Wednesday, 10 September 2025

व्यंग्य-घोण्डुल अउ गनेस

 व्यंग्य-घोण्डुल अउ गनेस

मनखे जात के सुभाव हे। जानय चाहे झन जानय, मानय चाहे झन मानय, ताने बर पीछु नई राहय। 

गनेस चतुर्थी के दिन जगह -जगह पारा -मुहल्ला म पंडाल तना गे। जे ठन गली ते ठन पंडाल। 

बिध्द के देवता गनेस के बुध नसा गे। सोच म पर गे- कती जाववँ ? 

परबुधिया मुसवा सुलाह दिस-ए लईका- पिचकामन डाहर कुछु मजा नइ हे। इन्कर तीर तो परसादे बर पइसा नइ राहय। लाड़ू कामा खवाही बिचारामन ? 

रोंठ मनखे मन मोठ चंदा पाथे । ओइसने बेवस्था घलो करथे। आखिर म सोच -विचारके दूनो बड़े चउंक के बडे मंडप म जाके बिराज गे। 

जइसे ही गनेस भगवान आसन म बिराजिस। मंडप के खालहे ले घोण्डुल दहाड़िस-अच्छा ! त तुमन फेर आगेव। दस -दस दिन ले ऐस करेबर। धरम के नाम म करे -धरे बर हम्चि भर मन तो हावन। 

फोकट म पाए त मरत ले खाए बर तुमन ल का हे ? तभे तोर पेट अतका अलकरहा बाढे़ हे ? अउ देख ए रेटहा बिलवा मुसवा ल। कइसे कान टेडे़ -ठढ़ियाए इहाँ अँड़ियाए हे ? 

अतका ल सुन मुसवा डर के मारे मंच के पीछू कुती लुका गे। घोण्डुल गनेस ल कहिथे- एती देख एती। मैं बेरोजगार गनेस उत्सो समिति के मुखिया अवँ। अकेल्ला छै हजार के बेवस्था करवाए हौं। उही म ले एक बोतल के अपन बेवस्था जमाए हौं। 

अइसे तो डेढ़- डेढ़ बोतल म मोर कांही ताग नइ हालय। उदबत्ती नइ जलय। फेर चल मनखे ल समे देखके काम चलाना चाही।

थोरिक चुप रहे के बाद लड़भड़ावत फेर कहिस -मोर तीर बोरा- बोरा डिग्री भराए -परे हे। तभो ले मैंहँ बेरोजगार हौं । जानथस ? 

एला कान ल टेड़े मुसवा पीछु कुती ले सुनत राहय। मन म कहिथे- बेरोजगार हस त जा न रोजगार दफतर म मरबे। ए मेर काबर मरथस ?

मुसुवा के मन के बात ल मंदहा घोण्डुल मथर डारिस। रटपीटाके आँखी ल नटेंरत अइसे अँटियावत उठिस के पुट्ट ले गिर परिस। मंडप के तीर -तखार म जुरियाए -सकेलाए जम्मो लइकामन खलखलाके हास भरिन। घोण्डुल समझिस मुसुवा हाँसत हे। 

धरा-रपटा कुला ल झर्रावत उठिस अउ खखुवाके गनेस ल कहिथे -देख ए तोर मुसुवा ल ! मोला कइसे बिजरावत हे ? मैंहँ अतेक बेर ले चुप रहेवँ। अब तोला भसेड़हुँच्। तैं का समझथस ? दाई -ददा के तीन चक्कर का लगा लेस त ,महिच् भर हववँ कहिथस ? 

हमला रोजगार दपतर के कइयो चक्कर हो गे। हमार कोनो पूछइया नइ हे। 

हाँ, फेर अतका हे। मैं गरीब हौं ते हौं। मोर पहुँच कम नइ हे। जानथस ? रइपुर भोपाल दिल्ली ल कोन पूछत हे। मोर पहुँच संसार के सबले उँच जघा हिमाले के फोंक तक हावय। कहूँ तोला मोर बात म अकीन नइ हे त तैं अपन ददा संकर ल पूछके देखबे। मैंहँ ओकर संग बइठके चिलम पिए हौं। पूछ कहाँ ? - हिमाले के फोंक म। जाने ? 

मैंहँ चाहवँ त अभ्भी ए पंडाले भीतर केडिया ले बडे कंपनी खडा कर देववँ। केडिया का हे मोर आगू म ? नान-नान भटठी के बल म दारू के बडे कंपनी हो गेवँ काहथे,...हूँ। 

गनेस सोचथे -अरे यार  ! ए कहाँ ले पेरूकराम आके मोरे पीछू पर गे। पंदरा-पंदरा दिन पहिली ले एकर चार महीना के दारू के जोगाड करे हौं। अउ एला देख ! मोरे संग अभरत हे। 

हमार कके -ददा मन बने हे यार ! ददा संकर हँ दुनियादारी के चक्कर ले बाँचे बर हिमाले चढ़ गे हे अउ कका बिसनू हँ समुन्दर के बीच म लात ताने सुत गे हे। एक अकेल्ला मोला झेले बर भेज दे हे।

बात ल पलटत गनेस कहिथे - यार घोण्डुल ! अबड़ बेरा हो गे बिराजे। पेट हँ हफ -हफ करथे। कुछु खाए -पिए के बेवस्था करबे के बस ? 

घोण्डुल ओतके ल खोजत रहै। फट कहिथे - मैंहँ बाजू वाले होटल म तोर अउ तोर मुसवा बर मिरची भजिया के आडर दे डरे हौं। तैं मोर बर पौवा मंगा डर। हें हें ........हें हें। तहूँ अच्छा चऊज करथस महराज ! अतेक बढ़ भगवान होके। 

इहाँ घरो -घर पंचाइती माते हे। बेरोजगारी बाढ़ गे हे। अउ उपर ले ए मंहगई हँ अपन पगड़ी़ म लपेट -लपेट के जनता के घेंच ल कँसत हे। तोला हरियर सूझे हे। ए तोर कारी माटी के कनफड़ा ल पूछ। इही हँ गाँव -गली -पारा भर ल छानत रहिथे। बाहिर -भीतर सब के बात ल जानथे। 

काली मोर घर गइस। कुछु नई पाइस त अनदेखना हँ मोर बोतल ल उन्डा दिस। ओतको म मन नई माढ़िस त मोर चड्डी ल चुनके आ गे। मैंहँ अब कुछु नई जानवँ। तोला करना हे त मोर आधा पाव के जुगाड़ ल कर। नईते सुख्खा पंडाल तरी मुसुवा दोनो भूखे - पियासे मरत रहव। अतका कहिके घोण्डुल पंडाले तरी घोलन्ड गे। 

ओतके बेरा अरोस -परोस के माई लोगन मन पूजा करे बर आए राहय। उन्कर हाथ हँ थारी धरे आरती करत राहय त मन हँ घोण्डुल कोती जाय राहय - अइ ! आज घोण्डुल हँ कइसन पी डरे हे दई ! 

ओमन ल खाना के बनावत ले, बिहान भर पानी के भरत ले गोठियाए के बहाना मिलगे। 

थोरिक पीछू घोण्डुल के आँखी खुलिस। देखथे गनेस जी तीरन एक ले सेक आइटम रखाए हे। फूल ,पान ,केरा, खीरा, मिठई। उठके लड़भड़ावत गनेस तीर जाथे। 

पूजा के थारी म रखाए दू ठन केरा ल धर लिस । जनम के खखाए -भूखाए कस गपागप मुँह म हुरेस लिस।

तेकर पाछू हाथ जोड़के कहिथे - हमार देख -रेख करइया। पेट भरइया। अउ कोन हे कहिथस ?

तहींच तो हावस भगवान !

धर्मेन्द्र निर्मल 

9406096346

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