Wednesday, 10 September 2025

बिजली*

 *बिजली*

           बिजली के नाम सुनके दिल अऊ दिमाग हाल जथे।वईसे लेड़गा बतात रिहीस वोकर लेड़गा होय के पाछू बिजली के हांथ हे। बिजली आनी -बानी के सपना देखाइस संगे जीबो संगे मरबो कहिके किरिया खवाइस। ओकर रंग रूप म अइसे मोहागेंव के चारों मुड़ा बिजली आंखी म झूले लगिस।जईसे सावन म कोनो जोड़ा मन झुलना म झुलथे। सबके अपन -अपन दिन बादर होथे।जइसे कोनो ल भूत परेत धरेके बाद ओकर आंखी म उहीच -उहीच मन झुलथे।हम सबके आदत घलो पड़ जाय रहिथे नवा नवा कोनो जिनिस आय रहिथे त पुचपुचाय के।नवा नवा दमाद मन ल घलो बड़ पुचपुचाय के सऊंक रहिथे।हाय मोर सारा,हाय मोर सारी,हाय मोर ससुर।फेर जादा मया करबे त अइसने घलो हो जथे जइसे एक ठन गाना म कहिथे नीला दुपट्टा कुरती के रंग लाल जादा मया झन करबे हो जही जी के काल होईरे होईरे।

                   लेड़गा हम तोर दुख पीरा ल समझ सकथन।जस तोर हाल तस हमर हाल।लेड़गा पूछिस कईसे भईया? पहिली हमन चिमनी,कंडील,गोरी दिया ल जला के रही जात रेहेन।फेर जब ले बिजली ह आइस हमर दिमाग के बत्ती गोल होगे ।हमन एकर रंग रुप म मोहागेन। पहिली चालिस,साठ,सौ,वाट ल घलो झेलत रेहेन।कहिथे नवा बईला के नवा सिंग चल रे बईला टिंगे टिंग।सऊंके सऊंक म मीटर बर पईसा घलो देन अउ आज ले घलो देवत हावन। ये हर सरकार बर दान के दान अउ ईनाम के ईनाम वाला किस्सा आय।सबले पहिली हमन ल समझना चाहि बिजली करेंट ले चलथे अउ झटका घलो देथे। सरकार ह बिल म बिजली दिल म।थोकिन गरेरा चलिस बिजली बंद, पानी गिरिस बिजली बंद, गंदी बात।अतिक झटका दे बाद घलो मनखे मन नई सुधरे।जईसे कोनो सुवारी मन मनखे के कोनो नस ल टमड़के गुदेलथे,तईसे सरकार ह हमर नस ल टमड़के गुदेलथे। पहली चकरी वाले मीटर चलत रिहीस, फेर इलेक्ट्रॉनिक मीटर आईस, अब रिचार्ज के नंबर आगे। रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीताराम,जतका(जितना) पईसा ओतका(उतना) काम।

                 बिजली बचाओ के नारा ननपन ले सुनत आवत हन जईसे गरिबी भगाओ के नारा। पहिली के झोलझोलह चड्डी के नारा नंदागे फेर------।मे हर एक झन गुरुजी ल पुछेंव पहिली के चालिस ,साठ ले अबके पांच सात वाट के बिल आधा छुट के बाद घलो काबर जादा आथे जी,त गुरुजी बताईस इही विकसित,नवा भारत आय जी जे हर घर मे घुंस के मारथे।


        *फकीर प्रसाद साहू*

               *फक्कड़*

           *सुरगी राजनांदगांव*

तीजा कहिनी

 ‎‎छत्तीसगढ़ी कहिनी 

‎ शीर्षक: तीजा तिहार आगे, मइके के सुरता आगे

‎                 भादो के महिना गरजत करिया बादर  चारो अंग रद-रद पानी गिरत,हरियर -हरियर दिखत रुख-राई ,जम्मो संसार हांसत खुसी मनावत हे। भादो म अंजोरी पाख आगे।तीजा तिहार नजदीक आगे। चंदखुरी गाँव म चारो अंग खेत- खार , रुख -राई हरियर -हरियर दिखत रहिस अउ लोगन मन म उत्साह के लहर दउड़त रहिस। गाँव के जम्मो घर म माटी के चूल्हा सजत रहिस अउ घर-घर ले ठेठरी-खुरमी के सुवास  हर महमहावत रहिस। 

‎           इही गोठ-बात के सुरता करत पदमा के आंखी ले आंसू बोहाय लगिस।पदमा के बिहाव  हर शहर म होगे रहिस, जिहाँ वोहर अपन गोसइया अउ सास -ससुर के संग रहय। शहर के अकबकासी भीड़-भाड़ अउ जिनगी म पदमा खुश त रहिस, फेर ओकर मन ह बछर तिहार तीजा बर सुरता करय मइके के ‌।

‎तिहार आगे ,मइके के सुरता आगे…..। सुरता करत मन म गुने लगिस।

‎             मइके के वोहर छोटकुन  घर-कुरिया, दाई के हाथ के चिला, बबा के कहिनी अउ संगवारी मन के संग झूला झूलय—जम्मो कछु जइसे काली के गोठ -बात लागय।

‎              इही बेर तको तीजा आगे, पदमा के ससुरार म काम-बूता के  अब्बड़े बोझा  रहिस। सास दाई कहिन, "बहुरिया, इही तीजा ल अभे ससुरार म मना डार,मइके जाय के कोनो जरूरत नइ हे।" पदमा हर कलेचुप गोठ ल सुनके, फेर ओकर मन उदास होगे। रथिया के बेरा, जब शहर के चकमक म चंदा लुकात रहिस, पदमा अपन छज्जा म बइठ के मइके के सुरता ल करय। वोहर मन म गुनय "तीजा तिहार आगे, मइके के सुरता आगे... मोर बचपन के झूलना, दाई के गीत .....जम्मो कुछु जइसे आंखी म झूले लगिस।"

‎               उही बेरा पदमा के मोबाइल म दाई के कॉल आइस। दाई के आवाज म मया के लहर रहिस, "नोनी तीजा आगे, तैं कब आबे ? तोर भैया ल पोठोहु़ं ,बताबे मैंहर तोर रद्दा जोहत हव ।" पदमा के आँखी मा आंसू के धार  बोहाय लगिस। फेर वो हर  कहिस, "दाई, इही बखत  मैं नइ आ सकव फेर मोर मन तोरे  करा हे।" फोन कटगे।  पदमा हर मन म  ठानिस अउ  अपन गोसइया ल सबो गोठ बताइस अउ कहिस, "तीजा हमर छत्तीसगढ़ के जम्मो माईलोगन,महतारी, नोनी मन बर बड़का तिहार आय अउ मइके  के मया के तिहार आय। इही तिहार के महतम ल जानके पुराखा  ले  मनावत आवतथे । हमन अबे इही तिहार ल नइ मनाबो त हमर आगू अइया लइका मन कइसे जानहि।" ओखर गोसइया तीजा के महतम जान के, पदमा ल मइके भेजे बर तियार होगे।

‎                 पदमा मइके पहुँचगे। ओखर  चेहरा दमके  लगिस।दाई ह पदमा  ल पोटार लिस अउ कहिस, "मोर नोनी आय हे, अब तीजा के रंग जमही।" बबा ह खेत ले हरियर धान के पउधा लाय रहिन, जउन  ल पूजा के थाली म सजाइस ।गाँव के चौपाल के पाछू आमा  के रुख तरी  डारा म  झूलना बंधागे। छोटकी अपन संगवारी मन के संग झूलत रहिस। बब्बो झिन गीत गावत रहिन-

‎"तीजा तिहार आगे , मइके के सुरता आगे ,

‎नोनी मन झूलना झूले ,ममता के छहियां म..."

‎               पदमा दउंड़त रुख तरी जाके झूलना झूले लगिस। झूला झूलत पदमा के मन म उदासी छागे। वोहर  दाई ल अपन ससुरार के गोठ- बात ल बताइस। त दाई कहिस, "पदमा, तीजा तिहार हर झूला झूलेबर अउ संकर पार्वती के पूजा-पाठ के  संगे-संग, इही तिहार मइके के सुरता ल जगा के राखथे, जउन जिंदगी के हर मोड़ म ताकत देथे।" पदमा के मन हर नवा जोश  म भर गे। वोहर मन म गुने  लगिस के आने  बछर  म वोहर अपन ससुरार म,  घलो तीजा के रिवाज ल जगा के राखही, जेमा शहर के नोनी मन घलो मइके के सुरता ल चंदन अस घोरही ।

‎                 तीजा के आखिरी दिन, जब्भे ससुरार लहुटत रहिस, वोहर अपन संग मइके के ममता अउ सुरता ल ले गे। ओखर उज्जर मुंहु म एकठिन नवा उजास रहिस, जइसन तीजा के चंदा  सुघ्घर चुकचुक ले दिखत रहिस।

‎ लेखिका 

‎डॉ. जयभारती चंद्राकर

‎रायपुर, छत्तीसगढ़ 

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‎                 

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य-‘ चलव, हड़ताल करथन’

 छत्तीसगढ़ी व्यंग्य-‘

                    चलव, हड़ताल करथन’

मन मारके आफिस गए रहेवँ। जइसे कुर्सी पाए मनखे कुर्सी ल अपन जन्मसिद्ध अधिकार समझ पसरे लमे ऊँघावत रहिथे। उही किसम के मानसिकता पोटारे मोरो तन-बदन म आज ऊँघासी, उदासी अउ उबासी के राज हावय। अइसे तो मोर मनहूस थोथना, रेगड़ा-मरहा-बीमरहा तन अउ बैलगाड़ी जस धीरलगहा काम-बूता के सेति जनता मोला ‘मुर्दा मानुस’ के पागा पहिरा दे हवय। उपरहा म मैं दोगला, बइमान अउ जीछुट्टा करमचारी के सुग्घर खुमरी तको मुड़ म पहिर डारे हाववं। आज मन तको मुरझुरागे हवय, कारण बिहनिया-बिहनिया गृहलक्ष्मी के उल्लू ह मोर थैली म धावा बोल दिस। गृहलक्ष्मी तो अइसे होथे कि कपड़ा धोते-धोवत थैली ल तको फटाफट बहार-बटोरके सफाचट कर देथे। गृहलक्ष्मी मनके इही स्वभाव ल देखके स्वच्छता अभियान के महा विचार जनम ले हवय। देश दुनिया के विकास म देवियन के साथ।  सबो के साथ, सबो के विकास- इति सिद्धम।

ऊँघावत तन-मन म अचानक चहा-पानी के चुलुक सुलग के भभक आइस। मैं सुरता के हत्थे मत्था के खुदाई करे लगेवँ। अभीन अइसन कोन से फाइल हे, जेकर झारे-रपोटे, सुँघियाए-चाँटे ले तरसत थैली ऊपर कृपा बरसाए जा सकय अउ चहा-पानी के सुलगत-धधकत आगी ल हवन देके ओम शान्ति करे जा सकय। तभेच दुवार के फइरका खड़खड़ाइस अउ ‘अउ निर्मल’ के दनदनावत पोंगा आवाज अन्दर धमक आइस। आवाज के धमक ले मोर आँखी म चमक झलक आइस। मैं चहा-पानी के चाह ल भीतर तक चुहकत-चुचरत चहकके गमक उठेवँ। 

थोथना ल उठाएवँ, देखेवँ -आगू म कर्मचारी संघ के भूँईफोर अध्यक्ष अपन तुतरू टाइप तुच्छ विराट स्वरूप म अवतरित हे। मैं बोकबाय, मुँहफराय, अकबकाय सुरबइहा टाइप देखते रहिगेवँ। अहो भाग्य ! दसों-बीसां फोन के तको उत्तर नइ देके अपन व्यस्तता, महानता अउ गुणवत्ता के परिचय देवइया महान नीयतखोर, जलनखोर अउ हरामखोर ढोंगी व्यक्तित्व के धनी आज अचानक निर्धन-कुंदरा म। मैं बइठे बर कहितेच रेहेवँ, वो थकहा, जाँगरचोट्टा अउ कोढ़िया कुर्सी खींचके पसरत अपन बड़प्पन, ढीठपन अउ जिद्दी आदरणीय होए के परिचय दे दिस।

कुर्सी म धँसत-उन्ढत-घोन्डत कहिस - ‘अऊ का हाल-चाल हे जी ?’

‘चाल अपन जा नइ सकय अउ हाल बताए नइ जा सकय ?’

‘काबर, अइसन का होगे ?’

‘इही हाल मौका-बेमौका बहाल होके बेहाल कर देथे, भइया ...।’

‘बहाल होना तो हरेक कर्मचारी के जन्मसिद्ध अधिकार ये महोदय, येकर ले हमन ल विधाता हँ तको नइ रोक सकय, ये भ्रष्ट, जुटहा, लालची अउ चप्पलसेवक चाटुकार अफसर अउ खद्दरधारी फोकला फुसियाहा बयानबीर बेन्दरा मुखिया मन काय कर सकही, हूँ ....फेर तैं, आदमी बड़ दिलचस्प हस यार’ कहत वो अपन बत्तीसी ल उघारिस। चाँदी कस चमाचमावत बत्तीसी ह पिंयर पिंयर दीखत रिहिसे जेन ह वोकर मोठ विकास के पोठ परिचय देवत रिहिसे।

ओकर जुवाब म हमु अपन बत्तीसी उघार के साबूत सबूत दे देन कि अच्छा बच्चा बरोबर बिहनिया-बिहनिया दाँत-मुँह म झाड़ू-पोछा करथन। दाँत तो जिद्दी बाल (बालक अउ केस दूनों) बरोबर अपन सफेदी म कायम हवय। हमू हँ झक सफेद बाल म मेहंदी अउ चक सफेद दाँत म ‘जुँबा केसरी’ के सुग्घर सुनहरा रंग चढ़ाके ऊँचे लोग ऊँची पसंद के विज्ञापन करे म जुटाही मार लेथन। 

तभे, मोर खलपट्टा दिमाग म ये बात आइस कि अभीन तो दूरिहा-दूरिहा तक संगठन चुनाव के मानसून नजर नइ आवत हे, न कोनो चक्रवाती तूफान तुकतुकावत तियार हे, जइसे कि चोर-चोर मौसेरा भाई बरोबर कोनो भ्रस्ट कर्मचारी भाई के रिश्वत लेवत रंगे हाथों पकड़े जाना, कोनो संगी के नियमितता ल अनियमितता बताके सस्पेंड करना आदि-इत्यादि-अनादि। फेर ये बरसाती मेचका-सम अतेक उछलम, कूदनम अउ टर्रम-टर्र कोन बात म ?

खैर, बात कुछु रहय, फेर बात हे बज्जुर। मोर मन म सैर करत डोकरी घटना रेंगते-रेंगत अचानक पल्ला (सरपट) दौड़े लगीस। 

पीछू दफे, मैं उल्टी-दस्त ले पस्त होए के बहाना बनाके चुस्त-दुरूस्त घर म अस्त-व्यस्त-मस्त परे रहेवँ। मोर अनुपस्थिति म परिस्थिति अइसे भारी परिस कि सबो वस्तुस्थिति दस्त कर डारिस अउ मोर विरोध म उल्टी करत सोकॉज नोटिस जारी हो गे। 

वोकर निदान खातिर इही बइमान ल कई पइत फोन लगाएवँ। आखिर म मोला ये महानुभव होइस कि ये महानुभाव बड़ व्यस्त मनखे हरे। समस्या छोटे होवय के बड़े, आदमी के सकपकाना-अकबकाना-धकपकाना स्वाभाविक हे। मैं तुरत-फुरत कूद-फाँदके, एति-ओति ले ले-देके मामला सुलटा लेवँ। 

बिहान भर ये मोर ले मिले बर खुदे आ धमकिस अउ आते ही बंदा धमकावत चंदा माँगे लगीस। 

‘मैं कहेवँ का के चंदा ?’

मंद-मंद मुस्कावत बंदा अब चंदा के धंधा होवत लंद-फंद म आ गे। अपन निर्लज्जता अउ हरामखोरी ल हमाम साबुन म धोवत कहे लगिस- ‘भाई मेरे ! तोर वाले वो मामला ल तो सुलटाए बर परही न।’

मैं कहेवँ - ‘मामला ल तो मैं सुलटा लेवँ,’ त वो झेंप गे, सोचिस-‘स्साले मोरो ले जादा पावरफुल हे’। गुसिया-फुसियागे। पद के रौब झाड़त कहिस-‘यार ! सबे मामला ल खुदे रफा-दफा कर डारहू, त संगठन का करही ? बाद म अनते-तनते हो जाथे, ताहेन हमन ल बदनाम करथौं। संगठन वाले सहयोग नइ करय। खाली-पीली फोकट म चंदा बस माँगथे, आदि-अनादि -इत्यादि।’

मैं कुछु बोल नइ पाएवँ, वो बकते रिहिस-‘हमू मन ल तो कुछ पता चलना चाही। का चलत हे, का अटकत हे, कोन सटकत हे। कोन कतका झटकत हे, कोन कतेक फटकत हे। कम से कम तुम्हार समस्या के बहाना साहबमन ले हमू मन ल मिले-मुलाए के मौका मिल जथे। जान-पहिचान बढ़थे।’

थोरिक रूकके फेर बखानिस - ’कुछु तो अनुभव मिलतिस जोन भविष्य के आड़ा-तिरछा बेरा म काम आतिस। सब गँवा दिएव। तुम छोटे कर्मचारी मन संग न, इही रोना हे, सब खदर-बदर करके रख देथव।’ अउ अपन कुंदुरू मुँह ल तुतरू बरोबर फुलाके बइठ गे।

मैं कहेवँ-‘चल, जोन बीत गे वो बात गय। कहव का लेहू आप ?’

 वो पासा ल अपन कोति पलटे देख कहिस-‘आपके सोकॉज नोटिस ले मैं ये नोटिस करेवँ कि भविष्य के सुरक्षा बर संगठन के रोंठ अउ पोठ होना आवश्यक हे। एकर खातिर आप लोगन के सहयोग अपेक्षित हे।’

‘मैं का कर सकथौं, बतावव ?’- मैं अपन सरीफी झाड़ेवँ।

‘आज के जमाना म अइसन कोन जिनिस हे, जेमा सबले जादा शक्ति निहित हे।’

‘संगठन में’ - मैं सट-जुवाबी के फोरन डारत अपन सठ दिमाग के हुसियारी बघारेवँ।

वो अव्वल दर्जा के फाइन-फिनिस दर्जी निकलिस। पहिलीच ले धरहा कैंची धरे बइठे रिहिस। मोर गोठ ल चर्र-ले चीरत-काटत कहिस -‘इहीच मेरन मार खा जाथन हमन। संगठन तभे मजबूत अउ शक्तिशाली होथे, जब आँट के गाँठ म भरपूर साँठ (माल) होवय।’

अतका कहि वोहँ टेबुल म थोरिक झुकिस अउ मोर आँखी म आँखी डार मोला मोहावत कहिस-’ साँठदार आँट के संग-संग साँठ-गाँठ भी बेहद जरूरी है, समझे का ?’

मैं अपन आड़े मुँह ल फारके अड़ाए खड़े-खड़े ओकर थोथना निहारे लगेवँ। वो बकते बखानत रिहिस -‘संगठन के मजबूती अउ उत्तम व्यवस्था बर कुछु व्यवस्था हो जाए बस। ओकर ले उपराहा आप जऊन लेना-देना चाहत हौ, वो आपके मर्जी। हमार इहाँ दान के बछिया के दाँत नइ गिने जाय।’

‘भैया ! अभीन तो मोर इहाँ सुक्खा-सकराएत हे। चारो मुड़ा अकाल परे हे, बाद म ..... ’ कहत मैं अपन दीनता ल उघार के देखाए लगेवँ, त वो झट उठके खड़े होगे अउ अपन अनुभव के लट्ठ पटकत रट-फट जऊन मन म आइस बके लगिस -‘देखो जी, ये मगरमच्छ के आँसू मोला झन देखा, मोला सब पता हे, आफिस के कते-कते कोन्टा मं कहाँ-कहाँ कतका धन गड़े रहिथे।’

मैं आफिस के ओन्टा-कोन्टा, अगल-बगल ल झाँके-ताके-तलाशे लगेवँ अउ मने मन बके-बखाने लगेवँ- ‘स्साले ! बड़ कुकुर किसम के घ्राणशकित लेके धरती म अवतरे हे। अतेक जल्दी फाइल मन ल तको सूँघ डरिस।’ वो आगू बोलिस-‘मोला कुछ नइ सुनना-देखना। अभीन चंदा चाही, त चाही बस।’

जब मैं ‘अभीन’ के नाम म मुड़ पटक देवँ त वो नाराज होके पैर पटकत रेंग दिस।

वोकर ये रौद्र रूप देखके मैं सोच म पर गेवँ-‘अच्छा ! त, बंदा चंदेच के नाम म चुनावी लंद-फंद म परे रहिथे। ये तो साफ-साफ, सोज्झ-सोज्झ, फरी-फरा फुलत-फरत फुरमानुक धंधा हरे, बाप रे !’

तब के बिछड़े हँ आज वो फेर इहाँ आके मिले। मैं सोचते रहि गेवँ - अब मोर खैर नहीं। बंदा, चंदा लेके ही लहुटही। तभे वो अपन औकात ऊपर सवार होगे अउ दाँत निपोरत कहिस-‘चलव, हड़ताल करथन।’

मैं कहेवँ-‘का बात के हड़ताल ?’

‘पहुँचे हुए बेवकूफ हस तैं। बात कुछ रहय चाहे झन रहय। सामने चुनाव अवइया हे। सरकार ल कुर्सी म लहुट-पहुटके बइठे रहिना हे, त ओला हमर बात मानेच बर परही। लहुटे के नाम बर उन अइसन लेटके समय व्यतीत नइ करे सकय। चारपाई ऊपर चौपाया मन बरोबर लेटे-उन्डे-घोन्डे रहे के दिन अब फिर गे।‘

मैं वोला ओकर दूरदर्शिता के दाद देवइयच्च रेहेवँ कि वो अपन मन के उभरत माता (चेचक) के दाग देखाए लगिस, बोलिस-

’सत्ता पक्ष के सफलता, वाहवाही अउ दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की ल देखके विपक्ष ल साँप सूँघ गे हवय। सत्ता म आते ही ये मन कइसे अपन वेतन, मानदेय, भत्ता सब एके झटका म बढ़ा लिन, जेकर ले मुँह ताकत धकेले-धकियाए, हुद्दा खाए मुद्दाविहीन विपक्ष ल जरे म नून परे के एक ठो अउ सुनहरा अवसर मिल गे हवय। उन्कर छाती म एके संघरा अटखेलिया करत दोहरा-तीहरा साँप लोटत हावय।’

‘जब ले कुर्सी ले धकियाए गे हवय, उन विक्षिप्त, बीमरहा अउ पंगुरहा हो गे हवय। वोमन कल बेकल होके अपन चंगु-मंगु सहित मोर तीरन आए रिहिन। कहत रिहिन-देखव ! गरीबन के पइसा ले चौपाई म पसरे ये नकटा-कुटहा, जीछुट्टा अउ मीठलबरा हरामखोर चौपाया मन कइसे ऐश करत हावय। इही मन कभू हमन ल पानी पी-पीके बकय अउ आज इही मन हमार ले जादा होगे हे। हम सीधवा का भएन, दुनिया मसगीद्दा होगे। तुमन आफिस म बेवकूफ, गँवार अउ बइहा-भूतहा लोगन के बीच दिन भर खँटथौ। तुँहरो तो कुछु भला होना चाही,  अकेल्ला मुसुर-मुसुर खवई बने नइ होवय। मिल-बाँटके खाए म भलई होथे।’

‘इही बात म विपक्ष साँठगाँठ के आसरा ल गठियाए हमार कोति मुँह बाए खड़े हवय। उन्कर उत्कट-मरकट इच्छा हे कि क्र्रमविनिमेय अउ योगसाहचर्य नियम के अनुसार हम एक दूसर के संबल बनन। सहयोग बर वोमन तो मरे-च जावत हे। हमरे कोति ले आस्वासन बाकी हे। उन महामुर्दा मन अभीन तक हमरे आसरा म जीयत हावयं।’

‘हमन ल मिलइया लालीपाप अउ आश्वासन-भासन के रासन ले उन्कर पेट पीराए-कीराए लगे हावे। उन अतेक दुखी, हतास अउ उदास हवय कि आत्महत्या करे बर उतारू होगे हवय। अइसन मौका म हम चौका-छक्का नइ लगा पाएन त धिक्कार हे हमर मक्कारी, भ्रष्टाचारी अउ रिश्वतखोरी के योग्यता, साहस अउ भावना ल। दर-दर भटकत उन बेकदरा मन के कदर अभीन नइ करबोन त कभू न कभू हमरो हाल उन्करे मन कस हो सकत हे जब उन कुर्सी म लहुट परही। अभीन ऑफिस म बइठे मिश्रीयुक्त मक्खन लूटत हावन वो बात अलग हे। फेर कभू उन्करो आयोडीन युक्त नमक खाए हवन। एक लोभचाहक, लाभदर्शक अउ सच्चा लोकसेवक ल ये बात कभू नइ  भूलना चाही कि हमर ये पद के मद तभे तक जिंदा हे जब तक उन्कर पाद अउ दाद जिंदा हे, नहीं तो ये करमछड़हा नौकरी तको बंचक छोकरी कस गर के फंदा ले कम नइहे।’

मैं बकासुर-बरोबर बयाए ओकर थोथना ल देखते रहेवँ अउ वो सरलग बकर-बकर करते रिहिस -‘पुरजोर शक्ति-प्रदर्शन निजोर लोकतंत्र ल सजोर करे के अनिवार्य, अकाट्य अउ अपरिहार्य मंत्र-तंत्र-यंत्र हरे। एक ताल ठोंके ले विपक्ष के ताली तो बरसना ही बरसना हे। सत्ता के गारी-बखाना अउ संगठन के बात छोड़, कम से कम मोर पहिचान तो ऊपर तक बनबे करही। चलव ! इही बहाना कुछ माँग रखके हड़ताल कर देथन। लोहा गरम हे। भागत भूत के लंगोटी सही। कुछ नहीं ले अच्छा ‘कुछ’ तो मिलबे करही।’


संगठन म शक्ति निहित होथे। शक्ति म हित तको समाहित होथे। 

सो निज हित अउ निहित शक्ति ल सुँघियावत -भाँपत महूँ ओकर  हाँ म हाँ मिला देवँ। 


धर्मेन्द्र निर्मल

ग्राम कुरूद, पोस्ट-एसीसी जामुल, थाना-जामुल

तहसील-भिलाईनगर, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़ पिन -490024 मोबाइल नं. 9406096346

भारतीय जनता मा जागृति फैलाय बर सार्वजनिक गणेश परब के शुरूवात होइस

 भारतीय जनता मा जागृति फैलाय बर सार्वजनिक गणेश परब के शुरूवात होइस 


हमर सनातन संस्कृति मा बुद्धि के देवता गणेश जी के अब्बड़ महत्व हे।कोनो भी काम ला चालू करे ले पहली भगवान गणेश जी के पूजा करे जाथे। येकर ले कोनो भी कारज हा बने सिद्ध 

होथे अइसे आस्था के रुप मा रचे- बसे हे। यज्ञ,पूजन, बिहाव, गृह प्रवेश अउ आने आयोजन मा गणेश जी के पूजा करे जाथे।गणेश जी हा माता- पिता ला सबले बड़का धाम मानिस। अपन बुद्धि  ले मूसवा सवारी गणेश जी हा पिता भगवान महादेव जी अउ माता पार्वती के गोल- भांवर घूम के सुघ्घर आशीष पाइस ।पहिली पूजन के वरदान प्राप्त करिन। तब ले भगवान गणेश जी के पूजा कोनो काम करे ले पहिली जरूर करे जाथे।


        सार्वजनिक गणेश पूजा के शुरूवात 


  श्री गणेश जी के स्थापना हिंदू पंचाग के अनुसार भादो मास के शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन करे जाथे। दस दिन भक्ति  के धार गांव -गांव शहर -शहर मा बोहाय ला लगथे। अनंत चतुर्दशी के दिन श्री गणेश जी के विसर्जन करे जाथे।दस दिन तक सनातनी मन भक्ति रुपी गंगा मा गोता लगाथे।


इतिहासकार मन के मानना हे कि हमर भारत वर्ष मा गणेश पूजा के  शुरुवात वीर शिवाजी हा अपन महतारी जीजा बाई के संग मिलके मुगल मन ले लड़े बर जनता मन ला संगठित करे के उद्देश्य ले करे रिहिन। छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद गणेश महोत्सव के परंपरा ला मराठा साम्राज्य के आने पेशवा मन घलो जारी रखिन।बछर 1892 मा भाऊ साहब जावले हा पहली बार गणेश मूर्ति के स्थापना करिन।

       जब हमर देश मा अंग्रेजी शासन रिहिस ता बछर 1893 मा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता लोकमान्य बालगंगाधर तिलक हा येला बड़का रूप मा महाराष्ट्र मा सुरुवात करिन। सार्वजनिक गणेश पूजा के उद्देश्य भारतीय जनता मा राष्ट्रीयता के भावना मा बढ़वार कर अंग्रेजी शासन ला इहां ले भगाना रिहिस। गणेश पूजा के माध्यम ले भारत के सभी जाति, धर्म के मनखे मन ला एक साझा मंच देय के उद्देश्य रिहिनी जिहां सब सकला के अपन विचार रख सके।



सार्वजनिक गणेश पूजा के बेरा मा वीर सावरकर, लोकमान्य तिलक अउ आने नेता मन अपन भाषण मा भारतीय जनता मा जागृति फैलाय के काम करिन। अंग्रेजी शासन के शोषण, अत्याचार अउ कतको गलत नीति के बारे मा बताके देश के आजादी बर लड़े बर प्रेरित करे गिस। गणेश पूजा के समय पढ़इया लइका मन देशभक्ति के नारा अउ अंग्रेजी शासन के विरुद्ध नारा लगाय। मराठा मन ला  छत्रपति शिवाजी कस विद्रोह करे बर प्रेरित करे जाय।


 तो ये प्रकार ले देखथन कि सार्वजनिक गणेश पूजा हा आजादी के लड़ाई के बेरा मा भारतीय जनता मा देशभक्ति के भावना ला बढ़वार करे, छुआछूत दूर करे, समाज ला संगठित करे के दिसा मा  सुघ्घर माध्यम बनिस। ये सार्वजनिक पूजा हा अंग्रेजी शासन बर जी के जंजाल बनगे अउ जनता मन बर देश के आजादी के लड़ाई बर माध्यम बन गे।  तिलक जी के उदिम ले पहिली गणेश पूजा परिवार तक सीमित रिहिन। गणेश परब के बेरा मा भाषण देवइया प्रमुख नेता मन मा वीर सावरकर, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जय कर,रेंगलर परांजये,पं. मदन मोहन मालवीय, मौलिक चंद्र शर्मा, बैरिस्टर चक्रवर्ती,दादा साहब खापर्डे अउ सरोजिनी नायडू के नांव शामिल हे।कवि गोविंद अपन कविता के माध्यम ले जनमानस मा छाप छोड़य।


डीजे संस्कृति अउ अश्लील गाना चिंतनीय 


    देश ला आजादी मिले के बाद कतको शहर मा आयोजन के बड़का स्वरूप जारी हे। गणेश परब बर प्रसिद्ध शहर मन मा मुंबई , पुणे, हैदराबाद, बेंगलुरु, अहमदाबाद, चेन्नई, नासिक, जयपुर, दिल्ली,गोवा, नागपुर,इंदौर, राजनांदगांव , रायपुर के संगे संग आने शहर मा गणेश पूजा के बड़का आयोजन देखे ला मिलथे।लोगन भक्ति भाव मा रम जाथे। भारतीय संस्कृति ले संबंधित बड़का आयोजन होथे।लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम अउ कवि सम्मेलन के आयोजन के माध्यम ले जन समुदाय हा जुड़थे अउ सुनता के गांठी मा बंधे के संदेश देथे।समय के साथ येकर स्वरूप मा अब्बड़ बदलाव घलो होइस। दिखावा के चलते अड़बड़ खरचा करे जाथे। लोक संस्कृति के जगह डीजे संस्कृति हा मूल संस्कृति ला दबा के रख देथे। डीजे के कानफोड़ू अवाज हा पर्यावरण बर अउ मानव समाज बर खतरा होवत जात हे। आयोजन समिति मन ला चाही कि आयोजन मा अश्लील गाना ला झन बजाय। अपन संस्कृति   के बढ़वार बर काम करय।तभे गणेश पूजा के महत्ता हा कायम रहि। गणेश परब हा पारा, गांव,शहर प्रदेश अउ देश ला एकता के के सूत्र मा पिरोय के सुघ्घर काम करथे। जरूरत हे आधुनिकता के चकाचौंध मा घलो अपन मूल संस्कृति ला सहेज के रख सकन तभे सार्वजनिक गणेश पूजा हा सार्थक हो पाही।


        - ओमप्रकाश साहू अंकुर 

       सुरगी, राजनांदगांव

गणेश उत्सव सामाजिक चेतना जगाय अउ चरित्र निर्माण करे के परब हरे।

 गणेश उत्सव सामाजिक चेतना जगाय अउ चरित्र निर्माण करे के परब हरे।


हमर देश मा अलग-अलग जाति धरम के लोग बसथे, जेकर रहन-सहन खानपान संस्कृति तको अलग-अलग होथेI पर जब कोनों तिहार आथे तब  लोग अपन जाति धरम ल भुला के वो तिहार के रंग मा रंग जथे, माने अपन भाव अउ शुभ  विचार म दूसर के खुशी म अपने खुशी देखथे, इही तो हमर बहुत बड़े संस्कार येI जेला आज तक सब मिलके निर्वहन करत आत हें,विविधता ल भूल के तिहार के रंग मा रंगना समाजिक समरसता ल बढ़ाथेI इही तिहार मा एक तिहार गणेश चतुर्थी हे,जेला हमर देश के अलावा नेपाल,भूटान,म्यांमार,श्रीलंका,सिंगापुर मा विधि विधान अउ उत्साह के संग मनाथेI छत्तीसगढ़ मा ग्यारा दिन तक चलने वाला ये तिहार भादो महीना शुक्ल पक्ष के चउँथ मा आथे, अउ अनंत चतुरदशी तक चलत रहिथेIगणेश देव के कई ठन नाँव हे विध्नहर्ता,बुध्दि के दाता, मंगलकारी,सुख शान्ति के देवइया,गणनायक,गणपति,लंबोदर,सुमुख,एकदंत,कपिल,विकट,गजकर्ण,विनायक,भालचन्द्र,रिद्धिसिद्धिके स्वामी,गणाध्यक्ष,गौरीपुत्र,स्वरूप,शुभम,मंगलमूर्ति,महाबल,अमित,अवनीस,भूपति,चतुर्भुज,कृपाकर,मनोनय,विश्वराजा,

प्रमोद,नन्दन,भुवनपति,भीम,धूमकेतु,महागणपति,लम्बकर्ण,प्रथमेश्वर,वक्रतुंड,देवादेव,ईशानपुत्र,जइसन लगभग सौ ठो नाँव ले जानथे Iगणेश जी के पूजा कई सालों ले चलत आवत हे, अंग्रेजी शासन काल के समे जगा-जगा आंदोलन होय देश के आजादी बर तब आंदोलनकारी मन ला वो समे जेल मा डाल दय I सिर्फ धार्मिक सभा करे के छूट भर राहय वोकरे सेती बालगंगाधर तिलक अउ बहुत से क्रांतिकारी मन गणेश ला पंडाल मा रखके पूजा पाठ के साथ सार्वजनिक उत्सव करँय I जेकर ले समाज मा एकजुटता के भावना पैदा होवय अउ अंग्रेजन मन ले लड़े के रणनीति तको तैयार होवँयI इतिहासकार मन बताथे माता जीजा बाई के संग वीर शिवाजी तको गणेश पूजन के परंपरा ल आगू बढाइसI गणेश पूजा ह वो समे देश आजाद होय के हवन मा महत्वपूर्ण भूमिका तको निभाइस हेI काबर इही सार्वजनिक मंच ले बड़े-बड़े क्रांतिकारी मन भाषण देके जनमानस ल एकजुट करे के काम करँय Iतभे तो आज भी कोनों शुभ काज करे के पहिली गणेश जी ल पूजे जाथे, वेदों के जानकार संत मुनि ज्ञानी जब कथा वाचन करथे तब गणेश जी ल पहिली सुमरथे, तुलसीदास जी के भजन मा जिक्र हे ‘गाइये गणपति जगवंदन’

सदा भवानी दायनी, सम्मुख रहें गणेशI

पांच देव रक्षा करें, ब्रम्हा बिष्णु महेशII

ये दोहा हमन ल अक्सर सुने बर मिलथे,

गणेश पूजा सिर्फ पूजा भर नोहय मनखे मन मा सुविचार भरथे, दाई ददा के सेवा ल गणेश जी सबले बड़का पुण्य काज माने के शिक्षा दे हे I अकेल्ला जउँन गुण गणेश जी मा समाय हे मनखे मन ला कुछ न कुछ सीख जरूर देथे I

गणेश जी के पेट ह ये सीख देथे दूसर ल कहूँ खुशी देबे त खुद के पेट ह खुशी ले फूले अउ भरे रहिथे माने उदारता के प्रतीक हरे,सूँड़ ह सीख देथे जब कोनों विपदा या बाधा आय त घबराय के जरूरत नइये अपन आप ल अउ डट के सूँड़ असन लंबा होना हे,ताकि बाधा ह आय के पहिली डर जाय,गणेश जी के मुड़ के चंदा ये सीखाथे कभू गुस्सा नइ करना हे सदा शांत दिमाग ले काम लेबे त काम सफल होथे Iगणेश जी के निकले एक दाँत सीख देथे जतका हें ओतके मा संतुष्ट रहे ले मनखे मा मा घृणा भाव नइ आय,एकाग्रता के प्रतीक हरे Iचार भुजा ये बताथे कमाँव दू हाथ ले त बाँटव चारों हाथ ले, दान करे ले मनखे के यश कीर्ति बाढ़थे Iसूपा असन कान ये सीख देथे सार बात ल ग्रहण करव,बेमतलब बेकार के चारी चुगली ल निमार फेंके ले जिनगी मा कलह नइ आय Iगणेश जी के सवारी मुसवा ह सीख देथे ताकत दिखा के आगू नइ बढ़े जा सकय बुद्धि ले काम लेना बहुते जरूरी हे Iगणेश जी ल लड्डू बड़ा पसंद हे लड्डू ले ये सीख मिलथे बोली ल अपन मीठ रखे ले बइरी ल तको मित्र बनाय जा सकथे Iमुँह ले करू बोल काबर बोलना Iगणेश जी ल दुबी तको पसंद हे दुबी ह प्रेम प्यार ल दर्शाथे प्यार देबे त प्यार बाढ़थे, अहंकार करबे त रोज जले ले पड़थे दुबी असन जिहां ले प्यार मिलत हे, वो जर जमीन वो माटी ल नइ छोड़ना हे चिपके रहना मा ही भलाई हे I गणेश जी के जनेंव नीत नियम विधान अउ सदाचार सिखाथे,गणेश जी के लाली कपड़ा सजग अउ उर्जावान रेहे के सीख देथे Iहाथ मा गदा, चक्र, तलवार, अंकुश गणेश जी के ये शस्त्र बुराई अउ अज्ञानता ल लड़े के सीख देथेI


मंगल कारी देव तँय, पूरन करथस काज I

रिद्धि सिद्धि के देवता, गौरी के गणराज I

गौरी के गणराज, तोर जस दुनिया गावयँ I

करके दर्शन देव,सबो मनखे सुख पावयँ I

बाधा देथस टार, बिपत के तँय अधिकारी I

चरण-शरण मा माथ, देव तँय मंगलकारी II


गणेश उत्सव न केवल धरम जाति के विशेष तिहार ये, लोगन मन मा सामाजिक चेतना जगाय अउ चरित्र निर्माण करे के प्रेरणा देथेI गणपति हमर सुख दुःख कुशल क्षेम लाभ हानि संस्कार के पोषक हरे,येकर पूजन बिना संसार के सबो काम अधूरा हेI केहे गेहे न जउँन हा जइसन भाव ले गणेश जी ल पूजथे वोइसने वोला फल मिलथे I वोकरे सेती तो कहिथे न गणपति ल भक्ति भाव सन मन विचार ले सुमरबे त  बिगड़े सब काज बन जथे I


विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवां)

तीजा लुगरा*

 *तीजा लुगरा*


"कहां हस ओ सोहागा?एदे नोनी मन बर लुगरा बिसाए हॅंव।देख तो।"

गोबिंद बजार ले आते साठ अपन गोसाइन ल हुॅंत करावत पूछिस।

मुड़ मा हउंला बोहे सोहागा आइस अउ हउंला ला उतार के हाथ पोंछत लुगरा ला देख के कथे-"तें कइसे निच्चट लुगरा ला धरके ले आने हस ओ!!हर बहिनी साल भर ले तीजा के अगोरा करथे।मइके के चेंदरा बर।तीजा के लुगरा सिरिफ ओनहा नोहय।हर बहिनी के गरब हमाय रथे ओमा अपन भाई बर।हमुं काकरो बेटी हरन त सब समझथन।जा एला  तुरते बदल के लान।सौ दू सौ उप्पर परहघ तभो ले आनबे।तोर कना पैसा नी होही त मोर संदूक ले लानत हंव।"-सोहागा किथे।

"नहीं... नहीं...मोर कना रुपया हाबे।नी लागे।"काहत गोबिंद लुगरा ला झोला म धरिस अउ साइकिल ओटत दुकान जाए बर निकलगे। साइकिल के पैडल मारत ओहा मने मन खुश होवत राहय...में सोहागा ला ज्यादा महंगा वाले लाहूं त खिसियाही सोचत रेहेंव।फेर ओकर मन में पाप नीहे....मोर बहिनी मन बर मोर राहत ले अउ मोर बाद घलो एक लोटा पानी अउ तीजा के लुगरा के कमी नी होवय।


रीझे यादव टेंगनाबासा

व्यंग्य-घोण्डुल अउ गनेस

 व्यंग्य-घोण्डुल अउ गनेस

मनखे जात के सुभाव हे। जानय चाहे झन जानय, मानय चाहे झन मानय, ताने बर पीछु नई राहय। 

गनेस चतुर्थी के दिन जगह -जगह पारा -मुहल्ला म पंडाल तना गे। जे ठन गली ते ठन पंडाल। 

बिध्द के देवता गनेस के बुध नसा गे। सोच म पर गे- कती जाववँ ? 

परबुधिया मुसवा सुलाह दिस-ए लईका- पिचकामन डाहर कुछु मजा नइ हे। इन्कर तीर तो परसादे बर पइसा नइ राहय। लाड़ू कामा खवाही बिचारामन ? 

रोंठ मनखे मन मोठ चंदा पाथे । ओइसने बेवस्था घलो करथे। आखिर म सोच -विचारके दूनो बड़े चउंक के बडे मंडप म जाके बिराज गे। 

जइसे ही गनेस भगवान आसन म बिराजिस। मंडप के खालहे ले घोण्डुल दहाड़िस-अच्छा ! त तुमन फेर आगेव। दस -दस दिन ले ऐस करेबर। धरम के नाम म करे -धरे बर हम्चि भर मन तो हावन। 

फोकट म पाए त मरत ले खाए बर तुमन ल का हे ? तभे तोर पेट अतका अलकरहा बाढे़ हे ? अउ देख ए रेटहा बिलवा मुसवा ल। कइसे कान टेडे़ -ठढ़ियाए इहाँ अँड़ियाए हे ? 

अतका ल सुन मुसवा डर के मारे मंच के पीछू कुती लुका गे। घोण्डुल गनेस ल कहिथे- एती देख एती। मैं बेरोजगार गनेस उत्सो समिति के मुखिया अवँ। अकेल्ला छै हजार के बेवस्था करवाए हौं। उही म ले एक बोतल के अपन बेवस्था जमाए हौं। 

अइसे तो डेढ़- डेढ़ बोतल म मोर कांही ताग नइ हालय। उदबत्ती नइ जलय। फेर चल मनखे ल समे देखके काम चलाना चाही।

थोरिक चुप रहे के बाद लड़भड़ावत फेर कहिस -मोर तीर बोरा- बोरा डिग्री भराए -परे हे। तभो ले मैंहँ बेरोजगार हौं । जानथस ? 

एला कान ल टेड़े मुसवा पीछु कुती ले सुनत राहय। मन म कहिथे- बेरोजगार हस त जा न रोजगार दफतर म मरबे। ए मेर काबर मरथस ?

मुसुवा के मन के बात ल मंदहा घोण्डुल मथर डारिस। रटपीटाके आँखी ल नटेंरत अइसे अँटियावत उठिस के पुट्ट ले गिर परिस। मंडप के तीर -तखार म जुरियाए -सकेलाए जम्मो लइकामन खलखलाके हास भरिन। घोण्डुल समझिस मुसुवा हाँसत हे। 

धरा-रपटा कुला ल झर्रावत उठिस अउ खखुवाके गनेस ल कहिथे -देख ए तोर मुसुवा ल ! मोला कइसे बिजरावत हे ? मैंहँ अतेक बेर ले चुप रहेवँ। अब तोला भसेड़हुँच्। तैं का समझथस ? दाई -ददा के तीन चक्कर का लगा लेस त ,महिच् भर हववँ कहिथस ? 

हमला रोजगार दपतर के कइयो चक्कर हो गे। हमार कोनो पूछइया नइ हे। 

हाँ, फेर अतका हे। मैं गरीब हौं ते हौं। मोर पहुँच कम नइ हे। जानथस ? रइपुर भोपाल दिल्ली ल कोन पूछत हे। मोर पहुँच संसार के सबले उँच जघा हिमाले के फोंक तक हावय। कहूँ तोला मोर बात म अकीन नइ हे त तैं अपन ददा संकर ल पूछके देखबे। मैंहँ ओकर संग बइठके चिलम पिए हौं। पूछ कहाँ ? - हिमाले के फोंक म। जाने ? 

मैंहँ चाहवँ त अभ्भी ए पंडाले भीतर केडिया ले बडे कंपनी खडा कर देववँ। केडिया का हे मोर आगू म ? नान-नान भटठी के बल म दारू के बडे कंपनी हो गेवँ काहथे,...हूँ। 

गनेस सोचथे -अरे यार  ! ए कहाँ ले पेरूकराम आके मोरे पीछू पर गे। पंदरा-पंदरा दिन पहिली ले एकर चार महीना के दारू के जोगाड करे हौं। अउ एला देख ! मोरे संग अभरत हे। 

हमार कके -ददा मन बने हे यार ! ददा संकर हँ दुनियादारी के चक्कर ले बाँचे बर हिमाले चढ़ गे हे अउ कका बिसनू हँ समुन्दर के बीच म लात ताने सुत गे हे। एक अकेल्ला मोला झेले बर भेज दे हे।

बात ल पलटत गनेस कहिथे - यार घोण्डुल ! अबड़ बेरा हो गे बिराजे। पेट हँ हफ -हफ करथे। कुछु खाए -पिए के बेवस्था करबे के बस ? 

घोण्डुल ओतके ल खोजत रहै। फट कहिथे - मैंहँ बाजू वाले होटल म तोर अउ तोर मुसवा बर मिरची भजिया के आडर दे डरे हौं। तैं मोर बर पौवा मंगा डर। हें हें ........हें हें। तहूँ अच्छा चऊज करथस महराज ! अतेक बढ़ भगवान होके। 

इहाँ घरो -घर पंचाइती माते हे। बेरोजगारी बाढ़ गे हे। अउ उपर ले ए मंहगई हँ अपन पगड़ी़ म लपेट -लपेट के जनता के घेंच ल कँसत हे। तोला हरियर सूझे हे। ए तोर कारी माटी के कनफड़ा ल पूछ। इही हँ गाँव -गली -पारा भर ल छानत रहिथे। बाहिर -भीतर सब के बात ल जानथे। 

काली मोर घर गइस। कुछु नई पाइस त अनदेखना हँ मोर बोतल ल उन्डा दिस। ओतको म मन नई माढ़िस त मोर चड्डी ल चुनके आ गे। मैंहँ अब कुछु नई जानवँ। तोला करना हे त मोर आधा पाव के जुगाड़ ल कर। नईते सुख्खा पंडाल तरी मुसुवा दोनो भूखे - पियासे मरत रहव। अतका कहिके घोण्डुल पंडाले तरी घोलन्ड गे। 

ओतके बेरा अरोस -परोस के माई लोगन मन पूजा करे बर आए राहय। उन्कर हाथ हँ थारी धरे आरती करत राहय त मन हँ घोण्डुल कोती जाय राहय - अइ ! आज घोण्डुल हँ कइसन पी डरे हे दई ! 

ओमन ल खाना के बनावत ले, बिहान भर पानी के भरत ले गोठियाए के बहाना मिलगे। 

थोरिक पीछू घोण्डुल के आँखी खुलिस। देखथे गनेस जी तीरन एक ले सेक आइटम रखाए हे। फूल ,पान ,केरा, खीरा, मिठई। उठके लड़भड़ावत गनेस तीर जाथे। 

पूजा के थारी म रखाए दू ठन केरा ल धर लिस । जनम के खखाए -भूखाए कस गपागप मुँह म हुरेस लिस।

तेकर पाछू हाथ जोड़के कहिथे - हमार देख -रेख करइया। पेट भरइया। अउ कोन हे कहिथस ?

तहींच तो हावस भगवान !

धर्मेन्द्र निर्मल 

9406096346

फोटू छपवाय के लुकलुकी " (व्यंग्य)

 " फोटू छपवाय के लुकलुकी "

                       (व्यंग्य)

           रोटी,कपड़ा अउ मकान हा मनखे के मूल जरूरत आय फेर मनखेपन के सुग्घर मान बर स्वास्थ्य,शिक्षा,सुरक्षा घलो मिंझरे हवय। अउ संगे-संग मनोरंजन घलो। अब के समे मा ये मनोरंजन हा हमर जिनगी मा अइसे समागे हावय जइसे रिश्वतखोर मन के सगुरिया रूपी जेब मा खुरचन पानी अइसे समा जाथे कि कतकोन नदिया नरवा मन उलेन्डा पूरा मारत खुसर जथे कि ई.डी,सी.बी.आई,जइसन जांच एजेंसी मन के हाल हा अर्जुन कस हो जाथे जेन हा लड़ई-भिड़ई नइ करँव काहत अपन हथियार डार देय रिहिस। फेर घूसखोरी के लहरा ले घर परिवार लोग लईका बर आनी-बानी के जिनिस आवत रहिथे। जेकर ले घर वाली के मुस्की मुस्कान अइसे जनाथे जइसे माधुरी दीक्षित प्रियंका चोपड़ा हा लोटा भर पानी मढ़ा के सुवागत करत हें।अईसन सुख ल अध्यात्मवादी मन क्षणिक सुख कहिथें। परम सुख तो वो आय जेकर ले इहलोक अउ परलोक दूनों सुधर जाथे। इहि बात के उदिम मा लगथे फोटो खिंचवई के नवा संस्कार जनम धरे होही। छट्ठी-बरही,बर-बिहाव होय चाहे गोष्ठी संगोष्ठी। कोन्हो भी कार्यक्रम मा फोटू खिंचवाके सोशल मीडिया मा डारे ले अलौकिक सुख जनाथे।   

            आस्था,संस्कार,सत्संग अउ आने-आने चैनल मा अवइया बड़े-बड़े मुनि महात्मा मन ला ये विषय ला अपन सत्संग मा जरूर जघा देना चाही ? फेर अइसे लगथे वहू मन इही परम सुख ला भोगत फोटू खिंचवऊ फोटू छपवउ संस्कृति सागर मा उबुक-चुबुक होवत हें। फेर आस लगे रहिथे कि कभू फोटू खिंचवउ के विषय म ग्यान अमरित मिल पातिस त हमर जईसन नान्हे मति मन ला पराज्ञान लब्ध होय ले चौरासी लाख योनि के चक्कर ले मुक्ति थोरिक सरल हो पातिस।काबर येकर वोकर रेख ला छोट करे के उदिम मा हरि भजन तो अइसे नंदागे हे जइसे " राजनीति मा परमारथ भाव अउ जन सेवा। कतको परयास करव "ढूंढते रह जाओगे।" 

          गोसाई तुलसीदास जी लिखिन-

बारि मथें घृत होइ बरु,  सिकता ते बरु तेल।

बिनु हरि भजन न भव तरिअ यह सिद्धांत अपेल॥

        फेर फोटू खिंचाऊ सोशल मीडिया डारू मनखे मन के एकेच सिद्धांत हावय-

सबो के  बीच आय बर, जहू- तहू ल ढकेल।

फोटू देखत मगन हिय,फेसबुक ट्विटर मेल।।

       सामूहिक फोटू खिंचवाय के बेरा अपन ले जादा गुनी अनुभवी मनखे ला धकियावत तिरियावत बीचों-बीच जघा बनाय बर पुरखन ले मिले संस्कार,यम,नियम,संयम ला छर्री-दर्री कर पाना सबो मनखे के वश मा कहाँ हे? ये उदिम ला जियत मनखे कभू नइ कर सकय। खुद कतको फोसवा रहँय फेर खुद ला सबले बड़े 'माननीय' मनई बड़ जबर 'विल पावर' इच्छाशक्ति  के पहिचान आय। खुद कतेक पानी मा हावन,खुद जतेक जानबो कोई दूसर मनखे नइ जान सकँय,भीतरौंधी बइठे आत्मा सदा जनवात रहिथे रे बाबू! काबर मटमटावत हस? लाज बीज नइ लागे का रे तोला? बड़े-छोटे के खयाल हवय कि नइहे रे तोला? फेर अईसन भाव पैदा नइ होवन देना,कोन्हो होई गे त ओकर टोंटा ला मसक देना येहा सबो मनखे के वश मा कहाँ होथे? फोटू खिंचवा के अखबार मा छपवाय के लुकलुकी के समानता नवा बहुरिया के शुरुआती प्रयास ले कभू कम नइ हो सकय,जे घेरी-घाँव अपन सास-ससुर के पूछ-परख बर चाय बनाव का मम्मी ? सब्जी अउ लाँव का पापा जी? प्याज निमऊ ठण्डा पानी लागही का पापा जी?  समय मा टिफ़िन ले लेबे जी? काहत अपन गोसईया ला काम मा जावत बेरा घेरी-बेरी टाटा बाय-बाय करत रहिथे।''दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे" फिलिम कस चलत दृश्य ला घर भर के सदस्य मन देख-देख लजावत रहिथें। दाई-ददा मन मने-मन सोंचथे राम जाने! येकर आय ले पहिली हमर बेटा सदा भूख-दुख मरत रिहिस होही का भगवान ? अईसन किसम के मनखे मन हा लोगन के तारीफ पाय बर अतेक पुचपूचावत रहिथे जइसे नारद मुनि हा बेंदरा मुँह धरे विश्व मोहिनी संग बिहाव करे बर आघू-पाछू मटमटावत रिहिन। भविष्य मा कोनो किसम के पुरुस्कार,इनाम,सनमान, चुनाव टिकिट के जुगाड़ बर अपन प्रोफाइल के वजन बढ़ाय बर मनखे पांच रूपिया पाकिट म मिलईया हल्के-फुल्के ले हल्का हो जाथें। राम जाने!

       फोटू छपवऊ मनखे मन अउ एक ठन बात ल सोच-सोच के सण्डेवा काड़ी कस दुबरावत सुखावत रहिथंय कि मरे के बाद उँकर मरे के समाचार हा कतेक ट्रेंड करही? ये समस्या के समाधान बर ब्रम्हा जी ला अपन सिरजन के नियम मा अपडेशन जरूर करना चाही। मनखे के मरे के चार-छह घण्टा बाद कम से कम एक घण्टा 'टाइम आउट' के समे मिलना चाही, तेकर ले देख सकँय कि वोकर मरनी के समाचार सोशल मीडिया मा कतेक कोस के यात्रा करिस? उँकर जिनगी के महत्तम के बखान मा कोन काय लिखिन?

 कोन-कोन उन ला श्रद्धाजंलि देइन?दू चार बछर पुण्यतिथि मनाहीं का नइ मनाहीं? उँकर नांव मा चौंक, चौराहा,गली सड़क के नामकरण हो पाही के नहीं? यहू बात के अंदाजा मरघट मा बइठे लोगन के बातचीत ले हो जाही। काबर यहू संसो के कारन अईसन मनखे जियत-जियत मा राहेर काड़ी कस होत रहिथें? ये सब के समाधान इही अतिरिक्त  'टाइम आउट' के बेरा मा हो सकत हावय। मरईया मनखे खुद अपन आँखी ले लोगन के भाव ला देखत अपन आत्मा ला शांत कर सकत हें। मरघट्टी मा जुरियाय सकलाय मनखे मन ला आखरी राम रमुउवा करत अउ अपन जिनगी के बारे में दू शब्द गोठियाय के मौका मिले ले अपन फोटूछपिया आदत के महत्तम माटी देवईया मन ला 'दू टप्पा' मा बतावत, भगवान ले मिले परमानेंट डेथ सर्टिफिकेट देखत, सुख चैन पावत, अपन आँखी ला मूंद सकत हें। वोला मिले 'टाइम आउट' ले एक फायदा जरूर होही कि भटकत आत्मा बर गरुड़ पुरान करवाय साँकर दाहरा,राजिम, प्रयागराज,काशी जवई-अवई के खरचा अऊ समे बाँच जाही।

             फेर जेन मनखे के आत्मा ला जियत-जियत शांति नइ मिल पाय हवय त मरे बाद शांति मिल पाही ?अईसन सोचना दूर के कौड़ी कस जनाथे? जइसे ये बियंग लेख ला छपवाय के लुकलुकी मा मेल करई ...?

          रोशन साहू 'मोखला'(राजनांदगांव)

                    7999840942

पुरखा के सुरता 5 सितंबर - 96 वीं जयंती मा विशेष लोक संगीत सम्राट- खुमान साव

 पुरखा के सुरता 


5 सितंबर - 96 वीं जयंती मा विशेष 


लोक संगीत सम्राट- खुमान साव 




कोनो भी अंचल के संस्कृति वो क्षेत्र के पहिचान होथे. येमा वोकर आत्मा ह वास करथे. जब अपन संस्कृति ल जन मानस समाज ह कोनो मंच म प्रस्तुति के रूप म देखथे त ऊंकर हिरदे म गजब उछाह भर जाथे.   हमर छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति के अलगे पहिचान हे. येला जन जन तक बिखेरे म जउन महान कलाकार मन के हाथ हे वोमन म स्व. दुलार सिंह साव मंदराजी, स्व. दाऊ रामचंद्र देशमुख, स्व. महासिंग चन्द्राकर, स्व. हबीब तनवीर, स्व. देव दास बंजारे, स्व. झाड़ू राम देवांगन, श्रीमती तीजन बाई, स्व. केदार यादव, स्व. लक्ष्मण मस्तुरिया,स्व.शेख हुसैन, झुमुक दास बघेल, निहाई दास मानिकपुरी, ममता चन्द्राकार, कविता वासनिक, पूना राम निषाद, लालू राम साहू, स्व. मदन निषाद, स्व. गोविन्द निर्मलकर,माला मरकाम, फिदा बाई मरकाम, सूरुज बाई खांडे, चिन्ता दास बंजारे, रामाधार साहू, दीपक चन्द्राकार, शांति बाई चेलक, स्व. भैया लाल हेड़ाऊ,स्व.गंगा राम शिवारे, बद्री विशाल यदु परमानंद,शिव कुमार तिवारी, मिथलेश साहू, घुरवा राम मरकाम, डॉ. पीसी लाल यादव, शिव कुमार दीपक, नवल दास मानिकपुरी अउ संगीतकार श्रद्धेय स्व. खुमान साव के नांव ल आदर के साथ लेय जाथे. स्व. साव जी ह अपन साधना के बल म छत्तीसगढ़ी लोक संगीत ल खूब मांजिस. हमर लोक गीत ल पश्चिमी अउ फिल्मी संस्कृति ले बचा के माटी के खुशबू ल बिखेरिस. खुमान साव ह छत्तीसगढ़ के नामी कवि अउ गीतकार मन के गीत ल संगीतबद्ध कर के चंदैनी गोंदा के मंच म प्रस्तुति दिस. 

   छत्तीसगढ़ी लोक संगीत बर समर्पित खुमान साव के जनम 5 सितंबर 1929 म राजनांदगॉव के  ग्राम खुर्सीटिकुल (डोंगरगॉव) म होय रिहिस. बाद म ठेकवा (सोमनी )म जाके बसगे. वोकर बाबू जी के नांव टीकमनाथ साव रिहिस. खुमान ल लोक गीत- संगीत के घर म सुग्घर वातावरण मिलिस काबर कि वोकर बाबू जी ह हारमोनियम बजाय. लइका खुमान ह घर म हारमोनियम बजाय म धियान लगाय. फेर वोहा रामायण मंडली म हारमोनियम बजाय ल शुरु करिस. खुमान ह नाचा के भीष्म पितामह स्व. मंदराजी दाऊ के मौसी के बेटा रिहिस .मंदरा जी दाऊ ह खुमान ल हारमोनियम बजाय बर प्रोत्साहित करे. खड़े साज म वोहा  पहिली बार 13 साल के उमर म बसन्तपुर (राजनांदगॉव) के नाचा कलाकार मन सँग हारमोनियम बजइस. मंदरा जी दाऊ द्वारा संचालित रवेली नाचा पार्टी म वोहा 14 साल के उमर म सामिल होगे. साव जी नाचा म हारमोनियम म लोक धुन के सृजन कर छत्तीसगढ़ के माटी के महक ल बिखेरे के जब्बर काम करिस. साव जी ह बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त करे रिहिन हे. वोहर म्युनिसीपल स्कूल राजनांदगॉव म शिक्षक रिहिन हे. 

    साव जी ह सन 1950-51 म राजनांदगॉव म आर्केस्टा पार्टी  चलाइस. छत्तीसगढ़ के कतको शहर के सँगे -सँग महाराष्ट्र अउ मध्यप्रदेश म आर्केस्टा के प्रस्तुति दिस. धीरे से वोकर मन ह आर्केस्टा डहर ले उचट गे. 1952 म सरस्वती कला मंडल के गठन करिस. खुमान साव जी के प्रतिभा ल देखके दाऊ रामचंद्र देशमुख ह अब्बड़ प्रभावित होइस. 1952 म दाऊ रामचंद्र देशमुख के गांव पिनकापार (बालोद )म मंडई के समय म नाचा होइस. ये कार्यक्रम म देशमुख जी हा साव जी ल हारमोनियम बजाय बर बुलाइस.1953 म घलो अइसने होइस.ये कार्यक्रम के अइसे प्रभाव पड़िस कि रवेली अउ रिंगनी नाचा पार्टी के विलय होगे. काबर कि येमा रवेली अउ रिंगनी पार्टी के संचालक मन ल छोड़ के बाकी नामी कलाकार मन ह आमंत्रित होय रिहिन हे. लोक संगीत अउ कला डहर कुछ अलग काम करे के इच्छा के सेति वोहा 1960 म शिक्षक सांस्कृतिक मंडल के गठन करिस. येमा भैया लाल हेडाऊ, गिरिजा सिन्हा, रामनाथ सोनी जइसे बड़का कलाकार मन शामिल होइस. 

  साव जी ह सबले पहिली स्व. रामरतन सारथी के 3 गीत मोला मइके देखे के साध, सुनके मोर पठौनी परोसिन रोवन लागे, सोन के चिरइया बोले ल लयबद्ध करिस. 1971 म आकाशवाणी रायपुर म वोकर संगीत निर्देशन म गाना रिकार्ड होइस .भैया लाल हेड़ाऊ अउ दूसर कलाकार मन ह गीत गाइस. 

दाऊ रामचंद्र देशमुख ह रेडियो म खुमान साव अउ ऊंकर कलाकार मन के गीत ल सुनिस त साव जी ल अपन गांव बघेरा बुलाइस. वो समय दाऊ जी ह छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार मन ल सकेल के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उदिम करत रिहिस. साव जी ह दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा स्थापित चंदैनी गोंदा म हारमोनियम वादक के रूप म जुड़गे. चंदैनी गोंदा म साव जी ल अपन प्रतिभा देखाय के सुग्घर मौका  मिलिस. चन्दैनी गोंदा के प्रसिद्धी म संगीत पक्ष के गजब रोल रेहे हे. येकर श्रेय खुमान साव ल जाथे जउन ह अपन साधना के बल म नामी कवि /गीतकार लाला फूलचंद, द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, रविशंकर शुक्ल, पवन दीवान, प्यारे लाल गुप्त, कोदू राम दलित, राम रतन सारथी, लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत ल संगीतबद्ध करके चंदैनी गोंदा म प्रस्तुति दिस. साव जी ह मोर संग चलव रे..., धन धन मोर किसान, घानी मुनी घोर दे, छन्नर छन्नर पैरी बाजे, चिटिक अंजोरी निर्मल छइंहा, मोर धरती मइया जय होवय तोर, पता ले जा रे गाड़ी वाला, बखरी के तुमा नार बरोबर, मोर खेती खार रुमझुम जइसे कतको छत्तीसगढ़ी गीत ल संगीत दिस. ये गीत मन हा अब्बड़ लोकप्रिय होइस अउ आजो जनता के जुबान म बसे हे. छत्तीसगढ़ी लोकगीत गौरा गीत, सुवा गीत, बिहाव गीत, करमा ये मन ला लयबद्ध करे म ऊंकर गजब योगदान हवय.


 लोक संगीत के ये महान

 कलाकार से मोर पहिली भेंट 17 मार्च 2002 म दिग्विजय स्टेडियम के सभागार म 

आयोजित साहित्यिक कार्यक्रम म होय रिहिस. 

दूसरइया भेंट मानस भवन दुर्ग मा आयोजित छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के प्रांतीय अधिवेशन म होइस .इहां के एक संस्मरण बतावत हवँ. कार्यक्रम ह चालू नइ होय रिहिस. साहित्यकार /कलाकार मन के पहुंचना जारी रिहिस. नामी साहित्यकर दानेश्वर शर्मा जी, खुमान साव जी सहित पांच -छै साहित्यकार स्वागत द्वार के पास खड़े होके एक दूसर ला पयलगी /जय जोहार करत रेहेन. इही बीच एक नव जवान कवि ह अइस अउ साव जी ल नइ पहिचान पाइस. हमर मन ले वो नव जवान कवि ह पूछे लागिस कि ये सामने म खड़े हे वोहा कोन हरे. मेहा  साव जी के परिचय बताय बर अपन जबान खोलत रेहेंव त साव जी ह मोला रोक दिस अउ ओकर से पूछिस कि पहिली तँय ह बता तैंहा कोन गांव के हरस. नव जवान सँगवारी ह बोलिस - मेहा बघेरा (दुर्ग) के रहवइया अंव. 

साव जी ह बोलिस कि- तैंहा बघेरा के हरस तब तो मोला तोला जानेच ल पड़ही. अउ मोर नांव नइ बता पाबे त तोला मारहू किहिस ". ये बात ल सुनके वो नव जवान ह सकपकागे!

 वइसे मेहा साव जी के अख्खड़ स्वभाव ले परीचित रेहेन त देरी नइ करत वोला बतायेंव कि - यह महामानव चंदैनी गोंदा के संचालक आदरणीय खुमान साव जी हरे. अइसन सुनके वोहा तुरते साव जी ल पयलगी करिस. जे साव जी ह वोला मारहू केहे रिहिस वोहा वोकर मुड़ी म हाथ रखके आशीर्वाद प्रदान करिस. ये प्रसंग म हमन मुस्कात रहिगेन. 

  फेर साव जी ह नम्र स्वभाव ले वोकर से किहिस कि - तैंहा बघेरा रहिथो केहेस तेकर सेति केहेंव कि मोला जाने ल पड़ही .फेर वो नव जवान ल पूछिस कि दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ल जानथस? श्री विश्वंभर यादव मरहा जी ल जानथस? त वोहा किहिस कि हव दूनों ल जानथव. 

साव जी ह बोलिस कि महू ह दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के घर रिहर्सल मा आंव जी .तेकर सेति तोला केहेंव रे बाबू कि मोला तोला जाने ल पड़ही. 

ये घटना ले पता चलथे कि साव जी ह नारियल जइसे ऊपर ले

कठोर जरूर दिखय पर अंदर ले गजब नरम स्वभाव के रिहिस. 


साव जी ह  हमर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के वार्षिक समारोह म चार बेर पहुंचिस. 2012 म करेला (खैरागढ़) भवानी मंदिर मा आयोजित कार्यक्रम म, 2013 म सुरगी के पंचायत भवन म, 2015 म सुरगी के कर्मा भवन म अउ 2016 म  सुरगी शनिवार बाजार चौक के मुख्य मंच मा आयोजित कार्यक्रम म पहुंच के हमन ल कृतार्थ करिस. 2015 म खुमान साव जी ह साकेत सम्मान स्वीकार कर हमन ल गौरवान्वित कर दिस. वर्ष 2016 म 87 साल के साव जी के चयन संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार -2015  बर चयनित होय के खुशी म  साकेत साहित्य परिषद् सुरगी द्वारा नागरिक अभिनंदन करे गिस. 

    2015 अउ 2016 म सम्मानित होय के बेरा म साव जी ह किहिस कि -" मोला जनता से जउन सम्मान मिलथे उही मोर बर सबले बड़का सम्मान हरे. आज तक मेहा राज्य सम्मान अउ पद्म श्री बर आवेदन नइ करे हवँ न अवइया बेरा म करव! हां शासन ह खुद मोला सम्मान देना चाहत हे त दे सकथे. छत्तीसगढ़ के लाखो जनता के प्रेम ह मोर बर सबसे बड़े पुरस्कार हरे. "

   हमर छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के अइसन महान कलाकार ह 9 जून 2019 के दिन 89 साल के उमर म ये दुनियां ल छोड़ के स्वर्गवासी होगे. 


          ओमप्रकाश साहू "अँकुर "                सुरगी, राजनांदगॉव (छत्तीसगढ़)

सन्नाटा चीर के तूफान पैदा करइया संगीत सम्राट - खुमान साव

 सन्नाटा चीर के तूफान पैदा करइया संगीत सम्राट - खुमान साव

लोक कला अउ संस्कृति के गढ़ छत्तीसगढ़ के संस्कारधानी राजनांदगाँव तीर ठेकवा गाँव म जनमें पद्मश्री खुमान साव ल कोन नइ जानत होही। जेकर करम छाँड़ दे होही तेकर बात अलग हे। चिन्हत भले नइ होही फेर जानत तो होबे करही। महूँ हँ नाम भर सुने रहेंव। प्रत्यक्ष रूप ले मिले नई रहेंव। पढ़े रहेंव सामान्य ज्ञान के किताब म। छत्तीसगढ़ का संगीत सम्राट किसे कहते है ? वो वस्तुनिश्ट प्रश्न के उत्तर रिहिसे - खुमान साव।

मोला एकदम सुरता हे। मोर पहिली किताब छत्तीसगढ़ी गजल संग्रह ‘‘कोजन का होही‘‘ के विमोचन होवइया रिहिसे। दिन परे रिहिसे शनिच्च्र तारीख 21 मार्च 2015. विमोचन के कार्यक्रम मोर पैतृक गाँव धोबी खपरी ले 6 कि.मी. दूर थानखम्हरिया म निराला साहित्य समिति के तत्वावधान म होना रिहिसे। मैं समिति के सदस्य तभो रहेंव अभी घलो हौं। दूरिहा में हौं तभो उन मन मोला नइ छोड़ पावत हे अउ मोर प्रति उन्कर मया मोह के बँधना ल मैं टोर नइ पावत हौं। कोनो कोनो बेरा ए मया के बँधना ह जादा कसा जथे त करलाथे जरूर फेर वोतके सुहाथे घलो।

समिति के वार्शिक सम्मेलन होना रिहिसे। समिति के गठन तिहार के संगे संग हमर समिति हँ वो दिन साहित्य अउ कला दूनो क्षेत्र के एक एक पूरोधा मन के सम्मान करे के निर्णय ले रिहिन हे। साहित्य ले बिलासपुर वाले श्री विनयकुमार पाठक अउ संस्कृति ले हमर छत्तीसगढ़ के शान मान अउ जान पद्मश्री खुमान साव ल सर्वसम्मति ले चुने रहेन। अहसे तो वार्शिक सम्मेलन म हर साल एक साहित्यकार के सम्मान समिति के गठन 1 जनवरी 1995 से चले आवत हे। ए दफे हमर समिति के दूसरइया बछर रिहिसे जेमा कला के क्षेत्र ल सामिल करे रहेन। हमर समिति के तरफ ले लोक कला के क्षेत्र म सम्मान पवइया पहिला कलाकार खुमान साव जी भले नोहय। फेर पहला सम्मान के हकदार वास्तव में उहीच रिहिसे। 

पहिली बछर सम्मान के नेवता नरियर धरके जब हमर समिति के संस्थापक सदस्य राजकमल दर्रिहा अउ हमार मंच संचालक सुमधुर सुर के धनी महराज अनिल तिवारी जी जब साव जी तीर गइन त साव जी कहिस कहिथे- मोर तो नागपुर म कार्यक्रम हे। मैं ओला नइ छोड़ सकंव। तुमन चाहौ त कविता वासनिक के सम्मान कर सकत हौ। उहू तो ए सम्मान के ओतके हकदार हे। खुद के सम्मान ल अतेक असानी ले उही तियाग सकथे जेन अपन कला अउ संस्कृति के रक्षा बर बाना उचाए रहिथे। जेकर तीर अतका चउँक चाकर छाती अउ वो छाती म ओतके बड़ करेजा हो सकथे। कहूँ साव जी सम्मान के भूखे होतिस त हमर कार्यक्रम के दिन तिथि के दिशा दशा ल बदले के प्रयास कर सकत रिहिसे। जइसे के आजकल देखे बर मिल जथे। फेर वोह निसंकोच एके भाखा म कविता वासनिक के नाम टिप दिस। जबकि वासनिक वो समें साव जी के संग्था चंदैनी गोंदा ले छिटक बिदक गे रिहिसे। कार्यक्रम अउ संस्था ले अलग कार्यक्रम चलाना माने आज के समे म बहुत बड़ बात, परिस्थिति अउ भेद ल इंगित करथे। फेर साव जी म अलगाव दुराव अउ मन मलीनता के वो बात चिटिक नइ दिखिस। साव जी अतेक सरल, सहज अउ विशाल हदय के धनी रिहिसे। 

साव जी ल तो कार्यक्रम म जानच् रिहिसे। ओमा गुरतुर गोठ डॉट काम के संपादक श्री संजीव तिवारी जी के घलो जाना तय रिहिसे। चूँकि वो पइत मैं कुरूद (भिलाई) म बसत रहेंव। मोर किताब के विमोचन म मोरे जाना ढुलमुल ढइया होवत रहय। जाना तो रिहिसे फेर कइसे जाना हे ? जाके लहुटना तको हे। मैं इही असमंजस के झूलना म लटके झूलत रहेंव। मैं अपन परेसानी के चर्चा तिवारी जी तीरन करेंव। ओकर मोर चर्चा फोन म होते रहय। जाएच के दिन तिवारी जी उदुपहा मोला बताइस - मैं ह साव जी संग जाहूँ। वोह ठेकुवा ले दुरूग आही। दुरूग ले संघरा थानखम्हयि निकलबो। तिवारीजी के गोठ सुनके मैं तो अल्लर भइगेव। सोचे लगेंव - तिवारी जी के बनउका तो बनगे। मही फिसलगेंव। तभे तिवारीजी आगू बताइस। कहिस -सावजी के कहना हे कि मोर तीर चारचकिया हे। जाना सबो झन ल उहेच् हे । जगा घला बाँचही। ओमा चार झन जावन कि दूए झन पेटरोल तो ओतकेच लगना हे। निर्मल भर काबर छूटै। ओला मोर संग जाए म तकलीफ नइ होही त हमर संग चल सकत हे। अंधरा खोजै दू आँखी। मोर तो परे परे बनगे।

नियत समे अउ  ठउर म हमन दुरूग म सकलाएन। सावजी अपन बताए बेरा म बिलकुल  पहुँच गे। मै देखेंव - ओतका सियान अउ अतेक धियान। ओकर उमर लगभग 84 बछर रिहिस होही। तभो ओकर समे के पाबंद पैबंद ल माने बर परही। 


साव जी संग ये मोर दूसरइया भेंट रिहिसे । मोला थोक थोक सुरता हे। गणेशपक्ष के समें रामनगर  सुपेला म साव जी द्वारा निर्देशित कार्यक्रम ‘‘चंदैंनी गोंदा‘‘ के आयोजन रिहिसे। वो पइत मोर ससुर श्री सुमन लाल जी निर्मल हॅ ओमा उद्घोशक रिहिसे।  वो पइत मोर रहना गाँव म होवत रिहिसे। उही समे मै कुरूद गए राहॅव। मोर साला संग चंदैनी गोंदा देखे के कार्यक्रम तियार होगे। जब रामनगर पहुॅचेन त ससुर जी ले मिलेन। मिलेन ए सेती काबर कि उन्कर कार्यक्रम गणेश पूजा ले चालू होवय तेन सरलग दसरहा ले देवारी तक राहय। ए बीच गाँव घर म उन्कर दर्शने दुर्लभ हो जाय। जब ससुरजी ले मिलेव त वोह साव जीले मोर परिचे करावत कहिस - एहँ मोर दमांद ए। साव जी एके बात पूछिस -दीप्ति इहाँके गुरूजी ? मैं सोंचते रहिगेंव। चूँकि वो कार्यक्रम के बेरा रिहिसे। त मिलना घलो स्वाभाविक औपचारिक रिहिसे। तभो साव जी के तीक्ष्ण बुध्दि ल देखौ। वो हँ अपन संगी संगवारी सहकर्मी मन के घर परिवार के अतेक भीतर तक पता राखय। तभे तो वोह मोर श्रीमती के नाम ल फट्टे ले दिस। नइ तो ओ समें गुरूजी के तीन बेटी के बिहाव होगे रिहिसे जेमा मै दूसरा नंबर के दमांद हरंव अउ मोर बिहाव पइत मोर सारी के घलो बिहाव होए रिहिसे। 

तो ए पइत हमर दूसरइया भेंट रिहिसे। गाड़ी म बइठेन त बइठते साथ तिवारी जी मोर ले किताब माँग के सावजी ल देवत कहिस -उही कार्यक्रम म ए किताब के तको विमोचन होवइया हे सर। सावजी ओती किताब ल झोंकिस अउ एती मोर घुरघुरी चढ़गे। वो ठहिरिस संगीत सम्राट अउ मोर किताब गजल संग्रह। पता नहीं कब का पूछ देही। कुछ दूर तक गाड़ी भीतर सन्नाटा गूँजत रिहिस। 

गाड़ी सरपट दउँड़त रिहिस। थोरिक देर बाद अपने हँ सन्नाटा ल थाम के कहिस- तैं गाथस घलो का धर्मेन्द्र ? मै कहेंव - जी नहीं। मै सोंचते रहेंव के अब एकर हरमुनिया चरपराही अउ एती मोर तबला बदबदाही। बदबदाही ए सेती काबर के वो बेरा ओकर आगू म मैं न कुछू बोले के लाइक रेहेंव न कुछू बोले के स्थिति म। फेर गजब जल्दी मोर शंका कुशंका के दीया चुमुक ले बूझा गे। सिरिफ अतके अउ पूछिस - तोर ससुरार कोन गाँव ए ? ससुरार छोड़ सब जानकारी मोर किताब के पछीत म लिखाएच रिहिसे। इही भर बाँचगे रिहिसे। बाँचे बात ल पूछके सावजी अपन जानकारी के साज सवाँगा ल सजा लिस होही। अइसे जतका मै ओला अभी तक समझ-परख पायेव तेन हिसाब से ओकर सुभाव के मुताबिक मोर अनुमान हे। बाकी का सहीं का लबारी उही जानय। 

तेकर बाद तिवारी जी के साथ रस्ता म बहुत देर तक गोठ बात होवत रिहिसे। हवा के सरसराहट अउ थोरिक कमजोर घ्राण शक्ति के चलते मैं जादा नइ सुन पाए औं फेर अतका बजुर सुरता हे के सावजी हर लता के संग सिरकत करे हे। नागपुर म रफी के कार्यक्रम म संगीतकार के रूप म संगत दे चुके हवय। अइसे वोह बतावत जावत रिहिसे। कुछ दूर तक वातावरण फेर शान्त होगे। गाड़ी भर ह अपन दफड़ा ल फड़फड़ावत दउँड़त राहय। 

मोला अच्छी तरह सुरता हे ओला पहिली मुलाकात म तको अइसने देखे रहेंव जइसने अभी देखत हौं - सादा पहिराव ओढ़ाव। बस बंगाली पैजामा। कोई नवीनता नहीं कोनो बदलाव नहीं। घर अउ देस दुनिया बर उही कपड़ा रंगमंच बर उहीच्। रिगबिग मोर चंदैनी गोंदा। सदा सुहागी निसदिन हरियर।

जावत खानी चाहा पीए खातिर साजा म रूकेन। उहॉ रामनाथ साहू तबलाहा हे। सावजी के अंधभक्त। मैं ओकर तबला सुधारक दूकान ले जब ओला फोन करके बताएँव त सावजी के दर्शन बर 20 किमी. दूरिहा कोई गाँव ले अपन काम ल छोड़के गिरत अपटत आगे। साजा के तत्कालीन विकासखण्ड शिक्षाधिकारी राज सर घलो साव जी के परमभक्त। रामनाथ हमन ल राजसर के घर लेगे। परिचय परम्परा अउ क्षेम कुशल के बाद राजसर अपन गीत के डायरी ल सावजी ल सौंप दिस। जेला वो ह बड़ धियान लगाके पढ़े लगिस। पढ़िस भर नहीं दिल खोलके तारीफ घला करिस। 

तब तक नाश्ता आगे। जब मेडम नाश्ता लेके आइस। सावजी ओकर ले खोदर खोदर के पूछे लगिस- तोर मइके कहाँ हे ? के भाई बहिनी हौ ? तोर ददा का करथे ? भाई मन का का करथे ? उन्कर ससुरार कहाँ हे ? इही बीच अपन बहू बेटा के बारे म बतावत घलो जावव। जेकर ले कोनो कोने रिश्तादार के गाँव एके  निकल जाय या नहीं तो एके तीर म निकल जाय। एकर ले जुराव के एहसास होय लगय। वो समय साव जी के प्रश्न अउ मेडम के उत्तर ल सुनके अइसे महसूस होय लगे रिहिसे कि जना मना एमन तइहा के मिलत भेंटत आवत एके घर परिवार के मनखे ए का ? मेडम के चेहरा अउ हाव भाव ले वो अपनत्व  खुलापन अउ लगाव के खुशी साफ साफ दिखब झलकब म आवत रिहिसे। आखिर म छत्तीसगढ़ माटी महतारी ले जुड़े, नारी मन के मया पिरीत अउ अपनत्व के भाव भरे प्रश्न - का साग राँधे हस ? हँ सबो झन ल मया के दाहरा म बोर के उबुक चुबुक कर दिस। उप्पर ले साव जी एक ठिन बड़े जन अउ मोटरा मड़ादिस ताकि वो मेडम ये मया म बँधाएच् राहय। कहिस - अउ दफे आहूँ त तोर हाथ के राँधे खाए बिना नइ जावँव। माने साव जी के बोले के लहजा, ओकर शिश्टता, सौम्यता अउ सभ्यता संगे संग संगीतमय खनखनावत मीठ भाखा हँ कोनो ल भी सम्मोहित कर डारत रिहिसे त मेडम हँ कइसे नइ मोहातिस। हमन तो खैर मोहाए बँधाए दुरूग ले जातेच् रेहेन। 

सम्मान अउ विमोचन कार्यक्रम के निपटते ही कवि सम्मेलन के कार्यक्रम ल बीचे म धकिया के हमन तीनों मंच ले उतर गएन। अउ दुरूग बर रवाना हो गएन। दुरूग के आवत ले नहीं नहीं म रात दू बजइया रिहिस होही। रस्ते म साव जी बताइस के दुरूग म जयप्रकाश (साहित्यकार -समीक्षक) घर थोरिक अमाबो। अइसे तो सावजी के बात ल काटे के हिम्मत तिवारीजी के घलो नइ रिहिसे त मै कोन खेत के ढेला रहेंव जेन पार बाँध डारतेंव। तभो प्रश्नात्मक लहजा म मैं तिवारी जी के मुँह ल देखेंव। तिवारी जी ल थोरिक बल मिलगे। एक ले दू भले। तिवारी जी आधा डर आधा बल करत डारा छुवौला पेंड़ हलाव टाइप प्रश्न के लबादा मारिस - अतेक रात कुन जयप्रकाश जी ल उठाबोन .......परेशान नइ होही सर ? साव जी जुवाब दिस - एमा का परेशानी वाले बात हे। उठही काबर नहीं ! उठही घलो अउ खाबो कहिबो त राँधही घलो। फोकट के भतीजा बेटा नोहय, करेजा ल चान के दया मया बाँटथन तब रिश्ता के डोर बँधाथे तिवारी जी, फोकट म नइ होवय।

मैं अउ तिवारी जी एक दूसर के मुँह ल बोकबाय देखे लगेन। दूनो के चेहरा आँखी अउ भाव म एके अचरज अउ एके प्रश्न तउरत रिहिसे- अपन नता -सैना, अपन परिवार के बीच अतेक अधिकार ? अतका अधिकार ककरो तभे हो सकथे जेन अपन कर्तव्य अउ जुम्मेदारी ल ओतके सिद्दत के साथ निर्वहन कर सकथे।  

धर्मेन्द्र निर्मल

ग्राम पोस्ट कुरूद भिलाईनगर जिला दुर्ग (छ.ग.)

श्राद्ध

 श्राद्ध 

पितर पाख शुरू होय के पहिली रातकुन पितर मन ल सपना डरथन । ये पइत पहाती पहाती एक ठन अलकरहा सपना आगे । मोला कब मानबे ... मोर नाव ले खात खवई दान दक्षिणा कब करबे कहे लगिस । 

मय कहेंव – आप मोर कोन्हो लागमानी आव का  ... ? कभू देखे नी रेहेंव ? अऊ कति तिथि म सरग गय रहेव ... कुछ बताय के कृपा करव । 

ओ किथे – बड़ अलकरहा गोठियाथस ... कइसे नी जानस मोला ... बछर भर  हरेक दिन कोन मरथे ये देश म ... मिही ताँव ... । मोला नी जानबे तेमा .. ? फोकट बात करथस ... । मोरो आत्मा ल शांति मिल जहि सोंच तोर तिर आय रहेंव । तोर से नी हो सके ते कोई बात निही ... मय जावत हँव । 

मोर पोटा काँपगे । पितृ ऋण ल छुटे के इही मौका रहिथे .. मय झन चुँकव सोंचथँव ... । मय उनला छेंकत कहेंव – रुकव न .. काबर नराज होवत हव ? कोन तिथि के आप आहू तेला बतावव अऊ यहू ल बतावव आप कोन बबा आव । काय खात रहेव ... काय पहिरत रहेव ... कुछ जनाकारी देहव त ओकर हिसाब से आपके श्राद्ध के दिन बेवस्था करतेंव । 

ओ किथे – मोर नाव ले खावत सब हें ... मय काँहींच नी खावत रहेंव । मोर नाव ले पहिरइया के कमी निये फेर मोर तिर पहिरे बर फरिया तको नी रिहिस । मोला खाय पिये अऊ पहिरे के कुछ नी चाहि । तैं मोर नाव ले एक पइत श्राद्ध कर देतेस ... मोला शांति मिल जतिस । 

मय पूछेंव – ओ तो ठीक हे फेर येला तो बताव के आप मोर काय लागमानी आव ... ? 

ओ किथे – बस इही ल झन पूछ बेटा ... मोर लागमानी सब आय ... मय काकरो लागमानी नोहँव । 

मोर दिमाग खराब होगिस । राम राम के बेरा म कोन मोला घेरी बेरी धँवाथे सोंचत रहेंव ... फेर अपन घुस्सा ल काबू म रखके .. एको बुंद नी खिसियायेंव अऊ पूछेंव – तुँहर काय नाव रिहिस ... अऊ कति दिन तूमन आहू ... ? 

ओ किहिस – मोर नाव लोकतंत्र आय बेटा । मय मर चुके हँव फेर मोर श्राद्ध नी करत हे तेकर सेती मोला शांति नी मिलत हे । मोरो श्राद्ध कर देतेस ते महूँ थिरा जुड़ा जतेंव । रिहिस बात मोर जाय आये के तिथि के ... ओला तैं अपन हिसाब से देख ले ... जेकर मन होथे ते मोला जियत हे किथे ... जेकर मन होथे तेहा मोला मर गे हे कहिथे । मय जियत हँव तभे तो मरथँव अऊ फेर जी जथँव तभे तो फेर मरथँव ... । मोर एक बेर श्राद्ध कर देतेस ते जिये मरे के चक्र खतम हो जतिस अऊ सदा सदा बर बिदा हो जतेंव । 

रटपटाके उठ बइठेंव अऊ सोंच डरेंव ओकर श्राद्ध आजे कर देहूँ । अपन सुवारी ल पूछेंव – पितर पाख के पहिली दिन म कोन्हो आथे का ?  

ओ किहिस – तूमन नी जानव ... अतेक बछर होगे ... अब बुढ़हाय ल धर ले हव ... आज के दिन तो कोन्हो नी आय । 

में कहेंव – आज एक झन ह पितर के रूप म आही ... उही ला मानना हे । ओकर आशीर्वाद बहुत फलित होथे सुने हन । आज हमू ल मौका मिलत हे । 

ओ किथे – कोन आही जी तेमा .. आज के दिन तुँहर खानदान म कोन्हो नी मरे हे । तूमन कइसे भुला जथव । तूमन ल सुरता निये त दाई ल पूछ लेवव । 

में कहेंव – कोन्हो ल पुछी के पुछा करे के आवसकता निये । जे मरे हे तिही मोर सपना म आय रिहिस । 

ओ किहिस – अई .... तब तो माने ल परही .. । खाय बर पारा परोस के दू चार झन ल बलाय बर लागही । 

मय कहेंव – नी लागे । ओकर नाव ले कतको झन खात हें । ओकर नाव म उपरहा कुछु मत बना .. ओकर नाव म केवल हुम भर देना हे । 

ओ किहिस – पितर खुदे आके तुमला दर्शन दिस अऊ किहिस तब एकदमेच अलवा जलवा कइसे बनाहूँ हो । बरा गुलगुला भजिया सोंहारी के संग म खीर बनायेच ल परही । एकाध दू ठन अऊ उपरहा बना देथँव । 

तभे लइका मन आगे । ओमन कहे लगिस – मिर्ची भजिया अऊ आलूगुंडा घला बनाबे माँ । मोर तनि सबो झन देखिन । मोर मुड़ी सहमति बर हाले लगिस । तभे मोर बाई पूछिस – कोन आय हो .. आज मानबो तेमन .. ? 

मय कहेंव – ओहा लोकतंत्र आय ओ । बपरा ह मरे के पाछू एती ओते घिल्लत हे ... हो सकत हे ओकर मुक्ति मोरे हाथ म होहि तेकर सेती मोला सपना देवत अइस ।  

सब झन मोर बात सुन हाँसिन । मोर सुवारी किहिस – तूमन चल चुला गेहव का ? येदे देखव पेपर ल .. लोकतंत्र जियत हे लिखाय हे । 

मुँहु ल फार देंव । थोकिन बेर म मोला ध्यान अइस – लोकतंत्र मर चुके हे कहिके वहा दिन मेंहा पेपर म पढ़े रहेंव । अब का लबारी आय अऊ काय सहीं आय ... ? मय कइसे मानव के लोकतंत्र जियत हे जबकि खुदे मोर सपना म आके अपन श्राद्ध करे बर किहिस । 

मोर बाई किथे – लोकतंत्र जियत हे ... अऊ हमरे घर जियत हे तभे तो नान नान मन के बात ल घला तूमन दायसी से सुनेंव अऊ मानेव घला । फेर एक बात हे ओकर नाव म हमू मन बनाके खाबोन फेर ओकर नाव म हुम झन देहू । जेमन ओला मर गे हे कहिथे उनला ओकर नाव म खाय बर नी मिलय ... जे जियत हे कहिथे तिही मन खाथे । रिहिस बात ओकर आशीर्बाद के ... ओकर नाव म खाय बर हमू ल मिलहि येकर मतलब उँकर आशीर्बाद हमर संग हाबे ।  

मय लोकतंत्र ल अपनेच घर म जियत पा गेंव । ओकर श्राद्ध नी मना सकेंव । जेकर घर नी जियत होहि तेमन ओकर श्राद्ध करके ओला मुक्ति देवा देवव ..... । 

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

Friday, 5 September 2025

श्रद्धेय खुमानलाल साव की 96 वीं जयंती पर शत-शत नमन.....

 

श्रद्धेय खुमानलाल साव की 96 वीं जयंती पर शत-शत नमन.....


"खुमान-संगीत"


यह शीर्षक  ठीक वैसे ही जैसे रवींद्र-संगीत। यह बात और है कि बंगाल ने रवींद्र-संगीत को मान्यता प्रदान कर उसे अपनी पहचान बना ली। रवींद्र-संगीत को स्थापित कर दिया। इसी तरह से असम ने भूपेन हजारिका को अपनी पहचान बना लिया किन्तु छत्तीसगढ़ ने खुमान-संगीत को अपनी पहचान बनाने के लिए मान्यता प्रदान नहीं की है और स्थापित भी नहीं किया है। यह कहने से भला कौन रोक सकता है कि  खुमान लाल साव और छत्तीसगढ़ का संगीत एक दूसरे का पर्याय बन चुके हैं फिर "खुमान-संगीत" कहने में भी कोई हर्ज नहीं होना चाहिए। 


बात सन् 1999 की है जब मैं और मेरे अनुज हेमन्त निगम ने छत्तीसगढ़ी के दो ऑडियो कैसेट्स रिकॉर्ड कराने का विचार करके लक्ष्मण मस्तुरिया जी से चर्चा की थी। इन कैसेट्स के नाम थे "मया मंजरी" और "छत्तीसगढ़ के माटी"। संगीत देने के लिए हमने खुमान लाल साव जी को तैयार किया था। गायक स्वर लक्ष्मण मस्तुरिया, कविता वासनिक और महादेव हिरवानी के थे। दोनों कैसेट्स के लिए। इसकी रिहर्सल कविता विवेक वासनिक के राजनांदगाँव निवास में हुई थी। सारे कलाकारों के साथ हम जबलपुर पहुँचे थे। जबलपुर में विजय मिश्रा जी ने सभी के रुकने और भोजन की व्यवस्था कर दी थी। उन्हीं के निवास में रिहर्सल के दौरान लक्ष्मण मस्तुरिया जी ने कहा था कि छत्तीसगढ़ के किसी भी संगीतकार के संगीत में खुमान के संगीत की झलक दिखती है। खुमान का संगीत छत्तीसगढ़ के जनमानस के हृदय में इस प्रकार से छा गया है कि नया राज्य बनने पर इसे बंगाल के रवींद्र संगीत की तरह खुमान संगीत के नाम से स्थापित कर देना चाहिए। इस प्रकार से खुमान-संगीत की परिकल्पना का श्रेय लक्ष्मण मस्तुरिया जी को जाता है। 


छत्तीसगढ़ का लोक संगीत बहुत पहले अत्यन्त ही मधुर था। इसी कारण वाचिक परम्परा में इसके लोक गीत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अंतरित होते हुए पल्लवित और पुष्पित होते रहे। फिर बम्बइया प्रभाव का दीमक इन्हें कुतरता गया, कुतरता गया और एक समय ऐसा भी आया जब छत्तीसगढ़ी लोक गीतों की मौलिकता लगभग समाप्त होने लगी। लोक गीत अपभ्रंश होने लगे, इनका माधुर्य गुम सा गया। ऐसे समय में ग्राम बघेरा के दाऊ रामचंद्र देशमुख ने इन लोकगीतों के माधुर्य को पुनर्स्थापित करने का बीड़ा उठाया और चंदैनी गोंदा की स्थापना की। लोक गीतों के काव्य पक्ष को सँवारने का दायित्व कवि-द्वय रविशंकर शुक्ल और लक्ष्मण मस्तुरिया को सौंपा गया और लोक संगीत में प्राण फूँकने का दायित्व खुमान लाल साव को दिया गया। इन्होंने छत्तीसगढ़ के गाँव गाँव में जाकर लोक गायकों की तलाश की, उनसे पारंपरिक लोक गीत प्राप्त किये और उनकी धुनें प्राप्त की और उसे परिष्कृत में जुट गए। यह कार्य किसी साधना से कम नहीं था। यह साधना सफलीभूत हुई और छत्तीसगढ़ के लोक गीत नए कलेवर में पहले से भी ज्यादा मधुर हो गए। जिन्होंने चंदैनी गोंदा के मंचन को देखा है उन्हें ज्ञात है कि इस आयोजन में कैसे आस पास के सारे गाँव उमड़ कर आते थे। अस्सी हजार से एक लाख दर्शकों से आयोजन स्थल खचाखच भरा होता था। दर्शकों की यह भीड़ कार्यक्रम की समाप्ति तक मंत्र मुग्ध होकर बँधी रहती थी। 


चंदैनी गोंदा कोई नाचा गम्मत जैसा कार्यक्रम नहीं था यह छत्तीसगढ़ के किसान की जीवन यात्रा की सांगीतिक प्रस्तुति थी और इसके संगीतकार थे, खुमान लाल साव। खुमान लाल साव ने न केवल अपभ्रंश होते लोक गीतों में प्राण फूँके बल्कि उस दौर के अधिकांश कवियों के गीतों को संगीतबद्ध करके ऐसा जादू डाल दिया कि गीतों और लोक गीतों के बीच अंतर खोज पाना लगभग असंभव सा हो गया। खुमानलाल साव के संगीतबद्ध गीत अमर हो गए और आज लगभग पचास वर्षों के बाद भी उसी आदर और सम्मान के साथ सुने जा रहे हैं। उन्होंने पारम्परिक वाद्ययंत्रों का ही प्रयोग किया। उनकी टीम में हारमोनियम वादक स्वयं थे।  बाँसुरी वादक, संतोष टांक, बेंजो वादक गिरिजा शंकर सिन्हा, मोहरी वादक पंचराम देवदास, तबला वादक महेश ठाकुर थे। ढोलक, मंजीरा, माँदर जैसे वाद्ययंत्र भी उनकी टीम में शामिल थे। ग्राम बघेरा में जाकर चंदैनी गोंदा की रिहर्सल देखने का भी सौभाग्य मिला है। प्रारंभिक दौर के गायक लक्ष्मण मस्तुरिया, भैयालाल हेडाऊ, रविशंकर शुक्ल, केदार यादव और गायिका - कविता (हिरकने) वासनिक, अनुराग ठाकुर, संतोष झाँझी, संतोष चौबे, लीना महापात्र, साधना यादव, किस्मत बाई थे। मंच संचालन सुरेश देशमुख किया करते थे। 

खुमान लाल साव ने जिन कवियों और गीतकारों की रचनाओं को संगीतबद्ध किया उनमें से प्रमुख नाम कोदूराम "दलित", लक्ष्मण मस्तुरिया, रविशंकर शुक्ल, राम रतन सारथी, प्यारेलाल गुप्त,भगवती सेन, हेमनाथ यदु, पवन दीवान, चतुर्भुज देवांगन, रामकैलाश तिवारी, रामेश्वर वैष्णव, विनय पाठक, फूलचंद लाल श्रीवास्तव, ब्रजेन्द्र ठाकुर, बद्री विशाल परमानंद आदि कवियों के हैं। 

दाऊ रामचंद्र देशमुख के स्वप्न को साकार करते हुए खुमान लाल साव ने अपभ्रंश होते जिन लोकगीतों सँवारा है उनमें से प्रमुख लोक गीत हैं  - सोहर, लोरी, बिहाव गीत, भड़ौनी, करमा, ददरिया, माता सेवा, गौरा गीत, भोजली, सुआ, राउत नाचा, पंथी, देवार गीत, बसदेव गीत, फाग, संस्कार गीत आदि।


संयोग श्रृंगार, वियोग श्रृंगार, करुण, वीर, आदि रस


संयोग श्रृंगार - 

तोर संग राम राम के बेरा, भेंट होगे संगवारी, मुस्का के जोहार ले ले(लक्ष्मण मस्तुरिया)

झन आंजबे टूरी आँखी मा काजर बिन बरसे रेंग देही करिया बादर छूट जाही ओ परान(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मोर खेती खार रुमझुम (लक्ष्मण मस्तुरिया)

नाक बर नथनी अउ पैरी मोरे पाँव बर(लक्ष्मण मस्तुरिया)

अब मोला जान दे संगवारी (रामेश्वर वैष्णव)

बखरी के तूमा नार बरोबर मन झूमे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

चंदा के टिकुली चंदैनी के फूल, श्रृंगार (लक्ष्मण मस्तुरिया)

तोर खोपा मा फुँदरा रइहौं बन के(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मोला मैके देखे के साध धनी मोर बर लुगरा ले दे हो

(राम रतन सारथी),

नैना लहर लागे श्रृंगार (फूलचंद लाल श्रीवास्तव)

तोर बाली हे उमरिया(लक्ष्मण मस्तुरिया)

तोला देखे रहेंव रे, तोला देखे रहेंव गा, धमनी के हाट मा बोइर तरी (द्वारिकाप्रसाद तिवारी विप्र)

मोर अँगना मा कोन ठाढ़े हे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मजा हे मजा आजा मोर मोहना(लक्ष्मण मस्तुरिया)


विरह गीत - 

अन्ताज पाय रहेंव आँखी मिलाय रहेंव मया बान धरे रहेंव तबभे चिरई उड़ गे। (विनय पाठक)

झिलमिल दिया बुता देबे (प्यारेलाल गुप्त)

परगे किनारी मा चिन्हारी ये लुगरा तोर मन के नोहय

वा रे मोर पँड़की मैना, तोर कजरेरी नैना(लक्ष्मण मस्तुरिया)

कइसे दीखथे आज उदास कजरेरी मोर मैना(लक्ष्मण मस्तुरिया)

कोन सुर बाजँव मँय तो घुनही बंसुरिया(लक्ष्मण मस्तुरिया)

काल के अवइया कइसे आज ले नइ आये(लक्ष्मण मस्तुरिया)

धनी बिन जग लागे सुन्ना रे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

काबर समाए रे मोर बैरी नैना मा(लक्ष्मण मस्तुरिया)

संगी के मया जुलुम होगे रे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

सावन आगे आबे आबे आबे संगी मोर(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मोर कुरिया सुन्ना रे मितवा तोरे बिना(लक्ष्मण मस्तुरिया)

तोर मया मोर बर जहर जुल्मी होगे लहरी यार (लक्ष्मण मस्तुरिया)

काल के अवइया कइसे आज ले नइ आये विरह में संदेह (लक्ष्मण मस्तुरिया)

परगे किनारी मा चिन्हारी ये लुगरा तोर मन के नोहय (बद्री विशाल परमानंद)


कृषि और मौसम के गीत - 


चल चल गा किसान "बोए चली धान" असाढ़ आगे गा(लक्ष्मण मस्तुरिया)

चलो जाबो रे भाई, जुरमिल के सबो झन करबो "निंदाई"

(रामकैलाश तिवारी)

भैया गा किसान हो जा तैयार, मुड़ मा पागा कान मा चोंगी धर ले हँसिया अउ डोरी ना, चल चल गा भैया "लुए चली धान" (लक्ष्मण मस्तुरिया)

छन्नर छन्नर पैरी बाजे, खन्नर खन्नर चूरी(कोदूराम दलित)

आज दउँरी मा बइला मन घूमत हे


मौसम - 

आगी अंगरा बरोबर घाम बरसत हे "जेठ बैसाख" (लक्ष्मण मस्तुरिया)

"सावन" बदरिया घिर आगे (लक्ष्मण मस्तुरिया)

फागुन में होली के त्यौहार की धूम होती है। यह हर्ष और उल्लास का पर्व है। मस्ती का पर्व है। बसंत ऋतु अपने चरम पर होती है। ढोल, नँगाड़ा, माँदर की थाप में सबके हृदय ताल मिलाने लगते हैं और कदम स्वस्फूर्त हो थिरकने लगते हैं। रंगों का यह त्यौहार संगीत के बिना नहीं मनाया जा सकता है। संगीतकार खुमान लाल साव के कौशल का प्रमाण देता यह गीत भला कौन भुला सकता है ?

मन डोले रे "माघ फगुनवा" (लक्ष्मण मस्तुरिया)


हिन्दी माह की बारहों पूर्णिमा में मनाए जाने वाले विभिन्न पर्वों का वर्णन एक ही गीत में हुआ है। जितना सुंदर यह गीत रचा गया है, उतनी ही सुंदरता से इसे संगीतबद्ध भी किया गया ही। 

फिटिक अंजोरी निर्मल छइयां गली गली बगराये ओ पुन्नी के चंदा मोर गाँव मा(लक्ष्मण मस्तुरिया)


आज दौरी मा बइला मन घूमथें वर्तमान व्यवस्था पर प्रतीकात्मक गीत है। 


प्रकृति चित्रण - 

शीर्षक गीत -देखो फुलगे चंदैनी गोंदा फूलगे (रविशंकर शुक्ल)

धरती के अँगना मा चंदैनी गोंदा फुलगे

सावन आगे (लक्ष्मण मस्तुरिया)


चल सहर जातेन रे भाई, गाँव ला छोड़ के शहर जातेन (हेमनाथ यदु)

चलो बहिनी जाबो अमरैया मा खेले बर घरघुंदिया (मुकुंद कौशल)


आगे सुराज के दिन रे संगी, बाँध ले पागा साज ले बण्डी करमा गीत गा के आजा रे झूम जा संगी मोर(लक्ष्मण मस्तुरिया)

चन्दा बनके जीबो हम, सुरुज बनके बरबो हम


(दो कवियों के गीत का सुंदर कॉम्बिनेशन

छोड़ के गँवई शहर डहर झन जा झन जा संगा रे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

चल शहर जाबो संगी, गाँव ला छोड़ के शहर जाबो हेमनाथ यदु)


संस्कृति - 

ओ काँटा खूँटी के बोवैया, बने बने के नठैया दया मया ले जा रे मोर गाँव ले(लक्ष्मण मस्तुरिया)


लोक गीत 

घानी मुनी घोर दे पानी दमोर दे (रविशंकर शुक्ल)

बसदेव गीत सुन संगवारी मोर मितान (भगवती सेन)

चौरा मा गोंदा रसिया मोर बारी मा पताल(लक्ष्मण मस्तुरिया)

सुवा गीत -

तरी हरी ना ना रे ना ना मोर सुवना(लक्ष्मण मस्तुरिया)

बेंदरा नाचा - 

नाच नचनी रे झूम झूम के झमाझम(लक्ष्मण मस्तुरिया)

कहाँ रे हरदी तोर जनावन (बिहाव गीत)

दड़बड़ दड़बड़ आइन बरतिया (बिहाव भड़ौनी)

रूप धरे मोहनी मोहथे संसार (चंदैनी गीत)

सोहर - 

द्वार बनाओ बधाई निछावर बाँटन निछावर बाँटन हो

ललना लुटावहु रतन भंडार चंदैनी गोंदा अवतरे हो

लागे झन कखरो नजर रे दुलरू बेटा

लोरी - सुत जा ओ बेटी मोर, झन रो दुलौरिन मोर (वात्सल्य)

गौरा गीत, पंथी गीत, जस गीत, ददरिया, करमा, सोहर, सुवा, राउत नाचा के दोहा, बसदेव गीत, 


माटी की महिमा - 

तोर धरती तोर माटी (पवन दीवान)

मोर भारत भुइयाँ धरमधाम हे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मँय बंदत हँव दिन रात मोर धरती मैया जय होवै तोर(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मँय छत्तीसगढ़िया हँव गा(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मोर भारत भुइयाँ धरम धाम हे(लक्ष्मण मस्तुरिया)


आव्हान गीत - 

मोर संग चलव रे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मोर राजा दुलरुवा बेटा, तँय नागरिहा बन जाबे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

हम करतब कारण मर जाबो रे, फेर के लेबो संग्राम(लक्ष्मण मस्तुरिया)

चम चम चमके मा बने नही अब कड़क के बरसे बर परिही (लक्ष्मण मस्तुरिया)

तोर धरती तोर माटी रे भैया (लक्ष्मण मस्तुरिया)

चल जोही जुरमिल कमाबो(लक्ष्मण मस्तुरिया)

चलो जिनगी ला जगाबो (लक्ष्मण मस्तुरिया)

भजन - 

अहो मन भजो गणपति गणराज (लक्ष्मण मस्तुरिया)

जय हो जय सरसती माई(लक्ष्मण मस्तुरिया)

जय हो बमलेसरी मैया(लक्ष्मण मस्तुरिया)

प्राण तर जाई रामा, चोला तर जाई

जीवन दर्शन - 

माटी होही तोर चोला रे संगी (चतुर्भुज देवांगन),

दिया के बाती ह कहिथे (ब्रजेन्द्र ठाकुर)

हम तोरे संगवारी कबीरा हो(लक्ष्मण मस्तुरिया)


मस्ती - 

मोला जावन दे न रे अलबेला मोर(लक्ष्मण मस्तुरिया)

बोकबाय देखे,हाले न डोले कुछु नइ बोलय टूरा अनचिन्हार (लक्ष्मण मस्तुरिया)

मंगनी मा मांगे मया नइ मिले (लक्ष्मण मस्तुरिया)

लहर मारे लहर बुंदिया (लक्ष्मण मस्तुरिया)

हमका घेरी बेरी घूर घूर निहारे ओ बलमा पान ठेला वाला(लक्ष्मण मस्तुरिया)

हर चांदी हर चांदी डोकरा रोवय मनावै डोकरी का या

पता ले जा रे, पता दे जा रे, गाड़ीवाला(लक्ष्मण मस्तुरिया)

छत्तीसगढ़ के माटी, एक अद्भुत रचना। 


हिन्दी फिल्मों के संगीत और छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के अन्तर्सम्बन्धों में एक विचित्र सा विरोधाभास देखने में आता है। हिन्दी फिल्मों का निर्माण तीस के दशक में प्रारम्भ हुआ। चालीस के दशक तक इन फिल्मों का संगीत एक प्रकार से अनगढ़ सा ही रहा। वहीं इन दशकों में छत्तीसगढ़ी लोक संगीत शिखर पर था। पचास और साठ के दशकों में हिंदी फिल्मों का संगीत परिष्कृत होकर अत्यंत ही लोकप्रिय हो गया किन्तु छत्तीसगढ़ी लोक गीतों में फिल्मी गीतों के कारण विकृतियाँ आने लगी थी। खासकर नाचा-गम्मतों में जिन लोक गीतों का प्रयोग होता था उनमें बम्बइया प्रभाव के लटके झटके के कारण गिरावट आने लगी थी। पचास और साथ के दशक में छत्तीसगढ़ी लोकगीत विकृति की ओर बढ़ने लगे थे। फिर आया सत्तर का दशक। इस दशक में फ़िल्म संगीत पर पाश्चात्य संगीत का प्रभाव पड़ने लगा था। पाश्चात्य वाद्य यंत्रों का भी प्रयोग बढ़ गया था। संगीत का शोर तो बढ़ा किन्तु गुणवत्ता में एकदम से गिरावट आ गई। ऐसा भी नहीं कि समूचा फ़िल्म संगीत ही स्तरहीन हो गया हो। कुछ संगीतकारों ने पाश्चात्य संगीत का अंधानुकरण नहीं किया और संगीत की मधुरता बनाये रखी। सत्तर का दशक छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के लिए प्राणवायु लेकर आया । इसी दशक में दाऊ राम चन्द्र देखमुख के चंदैनी गोंदा ने जन्म लिया। उनके स्वप्न को साकार करते हुए खुमान लाल साव ने छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के निष्प्राण होते तन पर अमृत बूँदें  बरसा कर उसे पुनः प्रतिष्ठित कर दिया। इन अमृत बूंदों ने सत्तर के दशक के संगीत को ऐसा अमरत्व प्रदान कर दिया कि यह सदियों बाद भी सुना जाता रहेगा। 


छत्तीसगढ़ में छोटे बड़े बहुत से मंच हैं और विभिन्न  गीतकारों के गीतों के संगीतबद्ध करके गीत बना रहे हैं । अधिकांश संगीतकारों के संगीत में खुमान लाल साव के संगीत की झलक दिख ही जाती है। बिरले ही संगीतकार हैं जिनके संगीत में कुछ मौलिकता दिखाई दे जाती है। इसका एक कारण यह भी है कि खुमान लाल साव का संगीत उनके मन की गहराई में इस तरह से रच बस गया है कि उनके संगीत में खुमान- संगीत का प्रभाव दिख ही जाता है। इसीलिए छत्तीसगढ़ शासन को भी चाहिए कि खुमान-संगीत को छत्तीसगढ़ की पहचान बनाए। 

खुमान लाल साव का संगीत छत्तीसगढ़ के लोक में समाया हुआ है अतः इनके संगीत को भी लोक संगीत मानकर इनके संगीतबद्ध गीतों को लोक गीत के रूप में मान्यता देना चाहिए। क्योंकि ये गीत अब केवल खुमान के न होकर लोक के गीत बन चुके हैं। 


अरुण कुमार निगम

संस्थापक - "छन्द के छ", छत्तीसगढ़