Thursday 26 October 2023

कर्जा ले के घीव पी

 कर्जा ले के घीव पी

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बन सम्हर के अपन घर ले निकलत परोसी चचा ल पूछ परेंव-- "कहाँ जाथस चाचू?"

वो ह बिलई काटे असन ठोठक के खड़ा होगे।वोकर चेहरा ल देखेंव त अइसे लागिस के अचानक वोल्टेज डाऊन होगे।जइसे कोनो नेता ला जनता ह कुरेद के सवाल पूछ देथे त वो हा बइहाय कुकुर कस गुर्वावत हाँव ले करथे वोइसने चचा हा नराज होवत कहिस--"तोला का करना हे मैं कहूँ जाँव। फोकट के भाँजी मार देयेच न। आज के शुभ कारज बिगड़ जही तइसे लागत हे। मैं माफी माँगत कहेंव--"काबर नराज होथस पिताजी।शुभ कारज मा जाथँव काहत हस ता अशुभहा झन बोल ।बतई देबे त का बिगड़ जही?" मोर मुँह ले माफी शब्द ल सुनके एकदम ले वोकर चेहरा म चमक आगे अउ एक बीता लम्बा मुस्की ढारत कहिस--कर्जा लेये बर सुसायटी जाथँव बेटा--समझे।

 हाँ चचा थोक-थोक समझ गेंव फेर ये समझ नइ आइस के कर्जा लेना हा शुभ कइसे होही?तुहीं सियान मन कहिथव के कर्जा हा जीव के जंजाल होथे।कर्जा ह मूँड़ मा चढ़थे तहाँ ले भूँख-पियास अउ नींद ला चोरा लेथे।

"वाह बाबू वाह ! तैं तो बड़ गुन्नीक गोठ करत हस।फेर ये तोर बेद पुरान के गोठ मन वो कर्जा बर आय जेला छूटे ला परथे। मैं तो माफी वाला --मतलब अइसे समझ --फोकट वाला कर्जा लेये बर- मतलब अइसे समझ ये कर्जा हा आज नहीं ते काली---एक साल मा नहीं ते पाँच साल मा कभू न कभू माफ होगे करही--मतलब अइसे समझ जेला पटानेच नइये---उही ल लेये बर  जावत हँव।अइसे भी ए दरी मोला कर्जा लेये मा चार छै महिना लेट होगे हे। कतेक झन तो साल भर पहिली ले सुँघिया डरे रहिन तेकर सेती जे आदमी ते ठन ऋण पुस्तिका बनवा बनवा के ससन भर कर्जा ले लेके लक्ष्मी मा घर ला भर डरे हें।कर्जा लेये मा विकास होथे रे बाबू"--वो कहिस।

मैं हा अकबकावत कहेंव-- " हाँ चचा तोर मतलब मा मतलब वाला कर्जा ला कुछ-कुछ समझगेंव फेर कर्जा मा तो बेंदरा विनाश होथे--- बड़े बड़े आदमी कर्जा मा बूड़ के मर जथें अइसे सुने हँव चचा?"

"हत तो रे ढपोर शंख --तोला थोरको जनरल नालेज नइये  तइसे लागथे।ये कर्जा मा लेवइया नइ बूड़य भलुक देवइया हा बूड़ जथे।सुसायटी बूड़ जथे---बैंक के जीव ऊबुक-चुबुक हो जथे "- वो हा गाड़ी ला टेंकाके चौंरा मा बइठत कहिस।

मैं 'हाँ ' काहत मूँड़ी ला टेटका कस डोलावत   बोलेंव--" चचा तैं हा तो कर्जा शास्त्र के पक्का विशेषज्ञ होगे हस।इहू ला थोकुन समझा देते के ये सुसायटी अउ बैंक मन ला कर्जा बाँटे बर पइसा कोन देवत होही?"

"अउ कोन देही--सरकार हा देथे।"-चचा हा हाँसत कहिस।

"अतेक पइसा कहाँ ले आवत होही चाचू?"

"कहाँ ले आही- कोनो अपन जेब ले देही का ?सरकार हा तको कई कई लाख करोड़ कर्जा ले लेथे।ये कर्जा के गोरख धंधा अइसने चलत रइथे जी भले देश अउ प्रदेश हा भँइसा के जुँआ-किरनी कस कर्जा मा जिहावत रहिथे" वो समझावत कहिस।

"हाँ अब पूरा समझगेंव चचा फेर एक चीज अउ बता देते- अइसन कर्जा बाँटे मा बँटइया मन ला का मिलत होही"--मैं लम्बा साँस लेवत पूछेंव।

वोट मिलथे जी--वोट। गाड़ा-गाड़ा वोट। वोट ले सत्ता।वोट---सत्ता। वोट--सत्ता।वोट--सत्ता।। अइसने जुगलबंदी चलत रहिथे। ये जुगलबंदी के नाम 'जन भलाई ' बताये जाथे। वो हाँसत कहिस अउ उठे ला धरिस।

मैं केलौली करत बोलेंव--अच्छा ये बात हे चचा।एक दू ठन अउ आखिरी जाने के इच्छा हे तेनो ला बताये के किरपा करतेव।

 "अच्छा ले पूछिस ले।"

"चचा! 'ये कर्जा ले अउ वोट दे '  हा  कीमती वोट ला बेंचना-खरीदना नइ होइस गा। चाचू जी तैं तो पचास एकड़ के मालदार हस।तोर घर मा दू झिन सरकारी नौकरी वाला हे तभो ले कर्जा लेवत हस।तोला भला कर्जा लेये के का जरुरत हे? मतलब तहूँ हा अपन वोट ला बेंच देथस गा "-मैं थोकुन ठोलियावत कहेंव।

"तैं कुछु समझ रे बाबू।मही भर हँव का?चार सौ पाँच सौ एकड़ वाले बड़े-बड़े गँउटिया-पटइल मन, फैक्ट्री वाले मन, नेता-अभिनेता, बैपारी,अंत्री,मंत्री,संतरी सब तो अइसनहें करत हें। तैं भले वोट बेंचइ समझ फेर कोनो नौकरी बर ,कोनो बेरोजगारी भत्ता बर,कोनो बोनस के लालच मा, कोनो तनखा बढ़वाये बर,कोनो डी०ए० बर,कोनो गोबर एजेंसी खातिर कोनो अउ कुछु बर --सब तो इही करत हें। वोट दे तहाँ ले  कर्जा ले के घीव पी । सबके इही गुरुमंत्र होगे हे।" 

चचा हा एक साँस मा कहिस अउ कन्नेखी देखत उठ के रेंग दिस।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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