके साहूकार के बेटा कथे- महूं जातेंव ग तीन काठा आ जही।ओकर बहू कथे-महूं जाहूं तुंहर मन संग ,चार काठा आ जही ।हमन मंडल हो जबो,पूरा गाँव ल बिसा डारबो।चारो झन डोकरा संग गइन।डोकरा कथे ठीक अधरतिया के बेरा घोड़ा ह आथे,मेहा आही तंह ले रब ले घोड़ा के पुछी ल धरहूं अउ साहूकार मोर गोड़ ल धरबे,तोर गोड़ ल तोर घरवाली धरही ,तोर घरवाली के गोड़ ल तोर बेटा धरही ,वोकर गोड़ ल तोर बहू धरही।अइसे तइसे करत रात के बारा बजिस अउ घोड़ा आइस तंह ले रब ले डोकरा ह पुछी ल धरिस।येती साहूकार,वोकर घरवाली ,वोकर बेटा ,वोकर बहू सब एक दूसर के गोड़ ल धरिन।अब घोड़ा ह उड़ाय लगिस साहूकार पुछथे,- तोला देय रिहिस ते काठा कतका बड़ रिहिस डोकरा ?

डोकरा साहूकार के बात ल सुन के कथे-अतका बड़ रिहिस साहूकार कहिके घोड़ा के पुछी ल छोंड़ परिस।सबों के सबों भड़भड़ ले भुइंया मा गिरिस।डोकरा ह साहूकार के उपर लदागे अउ सब झन खाल्हे मा चपकागे।साहूकार के संग वोकर घरवाली ,बेटा,बहू सबों झन मर जथे,डोकरा भर बांच जथे।

येकरे सेती केहे गेय हे,फोकट के चीज बस के लालच नइ करना चाही।जादा लालच करई ह जिव के काल होथे।

दार भात चुरगे मोर कहिनी पुरगे


*भोलाराम सिन्हा डाभा*

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लोककथा रामनाथ साहू: -


                     *बिलई*

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            *( छत्तीसगढ़ी लोककथा )*


"कहाँ जात हस बिलई...?"

"बिरईन* काटे ।"

"बिरईन ल का करबे बिलई ?"

" चोरिया गाँथ हाँ ।"

" चोरिया ल का करबे बिलई ?"

"मछी धर हाँ ।"

"कइसे मछी धरबे बिलई ?

"छापा छींचहाँ...!"

"कइसे छापा छींचबे बिलई ?"

"खुपुल- खापल खुपुल -खापल ..."

"मछी धरके का करबे बिलई ?

" वोमन ल राँधहाँ...!"

"कइसे राँधबे बिलई  ?"

"चनन मनन चट के खाय के बेर गट ले..."

"मछी ल रान्ध के का करबे बिलई ?"

" खाहाँ गप गप ले "

"खा के का करबे बिलई ?"

"राजा के कोठी के गोड़ा तरी सुतहाँ !"

"सुत उठ के का करबे बिलई ?"

" नरियहाँ...!"

"कइसे नरियाबे बिलई...?"

"म्याऊँ...म्याऊँ ...भाकू...उंई... उंई भाकू...उंई... उंई...!


बस ...बस...बस...!


*प्रस्तुति* -

*रामनाथ साहू*

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 शशि साहू जइसन ला तइसन

एक ठन राज मा भीम नाम के राजा रहय। राजा बड़ धनवान रहय। बडे़-बडे़ महल अटारी मा खजाना के भंडार भरे रहय। तभो ले राजा के नीयत हर बेरा कुबेरा डोल जाय। राजा के परोस मा गरीब किसान रहय। छितका कुरिया मा कइनो गुजर बसर होय बपुरा के। फेर घर बनाहूँ

सोच के १० कुन्टल छड़ घलो मँगा लिस। फेर रखे कहाँ घर मा ठउर नइ रहे। वोला राजा के सुरता आइस, अतेक बड़ महल हे, छड़ मड़ाय के जघा मिल जाही, सोच के किसान राजा के महल पहुँचिस। कथे "महराज मँय घर बनावत हँव,मोर नानकन घर मा छड़ मडा़य के जघा नइये। किरपा करके अपन महल मा जघा दे देतेव मालिक।' राजा कथे 'जा कोठार मे मढ़ा दे'। किसान राजा के कोठार मे छड़ ला जतन देथे। येती किसान घर बनाये के शुरू करथे त छड़ के जरूरत परथे,किसान राजा के महल मे जाके कथे' महराज मोला अपन घर बर अब छड़ के जरूरत परत हे त मँय छड़ ला अपन घर ले जाना चाहत हँव। राजा कथे 'तोर छड़ ला तो घुना खा दिस जी' सुन के किसान दंग रहि जथे। कहूँ छड़ ला घुना खाही।अकबकाये किसान हा राजा के चाल ला समझ जथे।अउ मने मन सबक सिखाये के योजना बनावत कलेचुप लहुट जथे।किसान अपन बाई दुनो कुछु सोच बिचार करथे अउ दूसर दिन गाँव भर के लइका मन ला अपन घर खाना खाय के नेवता भेजथे। राजा के बेटा ला घलो भोजन के नेवता देथे। गाँव भर के लइका मन आथे किसान सबला पेट भर भोजन कराथे। राजा के बेटा घलो आथे। सब लइका खाना खा के अपन अपन घर चल देथे। 

येती किसान हर राजा के बेटा ला घर नइ जान दे अउ  पठौहाँ मे धाँध देथे। बेटा नइ लहुटे ले राजा ला चिन्ता हो जथे। वो अपन नौकर ला भेजथे किसान के घर। त किसान कथे राजा के बेटा ला तो चील लेगे। चील ले गे- - चील ले गे - - चारो कोती हल्ला हो जथे। राजा सुनथे ता बाय बियाकुल हो जथे।

शशि साहू

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 छत्तीसगढ़ी लोककथा--


*राजा के नियाव--*


एक सहर म एक राजा रहय। ओहा बने ढंग से राज-काज करत रथे। राजा के सारा ह राज दरबार के चपरासी रहय। एक दिन राजा अपन राज म नवा मंत्री बनाये बर अपन सारा चपरासी ह बलाथे अउ कथे। जा इहाँ के एक झन परमुख आदमी ल बलाके लानबे। जेला हमन अपन राज-दरबार म मंत्री बना सकन। राजा के बात ल मानके उंकर चपरासी गांव म जाथे अउ एक झन परमुख आदमी ल बुला के लानथे। राजा ओकर गुण-दोष ल अनताज के अपन नवा मंत्री बना देथे।


नवा मंत्री अब्बड़ गरीब रिहिस,फेर ओकर भरा-पुरा परिवार रहय,पांच झन बेटा,पांच झन बहु अउ पांच झन नाती घलो रहय। लंबा परिवार म सबो के पेट पलाई-पोसईम बड़ मुस्कल होवय। फेर का करबे राजा कर अपन इज्जत के सेती मंत्री अपन मेंछा म एक ठन भात ल हरदी ले रंगा के लगा ले अउ राज-दरबार म जावय। राजा ल भोरहा होवय कि मंत्री अच्छा भोजन करथे तभे तो ओकर मेंछा म रोज पिंयर-पिंयर भात ह लटके रथे। पर समस्या रहय येकर के दूसर।


एक दिन मंत्री के पांचों बहु मन घूमे बर जाए रथे त परोसी गांव म बने ढंग ले पेटी-तबला मन बाजत रहय जेहर अब्बड़ नीक लगत रहय। पेटी-तबला के सुघराई ल सुन ल बड़े बहु ल अपन देरानी मन कथे। अई! सुनतहो बहिनी हो, ये मरे गरवा के मांस हर कतका मिठावत हे। सबो देरानी-जेठानी मन घलो कथे हव  बहिनी अब्बड़ गुरतुर लागत हवे न! चलो न हमू मन एकात दिन अपन ससुर ल कहिबो अउ मरे गरवा के मांस ल मंगा के सुवाद लेथन। सबो देरानी-जेठानी मन एक सुर ल बड़े बहु के सुर म सुर मिलाइन।


ये सबो बात ल राजा के चपरासी सुनत रथे,राजा ल खुश करके इनाम पाए के लालच म ओहा राजा ल जाके सबो बात ल फोर-फोर के बता देथे। राजा बहिया जाथे के मोर राज म कइसे कोई मनखे मरे गरवा के मांस ल खा सकत हे। चपरासी कथे- नहीं महाराज अईसन होवईया हे,अउ कहि नई करहू ते हो कि रही। राजा चपरासी के अईसन बात ल सुनके कहिथे-जावव कोन अईसन गलती करत हे वोला मोर कर पेस करव भला। चपरासी कथे महाराज-अउ गलती ह सिद्ध होही त का इनाम रही! राजा -अगर ये बात सही हवे तो सिद्ध करईया ल पांच गांव इनाम म देय जाहि। अब तो पांच ठन गांव चपरासी के आँखी म झूलत रहय।


चपरासी मंत्री के घर जाके बहु मन ल बताथे की तुमन ल राजा साहब अभी बलात हे। का होगे हे चपरासी तेमे हमन ल राजा साहब बलाही! बड़े बहु चपरासी ल हड़काइस। तुमन वो दिन कइसे मरे गरवा के मांस खाबो कहत रेहेव-चपरासी वोमन धांदे के प्रयास करिस। कलबिल-कलबिल गोठबात ल सुनके घर के जम्मो झन जुरियागे। बड़े बहु कथे-का परमान हवे तेमे, कुछु बताबे। परमान हवे! में खुदे बड़े जनिक परमान हो,जे अपन कान से सुने हो। चलो तुमन सब राजा के पास। अब पता चलही तुमन। चपरासी अपन जीत के आस म अब्बड़ मने-मन खुश होवत रहय।


मंत्री के जम्मो बहु मन ल चपरासी राजा के तीर म पेस करिस। राजा कड़क के पूछिस- कइसे बहु हो! तुमन अपन ससुर ल मरे गरवा के मांस घर मे मंगा के खाबो कहत रेहेव, ये बात कतका सही हवे। येती चपरासी मुसमुसावत हवे कि अब तो मजा आही। बहु मन समझ जाथे कि येहा ललचाहा चपरासी के चाल आये। राजा ल कथे- महाराज तुमन एककन हमर संग दरबार ले दरबार ले बाहर निकलहु त सबो बात साफ-साफ हो जाहि। राजा अपन मंत्री मन सन तैयार होके निकल जाथे। मंत्री के बहु मन राजा ल परोसी गांव के तीर म सुनावत नाचा-गम्मत के आवाज तीर ले जाथे। उन्हा पेटी,तबला,ढोलक, मंजीरा के सुर-ताल बड़-नीक लगत रहय। जब-जब गीत के ताल म उतार-चढ़ाव आथे तबला अउ ढोलक वाले मन के हाथ बम-बम करत गुचकेलत आवाज निकालय। देखइया मनखे मन के मन गदक जाये,अउ झुमरे ल लगय। राजा संग सबो मनखे मन घलो अब्बड़ खुश होगे।


अब मंत्री के बड़े बहु ह राजा ल कथे-कस महाराज ये तबला अउ ढोलक के बम-बम के आवाज ह तुमन ल कईसे लगत हवे। राजा कथे-वाह वाह वाह! बहुत सुग्घर लगत हवे,बहुत सुघ्घर। बड़े बहु कथे- ये तबला अउ ढोलक म का छवाय हवे महाराज। राजा- ये तो मरे गरवा के मांस मन ताय बेटी। तहन फेर बहु ह कथे इही तबला अउ ढोलक के सुघ्घर धुन ल हमन सुनेन त सबो देरानी-जेठानी गोठियावत रेहेन कि देख तो बहिनी! ये मरे गरवा के मांस कतका मिठावत हवे,हमू मन एकात दिन हमर ससुर ल कहिके घर म इहि पेटी,तबला अउ ढोलक मंगा के इंकर सुवाद ल लेतेन। तेला ये चपरासी ह  हमन ल मरे गरवा के मांस ल खाबो किहिसे कहिके बताये हवय। अब तुहि मन नियाय करव महाराज! हमन का गलती कर परे हन।


राजा ल अपन आप म शर्मिंदा होय ल लागिस अउ चपरासी ल नंगत के दमकावत कथे-कइसे रे! तोर कान म बोजाय कनघौवा ल निकाल अउ आँखी ल घलो बने धो। कोन का किहिस अउ का ते सुने-समझे। राजा खिसियाके चपरासी ल ओकर पद ल छोड़ा देथे। बहु मन के बात म खुश होके इनाम के पांच गांव ल राजा साहब सौप देथे।


ककरो बात ल पूरा सुने अउ समझे बिना कोई दूसर मतलब लगाए ले अपने हानि होथे। हमन ल ककरो बात ल पूरा सुन अउ समझ के आगे काम करना चाही।




लोककथा--रामसिंग सेन

संकलन-- हेमलाल सहारे

मोहगांव(छुरिया)राजनांदगांव

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