Saturday, 23 November 2024

भाखा

 भाखा 


  वइसे तो संसार मा सबो भाखा अपन-अपन जघा मा महान हे। फेर आन भाखा के शब्द ल अपन भाखा मा बिना सोचे समझे बउरना या आन भाखा के अर्थ अपन भाखा मा निकालना भाखा के संग अनियाव होथे। अइसन करे ले भाखा मनखे ल कभू-कभू हँसी के पात्र बना देथे। 

         नादियाखुर्द गॉंव छुरिया ले 10 कि.मी. दुरिहा मा रक्सेल दिशा मा बसे हे। उहाँ ले महाराष्ट्र सीमा लगभग 15 कि. मी. दुरिहा मा हे। गाँव के लोगन मन के महाराष्ट्र आना-जाना सामान्य बात हे। सन-1997 मा नादियाखुर्द के आसपास के गाँव के लोगन मन के देवी-देवता अउ भूतप्रेत मा विश्वास आम बात रिहिस। उसी अंधविश्वास के चक्कर में महिला मन बेटा उपास रहे लगिन। कुछ महिला मन ल पूछे मा पता चलिस कि महाराष्ट्र मा नाग देवता कोई मनखे ल परगट होके केहे हे कि जेकर एक झन बेटा हे वो महिला मन ल बिरस्पत (गुरुवार) के नाग देवता के उपास रखना हे। अउ डूमर मा दूध चढ़ाना हे। नहीं ते अनहोनी हो जाही। मँय बोलेंव नाग तो भोंड़ू  मा रहिथे, तब डूमर मा दूध काबर चढ़ाहू? नाग देवता तो भोंड़ू मा रहिथे। केहे लागिन कि सब चढ़ावत हे त हमू मन चढ़ा देवत हन। एक दिन काम से मोला महाराष्ट्र जाना परिस। सेलून मा दाढ़ी बनवावत अचानक मोर धियान मा उपास वाले बात आइस। सेलून वाले ल पूछेंव। सेलून वाले बोलिस - हव उपास तो रहत रिहिन महिला मन। फेर का सच का झूठ मँय नइ जानो जी। मँय पूछेंव कि दूध ल उपासिन मन कहाँ चढ़ाय ? वो बोलिस- भोंड़ू मा। मँय केहेंव - फेर हमर कोती तो डूमर मा चढ़ावत हे। सेलून वाले बोलिस- अरे, नहीं भई वो मन अपन भाखा मा आन अर्थ निकाल डरिन। हमर मराठी मा भोंड़ू ल हमन डूमर कहिथन। गाँव मा आके लोगन मन ल बतायेंव। सबो मन हाँसे लगिन। तेकरे सेती कहिथों, दूसर के भाखा ल बिना समझे, बिना जाने, नकल नइ करना चाही। 

         जुन्ना समय मा गाड़ी-मोटर अउ सड़क के अभाव रिहिस। लोगन मन के सम्पर्क दुरिहा-दुरिहा के मनखे मन ले नइ हो पावत रिहिस। तेकर सेती भाखा सिमट के रहिगे रिहिस। केहे जाथे- ' कोस कोस मा पानी बदले, चार कोस मा बानी'। पानी के स्वाद कोस कोस मा बदल जाथे अउ चार कोस दुरिहा मा मनखे के बानी माने भाखा। 

जइसे-जइसे पहुँच मारग सुधरिस, आवागमन के साधन बाढ़िस। लोगन मन के मेल-मिलाप दुरिहा-दुरिहा के मनखे मन ले होइस। एक -दूसर के भाखा के आदान-प्रदान होए लागिस। आज के समय मा खाये पीये के जिनिस तक मा मिलावट देखे-सुने बर मिलथे। तब भाखा कइसे अछूता रहिहि? आन भाखा के शब्द ल अपन भाखा मा मिलाके बोले के चलन होगे हे। येकर एक कारण तो शार्टकट के जमाना हे, लोगन के पास जादा बोले के समय नइ हे। अपन बात ल कम शब्द मा कहि देना चाहथे। कतको मन अपन बुद्धिमानी देखाय खातिर आन भाखा के शब्द ल अपन भाखा संग परोसे लगथे। फेर जादा आन भाखा के मिलवट बात ल समझे मा कठिन बना देथे। आजकल अंग्रेजी के चलन जादा बाढ़गे हे। कतको मन सोचथे कि अंग्रेजी के शब्द मन ल बउरना जादा पढ़े-लिखे होय के निशानी आये।मँय कहिथों कि भाखा उही अच्छा होथे जेकर अर्थ ल सबो मन समझ सके। समझ ले परे भाखा बोले ले चुप रहना बने होथे। भाखा अपन आप ल बुधमान साबित करे के साधन नोहे। बल्कि अपन बात ल दूसर तक पहुँचाये के सिरिफ एक माध्यम होथे। आन भाखा के उपयोग के संगे-संग अपन भाखा के घलो चेत करना बहुत जरूरी हे। नहीं ते नवा के चक्कर मा हम अपन महतारी भाखा ल भुला जाबो। येकर बर साहित्यकार मन ल चेत करे के जरूरत हे।


             राम कुमार चन्द्रवंशी

              बेलरगोंदी (छुरिया)

              जिला-राजनांदगाँव

टेक नीक

नान्हे लघु कथा -


          टेक नीक 

सब देखत रहिगे l देखते देखत होगे l 

बढ़िया एक सांगर मोंगर जवान 

लइका झोला धरे बजार जावत रहिस l ओती ले  टेक्नोलाजी के जवान लइका अपन बाईक म टेक्निक देखावत कन्फॉड़वा अवाज ले भर्र ले निकालीस l

बिचारा धर मराके के नाली म गिरके l एक झन दौड़त आके उठाथे l नई रेंग सकीस त एक लकड़ी ला धर के रेंगाथे l

बिचारा टेक टेक  करत घर आथे l

पूछिस एक झन -"कइसे लागत हे l"

अब का कइही?ओ  हर टेक टेक के रेंगत आइस l नीक नीक लागत हे के पिरावत हे?

टेकनीक देखय्या मन टेकनिकल म पूछत हे l एक टेकनेसीयन टेकनीक देखावत भगागे l ओला कोन देखही?


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

मोटरा*

 पोखनलाल जायसवाल: *मोटरा*


बेरा उवे के बेरा होय हे। उत्ती मुड़ा के अगास ललहू बरन दिखत हे। चिरई-चिरगुन मन अपन पाँख ल खजवा के कुँदरा ले उड़ा गे हें। ...बेरा के अँजोर तरिया के पानी म पहुँचे लगिस। अइसे लगत हे मानो सुरुज नरायण ह तरिया के पानी अपन मुँह धोवत हावे। 

         रोहित ल जग्गा घर आवत आठ दिन होगे। बेरा के सँघरा आथे। एको दिन नागा नइ करे हे। आठो दिन म। दूनो झिन मिलथें, बखरी डहर जाथें, बेरा के चढ़त ले गोठियाथें। का गोठियाथें? भगवान जानैं अउ वो दूनो कोई जानै। रोहित हर साल देवारी ल मानथे अउ दूनो परानी चल देथें ठेकेदार के संग जिये-खाये बर। माटी के घर ...तब ले जस के तस हे। एक ठन ईंटा नि मढ़ाय सके हे, अपन कमई ले। बाप-पुरखा के घर म। छानही ह खपरा ल जोहत रहिगे। अब तो खपरा घलो नइ मिलत हे। कमपापड़ के भरोसा चउमास ल बिताथें। तीन कुरिया हें अउ छह परानी रहिथें। दू नोनी पाछू एक झिन बाबू हे। महतारी जउन वृद्धा पेंशन भरोसा अपन जिनगी ल गुजारत हें। जतका कमाथे ततका ल पी-खा के उड़ा देथे रोहित ह। ओकरे उमर के अउ कतको झिन हें, जउन मन अपन जाँगर भरोसा घर ल सिरजा डरे हें। 

      मातर के दिन राहय, मंद पी के मातगे राहय रोहित ह। नशा म सबो के भादो उजाड़ कर डरिस। महतारी बेटी काहीं च के हियाव नइ करिस ...। नशा के उतरे ले रतिहाकुन जेवन जेवत महतारी तिर बइठे अउ असो फेर पलायन म जाये के नेत ल धरत हावय। ओकर मन के गोठ ल टमर के महतारी ओला बरजत कहिथे- 'दसो बछर होगे, साल के साल बाहिर चल देथव। आथव त जुच्छा हाथ आथव। का मतलब होथे? तुँहर कमाय-खाय बर परदेस जाय ले। ओकर ले तो इहें रहिके कमातेव-खातेव। लइका मन घलो बरोबर पढ़ लिख लेतिन।' गोठ ल आगू बढ़ावत दाई ह सरलग कहत जावत हे- 'पंच-सरपंच मन ले मिल के घर ल आवास योजना म बने बनवा डारते।.... कागज-पत्तर दे बिना आवास कइसे तोर नाँव म आही? गोहराय ल पड़थे बाबू।' ए दरी दाई के गोठ म सीख अउ ताना दूनो सँघरा रहिस।

     रोहित जग्गा घर ले लहुट के घर आइस, त महतारी ओकर बर बिफर गिस। का जरुरत हे? तोला जग्गा घर जाये के। तुमन ल जाना हे त तुमन जावव, कोनो ल काबर बिल्होरथव? जेन कभू गे नइ हे तउन ल काबर लाहो लगावत हव? सुने हँव ते,... तें ह जग्गा ल संगवारी धरत हस। अठुरिया होगे ओकर मेर सरलग जावत तोला।

०००

       कातिक के महीना आय। देवारी तिहार म हरियाय घर-अँगना एक पइत फेर सुन्ना दिखे धरलिस। गाँव बर पहुना बने चिन्ह -चिन्हार मनखे मन अपन-अपन बसेरा कोति फेर ओसरी-पारी लहुटे धरलिन। प्रवासी चिरई जउन लहुटगे हें। मउसम के बदलते लहुट तो जथें, दूर देश ले आय अनगइँहा चिरई-चिरगुन मन। भूले-भटके मन दू-चार दिन म लहुटहीं। तहाँ ले ... गाँव के हाथ आही, उही सुन्ना के सुन्नापन।

     कोन बइरी के नजर लगे हावे ते मया-दया के सुग्घर छाँव ल छोड़ सबे कोई बाहिर जाये के झोझा परत हें। ठेकेदार मन ल बइठे-बइठाय रकम मिले के आय। पछीना ओगराना तो इन ल हे। इहें अपने भुइँया म पछीना ओगरातिन का जातिस? हवा लग गे हे। बाहिरी हवा। अइसन हवा,...जेकर उतारा म झाड़-फूँक तो हे नहीं। कोनो इलाज रहितिस ते अपनातिस कोनो।

      सरकारी रिकॉर्ड म गाँव के जनसंख्या हजार ले पार मिलही। फेर गाँव म रहिथें, उही ले दे के छे सौ-सात सौ मनखे। बाकी मन बस ...पलायन...। एक समे रहिस, जब गाँव म सब के पेट भर जावय। कोनो हाथ ह खाली नइ राहय। सब बर बुता राहय। 

       खनती-कुदारी तो भुलागे। ढेलवानी का आय नवा पीढ़ी तो जानबे नइ करय। राहेर, चना, तिंवरा, मसूर बोवाही च नहीं त दार मन के भाव ह बरेंडी मचढ़बे करही। भाव के अखाड़ा म सरकार अउ विपक्ष दूनो तमाशा दिखाबे करहीं। 

        जादा पढ़-लिख ले हन कहिके पुरखौती बुता ल भावँय नहीं। माटी-गोंटी के बुता करे ले तो ढेरियातेच हें। बने डपट के पढ़ई करतिन त का होतिस? सरकारी योजना के फायदा घलव चतुरा मन ह उठाथें। एके ठउर म नइ रेहे ले योजना मन के फायदा घलव नइ मिल पावय।

        सरकार ह लइका मन के शिक्षा बर कतेक उदिम करत हावय। फोकट म किताब, फोकट म कपड़ा अउ मँझनिया बेरा के खाय के बंदोबस्त घलव करे हे। हाई स्कूल के नोनी मन ल तो साइकिल दिए जाथे। ...तब ले पढ़ई के स्तर उही सोला दूनी आठ वाला किस्सा। 

      दाई-ददा मन चेत नइ करँय, तहाँ लइका ह दू दिन स्कूल जाथे अउ दू दिन नइ जावय। गली म गोल्लर बने घूमत रथें। गुरुजी मन घेरी-बेरी घर आथें। लइका ल सरलग स्कूल पठोय बर कहिथें। फेर... उँकर कान म जूँहा रेंगबे नइ करय। अइसन म भला कइसे सीख पाही लइका ह। कतको मन तो जिहाँ जाहीं, उहें संगे म ले जाथें। उँकर पढ़ई के चिटिक ध्यान नइ देवँय। गाँव म रहि जथे त सिरिफ घर रखवार सियान।

       गाँव रखवार सहीं, डेरउठी राखत बइठे रहिथें सियान मन। बमियावत रहिथें बपुरा मन अकेल्ला म। खाये हे तब बने, नइ खाये तब बने। हियाव करइया कोनो तो हैच नइ। हाथ जरोवत दू मुठा चुरो के पेट ल भर लेथें। मन के पीरा मन भीतरी डबकत रहिथे। मनखे के जिनगी घलव चिरई-चिरगुन ले आने नइ जनावय। पाँख आइस नहीं कि अपन उड़ान भरे लगथे। न आरो देना न आरो लेना। माधव के देना न माधव के लेना।

       काय करय जाँगर रहितिस त सिरजातिन अपन सरग बरोबर गाँव ल। माटी के बाकी करजा ल उतारतिन। माटी के जस गातिन। पछीना ले भुइँया ल महकातिन। कभू-कभू मन करथे, धरती बर बोझा होगे हे जिनगी ह। साँसा के राहत गाँव छोड़न नि भाय। 

      गाँव जेन बर, पीपर अउ लीम के जुड़ छाँव बर जाने जाथे। जेकर बर कभू रेडियो म गीत सुने ल मिलै....छोड़के आमा, बर, पीपर के छाँव, 

          मैं कहूँ नइ तो जाँव...

          वृंदावन लागे रे ...मोर गँवई गाँव। 

          वृंदावन लागे रे मोर गँवई गाँव...

       आज उही आमा, बर, पीपर अउ लीम के छाँव सुसकत हावे। बोमफार के रोवत हे। फेर कोनो सुनइया नि हे। ओकर दुख-पीरा के बँटइया नइ हे। सुन्ना अपन पीरा म दँदरत हावे। जेन छाँव म खेले-कूदे हावे उही छाँव बिरान लागत हे। 

०००

     वो दिन बड़े फजर ले साने गोबर ल थोपत रोहित के दाई बड़बड़ावत रहिस। कोन जनी आज फेर काकर खटिया-पाटी ल निकालत रहिस ते। रोगहा मन अपन करनी ल मोर बेटा के मुड़ म खपल दिन अउ साव बने हे। गाँव के सियानी करत हन कहिथे..... आज ओकर मया अपन बेटा बर पलपलावत रहिस हे। कछु होवय महतारी के हिरदे म अपन लइका बर अगाध मया रहिबे करथे। ममता के सागर होथे महतारी। जेकर हिरदे के मया के बउली कभू अँटावय नहीं।

       ओकर गारी-बखाना ल सुन के जग्गा के सुआरी कमला पूछ परिस, का होगे काकी कोन ल बखानत हस राम-राम के बेरा। कमला के तिखरई ल सुन के ओकर एड़ी के गुस्सा तरवा म चढ़गे। फेर कहि नइ सकिस कि तोरे घर वाला बर पहाड़ा पढ़त हँव अउ गाँव के सियानी करइया के आरती उतारत हँव।

         अपने मन ल धीर बँधावत कहिथे- ''घर जाके अपन गोसइया ले पूछबे। का बात आय? तेन ल उहू हर जानत हे। ''

       "अई! में का जानँव काकी? अतका ल जानत रहितेंव त तोला काबर पूछतेंव मोर महतारी।" बात ल बनावत कमला ह कहिस। 

       "अई! सरी गाँव चिहुर परगे हे अउ तें अभी ले अनजान हस, बही गतर के। ले जा घर म अउ जग्गा ले पूछबे।" ए घरी काकी के बाँचे गुस्सा ह कमला ऊपर उतरिस। 

       हव काकी काहत कमला ह लउहा-लउहा घर कोति रेंगे लगिस। रेंगत-रेंगत ओला रोहित के रोज़ के अवई ह सुरता आय लगिस अउ ओकर मन म कई किसम के विचार आय-जाय लगिस। 

       यहू सुरता आवत हे कि सरपंच कका घलव पाछू आठ दिन म चार दिन घर आगे हे। जेन कभू घर नइ आवत रहिस। ....इही बीच चहा देवत बेरा सरपंच के मुँह ले सुने गोठ सुरता आगिस। जग्गा! तोर धान बेचे के पारी कब हे? 

      जब मन के घोड़ा दउड़थे तब कोनो लगाम नइ लगा सकय। इही हाल कमला संग होवत हे। ओकर मन के घोड़ा बेलगाम होके दउड़त हे। खेती के बुता ल चउमास भर जी परान दे के करे हे। कुँवार के भागती बीमारी ह राहित बिटोय लगिस। दवई के करत ले कमला दँदरगे रहिस। ऐंठी ल गिरवी धर के कइसे दवई बिसाय हे। महतारी के पीरा ल उही जानथे। आय देवारी म लइका मन बर फटाखा काबर नइ बिसा सकिस। धान बेंच के नवा कपड़ा बिसाबोन कहिके कइसे भुलवारे हे। गाँव भर म जग्गा ल दू पइसा बर कोनो नइ पतियावय। अइसन म   कमला माईलोगन जात होके काकर मेर जातिस। मन मार के कलेचुप रहिस। 

       कमला के मन के घोड़ा काकी के गोठ ल अमर डरिस। काकी ह गारी-बखाना करत काहत रहिस। मतवार मन ल मंद महुआ बर कोन जनी कोन कोति ले पइसा मिल जथे। मूतत ले पीथे। बइहा बरोबर गिरे पड़े रहिथे। जुआ-चित्ती बर घलो पइसा आले-आले देथे। कखरो घर ल उजाड़ के कति ले सुख पाही? काकरो नोनी-बाबू के मुँह म पैरा-भूँसा गोंज के का पाही?

      कमला के मन भारी होवत हे। पाँव अब आगू जाए बर नइ उसलत हे। सरपंच कका के घेरी-बेरी अवई अउ काकी के गारी-बखाना ले ओकर जी घबराय ल धर लिस। कहू करजा उठा के ....। 

      मन म उठत कतको बात निराधार नइ राहय। जग्गा ह ऐसो देवारी के जुआ म बड़ अकन पइसा हार गे हे। खेत म खड़े धान के अवेजी म सरपंच ह ओला पइसा दे ऊपर देवई करय। जग्गा ह हारे जुआरी सहीं ए दाँव म हारे पइसा ल जीत जहूँ कहिके दाँव ऊपर दाँव लगावत गिस फेर जुआ काकर होय हे, तेमा जग्गा के होतिस। 

       वाह रे जुआरी अउ वाह रे सरपंच। का? अइसन देवारी ले तुँहर मन नइ अउटय। का सियान ह अइसने सियानी करथे। इही चर्चा गाँव भर होवत हे, फेर सरपंच के डर म कखरो मुँह ले आवाज खुल के नइ आवत हे।

       घर पहुँचथे त कमला देखथे कि जग्गा ह मुड़ धरे बइठे हावय। ओकर बाजू म खड़े रोहित काहत हे कि ठेकेदार काल अवइया हे। मोटरा बाँध के रेडी रहिबे।

 ०००


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग.



समीक्षा

11/15, 10:03 PM] राजकुमार 12: *मोटरा*

     कहानी पढके आनंद आगे। शुरुवाती ले आखिर तक कहानी मा वो सब नवापन भरे हे आधुनिकता हे। जेन हर बहुते कम देखे पढ़े बर मिलथे।

   कहानी मा मुहावरा कहावत हाना अइसे बउरे गेय हे जइसे बिना नाप तउल के अगमजानी तभो  साग मा सुवाद  सुहावन।

      पलायन एकठन पीरा भरे बिमारी आय  माटी महतारी के सेवा छोड़ के पर दुवारी पेटपोसवा बने के मनादसा ले मनखे कभू पनप नइ पाये हे। कमाय खाय बर तो जाथे फेर तीज तिहार मा घर वापसी मा आसा के मोटरा मा उही जुच्छा चेंदरा रथे जेन ला धरके निकले रथे।

     कइसनौ होवय आज सरकार के डहर ले कतको योजना हे जेकर ले मनखे दू रोटी गाँव घर मा खा सकत हे। बात हे तो मिहनत अऊ लगन के।

       फेर मिहनत माटी पलीत जब होथे जब सरपंच असन जुम्मेवार मनखे अपन स्वारथ बर खड़े फसल के दाँव जीते बर मनखेपना ला बेच देथे।

        हारै दाँव मा मनखे आखिर मा कोनों ना कोनों दूर देश के ईंटा भट्ठा कम्पनी नइते बड़का शहर मा बिल्डिंग उठाए बर रेती सिमेंट के समाला बनाए बर फेर मोटरा जोरत दिखहीं।

         कहानी के सबो पात्र सबके कथन अउ सबो घटना समाज बर बहुते सीख देवत हे।

      संवाद कम वाक्यांश उक्ती मा जेकर संबोधन जिंहा करे गेय हे। सही मायने मा कथा चित्रण करे मा कोनों कसर नइ छोड़े हे। 

        एक ठन गाँव रिहिस बड़का तरिया रिहिस एक ठन राजा रिहिस। लकड़ी बेंचइया मछरी बेंचइया रिहिस ये सब कहानी जुन्ना सँवागा मा अपन जगा मा सब बने हे फेर आज के अउ अब के मनखे मा उँकर सोच बिचार अउ कुविचार कुसंगत मा बदलाव लाये बर हे तौ मोटरा जइसन कहानी के आना बहुते जरूरी हे।

        आदरणीय भाई जायसवाल जी ला ये कहानी लिखे बर जौन डहर ले आड़ मिले हे, सहुँराय के लाइक हे।

आइसने नवापन भरे ले कहानी लेख के अगोरा सँग सादर बधाई।

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विकास*

 **विकास** 

            हिन्दी म एक ठन कहावत हे,पूत सपूत तो का धन संचय,पूत कपूत तो का धन संचय,।अकाश अऊ विकास पहलाद के दू झन टूरा राहय।दूनो झन के बर -बिहाव घलो हो गे रिहिस।बर बिहाव होय के बाद म देवरानी जेठानी, भाई -भाई म खींचातानी,हिजगापारी झन होय कहिके पहलाद हर भाई बंटवारा घलो दे दे रिहिस।अकाश हर बड़ मेहनती राहय।मेहनत कर करके अपन बंटवारा के घर ल पक्का घलो बना डारिस।अकाश हर अपन मेहनत के परसादे (बलबूता)म परिवार संग हंसी- खुशी जिनगी बितात राहय।ओती भाई विकास ह निच्चट कोड़िहा,अलाल। ओकर अलाली ले घर के दाई, ददा सुवारी हलाकान होगे।कहिथे जइसे -ज इसे संगत तइसे तइसे रंगत। विकास सबो जिनिस,का गांजा का दारु, सट्टा जुआ म रंगे राहय।अऊ रंगही काबर नही जी जब सरकार ह एक रुपया किलो म चांऊर,बर बिहाव बर पईसा,जचकी बर पईसा, फोकट म लईका के पढ़हई,लिखई,अऊ ते अऊ अब तो घर घलो पक्का घलो बना के दे देथे त काबर कमाही।इही पियई खव ई के चक्कर म खेती के करजा म घलो लदाय राहय।

               मढ़ई के दिन विकास लटलट ले पी के माते राहय।पहलाद के बहुरिया के आंखी ले आंसू ढरकत हे।संझा -संझा विकास के निशा थोरकिन उतरे लगिस। अकाश भाई के दुरदसा ल देख के समझाय के परयास (उदिम) करिस फेर एको नई सुनिस।वतका म पहलाद दहाड़ मार के कथे,तोला का होगे रे बेटा। ते कार नी समझस रे। विकास ह लड़खड़ात भाखा म कहिथे मे सब समझथो बाबू मे सब समझथो -विकास मतलब करजा माफी, सरकार मतलब- करजा माफी, विकास मतलब- फिरी फिरी------ह हा हा।

               फकीर प्रसाद साहू 

                    * *फक्कड़** 

                        *सुरगी*

लघु कथा - "कोन मेऱ गँवागे "

 लघु कथा -

      "कोन मेऱ गँवागे "


 "अभी के समय ला देखत हन 

विचित्र हे l कोनो ल कुछु झन काह ?"सियान पलटू बतावत रहिस l उही बेरा नतनिन तनु चाय पानी लाके देथे l

" ले चाहा पी ले l "

कप ला उठावत जगतू कहिथे 

" नोनी बर सगा नई आवत हे? " पलटू  कहिस -" रिस्ता जम नई पावत हे l नोनी ला नोनी असन राखे हन l कोनो डहर अकेल्ला नई भेजन l"

" घरेच म घलो नई रखना चाही l बाहिर आना जाना होथे त उंकरों दिमाग खुलथे हिम्मत आथे l "

"दूसर मन तो आन तान 

कहिथे, खुल्ला छोड़ दे हे l "

"उंकर  मन का हे,  जेकर सोच गलत हे,नजर दोस हे l"

नतनिन के नता म मजाक हो जावत होही? "

पलटू बताथे -" बने कहेस लोगन म नजर दोस हेl नजर घलो लगे हे l नजरिया घलो  बदल गे हे l  नोनी मन बर सगा  खोजाईया भला आदमी नई हे l बने बिचार कोन जनी कहाँ?

कोन मेऱ गँवागे हे l बखत मैनखे के मुँह ले बुराई  बुराई निकलथे l ओकर संस्कार ल नई देखय सुघराई के पीछू दौड़त हे l "

हाँ जगतू, अपन नोनी ला बार खार नई भेजन तेखर सेती 

बाहिर के हवा पानी ले नोनी बाँच गे हे l"


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

लोक गाथा के कथा संक्षेप*.

 *लोक गाथा के कथा संक्षेप*.      


            एक समे रिहिस जेमा लोक गाथा गायन विधा ले बहुते सोर बगराइस। अउ सुनइया देखइया के मन हिरदे मा बस जावय। किस्सा कहानी या गायन गाथा मा जुड़के मनखे खुद ला एक ठन पात्र के रूप मा समो लेवय अउ जान समझ लेवय। यहू सच हो सकथे कि कला अउ साहित्य के कउनो भी विधा मा जब तक हम अपन आप ला कोनो वर्ग विशेष के, पात्र विशेष के रुप मा नइ बइठार पाबो गाथा किस्सा या साहित्य सिरजन के आत्मा तक नइ जा पावन। लोक ले जुड़े हाना कहानी किस्सा गाथा कथन होवय चाहे रंग मंच मा लोक संस्कृति के रसपान बर अच्छा दर्शक बने सुनइया बढ़िया पाठक बने ला परथे, तभे सिरजन के पेंदी भाव तक जाए जा सकथे। लोक साहित्य लोक संस्कृति अउ लोक परम्परा मा सभ्यता संस्कार के झलक देखे जा सकथे।

        बाँस गीत, देवार गीत, लोरिक चंदा, भरथरी दसमत कैना जेमा लोक गाथा सुने बर मिलथे। सतनाम पंथ के पंथी नाच अउ गायन ला एक समे मा जातिगत कला मा बाँटके देखँय। फेर जब सांस्कृतिक कला मंच मा छाप छोड़े लगिस तब यहू भरम दूर होगे। अउ कलाधर्मी मन पंथी गायन वादन अउ नृत्य मा हिस्सेदारी निभावत हें।

 वोइसने देवार गीत प्रहसन गंमत मा मुख्य भूमिका निभाए बर कतको प्रतिभा तइयार खड़े मिलथे। ये समे के सँग बिचार भाव मा बदलाव के कारण आय। बदलाव के सबले बड़का कारण लोक संस्कृति के सँग रंग मंच अउ सांस्कृतिक कला मंच के हाथ बात हो सकथे।

      अब बात थोरिक बाँस गीत के - - - - -

      राउत ठेठवार भाई मन बाँस के वादन गायन करथें तब कतको गाथा के चित्रण करथें। राग झोंकइया रागी सँग किस्सा के बरनन गायन वादन सँग कथा वाचन तर्ज मा करँय। अब तो बाँस गीत के कलाकार बिरले मिलथे। इही बाँस गीत मा एक ठन किस्सा कंठी ठेठवार के गाथा आथे। जेन हर लोक मा बहुते सम्मान पाइस। ये मोर मति हो सकथे। किस्सा के सार संक्षेप अइसन हे----

      एक ठन राज मा एक झन बहुते लोक हितैषी राजा रिहिस। उही राज मा एक झन कंठी नाम के ठेठवार जेन हर जम्मो बरदी सँग रजवाड़ा के पाहट ला चरावय। एक बछर राज मा सुक्खा अंकाल परगे। पानी बिना काँदी चारा तको नइ जागिस। गाय गरू मन भूखे मरे लगिस। तब राजा हर पाहट के चरवाहा कंठी ठेठवार ला कथे कि भाई हमर राज के सबो गाय गरू मन बिना काँदी चारा के मरत हे तब तँय वोला अवइया बरसात सावन के बरखा सँग हरियर चारा जागत ले दूसर राज मा लेके जा। राजा के हुकुम ला कंठी ठेठवार ना नइ कर सकिस।अउ दूसर राज जाए बर तियार होगे। कंठी ठेठवार के घर हा गाँव के आखरी छोर मा रहय। अपन सुवारी ला राजा के पाये  हुकुम ला बताथे। अउ कथे कि मोला कालीचे जाना परही। छै आठ महिना तोला अकेला रेहे बर परही। अपन सुवारी के उदास सिकल ला देखके कथे कि तँय संसो झन कर, हमर दुवारी मा ये परसा के रूख हे तिंहाँ मँय अपन आत्मा प्राण जीव ला छोड़के जावत हवँ। मोला जानके ये रूख के सेवा सम्मान जतन करबे। मोला अउ तोला काहीं आँच नइ आवय।

       दूसर दिन कंठी ठेठवार बरदी पाहट ला लेके दूसर राज चल देथे। दू महिना के बाद राजा गाँव के गली खोर के सुधार बर या आने काम लेके अँगना के परसा रूख ला काटे के आदेश भेज देथे। ठेठवारिन के लाख बिनती करके मना करइ कोनों काम नइ आइस। राजा के हुकुम कहिके सेवादार मन पेड़ ला काटके गिरा देथें। ये डहर पेड़ कटथे अऊ वो डहर कंठी ठेठवार के प्राण छुटथे। कंठी ठेठवार घलो बड़का तपसी साधक मनखे रिहिस। तेकर सेती अपन प्राण आत्मा ला परसा पेड़ मा छोड़के जाए रथे। पेड़ कटे के चार पहर बीतत खबर आथे कि कंठी मरगे। फेर असल मरम ला ठेठवारिन जानत रिहिस कि ये पेड़ मा पति के प्राण हावय। लाख उदिम अउ बिनती ले घलो न तो पेड़ ला बचा पाइस ना पति के प्राण ला बचा पाइस। आखिर मा चूरी उतरगे।

         संजोग कि कंठी के राज छोड़े के बखत ओकर सुवारी अम्मल मा(गर्भवती) रिहिस। समे के सँग कोख मा सिरजत लइका दुनिया मा अवतर के धिरलग बारा बछर के होगे। अपन महतारी ला रोज साँझे बिहना पेड़ के ठुड़गा के पूजा करत देखय। तब कइयो दिन के जिद्द कि काबर ये ठुड़गा के पूजा करथस। इहाँ तो कोनों देव देवी के सिकल नइये। ये तो कटाय पेड़ के ठुड़गा आय। जिद्द मा हारके महतारी असल बात ला बताथे कि ये हर बडका परसा पेड़ के ठुड़गा आय। इही पेड़ मा तोर बाप के प्राण आत्मा बसे रिहिस। जेन ला राजा हर कटवा दिस, जेकर ले तोर बाप के मरन होगे। जम्मो किस्सा ला अपन महतारी ले सुनके बेटा घुसियाके बदला लेय के परन करके राजा घर नौकरी करे बर चल देथे। उहाँ राजा के बेटी जेन ओकर जौजर (हम उमर) रिहिस। तेनला प्रेम पिरीत के जाल मा फाँस लेथे। राजा कुँवरी के प्रेम हठ मा बिहाव बर हामी भर देथे। दुनों के बिहाव करके पाँच गाँव के जमीदारी दाइज मा दे देथे। बिदा करके जावत जावत कुँवर ठेठवार कथे कि आखरी बेरा मोला मोर पुरखा के देवता के दरशन करना हे अउ नवा दुलहिन ला घलो पूजा करवाना हे कहिके जुन्ना घर मा ले जाथे। अउ ठुड़गा ला देखावत नवा दुलहिन ला कथे कि ये हर हमर कुल के देव आय एकर सुमिरन कर अउ माथ नँवा। नवा दुलहिन जइसे नमन भाव मा शरन परके ठुड़गा मा माथ नवाथे ठेठवार पूत कुँवर हर अपन तिर लुकाके धरे फरसा मा अपन दुलहिन के नरी ला काटके ठुड़गा मा चढा देथे। अउ अपन महतारी ला कथे कि दाई आज मोर बाप के आत्मा ला शांति मिलिस। अइसन अनहोनी के भान महतारी ला नइ रिहिस। ओकर सोच ये रिहिस कि बेटा सब ला भुलाके नवा जिनगी जिये बर जावत हे।

      सँगवारी हो ये तो एक ठन बाँस गीत मा गाये वाला गाथा रिहिस। जेन हर लोक गाथा मा अपन अलगे पहिचान रखथे।

        सन् 80/90 दसक के बीच एक ठन नाटक *हरेली* के नाम ले मंचन होय रिहिस। जेकर पटकथा शायद प्रेम साइमन लिखे रिहिस। जेमा ये जम्मो कथा ला मंचन करे गेय रिहिस। संजोग ले वो नाटक ला महूँ देखे रेहेंव।

     जेन मन ये गाथा कहानी ला जानत होही। नाटक हरेली ला देखे होही वो मन मोर बिचार आलेख के खंडन कर सकथे। मोला सब मंजूर हे।

        लोक गाथा मा *देवार गीत* घलो आ सकथे। इहाँ नव टप्पा बाँध नौ लाख ओड़निन ओड़िया के सँग प्रेम पियासे प्रसंग देखे ला मिलथे।

    *भरथरी* राजा भरथरी के गाथा चित्रण मा घलो प्रेम के आड़ मा ही प्रेम बिमुख होय के प्रसंग आथे।

  *दसमत कैना* यहू लोक गाथा के भीतर रचे बसे किस्सा आय।

   *लोरिक चंदा*. - - - येला एक समे मा उढ़रिया नाचा कहँय। एकर सेती कि जम्मो गाथा कहानी के सिरजन प्रेम प्रसंग ले ही जुड़े हे। चँदैनी देखइया सुनइया मन के सोच मा ये बइठ जाथे कि आखिर मा चंदा हर लोरिक सँग उढ़रिया भगा जाथे।

       अब ये गाथा किस्सा कहिनी के पेंदी मा जानकार मन खुसरिन तब पाइन कि उढ़रिया एक ठन बहाना आवे असल मा चंदा के पति श्रापवस कोढ़ के रोग ले ग्रसित हो जाये रथे। श्राप देवइया देव अंश या कोनो तपसी मुनि हर मुक्ति बर इही उपाय बताए रथे कि फलाना राज मा फलाना राजा के बेटी बनके अवतरबे उहाँ के लोरिक नाम के राउत ला ये जगा मा लानबे अउ ओकर हाथ के पानी पीही तब तोर पति ला रोग ले मुक्ति मिलही।

       चंदा अपन पति ला ही मुक्ताय बर ही प्रेम प्रसंग मा उढ़रिया भागे के नाटक करके लोरिक ला इही जगा मा लानथे। जिहाँ ओकर पति कोढ़ रोग मा असहाय परे रथे। चंदा जबरन अनजान बनत कथे कि ये बिमार मनखे पियासे होही, येला पानी पियादे  कहिके बिनय करथे। लोरिक चंदा के बात राखत नदिया के पानी ला पसर मा भरके लानके पियाथे। जइसे लोरिक हाथ के पानी पीथे चंदा के पति चंगा हो जथे। लोरिक कुछु समझ नइ पावै। तब चंदा लोरिक सँग रचे प्रेम के नाटक ला बताथे कि इही मोर असली पति आय। अपन पति ला मुक्ताय बर ही तोला इहाँ तक लाने हवँ। अउ लोरिक के चरन छू के माफी माँगथे। असल कहानी इही ला बताथें।  फेर आज तक कतको देखइया सुनइया मन चँदैनी ला उढ़रिया किस्सा ही मान लेथे।

    चँदैनी गायक कलाकार रामाधार साहू घलो अपन मंच के आड़ ले एकर संक्षेप जानकरी देय रिहिस। अउ यहू बताइस कि एकर लिखित दस्तावेज रायपुर के संग्रहालय मा हावे।

    सँगवारी हो कभू कभू कुछ बिचार मन मा तउँर जाथे तब मन बिश्राम कलम घलो चल जथे। आप सबो के तिर पठोय के कोनों बिशेष मंसा नइये।  काबर कि लोक ले जुड़ के अइसन विधा उपर ठोसलग बूता करइया चेलग गुनिजन हमर बीच  हावे। अतका लिखत ले मोला आत्मिक सुख मिलिस ये वोकरे साझेदारी आय।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

लघु व्यंग्य कथा - " ले गोठिया ले "

 लघु व्यंग्य कथा -

    " ले गोठिया ले "

नाम भले भकला रहिस फ़ेर ओकर करा बोले के कला बढ़िया रहिस l तकिया कलाम म ओकर पहिचान  "ले गोठिया ले " भकला के जुबान म l

सगा समधी सजन मन सुरता करय l

तीजऊ के संग ओकर तारी नई पटत रहिस l

एक दिन तीजऊ के घर झंझट के सेती बैठका होवत रहिस l

भकला ला घलो बुलाये गे रहिस l झंझट कुछु नहीं  परदा ल कूद के गोल्लर आके धनिया के डोली ला राउंद डरिस l गोल्लर ला अंकालू ढीले रहिस l बात बढ़त बढ़त बाढ़ गे l

भकला के बोले के पारी आगे 

" ले गोठिया ले, गोल्लर तो ककरो नई होवय ढीलागे त l "

अंकालू -" हव उही ला महूँ कहत हँव l"

तीजऊ -"मोर बारी बखरी उजरगे तोला हरियर के तगवा सूझे हे l"

भकला -"ले गोठिया ले, गोल्लर अपन काम करथे बारी ककरो होय धनिया हो मुरई.. I 

अंकालू -" जब ले बछिया के पाछू परिस तब ले गोल्लर ढील देंव तोर बारी तो आज बनीस ना l"

भकला-" ले गोठिया ले, 

बछिया  बर गोल्लर ढीले हस का? बछि या के का हाल करत होही?"

तीजऊ -"उही तो  बछिया  वाले चुप हे l"

भकला -" ले गोठिया ले, अपन अपन बछिया ला बांध के राखव l "अंकालू -"बारी के धनिया के.. I"

भकला -"ले गोठिया ले, गोल्लर के गोबर के हिसाब ले 

दांड परही l"

 तीजऊ खिस यावत -" ले गोठिया ले, ले गोठिया ले कहिके  गोल्लर ला बचा देस 

भकला गतर  बछिया बर l"


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

करजा माफी - कमलेश प्रसाद शर्माबाबू -

 छत्तीसगढ़ी कहानी

            करजा माफी

- कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

  भरे देवारी तिहार के दिन पूरा गाँव सुन्न होगे । दू घर के दिया सदा-सदा बर बुतागे । चारोमुड़ा खुसुर-फुसुर होवत रिहिस  कि आखिर ये कइसे होगे कि एके दिन दुनो मितान निपत अउ समलू अपन-अपन घर फाँसी के फंदा म झुलगें । रात के आठ बजे तक कुछ मनखे मन उनला एक सँघरा देखे रिहिन।सब मनखे आनी-बानी के गुनताड़ा लगाय लागिन।

,,,,,तिहार के सेती आज कुछ गिने चुने बाहरी मनखे रिश्तेदार ही काठी-माटी म आ पाइन बाकी गाँव वाला मन साथ दीन । इही बीच सब सकलाय सियान जवान मन सुनता बांधिन कि बारा बजे दिन तक चुण्डन-मुण्डन करके नहावन कर देना हे,बाद म एक जुवार तिहार मान लेबो अउ खात खवई के काम बाद म होवत रइही। गाँव म कतको हितवा रहिथें त कतको बइरी अनदेखना बेगराहा किसम के मनखे घलो रहिथें,जेन मरे मुरदा के रोटी खाने वाला होथें । कोनो मरय कि सरय उनला काय मतलब हे । बस अपन सुवारथ के सिद्धि होना चाही। उनला गाँव के सुनता सलाह फूटे आँखी नइ सुहावय । 

      कुछ देर बाद डग्गा-डग्गा पुलिस ठउँका लाश जलाय के बेर चिता स्थल म पहुँचगें। सब भौचक्क रहिगें । तिहार के पूरा आनंद शुरू से अंत तक किरकिरा होगे। सांझ के पाँच बजे लाश आइस त दाह संस्कार हो पाइस ।

तिहार बार के मौसम ल देखत पाँच दिन म नहावन राखे गिस । कम से कम देवारी तिहार फीका होगे त होगे जेठवनी (देवउठनी) ल बने रिझ-बुझ के मान लेबो । नहावन के दिन तरिया पार मेर सब घर-परिवार के सदस्य मन संग सब आस-पास के लोगन मन सकलाय रिहिन । चुण्डन-मुण्डन के काम चलत रिहिस ।इही बीच फेर चरचा छिड़गे कि आखिर निपत पटेल अउ समलू बरेठ आत्महत्या काबर करिन होहीं। जरूर येखर कोनो न कोनो कारण तो अवश्य होही । फेर आखिर का कारण हो सकथे ? दुनो मितान एके सँघरा बचपन म खेले-कुदे, पढ़े-लिखे रिहिन । सँघरा एके साल बर-बिहाव अउ गवन-पठौनी घलो होय रिहिस । पुरखा मन के परसादे दुनो झन तीन-चार एकड़ खेती के जोतनदार मंझोलन किसान रिहिन। दुनो झन बेटा-बहू नाती-नतुरा वाले खाता पीता परिवार के मनखे आँय,फेर उनला अइसे का सदमा अउ भारी दुख परगे कि तिहार बार के दिन ल घलो नइ गुनीन ।

सब के बात ल सुनके निपत के बेटा बबला राम सबला जय जोहार करत समाज म खड़ा होइस अउ बताइस कि काली जुवार जब अपन बाबू के जुन्ना कपड़ा मन ल  मरघट्टी म फेके बर थइली ल टमड़िस त दू सौ रुपिया अउ एकठन सेवा सहकारी समिती (कापरेटिव बैंक) के नोटिस मिले हे । नोटिस म दू लाख के करजा के रिकवरी लिखाय हे । दू - तीन दिन ले बाबू भारी उदास रिहिस फेर कोनो ल कुछु नइ बताइस,,,, काहत रोवत-रोवत बात ल समाप्त करिस ।

     ,,,बबला के बात ल सुन के समलू बरेठ के बेटा जीतन राम तुरंत खड़ा होइस अउ बताइस कि एकठन नोटिस वोखरो बाबू बर हप्ता भर पहिली आय हे। वो बात ल लेके दू-चार बात दाई संग खिबिर-खाबर होय रिहिन। महू-दू-चार बात कहे रेहेंव, फेर दाई ह जादा झंझेटे रिहिस कि कोनो मेर जुआ चित्ती खेले होबे नइ तो का जरूरत रिहिस तोला करजा उठाय के ? अब तो ये साल के पूरा धान ल बेचबो तभो नइ छुटाय । धान बेचाही अउ चक ले पइसा काटही । हमर नान-नान लइका मन के मुँह म पैरा गोजांगे काहत गोहार पार के रोय रिहिस । घेरी बेरी बाबू हमन ला सफाई देवत रिहिस फेर हमन कोनो नइ पतियाय रेहेन अउ ये घटना घटगे काहत,,, मुँह ल चपक- चपक के रोय लागिस ।

,,,,,दुनो नोटिस ल समाज म पेश करे गिस उही समय आस-पास के कतको गाँव वाले मन घलो बताइन कि ऊखरो गाँव म फोकटे-फोकट दू-चार झन किसान मन करा नोटिस आय हे। सब म दो-दो लाख करजा के रिकवरी लिखाय हे । सबझन अकबकाय हें। गाँव पटेल सुमरन दास खड़ा होके किहिस कि ये मामला भारी गंभीर हे। येमा जरूर फरजी किसान बन के कोनो न कोनो अधिकारी कर्मचारी मन किसान मनला भारी ठगे हें । 

चलो आज के काम ल होवन दव फेर काली सकलाबो।वो दिन दुनो मितान के  घर वाले मन अपन-अपन समाज के  रीती-रिवाज अनुसार सुघ्घर ढंग ले खात- खवई करिन । 

,,,,,बिहान दिन आस पास के नोटिस धारी ठगाय किसान मन अउ गाँव के किसान मन पचास – साठ झन एके सँघरा अपन-अपन गाँव के पंच सरपंच मन संग सेवा सहकारी बैंक पहुँचगें।

कापरेटिव बैंक म भारी अफरा तफरी मचगे । सब कर्मचारी हक्का-बक्का रहिगें । मैनेजर ल पता करिन त आज ले पांच – छै दिन  पहिली से गायब हे। बाद म पता चलिस कि जेन दिन उसलापुर म दुनो किसान के आत्महत्या के मामला होय हे उही दिन ले वो फरार हे।

स्थानीय विधायक मंगत मेवा राम तुरंत जाँच समिती बनाके एक सप्ताह म घोटाला के परदाफाश करे के आश्वासन देवत सब अधिकारी कर्मचारी मनला कठोर आदेश फरमाइश ।

,,,,,आज महिना दिन बीतगे न जाँच समिती के पता हे न विधायक के । जनता अउ किसान मन भारी नाराज होगें अउ एक संँघरा सकलाके एक बेर फेर बैंक म धावा बोलिन। कुछ देर बाद एसपी डीएसपी तहसीलदार एस डी एम सीइओ कलेक्टर  सब दनदनावत बैंक पहुंँचगे । पूरा कम्पुटर अउ किसान मन के कागजात से लेके दस्खत अंगूठा तक के मिलान होइस त बात दूध के दूध अउ पानी के पानी होगे  कि बैंक मनैजर गयाराम जुगाडू ही अतका बड़े घोटाला करके फरार हे। 

हफ्ता भर ले सिपाही मन ऐती-वोती चारो कोती सब रिश्तेदार परिवार अउ गाँव शहर म छापा मारिन फेर कोनो मेर गयाराम जुगाडू के भनक तक नइ लागिस। 

लुटे-पिटे किसान मन माथा धरके बइठगें। आखिर अब उँखर का होही ? फेर किसान अउ किसानी बैंक (कापरेटिव बैंक) के नाता तो चोली दामन के नाता कस होथे ।वो बैंक के कर्मचारी अधिकारी मन के ऊपर भरोसा नइ करहीं त काखर ऊपर करहीं ? ऊखर हाथ म तो हमर सरी कागजात, आधार कार्ड, पैन कार्ड, पास बुक, ऋण पुस्तिका, दस्तखत,अंगूठा ( पूरा डेटा ) होथे। अइसन म तो सबके जमीन जघा ल घलो अपन नाम चढ़वा लिहीं काहत कतको किसान मन मुँह चपक-चपक के रोय लागिन अउ कतको झन क्रोध के अग्नि म जले लागिन ।

  ऐती कतको बुद्धिजीवी किसान मन नेता मनला मनमाढ़े गाली दे लागिन।   आखिर येमा ईखरो मिली भगत हे। बिना नेता मन के ईशारा के अतका बड़े घोटाला नइ होवय । इही मन अधिकारी मनला चुनाव बर फंड के जुगाड़ करे बर मजबूर करथें । इही मन फोकट छाप मुफतखोरी के घोषणा के ठिंठोरा फीटथें । हर चुनाव म जनता मन के भावना के संग भारी खिलवाड़ करथें । असली अपराधी तो येहू मन हे जेन कथरी ओढ़ के घी खाथें।

कतको जनता इँखर लोभ म आके गरी कस मछरी फँसत जात हें। इनला का हे ? अपना काम बनता ,भाड़ म जाय जनता ।

" आज मुफ्त खोरी के दुकान लगाके सबला अलाल कोढ़िहा बनावत हें । करजा माफी के झुनझुना धराके धीरे-धीरे जहर पियावत हें। आज इही चक्कर म कतको मनखे मुफतखोर बनत जावत हें। 


लागा माफी कर जनता ला,बना दिये बैमान।

राज-नीति के रोटी सेंके,तँय खुसरे शैतान।

जनता भोला-भाला हे,तोरो चाल का जानय।

वोखर बर तो बनगे तैंहा,दीन बंधु भगवान।


आज आत्म हत्या करे बर मजबूर होवत हें। अपन- अपन ले तमतमावत किसान मन गँवारू गारी बुदबुदाय लागिन।

    “ फेर कोन जानत रिहिस कि करजा माफी वाले सरकार दुबारा नइ आही । सब ला पक्का भरोसा रिहिस फेर होगे उल्टा । करजा माफी के सपना देखइया कतको मनखे के सपना म पानी फिरगे । कतको झन खटिया धर लीन।

,,,,,मान ले कहूँ इही सरकार दुबारा आतिस त कतको लालची मनखे, अधिकारी, कर्मचारी रातोरात लखपति अउ करोड़पति बन जातिन । फेर सब ले बड़े विडंबना येहू हे कि कतको मनखे बिना जरूरत के लालच म अउ एक-दूसर के भड़कावा म करजा उठाय रिहिन । जुन्ना-जुन्ना फटफटी बेच के नवा-नवा लीन । कतको झन टी वी,फ्रिज, मोबाइल खरीदीन अउ कतको झन हाथ म लानिन अउ पान म चाटिन । फेर बाद म साँप कस मुहूँ जुच्छा के जुच्छा ।

  ,,,,आज तो वो किसान मन न घर के रिहीन न घाट के जेन बिना करजा उठाय बइमान मैनेजर के सेती शासन के कर्जदार रिहिन ।      

     ,,,,,,जइसे हि पता चलिस कि गातापार के बीच जंगल म एक सड़े-गले लाश मिले हे अउ वोखर पहिचान मैनेजर गया राम जुगाड़ू के रूप म होय हे सब निरदोष किसान मन के जीव छटाक भर होगे। अइसे लागिस जइसे ऊखर मूड़ म गाज गिरगे ।


 कमलेश प्रसाद शर्माबाबू

  गंडई जिला केसीजी छत्तीसगढ़ 

  9977533375

परयास*

 **परयास*

                 

विकास जउन दिन ले छठवीं कक्षा मा दाखिल होइस हे, गुरुजी हलकान होगे। विद्यार्थी मन परेशान होगे। काबर कि विकास के उमर तो ग्यारह साल ही हे, फेर अइसे आँखी देखाथे कि आठवी कक्षा के लइका मन घलो देख के सुकुड़ दुम हो जाथे। रोज कोनों न कोनों बखेड़ा खड़े कर देथे। आज घलो मयंक नाँव के टुरा हर गुरुजी कर शिकायत ले के आये हे, कि विकास हर मार दिस। गुरुजी विकास ल बार-बार समझाये के कोशिश करे, फेर 'भँईस आघू बीन बजाये, भँईस बइठे पगुराय' के कहावत ही चरितार्थ होवय। तब गुरुजी सोच मा पड़ जाथे अउ सुधारे के उपाय खोजे लगथे। 

     एक दिन विकास के संग पढ़इया लइका मन ले पूछे मा पता चलिस कि विकास प्राथमिक शाला मा तीसरी कक्षा तक पढ़ई-लिखई अउ बेवहार मा घलो बढ़िया रिहिस। चौथी कक्षा मा पहुँचे के बाद ले स्वभाव बदलिस हे। गुरुजी अब स्वभाव बदले के कारण पता करे के कोशिश मा जुटगे। 

            मंझनिया भोजन के बेरा मा मिडिल स्कूल के हेड मास्टर , प्राथमिक स्कूल के गुरुजी देवांगन जी ले मिलिस अउ विकास के बारे मा जाने के कोशिश करिस। देवांगन गुरुजी के भी उही जवाब मिलिस, जउन जवाब विकास के कक्षा के लइका मन बताइन। फेर हेड मास्टर घलो हार नइ मानिस। विकास ल सुधारे बर ठानिस।

  एक दिन हेड मास्टर हर विकास के घर मा सम्पर्क करिस। तभो बिगड़े के कुछु कारण के पता नइ चलिस। अउ पता चलतीस घलो कइसे, कोन अपन घर के गलती दूसर कर गोहराही।  विकास के घर ले निकलत बेरा मा गाँव के पटेल समारू ले गुरुजी के भेंट होगे। दुनो के राम-रमौवल होइस। पटेल हर गुरुजी ले पूछिस- कहाँ घूमत हव गुरुजी? हेड मास्टर बोलिस- 'चतुर से मिलने आया था। कुछ काम था। का काम गुरुजी? मँय कर देहुँ, आप मोला बतावव। हेड मास्टर बोलिस- 'नहीं पटेल जी, आपके लायक काम नहीं है। चतुर से ही बात करना था। चतुर ले ही बात करना रिहिस, कोनों गम्भीर बात हे का गुरुजी? पटेल हर पूछिस। हाँ भई, उनका लड़का आजकल पढ़ाई पर ध्यान देता नहीं है। ककरो संग झगरा-लड़ई तो नइ करिस गुरुजी? पटेल हर पूछिस। मतलब आपको विकास का व्यवहार पता है? हेड मास्टर हर बोलिस। मोला का सब ला पता हे,जइसन बाप तइसन बेटा। पटेल बोलिस। मतलब? हेड मास्टर हर पूछिस। तब पटेल बताइस- अरे भई, चतुर ठहरे मन्दू आदमी। पीथे तहने ककरो न ककरो संग उलझना कोई नवा बात नइहे। तब असर तो लइका मा पड़बे करही न गुरुजी। हेड मास्टर हर समझगे कि लइका के बिगड़े के कारण ओकर घर परिवार के माहौल ही हे।

          एक दिन हेड मास्टर चतुर ल स्कूल मा बुलाइस। हेड मास्टर हर चतुर ले ओकर खेती- बाड़ी के सम्बन्ध मा पूछे लगिस। कहो चतुर जी, इस वर्ष आपकी फसल तो अच्छी थी न? चतुर बोलिस- हाँ गुरुजी, भगवान के दया ले चार गाड़ा धान होइस। रबी फसल में क्या डाले हो? हेड मास्टर हर पूछिस। लाखड़ी बो दे हँव गुरुजी। चतुर बोला। फसल तो अच्छी होगी? आहिस्ता बात ल विकास कोती घुमाइस अउ हेड मास्टर पूछिस- अच्छा, आपके यहाँ का लड़का विकास घर में पढ़ाई करता है कि नहीं? कक्षा में गुमसुम बैठा रहता है। पढ़ाई पर उनका ध्यान नहीं रहता। चतुर बोलिस- नहीं गुरुजी, कतको बोलथों फेर ध्यान देबे नइ करे। अब आप मन ही वोला सुधारो गुरुजी। डाँटो, फटकारों कुछु करो मँय कुछु नइ बोलँव। हेड मास्टर बोलिस- ' देखिए चतुर जी, विकास को सुधारना है तो डाँट फटकार की जरूरत नहीं है, बस आपके सहयोग की हमें आवश्यकता है। क्या आप हमें सहयोग करेंगे? कइसन सहयोग गुरुजी, मँय तैयार हँव। मोर लइका कइसनो करके भी पढ़ तो ले। चतुर बोलिस तब हेड मास्टर ल बल मिलगे। लगिस कि ओकर योजना के सफल होए के बेरा अब अवइया हे। बूड़े सुरुज अब उगइया हे। हेड मास्टर बोलिस- ' देखिए चतुर भाई, आप बुरा न माने तो एक बात कहूँ? एक बात नहीं सौ बात कहव गुरुजी, मँय बुरा नइ मानो। चतुर बोलिस।तब हेड मास्टर हर बोलिस- देखिए भाई चतुर, आप शराब पीते हैं, सबसे पहले तो आप शराब का चक्कर छोड़ दीजिए। आप शराब पीते हैं तो विकास के साथी लोग आपकी हालत देखकर विकास के पास बोलते हैं। यह बात विकास को अच्छा नहीं लगता। साथियों से आपके बारे में सुनकर उनके अंदर गुस्सा जागृत हो उठता है, चूँकि वह गुस्सा आपके पास प्रकट नहीं कर पाता। इसलिए अन्य बच्चों से लड़कर अपना क्रोध शांत करने का प्रयास करता है। उनका मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता। सहपाठियों के द्वारा आपके बारे में विकास के पास बोलना उनके व्यवहार एवं पढ़ाई लिखाई के लिए दीमक साबित हो रहा है।आप अपने आप पर रखकर सोचिए, यदि आपके पिताजी शराब पीता, लड़खड़ाते हुए चलता और आपके पास आपके साथी लोग आपके पिता की शिकायत करते तो क्या आपको अच्छा लगता? चतुर बोलिस- नहीं गुरुजी। हेड मास्टर ने कहा- तो क्या आप हमें सहयोग के लिए तैयार हैं? देखिए इससे केवल विकास ही सुधरेगा ऐसी बात नहीं है। इससे आपके घर-परिवार की स्थिति भी सुधरेगी। गुरुजी के बोले बात चतुर के हिरदे मा समागे। बात अइसे असर करिस कि चतुर तुरते परन करिस कि वो अब मंद नइ पीये। अपन लइका के खातिर, अपन घर-परिवार के खातिर। 

        ये घटना ल बीते दू बछर होगे। आज विकास आठवी कक्षा मा हे, पढ़ाई-लिखाई मा अव्वल हे। गुरुजी के हर सवाल के जवाब देथे। कोनों काम अधूरा नइ रखे। विकास के व्यवहार अब बदलगे हे। हरदम खुश नजर आथे। अब विकास कभू शिकायत के अवसर नइ दे। गुरुजी मन, कक्षा के जम्मो संगवारी मन अब विकास के प्रशंसा करत नइ थके। चतुर घलो अब घर मा विकास के पढ़ई-लिखई मा कोनों कमी नइ होवन दे। विकास ल खुश रखे के पूरा कोशिश करथे। हेड मास्टर के परयास आज सफल होगे। 


             राम कुमार चन्द्रवंशी

             बेलरगोंदी (छुरिया)

             जिला-राजनांदगाँव

विकास जउन दिन ले छठवीं कक्षा मा दाखिल होइस हे, गुरुजी हलकान होगे। विद्यार्थी मन परेशान होगे। काबर कि विकास के उमर तो ग्यारह साल ही हे, फेर अइसे आँखी देखाथे कि आठवी कक्षा के लइका मन घलो देख के सुकुड़ दुम हो जाथे। रोज कोनों न कोनों बखेड़ा खड़े कर देथे। आज घलो मयंक नाँव के टुरा हर गुरुजी कर शिकायत ले के आये हे, कि विकास हर मार दिस। गुरुजी विकास ल बार-बार समझाये के कोशिश करे, फेर 'भँईस आघू बीन बजाये, भँईस बइठे पगुराय' के कहावत ही चरितार्थ होवय। तब गुरुजी सोच मा पड़ जाथे अउ सुधारे के उपाय खोजे लगथे। 

     एक दिन विकास के संग पढ़इया लइका मन ले पूछे मा पता चलिस कि विकास प्राथमिक शाला मा तीसरी कक्षा तक पढ़ई-लिखई अउ बेवहार मा घलो बढ़िया रिहिस। चौथी कक्षा मा पहुँचे के बाद ले स्वभाव बदलिस हे। गुरुजी अब स्वभाव बदले के कारण पता करे के कोशिश मा जुटगे। 

            मंझनिया भोजन के बेरा मा मिडिल स्कूल के हेड मास्टर , प्राथमिक स्कूल के गुरुजी देवांगन जी ले मिलिस अउ विकास के बारे मा जाने के कोशिश करिस। देवांगन गुरुजी के भी उही जवाब मिलिस, जउन जवाब विकास के कक्षा के लइका मन बताइन। फेर हेड मास्टर घलो हार नइ मानिस। विकास ल सुधारे बर ठानिस।

  एक दिन हेड मास्टर हर विकास के घर मा सम्पर्क करिस। तभो बिगड़े के कुछु कारण के पता नइ चलिस। अउ पता चलतीस घलो कइसे, कोन अपन घर के गलती दूसर कर गोहराही।  विकास के घर ले निकलत बेरा मा गाँव के पटेल समारू ले गुरुजी के भेंट होगे। दुनो के राम-रमौवल होइस। पटेल हर गुरुजी ले पूछिस- कहाँ घूमत हव गुरुजी? हेड मास्टर बोलिस- 'चतुर से मिलने आया था। कुछ काम था। का काम गुरुजी? मँय कर देहुँ, आप मोला बतावव। हेड मास्टर बोलिस- 'नहीं पटेल जी, आपके लायक काम नहीं है। चतुर से ही बात करना था। चतुर ले ही बात करना रिहिस, कोनों गम्भीर बात हे का गुरुजी? पटेल हर पूछिस। हाँ भई, उनका लड़का आजकल पढ़ाई पर ध्यान देता नहीं है। ककरो संग झगरा-लड़ई तो नइ करिस गुरुजी? पटेल हर पूछिस। मतलब आपको विकास का व्यवहार पता है? हेड मास्टर हर बोलिस। मोला का सब ला पता हे,जइसन बाप तइसन बेटा। पटेल बोलिस। मतलब? हेड मास्टर हर पूछिस। तब पटेल बताइस- अरे भई, चतुर ठहरे मन्दू आदमी। पीथे तहने ककरो न ककरो संग उलझना कोई नवा बात नइहे। तब असर तो लइका मा पड़बे करही न गुरुजी। हेड मास्टर हर समझगे कि लइका के बिगड़े के कारण ओकर घर परिवार के माहौल ही हे।

          एक दिन हेड मास्टर चतुर ल स्कूल मा बुलाइस। हेड मास्टर हर चतुर ले ओकर खेती- बाड़ी के सम्बन्ध मा पूछे लगिस। कहो चतुर जी, इस वर्ष आपकी फसल तो अच्छी थी न? चतुर बोलिस- हाँ गुरुजी, भगवान के दया ले चार गाड़ा धान होइस। रबी फसल में क्या डाले हो? हेड मास्टर हर पूछिस। लाखड़ी बो दे हँव गुरुजी। चतुर बोला। फसल तो अच्छी होगी? आहिस्ता बात ल विकास कोती घुमाइस अउ हेड मास्टर पूछिस- अच्छा, आपके यहाँ का लड़का विकास घर में पढ़ाई करता है कि नहीं? कक्षा में गुमसुम बैठा रहता है। पढ़ाई पर उनका ध्यान नहीं रहता। चतुर बोलिस- नहीं गुरुजी, कतको बोलथों फेर ध्यान देबे नइ करे। अब आप मन ही वोला सुधारो गुरुजी। डाँटो, फटकारों कुछु करो मँय कुछु नइ बोलँव। हेड मास्टर बोलिस- ' देखिए चतुर जी, विकास को सुधारना है तो डाँट फटकार की जरूरत नहीं है, बस आपके सहयोग की हमें आवश्यकता है। क्या आप हमें सहयोग करेंगे? कइसन सहयोग गुरुजी, मँय तैयार हँव। मोर लइका कइसनो करके भी पढ़ तो ले। चतुर बोलिस तब हेड मास्टर ल बल मिलगे। लगिस कि ओकर योजना के सफल होए के बेरा अब अवइया हे। बूड़े सुरुज अब उगइया हे। हेड मास्टर बोलिस- ' देखिए चतुर भाई, आप बुरा न माने तो एक बात कहूँ? एक बात नहीं सौ बात कहव गुरुजी, मँय बुरा नइ मानो। चतुर बोलिस।तब हेड मास्टर हर बोलिस- देखिए भाई चतुर, आप शराब पीते हैं, सबसे पहले तो आप शराब का चक्कर छोड़ दीजिए। आप शराब पीते हैं तो विकास के साथी लोग आपकी हालत देखकर विकास के पास बोलते हैं। यह बात विकास को अच्छा नहीं लगता। साथियों से आपके बारे में सुनकर उनके अंदर गुस्सा जागृत हो उठता है, चूँकि वह गुस्सा आपके पास प्रकट नहीं कर पाता। इसलिए अन्य बच्चों से लड़कर अपना क्रोध शांत करने का प्रयास करता है। उनका मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता। सहपाठियों के द्वारा आपके बारे में विकास के पास बोलना उनके व्यवहार एवं पढ़ाई लिखाई के लिए दीमक साबित हो रहा है।आप अपने आप पर रखकर सोचिए, यदि आपके पिताजी शराब पीता, लड़खड़ाते हुए चलता और आपके पास आपके साथी लोग आपके पिता की शिकायत करते तो क्या आपको अच्छा लगता? चतुर बोलिस- नहीं गुरुजी। हेड मास्टर ने कहा- तो क्या आप हमें सहयोग के लिए तैयार हैं? देखिए इससे केवल विकास ही सुधरेगा ऐसी बात नहीं है। इससे आपके घर-परिवार की स्थिति भी सुधरेगी। गुरुजी के बोले बात चतुर के हिरदे मा समागे। बात अइसे असर करिस कि चतुर तुरते परन करिस कि वो अब मंद नइ पीये। अपन लइका के खातिर, अपन घर-परिवार के खातिर। 

        ये घटना ल बीते दू बछर होगे। आज विकास आठवी कक्षा मा हे, पढ़ाई-लिखाई मा अव्वल हे। गुरुजी के हर सवाल के जवाब देथे। कोनों काम अधूरा नइ रखे। विकास के व्यवहार अब बदलगे हे। हरदम खुश नजर आथे। अब विकास कभू शिकायत के अवसर नइ दे। गुरुजी मन, कक्षा के जम्मो संगवारी मन अब विकास के प्रशंसा करत नइ थके। चतुर घलो अब घर मा विकास के पढ़ई-लिखई मा कोनों कमी नइ होवन दे। विकास ल खुश रखे के पूरा कोशिश करथे। हेड मास्टर के परयास आज सफल होगे। 


             राम कुमार चन्द्रवंशी

             बेलरगोंदी (छुरिया)

             जिला-राजनांदगाँव

दू-तीन दशक पहिली के सामाजिक परिवेश ले तार जोरे हे -अनोखी बहू

 


दू-तीन दशक पहिली के सामाजिक परिवेश ले तार जोरे हे -अनोखी बहू 


    कमलेश प्रसाद शर्माबाबू के साहित्य समर्पण अभिनंदनीय हे। उन मन सरलग छत्तीसगढ़ी कविता अउ कहानी लिखथें। बाल साहित्य जइसन मनोवैज्ञानिक अउ कठिन विधा म घलव उन दखल रखथें। छंद लेखन म उॅंकर कलम आजकाल जोरदार चलत हे। कुल मिलाके कमलेश प्रसाद शर्माबाबू छत्तीसगढ़ी साहित्य बर समर्पित रचनाकार आँय कहना अतिश्योक्ति नइ होही। जिंकर रचना मन म विधागत शिल्प तो रहिबे करथे, उँकर भाव पक्ष के सजोरपन ह पाठक ल बाँधे रखथे। पाठक मन ल पढ़त खानी अइसे लगही कि ए सब तो हमरे तिर-तखार के गोठबात आय। 

       अभी के लिखइया म कमलेश प्रसाद शर्मा बाबू के नाँव जाने पहचाने नाँव हरे। अब तक उॅंकर  ७ किताब छापाखाना ले छप के आ गे हवय। जेन म कविता संग्रह, कहानी संग्रह शामिल हें। उॅंकर लेखन क्षमता अद्भुत हे। 

        बाल साहित्य जौन बड़ कठिन विधा आय। काबर कि एक डहर बाल साहित्य ल परकाया साहित्य के श्रेणी म गिने जाथे। दूसर डहर, जब मनखे नानकन रहिथे, माने लइका रहिथे त ओकर शब्द भंडार कमती रहिथे अउ जब बड़े हो जाथे त नानपन के बालमन नइ राहय, बालसुलभ मनोभाव कहूॅं छू लम्बा हो जथे। अइसन म बाल-साहित्य लिखना कठिन हो जाथे। फेर उॅंकर कलम के गाड़ी बाल साहित्य के पटरी म सरपट दउंड़त मिलथे। एकर प्रमाण आय कुदीस बेंदरा जझरंग-जझरंग, आबे तैं चुप-चुप चंदा अउ आँगनबाड़ी महूँ जाहूँ (बाल कविता संग्रह) अउ प्रियांशी के परेवा, बालकहानी संग्रह।

      कहानी 'अनोखी बहू' उँकर अभी-अभी प्रकाशित कृति आय। जे तिसरइया कहानी संग्रह आय। एकर पहिली कहानी संग्रह 'छत्तीसगढ़ के रतन बेटा' अउ 'खेतिहारिन' प्रकाशित हो चुके हावय।

       नवा कहानी संग्रह के कहानी मन ऊप्पर अब नज़र दउड़ाए के बारी हे। संग्रह के कहानी मन म छत्तीसगढ़ के लोकजीवन अउ सामाजिक ताना-बाना के सहज दर्शन होथे। संग्रह के शीर्षक ऊपर लिखे गे कहानी 'अनोखी बहू' तीन दशक पहिली छत्तीसगढ़ के सामाजिक अउ पारिवारिक परिवेश ल रेखांकित करथे। शिक्षा अउ वैज्ञानिक सुविधा के चलत एमा आज बदलाव जरूर आय हे। गोद ले के या चिकित्सा सुविधा के चलत दूसरइया बिहाव नइ होवत हे। ए संग्रह के भूमिका लिखत वरिष्ठ साहित्यकार डॉ परदेशी राम वर्मा संग्रह के कहानी मन ल ठेठ छत्तीसगढ़ के गॅंवई-गाॅंव के जिनगी ले जुड़े, कहानी बताय हवॅंय।

       अब संग्रह ऊपर अपन बात रखे के कोशिश करत हॅंव। ए मोर पाठकीय भाव आय।

      'बाॅंके बढ़ई' छत्तीसगढ़िया मनखे मिहनती होथे, पसीना ओगराय ले नइ घबराय, एक सबूत देथे, त शिक्षा के अभाव म दूर-अंचल म व्याप्त अंधविश्वास कइसे फलत-फूलत हावे, एकर पोल घलव खोलथे- 'अति-अंधविश्वास'। ए अलग बात आवय कि स्वच्छता अभियान के बाद आय परिवर्तन के कहानी कहे जा सकथे।

      'अनोखी बहू' एक मार्मिक कहानी हे, जेन म अइसे बहू के बात हे जउन कुल के वंश बढ़वार बर घर म नवा बहू यानि अपन सउत लानथे, परिवार के खुशहाली बर त्याग तपस्या के अद्भुत कहानी हे, फेर अपन ऊपर ठगड़ी के करु बोली के बाण ले अतका आहत हो जथे कि बइठे-बइठे भगवान ल प्यारी हो जथे। ओकर साॅंसा के डोर टूट जथे।

      'जरहा बीड़ी' बदलत बेरा के संवेदना ल समोये मार्मिक कहानी आय। जेन म दू पीढ़ी के सोच के फरक साफ देखे ल मिलथे। ए कहानी यहू बताथे कि लत के आगू मनखे तन के नकसानी ल कइसे नजरअंदाज करथे।

       'बाँके बढ़ई' हुनरमंद मनखे के जिनगी कइसे बहुरथे? ए संदेश दे म सक्षम हावे। 

        'मनौती अउ पनौती' मनखे के भ्रम टोरे म बड़ दूर ले मील के पथरा साबित होही। यहू संदेश देथे कि मनखे अपन करनी के फल इहें ही भोग थे, येहू संदेश देथे कि कोनो भी मनखे जन्म से मनहूस/अशुभ नइ होय। ए तो मनखे के भरम आय।

         गँवई-गाँव म बगरे अंधविश्वास अउ अशिक्षा ले मनखे के का दुर्गति होथे अउ कतका जोखिम पालत जिनगी जीथें, एकर जीवंत उदाहरण 'अति अंधविश्वास' कहानी म मिलथे। ढोंगी पाखंडी मन अइसन मनके भरम अउ अंधविश्वास के कतका फायदा उठाथें, वहू ल कहानी रेखांकित करथे। देर आइस दुरुस्त आइस। आज स्वच्छता ले ही जिनगी म खुशहाली आवत हे। बेमारी के इलाज म कतको गाढ़ा कमई बिरथा चल देवय, तेकर विकास म लगे ले खुशहाली देखे ल मिलत हे।

         आज मानवीय मूल्य दिनों-दिन घटतेच जावत हे। लोगन ऊपर ले भरोसा आए दिन टूटत हे। कारण वाजिब हे। भोरहा एक बेर होही, दू बेर होही। दू ले आगर धोखा खाय ले सावचेत रहे के आय। इही बात के सावचेत कराथे भोरहा ऊपर भोरहा कहानी।

      व्यापार जगत म ग्राहक ल देवता समझे जाथे।  ग्राहक ले बने बेवहार रखे अउ सौदा यानि लेन-देन करत बेरा शांत भाव ले रहे के सिखौना दे जाथे। जय भगवान कहानी इही बेवहार के नफा-नकसान ल बढ़िया पिरोय हावय।

       घोर अपराध कहानी म खाप पंचायत के दुर्भावना ले भरे फैसला ल रेखांकित करे म सफल हे। मुंशी प्रेमचंद जी के कहानी 'पंच-परमेश्वर'... तब के सामाजिक अउ मानवीय मूल्य के उचास ल बताथे , उहें ए कहानी आज के समे म मनखे के सुवारथ अउ मानवीय मूल्य म दिनों-दिन आवत गिरावट ल सरेखे के सुग्घर उदिम हे। कहानीकार के उद्देश्य समाज म आय खाई ल पाटे के हावय। 

       ए संग्रह अनोखी बहू म कुल 9 कहानी संग्रहित हे। जम्मो कहानी के भाषा अउ संवाद मन पात्र / चरित्र के मुताबिक हें। शिल्प बढ़िया हे। शब्द चयन सही हे। मुहावरा हाना के प्रयोग सहराय के लइक हे। 

        कहानीकार के भीतर बइठे कवि के चुगली कहानी मन करत हावॅंय। कहानी के बीच-बीच म कविता के प्रयोग ल बढ़िया कहे जा सकथे। कविता मन जेन ढंग ले प्रस्तुत करे गे हे कथानक ल आगू जरुर बढ़ाथे, फेर भर्ती के हे बरोबर लागथे। पात्र के मुख ले आय म जादा छाप छोड़तिस। संगेसंग कविता औसत रूप ले बड़े होगे हावय। हो सकत हे, कि सुधि पाठक बर उबाऊ हो जय। कहानी के पाठक कविता के भूल-भुलैया म भटकना नइ चाहय। मोर ए विचार ले कतको सहमत हो सकथौ अउ कतको असहमत घलव हो सकथौ।

       छत्तीसगढ़ के सामाजिक ताना-बाना अउ लोक व्यवहार ल सहेजे 'अनोखी बहू ' कहानी संग्रह छत्तीसगढ़ी कहानी बर नवा डहर गढ़ही अइसे मोला भरोसा हे। एकर कव्हर पेज अउ भीतरी पन्ना मन सुग्घर छपाई संग बढ़िया क्वालिटी के हे। ए संग्रह के  अनोखी बहू अउ पर भरोसा तीन परोसा जइसन कहानी ले कहानीकार अपन समे के संग दू-तीन दशक पहिली के सामाजिक परिवेश ले तार जोरे म सफल हे। 

       पठनीय अउ सुग्घर संग्रह के प्रकाशन बर कमलेश प्रसाद शर्मा बाबू ल अंतस् ले बधाई अउ शुभकामना कि उॅंकर कहानी पाठक के हिरदे म घरोंदा बनावत रहय।

०००

पोखन लाल जायसवाल 

पलारी (पठारीडीह)

जिला बलौदाबाजार-भाटापारा छग

लघु कथा - "झरझरहीन बहू "

 लघु कथा -

       "झरझरहीन बहू "


बेरा उवे के पहिली घर दुवार  अँगना म बिहनिया के खरहारा बाहरी के धुन मगन कर देथे l खरर खरर खरर... I 

बाहिर के कचरा के सफाई होथे 

बिहनिया ले उठ के पहली काम सेवती इही करथे l

गऊ कोठा के सफाई  गोबर कचरा घलो खरहारा  ले होथे खरर खरर के धुन बढ़िया लगथे बिहनिया बिहनिया l ए काम ल लछमी करथे l 

सेवा राम के दूनो बहू कमईलीन फेर सुभाव अलग अलग l घर भीतरी कलर कलर 

बात बात म  कोर कसर.. नई छोड़य एक दूसर के l

सेवती गोठकाहरिन अउ लछमी फटकाहरीन l

सेवती के गोठ ला लछमी नई सुनय अउ लछमी के फटकार ल सेवती नई सह सकय l  एक दूसर के गोठ बात मिरचा के झार अस लगथे l 

सेवा राम के धर अइसने तना तनी म चलत हे l दूनो ला "झरझरहिन "कहय l बूता करत करत एक दिन लछमी के हाथ हंसिया म कटागे साग पउलत पउलत l

सेवती देख़त कहिस -" काला पऊलत  रहे  हाथ ला पउल डरे  बही l" गोठ काहरीन  मन के आदत   लम्बा ओरियाके सुनाना l फेर कहिथे -" कुंदरू गतर बर...... I 

तोर चेत तो अन्ते तंते रहिथे l"

लछमी हाथ ला फटकारत -"

जतका के हाथ नई कटाये हे मोर  l झरझरावत हे,लहू मोर निकलत हे तोर का पिरावत हे l मोर डउका कुंदरू रहे  या बोन्दरू l अपन डउका ला  देख जा बने कोहड़ा अस पेट ला निकालत हे बने भूंज भूंज के खवा l" दूनो झन के इही सब  पचंतर पटंतर

हटकार फटकार ला  सुन सेवा राम कहिथे -" ए का गोठ करथव बहू?

झार डरेव अन देखनी म मर गेव l पटपटही झरझरा बहू का मिलिस बात बात म ओखी खोखी ला खोजत रहिथव l कुंदरू कोहड़ा के भरोसा म तीन परोसा झेलत हव l मोर बेटा मन ला भुंजत पउलत हव l का सीख के आये हव अपन मइके ले?  मया देखाये ला छोड़ के  भड़भड़ाए म नीक आथे l "

सोनार के सौ घा लोहार के एका घा l सेवा राम ससुर के फटकार  ल सुन दूनो के होश आगे l


-मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

ज्योति के सवाल

 ज्योति के सवाल


ज्योति के उमर अभी पाँच साल ही हे, बड़ चंचल हे। सवाल करे मा अव्वल हे। जब सवाल शुरू करथे, तब रुके के नाँव घलो नइ लेवय। एक के बाद दूसरा सवाल करना ओकर स्वभाव मा हे। पापा, बेर बूड़तीच कोती काबर बूड़थे, उत्ती कोती काबर नइ बूड़े? चिरई के दुवेच ठन गोड़ काबर होथे? अइसने कई अटपटा सवाल करथे कि सुनके बड़े-बड़े मन घलो निरुत्तर हो जथे।  

         गर्मी के दिन रात के समय दुवारी मा अपन पापा भोला के संग खटिया मा ढलगे रहय। अगास मा ज्योति के नजर चंदैनी मा परिस का सवाल के झड़ी लगा दिस। 'पापा, ये चंदैनी काबर चमकथे?' भोला बोलिस- बेटी चंदैनी, सुरुज के अंजोर परे के कारण चमकथे। सुरुज, का सुरुज? ज्योति फेर सवाल करिस। अरे बेटी, सुरुज माने बेर। भोला बोलिस। ज्योति- ऐं.... बेर ल सुरुज कहिथे? भोला- हाँ, बेर ल सुरुज कहिथे। ज्योति- अउ चंदा ल का कहिथे त पापा? चंदा ल चंदा कहिथे। भोला बोलिस। चंदा ल चंदा कहिथे, तब बेर ल काबर बेर नइ कहे पापा? खुशी फेर सवाल करिस। बेर ल बेर भी बोल सकत हन, सुरुज भी। भोला बोलिस। सुरुज रात में काबर नइ दिखे पापा? ज्योति फेर सवाल करिस।भोला कम पढ़े-लिखे मनखे का जवाब देतिस। बोलिस- तोर आंगनवाड़ी के मेडम ल पूछबे वो बताही। त ते काबर नइ बतास पापा? ज्योति बोलिस। अरेsss ते बहुत सवाल करथस। चल गिनती बोल के बता। भोला बोलिस। नही, में पूछेंव तेन ल ते काबर नइ बताए। जा महूँ गिनती नइ सुनाव। ज्योति केहे लगिस। अउ खटिया ले उठ के अपन दादी कर जा के ओकर गोदी मा लिपटगे।

            भोला के पड़ोसी सालिक एक दिन भोला ल हूँत करात भोला के घर आइस। कहाँ भोला, सालिक चिल्लाइस। ज्योति ल देख के पूछिस- भोला कहाँ हे ज्योति? ज्योति किहिस- बखरी मा मुनगा टोरत हे। सालिक किहिस- अरे, बने भोगा गेहे का ज्योति, जा तो मोरो बर टोरवा। हाँ भोगा गेहे न। फेर मुनगा लम्बा-लम्बा काबर फरथे बबा? छोटे-छोटे काबर नइ फरे? ज्योति के सवाल शुरू होगे। सालिक सवाल सुन के लस परगे। का जवाब देतिस। अइसन सवाल के जवाब तो कालेज वाले मन घलो  नइ दे पाये, तब पाँचवी पढ़े सालिक का जवाब देतिस। बोल दिस कि लम्बा फरथे तेकरे सेती वोला बेंदरा नइ खाये। त मनखे मन काबर खाथे। ज्योति फेर सवाल करिस।

उही बेरा मा भोला मुनगा धर के आगे अउ ज्योति ल सवाल करत देख के बोलिस- ज्योति जा तो तँय खेल सवाल मत कर। अउ सुना कका कइसे आना होइस? भोला, सालिक ल पूछिस। सालिक बोलिस- बस, तोर नोनी के सवाल के जवाब दे बर आये रेहेंव। अउ दुनों ख़लखला के हाँसे लागिन। बड़ चंचल हे तोर बेटी हर भोला, लगथे एक दिन ये तोर नाँव ल जरूर रोशन करही। बड़ अटपटा सवाल करथे कका। कभू-कभू तो मँय फटकार घलो देथों फेर ओकर सवाल करई बंद नइ होए। भोला बोलिस। अरे बेटा, बचपन में जाने के उत्सुकता जादा होथे, झन फटकारे कर, पूछन दे कर। फटकारे ले लइका के मन मा कुंठा भाव पैदा होथे। भोला पूछिस- कुछु मोर ले काम रिहिस का कका? सालिक किहिस। हाँ भोला, काली हमन दू दिन बर तोर काकी संग बेटी घर जावत हन। तब थोरिक मोर घर के घलो आरो ले रहिबे। इही चेताये बर आये रेहेंव। चोर चिल्हाट अबड़ सुनाई परत हे। सालिक बोलिस। भोला किहिस- बइठ न कका, चाय बनवावत हँव। चाय पी ले। नहीं रहन दे नइ लागे बेटा, अभिचे खाना खाये हँव अउ तोर कर आये हँव। जउन काम ले आये रेहेंव होगे। सालिक बोलिस।

             सालिक के जाये के बाद एक झन भठरी अँगना मा पहुँचगे। अउ बोले लगिस। जय हो जय हो गौटिया जय हो। तोर भाग बहुत उज्ज्वल हे। तैं बहुत दयालु हस। तैं सबके सुनथस तोर ल कोई नइ सुने। भगवान के तोर ऊपर बहुत किरपा हे। तैं सबके बनाये बर सोचथस फेर तोर ल बनाये बर कोई नइ सोचे। कारण सबकुछ ठीक हे गौटिया। बस एक गिरहा तोर खराब होये के कारण तोर सोचे काम बिगड़ जाथे। तैं अपन गिरहा ल टोरवा ले। उही बेरा मा ज्योति पहुँचगे। गिरहा के बात सुनिस कि सवाल पूछना शुरू कर दिस। ये गिरहा का होथे गा? ज्योति सवाल पूछे लगिस। भोला किहिस- गा नोहे बेटी, भठरी महाराज आये। भठरी महाराज आये पापा, गिरहा का होथे महाराज? ज्योति पूछे लागिस। भठरी बोलिस- गिरहा, एक प्रकार के शनि होथे बेटी, जेन हर मनखे के जिनगी मा बाधक होथे। तैं नइ समझ पावस। शनि कहाँ रहिथे महाराज? ज्योति पूछिस। शनि अगास मा रहिथे बेटी। भठरी बोलिस। अगास मा रहिथे त हम तो भुइयाँ मा रहिथन न महाराज त हमर कर कइसे आही? ज्योति बोलिस। शनि भुइयाँ मा नइ आवय बेटी, अगास ले ही मनखे बर घातक बनथे। भठरी बोलिस। त आथे तेन ल कइसे जानथस महाराज? ज्योति फेर सवाल करिस। मनखे के हाथ अउ मस्तक के रेखा देख के हम भठरी मन सब जान लेथन बेटी। भठरी बोलिस। त मोर जनम दिन कब हरे ले तो बता? ज्योति बोलिस। भठरी अकबकागे। मुँहू सुखागे। बात बनाके भठरी बोलिस- बेटी, जनम दिन ल भठरी मन नइ बतावै। जेन बात ल मनखे नइ जाने तेन बात ल भठरी मन ज्योतिष देख के बताथे। अ.. इ.. से, ज्योति बोलिस। उही समय दुवार चुरत दूध हर उफनीस अउ ज्योति के नजर परगे। सुने रिहिस कि दूध ले दही मिलथे। भठरी ले पूछे लगगे कि दही दूधेच मा काबर रहिथे, पानी मा काबर नइ रहय महाराज? सवाल सुनके भठरी सकपकागे, ओकर होंठ सुखागे, जानो-मानो भोला के शनि भठरी मा झपागे। मिट्ठू कस बोलइया भठरी गिरहा नक्षत्र के बात भुलागे। शरमा के भठरी अपन गठरी ल धर के उठगे, अचानक नींद खुलिस अउ मोर सपना टूटगे।।

  

       राम कुमार चन्द्रवंशी

       बेलरगोंदी (छुरिया)

       जिला-राजनांदगाँव

मौन मुक्का

 मौन मुक्का

                             

                                   चन्द्रहास साहू

                              मो .8120578897

गाॅंव भर मा सनसनी दउड़गे आज। डोंगरी मा लाश मिले हाबे। मोला तो जानबा नइ रिहिस फेर गोसाइन बताइस  तब जानेंव। धान बेचे ला गेये रेहेंव सोसायटी। रात दिन उहां ओड़ा ला टेकाये रहिबे तब धान बेचाही.....!

 

                      जेवन के पाछू सुतत हंव अउ गुनत हंव अब कोन मरगे रे , कोन फांसी अरो डारिस ते। कायर झन बनो रे । जीये ला सीखो । गुनत -गुनत मोला सुध आये लागिस बिसालिक के। ओखरे तो पाॅंच छे दिन ले आरो नइ हावय। पचपन साठ बच्छर के किसान मोर संग पढ़े हावय। पांचवी मा फेल होगे अउ पढ़ई छोड़ दिस। हमजोली हावय तभो ले मोला कका कहिथे।

"ठाकुर घर के बइला बनके कब तक कमाबे बिसालिक ! नानमुन कोनो करा भुइयां बिसा लेतेस ।''

" हमन जूठा खवइया आन मालिक ! भगवान हमर हाथ के डाढ़ मा अइसने लिखे हावय । ओखर बिना पत्ता नइ हाले। कब देखही हमर कोती ला ते ?''

 मोर गोठ ला सुनके काहय बिसालिक हा संसो करत। जम्मो ला सुरता करत हंव।

                     आज बिसालिक अब्बड़ उछाह मा रिहिस । ओखर संग गाॅंव के आने किसान मन घला रिहिन। जेन ला जुटहा काहय तौन मन आज मालिक बनत हावय। मजदूर मन  बित्ता भर भुइयां बिसा लेथे ते मालिक ला अतका झार लागथे , जइसे मेंछा के चुन्दी ला पुदक डारे हावय। आज तो सिरतोन दो पाॅंच दस अउ बारा एकड़ फारेस्ट भुइयां ला खेत बना के सरकार हा देवत हावय  एक -एक झन ला। हम पातर जंगल ला खेत बनावत हन काबर..? तुंहर विकास बर।  अब तुंहर दुवार तुंहर सरकार  हावय काबर ..? तुंहर विकास बर।  सिरमिट के जंगल बनत हावय काबर..? तुंहर विकास बर। तरिया ला पाटके स्विमिंग पुल बनावत हावन.. काबर ?  तुंहर विकास बर। वन मंत्री गरीब भूमिहीन मजदूर ला वन अधिकार पट्टा बाँटत हावय। अउ नारा लगवावत हावय।

           आज मंत्री जी  लबरा नइ रिहिस। सिरतोन मा जंगल ला काटके  चौमासा के आगू  खेत बना डारिस। चैतू बुधारू  रमतू असन मन ला किसान भूमिस्वामी बना दिस। बिसालिक ला घला पाॅंच एकड़ खेत मिलिस। 

        सिरतोन किसान के पछीना भुइयां मा चुचवाथे तब सोना उगलथे खेत हा। भलुक पछिना अउ पानी के रंग एक्के होथे तभो ले जब सिंचाई के पानी मा पछीना मिंझरथे तब ओखर रंग हरियर हो जाथे। चारो कोती हरियर- हरियर दिखत हे। लहरावत धान बड़का -बड़का खेत चाकर मेड़, मेड़ मा राहेर अउ घपटे तिली के पौधा। आज बिसालिक के संग ओखर खेत गे रेहेंव। पोरा तिहार आय न ! धान ला चिला खवाय ला गेये रेहेंव।

"तेहां तो हाथ मार देस बिसालिक अतका धान मा कोन पोठ नइ होही..?''

"हाॅंव कका ! सब तुंहर असीस आवय।'' 

               बिसालिक के खेत ला देख के सिरतोन अकचका गेंव। काली के बंजर भुइयां मा आज अतका फसल लहरावत हे हरियर - हरियर । मेड़ के डिपरा मा छेना मा खपत आगी ला मड़ायेंन। फुलकाछ के लोटा के पानी ले आचमन करेंव। धूप दशांग अउ गुड़ के हुम देयेंव। गुड़हा चिला के नानकुन कुटका ला आगी देव मा अरपन करेंव। सिरतोन हमर कतका सुघ्घर नेग हावय।  किसान हा गभोट धान  अन्न्पूर्णा दाई ला बेटी मानके सधौरी खवाथे । 

"सदा दिन बर छाहत रहिबे अन्न्पूर्णा दाई ! अपन मया बरसाबे ओ ! कोठा कोठार अउ कोठी मा मेछरावत आबे ओ ! हमरो भाग ला जगाबे ओ !''

 अब्बड़ आसीस मांग डारेंव। पाॅंच चिला ला कुटका - कुटका करके आदर ले खेत मा परोसत केहेंव।

 "खेत तो बोये हंव कका ! फेर टोंटा के आवत ले करजा बोड़ी हो गेये हाबे ।''

"अब बड़का काया बर बड़का चददर ओढ़े ला पढ़ही भई। छुटा जाही जम्मो करजा हा।''

बिसालिक के गोठ सुनके केहेंव।

"कोन जन कका .....? तोर बहुरिया नेवनिन रिहिस तब मंगल सूत्र ला किसानी करे बर मांगेंव अउ आज ले नइ चढ़ा सकेंव। एकोदिन ठोसरा नइ मारिस गोसाइन हा फेर सगा - पहुना, बाजार -हाट,मेला-मड़ई, बर-बिहाव मा बजरहा डालडा के जेवर ला पहिरके जाथे तब लजाथे। फेर का करही..? तरी - तरी रो डारथे। मुॅॅंहू फटकार के येदे ला खाहूं नइ किहिस। अपन भुखाये रहिथे तभो ले मोला जेवन करवाथे। ओखरे सेती ये फसल ला बेंच के गोसाइन बर गुलबंद बिसाहूं कका !'' 

बिसालिक किहिस।

खेत किंजरत हंव अउ बिसालिक बतावत हावय।  कभु मुचकावत हावय तब कभु उदास हावय। चेहरा कभु झक्क ले दमक जाथे तब कभु मुरझा जाथे गरीबी अउ अभाव के गोठ करथे तब।

"फुटहा करम के फुटहा दोना,लाई गवां गे चारो कोना। अइसन होगे हावय कका ! थोकिन पइसा सकेलथन अउ घर मा कोनो न कोनो बुता आ जाथे सिराये बर। तीस हजार सकेले रेहेंव गोसाइन के गुलबन्द लेये बर । अबक-तबक जवइया घला रेहेंव सोनार दुकान। उदुप ले दमाद के फोन आगे। बाबू जब ले तोर बेटी हमर घर मा आये हावय तब ले हमर घर मा गरीबी के चमगेदरी उड़ावत हावय। बेटा अउ गोसाइन के जर बुखार मा मोर जैजात सिरावत हावय। आज घला मोर डेरउठी के दीया ला झन बुतावन दे बाबू। मोला पइसा दे...। दे देंव। एक दरी फेर पइसा सकेलेंव । बहुरिया हरू-गुरु होइस। छट्टी बरही , नत्ता-गोत्ता सयनहिन दाई के खात -खवई अउ टूरी के पढ़ई के फीस, जम्मो मा उरकगे फेर गुलबन्द नइ बिसा सकेंव।''

बिसालिक बतावत रिहिस अउ हमन खेत किंजरत रेहेंन। बम्बूर रुख  ला देखेंव। डोड़का के नार छिछले रिहिस। पियर फूल अउ झूलत डोड़का। टोरे लागेंव। 

"लइका मन तो बने कमावत होही बिसालिक ..? संसो झन कर सब सुघ्घर हो जाही । बहुरिया ला गुलबन्द पहिरा डारबे।''

"कोन जन कका...? टूरा मन ला पुछेस!'' बिसालिक मौन मुक्का होगे। फेर किहिस। 

"एक झन ट्रक चलाथे अउ दुसर हा गरवा चरातिस ते जादा कमातिस..। मास्टर हावय। शिक्षा मितान। दूनो के दुये हाल। ट्रक वाला ला बरजथो झन पी रे मंद महुआ। मुॅंही ला भोकवा कहिथे ।  इही तो कलजुग के अमरित आवय ददा ! तभे तो अस्पताल ला प्रावेट डॉक्टर हा चलाथे अउ सरकार हा दारू भठ्ठी ला। अब्बड़ फरजेंट गोठ-बात मा मोला चला देथे। भलुक ओखर गोसाइन लइका ला चलाये के सामरथ नइ हावय अउ एसो सरपंच बनके पंचायत ला चलाहूं कहिथे। बिसालिक बताइस अपन बड़का लइका के बारे मा।

"ले बिसालिक बने अउ समझाबे मंद महुआ ला झन पीये अइसे।''

मेंहा केहेंव। मेड़ मा जागे पटवा अउ अमारी भाजी ला टोरत हन अब दूनो झन। शिक्षा मितान  बने हावय पढ़ लिख के नान्हे टूरा हा। कमती वेतन वाला हा रेगड़ा टूटत ले कमाथे अउ जादा वाला हा मोबाइल मा गेम खेलथे स्कूल मा । अइसना बताथे लइका हा। अब्बड़ सिधवा । कइसनो होवय  लइका लोग ला पालत पोसत हावय। महीना पुट चाउर पठो देथंव । मोला लागथे इही लइका हा नाव के अंजोर करही कका ..।

बिसालिक के चेहरा दमकत रिहिस आस मा।

"कका ! सब लइका मन अब अपन - अपन खोन्दरा सिरजा डारिस। बस नान्हे नोनी के हाथ मा दू गांठ के हरदी लगा देतेंव ते मोरो कन्या दान के नेंग हो जातिस। अब्बड़ संसो रहिथे । कोनो गरीब अलवा-जलवा लइका मिलही ते बताबे कका !

"हाॅंव ।''

बिसालिक के गोठ सुनके हुंकारु देये हंव। जाम पेड़ मा छछले लट्टू कस फरे  तुमा ला टोरे के उदिम करत हंव अब अउ बिसालिक फेर बतावत हावय।

"लइका के दाइज डोली देये बर एको पइसा नइ सकेले हंव कका ! पांव पखारे बर फुलकाछ के लोटा थारी लेये हंव। भांवर बर सील अउ जोरन बर कंडरा ला  झांपी बनवाये बर केहे हंव।  ... अउ  धौरी बछिया ला घला राखे हंव। फेर सगा सोदर बरतिया घरतिया बइठे बर ठौर नइ हावय कका !''

बिसालिक बताये लागिस सुरता कर - कर के। 

''घर तो बने हावय का बिसालिक । आवास योजना मा नाव आये हे कहिके पीछू दरी बताये रेहेस।

"नाव तो आये हे कका   फेर....।'' 

दमकत चेहरा फेर बुतागे बिसालिक के ।

"का होगे ?''

"काला बताओ कका ! पहिली क़िस्त मिलिस  जुन्ना घर ला उछाह मा उझारेंन अउ ईटा पथरा के नेंव निकालेंन अउ धपोड़ दे हावन अभिन। तीन बच्छर होगे थुनिहा गड़िया के  झिल्ली - मिल्ली ला छा के गुजारा करत हावन। एसो बनाहूं कका पक्का घर चाहे सरकार पइसा देये कि नही....। मोर धरती मइयां हा मोला उबारही गरीबी ले । लइका के बिहाव हो जाही घला ।''

".... अउ  तोर गोसाइन के गुलबन्द ?''

"अब तो डोकरी होगे हाड़ा अउ मांस ला साजे के दिन नइ हे अब कका ! का गुलबंद पहिरही गोसाइन कही लिही "लबरा'', सुन लुहूं मेंहा।''

बिसालिक अब बिद्वान महात्मा बरोबर गोठियावत हावय। बोर के हरियर बटन ला मसकिस । बम्बाट पानी निकलिस। पैलगी करिस गंगा मइयां ला। मोही के धार ला बहकाइस अउ अब घर आगेंन दुनो कोई धान ला देख के उछाह मा मगन होवत।

      क्षक्षक्ष कुकरी अपन अंडा ला कइसे सेथे  ? पांख मा लुका के।  चियामन ला कइसे राखथे ? महतारी लइका मन ला कइसे बटोर के जतन के राखथे ?  बस वइसना जतन करत हावय बिसालिक हा अपन खेत के, धान के, परिवार के।


"जतका के धान नइ बोये हे लइका लोग ला तियाग देहे । कका ! नान्हे देवर बाबू ला पठो दे तो, खेत ले खोज के ले आनही ।''

बिसालिक के गोसाइन आवय। आज रात के जेवन के बेरा आके किहिस। मोर नान्हे टूरा हा गिस। गाॅंव के निकलती अमरा लिस । खुटूर - खुटुर ठेंगा ला बजावत ठुकुर-ठुकुर खाॅंसत बीड़ी के सुट्टा मारत आवत रहिथे बिसालिक हा रोजिना । 

बिसालिक अउ गोसाइन एक उरेर के झगरा होतिस तेखर पाछू जेवन करतिस।

           ..... अउ सिरतोन भुइयां हा अतका धान उछरिस की देखनी होगे गाॅंव भर। पटवारी हा तो क्राप कटिंग के प्रयोग घला करिस। खेत ले कोठार अमरगे। कोठार ले कोठी जवइया हावय।

          कोठार के मंझोत मा धान के रास (हुंडी)

माड़े हावय। भुर्री के करिया गोल घेरा सोनहा धान अउ बीच के करिया मोती के माला बरोबर। मोखला काॅंटा नजर डीठ ले बाॅंचे बर। काठा कलारी जम्मो । कोठार के तीर मा पैरा के पैरावट । अन्नपूर्णा दाई ला परघा के कोठी अउ ससराल पठोये के तियारी होये लागिस। 

बिसालिक के मन गमके लागिस। मोर जम्मो करजा छुटा जाही नोनी के बिहाव अउ घर...। जम्मो सुघ्घर हो जाही।

                  

                  रतिहा तीन चार बजे ले सोसायटी मा दू दिन ले ओड़ा ला टेकाये रिहिस। कतका लड़ई झगरा तना - तनी सहिस अपन कुरता अउ पगड़ी के बलि दिस । तब टोकन मिलिस। ओ तो बिसालिक के किस्मत जब्बर हावय तभे कनिहा के ओन्हा बाचिस नही ते कतको झन तो ...?

                 इंदर भगवान तो अखफुट्टा आवय सबरदिन । बोता घरी मा भोम्भरा जरथे अउ लुवे के घरी पूरा बोहाथे। अउ बिसालिक कोनो राजा  नोहे कि ओखर भाग जब्बर रही..। अउ न ही मालगुजार आवय । धान के सोनहा रास हा ताम्बई रंग के हुंडी बनगे। भलुक अकरस पानी अतरगे रिहिस फेर बिसालिक के आँखी के पानी नइ अटाये हे। सुरुज नरायेन के किरपा ले सुखाइस अउ सोसायटी मा लेगगे किराया के टेक्टर मा।

"ये धान बिकने लायक नही है। सब बदरंग और पाखर हो गया है।'' 

ससन भर देखिस जम्मो धान ला अउ आँखी ला नटेरत किहिस साहब हा। मॉइश्चर मीटर ले धान के नमी घला नाप लिस। जौन हा जादा रिहिस।

"ले लेव साहब ! येहां धान भर नोहे मोर सपना आय। मोर जिनगी आय....।''

बिसालिक करेजा ला निकाल के किहिस फेर साहब तो दाऊ संग ठठ्ठा करत हावय।

 "साहब ! दाऊ के धान ला बिसा लेव वइसना मोरो....?''

साहेब कलेचुप।

"साहेब ! बोकरा भात खवा दुहूं महूं हा...।''

चभलावत पान के पीक ला थुकिस साहब हा। बिसालिक के गोड़ मा घलो परिस थूक हा फेर का करही ...?

दुनो हाथ जोर के अरजी करिस बिसालिक हा। फेर कलेक्टर मंत्री अउ राजधानी जाये के सुझाव दिस साहेब हा।

" का करहूं साहब  ? मोर मा अतका ताकत नइ हावय। न मेंहा खा सकंव न जानवर ला खवा सकंव।  न बेच सकंव । घुरवा मा घला फेक नइ सकंव तब करहूं ते का....? हा ....फेर जाहूं..... तेहां जिहां पठोबे तिहां जाहूं ।''

 सिरतोन करेजा निकाल के चिचियाइस बिसालिक हा ।

                

            जम्मो ला गुनत-गुनत नींद परगे। चारबज्जी उठेंव। तियारी करेन जाये के।  भिनसरहा होगे । अब जंगल के रस्दा नाहक के डोंगरी ला चढ़त हावन। छे झन पुलिस वाला। लाश ला देखइया जवनहा गाॅंव वाला अउ मेंहा। पुलिस वाला अब पहिली देखइया जवनहा बर गुर्रावत हाबे।

"का करे बर अतका दुरिहा आये रेहेस रे ? लकड़ी जंगली जानवर के तस्करी तो नइ करस न..? करत होबस ते बारा बच्छर बर धांध दुहूं जमानत घला नइ होवय।''

"जब देख डरेस कलेचुप नइ रहितेस । मर जातिस सड़ जातिस नही ते कुकुर कोलिहा खा डारतिस।''

"जिमकांदा खाये रेहेस का बे ! तोर मुॅंहूअब्बड़ खजवात रिहिस । अउ लाश घला छे सात दिन जुन्ना ..। यहुं हा बताये के कोई जिनिस आय ? ''

पुलिस वाला मन जवनहा ला चमकाये लागिस। जवनहा तो अतका चेत गे कि अब न लाश ला  का ...., कोनो ला एक गिलास पानी घला नइ पियाय। 

                         अभिन दूसरिया बेरा आवय मंद के भभका लेवत हावय पुलिसवाला अउ गाॅंव वाला मन। मंद पीये ले लाश नइ बस्साये कहिथे। अब अमरगेंन ओ ठउर मा।

                         ससन भर देखेंव। तेंदू रुख के तीर मा परे तुतारी अउ रुख मा बॅंधाये नायलोन के डोरी ला। डोरी मा गठान अउ गठान मा अरझे झूलत लाश। काया के उप्पर कोती उघरा अउ कनिहा मा नानकुन पटकू सूती के। आँखी के जगा मा मांस के लोथा अउ गोटारन कस झूलत आँखी। कोनो जिनावर कोचक के निकाल देहे। आधा हाथ नइ हे कोलिहा चफल दे होही। नाक के जगा नाक नही, कान के जगा कान नही। पेट तुमा कस फुले छाती मा हाड़ा नही... अउ कही हावय ते बिलबिलावत किरा- सादा सादा। एक,दो , हजार , लाख नही...करोड़ो के संख्या मा सादा किरा। रुख के डारा मा किरा। डोरी मा लबर - लबर रेंगत किरा अउ लाश नइ झूलत हावय अब जइसे किरा हा फांसी के डोरी मा झूलत हावय। लाश के एक कुटका संग अब लंझका-लंझका गिरे लागिस। भुइयां भर बिगरे लागिस किरा अब। मेहत्तर के गोड़ मा चढ़त हे। बुधारू के धोती मा अउ लाश.. हवा के झोंका आइस अउ  फेर एक कोती गिरगे। अकरस पानी .. अउ बस्साई...पेट खदबदाये लागिस । ..उच्छर डारेंव। अपन उम्मर भर नइ देखे रेहेंव अइसन लाश। क्षत- विक्षत लाश। मास्क अउ हेन्ड ग्लव्स पहिरके लाश ला उतारत हावय । लाश नही ....?  किरा ला उतारत हावय। टूरा आवय कि टूरी, माईलोगिन आवय कि बबा जात । कुछु नइ जानबा होवत हावय। 

"वो तो विधान सभा प्रश्न उठ गया है इसलिए इतना मसक्कत करना पड़ रहा है वरना कितने ही लाश को गुमशुदगी अउ लावारिश बना के रफा दफा कर देते है।'' 

पंचनामा बनावत किहिस पुलिसवाला हा। प्लास्टिक के थैली मा भर डारिस अउ लेबल लगा दिस अज्ञात लाश के। फोरेंसिक जांच बर राजधानी जाही । तुतारी ला घला जोरत हावय।

                  कोन जन का पता चलही ते...? बिसालिक घला  कहाॅं गेये हावय ते ? कलेक्टर करा गेये हावय कि मंत्री कि राजधानी। संसो होये लागिस। मन अब्बड़ बियाकुल हावय टीवी चालू करेंव। गाना सुनके मन नइ करिस। फिलिम देखे के मन नइ करिस। समाचार लगायेंव मछरी बाजार कस हांव-हांव होवत रिहिस। कुकुर झगरा। लोकतंत्र के पुजारी आवय ये मन। किसान आत्महत्या के आंकड़ा बतावत रिहिस खुर्सी के सपना देखइया मन। अउ खुर्सी वाला मन सबुत मांगत रिहिस। हमर छत्तीसगढ़ मा एको झन किसान आत्महत्या नइ करे हे...?  मेंहा मौन मुक्का हो गेंव। एकदम चुप कलेचुप। टीवी ला बंद करेंव अउ आरो कोती धियान लगायेंव। बिसालिक के गोसाइन आवय अब्बड़ बम्फाड़ के रोवत रिहिस।

" मोर राजा! मोर दाऊ  ! ते कहा लुकागेस धनी ....?''

थोकिन मा थक गे अउ वहु होगे मौन मुक्का...।


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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

[11/23, 2:32 PM] ओम प्रकाश अंकुर: साहित्य के गद्य विधा म  कहानी एक प्रमुख विधा हरे. कहानी के माध्यम ले एक कोति समस्या ल उजागर करे जाथे  त दूसर कोति येकर माध्यम ले सीख देये जाथे. समाज अउ सरकार के धियान दिलाय जाथे कि ये समस्या ल उलझाव झन बल्कि सुलझाव. इही म भलाई हे. समाज अउ सरकार के" मौन मुक्का" होय ले बिपत्ति ह सुरसा सहिक अउ बाढ़थे. अइसने किसान के पीरा ल  महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी म  लिखे हावय  युवा कहानीकार भाई चंद्रहास साहू ह अउ कहानी के नांव हे "मौन मुक्का".

        मौन मुक्का कहानी ल पढ़ के प्रेमचंद के कहानी "पूस की रात" , अउ उपन्यास" गोदान" के चित्र बरबस सामने आ जाथे. बाबा नागार्जुन ह अपन कविता "अकाल और उसके बाद" के माध्यम ले अकाल के मार्मिक चित्रण करे हावय.  कतको लेखक,कवि मन किसान के पीरा के बरनन करे हावय.अइसने किसान के पीरा के मार्मिक चित्रण हावय कहानी " मौन मुक्का" म. येमा एक भारतीय किसान के जांगर टोर कमाई के बखान हे त दूसर कोति करजा -बोरी म डूबे किसान  के चिंता- फिकर ल उकेरे हावय. दाऊगिरि अउ सरकारी बेवस्था के पोल खोले गे हावय. बेईमानी, कामचोरी अउ भ्रष्टाचार के कुवां ह कत्तिक गहरा हे वहू ल बताय गे हावय.लोक तंत्र के बात करथन त विपक्ष अउ पक्ष म कइसे तनातनी होथे. सत्त पक्ष कइसे सबूत ल दबा देथे. टीवी म डिबेट के स्तर कत्तिक गिर गे हावय. विकास के नांव म प्रकृति के जउन बिनाश होवत हे. आज के नवजवान संगवारी मन मंद- महुआ के फेर म पड़ के कइसे अपन जिनगी अउ घर वाले मन के जिनगी ल नरक बना के रख देथे. सरकार ह शिक्षा के नांव म कभू शिक्षाकर्मी त कभू शिक्षा मितान जइसे योजना लाके बेरोजगार मन के मजाक उड़ाथे. कर्मचारी अउ गुरूजी मन के अलग -अलग कैटेगरी बना के फूट डालके राज करथे. घोषणा पत्र म वादा करे रहि तेला पांच बछर म घलो पूरा नइ करय. दू चार महीना म पगार देथे अउ ओपीएस के जगह एनपीएस लाके कर्मचारी मन ल अब्बड़ टेंसन देथे.ये सबके बरनन देखे ल मिलथे " मौन मुक्का " म.

    मौन मुक्का के प्रमुख पात्र हरे बिसालिक. येहा गरीब किसान हरे अउ उमर हे पचपन - साठ बछर के जउन ह पहिली दाऊ घर चरवाहा लगे. सासन के योजना के मुताबिक बिसालिक ल घलो खेती किसानी बर बंजर बन भूमि देये गे हावय. खेती अपन सेति नइ ते नदिया के रेती कहे गे हावय.बिसालिक ह जांगर टोर कमाके बंजर भुइयां ल अब्बड़ उपजाऊ बना डरिन. ये जगह कहानीकार ह सुघ्घर बरनन करथे कि " सिरतोन किसान के पसीना भुइयां म चुचवाथे तब सोना उगलथे खेत हा".

     त दूसर कोति किसान के पीरा के बरनन करत बिसालिक के माध्यम ले कहिथे -" खेत तो बोये हंव कका! फेर टोंटा के आवत ले करजा- बोड़ी हो गेये हावय ". येमा एक भारतीय किसान के पीरा के मार्मिक चित्रण देखे ल मिलथे.ऊपराहा मउसम के मार ह किसान मन बर दुब्बर बर दू असाड़ हो जाथे. 

  बने धान लुवई के बेरा म मउसम कइसे पेरथे वोकर बरनन करत कहानी ह कहिथे -" इंदर भगवान ह तो अंखफुट्टा आय सबर दिन. बोता घरी म बोम्भरा जरथे अउ लुवे के घरी पूरा बोहाथे." मउसम के मार ह किसान ल मार डारथे. किसान के कमर तोड़ के रख देथे बेमउसम बारिश ह. चिंता फिकर म न दिन के चैन मिलथे अउ न रात म नींद आथे. अइसन बिपत्ति के बेरा के बरनन करत कहानीकार ह लिखथे - फुटहा करम के फुटहा दोना,लाई गंवागे चारो कोना ". ये जगह कहानीकार ह सुघ्घर हाना के प्रयोग करके कहानी के भाषा शैली ल पोठ बनाहे. कइसे बछर भर के कमाई ह पानी के मोल हो जाथे अउ नंगत झड़ी के कारन धान ह खराब हो जाथे. ये जगह अपन पात्र बिसालिक के माध्यम ले प्रकृति के मार के मार्मिक बरनन करथे - " भलुक अकरस पानी अतरगे रिहिस फेर बिसालिक के आंखी के पानी नइ अटाये हे."

      जब बिसालिक ह अपन धान ल बेचे बर सोसायटी ले जाथे त उहां साहब ह धान ल रिजेक्ट कर देथे. ये जगह कहानीकार ह भ्रष्टाचार ल उजागर करत गरीब किसान बिसालिक के माध्यम ले कहिथे - " साहब! दाऊ के धान ल बिसा लेव वइसना मोरो....?

साहेब कलेचुप...? साहेब! बोकरा भात खवा दुहूं महूं हा ."  येहा सरकारी बेवस्था म ब्याप्त बेईमानी, भ्रष्टाचार ल उजागर करथे कि कइसे दाऊ के खराब धान ल साहेब ह बिसा लेथे अउ गरीब किसान मन ल खून के आंसू रोवाथे.येकर सेति थक- हार के आत्म हत्या जइसे कदम उठा लेथे. फांसी जगह म पुलिस वाले मन के बेवहार के सजीव बरनन कर के जब्बर व्यंग्य करे हावय कि संवेदना नांव के चीज नइ हे.


  कहानी के भाषा सरल अउ सहज हे. पात्र के अनुसार भाषा के चयन करे हावय. किसान ल ठेठ छत्तीसगढ़ी बोलवाय हे त सोसायटी के साहब बर हिंदी भाषा के प्रयोग करे हावय.कहानी लंबा हे पर पाठक वर्ग ल बने बांध के राखथे. कहानी के शैली नदिया के धार कस प्रवाहमयी हे. कहानी के शीर्षक ह  सार्थक हे. एक उद्देश्य हे कि भुइयां के भगवान कत्तिक हे परेशान. समाज अउ सरकार कब तक मौन मुक्का बन के किसान मन के पीरा ल नजर अंदाज करहू अउ कब तक बिसालिक जइसे गरीब किसान मन करजा -बोड़ी म डूबके आत्महत्या जइसे कदम उठात रहि. 

               ओमप्रकाश साहू "अंकुर "

             सुरगी, राजनांदगांव

Tuesday, 12 November 2024

आज 108 वीं जयंती म विशेष... चंदैनी गोंदा के सर्जक: दाऊ रामचंद्र देशमुख

 आज 108 वीं जयंती म विशेष...


चंदैनी गोंदा के सर्जक: दाऊ रामचंद्र देशमुख 


जब मोर जनम होइस वोकर ले दू साल पहिली “चन्दैनी गोंदा “के जनम होगे रहिस हे. अउ जब येखर सर्जक श्रद्धेय दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ह जब येला कोनो कारन ले आगू नइ चलइस त मात्र 

आठ साल के रहेंव. मेहा दाउ राम चन्द्र देशमुख जी द्वारा संचालित” चन्दैनी गोंदा “ल कभू नइ देखेंव. दाउ जी ले घलो कभू आमने- सामने भेंट नइ कर पायेंव. मोर अइसन सौभाग्य नइ रीहिस हे. पर 

मोर डायरी म दैनिक सबेरा संकेत 

राजनांदगांव के “आपके पत्र “स्तंभ के पेपर कटिंग हे. वोखर मुताबिक मेहा 21 मार्च 1996 म दूरदर्शन केन्द्र रायपुर के कार्यक्रम “एक मुलाकात “ के तहत जब  राम हृदय तिवारी जी ह दाऊ जी ले “गोठ बात “करे रीहिस हे वोला मेहा गजब रुचि लेके सुने रेहेंव. काबर कि मेहा कई ठक अखबार म श्रद्धेय दाऊ जी के जीवन परिचय, चन्दैनी गोंदा अउ “कारी” के बारे म पढ़े रेहेंव.  उद्भट विद्वान डॉ. गणेश खरे जी के लेख के सँगे सँग  कुछ अउ विद्वान मन के लेख ल पढ़े रेहेंव. जब दूरदर्शन केन्द्र रायपुर ले ये भेंटवार्ता ह शुरु होइस त मेहा आखिरी होत तक टस से मस नइ होयेंव.  ये भेंटवार्ता ले मोला छत्तीसगढ़ लोक कला मंच के विकास यात्रा म दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के योगदान के सुग्घर जानकारी मिले रीहिस  राम हृदय तिवारी जी ह दाऊ जी गजब अकन सवाल करिन कि देहाती कला विकास मंडल अउ चन्दैनी गोंदा के गठन अउ कारी के मंचन के का उद्देश्य रीहिस  हे. चन्दैनी गोंदा के पहिली इहां के नाचा अउ लोक कला मंच के कइसन दशा अउ दिशा रीहिस हे .चन्दैनी गोंदा ल आप  विसर्जित करे जइसे कठिन निर्णय काबर लेंव. अइसे का परीस्थिति अइस!  ये सवाल तिवारी जी ह श्रद्धेय दाऊ जी ले करिस त वोहा एकदम भावुक  होगे. वर्तमान म लोक कला मंच के दशा अउ दिशा उपर जब चर्चा चलिस तब दाऊ जी ह गजब उदास होगे अउ कहिस कि हमर छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान ल जगाय बर काम नइ हो पावत हे. लोक कला मंच के नाम म सिनेमा संस्कृति के जोर होगे हे. अइसे कहत -कहत दाउ जी ह एकदम गंभीर होगे. 


  दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के जनम  25 अक्टूबर 1916 म बालोद जिला के डौंडीलोहारा विकासखंड के गाँव पिनकापार म होय रीहिस हे. वोकर पिता गोविंद प्रसाद बड़का किसान रिहिन.  उंकर प्राथमिक शिक्षा गांव म  होइस. फेर नागपुर विश्वविद्यालय ले बीएससी (कृषि) म स्नातक  अउ वकालत के पढ़ाई करिन.  ऊंकर बिहाव छत्तीसगढ़ के स्वप्न दृष्टा खूबचंद बघेल के बेटी राधा बाई ले होइस.बचपना ले वोहा दार्शनिक अउ चिंतक प्रवृत्ति के रिहिन.ननपन ले नाचा अउ नाटक देखे के शउक रिहिन.  शादी के बाद बघेरा म रहिके उन्नत ढंग ले  किसानी करिन. दाऊ जी ह आयुर्वेदिक पद्धति ले अपन गांव बघेरा म लकवा अउ पोलियो मरीज मन के ईलाज करके जन सेवा करिन. 


  शुरु म पिनकापार म राम लीला मंडली के गठन करिन. वोहा खुद नाटक अउ राम लीला म भाग लेय. 


. वोहा 1950  म देहाती कला विकास मंडल के गठन करिन .  येकर माध्यम ले अंचल म प्रचलित नाचा के प्रस्तुति म परिष्कार करिन. दाऊ जी कलाकार मन के खोज म गांव- गांव भटकिन.


. येमा लाला फूलचंद श्रीवास्तव  जी चिकारावाला (रायगढ़), ठाकुर राम जी , भुलवा (रिंगनी साज),  रवेली साज के मदन निषाद जी (गुंगेरी नवागाँव, डोंगरगॉव, राजनांदगांव) जइसे बड़का कलाकार शामिल होगे. दाऊ जी ह ये कलाकार मन ल लेके काली माटी, बंगाल का अकाल, सरग अउ नरक, राय साहब मि. भोंदू खान साहब नालायक अली खां, मिस मैरी का डांस जइसे प्रहसन खेल के मनोरंजन के सँगे सँग जनता ल संदेश घलो दिस.  दाऊ की मंडली ले जुड़े कुछ बड़का कलाकार मन प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीर तनवीर के नया थियेटर दिल्ली म शामिल होगे.  सन् 1954 ले 1969 तक  दाऊ जी ह अपन सबो समय ल जन सेवा अउ समाज सुधार म लगा दिन. कई साल तक

शांत अउ गुमनामी के जिनगी गुजारिस.  फेर अपन माटी के करजा ल छूटे के प्रेरणा ऊंकर अंतस म सदा ले भराय रिहिस.अउ वोहा प्रस्फुटित होइस 20 साल बाद चंदैनी गोंदा के रूप म. 


  अउ 7 नवंबर 1971 म अपन गाँव बघेरा (दुर्ग)  मा सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उद्देश्य लेके लोक सांस्कृतिक संस्था “चन्दैनी गोंदा “के गठन करिस. बघेरा के बाद  येकर प्रस्तुति पैरी, भिलाई, राजनांदगांव,धमधा,नंदिनी, धमतरी,झोला,टेमरी अउ जंजगिरी जइसन जगह म 50-50 हजार दर्शक मन के सामने होइस. चंदैनी गोंदा के प्रदर्शन छत्तीसगढ़‌ के संगे संग उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली अउ मध्य प्रदेश म घलो सफलतापूर्वक होइस. अखिल भारतीय लोक कला महोत्सव यूनेस्को द्वारा आयोजित भोपाल सम्मेलन म कार्यक्रम के गजब प्रशंसा होइस. 


 चंदैनी गोंदा ह हमर छत्तीसगढ के कवि मन के लिखे गीत ले सजगे. दाऊ जी ह चंदैनी गोंदा के बड़का कार्यक्रम म इहां के साहित्यकार मन के सम्मान करके एक नवा उदिम करिन. 



दाउ जी ह चन्दैनी गोंदा, कारी के माध्यम ले छत्तीसगढ़िया मन के पीरा ल सामने लाइस. इहां के रहवासी मन के स्वाभिमान ल जगाइस.किसान,मजदूर अउ नारी मन के दयनीय दशा ल सामने लाके शोषक वर्ग मन के बखिया उधेड़िन . चन्दैनी गोंदा के माध्यम ले  लक्ष्मण मस्तुरिया जी,  खुमान साव जी, गिरिजा सिन्हा, महेश ठाकुर,मदन चौहान, संतोष कुमार टांक,रामरतन सारथी, केदार यादव जी, साधना यादव जी, भैया लाल हेड़ाऊ, शेख़ हुसैन,रवि शंकर शुक्ला, संतोष झांझी, मंजूला बनर्जी,शिव कुमार दीपक, जगन्नाथ,राम दयाल, ठाकुर राम, मुकुंदी राम, हीरा सिंह गौतम चित्रकार, बसंत दीवान छायाकार,



कविता हिरकने (वासनिक ), संगीता चौबे, अनुराग ठाकुर,  डा. सुरेश देशमुख प्रथम उद्घोषक, जइसे उम्दा कलाकार सामने आइन. 


  मेहा दाऊ जी द्वारा संचालित चन्दैनी गोंदा ल कभू नइ देखेंव पर 

बाद म लोक संगीत सम्राट श्रद्धेय खुमान साव जी द्वारा संचालित चंदैनी गोंदा ल घलो मात्र दो बार देख पायेंव .पर श्रद्धेय खुमान साव जी ले भेंट नौ बार होइस हे. येखर संस्मरण घलो लिखे हवँ. 

    छत्तीसगढ़ी संस्कृति के ये  रखवार  ह 13 जनवरी 1998 म अपन नश्वर शरीर ल छोड़ के स्वर्ग लोक चले गिस. दाऊ जी ह अपन यश रुपी शरीर ले सदैव जीवित रहि.उंकर  भतीजा अउ चंदैनी गोंदा के पहिली उद्घोषक डा. सुरेश देशमुख जी ह  दाऊ रामचंद्र देशमुख के बारे म अपन संपादन म किताब प्रकाशित करवाय हे। ये किताब म दाऊ रामचंद्र देशमुख के जीनन परिचय, देहाती कला विकास मंडल, चंदैनी गोंदा के विकास यात्रा अउ येकर ले जुड़े कलाकार, गीतकार मन के बारे म सुघ्घर जानकारी हे। ये किताब ह हमर छत्तीसगढ के सांस्कृतिक दस्तावेज हरे।

श्रद्धेय दाउ जी ल उंकर 108 वीं जयंती म शत् शत् नमन हे. विनम्र श्रद्धांजलि. 


          ओमप्रकाश साहू “अंकुर” 


      सुरगी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)

थोकिन टेचरही गोठ - " देवारी के रचना "

 थोकिन  टेचरही गोठ -

       " देवारी के रचना  "


इस्कूल बंद होवईया हे l देवारी के छुट्टी हे फेर देवारी के ऊपर नवा रचना लिख के लाये के  'होमवर्क 'मिले हे लइका मन ला l 

होमवर्क घलो रचना लिखे के बूता ए l

           देवारी तिहार

   " देवारी एक अइसे तिहार हे जेला सब मनाथे जबरदस्ती मनाथे l 

देवारी तिहार मनाये के पहिली लछमी जी ला पहिली देखाथे पाछू साल आपके किरपा ले  अतका धन कमाए हन l ओ हिसाब ले ए साल के देवारी ल मनाबो l 

जेखर पास हे  लछमी,ओहा लुका के रखथे l जेखर पास नई हे पटक पटक के देखा देखा के मनाथे l

देवारी  ह दुवारी ला देख के आथे l

एखर सेती दुवारी ला ज्यादा सजा थे l घर के भीतरी ला कोन देखथे? बाहिर  ले बने दिखना चाही l 

 देवारी मनाये के पाछू तीन कारन होथे 

1 कोनो कुछु झन कहय हमला दिवालिया 

2 लछमी ककरो घर झन रहय 

  थिर थार 

3 लछमी सदा रहे सहाय 

देवारी ले लाभ और हानि -

देवारी के दिन शुभ -लाभ लिखे जाथे,बाकी दिन भले कलह झंझट हानि होवत रहय 

उपसँहार - देवारी तिहार ले सीख मिलथे हँसी माढ़े रहय खियाये मत एखर ख़याल रखे जाय l 

देवारी के अंजोर बगरत रहय चोरी झन होय l चोरी होय तो चोर झन पछताय l  

      मातर के मारपीट ला घर तक रखो पुलिस को पता मत चले l 

माते अउ मताये के नाम देवारी l

अइसन देवारी हर बछर आवत रहे  l 

ले जय जोहार l 


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

बदला

 अँगरेजी के ला छत्तीसगढ़ी मा कथा सार कथानक अनुवाद करे छोटकुन कहानी।हाई स्कूल मेट्रिक  19 84 मा पढे कहानी के आय।जेकर सुरता मोर मन मा आज ले हावे। ओइसे भी महूँ मेट्रिक तक ही पढ़े हवँ। जे मन पढ़ पाही ओमन अपन विचार भरोसी ले रखहीं। 

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       बदला


        एक ठन चिरई जेन हर जमीन मा अंडा देथे। इही चिरई हर नदिया तिर के परिया भुँइया मा अंडा पार के सेय बर बइठे रिहिस। एक दिन उही डहर ले हाथी के दल  नदिया मा पानी पिये बर आवत रिहिस। चिरई के मन मा डर समागे, अउ हाथी के मुखिया तिर जाके कथे कि, हाथी जी जेन डहर आपमन जावत हव थोरिक आगू जमीन मा मोर अंडा हे जेमा मोर पिलवा मन के सिरजन होवत हे। इही डहर ले आपके सबो दल आवत हे, वोला कइसनो करके बचा लेतेव ते बहुते किरपा होतिस। हाथी ओकर बिनती ला सुनिस अउ दया, सोग करके अगुवा के चिरई के सँग चल दिस। हाथी अपन चारो पाँव ला चकरा फसकरा के अंडा के छेका करके खड़े होगे। हाथी के दल हर ओकर आजू बाजू ले पार होवत गिन। उही दल मा एक झन अड़ियल खैंटाहा किसम के घमंडी हाथी घलो रिहिस। ओ हर अपन मुखिया ला कथे--तोला नदिया नइ जाना के का? पानी नइ पीना हे का? 

मुखिया हाथी कथे - - पानी तो पीना हे जी, फेर येदे चिरई बिचारी के अंडा के बचाव बर छेका करत ये जगा मा खड़े हवँ। 

    तब वो अड़ियल चिरकुटहा हाथी कथे---हम अतका बड़े देंहे पाँव वाला हाथी जात अउ नानकुन चिरई के चिन्ता करबो। अउ तहूँ ला चिरई अंडा के चिन्ता धरे हे। अतका कहिके मुखिया हाथी ला जोरलगहा ढकेल दिस, अउ अंडा ला अपन पाँव मा रमँज के मुखिया हाथी ला धकियावत चल दिस। 

      पेड़वा के डारा ले बइठ के चिरई सबो करम दसा ला देखत रिहिस। अपन आँखी मा सबो तहस नहस होवत देखके रोये लागिस। अबड़ बेरा ले सुचकत रहिगे। आखिर मा चिरई ठान लिस कि ये घमंडी हाथी ले मोला कइसनो करके बदला लेना हे कहिके। 

        दुसरइया दिन चिरई हर कउँवा ले मितानी करिस अउ अपन सबो बिथा ला सुनाइस। सँगे सँग बदला लेय बर साथ देय के सहमति माँगिस। कउँवा घलो हामी भरिस अउ तुरते घमंडी हाथी के पीठ मा जाके बइठगे। किरनी गोचरनी ला खाय असन करत करत ओकर आँखी मन ला लहू के आवत ले ठोनक दिस अउ उड़ाके आगे। 

     चिरई हर जंगल के भुसड़ी घुनघुट्टी माँछी मन ले मितानी करिस अउ अपन उपर परे बिपत के किस्सा सुनाके बदला बर मदद के बिनती करिस। यहू बताइस कि कउँवा हर अपन काम ला कर डारे हे। आपमन ला ठोनकाय आँखी मा झूमते रहना हे अउ मल मूत्र करते रहना हे। सबो झन राजी होके हाथी के ठोनकाय आँखी मा भिनभिन भिनभिन झूम झूम के मल मूत्र करत गिन जेकर ले आँखी के घाव बाढ़त गिस जेकर ले घाव मा पीप भरगे दरद पीरा बाढ़गे। अउ दूनो आँखी मूँदागे। तभो ले माछी घुनघुट्टी भुसड़ी मन वोला हलाकान करे बर नइ छोड़य। 

     हाथी पानी मा बूड़ के बाँचे बर गूनत रहय। तब चिरई हर मेंचका ले मितानी करके अपन उपर आय बिपत ला सुनाइस अउ बदला लेय बर राजी करिस। तब मेंचका कथे--तँय चिंता झन कर मँय आजे हाथी के सबो घमंड ला निकाल देथवँ। ये कहिके मेंचका हर हाथी के सुनउ पथरा मा जाके बइठके  टर्र टर्र नरियाय के शुरू कर दिस। हाथी मन मा सोचिस कि मेंचका नरियावत हे माने तिर तखार मा पानी तो होहिच। ओकर आरो ला ओरखत हाथी रेंगे लगिस। मेंचका आगू आगू फूदक पूदक के टर्र टर्र नरियावय अउ पहाड़ी डहर चढ़त जावै। हाथी घलो पानी के आस मा उपर कोती चढ़त गिस। आखिर मा पहाड़ी के टीप मा चल दिस, अउ बड़का असन पहाड़ी चटर्रा मा झपाके गहिर खाई मा गिरके मरगे। 

    ये किसम ले छोटकुन चिरई अपन बदला पूरा करिस अउ सबो सँग देवइया सँगवारी मन के अभार मानिस। 

कहानी सार अनुवाद 

राजकुमार चौधरी "रौना" 

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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   लघु कथा बाल कहानी रूप मा प्रेरक मोला बने लगिस। एकर सेती भेज पारे हवँ।

नान्हें कहिनी // *हिजगा* //

 नान्हें कहिनी              // *हिजगा* //

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                *हिजगा* कहे ले अलकरहा लागथे,फेर हिजगा म जिनगी के बड़का-बड़का कारज संवर जाथे नइ तो दांवा धरे कस भंग-भंग ले बर जाथे।कभू-कभू हिजगा म गोटी ले गौंटिया बन जाथे नी तो गौंटिया ले गोटी घलो हो जाय ल परथे। हिजगा म कतको नकसान अऊ कभू-कभू नफा घलो हो जाथे। देखे म मिलथे कोनों बढ़िया कारज के हिजगा करे म नफा मिल जाथे शिक्षा,संस्कृति,संस्कार अऊ पुरखा मन के सुग्घर कारज के *हिजगा* करही त नफेच-नफा अऊ कतको झन सहंराथे।चारी-चुगली,चोरी-हारी,लरई-झगरा,काकरो कमाई,चीज-बस,मार-पीट अऊ काम-बुता के कोढ़रई के हिजगा करही त जिनगी भर धारे-धार बोहावत नकसान हो जाथे,कभू "*बंड़ोरा*" असन उड़ा घलो जाथे।

                 *"ईरखा के भाव रखइया मनखे सबो सुख पाके कभू मन म शांति नी पा सके।"* पाछू ओकर भुगतना ल भोगे बर परथे।हिजगा के अइसे कतको मनखे के सुवारथ लगे रहिथे जेन ओकर कारज ह "*पुन्नी के अँजोर* " कस फक-फक ले ओग्गर दिख जाथे।मनखे ल काकरो जिनगी सुधर जावय वइसन हिजगा करना चाही। आजकल तो हिजगा के खातिर घर के रिश्ता-नाता "*दरगार चरके*" बरोबर हो जावत हे अऊ संगे-संग *बैरी के डांड़* घलो खिंचाथे।हिजगा ले थोरिक संभल के रहे ल परही। *"मन के घाट आजकल जादा खिसलउ हे।"*

         गाँव के मंझोत बस्ती म मिलौतिन जबर कमैलिन रहय।कचरा भिर के सबो काम-बूता एकेझन कर दारे।मिलौतिन के फदालू नांव के एकझन बेटा रहय।मिलौतिन के गोसईंया फउत होगे रहय।मिलौतिन अऊ फदालू दनोझन रहय।खेत डोली जादा नी रहिस बनी-भूती करके ओमन के जिनगी चलत रहय।फदालू गूने समझे के लाइक होगे,नानमून कुछू काम-बूता करे के लायक होगे रहय।' कुछू काम-बूता करे बर दूरिहा शहर कोती जातेंव '..फदालू के मन म बात आइस.।फदालू अपन दाई ल एक दिन कहिथे...!' एकेझन तो मोर आँखी के पुतरी बरोबर हावस बेटा तोला दूरिहा नी जावन देवौं ' मिलौतिन फदालू ल कहिथे.. ! ' तही मोला बता मैं काय बूता करंव जेकर ले हमर घर के हालत सुधर जावय '...फदालू अपन दाई ल कहिस ! ' गाँव के रेलवे टेशन म चहा दूकान खोल ले बने चलही ' दाई अपन बेटा ल कहिस... ! ' फदालू के मन आइस त मुड़ी हलावत हव कहिस '..।

                     दूसरवान दिन बजार ले चहा दूकान के जोखा मढ़ाय बर समान बिसाय चल दिस।चहा-शक्कर,चहा बनाय के गंजी,केटली अऊ दू-चार दरजन कांच के गिलास लेके आइस।टेशन के बाहिर म दूकान लगाय के टपरा बनाइस। तिसरावन दिन चहा दूकान खोले के शुरू करिस। *" मनखे के सोच ओला आघू बढ़ाथे ।"* बिहनिया के पाँच बज्जी गाड़ी चढ़ोइया मन जावंय कोनों उतरइया मन आवंय।बिहनिया बेरा सबो ल चहा के चुलूक रहिथे, फेर का फदालू के चहा दूकान बिहनिया के शुरू होये-होय रात के दस बजे बंद करय।चहा अतका बढ़िया बनावय.... अदरक,लइची अऊ गोरस के गाढ़ा चहा रहय।पिवइया मन फदालू के चहा ल जबर सहरावंय।नी पिवइया मनखे घलो पीवंय।चहा के चलन बाढ़गे, रोज के बने आमद आय के शुरू होगे।चहा संग धीरे-धीरे अऊ खई-खजाना राखे के शुरू करिस।चहा के संगे-सबो खई-खजाना के चलन बाढ़गे।

             मटरु ह फदालू मन के चहा दूकान कोती जावय त देखथे दूकान म चहा पिअइया मन के भीड़ थिरकबे नी करय।फदालू के चहा दूकान के अतका चलन होवत हे अजम दारिस।चहा दूकान म मटरु के आँखी गड़े रहिस।ओमन के कमइ ल देख के मटरु घलो *हिजगा* म उहीच जघा म चहा के दूकान खोल दारिस।फदालू के माढ़े-मउरे दूकान रहिस तेकर ले ओकर गहकी मन ओकरेच करा आवंय।फेर *मउंहा कस थिपइ* थोरिक कम होय के शुरू होगिस,काबर के दूठिन दूकान होगिस।बपरा के धंधा कम होय लगिस।गरीब मनखे के कमई ल नी देख सकें,ओतका दिन ले तो कोनों दूकान नी खोलिन फेर फदालू के खोले के पाछू *हिजगा* म कतको दूकान खुलगे।बपरा के आवक कमतिया गीस *अलराय मखना नार बरोबर हो गीस।* मनखे ल हिजगा ह खा दारिस।

✍️डोरेलाल कैवर्त " *हरसिंगार "*

     तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)

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लघु कथा - " आ सगा गोठिया सगा "

 लघु कथा -


      " आ सगा गोठिया सगा "


 "  जइसे मईया लिये दिये 

तइसे देबो असीसे 

     अन्न धन ले तुंहर घर भरे 

जुग जिओ लाख बरिसे    "

 

"देवारी आवत हे "ले सुन ले l इहाँ मुश्किल होवत हे जीना, दू चार साल का, दू दिन भारी लगत हे l जीवराखन अपन पीरा ल मनराखन करा बतावत रहिसl मनराखन  पूछिस  -"काबर अतेक हताश होवत हस?"

" जुग बदल गेहे, दूर के ढ़ोल सुहावन हे तीर ले सुन कान बोजा जाही  l "

" ले बता त फेर मोर कान म "

जीवराखन बताइस -"नोनी बर सगा आथे देखे बर l पत्रिका ल देख के पता पूछत आयेन हन कइथे l बात चित होथे l पूछा पाछी होथे l ले बतावत हन कहिके चल देथे l नई जमींस रिस्ता ह l" 

मनराखन पूछिस कारन का हे? बताइस होही l"

"दस कारन  गिना देथे l काला बताबे? सगा मन के बात निराला l " लड़की वाले अन सुन लेथन l सगा मन के मेछा नई हे फेर ऐंठत रहिथे l काला देख थे ते? समझ ले बाहिर जी l 

" अपन भासा म नई कहेस? "

" पत्रिका ल धरे धरे किंजरत हे समझ ला  पुतकी म राखे हे l"

रिस्ता कभू नई जुड़य अइसन म l लड़का के उमर लड़की के उमर अइसने बढ़त जाही l रंग रूप कद काठी, गौत्र सोत्र लिखई पढ़ाई, काम काज, घर दुवार,खान पान, आँखी कान, मुड़ गोड़ सब ला देखे जाने सुने के बाद गुन आचरण म अटक जथे l लकठा धुरिया के नता गोता उहू मिल जाथे तभो ले l 

'नई जमत सगा " कहिथे इही म बात खटक जाथे l 

मन राखन कइथे -" लड़का लड़की के आपस म बात चीत नई होइस l "

 "उहू होइस l नोनी ल पूछेन कइसे ठीक हे? उहू गुनमूना दीस l लड़का ल पूछेन  चेथी ला खजवा दीस पूछ के बताहूँ l

अपन बर देखत हे अउ काला पूछही ते l " 

करन तो करन का जबरदस्ती  के काम नोहय l दिन निकलत हे देवारी आवत हे जावत हे फेर आगे देवारी l नोनी बर फेर सगा आही रद्दा ला देखत हन l

फेर पूछही नोनी तोर उमर कतका हे? बिहाव होये  के बाद का करबे? संग में रहू कि अलग अलग? अउ कोनो तोर यार दोस्त तो नइये हे? जइसन रहिथन ओइसने रहे ला पड़ही l

नोनी के उमर अब चालीस होगे l ले अब का करबे?


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

मितानी (नान्हे कहिनी)

 मितानी (नान्हे कहिनी)

सोमनी गाँव म एक बर के रुख रहिस हे। बर रुख के तरी म बने छइहाँ राहय। येखर छइहाँ म लइकामन खेलत राहँय। राम अउ कमल नाँव के लइका के बीच म बने मितानी रहिस हे। कमल ह बहुत उतयइल रहिस हे। एती ओती कूदत फाँदत राहय। कई बेर रुख ले गिरे भी रहिस हे। डर्रा डर्रा के रूख म चघय। 


एक दिन बर के रुख ऊपर चढ़गे।  जेन डारा म चढ़े रहिस हे तेन ह बहुत पातर रहिस हे। डारा ह नवगे। कमल ह डररागे अउ चिचयाये ले लगगे "बचा ले राम मैं ह गिरत हावंव। " 

राम ह जेन मेर खड़े रहिस हे तेने मेर बर के एक जटा ह झूलत रहिस हे। राम ह जटा ल झुला के कमल डाहर फेकिस अउ कमल ल कहिस "येला पकड़ ले अउ झूल के नीचे आ जा।" कमल ह तीन बेर कोशिश करिस फेर जटा ह पकड़ म नइ अइस। राम जटा ल घेरी बेरी कमल डाहर फेकय फेर ओ ह खाली वापस आ जाय।


बहुत कोशिश के बाद आखिर म जटा पकड़ा गे। कमल ह जटा ल पकड़ के झूलगे। झूलत राम डाहर अइस त राम ह जटा ल पकड़ लिस अउ कमल ल उतार लिस। राम के बुद्धिमानी ले कमल ह बांचगे। ऊंखर मितानी के गठान ह अउ मजबूत होगे। अइसने सबके मदद करना चाही। 

सुधा वर्मा, 31/8/2024,,,

मनोवैज्ञानिक व्यंग्य लघु कथा तुतारी

 मनोवैज्ञानिक व्यंग्य लघु कथा 

          तुतारी 

 मेंटल हॉस्पिटल कहत दीमाग अइसने हे सोजिया जाथे l अभी के समय म सबला जरुरी हे एक बार उठ बइठ करके आये के l जेने ल देखबे तेने सब इही कइथे -"मोर दीमाग काम नई करत हे? "

"मोर डिमाग ख़राब होगे l"

"मोर डिमाग ला खा दीस पूछ पूछ के l"

   फेर मेन्टल तो बिगड़े हे सब के l लोग लइका के बिहाव नई हो पावत हे ए अउ बड़े टेंसन l

भगत के इही हाल l जगत के इही हाल l 

मेंटल डॉक्टर पूछत रहिस -

"तोर का नाँव हे "

"सुशील "

"तोर बाप के.. I"

" येदे बइठे हे "

"तै बताना?"

"नई...?"

"तोर बिहाव होगे हे "

"होय रहितिस त थोड़े आतेव l" 

"काबर नई होइस? "

"एखरे सेती ?अपन बाप कोती देखत l"

"कोनो लड़की पसंद के हे?

"कोनो पसंद के नई हे l"

"काला पसंद करबे?"

"बने अस मिलही तब ना!"

डॉक्टर के अरई तुतारी चलते रहिस -"कोन तोला देखाइस बताइस? "

" भांटो देखाइस  तेन तो गोलाइन्दा भाँटा अस l"

अउ 

"फूफा देखाइस तेन राहेर काड़ी अस फांफा l"

अउ 

"झन पूछ सब मोर बर 

छूटे छाँटे निमारे l "

अच्छा!!!

एक काम कर तै खुदे देख ले बात कर के जमा के आव,नई ते मेंटल हॉस्पिटल ए तोर बर जमा दिही,  बने अस टुरी l इहे हे तोरे लाइक l ठीक हे l  

इहै भर्ती कर के रखहूँ l"


अतका सुनत सुशील के होश आगे l हींग लगे ना फिटकिरी 

रंग चोखा l सूजी काम नई आइस तुतारी ले भेद खुलगे l 

महीना दिन के भीतर सगाई के नेवता कार्ड ला धरके  सुशील जाथे l 

"जम गे डॉक्टर साहब मिलगे पसंद के लड़की l" 

हमूँ कहिथन मेंटल म बने इलाज होथे l


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

लघु कथा - छत्तीसगढ़ी

 लघु कथा - छत्तीसगढ़ी

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1-- रवि के दादा जी

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रवि आज बहुत खुश हे। अपन दादा जी ल मॉल घुमाये बर लाये हे।रवि के पापा दिल्ली म रहिथे अउ ओखर बाबूजी गाँव म रहिथे।साल म एक बार देवारी में ही सब झन गाँव जात रहिन हे। दिल्ली म रवि के स्कूल म एक दिन दादा दादी या नाना नानी ल लाये के नियम रहिस हे। वार्षिकोत्सव म ये मन ल लेगना जरुरी रहिस हे। दू बछर ले रवि ह अपन दादा दादी ल सुरता करत रहिस हे। एक दिन ओखर पापा ह अपन बाबूजी ल ले के दिल्ली आ जथे। रवि दादा दादी ल अचानक देखके बहुत खुश हो जथे। सांझ कन रवि ह अपन दादा जी ल हाथ पकड़ के मॉल घूमाये बर लेगथे। दादा दादी ल एक्सीलेटर तीर खड़ा होके चढ़े बर सीखावत रहिथे। रवि के पापा ह रवि के खुशी देखके बहुत खुश होथे। अब ओ ह मन म सोचथे के अब माँ बाबू जी ल इहें रखना हे। 

सुधा वर्मा, 

प्लाट नम्बर 69 "सुमन"

सेक्टर -1

गीतांजली नगर

रायपुर ,छत्तीसगढ़, पिन-492001

मो 94063 51566


2- कमल के फूल

आज रघु बहुत खुश हे। तरिया ले बीस ठ कमल के फूल निकाले हे। ओ ह सोचत हे के  येला बेचही त दू सौ रुपिया मिलही। नवरात्र के दस दिन म दू हजार रुपिया मिल जही।बाबू जी अब ये दुनिया म नइये त घर के जिम्मेदारी मोर ऊपर हावय। दस बछर के रघु सोचत हे ये दू हजार रूपिया  ले मैं देवारी म मुन्नी बर फ्राक, माँ बर साड़ी, मिठाई अउ फटाका  ले सकहूं।सोचत सोचत ओखर आँख म आँसू आ जथे।

सुधा वर्मा

प्लाट नम्बर 69 "सुमन"

सेक्टर 1, गीतांजली नगर

रायपुर ,छत्तीसगढ

पिन-492001

मो. 94063 51566


3-गृह प्रवेश

सविता के नवा बहु आवत हे। सविता ह दूवारी म चौखट के भीतरी एक लोटा म चाऊंर भर के रखे रहिथे। सविता के बहु नीना डोला ले उतर के भीतरी आथे। सविता कहिथे के पैर से लोटा के चाऊंर ल गिरा के भीतरी आबे। सविता ह भीतरी आथे फेर लोटा के किनारे से निकल के आथे।सविता पूछथे के लोटा ल काबर नइ गिरायेस? नीना कहिथे के हमर संस्कृति म चाऊंर ल पैर से लात नइ मारे जाये। येला मैं कइसे पैर ले गिराहुं। सविता के आधनिकता अउ फिल्म के बुखार ह एक छण म उतरगे। सविता पसीना म नहा डरथे।

सुधा वर्मा

प्लाट नम्बर 69"सुमन"

सेक्टर 1, गीतांजली नगर

रायपुर, छत्तीसगढ़

पिन 492001

मो. 94063 51566


4 - जवाब

गोपाल थाली म खाना ले के अइस। ओखर बहु कहिथे के तूमन साग नइ ले हव। गोपाल कहिथे ये काये? प्याज के साग ,इही ल तो मैं रोज बना के खाथंव। रात के बांचे साग बिहनिया अउ बिहनिया के बांचे साग रात के खाये बर देथस। नइ राहय त मैं रोज प्याज ल बघार के पानी डार के खाथंव। मैं जब तक पद म रहेंव तभे बने खाना मिलिस। सरकारी मकान म राहत उमर बीत गे। अब बड़े बेटा के घर म राहत हंव अउ अपन पेंशन म दवाई के खर्चा ल चलावत हंव त मोला साग घलो नइ मिलय। नाती के खाई खजाना बिस्किट कपड़ा के खर्चा ल घलो चलावत हंव तभो ले मोला बने खाये बर नइ मिलय। ऐखर पत्नी ह सब ल चुप सुनत रहिथे। ओखर आँखी म आँसू आ जथे। सांझ के अपन समान ल धर के किराया के घर म रहे बर चल देथे। 

सुधा वर्मा 

प्लाट नम्बर 69, "सुमन "

सेक्टर 1, गीतांजली नगर

रायपुर, छत्तीसगढ़

पिन -492001

मो. 94063 51566


5- रामबती

गणेश खेत ले आके अंगना म बइठथे। खाये के बेरा होगे हे। रामबती थारी लगाये ले लग जथे। महतारी ह कहिथे " गोड़ धो ले बेटा" गणेश गोड़ धोना म गोड़ धो के पिढ़हा म आ के बइठ जथे। रामबती दार भात अउ बारी के लाल भाजी के साग ल लान के रख देथे। बारी के मुरई के भाजी ल तोड़ के धो के दे थे। गणेश खाये बर शुरु करथे के बाहिर ले  गोलू आके ओखर कांध म झूल जथे। गणेश ओला उतार के अपन गोदी म बइठार के भात खवाथे। रामबती के आँखी म आँसू आ जथे। पति के मरे के बाद अनाथ होगे रहिस हेओखर दाई ददा ननपन म मरगे रहिस हे। फूफू ह ओला राख के बिहाव करे रहिस हे। रामबती के सास पंचायत म कहिस के गणेश संग रामबती के बिहाव करे रामबती ल अपन घर म रखना चाहत हे। मोर नाती घलो घर म रहिही। रामबती ल विधवा नइ देखना चाहंव।एक महिना के गे ले गणेश ह पंच मन के आगू म अपन भाभी रामबती ल चूड़ी पहिरा लेथे। आज लइका अउ गणेश के मया ल देख के रामबती  के आंसू आ जथे।

सुधा वर्मा

प्लाट नम्बर 69 "सुमन "

सेक्टर  1, गीतांजली नगर

रायपुर, छत्तीसगढ़

पिन -492001

मो. 94063 51566

भाग्य

 भाग्य

नवागाँव नाव के गाँव के मनखे मन बहुतेच मेहनती रिहीन । उहाँ हजारी नाव के एक झिन मनखे रिहीस जेहा अतेक कमाये जेला सकेले नइ सकय । बड़का परिवार के सेती खरचा घला अतेक हो जाये के बछर के बीतत ले ओकर कोठी ठन ठन ले सुक्खा हो जाये । घर म अतेक धन दोगानी के आवाजाही के बावजूद न सुख न शांति । बछर बीतत बीतत दूसर तिर हांथ लमाये के नौबत आ जाय । उही तिर धौंराभाँठा नाव के गाँव म ओकर एक झिन ननपन के संगवारी कातिकराम रिहिस । हजारी राम कस ओकरो बड़ लम्भा चौड़ा परिवार रिहिस । कातिकराम के कमई भलुक कमती रिहिस फेर बछर भर बर सकेल डरे अऊ बचा घला डरय । कभू काकरो तिर हांथ लमाये के आवसकता नइ परय । गाँव भर म ओकर बड़ मान सनमान रहय ।  

एक दिन हजारी हा .. कातिक राम ला अपन समस्या बतइस अऊ निवारन के उपाय पूछिस । कातिक राम हा बतइस के समस्या के कारन खुदे उही हे । ओकर भाग्य म ओकर ले जादा सुख अऊ धन दोगानी नइ लिखाहे । तेकर सेती हकर हकर करे के जगा , उही म संतोष करय अऊ भगवान ला धन्यवाद दे । हजारी पूछथे - समस्या के कारन खुदे कइसे केहे यार ? कातिक राम किहीस - दिन भर हटर हटर खुदे कमाथस । बहू बेटा नाती नतरा ला घला दिन भर खेत खार म गाय गरू कस जोंत देथस । चार महीना कमा कमा के बपरा बपरी मन हकर जथे । बूता सिराये के पाछू अइसे बिमार परथे के दवई दारू इलाज पानी म तोर आधा ले जादा पइसा निकल जथे । तोर लोग लइका मन तोर इही तानासाही के सेती तोर ले छुटकारा पाना चाहथे । ओमन घर के आमदनी के अधिकांश हिस्सा ला लुका के अपन तिर सकेल लेथे अऊ अपन लोग लइका अऊ सुवारी के सऊँख पूरा करथे । तेकर सेती बछर के नहाकत ले तोर कोठी सुक्खा हो जथे । हजारी अपन लइका अऊ बहू मनला बड़ पितृभक्त समझय । कातिक के मुहुँ ले ये बात सुनके अवाक रहि जथे । ओहा समस्या निवारन के उपाय पूछथे तब कातिक राम फोर के बतइस .. तोर भाग म अइसनेच लिखाय हे । तेंहा जाये के पहरो म का निवारन के उपाय करबे । फेर भी एक उपाय येहे के जम्मो बेटा मनला बँटवारा दे दे । ओमन अपन अपन भाग्य के खेत खार ला अपन अपन कमाही अऊ तोर पालन पोसन ला मिल जुल के करही । तोला खरचा बर न कमाये बर लागे न फिकर करे बर लागे । 

हजारी सोंचिस .. अभू मोरे चीज ला लुका लुकाके अपन अपन बर चीज बस बनइया टूरा मन के बीच , जम्मो धन दोगानी के बँटवारा कर देहूँ त का गारंटी हे के , ओमन भविष्य म खाये बर दिही । तब में काये कर सकहूँ ?  जम्मो बेटा बहू ला अपन तिर बलइस अऊ घर के बिगरत हालत के हवाला देवत जम्मो झिन ला अलग रेहे के फरमान जारी कर दिस अऊ अपन धन दोगानी ले जम्मो झिन ला वंचित कर दिस । बेटा बहू मन अलगियागे । मारो मारो किसानी के दिन म हजारी के खेत म कमइया नइ मिलिस । खेत परिया परगे । हजारी के घर म अकाल हमागे। बइठे बइठे तरिया के पानी नइ पुरय । खेत खार का बाँचही । बेंचाये लगगे । खेत बेंचावत सुन बेटा मन सकलागे अऊ ददा ला खेत बेंच ले मना करिस । हजारी नइ मानिस अऊ औने पौने भाव म बेंच दिस । कुछ बछर म यहू पइसा सिरागे । डोकरी डोकरा तिर भुखमरी के नौबत आगे ।

रोवत गावत हजारी हा कातिक राम तिर ओकर गाँव पहुंचगे । गौटिंया हजारी ला भिखमंगा कस देखके कातिक राम के हिरदे बियाकुल होगे । ओकर व्यथा सुनके मन द्रवित होगे । ओहा हजारी ला अपन घर म राखिस । हजारी ला सनतावना देवत किहीस - तोला पहिलीच केहे रेहेंव के खेत खार ला अपन बेटा मनला देके मुक्ति पा जा । फेर तेहाँ नइ माने । तोर भाग्य म तोर हांथ के कमई के पइसा के सुख नइ लिखाहे हजारी जी । हजारी किथे - का भाग भाग किथस यार ? तोर भाग माग के बात बिलकुलेच गलत हे। तैं कहस के मोर खेत हा मोर लइका मन के भाग म हाबे । लइका मनके भाग म रहितीस त बेंचातिस काबर  ?  कातिक राम हाँसिस अऊ किहीस तोर खेत कहूँ नइ गेहे । तोरेच लइका मन तिर हे अऊ उही मन कमावत हे । दूसर के माध्यम से तोरेच लइका मन तोर जम्मो खेत ला बिसा डरे हाबे । हजारी अचरज म परगे । तभो ले भाग्य के बात म बिसवास नइ होवत रिहिस । उही समे म गाँव के सरपंच हा कातिकराम घर निंगत एक ठिन अदभुत बात बतइस । सरपंच ला लछमी जी हा सपना म किहीस के , ओकर गाँव म आज रात के धन बरसा होही । अपन अपन हांथ म झोंके के पुरतन सबो पाहीं । हजारी किथे – सपना थोरेन सच होही गा तेमा ? कातिकराम किथे – सपना सच होय चाहे झिन होय ? भाग्य अजमाये म काहे । भाग म मिले के होही ते जरूर मिलही ।

गांव म हाँका परगे । गाँव के मन अपन अपन भाग पुरतन सकेले बर अपन अपन घर म सुरहुती के दिन लछमी पूजा करके रात के बेरा म लछमी दाई के आये के अगोरा करत रहय । हजारी किथे – महूँ हांथ लमाके बइठहूँ तहन मोरो हांथ म सोन चांदी आही का कातिक भइया ? कातिक किथे – सरपंच हा अपन गाँव के आदमी मनला सोन चांदी मिलही कहिके सपनाये हे । तैं दूसर गाँव के मनखे आस । तोला कइसे मिलही । फेर भी भाग्य ताय । अजमा सकत हस । हमन पूजा करबो ततके बेर तहूँ हा मोरे कस हांथ लमाके बइठ जबे । तोर भाग म आये के होही ते तोरो हांथ म लछमी माई के कृपा बरस जही । 

जम्मो झिन भगवान के पूजा करके आँखी मूंद के भगवान ला सुमरत रहय । हजारी सोंचिस .. हांथ लमाके बइठहूँ ते हाथें भर के पुरतन पाहूँ । फेर कुरिया भितरी म कइसे सोन चांदी बरसही । कातिक करा बिलकुलेच अक्कल निये । अंगना म हांथ लमाके बइठतिस बिया हा त पातिस । हजारी हा अंगना म जादा सकेले के लालच म बरतन धर के निकले के सोंचिस । ओहा सोंचत रहय के जब धन के बरसा होही त मोर बरतन म अबड़ अकन सकला जही । मोला लइका मन तिर हांथ लमाये ला नइ परही न ऊँकर आश्रित रेहे बर परही । जम्मो झिन के आँखी मुंदाय झिमझाम देख .. कातिकराम घर के रंधनी खोली म खपलाये बड़े जिनीस गंगार ला धरके अंगना म निकलगे । लछमी दाई के अगोरा करत दुनों हांथ म गंगार ला मुड़ी  उप्पर  उचाके धर लिस । थोरिक बेर म चारों कोती कुलुप अंधियारी छागे । गंगार टांगे टांगे हजारी के हांथ पिराये लगगे । लछमी महतारी के अगोरा म मुड़ी घला टंगाये टंगाये पिराये बर धर लिस । तभे अगास म अंजोर के अभास होय लगगे । लछमी माता के जै घोस के अवाज के साथ लछमी दाई के गाँव म पहुँचे के अभास होगे । हांथ म टांगे टांगे गंगार के वजन सम्हलिस निही । गंगार हांथ ले छूटगे । गंगार ला फिर ले उठइस तो जरूर फेर प्रकाश के चकाचौध अऊ लकर धकर म पेंदी के जगा मुहड़ा ला हांथ म धर के उठा पारिस । सोन चांदी हा मुड़ी म झिन बरसय सोंच के मुड़ी घला नइ उठइस । थोकिन बेर म चकाचौंध कमतियइस त गंगार हा फेर गरू लगे लगिस । हजारी हा मने मन अबड़ अकन पागेंव सोंच के खुश होवत रहय ।

कातिराम हा कुरिया ले “ हजारी भइया कहां चल देस गा “ कहत अंगना म निकलिस । हजारी ला गंगार उलटा धरे देख पारिस तब पूछिस - का करत हस हजारी भइया ? हजारी किथे – तै कहिथस न भइया के .. मोर भाग्य म पइसा के सुख निये । देख मोर तिर कतका सकलाये हे तेला । गिने नइ सकबे । मोर तिर म आ अऊ धीरे से उतारन लाग । कातिक हाँसिस अऊ किहिस -गंगार ला उलटा धरबे त थोरेन सकलाही हजारी भइया । हजारी ला कातिकराम के बात के बिसवास नइ होइस । तुरते अपन मुड़ी ला टांगिस । बपरा हा सन खाके पटवा म दतगे । सुकुरदुम होगे । गंगार ला भुँइया म मढ़हा दिस । अऊ मुड़ी धरके बइठगे । पानी पियइस तब एक कनिक जान अइस । थोकिन अराम लगिस तब कातिकराम किथे – दिमाग लगा के मेहनत करइया दुनिया म सकल पदारथ के मालिक बन उपभोग करथे .. तैं सोंचत होबे मोला कुछू मिलिस होही कहिके .. फेर बिगन मेहनत के थोरेन कुछु मिलथे भइया .. फेर तैं अतेक मेहनत करे तभो कुछु नइ पाये .. अऊ येकरे नाव भाग्य आय भइया । हजारी पूछिस – लछमी मइया हा सहींच म इहीते ले नहाकिस होही का भइया ... मोर तो करमेच हा फुटहा हे कस लागथे ? कातिक किथे – नइ नहाके गा ... सरपंच के सपना हा सच हो जहि ... जरूरी थोरेन आय । हजारी पूछिस – त अगास म अबड़ काये चमकिस ? कातिक किथे – लछमी माता के पूजा गाजा के पाछू देवता रऊर म गौरा गौरी लाने बर सकलाये मनखे मन के बीच म लइका मन गेस बत्ती राकेट चलावत हे तेकरे अंजोर हा चारों डहर बगरे रिहिस । हजारी समझगे । 

बिहिनिया ले हजारी के बेटा मन हजारी अऊ अपन दई कपालफोरहिन ला लेगे बर आगे । सबो बेटा बहू मन एके संघरा मिलके खिचरी तिहार मनइन । गाय बइला ला खिचरी खवावत हजारी के आँखी म पछतावा अऊ समझ दुनों के आँसू एके संघरा निथरे लगिस । 

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन . छुरा