*तीजा लुगरा*
"कहां हस ओ सोहागा?एदे नोनी मन बर लुगरा बिसाए हॅंव।देख तो।"
गोबिंद बजार ले आते साठ अपन गोसाइन ल हुॅंत करावत पूछिस।
मुड़ मा हउंला बोहे सोहागा आइस अउ हउंला ला उतार के हाथ पोंछत लुगरा ला देख के कथे-"तें कइसे निच्चट लुगरा ला धरके ले आने हस ओ!!हर बहिनी साल भर ले तीजा के अगोरा करथे।मइके के चेंदरा बर।तीजा के लुगरा सिरिफ ओनहा नोहय।हर बहिनी के गरब हमाय रथे ओमा अपन भाई बर।हमुं काकरो बेटी हरन त सब समझथन।जा एला तुरते बदल के लान।सौ दू सौ उप्पर परहघ तभो ले आनबे।तोर कना पैसा नी होही त मोर संदूक ले लानत हंव।"-सोहागा किथे।
"नहीं... नहीं...मोर कना रुपया हाबे।नी लागे।"काहत गोबिंद लुगरा ला झोला म धरिस अउ साइकिल ओटत दुकान जाए बर निकलगे। साइकिल के पैडल मारत ओहा मने मन खुश होवत राहय...में सोहागा ला ज्यादा महंगा वाले लाहूं त खिसियाही सोचत रेहेंव।फेर ओकर मन में पाप नीहे....मोर बहिनी मन बर मोर राहत ले अउ मोर बाद घलो एक लोटा पानी अउ तीजा के लुगरा के कमी नी होवय।
रीझे यादव टेंगनाबासा
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