सन्नाटा चीर के तूफान पैदा करइया संगीत सम्राट - खुमान साव
लोक कला अउ संस्कृति के गढ़ छत्तीसगढ़ के संस्कारधानी राजनांदगाँव तीर ठेकवा गाँव म जनमें पद्मश्री खुमान साव ल कोन नइ जानत होही। जेकर करम छाँड़ दे होही तेकर बात अलग हे। चिन्हत भले नइ होही फेर जानत तो होबे करही। महूँ हँ नाम भर सुने रहेंव। प्रत्यक्ष रूप ले मिले नई रहेंव। पढ़े रहेंव सामान्य ज्ञान के किताब म। छत्तीसगढ़ का संगीत सम्राट किसे कहते है ? वो वस्तुनिश्ट प्रश्न के उत्तर रिहिसे - खुमान साव।
मोला एकदम सुरता हे। मोर पहिली किताब छत्तीसगढ़ी गजल संग्रह ‘‘कोजन का होही‘‘ के विमोचन होवइया रिहिसे। दिन परे रिहिसे शनिच्च्र तारीख 21 मार्च 2015. विमोचन के कार्यक्रम मोर पैतृक गाँव धोबी खपरी ले 6 कि.मी. दूर थानखम्हरिया म निराला साहित्य समिति के तत्वावधान म होना रिहिसे। मैं समिति के सदस्य तभो रहेंव अभी घलो हौं। दूरिहा में हौं तभो उन मन मोला नइ छोड़ पावत हे अउ मोर प्रति उन्कर मया मोह के बँधना ल मैं टोर नइ पावत हौं। कोनो कोनो बेरा ए मया के बँधना ह जादा कसा जथे त करलाथे जरूर फेर वोतके सुहाथे घलो।
समिति के वार्शिक सम्मेलन होना रिहिसे। समिति के गठन तिहार के संगे संग हमर समिति हँ वो दिन साहित्य अउ कला दूनो क्षेत्र के एक एक पूरोधा मन के सम्मान करे के निर्णय ले रिहिन हे। साहित्य ले बिलासपुर वाले श्री विनयकुमार पाठक अउ संस्कृति ले हमर छत्तीसगढ़ के शान मान अउ जान पद्मश्री खुमान साव ल सर्वसम्मति ले चुने रहेन। अहसे तो वार्शिक सम्मेलन म हर साल एक साहित्यकार के सम्मान समिति के गठन 1 जनवरी 1995 से चले आवत हे। ए दफे हमर समिति के दूसरइया बछर रिहिसे जेमा कला के क्षेत्र ल सामिल करे रहेन। हमर समिति के तरफ ले लोक कला के क्षेत्र म सम्मान पवइया पहिला कलाकार खुमान साव जी भले नोहय। फेर पहला सम्मान के हकदार वास्तव में उहीच रिहिसे।
पहिली बछर सम्मान के नेवता नरियर धरके जब हमर समिति के संस्थापक सदस्य राजकमल दर्रिहा अउ हमार मंच संचालक सुमधुर सुर के धनी महराज अनिल तिवारी जी जब साव जी तीर गइन त साव जी कहिस कहिथे- मोर तो नागपुर म कार्यक्रम हे। मैं ओला नइ छोड़ सकंव। तुमन चाहौ त कविता वासनिक के सम्मान कर सकत हौ। उहू तो ए सम्मान के ओतके हकदार हे। खुद के सम्मान ल अतेक असानी ले उही तियाग सकथे जेन अपन कला अउ संस्कृति के रक्षा बर बाना उचाए रहिथे। जेकर तीर अतका चउँक चाकर छाती अउ वो छाती म ओतके बड़ करेजा हो सकथे। कहूँ साव जी सम्मान के भूखे होतिस त हमर कार्यक्रम के दिन तिथि के दिशा दशा ल बदले के प्रयास कर सकत रिहिसे। जइसे के आजकल देखे बर मिल जथे। फेर वोह निसंकोच एके भाखा म कविता वासनिक के नाम टिप दिस। जबकि वासनिक वो समें साव जी के संग्था चंदैनी गोंदा ले छिटक बिदक गे रिहिसे। कार्यक्रम अउ संस्था ले अलग कार्यक्रम चलाना माने आज के समे म बहुत बड़ बात, परिस्थिति अउ भेद ल इंगित करथे। फेर साव जी म अलगाव दुराव अउ मन मलीनता के वो बात चिटिक नइ दिखिस। साव जी अतेक सरल, सहज अउ विशाल हदय के धनी रिहिसे।
साव जी ल तो कार्यक्रम म जानच् रिहिसे। ओमा गुरतुर गोठ डॉट काम के संपादक श्री संजीव तिवारी जी के घलो जाना तय रिहिसे। चूँकि वो पइत मैं कुरूद (भिलाई) म बसत रहेंव। मोर किताब के विमोचन म मोरे जाना ढुलमुल ढइया होवत रहय। जाना तो रिहिसे फेर कइसे जाना हे ? जाके लहुटना तको हे। मैं इही असमंजस के झूलना म लटके झूलत रहेंव। मैं अपन परेसानी के चर्चा तिवारी जी तीरन करेंव। ओकर मोर चर्चा फोन म होते रहय। जाएच के दिन तिवारी जी उदुपहा मोला बताइस - मैं ह साव जी संग जाहूँ। वोह ठेकुवा ले दुरूग आही। दुरूग ले संघरा थानखम्हयि निकलबो। तिवारीजी के गोठ सुनके मैं तो अल्लर भइगेव। सोचे लगेंव - तिवारी जी के बनउका तो बनगे। मही फिसलगेंव। तभे तिवारीजी आगू बताइस। कहिस -सावजी के कहना हे कि मोर तीर चारचकिया हे। जाना सबो झन ल उहेच् हे । जगा घला बाँचही। ओमा चार झन जावन कि दूए झन पेटरोल तो ओतकेच लगना हे। निर्मल भर काबर छूटै। ओला मोर संग जाए म तकलीफ नइ होही त हमर संग चल सकत हे। अंधरा खोजै दू आँखी। मोर तो परे परे बनगे।
नियत समे अउ ठउर म हमन दुरूग म सकलाएन। सावजी अपन बताए बेरा म बिलकुल पहुँच गे। मै देखेंव - ओतका सियान अउ अतेक धियान। ओकर उमर लगभग 84 बछर रिहिस होही। तभो ओकर समे के पाबंद पैबंद ल माने बर परही।
साव जी संग ये मोर दूसरइया भेंट रिहिसे । मोला थोक थोक सुरता हे। गणेशपक्ष के समें रामनगर सुपेला म साव जी द्वारा निर्देशित कार्यक्रम ‘‘चंदैंनी गोंदा‘‘ के आयोजन रिहिसे। वो पइत मोर ससुर श्री सुमन लाल जी निर्मल हॅ ओमा उद्घोशक रिहिसे। वो पइत मोर रहना गाँव म होवत रिहिसे। उही समे मै कुरूद गए राहॅव। मोर साला संग चंदैनी गोंदा देखे के कार्यक्रम तियार होगे। जब रामनगर पहुॅचेन त ससुर जी ले मिलेन। मिलेन ए सेती काबर कि उन्कर कार्यक्रम गणेश पूजा ले चालू होवय तेन सरलग दसरहा ले देवारी तक राहय। ए बीच गाँव घर म उन्कर दर्शने दुर्लभ हो जाय। जब ससुरजी ले मिलेव त वोह साव जीले मोर परिचे करावत कहिस - एहँ मोर दमांद ए। साव जी एके बात पूछिस -दीप्ति इहाँके गुरूजी ? मैं सोंचते रहिगेंव। चूँकि वो कार्यक्रम के बेरा रिहिसे। त मिलना घलो स्वाभाविक औपचारिक रिहिसे। तभो साव जी के तीक्ष्ण बुध्दि ल देखौ। वो हँ अपन संगी संगवारी सहकर्मी मन के घर परिवार के अतेक भीतर तक पता राखय। तभे तो वोह मोर श्रीमती के नाम ल फट्टे ले दिस। नइ तो ओ समें गुरूजी के तीन बेटी के बिहाव होगे रिहिसे जेमा मै दूसरा नंबर के दमांद हरंव अउ मोर बिहाव पइत मोर सारी के घलो बिहाव होए रिहिसे।
तो ए पइत हमर दूसरइया भेंट रिहिसे। गाड़ी म बइठेन त बइठते साथ तिवारी जी मोर ले किताब माँग के सावजी ल देवत कहिस -उही कार्यक्रम म ए किताब के तको विमोचन होवइया हे सर। सावजी ओती किताब ल झोंकिस अउ एती मोर घुरघुरी चढ़गे। वो ठहिरिस संगीत सम्राट अउ मोर किताब गजल संग्रह। पता नहीं कब का पूछ देही। कुछ दूर तक गाड़ी भीतर सन्नाटा गूँजत रिहिस।
गाड़ी सरपट दउँड़त रिहिस। थोरिक देर बाद अपने हँ सन्नाटा ल थाम के कहिस- तैं गाथस घलो का धर्मेन्द्र ? मै कहेंव - जी नहीं। मै सोंचते रहेंव के अब एकर हरमुनिया चरपराही अउ एती मोर तबला बदबदाही। बदबदाही ए सेती काबर के वो बेरा ओकर आगू म मैं न कुछू बोले के लाइक रेहेंव न कुछू बोले के स्थिति म। फेर गजब जल्दी मोर शंका कुशंका के दीया चुमुक ले बूझा गे। सिरिफ अतके अउ पूछिस - तोर ससुरार कोन गाँव ए ? ससुरार छोड़ सब जानकारी मोर किताब के पछीत म लिखाएच रिहिसे। इही भर बाँचगे रिहिसे। बाँचे बात ल पूछके सावजी अपन जानकारी के साज सवाँगा ल सजा लिस होही। अइसे जतका मै ओला अभी तक समझ-परख पायेव तेन हिसाब से ओकर सुभाव के मुताबिक मोर अनुमान हे। बाकी का सहीं का लबारी उही जानय।
तेकर बाद तिवारी जी के साथ रस्ता म बहुत देर तक गोठ बात होवत रिहिसे। हवा के सरसराहट अउ थोरिक कमजोर घ्राण शक्ति के चलते मैं जादा नइ सुन पाए औं फेर अतका बजुर सुरता हे के सावजी हर लता के संग सिरकत करे हे। नागपुर म रफी के कार्यक्रम म संगीतकार के रूप म संगत दे चुके हवय। अइसे वोह बतावत जावत रिहिसे। कुछ दूर तक वातावरण फेर शान्त होगे। गाड़ी भर ह अपन दफड़ा ल फड़फड़ावत दउँड़त राहय।
मोला अच्छी तरह सुरता हे ओला पहिली मुलाकात म तको अइसने देखे रहेंव जइसने अभी देखत हौं - सादा पहिराव ओढ़ाव। बस बंगाली पैजामा। कोई नवीनता नहीं कोनो बदलाव नहीं। घर अउ देस दुनिया बर उही कपड़ा रंगमंच बर उहीच्। रिगबिग मोर चंदैनी गोंदा। सदा सुहागी निसदिन हरियर।
जावत खानी चाहा पीए खातिर साजा म रूकेन। उहॉ रामनाथ साहू तबलाहा हे। सावजी के अंधभक्त। मैं ओकर तबला सुधारक दूकान ले जब ओला फोन करके बताएँव त सावजी के दर्शन बर 20 किमी. दूरिहा कोई गाँव ले अपन काम ल छोड़के गिरत अपटत आगे। साजा के तत्कालीन विकासखण्ड शिक्षाधिकारी राज सर घलो साव जी के परमभक्त। रामनाथ हमन ल राजसर के घर लेगे। परिचय परम्परा अउ क्षेम कुशल के बाद राजसर अपन गीत के डायरी ल सावजी ल सौंप दिस। जेला वो ह बड़ धियान लगाके पढ़े लगिस। पढ़िस भर नहीं दिल खोलके तारीफ घला करिस।
तब तक नाश्ता आगे। जब मेडम नाश्ता लेके आइस। सावजी ओकर ले खोदर खोदर के पूछे लगिस- तोर मइके कहाँ हे ? के भाई बहिनी हौ ? तोर ददा का करथे ? भाई मन का का करथे ? उन्कर ससुरार कहाँ हे ? इही बीच अपन बहू बेटा के बारे म बतावत घलो जावव। जेकर ले कोनो कोने रिश्तादार के गाँव एके निकल जाय या नहीं तो एके तीर म निकल जाय। एकर ले जुराव के एहसास होय लगय। वो समय साव जी के प्रश्न अउ मेडम के उत्तर ल सुनके अइसे महसूस होय लगे रिहिसे कि जना मना एमन तइहा के मिलत भेंटत आवत एके घर परिवार के मनखे ए का ? मेडम के चेहरा अउ हाव भाव ले वो अपनत्व खुलापन अउ लगाव के खुशी साफ साफ दिखब झलकब म आवत रिहिसे। आखिर म छत्तीसगढ़ माटी महतारी ले जुड़े, नारी मन के मया पिरीत अउ अपनत्व के भाव भरे प्रश्न - का साग राँधे हस ? हँ सबो झन ल मया के दाहरा म बोर के उबुक चुबुक कर दिस। उप्पर ले साव जी एक ठिन बड़े जन अउ मोटरा मड़ादिस ताकि वो मेडम ये मया म बँधाएच् राहय। कहिस - अउ दफे आहूँ त तोर हाथ के राँधे खाए बिना नइ जावँव। माने साव जी के बोले के लहजा, ओकर शिश्टता, सौम्यता अउ सभ्यता संगे संग संगीतमय खनखनावत मीठ भाखा हँ कोनो ल भी सम्मोहित कर डारत रिहिसे त मेडम हँ कइसे नइ मोहातिस। हमन तो खैर मोहाए बँधाए दुरूग ले जातेच् रेहेन।
सम्मान अउ विमोचन कार्यक्रम के निपटते ही कवि सम्मेलन के कार्यक्रम ल बीचे म धकिया के हमन तीनों मंच ले उतर गएन। अउ दुरूग बर रवाना हो गएन। दुरूग के आवत ले नहीं नहीं म रात दू बजइया रिहिस होही। रस्ते म साव जी बताइस के दुरूग म जयप्रकाश (साहित्यकार -समीक्षक) घर थोरिक अमाबो। अइसे तो सावजी के बात ल काटे के हिम्मत तिवारीजी के घलो नइ रिहिसे त मै कोन खेत के ढेला रहेंव जेन पार बाँध डारतेंव। तभो प्रश्नात्मक लहजा म मैं तिवारी जी के मुँह ल देखेंव। तिवारी जी ल थोरिक बल मिलगे। एक ले दू भले। तिवारी जी आधा डर आधा बल करत डारा छुवौला पेंड़ हलाव टाइप प्रश्न के लबादा मारिस - अतेक रात कुन जयप्रकाश जी ल उठाबोन .......परेशान नइ होही सर ? साव जी जुवाब दिस - एमा का परेशानी वाले बात हे। उठही काबर नहीं ! उठही घलो अउ खाबो कहिबो त राँधही घलो। फोकट के भतीजा बेटा नोहय, करेजा ल चान के दया मया बाँटथन तब रिश्ता के डोर बँधाथे तिवारी जी, फोकट म नइ होवय।
मैं अउ तिवारी जी एक दूसर के मुँह ल बोकबाय देखे लगेन। दूनो के चेहरा आँखी अउ भाव म एके अचरज अउ एके प्रश्न तउरत रिहिसे- अपन नता -सैना, अपन परिवार के बीच अतेक अधिकार ? अतका अधिकार ककरो तभे हो सकथे जेन अपन कर्तव्य अउ जुम्मेदारी ल ओतके सिद्दत के साथ निर्वहन कर सकथे।
धर्मेन्द्र निर्मल
ग्राम पोस्ट कुरूद भिलाईनगर जिला दुर्ग (छ.ग.)
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