छत्तीसगढ़ी कहिनी
शीर्षक: तीजा तिहार आगे, मइके के सुरता आगे
भादो के महिना गरजत करिया बादर चारो अंग रद-रद पानी गिरत,हरियर -हरियर दिखत रुख-राई ,जम्मो संसार हांसत खुसी मनावत हे। भादो म अंजोरी पाख आगे।तीजा तिहार नजदीक आगे। चंदखुरी गाँव म चारो अंग खेत- खार , रुख -राई हरियर -हरियर दिखत रहिस अउ लोगन मन म उत्साह के लहर दउड़त रहिस। गाँव के जम्मो घर म माटी के चूल्हा सजत रहिस अउ घर-घर ले ठेठरी-खुरमी के सुवास हर महमहावत रहिस।
इही गोठ-बात के सुरता करत पदमा के आंखी ले आंसू बोहाय लगिस।पदमा के बिहाव हर शहर म होगे रहिस, जिहाँ वोहर अपन गोसइया अउ सास -ससुर के संग रहय। शहर के अकबकासी भीड़-भाड़ अउ जिनगी म पदमा खुश त रहिस, फेर ओकर मन ह बछर तिहार तीजा बर सुरता करय मइके के ।
तिहार आगे ,मइके के सुरता आगे…..। सुरता करत मन म गुने लगिस।
मइके के वोहर छोटकुन घर-कुरिया, दाई के हाथ के चिला, बबा के कहिनी अउ संगवारी मन के संग झूला झूलय—जम्मो कछु जइसे काली के गोठ -बात लागय।
इही बेर तको तीजा आगे, पदमा के ससुरार म काम-बूता के अब्बड़े बोझा रहिस। सास दाई कहिन, "बहुरिया, इही तीजा ल अभे ससुरार म मना डार,मइके जाय के कोनो जरूरत नइ हे।" पदमा हर कलेचुप गोठ ल सुनके, फेर ओकर मन उदास होगे। रथिया के बेरा, जब शहर के चकमक म चंदा लुकात रहिस, पदमा अपन छज्जा म बइठ के मइके के सुरता ल करय। वोहर मन म गुनय "तीजा तिहार आगे, मइके के सुरता आगे... मोर बचपन के झूलना, दाई के गीत .....जम्मो कुछु जइसे आंखी म झूले लगिस।"
उही बेरा पदमा के मोबाइल म दाई के कॉल आइस। दाई के आवाज म मया के लहर रहिस, "नोनी तीजा आगे, तैं कब आबे ? तोर भैया ल पोठोहु़ं ,बताबे मैंहर तोर रद्दा जोहत हव ।" पदमा के आँखी मा आंसू के धार बोहाय लगिस। फेर वो हर कहिस, "दाई, इही बखत मैं नइ आ सकव फेर मोर मन तोरे करा हे।" फोन कटगे। पदमा हर मन म ठानिस अउ अपन गोसइया ल सबो गोठ बताइस अउ कहिस, "तीजा हमर छत्तीसगढ़ के जम्मो माईलोगन,महतारी, नोनी मन बर बड़का तिहार आय अउ मइके के मया के तिहार आय। इही तिहार के महतम ल जानके पुराखा ले मनावत आवतथे । हमन अबे इही तिहार ल नइ मनाबो त हमर आगू अइया लइका मन कइसे जानहि।" ओखर गोसइया तीजा के महतम जान के, पदमा ल मइके भेजे बर तियार होगे।
पदमा मइके पहुँचगे। ओखर चेहरा दमके लगिस।दाई ह पदमा ल पोटार लिस अउ कहिस, "मोर नोनी आय हे, अब तीजा के रंग जमही।" बबा ह खेत ले हरियर धान के पउधा लाय रहिन, जउन ल पूजा के थाली म सजाइस ।गाँव के चौपाल के पाछू आमा के रुख तरी डारा म झूलना बंधागे। छोटकी अपन संगवारी मन के संग झूलत रहिस। बब्बो झिन गीत गावत रहिन-
"तीजा तिहार आगे , मइके के सुरता आगे ,
नोनी मन झूलना झूले ,ममता के छहियां म..."
पदमा दउंड़त रुख तरी जाके झूलना झूले लगिस। झूला झूलत पदमा के मन म उदासी छागे। वोहर दाई ल अपन ससुरार के गोठ- बात ल बताइस। त दाई कहिस, "पदमा, तीजा तिहार हर झूला झूलेबर अउ संकर पार्वती के पूजा-पाठ के संगे-संग, इही तिहार मइके के सुरता ल जगा के राखथे, जउन जिंदगी के हर मोड़ म ताकत देथे।" पदमा के मन हर नवा जोश म भर गे। वोहर मन म गुने लगिस के आने बछर म वोहर अपन ससुरार म, घलो तीजा के रिवाज ल जगा के राखही, जेमा शहर के नोनी मन घलो मइके के सुरता ल चंदन अस घोरही ।
तीजा के आखिरी दिन, जब्भे ससुरार लहुटत रहिस, वोहर अपन संग मइके के ममता अउ सुरता ल ले गे। ओखर उज्जर मुंहु म एकठिन नवा उजास रहिस, जइसन तीजा के चंदा सुघ्घर चुकचुक ले दिखत रहिस।
लेखिका
डॉ. जयभारती चंद्राकर
रायपुर, छत्तीसगढ़
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