Saturday 14 October 2023

धरती सिंगार हे संवारना* (छत्तीसगढ़ी नाटक)

 *धरती सिंगार हे संवारना*

      (छत्तीसगढ़ी नाटक)


पात्र -             


बैसाखू       

मंगलू         

चैतू            

बैसाखिन    

लीना          ‌‌

राधिका       

लीला          

मोहनी       

सुहागा      

रामकली       

चमेली        

मंगलिन      


पहली, दृश्य - (बिहनिया बेरा, पेड़ मन ल काटे बर  ठेकादर के संग म बनिहार आरा, टंगिया धरके जंगल पहूंचना। ठेकादार अउ कटिहार ल अपन कोती आवत देख के पेड़ समुह के संवाद होथे)


पेड़ १ - आगू कोती देखव तो संगी हो, आरा, टांगिया धरके मनखे मन हमर कोती आवत हे।

पेड़ २ - हां - हां सहीं बोलत हस भाई, फेर काबर आवत होही जी?

पेड़ ३ - लागत हे भाई? इंकर नीयत ह बनें नइये।

पेड़ ४ - हमन ल नई बचावय भाई तइसे लागथे? ए मन हमने ल काट - भोंग के ही रइही।

पेड़ १ - सिरतोन काहत हस भाई, मनखे जात हम बिरछा मन ल कहूं के नई छोडि़न।

ठेकेदार - ( आके तीर आके खडा़ होवत कटिहार तरफ देख के) देखो जी सभी पेड़ों को काटना है। यहां पर बड़ा कारखाना कालोनी और हाॅटल बनेगा।

मंगलू - हव मालिक।

बसाखू - काटके कहां रखना हे मालिक?

ठेकेदार - इसके लिए मैं व्यवस्था कर चूका हूं, बस पेड़ कटाई कर दो। 

मंगलू - ठीक हे मालिक सब पेड़ ल काट देबो।

ठेकेदार - अच्छा जी अब घर जा रहा हूं पेड़ कट जाने पर खबर करना।

मंगलू - जी मालिक।

(ठेकेदार चल देथे अउ कटिहार मन पेड़ काटथे)

चैतू - अब्बड़ घाम हे जी मंगलू।

मंगलू - हां चैतू , देखना आगी बरसत हे।

बैसाखू - पसीना म नहा डरेन जी, कोनों जगा छइंहा तक नई दिखत ए।

मंगलू - सुनव न जी, कटे पेड़ के छइंहा म चलव थीरा लेथन ।

चैतू - बने बोलत जी। (कटे पेड़ के छांव म सब बइठ जथे)

पेड़ १ - देखत हव संगी हमन ल काट, भोंग के हमरे छइंहा म ए मनखे मन बइठे हे।

पेड़ २ - हां भाई! मनखे जात बिकट स्वार्थी होथैं, हमन ए मन ल हवा पानी देथन अउ हमन के दुःख ल थोरको नई समझय।

पेड़ ३ - हमरे ले फल, फूल मिलथे, बरसा होथे, हमन के विनाश ले मनखे के बिगाड़ होही संगी हो, अभी गुमान में हे।

पेड़ ४ - सही ताय जी! जीवन रक्षक दवा - दारू हमरे ले पाथे, हमरे जरी, पाना, छाल, फूल, फर ले दवई, बनाके खाथैं।

पेड़ २ - हमन बेजूबान हन संगी, कइसे अपन पीरा बता सकत हन?

पेड़ १ - मनखे जात ल समझना चाही, आह! आह!

बैसाखू - चैतू भाई कोनो गोठियाय कस मोर कान आरो मिलत हे।

चैतू - हां भाई महूं ह इही बात ल पूछइया रहेंव। 

मंगलू - (उठके चारों मुड़ा देखत) ए जगा कोनो दिखत नइये भाई हो, लागथे हमर मन के भरम ए।

चैतू - हां सिरतो बोलत हस जी, ले चलव घर चलबो।

(सब अपन - अपन घर बर लहूट थयं)


दूसरा दृश्य  - (चैतू, मंगलू, बैसाखू गांव ले कमाये खाय बर रायपुर शहर जाथैं। शहर के बड़े बड़े भवन, सड़क, कारखाना ल देख के आपस में संवाद करथैं)


बैसाखू - भैया चैतू शहर म काम अउ पइसा के कमी नइये जी, बस आदमी मेहनती ईमानदार होवय।

चैतू - सिरतो बोलत हस बैसाखू भैया, इंहा कोनो भूख नई मरय ग..

मंगलू - शहर के काम म तिहाड़ी बनिहार ल लेके बड़े बड़े कारखाना म हुनरमंद आदमी काम करथैं जी।

चैतू - हां बने काहत हस जी, जइसे काम, तइसे दाम।

बैसाखू - देखत हव भाई, अगास छूवत घर बनें बनें हे, बड़े बड़े बंगला अटारी हे, लम्बा चौड़ा सड़क, कारखाना, अस्पताल, स्कूल शहरिया मन के मजे मजा हे जी।

चैतू - सुख के संग अब्बड़ दुःख भी हवय भाई।

मंगलू - कइसे‌ जी?

चैतू - देखत हस मोटर गाड़ी के रेम लगे हे, बड़े बड़े कारखाना सो अलग।‌ हावा पानी म महुरा घुरत हे, ध्वनि प्रदूषण म लोगन मन भैरा होत जात हे।

मंगलू - हमर ठेका दार ऊंचहा ल सुनय, देखे हस न। येदे सड़क के तीर ल देख, नाली ह कइसे बजबजावत हे।

चैतू - तभे सोचत रहेंव भाई, काय सरइन सरइन बस्सावत हे कहिके!

मंगलू - मोला सुरता हे जी! बीस, पच्चीस बछर पहली लइकुसहा म हमर बबा संग रायपुर आए रहेंव तब ओ बखत रायपुर ह छोटे रहिस खेत खार‌ म धान बोंवाए राहय, मेढ़ - पार म पेड़ ओरी ओर लगे राहय।

चैतू - तैहा के बात ल बइहा लेगे भाई मंगलू।

बैसाखू - अउ जानथव भाई हो, चउंर, दार, गहूं चना, साग बाजी सब गांव ले शहर आथे।

चैतू - हां भैया शहर मं लाल भाजी तक नई होवय।

बैसाखू - कहां उपजही जी, चारों मुड़ा कांक्रीटीकरण, कालोनी, कारखाना बनगे  हे। अउ मार आदमी उसना जही तइसे धमका घलो हे।श

मंगलू - ले छोडव ए सब बात ल, हमन चार महीना कमाये बर आए हन। ले चलव भकला कका मन रहिथैं, उंकरे घर रात रहिबो। काली ले काम धरे बर हे।

चैतू - गोठियाते रहिबो त गोठ नई सिरावय, ले चलव जी चलबो। (भकला के घर सब आ जथे)


तीसरा दृश्य - (बिहनिया बेरा बैसाखिन ह झउंहा म कचरा बोहे लीला के मुहाटी तीर फेंकथे, लीला ह देख डरथे तहां मात जथे झगरा। सरपंच दीदी मन आके समझाथे)


लीला - (बैसाखिन ल हुंत करावत) ए बैसाखिन ए बैसाखिन आतो ओ।

बैसाखिन - अई का होगे दई, काबर बलावत हस मोला?

लीला - कइसे य...मोर घर के मुहाटी ह तोला घुरवा दिखत हे?

बैसाखिन - अई तोर घर मुहाटी म कहां फेंके हवं दई? फोक्कट तयं बद्दी देथच।

लीला - लबारी काबर मारत हस ओ। पानी भरे बर निकलत रहेंव, ओतके बेर कचरा फेंकत देख डरेंव। अउ तैंहा आंखी देखे ल नटत हस।

बैसाखिन - झगरा करे के मन हे का य?

लीला - झगरा कइसे नई करहूं ?

बैसाखिन -  ले मैंहा राधिका जगा पूछवावत हंव, संउहाते रहिस हे। फेंके के पहिली ले कचरा रहिसे हे।

(राधिका ल बलाके लाथे) ले बता राधिका, मोर कचरा फेंके के पहली कचरा रहिस की नहीं?

राधिका - पहली से डिस्पोजल, पन्नी - झिल्ली फेंकाए रहिसे य..

लीला - फेंकाए रहिस त का होगे। 

राधिका - कचरा ऊपर कचरा फेंके हे का गलती करे हे बता?

लीला - तहूं ओकरे असन गोठियावत हस, गवाही बर पइसा देहे का?

राधिका - तोला कछु लाज लागथे? पइसा के नाव लेथच।

बैसाखिन - बने फेंकेंन, बने फेकेंन..जा का करबे?

लीला - त मोरे मुंड़ म नई फेंक देते कचरा। लल्लमुंही अच्छा फेंके हन कहिथस।

बैसाखिन - तै नोहच रे मोटी भइंसी कहां के।

लीला - चुप रे.. सुकड़ी चिंगरी।

बैसाखिन- तैं चुप रे रोन मुंही।

राधिका - कचरा फेंकाए रहिसे तेन म फेंक दीस का हो गे?

लीला - तैं काबर कुदत हस रे चिंगरी, टींग - टींग।

राधिका - मोला काबर बोलत हस रे मुंहफफट्टी?

बैसाखिन - राम! राम! के बेरा मुंह चीरत हे खपट्टी ह।

लीला - बात बरत हे त झार पहूंचत हे खपट्टी ल।

( लीला अउ बैसाखिन के झगरा गहिरा जथे, चूंदी चूंदा होत रथे झगरा ल सुन के परोसी मन सकला जथे। सरपंच घलो पहूंच जथे)

सरपंच दीदी - (लीला अउ बैसाखिन ल अलग करत) अरे भई तुमन काबर लड़त हव। 

लीला - सरपंच दीदी, कचरा ल मोर घर के मुहाटी म फेंकही त नई झगरा करहव।

बैसाखिन - सुन सरपंच दीदी, पहिली ले डिस्पोजल, झिल्ली, कचरा गंजाए रहिसे त उही करा कचरा ल महूं फेंके हवं, तहीं बता का गलत करे हवं? 

पंच दीदी - अइसना लड़त रइहा त नई बनय, गांव के विकास कइसे म होही।

सरपंच - सुनव, छोटे - छोटे बात ल लेके लड़त रहिबो त नई बनय, हमर सब के जिम्मेदारी ए गांव के खोर गली ल साफ रखना, सरकार के तक मंशा हे कि स्वच्छ भारत बनय। आज कल सब कचरा बेचावत हे डिस्पोजल, पन्नी, झिल्ली ल कारखाना वाले मन बिसा लेथे नही त कबाड़ी वाले मन बिसा लेसाथैं। बेचाही त चार पइसा बन जाही। गौंउदन कचरा ल घुरवा म फेंकव, खातू बनही, बारी, बखरी खेत म काम आही।

बैसाखिन - बने बात ए सरपंच दीदी। आज ले हमू मन गांव, गली, खोर साफ रखबो।

लीला - हां सरपंच दीदी, झगरा, लड़ई नई होवन,वचन देवत हन, गांव ल स्वच्छ रखें के जिम्मेदारी ल निभाबो।

सरपंच - ले चलव अब अपन अपन घर।


चौथा दृश्य - (बैसाखू, चैतू, मंगलू के शहर ले वापस आना, आषाढ़ के महिना बरसा के नई होय ले बैसाखू ह खेत के पेड़ ल काटे के उदीम करत।)


बैसाखू - शहर के काम ल छोड़ के आगे हन बैसाखीन खेती खार ल देखे बर लागही कहिके फेर बरसा के आरो नई मिलत ए।

बैसाखिन - हां, लीना के बाबू, देखना सावन लगइया हे, आंसो बादर ह ढपोर दे हे।

बैसाखू - चार महीना कमा धमाके खेती बर सकेले रहेन। खर्चा म धीरे - धीरे उठगे। 

बैसाखिन - सही तो बोलत हस, गुने ल हो जही तइसे लागथे जी।

बैसाखू - बैसाखिन, बरसा के दिन म घलो भारी धमका हे। शहर में धमका ज्यादा हे कहत रहेन।

बैसाखिन - ए सब बात ल छोड़, घर के खरचा बर का करबे तेला बता?

बैसाखू - महूं ल संसो हे बैसाखिन! बनतिस त खेत के मेढ़ म दू चार ठन पेड़ हे, काट के बेच देतेंन काहत हवं, अभी महीना पंद्रह दिन के खरचा निकल जतीस।

बैसाखिन - बने तो बोलत हस। 

( बैसाखू घर मंगलू हुंत करावत पहुंचथे) 

मंगलू - भैया बैसाखू हवच ग... ए बैसाखू भैया घर म हवच ग..।

बैसाखिन - लीना के बाबू, देखतो कोन हुंत करावत हे?

बैसाखू - हव देखत हवं, ( परछी तरफ ल झांकत) अरे आ मंगलू भाई, बइठ (बइठे बर दरी देथे)

मंगलू - का बूता होवत हे भैया।

बैसाखू - बुता नइये भाई, भइगे ठलहा हववं।

बैसाखिन - चहा बनावत हवं देवर बाबू?

मंगलू - रहन दे भौजी घर म चहा पानी पीके अभीच्चे निकले हवं।

बैसाखू - ले बता भाई तोर का बुता होत हे?

मंगलू - छोटकन काम ले के आये हववं भैया।

बैसाखू - गोठ बात तो होते रइही, का बुता ए तेला बता?

मंगलू - काली खेत के मेढ़ म पेड़ रहिसे तेला काटे हवं।

किराया के ट्रेक्टर करें हवं, जोरन लागे रहिते काहत रहेंव।

बैसाखिन - येदे  हमू मन तोर भैया दूनों लकड़ी काटे के गोठ गोठियावत रहेन।

बैसाखू - अइसे करना भाई, आज भर रहन दे, हमू मन खेत म पेड़ हे तेला काट के आ जतेन।

मंगलू - का होही एके ट्रेक्टर म जोर के ले आबो। 

बैसाखू - ले टांगिया ल धरत हवं।

बैसाखिन - ले चल पानी - कांजी  धर डरे हवं चलव।

मंगलू - ले भैया संग म महूं जाहौं, जल्दी हो जही।

लीना - महूं जाहौं दाई, कहां जाथव तूमन?

बैसाखिन - हमन खेत जाथन बेटी, तैंहा घर म लइका मन संग खेल।

लीना - नहीं दाई महूं जाहूं ओ।

बैसाखिन - (गुस्सा करत) ले चल ओ, अब्बड़ जिद्दी होगे हस।

(खेत पहूंच के पेड़ काटे लगथे)

लीना - दाई, दाई पेड़ ल काबर काटत हे बाबू ह।

बैसाखिन - घर के खर्च पानी बर पेड़ ल काटत हे बेटी।

लीना - पेड़ ल मत काटे ल कहिना ओ बाबू ल, पेड़ ल झन काटना बाबू।

बैसाखिन - चुप ओ एक तीर म बइठ।

लीना - दाई, हमर गुरुजी मन पढ़ाथे, पेड़ रहे ल ही बरसा होथे।

बैसाखिन - नहीं ओ बादर आय ले बरसा होथे।

लीना - झन काटना बाबू पेड़ ल..( रोके बर दउड़ के हाथ ल पकड़थे)

बैसाखिन - पेड़ ह गिर जही बेटी तोर ऊपर चल।

(पकड़ के दुरिहा म लाथे। ओतके बेर पेड़ ह गिर जथे, धरती माता प्रगट होके व्याकूल मन से घुमत रहिथे)

बैसाखिन - (धरती माता ल देख के) अई! लीना के बाबू ओहर कोन ए चलव पूछबो तो। 

मंगलू - ए जगा कोनो नई रहिसे, ले चलव पूछथन।

(पास में जाके) दाई! ए दाई! तैं कोन हस दाई अउ कइसे व्याकूल दिखत हस।

धरती माता - तैं मोला नई चिन्हत अस बेटा, मोला पूछथच कोन अस?

बैसाखिन - नई चिन्हतन दाई!

धरती माता - मैं धरती माता अंव बेटी।

(सब अचरित होके)

समुह म - धरती माता! धरती माता!

धरती माता - हां बेटा मैं धरती माता अंव। मोर पीरा ल नई समझेव बेटा, कब जानहू मोर दरद ल? मोर सिंगार ह उजरत, मोर छाती ल चीरत हवयं। मोर पुकार के सुनइया नइये। जानत हव? नदियां, नरवा परबत, पठार, रूख - राई, सब मोर सिंगार ए, 

मंगलू - हां दाई!

कब चेत हव रे मुरख? भुला गेयव ओ सुनामी लहर, भूकंप, अकाल - दुकाल, बाढ़ ल। अपन सुख बर नवा नवा उदीम करथव का सुखी हवव? अपन महतारी के एके झन लइका हव बेटा, मोर कोरा म अनलेख संतान हे। जीव जन्तु सब मोरे अंचरा के छइंहा म हे सबके पालन हार हवं।

बैसाखू - हमन तोर बेटा अन दाई! येकर सेती संसार ह किसान ल धरती पुत्र कहिके मान देथे।

(गीत म नृत्य के भाव)

गीत - "जतन करव भूइंया के, तुम जतन करव रे

जतन करव, धरती के तुम जतन करव रे...

जतन करव रे...मैं माटी महतारी अंव..

सुख दुःख म संग देवइया, संगवारी अंव, संगवारी अंव।

जतन करव माटी के तुम जतन करव रे..

जतन करव भुइंया के संगी जतन करव रे"

बैसाखू - हमन ल क्षमा करदे दाई! हम अज्ञानी हन। हमर से गलती होगे।

मंगलू - तोर सिंगार ल नई उजारन दाई! संवारबो, सजाबो  एकर रक्षा करबो ओरी ओरी पेड़ पौधा लगाबो।

धरती माता - मोला वचन देवव पुत्र।।

समुह म - हमन वचन देवत हन दाई। तोर रक्षा करबो, पेड़ पौधा लगाके तोर सिंगार ल सजाबो हमन ल क्षमा करदे माता!


धरती माता की जय!


              ‌‌            अनिल 'गौंतरिहा'

                          ग्राम - कुकुरदी, (बलौदा बाजार)

                            छत्तीसगढ़।

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