Sunday 1 October 2023

छत्तीसगढ़ी अस्मिता के संसो सनाय पीरा आय: मोटरा संग मया नँदागे*





*छत्तीसगढ़ी अस्मिता के संसो सनाय पीरा आय:  मोटरा संग मया नँदागे*

          छत्तीसगढ़ के वर्तमान साहित्य म श्री बलदाऊ राम साहू छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी के बालगीतकार के रूप म स्थापित नाँव आय। आप शासकीय सेवा ले सेवा निवृत्ति के पाछू सरलग लेखन करत हव। उमर के अइसन पड़ाव म आप नवा पीढ़ी बर उदाहरण आव, प्रेरणा आव। आपके लेखन नवा रचनाकार ल रचनाधर्मिता ले जुड़े रहे के संदेश देथे। बालसाहित्य बर आपके उदिम ल सराहे जाही। आप बालसाहित्य न सिरिफ लिखथव बल्कि ओकर बर नवा-नवा जतन करथव। नवा पीढ़ी ल जोड़त आपके प्रयास स्तुत्य हे, वंदनीय हे। आप के हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दूनो मिला के दर्जन भर किताब छापाखाना ले छप चुके हे। आप बालगीत के संग कविता, छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल अउ गीत लिखे हव अउ ए लेखन सरलग चलत हवय। समीक्षित संग्रह 'मोटरा संग मया नँदागे' आपके निबंध अउ आलेख के गद्य विधा के किताब आय। जेन ल आप तीन भाग म बाँट के छत्तीसगढ़ी भाषा, छत्तीसगढ़ के लोक परम्परा अउ मान्यता के संग छत्तीसगढ़ के संदर्भ म कुछ महापुरुष मन के उपादेयता ल सिल्होवत छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी अस्मिता बर एक बढ़िया शुरुआत करे हव। जे गद्य लेखन म नवा पीढ़ी बर मील के पत्थर (पखना) साबित होही। 

          मातृभाषा छत्तीसगढ़ी के संदर्भ म क्षेत्रीय भाषा के समुचित विस्तार या बढ़वार नइ होय बर खुद के(छत्तीसगढ़िया मन) संकीर्ण मानसिकता ल जिम्मेवार बताय हव, जे ह सोला आना सही आय। लोक परब अउ परम्परा लोक ज्ञान के भंडार होथे। जे हर वाचिक रूप ले सरलग आगू बढ़थे अउ जेकर ऊपर लोक ल बड़ गरब रहिथे। फेर आज शिक्षा के उद्देश्य भटके ले लोक परम्परा अउ लोक परब ह संकट म पड़त नजर आवत हे। कबीर, तुलसी जइसे कतकोन मनीषी अउ संत मन लोकजीवन म सहज दर्शन होवय, वहू ह आज नँदावत हे। जेकर ले समाज अउ मनखे दूनो के चारित्रिक पतन/ नकसान होवत हे। इही सब संसो अउ अनभो के गहिर खाई म आपके लेखनी ह डूबकी लगावत नजर आथे। छत्तीसगढ़ी अस्मिता बर संसो म सनाय पीरा के गवाही आय- मोटरा संग मया नँदागे।

    अपन कमजोरी मन ल स्वीकारत आप अपन मातृभाषा के उत्थान बर दृढ़ता ले खड़े दिखई देथव, वो निश्चित ही छत्तीसगढ़ी के विकास ल नवा गति प्रदान करही अउ आने भाषा के जानकार मन ल अचरज म डालही। काबर कि समे के संग भाषा म सुधार होथे अउ वो जरूरी सुधार के आप पक्षधर हव। आपके ए बात ल पढ़ के विदुषी साहित्यकार सरला शर्मा जी के कहना सुरता आवाथे, उन मन भाषा ल सदानीरा कहिथें। नदिया के पानी तभे साफ अउ शुद्ध रहिथे, जब तक वो बहत रहिथे। इही क्रम म भाषा घलव शुद्धता कोति आघू बढ़थे। शिक्षा के अभाव के चलत लम्बा समय ले इहाँ के रहवासी मन के उच्चारण सुधर नइ पाय रहिस। अब वो बात नइ रहिगे, अइसन म मानक शब्द ल बउरना सही रइही।

        अब किताब के भीतरी म लेगे के प्रयास करत हँव। 

        भाषा अउ शिक्षा दूनो मनखे के जिनगी भर काम आथे। फेर एक नेंव लइकापन म ही सही देवा गे त का कहना। भाषा अउ शिक्षा के खंड म बलदाऊ राम जी बालपन के पोठ नेंव धरे के उदिम करें हें। छत्तीसगढ़ी म बाल साहित्य के कमी डहर अपन संसो ल जाहिर करे हव। एकर कमती लेखन ले पार पाय के उपाय, लेखन के चुनौती अउ कमी के गोठ ल अपन लेख म बने फोरियाय हव। बालसखा के पूर्व संपादक के गोठ ल उद्धृत करत आप नवा लिखइया मन के रस्ता चतवारे के बुता करे हव। 

        'बाल साहित्य उही लिख सकथे जउन अपन आप ल लइका बना लिही। बड़े होके बच्चा बनई मुश्किल हे अउ ओकर ले मुश्किल हे बच्चा बनके उँकर लाइक लिखना...।'

         बालसाहित्य ऊपर आप अपन विचार रखत लिखथव- बाल साहित्य ओ आय जउन बच्चा मन ल चिंतन, कल्पना, तर्क, विश्लेषण अउ विकास के विचार दे म सक्षम होय।

           आगू 'का बोली अउ का भाषा' म आप भाषा अउ बोली ल एक बतावत एमा जे भेद/फरक करे जाथे ओला तर्क के संग राजनीति के प्रश्न बताय हव। आप लिखथव- जउन भाषा के बोलइया मन तक शिक्षा पहिली पहुँचिस, वो साहित्य लिखे बर शुरु कर दिस होही, अपन भाषा म बातचीत करिस होही, उँकर शब्दकोश अउ व्याकरण लिखिस होही।....

            इहें ले अभिव्यक्ति के माध्यम ल क्षेत्र के व्यापकता, बोलइयामन के संख्या, व्याकरण, साहित्य(लिखित) जइसन कतको अउ आड़ लेके भाषा अउ बोली के रूप म चतुरा मन (राजनीति करइया)भेद कर डरिन होही। 

             आप अपन लेख म भाषा अउ बोली के अंतर ल तियाग छत्तीसगढ़ी के संग सबो भाषा के विकास बर जोर दे के आह्वान करथव।

             छत्तीसगढ़ी भाषा परिवार- एक नवा चिंतन म आप कोनो भाषा के निर्माण ल लोक परंपरा अउ लोगन के साँस्कृतिक संबंध के पाछू संवाद/गोठ बात के सतत् प्रक्रिया के परिणाम निरूपित करे हव।

            आघू के आलेख समझ के समग्र विकास म मातृभाषा म मातृभाषा के महत्तम अउ उपयोगिता ल सरेखे के उदिम करे हव। जेन ल मनखे के समग्र विकास बर जरूरी बताय हव। मनखे के विकास शिक्षा ले निश्चित हे। फेर शिक्षा तभे लइका ल आघू बढ़ाय म सुविधाजनक होथे जब ओकर विषय वस्तु लइका के पूर्व ज्ञान ले जुड़े रहय। लइका मातृभाषा म ही अपन ज्ञान रखथे। शिक्षण रीति-सूत्र अउ बालमनोविज्ञान घलव इही बात म जोर देथे।

         आप लिखथव कि भाषा बर भाषा विज्ञानी मन के बताय जम्मो जरूरी तत्व छत्तीसगढ़ी म हे त एकर मानकीकरण घलव होना चाही। डॉ. चितरंजन कर जी के कथन के उल्लेख घलव करे हव, जेकर चर्चा प्रासंगिक हे- 'मानकीकरण भाषा के बँधना आय। एकर ले भाषा व्यापक परिप्रेक्ष्य म आगू आथे अउ एकर महत्ता हर बाढ़थे।'

         लोक शिक्षा के आवश्यकता ल रेखांकित करत हुए लोक शिक्षा अउ स्कूली शिक्षा म मूल फरक ल बने फोरिया हव। सिरतोन मनखे स्कूली शिक्षा ले औपचारिक ज्ञान पाथे। फेर लोकशिक्षा ले व्यवहारिक ज्ञान पाथे। मनखे समाज ले जइसे जइसे कटत जावत हे, ओकर चारित्रिक पतन होवत हे। ओमा नैतिक अउ अध्यात्मिक दूनो गुन के कमी होवत हे। जे मनखे अउ समाज दूनो बर नकसान के हे। लोक ले मिले ज्ञान लोक कथा के प्रभाव ले मिलथे, अउ इही ज्ञान लोक हित म होथे। जउन ह एक तरह के शिक्षा आय। इही शिक्षा ल ही लोकशिक्षा माने गेहे।

            एक लेखक चिंतनशील होथे। हमेशा समाज अउ लोक के हित म चिंतन करथे अउ उही चिंतन ले समाज के उत्थान बर सिरजन करथे। समाज अउ लोक हित म इही सिरजन रचनाकार या साहित्यकार के सामाजिक सरोकार ल बताथे। बलदाऊ राम साहू  समाज म व्याप्त कुरीति, कुप्रथा या परम्परा के विरोध म अपन लेखनी ले समाज ल एक दिशा दे के बुता करत नजर आथे। उन मन मरनी भात (मृत्यु भोज) अउ दहेज जइसन सामाजिक दंश ले निपटे अउ गरीब परिवार ल एकर ले उबारे के उपाय सुझाय हें।

           मरनी भात बर लिखे लेख म उन लिखथें- "जउन मनखे हर ये परम्परा ल बदलना चाहत हे उन ल लोक निंदा के चिंता छोड़ के आगू आय ल परही।.....जब तक समाज म नवा अउ उदारवादी चिंतन नइ आही, तब तक समाज के अइसने कई ठन परंपरा ल जिनगी भर ढोए ल परही।"

        दूसर कोती दहेज ले संबंधित लेख म समाज के कर्ता-धर्ता अउ सक्षम मन के दू मुँहापन ल उघारत लिखथें- 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे' ए भाव ले ऊपर उठे के जरूरत हे। सही बात आय कोनो भी सुधार के उपाय अउ जतन ल अपने ले शुरुआत करे म असर जादा पड़थे।

           हमर छत्तीसगढ़ म बर-बिहाव के बहुत अकन नेंग जोंग मन आने-आने समाज के साहमत/ सहयोग ले पूरा होथे। इही सहयोग इहाँ के लोकजीवन म तइहा जुग ले सामाजिक समरसता कूट कूट के समाय हे, एकर प्रमाण आय। काबर कि ए नेंग मन आज के नोहय, हमर पुरखौती आय। जे आज राजनीति के घनचक्कर म कूटी-कूटी होवत हे। गाँव के गाँव आपस म लड़े भिंड़े लग गे हे। कुर्सी के लोभी मन ले बाँचे के जरूरत हे। इही भाव ल उजागर करना लेखक के उद्देश्य आय, कहे जा सकत हे। ए लेख म लोकजीवन म व्यवहृत सामाजिक समरसता के दर्शन होथे।

           परिवर्तन प्रकृति के नियम आय। बलदाऊ राम साहू के मुताबिक ए बदलाव हमेशा विकासात्मक होथे। जेकर असर समाज म अउ लोकजीवन म सोज देखे जा सकथे। आज के राखी तिहार अउ तीस चालीस बछर पहिली के तिहार म काफी फरक आ गेहे। आज लोगन के आर्थिक स्तर बाढ़े ले सांस्कृतिक चेतना आय हे। बढ़-चढ़ के मनावत हें। भाई-बहिनी के आपसी मया-परेम बाढ़े हे जउन भविष्य बर अच्छा संदेश आय। ए बात राखी तिहार के बदलत स्वरूप लेख म सफ्फा झलकथे।

         मनखे के विकास यात्रा के गोठबात करत 'परंपरा ले नँदावत हे माटी के बरतन' म माटी ले बने आनी-बानी के बरतन के सुरता माटी ले जुड़े रहे के आह्वान आय।

          बदलत समय के संग अब लोगन बर-बिहाव म घलव दू घंटा भर बर सगा बन के जावत हे। कारण कुछु राहय। इही दू घंटा के चक्कर म सगा जवइया के मोटरा नँदागे। मोटरा नइ रहि गे त मोटरा के खई खजेना घलव कति ले रही। इही खई खजेना म लइका मन के ध्यान लगे राहय। ममा दाई ,फूफू, मौसी कोनो सगा होवय बड़ मया ले लइका के पसंद ल सुरता करके ओकरे लइक खजानी लावय, इही खजानी के प्रतीक आय मया।

          हरेली तिहार के वैज्ञानिकता अउ लोकभाव दूनो के सुग्घर समन्वय किताब म सरेखे गे हे।

            लोकजीवन म व्याप्त कुछ शब्द जेन ल गारी कहे जाथे ओकर लोक अभिव्यक्ति के प्रतीकात्मक स्वरूप के वर्णन छत्तीसगढ़ी भाषा के व्यापकता ल रेखांकित करथे। 

           हमारे महापुरुष खंड म कबीरदास, संत गुरु घासीदास, स्वामी आत्मानंद, भक्तिन माता कर्मा अउ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के छत्तीसगढ़ म प्रासंगिकता अउ उँकर उपादेयता ल शामिल करे गे हे। इन मन के छत्तीसगढ़ के लोकजीवन म प्रभाव अतेक हे कि एक लेख म समोख पाना संभव नइ हे, फेर लेखक के प्रयास सराहे के लइक हे। बंदनीय हे।

          शीर्षक ऊपर चिंतन करे जाय त बलदाऊ राम साहू के गहिर संसो तो झलकबे करथे अउ नवा संस्कृति के चलत मया पिरित के बँधना कमजोर होवत जात हे, इहू कोती हम ल सोचे विचारे बर मजबूर करथे। शीर्षक किताब के सार्थकता ल घलव बिंबित करथे।

       शीर्षक म प्रयोग शब्द 'नंदागे' के बजाय 'नँदागे' सही लगत हे। 

       लेखक जब अपन लेख म उदारवादी होय के पक्षधर हे, त उन ल अपन लेखन म इही उदार भाव ल रखे तीनों श, स, ष के प्रयोग करना रहिस। जे वैज्ञानिक भी हे अउ ग्राह्य हे। बहुत जघा तो श के प्रयोग हे, बहुत जघा नइ। ए पाठक ल भ्रम म डाल देथे। इही किसम ले परचलित, परभावित.. ल जिहाँ के आगत शब्द आय, वइसन रूप म लिखना सही रहितिस। ए किताब म कतको हिंदी शब्द के प्रयोग देखे बर मिलिस जेकर बर हमर छत्तीसगढ़ व्यवहृत शब्द हे, अइसन म हिंदी शब्द ल लिखना छत्तीसगढ़ी ल कमजोर आँकना हो जही। एक लेखक ल सावचेत रहना चाही, बाँचना चाही। 

       ए किताब अपन विषय वस्तु ले नवा किसम के किताब आय। अइसन नवाचार बर लेखक बलदाऊ राम साहू के मिहनत बंदनीय हे।


पुस्तक : मोटरा संग मया नँदागे

लेखक: श्री बलदाऊ राम साहू

कापीराइट: लेखक

प्रकाशक :  अभिव्यक्ति प्रकाशन दिल्ली

वर्ष : 2019

मूल्य: 300/-

पृष्ठ :104


        पोखन लाल जायसवाल

        पठारीडीह(पलारी)

        जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग.

        पिन 493228

        मोबाइल 6261822466

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