Saturday 27 November 2021

हमर राजभाखा छत्तीसगढ़ी सम्मान कइसे पाही*


 

*हमर राजभाखा छत्तीसगढ़ी सम्मान कइसे पाही*



     हमर राजभाखा छत्तीसगढ़ी सम्मान कइसे पाही एहा बहुत गंभीर विषय आय। हमर छत्तीसगढ़ी राज भाखा हमरे मन ले अपनानित हवै। हमन गोठ-बात, लेखन या सभा मा बस छत्तीसगढ़ी ला पोठ करे के बात करथन फेर असल जिनगी मा कभू परियास नइ करन, छत्तीसगढ़ी महतारी अपने घर, समाज, देश-राज ले तिरस्कारित हे। हमिमन एकर मान नइ रख पात हन ता दूसर ले काय उम्मीद करबो। ये हमर दुर्भाग्य हरे की हमन छत्तीसगढ़ी ला राजभाखा  बनाय के मॉंग घलो हिंदी मा करथन।

       सबले पहिली छत्तीसगढ़ी भाखा के पूरा छत्तीसगढ़ मा एकठन मानक भाखा तइयार होना चाहिए, जेन शायद तइयार हो चूके हे ओला हमला स्वीकार करना चाहिए। हमर छत्तीसगढ़ बहुत अकन बोली भाखा (हल्बी, गोंडी, सरगुजिहा, दोरला, दंडामी, अबुझमाड़िया, भुंजिया, धुरवी/ धुरवाकुडुख, ओरांव, मुड़िया) मा बॅंटे हे जेकर कारन बोली मा बहुत अकन विभिन्नता देखे बर मिलथे। तेकरे सेती शबद मा अपभ्रंश होथे जेन मा एकरूपता लाय के जरूरत हे तब हम अपन छत्तीसगढ़ महतारी ला मान दे सकत हन, अगर हम अपने घर मा भाई-भाई (भाखा) मा बॅंटे रहिबो ता न तो पोठ होवन न मान पावन।

       हमर पुरखा कतको बछर ले छत्तीसगढ़ के अस्तित्व बर लड़िन अउ हमन नवा पिढ़ी मन छत्तीसगढ़ी बोली के अस्तित्व बर। आखिर हम कब तब अपन अस्तित्व बर लड़बो, हमला तब तक लड़े ला लगही जब तक हम दूसर ले उम्मीद रखबो खुद ले नही, आज हम दूसर ले जादा उम्मीद रखथन ओहा छत्तीसगढ़ी मा बोलय, लिखय, पढ़य फेर अपन अंतस मा उतार नइ सकन तेकर सेती हम झूठ-लबारी के दिखावा करत रहिथन। हमला दूसर सो माॅंगे के जरूरत नइ हे हम अपन बोली ला मान दे बर अपन घर (विधानसभा)मा प्रस्ताव पारित करथन कि हमर छत्तीसगढ़ के सबो राज-काज छत्तीसगढ़ी मा होही अउ आजे ले शुरु करथन बाकी चीज अपने अपन हो जाही। आज रंग रूप मा बदलाव होथे, चिरहा कपड़ा अंग-अंग ला झॉंकत रहिथे, भूसा कीरा कस चूॅंदी, सिंदूर घलो प्रतीक चिनहा बनके रहि गेहे, या अन्य कोई भी परिवर्तन तब मॉंगे बर नइ लागय वो खुदे अपन जगा बना लेथे। ता का हम सब अगर मन ले सबो काज ला छत्तीसगढ़ी मा करबो ता स्वीकार नइ रहि। "छत्तीसगढ़ी बोली ला मान पाय मा अड़चन हे ता वोहर हे हमर अभिमान" आज हम अपने बीच मा एला छोटे समझत हन अंतस ले स्वीकार नइ करत हन।

     आज जेन भी छत्तीसगढ़ी बोली मा गोठियाथे वोला घृणा के नजर ले देखथन अउ देहाती समझथन, ये जहर शहर वाला मन मा जादा भरे हे। देहाती होना कोनो गुनाह थोरे ये अगर हम कहन त देहाती बिल्कुल निरमल गंगा होथे जे मुॅंह मा रहिथे उही मन अउ तन मा रहिथे। देखावा तो......... मा रहिथे ।

        *हमर राजभाखा छत्तीसगढ़ी मान पाही* ता हमरे घर, बिचार अउ राज काज ले दूसर ले जोजियाय के जरूरत नइ हे। हम अपन घर मा सब काम छत्तीसगढ़ी मा करथन अउ अपन लइका ला छत्तीसगढ़ी बोल के छत्तीसगढ़ी के मान करे बर सीखाथन बाकी भाषा ला आवश्यकता होही ता बेरा पड़े मा सब सीख जाही, जरूरत हे ता सोच बदले के।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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