Saturday 21 October 2023

महुआ रस चन्द्रहास साहू

: महुआ रस                            

                                      चन्द्रहास साहू

                                 मो क्र 8120578897

महुआ इही नाव तो हाबे भूरी टूरी के। छक्क पड़री तो नइ हे फेर गाँव भर ले ओग्गर  हाबे।  बंबरी बन मा कौहा रुख बरोबर। महुआ फूल के रंग कस देह, उल्हा-उल्हा पाना लाली गुलाबी कस होंठ, रौंदाए परसा फूल ले लगे गोड़ मा माहुर। बंबूर के रुखवा के रंग कस काजर फेर चुन्दी गुलमोहर के रुखवा बरोबर भुरवा। एखरे सेती तो ये टूरी ला भूरी महुआ कहिथे गाँव भर। सिरतोन, गोठियाही ते मंदरस टपकथे, हाँसही ते महुआ झरथे.... मन मतौना कस महुआ। दू आखर गोठिया तो ले काकरो संग,गोठ के निसा हो जाही। छिन भर बइठ तो ले बइठे के निसा हो जाही, एक बेरा देख तो ले देखे के निसा हो जाही। अंग-अंग ले सम्मोहन अउ आकर्षण फुटत हाबे महुआ के रुख बरोबर। ममहावत महुआ फूल के ममहासी ले कोन बांच सकथे...? वोकर गमकना, रतबिद-रतबिद टपकना, हरियर मोठ्ठा पाना अउ लाली गुलाबी ललछौहा रंग के उल्हा पाना भूरी टूरी महुआ के चेहरा बरोबर सुघ्घर दिखत हाबे।

              पर्रा भर घाम के ताप ला दाई महुआ रुख अपन मा बोहो लेथे अउ ठोमहा भर घाम ला छान के बेटी महुआ के चेहरा मा पठोथे तब सिरतोन श्रमतपा भूरी महुआ सोना बरोबर निखरे लागथे। महुआ फूल के ममहासी अउ श्रमतपा महुआ के काया ले निकले पसीना के ममहासी मिंझरके गमके लागथे, खिलखिलाए लागथे जंगल मा।

                सोनारिन भेलवा कुंती सोनादई बुधिया समारिन अउ सोहागा बड़का-बड़का टुकनी धर के आए हाबे महुआ बिने बर। गाँव भलुक सुन्ना हाबे फेर जंगल गदबदावत हाबे। बेरा पंगपंगाती दाई महुआ रुख हा अपन अचरा ला बिगरा देथे पिंयर-पिंयर सोना कस महुआ फूल झर्राके। धरती मा चंदैनी अवतरे बरोबर। .... अउ दाई के बगरे अचरा मा कोन मया नइ पाए हे..? गाँव भर महुआ बिने बर आ जाथे संझकेरहा अउ रिगबिग-रिगबिग बगरे महुआ फूल ला बिने लागथे। दाई महुआ रुख घला जानथे अउ वोतकी ला गिराथे जतका ला वनवासी मन बिन सके महतारी बरोबर वोतकी गोरस पियाथे जतका ला पचा सके लइका हा। ....नही ते पेट पीरा नइ उमड़ जाही। सुम्मत अउ भाईचारा टूट जाही  ? रोज अइसना तो गिराथे।

               बड़का टुकनी ला उतारिस भूरी महुआ अउ संगी मन हा। टिफिन मा बासी अउ अंगाकर रोटी बंगाला चटनी ला जतन के राखिस। तुमा के खोटली मा नक्काशी दार बने तुमड़ी मा रखाये पेज ला डारा मा टांगिस। कमेलिन कलाकार मन के प्लास्टिक बॉटल मा चेंद्री ला लपेट के बनाए  देशी फ्रीज ला  अरोइस अउ माथ नवावत बुता मा लगगे। 

"देबी दंतेसरी तुमचो असीस माई। सदा सहाय माई। दाई महुआ रुखवा तुमचो मया।''

भूरी महुआ अन्नपुर्णा महतारी महुआ रुख ला पोटार लिस काबा भर। महुआ के मन गमके लागिस। सरसराहट के आरो संग कुलके लागिस रूखवा हा। महुआ रुख घला अपन बेटी मन बर मया बरसाये लागिस। पिंयर सोना टपके लागिस पाना के संग। जम्मो संगी-संगवारी कछोरा भीर के अब बिने लागिस महुआ फूल ला। 

कर्मा ददरिया के संग बारामासी गीत के तान देवत हाँसी ठिठोली करत अब जम्मो कोई बिनत हाबे महुआ फूल ला। फेर महुआ ला कोन जन का होगे हाबे ते ? 

"महुआ ! कोन जन का संसो धर ले हाबे ते तोला ? जब ले शहर ले लहुटे हावस तब ले न जादा हाँसस, न जादा गोठियावस।''

"कु... कुछू नही सोनारिन। मेंहा तो बने हावंव बहिनी। बने हाँसत हावंव, बने गोठियावत हावंव खी...खी...।''

महुआ बनावटी हाँसी हाँसे लागिस। चंदा कस दमकत चेहरा मुरझागे। 

बिने महुआ मा  छोटका टुकनी भरगे अउ बड़का टुकनी मा उलद के फेर बिने लागथे। अब श्रम के ममहासी बगरे लागिस जंगल मा । भूरी महुआ संग मोटियारी मन के कान के पाछू ले पसीना ओगरे लागिस। जंगल हा पसीना के ममहासी ले गमकत हाबे अब। रुखवा महुआ गरब करत हाबे अपन कमेलिन बेटी मन ला देख के। सिरतोन बेटी मन ही तो मरजाद ला राखे हाबे। बेटा जात मन तो महुआ रस के निसा मा बुड़गे हे। जांगर चोट्टा होगे हे बेटा मन अउ बेटी कमेलिन बनके घर चलावत हाबे।

                  अब अगास मा सुरुज जिबराए लागिस। फेर सोना तो आंच मा तप के अउ निखरथे। पसीना मा धोवाये  भूरी महुआ के ललछौहा चेहरा उल्हा पाना बरोबर। खीरा बीजा बरोबर दांत अउ लौंग के करिया गोदना, रवाही फूली, लाली सादा लुगरा माड़ी के उपर ले। जौन देखही तौन मोहा जाही श्रम तपा बस्तर बाला ला देख के। ... अउ भूरी महुआ के ये बरन ला लुका के देखत हाबे दू आँखी हा महुआ रुख के फूलिंग मा चढ़के। कोन जन कब आइस, कब चढ़ीस रुखवा मा... कोनो नइ जाने।  अउ जानिस तब ?

"हात.....''

जझरंग ले कुदिस वो दू आँखी वाला कुबेर हा। 

"हे दाई मोचो मरली वो !''

"बचाले मोर दंतेसरी दाई।''

महुआ अउ सोनारिन डर्रागे धड़कन बाढ़गे। रुआ ठाड़ होगे। ......अउ वो कुदइया ला देखिस तब  ? अब खिलखिला के हाँसे लागिस दूनो मोटियारी मन हा। 

"कुबेर ते ..? तेंहा डरवा के मार डारबे..... सिरतोन हा हा..... खी खी......।''

एक संघरा किहिस सोनारिन अउ महुआ दुनो झन। सोनारिन घला हाँसत हाबे अब। अउ टूरा तो कट्ठठलगे । महुआ पेट पीरावत ले हाँसे लागिस। हाँसत-हाँसत लहसगे अउ खांध मा झूलगे जवनहा के। सोनारिन देखते रहिगे। ... ससन भरके हाँस लिन तब थोकिन बेरा मा शांत होइस अउ अब देखे लागिस टूरा ला बिन मिलखी मारे एक टक टुकुर-टुकुर। ....अब तो पथरा बनगे महुआ हा। न हालत हाबे न डोलत हाबे। न हुंके न भूंके। जइसे सांस लेवई घला अतरगे। 

"का होगे महुआ ! का होगे ? कइसे ? कुछु बोल न ! कुछु जादा सप्राइज होगे का ?''

टूरा हला-डोला के किहिस तब सुध मा आइस महुआ हा।  थोकिन आगू जौन रंग दूध में कुहकू के रंग मिले बरोबर दिखत हाबे तौन भूरी महुआ के रंग  उदासी के रंग दिखे लागिस। 

"का होगे तोला ? बता न!''

टूरा कतको मनाइस फेर महुआ नइ मानिस भलुक  अब कजरारी आँखी मा इंद्रावती हिलोर मारे लागिस। अब टूरा ला पोटार के रो डारिस ससनभर  महुआ हा। सोनारिन घला अचरज मा परगे। आने संगी-संगवारी मन दुरिहा के रुख मा दते हाबे। देशी फ्रीज के पानी ला पियिस अउ सुसके लागिस महुआ हा।

"तेंहा निच्चट देहाती हावस रे महुआ ! सिरतोन। ये का रोवई आवय भई। गाँव-गंवई के अइसना रोना गाना बने नइ लागे मोला। सगा आही तब रोना, सगा जाही तब रोना। शहर मा कोनो नइ रोवय। ये पारी तो तोला शहर लेगे बर आए हंव मोर मैना !''

टूरा कुबेर किहिस फेर टूरी महुआ मुक्का होगे रिहिस भलुक अब्बड़ गरेरा चलत रिहिस अंतस मा।

"गाँव मा रहिके निच्चट देहाती बनगे हावस। गोबर कीरा बनगे हस। गोबर बिनना अउ गोबर मा खुसर के रहना तोला बने लागथे। हमर शहर चल। शहर के सुघरई ला देखबे ते खुश हो जाबे।''

टूरा मुहूँ मुरकेटत किहिस। 

"जानथो तुंहर शहर ला। हमर गाँव के गोबर तो आंगन लीपे के बुता आथे, गौरी गणेश बनथे फेर तुंहर शहर के गोबर तो  बस्साथे। ..... अउ का शहर-शहर लगाये हस। न सांस लेये बर हवा हाबे सुघ्घर न खाए बर कोनो आरुग जिनिस। ... अउ तोर शहर के सुघरई बर गाँव के पसीना ओगरे हाबे। कतको गाँव मेटागे तब तोर शहर बने हाबे, झन भूलाबे।''

महुआ अगियावात किहिस। टूरा कुबेर के  मुहूँ उतरगे। 

"असली जिनगी तो शहर मा जिए जाथे महुआ ! चल उहां, तोला मैडम कहिके जौन मान मिलही तौन ये गाँव मा नइ मिले। उहां  सभ्य समाज अउ पढ़े लिखे के कॉलोनी रहिथे। खाना-पीना,रहना-बसना जम्मो सलीका ले होथे। चल हमरो दुनिया ला बसा लेबो अइसन सुघ्घर जगा मा।''

टूरा कुबेर हा महुआ के हाथ ला धरत किहिस फेर महुआ ला तो जइसे करेंट लगगे। हाथ ला झटकारत दुरिहा घूँच दिस।

"प्यासे ला पानी नइ मिले। भूखे ला जेवन नही। बिन मतलब के कोनो पंदोली नइ देवय। अइसन शहर के गोठ झन कर। भलुक विकास अब्बड़ होवत हाबे फेर संस्कार सभ्यता ला लील डारिस। टूरी-टूरा रातभर पब मा उघरा नाचत हाबे, नशाबाजी करत हे। कोनो ला गाड़ी मा घसीटके मार डारत हाबे तब काकरो ऊपर एसिड फेंकत हाबे। अब तो फ्रीज मा सब्जी कमती अउ टूरी के कई कुटका मा कटे लाश जादा दिखत हाबे शहरिया बाबू! टूरी, माइलोगिन ला मुनगा बरोबर चुचरके काहंचो भी फेंक देथे अइसन शहर के शोहबती झन मार कुबेर ! नइ जावंव  मेंहा तुंहर शहर।''

महुआ किहिस अउ गोहार पारके रो डारिस।

"का होगे हे बही तोला ! आगू शहर जाए बर अब्बड़ अतलंग लेवत रेहेस अउ अब शहर के नाव मा ....?''

कुबेर किहिस फेर महुआ के नस-नस मा लहू नइ दउड़त रिहिस भलुक समंदर के लहरा मारत रिहिस। आगू मा अवइया जम्मो ला लील डारही, बुड़ो डारही अइसन समुंदर उठत हाबे। .....अंतस के पीरा के समुंदर आवय येहां। 

"मोला शहर अउ शहरिया के नाव मा नफरत होगे हाबे अब।''

महुआ मुहूँ मुरकेटत किहिस अउ महुआ फूल भरे अपन टूकनी ला बोहों के आने रुख कोती चल दिस। वोकर जम्मो संगी-संगवारी मन अब गाँव लहुटे के तियारी करत हाबे।

                भूरी महुआ जंगल के बेटी आवय। वनदेवी के कोरा मा खाए खेले हाबे, बाढ़े हे। कोनो नइ जाने कोन महतारी के कोख ले अवतरे हाबे तौन ला। नानकुन रिहिस तब महुआ रुख के तरी मा परे रिहिन नानकुन ओन्हा मा लपेटाए। नेरवा घला नइ झरे रिहिन। बइगिन डोकरी हबरगे रिच्छिन माता के पूजा करे ला जावत रिहिन तब। कोंवर उल्हा पाना कस नोनी के ललछौहा देहे। बइगिन डोकरी के कोरा हरियागे। l माता देवकी तो कभू झांके ला नइ आइस फेर यशोदा माता बनके अब्बड़ जतन करिस बइगिन डोकरी हा। 

नोनी महुआ भलुक महतारी ला नइ देखे रिहिस कभू फेर इही महुआ के रुख मा अपन महतारी के छइयां देखे लागथे। सुख अउ दुख मा महुआ संग गोठियाना अब्बड़ सुहाथे महुआ ला। महुआ रुख घला हुकारु देथे, कभू लोरी सुनाथे अपन पत्ता ला हलाडोला के। मन अनमनहा लागथे तब  अपन पत्ता के  सरसराहट ले गीत-संगीत सुना देथे महुआ रुख हा। उदास होथे मन हा तब सोनहा फूल टपका के मदमस्त कर देथे। ... अउ कोरा मा बइठार के लोरी घला सुना देथे ये जम्मो रूखराई हा। गाँव भर के दुलारी आवय बइगिन डोकरी के रिच्छिन माता भूरी टूरी महुआ हा।

                             आज गाँव गदबदावत हाबे। बाजार चौक मा ट्रक आए हे। ट्रक नो हरे भलुक गाँव के जवनहा अउ मोटियारी के सपना आवय। उही जवनहा अउ मोटियारी जौन रोजगार गारंटी योजना मा कमाए बर लजाथे। फेर चंदवा कोचिया तो अब्बड़ चतरा हाबे वोला तो जादा ले जादा मोटियारी मन ला ले जाना हे शहर। बिमला केतकी मंगली रूपदई जम्मो कोई तियार होवत हे।

"महुआ ! मेंहा शहर जावत हावंव कमाए खाए बर तहूं चल। खाए पीए पहिने ओढ़े के जम्मो जिनिस फोकट मा दिही। ... अउ नगदी रुपिया घला दिही उहा थपटी के थपटी।''

सोनारिन किहिस मुचकावत। 

".....अउ का बुता करहूं उहां ?''

महुआ पूछिस। आँखी रगरगावत रिहिस।

"कोन जन  ? बने फोरिया के नइ बताइस चंदवा कोचिया हा फेर जम्मो मोटियारी मन फाइव स्टार होटल मा रोटी बनाही अउ सियान मन  बर्तन धोए के बुता करही अइसना बताए हे। मेंहा तो अब सुघ्घर गोल-गोल फुल्का  रोटी बना डारथो  महुआ ! सिरतोन, पुलाव घला बनाए ला आ जाथे अब तो। मास्टरिन काकी सिखोइस न मोला।'' 

सोनारिन अउ किहिस उछाह मा कुलकत फेर महुआ के मन उदास होगे, आँखी मा पानी आगे। गरेरा उमड़े लागिस अंतस मा। बादर गरजे लागिस अउ बरसिस तब पूरा आगे। समुंदर के लहरा कस पीरा उमड़ीस।

"बहिनी सोनारिन ! तेंहा मोला पुछ्त रेहेस न पाछू महीना कहां गेये रेहेस अइसे अउ मेंहा मोर महापरसाद घर गेये रहेंव कहिके लबारी मार दे रहेंव।......... फेर मेंहा अइसने शहरवाला मन के मेकरा जाला मा अरहजगे रहेंव महापरसाद के संग शहर जाके। अइसना रोटी बनाएं के बुता के सपना देखाइस अउ जौने देखिस तौने राच्छस बनगे, देहेे ला नोचे लागिस रोटी समझके। फाइवस्टार होटल के बरन मा चकलाघर मा अमरगे रहेंन। नेता अधिकारी बैपारी तिलकधारी टोपीवाला उज्जर ओन्हा वाला जम्मो कोई ग्राहिक बनके आवय अउ बइला बाजार के जानवर बरोबर सौदा करे टूरी के देह के। व्हाट्सएप फेसबुक सोशल मीडिया मा बोली लगथे। मरद मन रौंद डारिस तन ला अउ मन ला रौंद डारिस  माइलोगिन मन। एक माइलोगिन आने माइलोगिन के मरजाद ला नइ राखिस। अइसन मइलाहा बरन हाबे शहर के। झन जा बहिनी ! इखर गुरतुर गोठ के पाछू कतका करू हाबे तेंहा कभू अजम घला नइ सकस।''

सोनारिन तो अकचकागे। कभू अइसन गुने घला नइ रिहिस। भलुक आँखी ले आँसू के धार नइ अतरत रिहिस फेर सोनारिन के तन बदन घला अगियाये लागिस।

"कइसे बांचे बहिनी वो राच्छ्स मन ले।''

सुसकत आँसू पोंछत पुछिस सोनारिन हा।

"राच्छ्स राज रावण के लंका मा विभीषण अउ माता त्रिजटा रिहिस वइसना एक झन डोकरी दाई हा बेरा देख के वो काल कोठरी ले बुलकाइस मोला अउ मोर महापरसाद ला। तब आज सौहत ठाड़े हावंव तोर आगू मा, नही ते........?''

महुआ बम्फाड़ के रो डारिस।

उदुप ले मोहाटी के कपाट बाजिस। कुबेर आवय दूनो के गोठ ला सुन डारिस l

"तेंहा कब शहर चल देस अउ लहुट के आगेस।...फेर मोला एको दिन नइ बतायेस महुआ !...... मोर संग मया के स्वांग रचत रेहेस महुआ अतका दिन ले।''

कुबेर अगियाये लागिस अब। महुआ तो अचरज मा परगे। "ये  पंदोली देये के बेरा मा काबर खिसियाथस कुबेर ! मेंहा अब्बड़ उदिम करेंव बताहू कहिके फेर सामरथ नइ हो पाइस। येहां अलहन आवय कुबेर ! मया करथस तब समझदारी देखा।''

महुआ के करेजा फाटगे बतावत ले।

"खिसियाहूं नही तब तोर आरती उतारहूं का ...? अपन पवित्रता ला शहर मा बेंच डारेस। अउ....तोर जूठा तन ला चांटे बर तोर संग बिहाव थोड़े करहूं मेंहा। बाय,.......ब्रेकअप।''

कुबेर किहिस। 

"तोर बहिनी संग कभू अइसन अलहन होतिस तब अपन बहिनी ला दोष देते का...?''

सोनारिन समझाए लागिस फेर कुबेर तो ससन भर  गुर्री-गुर्री देख के फुनफुनावत चल दिस, अंधियार मा लुकागे कुबेर हा अब। महुआ रोवत हाबे। नारी के तन कोनो जिनिस आवय का कि जूठा हो जाही ? 

                                आज गाँव के देवगुड़ी करा जम्मो कोई सकेलाय लागिस अब। सुकूरपाल जोंगपाल बेंद्रागाँव आमटी ये जम्मो गाँव ले पंद्रा बीस झन मोटियारी मन आवत हाबे हाँसत मुचकावत सपना देखत। .... अउ आवत हाबे पचास पचपन बच्छर के मनखे जौन सोना के चैन पहिरे हाबे हाथ अउ नरी में। चाकर चेहरा कर्रा-कर्रा मेंछा अउ चंदवा। ....सादा ओन्हा के पाछू करिया मन। 

"गाँव के टूरी मन ला बने सकेले हावंव दादा। पांच के जगा मा पच्चीस आवत हाबे। अब तो मोर कमीशन ला बढ़ाबे दादा !''

"हांव भाई! तुहरे मन असन ले हमर दुकान चलत हाबे रे ! तोर कमीशन ला बढ़ायेच ला पड़ही हा..... हा .....। भाई जी अउ मैडम जी ले ईनाम देवाहुं तोला।''

कुबेर के गोठ ला सुनके चंदवा कोचिया किहिस।

"कइसे तुंहर गाँव के महुआ रस मा मिठास नइ दिखत हाबे कुबेर ! तेहां तो अब्बड़ सुघ्घर रहिथे काहत रेहेस।''

"हाबे न भइया अभिन देखेच कहां हस .....? चल खाल्हे पारा तब देखाहूँ महुआ ला घला अउ महुआ रस ला घला।''

कुबेर दांत निपोरत किहिस अउ खाल्हे पारा चल दिस खांध धरे-धरे।

"कका ! पहुना आए हे गाँव मा। येहां शहर के मोर संगवारी आवय। दूनो कोई एक्के कंपनी मा बुता करथन। सुघ्घर स्वागत करना हे। महुआ रस के एक पानी वाला प्योर माल ला लान पिये बर।''  

कुबेर हा चंदवा कोचिया के चिन्हारी करवावत किहिस। अउ कका हा तो लगगे स्वागत में। बॉटल ऊपर बॉटल लाने लागिस। गाँव के दू चार झन अउ आगे अब शहरिया बाबू के संगी संगवारी मन।

"एक बात तो हे चंदवा भईया ! पहिली मालगुजारी प्रथा रिहिस तौने सुघ्घर रिहिन। गरीब मन ला अपन औकात तो पता राहय। दाऊ के आगू मा पनही घला नइ पहिन सके। फेर आजकल के मन हमर मुकाबला करथे। मेंछराथे बड़का-बड़का मोबाइल धर के किंजरत रहिथे।''

"हाव भाई कुबेर ! सिरतोंन कहत हस। वो बेरा तो गाँव के नेवरनींन बहु  ला चाऊर निमारे ला बला के का नइ कर डारे। पहिली दाऊ के कोठा राहय अउ अब हमर असन के चकला घर हाबे। ..... अउ ये गाँव के टूरी मन अब्बड़ भोकवी हाबे। पइसा के लालच देखाबे ते कहांचो चल देथे। जब तक ये भोकवी-भोकवा हाबे तब तक हमर असन चतरा- सुजान बर बरा सोहारी छप्पन भोग तो मिलतेच रही भई।''

एक आँखी ला चपकत किहिस चंदवा हा अउ हाँसे लागिस।

पेट मा जइसे-जइसे दारू जाए लागिस पेट के गोठ बाहिर आए लागिस। 

                  महुआ अउ सोनारिन के जी अगियावात हाबे ये चंदवा कोचिया ला देख के। ..... अउ वोकर ले जादा पीरा होवत हाबे कुबेर ला देख के। येकर बाप गौटिया मन शहरिया बन के गाँव के हीनमान भलुक करिस फेर कोनो बेटी ला शहर लेग के बेचिस नही। ....फेर ये कुबेर हा मया के ढोंग लगाके कतका झन नोनी मन के जिनगी ला बिगाड़ही ? गाँव के सियान ला बताइस फेर सियान मन घला मंद पीके भकवाय हाबे। पुलिस वाला तो एक पत्ती मा अपन ईमान बेच देथे। .........अब का करही महुआ अउ सोनारिन हा ? काकर ऊपर भरोसा करही ?

"अरे भाई कुबेर ! महुआ रस पियाते रहिबे की चखना घला खवाबे।

"नून मिर्चा लगे चिंगरी सुक्सी तो हाबे भईया अउ कइसन चखना लागही।''

कुबेर मसखरी करत एक आँखी ला मसकत किहिस।

"नइ जानस ?''

"जानथो महराज ! अठठारा बच्छर के मस्त कड़क चखना दुहूँ,थोकिन दम तो धर।''

कुबेर किहिस।

"अभिन उतार के लानत हावंव ये दे गौटिया बाबू कुबेर ! एक पानी वाला आय गरमा-गरम हाबे।''

कका किहिस कुलकत अउ अपन हाथ के दुनो बॉटल ला आगू मा मड़ा दिस। 

दूनो गिलास मा ढारिस अब चंदवा कोचिया हा। ससन भर सुंघिस अउ उछाह करत भगवान भोले नाथ ला सुमिरन करिस।

"हाव मस्त कड़क हाबे ये दारू हा। अइसना खोजत रहेंव,अब मिलिस।

"चेस'' 

कुबेर अउ चंदवा कोचिया पिए लागिस आँखी मूंदके अब। 

"अब्बड़ कड़क हाबे स्साले हा सिरतोन।''

दूनो कोई किहिस अउ मुचकाए लागिस। .....फेर चिटिक बेरा मा दूनो कोई पेट पीरा उमड़े लागिस, अगियाये लागिस। अब दूनो कोई पेट ला धरके तड़पे लागिस। 

"का कर देस डोकरा तेंहा ?''

"का पिया देस रे बैरी।''

दूनो कोई तड़पे लागिस अब, जी छूटे बरोबर तड़पत हाबे। सिरतोन अइसना तो महुआ हा घला तड़पे रिहिन शहर के चकलाघर मा जब वोकर तन ला अनचिन्हार हा रौंदिस।  जम्मो टूरी मन के तड़पना रोनहुत चेहरा महुआ के आगू मा आगे अब। 

सेप्टिक धोए के एसिड ला दारू के बॉटल मा डारके कका के हाथ मा पठोय रिहिन। एसिड कहंचो राहय अपन गुण ला देखाबे करही ?

महुआ अउ सोनारिन अब्बड़ रोवत हाबे। कका हा तीर मा जाके दूनो कोई ला समझाइस। ......फेर महुआ तो पल्ला भागत महुआ रुख मा हबरगे अउ काबा भर पोटार के रोए लागिस। 

"महुआ दाई मोला माफी दे दे। तोर बेटी संग अनित करइया संग   .... हो हो ....!''

महुआ के मुहूँ ले बक्का नइ फुटत हाबे अब। दाई घला जानथे। अपन दाई संग दुलार पावत हाबे अब। महुआ रुख अपन पत्ता मन ला झर्राके थपकी देवत हाबे। पत्ता के सरसराहट ले दुलार के संगीत उठत हाबे। 

........ अउ अब गाँव के सुम्मत एक बेरा अउ देखे ला मिलिस ते मन अघागे। 

"शहरिया मन छकत ले महुआ रस पीके अपन जान गवां डारिस।'' 

पंच सरपंच जम्मो कोई अइसना बयान दिस पुलिस करा।

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

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समीक्षा--पोखनलाल जायसवाल: आज गँवई-गाँव ल छोड़ के सबो शहर कोति के रस्ता रेंगे ल धर ले हें। गँवई-गाँव म पहिली सहीं काम-बुता नइ मिले ले बाढ़त खरचा के पुरती नइ हो पावत हे। अइसन म सबो दू पइसा कमाय के नाँव ले शहर जाथें। शहर म गाँव वाले मन के का गति होथे? कखरो ले छिपे नइ हे। आज सब पइसा के पीछू दीवाना हें। एकर बर कोनो किसम के बुता करे म लाज शरम नइ मरत हें। खासकर दलाल गढ़न मनखे मन। 

        शहर म पइसा हे, अउ पइसा के पाछू सुख के भ्रमजाल हे। मनखे दिन रात भागत हे। ओला कोनो आराम नइ हे। इही भागमभाग म कतको सफेदपोश मनखे मन ठग-फुसारी करके चकलाघर म गाँव के माईलोगन अउ नोनी पिला मन के तन ले खेलथें। उँकर मन ल तार-तार करथें। गँवइहा मनखे मन शहर म काम बुता के चक्कर म कतको घव पिंजरा म ओलिहाय जीव सहीं फँस जथें। लोकलाज अउ बुता छूटे के डर म सब ल सहत रहिथें। भीतरे-भीतर कुढ़त रहिथें। छटपटावत रहिथें। फेर बाहिर नइ निकल सकँय। कोनो कोनो भागमानी होथे, जे उहाँ ले निकल पाथे। अइसन हे भागमानी आय- महुआ। जेकर अंतस् के पीरा ल कहानीकार चंद्रहास साहू नारी-विमर्श के कहानी के रूप म सिरजाय के जबर उदिम करे हे। ए कहानी म नारी अस्मिता संग खेलवार करइया मन के भेद ल उजागर करे गे हे। कहानीकार ए कहानी ले समाज ल खासकर के गाँव के लोगन ल शहर के रस्ता धरत सावचेत रहे के संदेश देना चाहे।

          गाँव म नोनी पिला मन संग वइसन अत्याचार नइ हे, जउन आज शहर म देखे ल मिलथे। नोनी मन संग शहर म होवत अत्याचार ल जोरदार उठाय गे हे। इही ह तो कहानीकार के सामाजिक सरोकार आय। समाज म होवत घटना के चित्रण के चलत ही साहित्य ल समाज के दर्पण माने जाथे। जे समाज उत्थान बर जरूरी होथे। समाज म अनियाव ले लड़े बर जागरण के चेतना के स्वर भरथे। मया अउ मीठ-मीठ गोठ के संग जादा पइसा कौड़ी कमाय के सपना के फेर म फँसे के पहिली आँखी खोल के रखे के चेतवना हे।

       चंद्रहास साहू के मन म सिरिफ समाज म नोनी मन संग होवत दुर्गति के संसो नइ हे बल्कि बेटा मन के नशा म फँसे ले समाज के नकसान कोति चेत घलव जाथे। तभे तो लिखथें- 'सिरतोन बेटी मन ही तो मरजाद ल राखे हाबे। बेटा जात तो निशा म बुड़गे हे। जाँगर चोट्टा होगे हे बेटा मन अउ बेटी कमेलिन बन के घर चलावत हाबे।'

         एहर आज समाज के सच्चाई घलव आय। गाँव-गाँव अउ चउँक चउँक म नशा के जिनिस मिलत हे।


         कहानी के विस्तार, संवाद अउ चरित्र के अनुरूप भाषा शैली गजब के हे। कहानी म प्रवाह हे। शीर्षक घलव बढ़िया हे।

         अनियाव अउ अत्याचार ले बचाय बर महुआ के नवा रूप धरना जरूरी रहिस। भले उन ल अपन उठाय कदम के पछतावा होवत हे। 

          पुलिस कोनो भी अस्वाभाविक मौत के सही सही कारण जाँच ले जान डार थे। अइसन म पंच सरपंच के बयान पुलिसिया पक्ष ल कमजोर आँकना हो जही। ए आखरी डाँड़ ल कुछ अउ ढंग ले होना चाही।

      बढ़िया कथानक के संग उद्देश्य पूर्ण कहानी बर बधाई🌹💐😊

पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह, पलारी

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