Wednesday, 10 September 2025

श्राद्ध

 श्राद्ध 

पितर पाख शुरू होय के पहिली रातकुन पितर मन ल सपना डरथन । ये पइत पहाती पहाती एक ठन अलकरहा सपना आगे । मोला कब मानबे ... मोर नाव ले खात खवई दान दक्षिणा कब करबे कहे लगिस । 

मय कहेंव – आप मोर कोन्हो लागमानी आव का  ... ? कभू देखे नी रेहेंव ? अऊ कति तिथि म सरग गय रहेव ... कुछ बताय के कृपा करव । 

ओ किथे – बड़ अलकरहा गोठियाथस ... कइसे नी जानस मोला ... बछर भर  हरेक दिन कोन मरथे ये देश म ... मिही ताँव ... । मोला नी जानबे तेमा .. ? फोकट बात करथस ... । मोरो आत्मा ल शांति मिल जहि सोंच तोर तिर आय रहेंव । तोर से नी हो सके ते कोई बात निही ... मय जावत हँव । 

मोर पोटा काँपगे । पितृ ऋण ल छुटे के इही मौका रहिथे .. मय झन चुँकव सोंचथँव ... । मय उनला छेंकत कहेंव – रुकव न .. काबर नराज होवत हव ? कोन तिथि के आप आहू तेला बतावव अऊ यहू ल बतावव आप कोन बबा आव । काय खात रहेव ... काय पहिरत रहेव ... कुछ जनाकारी देहव त ओकर हिसाब से आपके श्राद्ध के दिन बेवस्था करतेंव । 

ओ किथे – मोर नाव ले खावत सब हें ... मय काँहींच नी खावत रहेंव । मोर नाव ले पहिरइया के कमी निये फेर मोर तिर पहिरे बर फरिया तको नी रिहिस । मोला खाय पिये अऊ पहिरे के कुछ नी चाहि । तैं मोर नाव ले एक पइत श्राद्ध कर देतेस ... मोला शांति मिल जतिस । 

मय पूछेंव – ओ तो ठीक हे फेर येला तो बताव के आप मोर काय लागमानी आव ... ? 

ओ किथे – बस इही ल झन पूछ बेटा ... मोर लागमानी सब आय ... मय काकरो लागमानी नोहँव । 

मोर दिमाग खराब होगिस । राम राम के बेरा म कोन मोला घेरी बेरी धँवाथे सोंचत रहेंव ... फेर अपन घुस्सा ल काबू म रखके .. एको बुंद नी खिसियायेंव अऊ पूछेंव – तुँहर काय नाव रिहिस ... अऊ कति दिन तूमन आहू ... ? 

ओ किहिस – मोर नाव लोकतंत्र आय बेटा । मय मर चुके हँव फेर मोर श्राद्ध नी करत हे तेकर सेती मोला शांति नी मिलत हे । मोरो श्राद्ध कर देतेस ते महूँ थिरा जुड़ा जतेंव । रिहिस बात मोर जाय आये के तिथि के ... ओला तैं अपन हिसाब से देख ले ... जेकर मन होथे ते मोला जियत हे किथे ... जेकर मन होथे तेहा मोला मर गे हे कहिथे । मय जियत हँव तभे तो मरथँव अऊ फेर जी जथँव तभे तो फेर मरथँव ... । मोर एक बेर श्राद्ध कर देतेस ते जिये मरे के चक्र खतम हो जतिस अऊ सदा सदा बर बिदा हो जतेंव । 

रटपटाके उठ बइठेंव अऊ सोंच डरेंव ओकर श्राद्ध आजे कर देहूँ । अपन सुवारी ल पूछेंव – पितर पाख के पहिली दिन म कोन्हो आथे का ?  

ओ किहिस – तूमन नी जानव ... अतेक बछर होगे ... अब बुढ़हाय ल धर ले हव ... आज के दिन तो कोन्हो नी आय । 

में कहेंव – आज एक झन ह पितर के रूप म आही ... उही ला मानना हे । ओकर आशीर्वाद बहुत फलित होथे सुने हन । आज हमू ल मौका मिलत हे । 

ओ किथे – कोन आही जी तेमा .. आज के दिन तुँहर खानदान म कोन्हो नी मरे हे । तूमन कइसे भुला जथव । तूमन ल सुरता निये त दाई ल पूछ लेवव । 

में कहेंव – कोन्हो ल पुछी के पुछा करे के आवसकता निये । जे मरे हे तिही मोर सपना म आय रिहिस । 

ओ किहिस – अई .... तब तो माने ल परही .. । खाय बर पारा परोस के दू चार झन ल बलाय बर लागही । 

मय कहेंव – नी लागे । ओकर नाव ले कतको झन खात हें । ओकर नाव म उपरहा कुछु मत बना .. ओकर नाव म केवल हुम भर देना हे । 

ओ किहिस – पितर खुदे आके तुमला दर्शन दिस अऊ किहिस तब एकदमेच अलवा जलवा कइसे बनाहूँ हो । बरा गुलगुला भजिया सोंहारी के संग म खीर बनायेच ल परही । एकाध दू ठन अऊ उपरहा बना देथँव । 

तभे लइका मन आगे । ओमन कहे लगिस – मिर्ची भजिया अऊ आलूगुंडा घला बनाबे माँ । मोर तनि सबो झन देखिन । मोर मुड़ी सहमति बर हाले लगिस । तभे मोर बाई पूछिस – कोन आय हो .. आज मानबो तेमन .. ? 

मय कहेंव – ओहा लोकतंत्र आय ओ । बपरा ह मरे के पाछू एती ओते घिल्लत हे ... हो सकत हे ओकर मुक्ति मोरे हाथ म होहि तेकर सेती मोला सपना देवत अइस ।  

सब झन मोर बात सुन हाँसिन । मोर सुवारी किहिस – तूमन चल चुला गेहव का ? येदे देखव पेपर ल .. लोकतंत्र जियत हे लिखाय हे । 

मुँहु ल फार देंव । थोकिन बेर म मोला ध्यान अइस – लोकतंत्र मर चुके हे कहिके वहा दिन मेंहा पेपर म पढ़े रहेंव । अब का लबारी आय अऊ काय सहीं आय ... ? मय कइसे मानव के लोकतंत्र जियत हे जबकि खुदे मोर सपना म आके अपन श्राद्ध करे बर किहिस । 

मोर बाई किथे – लोकतंत्र जियत हे ... अऊ हमरे घर जियत हे तभे तो नान नान मन के बात ल घला तूमन दायसी से सुनेंव अऊ मानेव घला । फेर एक बात हे ओकर नाव म हमू मन बनाके खाबोन फेर ओकर नाव म हुम झन देहू । जेमन ओला मर गे हे कहिथे उनला ओकर नाव म खाय बर नी मिलय ... जे जियत हे कहिथे तिही मन खाथे । रिहिस बात ओकर आशीर्बाद के ... ओकर नाव म खाय बर हमू ल मिलहि येकर मतलब उँकर आशीर्बाद हमर संग हाबे ।  

मय लोकतंत्र ल अपनेच घर म जियत पा गेंव । ओकर श्राद्ध नी मना सकेंव । जेकर घर नी जियत होहि तेमन ओकर श्राद्ध करके ओला मुक्ति देवा देवव ..... । 

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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