Saturday, 16 August 2025

छत्तीसगढ़ी रंग नाटक* (हिंदी आलेख)

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                *छत्तीसगढ़ी रंग नाटक*

                      (हिंदी आलेख)



          यहां मैं दो अति विशिष्ट नाटकों का जिक्र करना चाहूंगा । उनमें प्रथम है डॉक्टर नंदकिशोर तिवारी द्वारा लिखित और डॉक्टर योगेंद्र चौबे द्वारा निर्देशित,और रँगदल ' गुड़ी  'द्वारा प्रदर्शित नाटक - रानी दई (रानी दई डभरा के ) 



              नारी विमर्श के चरमोत्कर्ष को अपने आप में सहेजे इस नाटक की कथावस्तु ,नारी के ह्रदयऔर प्राण दान, और पुरुष के द्वारा उसे भोगवादी एक वस्तु (कमोडिटी) माने जाने के बीच संघर्ष की  कथा है । अत्यंत संक्षिप्त में कथा सूत्र के रूप में कहा जा सकता है- डभरा रियासत का जमीदार या राजा, अपने संबलपुर प्रवास के दौरान वहां किसी रूप लावण्यवती तरुणी के साथ संबंध स्थापित कर लेता है ।और अपना काम समेट कर वापसी के समय उसे 'भोग्या' मानकर वहीं छोड़ देना चाहता है । पर वह साथ चलने के लिये अड़ जाती है । राजा कुटिलता के साथ उसे लाते हुए बीच रास्ते में  तलवार से गर्दन काटकर उसकी हत्या कर देता है। किंतु वापसी में अपराध बोध या (?)से उसकी दस्तक- धमक हर जगह सुनाई देती है ।और उसे वह दिखती भी है। सचमुच में देवी के रूप में उसका डभरा में आगमन हो चुका था । मगर उसने किसी भी प्रकार का प्रतिशोध नहीं लिया ।उसकी बस एक ही सोच थी कि मैं जिसको अपना कह चुकी हूं । वह मेरा है। भले ही उसने मुझे इसके बदले मौत दिया पर  वह मेरा अपना है ।और उसका प्रत्येक अपना भी मेरा अपना है। 


            और वह माता आज आराध्या होकर डभरा में जाग्रत देवी के रूप में विराजमान हैं ।उसका संकल्प वही है...  तुम मेरे अपने हो ।तुम्हारा हर चीज मेरा अपना है। ना केवल आज बल्कि आने वाले सभी समय में  भी । जहां जो व्यक्ति  इस धरा को स्पर्श करेगा ,वह मेरा अपना अपमान है । इस घटना को लेखक द्वारा अत्यंत सरलता के साथ दृश्यों में उसे उकेरा है । उसे तो  गुड़ी के द्वारा मंचित और डॉ योगेंद्र चौबे द्वारा निर्देशित इस नाटक को प्रत्यक्ष  देख कर ही अनुभव किया जा सकता है।




               ' रानी दई डभरा के '  एक सम्पूर्ण नाटक है।इसमें नाटक के सभी तत्व मौजूद हैं



1.कथावस्तु-

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  नाटक में तीन प्रकार की कथाओं का उल्लेख किया जाता है –


१ प्रख्यात


२ उत्पाद्य


३ मिश्र प्रख्यात कथा



       इस विश्लेषण में यह उत्पाद्य होते हुए भी ' मिश्र- प्रख्यात ' कथानक है।जनश्रुति और किवदंती को सहारा लेकर लेखक की कल्पना का  भी योगदान है।



             इन कथा आधारों के बाद इस नाटक में  'मुख्य' तथा 'गौण ' अथवा 'प्रासंगिक '  भी मौजूद है, जो मुख्य कथानक को अभिसिंचित करते हुए चलता है  ।  इसमें  प्रासंगिक के भी आगे 'पताका ' और 'प्रकरी ' भी  हैं । है। इसके अतिरिक्त नाटक की कथा के विकास हेतु कार्य व्यापार की पांच अवस्थाएं -प्रारंभ ,प्रयत्न , प्रत्याशा, नियताप्ति और कलागम  सभी मौजूद है।



             इसके अतिरिक्त इस नाटक में पांच संधियों  को भी चिन्हित किया जा सकता है।



2.पात्र और चरित्र चित्रण

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        ' रानी दई डभरा के ' एक नायिका प्रधान नाटक है । प्रतिनायक या खलनायक की जगह  पारंपरिक जमीदार है जिसके समक्ष स्त्री -वीर भोग्या वसुंधरा  की तर्ज पर वसुंधरा ही बन कर खड़ी है , जिसे जो चाहे अपनी बाजूओं के बल पर भोग ले ।



 नाटक में पताका और प्रकरी के प्रचलन के लिए बहुत सारे पात्र आते- जाते रहते हैं ।पर राजा के बेटे के रूप में एक सह नायक भी उपस्थित होता है  जिसके ह्रदय में नारी के प्रति श्रद्धा का प्रथम अंकुरण होता है । क्योंकि वह उसके वात्सल्य से अभिभूत है ।पात्रों का संयोजन अत्यधिक समीचीन है   जिसे योग्य निर्देशक ने अपनी कल्पना प्रवणता के बल पर थोड़ा मोड़ा फेरबदल  भी कर लिया है ।



3.संवाद

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              इस  नाटक के  संवाद सरल , सुबोध , स्वभाविक तथा पात्रअनुकूल छत्तीसगढ़ी में हैं जिसमें मिट्टी की सुगंध आप आसानी से पकड़ सकते हैं ।नीरसता के निरावरण तथा पात्रों की मनोभावों  को व्यक्त करने के लिए   स्वगत कथन तथा गीतों की योजना भी है।



4.देशकाल और वातावरण-

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          देशकाल वातावरण के चित्रण में नाटककार युग अनुरूप  चित्रण करने मे  विशेष सतर्क  रहा है। पश्चिमी नाटक के देशकाल के संकलनत्रय- समय, स्थान और कार्य की कुशलता  के बीज भी यहाँ उपस्थित है।



         इस नाटक में स्वाभाविकता , औचित्य तथा सजीवता की प्रतिष्ठा के लिए देशकाल वातावरण का उचित ध्यान रखा गया है।  पात्रों की वेशभूषा, तत्कालिक धार्मिक , राजनीतिक , सामाजिक परिस्थितियों  के अनुरूप है।



            पर एक दृश्य में नायिका का दोहरा गेटअप- सधवा और विधवा स्त्री का अद्भुत आकर्षण की उत्पत्ति करता है । वह विधवा की तरह श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं ,जबकि सधवा की तरह मांग में सिंदूर है ।इस प्रकार निर्देशक और लेखक की आत्मा  का एकालाप होते हुए  अद्भुत फंतासी की रचना हो जाती है और नाटक अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है ।



5. भाषा -शैली

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नाटक  'रानी दई डभरा के ' की  भाषा शैली सरल , स्पष्ट और सुबोध  है । जिससे नाटक में  विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न होता है। बोलचाल की छत्तीसगढ़ी में रची गयी इस नाटक से प्रेक्षक सहजता से जुड़ जाते हैं।



6. उद्देश्य 

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यह नाटक नारी विमर्श को केंद्र में रख कर प्रस्तुत होता है। पुरुष पहले स्त्री को उपभोग की सामग्री मानकर उसका उपभोग करता है। यहां तक कि उसकी हत्या भी कर देता है ।और कालांतर में, उसी को देवी मानकर  उसकी आराधना भी करता है । पुरुष के इस दोहरे और दोगले चरित्र को यह नाटक बखूबी उजागर करता है । ना केवल छत्तीसगढ़ अभी तो भारत के कई भूभाग पर ऐसे मिलते -जुलते वृतांत वाले कई किस्से मिल जाते हैं । जिसमें पहले पुरुष अनाचार, दुराचार ,अत्याचार सब करता है। बाद में आराध्या बनाकर  उसका उपासक बन जाता है ।आज नारी सशक्तिकरण के इस युग में किसी नारी के प्रति ऐसे अत्याचार की पुनः पड़ताल की जा रही है । और नाटककार  का यही प्रतिपाद्य विषय वस्तु भी है । नारी विमर्श को प्रस्तुत करना नाटककार का मूल उद्देश्य  है ।



7. मंच-ध्वनि-प्रकाश-अभिनेता

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           निर्देशक डॉ योगेंद्र चौबे  रूप , आकार , दृश्यों की सजावट और उसके उचित संतुलन , परिधान , व्यवस्था , प्रकाश व्यवस्था आदि का पूरा ध्यान रखते हुए इसे आधुनिकता से लबरेज रखते हैं।  लेखक की  भी दृष्टि रंगशाला के विधि – विधानों की ओर विशेष रुप से  है। इन सब में  इस नाटक की सफलता निहित है।



            ऐसे ही 'पहटिया '  भी पूर्ण सिद्ध नाटक है।भूमकाल आंदोलन -गुण्डाधुर को जिस सहजता के साथ मंच पर उतारा जाता है वह डॉ0 योगेंद्र चौबे की व्यक्तिगत उपलब्धि है । मिर्जा मसूद के रेडियो रूपक को इसमें उन्होंने अपनी कथा का आधार बनाया है ।और एक नवीन नाटक की रचना की है । 'पहटिया ' के बहाने समग्र छत्तीसगढ़ के  प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन का एक सशक्त बानगी हम मंच पर देख लेते हैं ।यह डॉक्टर योगेंद्र चौबे की एक निर्देशक के रूप में निर्देशित की जाने वाली श्रेष्ठ नाटकों में शुमार है । रंगमंच के सभी तत्वों को सभी नोर्मों  को पूरा करते हुए अत्यंत सारगर्भित एवं प्रभावशाली प्रस्तुति देखने को मिलती है । या छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता सेनानियों की दास्तान है जिसमें गेंद सिंह , वीर नारायण सिंह से आगे चलकर गुंडाधुर तक कथा विस्तार पाता है पर केंद्र में एक पहटिया है जिसके द्वारा  कथा विस्तार होता है । 


        इसी क्रम में डॉक्टर योगेंद्र चौबे के द्वारा पं0 द्वारका प्रसाद तिवारी' विप्र '  के कई नाटकों का भी मंचन किया गया है ।



          इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ी सिद्ध नाटकों की श्रेणी में और कई नाम शामिल हैं। जिसमें राकेश तिवारी द्वारा निर्देशित नाटक- राजा फोकलवा, अजय आठले के प्रसिद्ध नाटक  'बकासुर', घनश्याम साहू  का अघनिया प्रमुख है  । प्रख्यात रंगकर्मी मिनहाज असद, मिर्जा मसूद ,सुनील चिपड़े जैसे कई रंग निर्देशकों ने कुछ अनुदित छत्तीसगढ़ी नाटकों का भी मंचन किया है और छत्तीसगढ़ी भाषा की श्री वृद्धि की है । 



              लोक कथा शैली के अद्भुत रचनाकार श्री विजय दान देथा की मूल कहानी पर आधारित डॉक्टर योगेंद्र चौबे का 'बाबा पाखंडी '  दूसरा 'चरणदास चोर' बनने की राह पर चल निकला है । लोक नाट्य शैली नाचा और पंडवानी गायन को अपने आप में आत्मसात करते हुए यह यह नाटक 70 से भी अधिक बार  मंचित किया जा चुका है । नाट्य लेखन, परिकल्पना और निर्देशन प्रसिद्ध रंग निर्देशक और रंगकर्मी डॉक्टर देवेंद्र चौबे  का है ।आप राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ,दिल्ली के उत्पाद हैं ।



         बाबा- पाखंडी ,एक प्रकार से जन नाटक ही है। इसमें रंग जगत की तकनीक कम, कला और कौशल के साथ ही व्यक्ति का जीवन प्रमुखता से उतरा है । बाबा पाखंडी वह नाटक है जो लोग की चिंता करता है ।जन की चिंता करता है ।और राजनीति के चाटुकार प्रवक्ता मीडिया की मुखालफत  भी करता है। और बाबा पाखंडी जैसे अवांछनीय तत्व को गधे की सवारी प्रदान करने का दुस्साहस भी करता है । और गधा भी कोई ऐसा वैसा नहीं, परम सत्यवादी , जो अपने हृदय परिवर्तन के उपरांत विद्रोही हो जाता है ।और अपने मालिक बाबा के खिलाफ मुंह खोलता है ।तब- गधे ने किया कमाल, जी सच का लिया है नाम... जैसे गीत की मंत्रमुग्धकारी सामूहिक प्रस्तुति होती है । एक प्रकार सदैव सत्ता से पंगा लेने वाले और आखिरी सिरे पर खड़े हुए 'आदमी ' की तलाश में भटकने वाला- एक्टर इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन का जननाट्य धर्मी तेवर इसमें कहीं ज्यादा प्रखरता से दिखाई देते हैं ।धर्म ,अंधविश्वास और धन को राजनीतिकारों ने अपना हथियार बना रखा है । बाबा पाखंडी की रचना करने वाले ने बाबागिरी के धंधे को कारपोरेट जगत से भी ज्यादा लोकलुभावन और संपन्न पाया । अपने तमाम कूटनीतिक दांव पेंच लगा  विश्वास, खेल ,रिश्ता, लोक, भयदोहन ,सत्ता प्राप्त करने की अभीप्सा  के बीच -बाबा पाखंडी का अवतार होता है । और एक ही आवाज में यह बहुत कुछ कह जाता है । रामनाथ साहू के नाटक- जागे जागे सुतिहा गो !   में भी यही बुना गया है । गांव का भ्रष्ट कोटवार कोटवानंद बन जाता है । यह नाटक तत्कालीन पढ़े-लिखे ,संभ्रांत कुलीन जैसे बड़े-बड़े शब्दों से विभूषित किए जाने वाले समाज में भी बाबाओं की गहरी पैठ पर सीधा प्रहार करता है कि संबंधित व्यक्ति तिलमिलाने के सिवा और कुछ नहीं कर पाता है । नाटक का मुख्य पात्र रंग बदलने वाला गिरगिट जिसे छत्तीसगढ़ी में 'टेटका' कहा जाता है । यह राजनीति और बाबागिरी की जो दुरभि संधि है,उसे  पूरी तरह से परत दर परत  उखाड़ता है। जमीन पर पड़े हुए आखरी तृणमूल व्यक्ति से मंदिर के कंगूरे जैसा सत्तासीन होने का जो प्रपंच और छल है उसे यह नाटक प्रदर्शित पूरी शिद्दत के साथ प्रस्तुत करता है ।



          यद्यपि सिनेमा नाटक एवं रंगमंच की इतर वस्तु है ।इसके बावजूद भी डॉ योगेंद्र चौबे के निर्देशन चमत्कार को हम 'गांजे की कली ' में देख चुके हैं । 



        इस प्रकार छत्तीसगढ़ी नाटक भी अपनी पूरी क्षमता के साथ किसी भी रंगमंच पर  अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सक्षम  हैं । 




*रामनाथ साहू*



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समालोचना ग्रन्थ*

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             *समालोचना ग्रन्थ*


  *छत्तीसगढ़ी साहित्य: दशा और दिशा*

       *(डॉ. नन्दकिशोर तिवारी )*


                 *म*


 *पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे के नाटक 'पीरा' के अंश*

  


            इसी काल खण्ड में डॉ. सुरेन्द्र दुबे का नाटक 'पीरा' और रामनाथ साहू का नाटक 'जागे-जागे सुतिहा गो' प्रकाशित हुआ ।


          डॉ. सुरेन्द्र दुबे का नाटक 'पीरा' छत्तीसगढ़ लोक थियेटर और आधुनिक

नाटकों की समन्वित शैली का आस्वाद देता है। इस नाटक की मूल चेतना

छत्तीसगढ़ का शोषण है। अकाल, पर्यावरण का विनाश, पलायन, अंधविश्वास

इत्यादि समस्याओं को एक साथ यह नाटक उठाता है। रामनवमीं की खुशी दुःख

में बदल जाती है जब अंजोर कहता है।" दिन बादर काकरो रोके नइ रुकय ।

भगवान का जानही हम ऐंठा के डोरी होगे हन। 'पीरा' के लेखक बाजारवाद

का समाज पर पड़ रहे प्रभाव को उद्घाटित करता है। कैसे हमारी इच्छाएँ बाजार

के इशारे पर बनती हैं। उदाहरण के रूप में मनबोधी का यह कथन कि-

मनबोधी -मोला बीस ठन रुपिया दे तो ददा !

पकला-का करबे बीस ठन रूपिया के

मनबोधी- पज्जी बिसाहूं

पकला- सेठ दुकान ले, ले आन डंडहा कपड़ा

मनबोधी - में ह डंडहा पज्जी नइ पहिरॅव। मे ह रेडिमेड पहिरथँव डोरा के ।


         इसी तरह देश के बंटवारे का दुःख भी इस नाटक में व्यक्त हुआ है।पकला का बंटवारा मांगने पर उसका पिता कहता है “सौ साल पूरगे मोर' मे ह देस ल बंटत देखेंव, तहाँ प्रदेस ल बंटत देखेंव। ऊंखरे चाल ल सीख के तहूँ बाटा बर ठेंगा उठात हस रे।" इस नाटक में आकर छत्तीसगढ़ी नाटक ने एक अव्यक्त

दर्द को व्यक्त किया है। उसकी तासीर और जमीन भी बदली है।

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छत्तीसगढ़ी साहित्य दशा और दिशा / 103


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लघु कथा - " चिंनगारी " -मुरारी लाल साव

 लघु कथा -

         " चिंनगारी "

       -मुरारी लाल साव 

चूल्हा म भात चूरत रहिस l छेना लकड़ी जलत रहिस बीच बीच म चिंनगारी छटक जाय एला देख के केकती अपन नोनी बीना ला  चेतावत कहिस -"

देख के नोनी चिंगारी ले बाँच के राह l कतका जोर कती लुक कती आ जही l कपड़ा लत्ता ले बचा के राख lआगी ले जादा चिंगारी ले डर लगथे l धुरिया रहिबे l "

बीना नोनी  चूल्हा मेऱ साग सुधारत  गुनत घलो रहीस l बीना ला अपन मइके म आये छै महीना होगे रहिस l सब पूछय घलो बीना नोनी बइठ गे हे का? ओकर ससुरार वाले मन आके लेगत नइ हे l जेखर ऊपर पहाड़ टूटथे उही जानथे l 

बीना सुन सुन के तर तर आँसू के रेला बोहातीस l जेने पातिस तेने पूछत्तीस l  सास मन के चलथे बहू के कोन सुनथे?काकर सो झगरा होगे हे अतेक तेमा तोला लेगत नइ हे? बीना के छाती म पखरा कचारे अस घात लगय l

इही चिंता म दिनों दिन मुराझावत जात रहीस चेहरा ह ओकर l 

      एक दिन अपन मौसी सास ला  बताइस -

"मय ककरो सो लिगरी लाई के गोठ नइ करेव हँव l उल्टा मोर ननद शकुन हा लबारी गोठ करके भड़का देहे l 

कोनो कुछु लेवय कुछु देवय  मोला का करना हे l 

फेर जेला मै नइ जानव त का बताहूँ l  

अपने मन पइसा कौड़ी धरथे अपने मन ओरमांथे गहना ला l अपने मन पहिरथे कोन मेऱ कहाँ मढ़ाथे?हम का जानबो दाई l 

इल्जाम लगाथे मोरे ऊपरl सहन नइ होवय l 

इही लिगरी लाई ला सुन मोर पति  समझावत कहिस -"घर म चिंगारी के लुक धर लेहे  आगी लग गे हे  भभके  भर बर बाँचे हे एखर ले पहिली अभी अपन मइके म कुछ दिन राह l

मय तोला जइसे छोडत हँव ना ओइसने लेगे बर घलो आहूँ l

टेंशन म रहिबे  त तोर कोंख बर बुरा असर होही l


दाई बहिनी अउ गोसाईन के जंजाल म फँसे केशव रस्ता निकालीस l चार महीना अइसने म सिरागे l

एक दिन केशव के दाई कहिथे -" बेटा तै ले अतेस बहू ला l

जादा दिन कोनो बहू ला ओकर मइके म नइ रखय l"

इही बीच ओकर बहिनी कइथे-" एके जघा म रहिबे त पूछा पाछी म कुछ बात निकल जथे l भउजी के बिना घर सुन्ना लगत हे l

मोर सो गलती होगे हे माफ़ी मांग लुंहू l "

चिनगारी  छटकत रहिस l झोइला होगे आगी के संग l

"चल बहिनी, बीना ला लेके आबो l अपन घर बार ला अपन संभालय l"

अइसने कहत केशव अपन ससुरार लाये बर निकल जथे l

पसहर चाउर* -चन्द्रहास साहू

 *पसहर चाउर*


                                    -चन्द्रहास साहू




“दोना ले लो ओ …!”

“पतरी मुखारी ले ले ओ..!”

“लाई ले ले ओ…. !”

दुनो मोटियारी ओरी-पारी आरो करत हावय। आज झटकुन उठ गे हावय दुनो कोई। मुड़ी मा गुड़री , गुड़री मा पर्रा , पर्रा मा टुकनी , टुकनी मा लाई दोना-पतरी,दतोन-मुखारी हाबे। छोटे दाऊ पारा ला चिचिया डारिन। थोकिन बेच घला डारिन। अब तेली पारा जावत हावय। जम्मो बच्छर बेचथे जम्मो नेग – जोग के जिनिस ला अपन गाँव अउ आने दू चार गाँव मे। दोना पतरी ला नवइन रेवती बेचत हावय अउ केंवटिन हा लाई ला बेचत हे । .......फेर आज तो रेवती के अन्तस मा जइसे कोनो पथरा लदकाय हावय।

“का होगे दीदी ! आज तबियत बने हावय न ?”

“हव बहिनी ! बने हावंव।”

रेवती हुंकारु दिस फेर मन मा अब्बड़ बादर गरजत रिहिस। गौरा चौरा करा अब थिरागे दुनो कोई। पारा के आने माईलोगिन मन सकेलागे रिहिन। पर्रा के दोना पतरी ला निमारे लागिस।

” मेंहा देवत हंव बहिनी तुमन झन छांटो।"

"आ बहिनी रमेसरी ! नेग जोग के जिनिस ला बिसा ले।”

रेवती अउ केंवटिन दुनो कोई किहिस।

रमेसरी दुवार लिपत रिहिस। खबल – खबल हाथ धो डारिस। भीरे कछोरा मा आइस महुआ झरे कस हाँसत।

“का होगे या ..?”

"अब्बड़ खुलखुल हाँसत हस बाई ।"

केवटिन के आरो ला सुनके किहिस रमेसरी हा।

“अई तुमन मोर घर मा आये हव तब हाँसहु नही, तब रोहू या…। अब्बड़ धुर्रा होगे रिहिस बहिनी तेखर सेती दुवार लिपत हंव। फेर ..।”

“फेर..का  ?” 

समारिन किहिस।।

“फेर अउ का.....  ? पानी गिरत हावय नइ देखत हस ?”

अब छे सात झन उपासिन मन सकेलागे रिहिन। जम्मो कोई हाँसे लागिन रमेसरी के गोठ ला सुनके। पारा भर गमकत हावय अब।

” सिरतोन काहत हस दीदी ! ये अखफुट्टा इंदर देव हा अइन्ते – तइन्ते बुता करथे । चौमासा मा घाम टड़ेरथे अउ गरमी मा पूरा बोहाथे। तेखर सेती राच्छस मन नंगतेहे कूटथे ओला ओ..।”

बिसाहिन किहिस अउ फेर खुलखुल हाँसीस।

“ओ  इंदर भगवान के गोठ तो झन कर दीदी ! पर के गोसाइन बर नियत डोला दिस। कुकरा बन के पर घर खुसरगे। भगवान मन अइसने नियत खोंटा करही तब मइनखे मन के का होही ..?”

धरमिन आय। ओखरो गोठ अब मिंझरगे रिहिस। 

गघरा भर पानी मुड़ी मा बोहो के आवत रिहिस। छलकत पानी अउ पानी मा मिंझरे मांग के लाली कुहकू जतका खाल्हे उतरत हावे ओतकी रंग कमतियावत हावय अउ मन मा उछाह के रंग चढ़े लागिस। माथ ले नाक , नाक ले नरी अउ नरी ले उतरके छाती मा हमागे कुहंकू ले रंगे पानी हा।

           एमन गाॅंव के अप्पढ़ माई-महतारी आवय। नित-नियाव बर अपन कोनो पुरखा ला घला ना छोड़े तब भगवान बर कइसे अंगरी नइ उठाही....? इही तों लोकमान्यता आवय अउ लोक ले बड़का का हो सकत हाबे ? 

“पसहर चाउर बिसाहू बहिनी…?”

“वहु तो अब सोना होगे हावय वो ।”

“धरमिन अउ रमेसरी गोठियावत रिहिस।

कामे तौलही रेवती दीदी हा। तोला मे.., किलो में.., कि पैली मे.. ?”

जम्मो कोई फेर हाँसे लागिस।

” पबित्तर जिनिस हा मँहगा तो रहिबे करही दीदी !” केवटिन किहिस।

” लइका लोग सब बने- बने हावय न बेटी रेवती !”

महतारी कस मंडलीन डोकरी के गोठ सुनके रेवती अब दंदरे लागिस। आँसू के बांध अब रोहो – पोहो होगे। पीरा छलकगे। घो..घो..हि.. हि… हिचकी मार के .. अउ अब गोहार पार के रो डारिस। रेवती के बेटी रितु हा काली मंझनिया ले बिन बताये कही चल देहे। कुछु बताये के उदिम करिस रेवती हा फेर मुँहू ले बक्का नइ फूटे।

“ओ काला बताही ओ ! रेवती के टूरी हा अनजतिया टूरा संग उड़हरिया भगा गे हे तेला।”

कोतवाल आवय। ओखर बीख गोठ ला सुनके झिमझिमासी लागिस रेवती ला।

“कलेचुप रहा कका ! सरकारी दस एकड़ खेत ला पोटारे हस तेखर सेती आनी-बानी के उछरत हावस। माईलोगन के मरजाद ला नइ जानस। गरीबीन ला ठोसरा मारे के टकराहा हस ।”

” कुकुर के पूछी कहा ले सोझियाही।”

रमेसरी अउ धरमिन आवय झंझेटत रिहिन।

                        रेवती भलुक गरीबीन रिहिस फेर अब्बड़ दुलार अउ मया पाये रिहिस माइके मा। कोनो महल अटारी के नही भलुक कुंदरा के राजकुमारी रिहिस रेवती हा। राजकुमार मिलिस तब तो सिरतोन के राजकुमार बनगे रेवती बर। ....फेर गरीबीन के भाग मा उछाह नइ लिखाये राहय । मंद महुआ पियईया राजकुमार हा टूरी के छट्ठी के पार्टी बच्छर भर ले मनावत रिहिस। पार्टी नइ सिराइस फेर राजकुमार सिरागे।

आँसू के एक- एक बूँद ला सकेलतीस ते समुन्दर ले आगर हो जाही..। कतका दुख के पहार ला छाती मा लदके हावय कि हिमालय कमती हो जाही। कतका ठोसरा अउ अपमान सहे हे …कोनो नइ जाने। बेटी के कल्थी मारत ले बइठत तक। बइठत ले मड़ियावत तक । मड़ियावत ले रेंगत तक। ......अउ  रेंगत ले उड़ाहावत तक। …अउ उड़हाये लागिस तब तो झन पुछ ..! काखर आँखी मा नइ गड़े लइका हा..। पांख ले थोड़े उड़ाथे बेटी मन ..? अपन मिहनत मा सब ला जानबा करा देथे। गोड़ तिरइया मन उही मेर भसरंग ले मुड़भसरा गिर जाथे।

बेटी बारवी किलास मा पूरा राज मा पहेला आये हावय। पेपर छपिस जयकारा होइस। 

“बेटी ! तिही मोर जैजात आवस। न गाँव मा दू कुरिया के घर बिसा सकत हंव, न खार मा खेत । .. अउ घर, खेत रहे ले मइनखे पोठ हो जाथे का ? जैजात आवस बेटी ! तोला देख के मालगुजार कस महुं हा छाती फुलोथो। ...अउ अइसना फुलत रहूँ सबरदिन।

फेर आज फुग्गा फुटगे। गुमान टुटगे। हवा निकल गे ।

“भागना रिहिस ते हमर जात सगा के का दुकाल रिहिस ओ ? पठान टूरा संग…छी छी…।” 

कोतवाल फेर बीख बान छोड़त रेंग दिस।

रेवती के मन गवाही नइ दिस फेर गाँव के पटवारी कका बताइस तब कइसे नइ पतियाही ? उही तो आय पुरखा घर के एक खोली ला अतिक्रमण हाबे कहिके टोरवाये रिहिन। पटवारी के लिखा ला भगवान ब्रम्हा घला नइ कांट सके तब रेवती वोकर गोठ ला कइसे नइ पतियाही..?

“मेहाँ देखे हंव रेवती बेटी ! बड़का अरोना बेग ला पीठ मा लाद के ओ टूरा संग भुर्र होगे तेला।” 

पटवारी फेर किहिस।

धिरलगहा पतियाये लागिस रेवती हा.. फेर मन नइ पतियावत हावय।

“इंजीनियरिंग कालेज के तीर मा मोटियारी टूरी के लाश मिलिस दू चार दिन पाछू। बदन के जीन्स टी शर्ट जम्मो चिरागे रिहिस। पुलिस केस मा पता चलिस – कबाड़ी वाला के बेटा आवय सलमान । टूरी ला अपन मया मा फँसाये के उदिम करिस अउ नइ फँसिस तब चारो कोई ओरी पारी.... ... छि... छी.....।”

पटइल कका आवय। गोठ सुनके अंतस मा गाज गिरगे।रेवती के जी कलप गे। मुँहु चपियागे टोटा सुखागे फेर पानी के एक बूँद नइ पियिस।

“आजकल नवा चरित्तर उवे हे भइयां ! लव जिहाद कहिथे। आने जात के मन मया मा फँसा लेथे। टूरी ला मुनगा चुचरे सही चुचर लेथे। खेत जोतके बीजा डार देथे अउ छोड़ देथे ..खुरचे बर। ये जम्मो डंफायेन हा बड़का शहर मा चले । अब हमर गाँव देहात मा घला आ गेहे। धन हे श्री राम जी..! तिही बता भगवा रंग ला कइसे अइसन खतरा ले उबारबो तेला?”

पुजारी आय मंदिर ला माथ नवावत किहिस।

रेवती काला जानही घरखुसरी हा, लव जिहाद – फव जिहाद ला। अपन बुता ले बुता राखथे। उही पुजारी आवय जौन हा डांग-डोरी, देवी-देवता, देव- आंगा देव ला नचा लेथे।

रेवती बम्फाड़ के रो डारिस।

धिरलगहा पतियाये लागिस रेवती हा.. फेर मन नइ पतियावत हावय।

अभिन बारवी पढ़ के निकले हावय कइसे मया के मेकरा जाला मा अरहज जाही ? अरहज सकथे न !, नेवरिया घर बारवी पास नइ होवन पाइस अउ बिहाव कर दिस।.. अउ ओ खोरवा मंडल के दसवीं पढ़इया नतनीन.. अब्बड़ आनी-बानी के गोठ सुनथो। ओमन अइसन करत हावय तब मोर बेटी…? अब्बड़ गुनत-गुनत अंगरी मा गिन डारिस। लइका हा छे बच्छर मा बड़े स्कूल मा भरती होइस। बारा बच्छर ले पढ़ीस । बारा छे अट्ठारा..।

“अई”

रेवती के मुँहु उघर गे। लइका संग्यान होगे। इही उम्मर मा ओखर खुद के बिहाव होये रिहिस।

रेवती के आँसू भलुक सुक्खागे रिहिस फेर आँखी उसवागे रिहिस।

“कोन पठान टूरा आवय रे ..? हमर गाँव के बहु बेटी ला बिगाड़त हे। अभिन थाना मा फोन करथंव । भगवा रंग वाला मन ला घला सोरियावत हंव । ओ पठान टूरा के बुकनी झर्रा दिही ओमन।”

सरपंच आवय रखमखा के आइस अउ तमकत हे।

” महूँ देखे हंव ओ रितु नोनी ला । कोन आय तेला नइ चिन्हे हंव फेर टूरा हा सादा कुरता पैजामा अउ मुड़ी मा हरियर टोपी पहिरके तहसील ऑफिस कोती जावत रिहिस।”

गाँव के डॉक्टर आय।

” मोला तो कोर्ट मैरिज करे बर जावत रिहिस अइसे लागथे।” 

सरपंच फेर किहिस।

धिरलगहा पतियाये लागिस रेवती हा.. फेर मन नइ पतियावत हावय अभिन घला।


                      रेवती घर अमरगे रिहिस अब। अउ घर ले दोना पतरी ला उपासिन मन ला बेचत हाबे। फेर मोटियारी बेटी के संसो मा काला धीरज धरही ? कभु डॉक्टर करा जातिस कभु वकील करा, कभु बइगिन करा तब पहटनीन करा । कतको बेरा फोन घला लगाइस फेर स्विच ऑफ आइस बेटी के फोन हा। 

            जेखर संग मया कर तेखर संग बिहाव घला करना चाही । नही ते..? मया ही झन कर। महाभारत मा रूखमणी हा भाग नइ सकिस तभे भगवान किसन ला भगाये बर किहिस । अउ रूखमणी ला हरन करके लेगगे किसन जी हा। रितु हा महाभारत देखत- देखत केहे रिहिस अउ रेवती बरजे रिहिस । नानचुन टूरी अउ आनी – बानी के गोठ करथस। जइसे पढाई मा हुशियार हावय वइसने खेलकूद लड़ई झगड़ा सब मा अगवाये हाबे…अउ मया मा भागे बर…?


धिरलगहा पतियावत- पतियावत अब सिरतोन पतियाये लागिस रेवती हा.. ।

बेरा चढ़गे अब। महुआ पत्ता के दोना पतरी ला कतको झन ला बेचिस अउ कतको झन ला फोकट मा घला दिस। कतको झन ला छे किसम के अन्न राहर जौ तिवरा चना बटरा अउ लाई दिस। छे किसम के खेलउना बनाइस बाटी भौरा गिल्ली डंडा धनुष बाण गेड़ी। पसहर चाउर (लाल रंग के धान जौन पानी के स्रोत मा अपने आप जाग जाथे। सुंघा/कांटा रहिथे। बाली ला सुल्हर लेथे दीदी मन अउ रमंज के चाउर निकालथे । इही लाल रंग के चाउर  ला पसहर चाउर कहिथे ) ला रांधिस बिन जोताये खेत ले छे किसम के भाजी सकेल डारिस अमारी मुनगा कुम्हड़ा लाल पालक बथवा भाजी। गाँव के डेयरी ले दूध मही घीव ले आनिस। अउ अब जम्मो तियारी करके गौरी – गौरा चौक मा रेंग दिस।

                मंडप साजे हे। सगरी बने हावय सुघ्घर अउ पार मा खोचाये हे चिरइया फूल कनेर कांसी दूबी अब्बड़ सुघ्घर। दाई माई बहिनी मन घला अपन जम्मो सवांगा पहिरे- ओढ़े । मेहंदी मा रंगे हाथ अउ आलता माहुर मा गोड़। चुरी वाली अउ  बिन चुरी वाली सब बइठे हावय संघरा। लइका के उज्जर भविस बर असीस मांगत हावय जम्मो उपासिन मन कमरछठ महारानी ले।

“अब तोरे आसरा हावय ओ कमरछठ दाई !” 

रेवती के ऑंसू बोहागे महराज के पैलगी करत। दिन भर के निर्जला उपास । जम्मो कोती अँधियार लागिस। लटपट घर अमरिस अउ सुन्ना घर मा समावत पारबती भोले नाथ के फोटू ला पोटार लिस। बेसुध होगे।


उदुप ले मोहाटी के कपाट बाजिस अउ नोनी हा खुसरिस भीतरी कोती। बटन ला मसक के लट्टू बारिस।


“दाई ! ”

ये आखर रेवती बर संजीवनी बूटी रिहिस। झकनका के उठिस अउ  लइका ला पोटार लिस। नोनी रितु के नरी मा झूल गे।

“गाँव भर नाच नचा डारे। पदनी-पाद पदो डारे । जिहाँ जाना हे, बता के जाना रिहिस तोला कब बरजे हंव बेटी ! झन जा कहि के । ”

रेवती अगियावत रिहिस अउ रोवत किहिस।  रितु के गाल घला झन्नागे दाई के चटकन ले।

“दाई रायपुर गे रेहेंव। अब तोर बेटी हा मेडिकल कालेज मा पढ़ही ओ !”

मुचकावत रिहिस रितु हा।

“अउ पइसा ? ”

“लोन लेये हंव, शिक्षा लोन। फरहान भइया जम्मो बेरा पंदोली दिस फारम भरे अउ लोन निकाले बर। मोर संगी रुखसाना के भाई आय ओ ! फरहान हा। रायपुर दुरिहा हे तेखरे सेती अगुवाके काली गे रेहेंव मेहां, रुखसाना अउ फरहान भइया तीनो कोई। आजे आखरी दिन रिहिस काउंसिलिंग के । मोबाइल घला मरगिस तब का करहु। जाथो कहिके पटेलीन डोकरी ला घला बताये रेहेंव । भैरी सुरुजभूलहिन नइ बताइस ? नानचुन गोठ बर झन संसो करे कर। रितु मुचकावत रिहिस अउ रेवती के ऑंसू पोंछत रिहिस।

टूरा के जेवनी कोती अउ टूरी के डेरी कोती पोता मारे के विधान हाबे। नानकुन कपड़ा ला पिवरी छुही मा बोर के रितु के डेरी कोती पोता मारे लागिस रेवती हा। छे बार पोता मारके आसीस दिस खुलखुल हाँसत रेवती हा अब।

बिन जोताये खेत मा उपजे चाउर कस पाबित्तर लागत रिहिस अब रितु हा। अउ  गाल मा उछाह के रंग दिखत रिहिस सिरतोन पसहर चाउर कस  लाल-लाल।


चन्द्रहास साहू

द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब के पास

श्रध्दा नगर धमतरी छत्तीसगढ़

493773

कमरछठ के महता* डॉ पद्‌मा साहू *पर्वणी*

 *कमरछठ के महता*

                   डॉ पद्‌मा साहू *पर्वणी* 


हमर छत्तीसगढ़ के संस्कृति हा बड़ समृद्ध हे। इहाँ के लोक नृत्य, लोकगीत, तिहार-बार सबो हमर धरोहर के रूप मा जाने जाथे। लोगन देवारी, दशहरा, नवा खाई, आठे गोकुल, तीजा पोरा, जोत जँवारा जइसन तिहार ला बड़ धूमधाम ले मनाथें। अइसने इकठन तिहार आथे दाई-माईमन के जेला *कमरछठ* कहिथे। 

       भादो महीना के अंधियारी पाख के छठ के दिन भगवान बलराम जेन ला हलधर कहिथे वोकर जनम होय रहिस अउ वोकर जनम दिन ला कमरछठ (हलषष्ठी) के रूप मा मनाय जाथे। भगवान बलराम हा एक समृद्ध  किसान रहिस अउ वो पशु पालन के काम  करयँ। एक किसान के रूप मा वो नांगर ला अपन प्रमुख अस्त्र माने। तेकर सेती ये परब ला हलषष्ठी घलो कहिथें। एकर महता अउ नियम बड़ खास हे। ये दिन उपसहीन मन हलधर के अस्त्र हल (नांगर) के सनमान मा नांगर चले वाले खेत-खार, रद्दा मा नइ चले। उपसहीन महतारी मन ये उपास ला अपन संतान के लंबा उमर अउ अच्छा स्वास्थ बर रखथें। महिला मन कमरछठ के दिन बिहनिया ले सुत उठ के घर के साफ सफई करके नहा धो के तियार होथें। ये दिन उपसहीनमन महुआ के दतवन करथें काबर कि महुआ भगवान बलराम के मनपसंद चीज आय। कमरछठ के पूजा मा सगरी (तरिया के प्रतीक) के बहुतेच महता हे। ये सगरी मा उपसहीन मन शुद्ध जल भरथें। येकर चारो कोती पार बनाके काशी, बोरझरी बोइर, परसा (पलास) के डारा ला सजाथें। सगरी के जघा ला पवित्र करे बर गोबर ले लिपथें। सगरी हा सुख समृद्धि अउ बलराम जी के प्रतीक आय। 

        सगरी के तीर मा भगवान बलराम के संगे संग छठ माई, शिव भोले अउ गौरी गणेश के माटी के मुरती बना के आसन मा बइठाथें अउ पूजा के विधान शुरू करथें। पूजा मा भैंइस के दूध, दही, घी अउ सात जात के अनाज ला चढ़ाथें। जइसे कि पसहर चाउर, धान, महुआ, राहेर, जौ, गहूँ अउ हूम-धूप, चंदन-बंधन, फूल-पान, नरियर, सुपारी संग धान के लाई के सात ठन दोना भरथें। भँवरा बाँटी ला लइका मन के खेलउना बना के पूजा मा चढ़ाथें। पंडित जी मंत्र के संग कमरछठ ले जुड़े छै ठन कहानी सुनाथे। कहानी के बाद आरती पूजा करके दाई महतारी मन सगरी के सात भाँवर घूम के सात लोटा पानी सगरी मा डारथें। सब झन हाथ जोड़ के भगवान ला अपन-अपन लइकामन के सुख समृद्धि अउ दीर्घायु होय के कामना करथें। आखरी मा नवा-नवा, नान्हे-नान्हे चेन्दरी ला सगरी मा डूबा के अपन-अपन लइका मन के कनिहा मा पोता मारथें। एकर पाछू ये मान्यता हे कि एकर ले लइका मन के स्वास्थ हा अच्छा रहिथे। गाँव मा येला (कमरछठ) सब लइका-सियान, दाई-माई मन एक जघा जुरियाके बड़ धूमधाम ले मनाथें। सब ला लाई नरियर के प्रसाद देथें।

         पूजा-पाठ के बाद उपसहीन मन छै जात के भाजी के साग बनाथें, पसहर चाउर के भात राँधथें अउ दही संग महुआ पाना के पतरी मा खाथें अउ अपन निर्जला उपास ला टोरथें। साँझ होय के पहिली सब झन मिलके पूजा के हवन-धूप, पान-पतरी ला तरिया नदिया मा जाके ठंडा (विसर्जित) करथें। ये प्रकार ले कमरछठ के तिहार हमर समृद्ध संस्कृति के पहिचान आय। जेला छत्तीसगढ़ के संग-संग बिहार, मध्यप्रदेश के माईलोगिन मन बड़ उछाह के संग नियम के पालन करत संतान के लंबा उमर खातिर उपास ला सब रखथें। अइसने तिहार मन हमर छत्तीसगढ़ के संस्कृति ला समृद्ध करथे। अभी नवा पीढ़ी के बहू-बेटी मन घलो कमरछठ के उपास ला आस्था अउ बिस्वास के संग अपन अवैया संतान बर हँसी-खुशी ले रखथें। एकर ले हमर रीति रिवाज परंपरा हा आगू बढ़थे।  


डॉ पद्‌मा साहू *पर्वणी* 

खैरागढ़

गुल्लक* (छत्तीसगढ़ी लघुकथा)

 .                    *गुल्लक* (छत्तीसगढ़ी लघुकथा)


                              - डाॅ विनोद कुमार वर्मा 


            दस बरस के अंशु के छुट्टी चलत रहिस। आज शुक्रवार के दिन हे। महीने के आखिरी तारीख घलो। पापा आफिस जाय बर निकलत रहिस कि अम्मा कहिस- ' वापसी मा थोरकुन साग ले अइहा। '

        मम्मी की बात ला पापा अनसुना कर दीस। ओही समे अंशु दउड़के पापा के लक्ठा मा आइस अउ अपन एक हाथ ला फैलाके बोलिस- ' पापा पैसा? आज मैं पचास रूपया लेहूँ। मोला अपन दू सहेली ला घलो गुपचुप खिलाना हे!' 

         ' बेटा, बीस रूपिया ले लेबे। '

         ' नहीं, पापा, पचास रूपिया लेहूँ! सहेली मन के आघू मोर कुछु इज्जत हे कि निहीं? मँय ओमन ला बोल डारे हँव! '

       ' ठीक हे। '

       पापा अपन पीछे पाकिट मा हाथ डारिस। उहाँ पर्स नि रहिस। 

      ' बेटा, पर्स आलमारी मा रह गे हे। ओला ले आ तो जरा। '

      अंशु दउड़के गइस अउ पापा के आलमारी ले पर्स निकालके ओला खोलके देखे लगिस। ओमा केवल पचास रूपया रहिस। .....  ओला सुरता आइस कि पापा के बस के आय-जाय के टिकट तीस रूपया लगही। बाकी बीस रूपया मा एक-आध बार चाय पीही! 

      ' ओह आज तो महीने के आखिरी तारीख घलो हे! पापा मोला पइसा कहाँ ले दिही!  ' - अंशु के आँखी भर आइस। आँसू पोंछत अपन मिट्टी के गुल्लक ला तोड़िस अउ ओमा जतका भी नोट रहिस सब ला पापा के पर्स मा भर दिस। एकर बाद वोहा पापा ला पर्स देके तुरते वापस आ गइस अउ फूटे गुल्लक के टुकड़ा मन ला  समेटे लगिस। 

       पापा अपन पर्स ला खोलके देखिस अउ नोट मन ला गिनती करे के बाद अंशु के अम्मा ले बोलिस- ' तँय मोर पर्स मा एक सौ बीस रूपया अउ डारे हस का? '

       ' नहीं तो! '

        पापा तुरते कमरा के भीतर लौटिस त देखिस कि अंशु फूटहा गुल्लक के टुकड़ा मन ला इकट्ठा करत हे। पापा सब कुछ समझ गइस अउ लगभग दउड़त अंशु के लक्ठा मा गइस। अंशु जइसे ही  पापा ला अपन तीर मा देखिस वोहा लिपट गिस अउ रोवत-रोवत बोलिस- ' पापा! आप मोला काबर नि बताया कि आपके पैसा खतम हो गे हे! मोर गुल्लक मा पइसा तो रहिस न! '

                             समाप्त 

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ग्राम्य जीवन के यथार्थपरक कहानी संग्रह* संदर्भ: डाॅ जयभारती चंद्राकर कृत 'शहीद के गाँव'


 .

.        *सरसिज के मधुर मुस्कान ला समेटे* 

   *ग्राम्य जीवन के यथार्थपरक कहानी संग्रह*

संदर्भ: डाॅ जयभारती चंद्राकर कृत 'शहीद के गाँव'


                         - डाॅ विनोद कुमार वर्मा 


.        ' शहीद के गाँव ' डाॅ जयभारती चंद्राकर के सद्यः प्रकाशित (2024) छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह हे जेमा 23 कहानी संकलित हे। डाॅ जयभारती चंद्राकर के लेखन मा छत्तीसगढ़ के माटी की सौंधी-सौंधी सुगंध मन ला मोह लेथे। कहानी मन मा छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक परम्परा अउ मुहावरा के दिग्दर्शन होवत हवय। ये कहानी मन व्यक्तिपरक न होके समाज ला दिशा देखावत प्रतीत होवत हें। एकर साथ एमा छत्तीसगढ़ के अस्मिता के दिग्दर्शन होवत हे।

            छत्तीसगढ़ी गद्य अउ पद्य साहित्य के पुरोधा साहित्यकार संत पवन दीवान जीवन भर छत्तीसगढ़ के अस्मिता  बर लड़िन। ओमन लिखे हवँय- 


छत्तीसगढ़ में सब कुछ है 

पर एक कमी है स्वाभिमान की 

मुझसे सही नहीं जाती है 

ऐसी चुप्पी वर्तमान की।


              डाॅ जयभारती चंद्राकर के कहानी मन एही चुप्पी ला तोड़त हें। साहित्य सृजनशील अउ रचनात्मक प्रक्रिया हे। साहित्य कभू निष्पक्ष नि होवय फेर वोहा मानवता के पक्षधर होथे। डाॅ जयभारती चंद्राकर के कहानी मन  घलो निष्पक्ष नि हें फेर वोहा मानवता के पक्षधर हे। उँकर कहानी मन मा सद्साहित्य के बिंब स्पस्ट झलकत हे। सद्साहित्य का हे?- एला समझे बर पानी अउ जल के अंतर ला समझे बर परही। वइसे पानी और जल एक-दूसर के पर्यायवाची हे फेर एक-दूसर ले अलग घलो हे। काकरो पैर धोय या प्यास बुझाय बर पानी शब्द के प्रयोग उचित हे फेर गंगा जी से हम पानी नि लावन बल्कि गंगाजल लेके आथन। जब पानी के संग आस्था अउ विश्वास जुड़ जाथे तब वोहा जल हो जाथे। सूर्य ला हमन जल चढ़ाथन पानी नि चढ़ावन। डाॅ जयभारती चंद्राकर के कहानी मन मा आस्था अउ विश्वास जुड़े हुए हे एकरे सेती वोहा जल के समान हे। 

.       कहानी संकलन के पहलिच  कहानी  ' शहीद के गाँव ' साहस, बलिदान अउ त्याग के कहानी हे। सीआरपीएफ के जवान भृगुनंदन छह नक्सली मन ला मारे के बाद अपन साथी मन ला बचावत शहीद हो जाथे। ओला भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत कीर्ति चक्र प्रदान किये जाथे। एही गाँव सढ़ौली के दु अउ सिपाही डिगेश्वर शाँडिल्य अउ कालेश्वर चौधरी घलो नक्सली मन के साथ मुठभेड़ मा शहीद हो जाथें। एकरे सेती ये गाँव ला शहीद के गाँव के नाम ले जाने जाथे। छत्तीसगढ़ के सुदूर दक्षिण मा फैले घना दरख्त अउ वन्य पशु-पक्षी मन के शरणस्थली अउ आदिवासी जनजातीय लोक संस्कृति के ध्वजवाहक ' बस्तर के पठार ' घलो आज नक्सली मन के कहर ले कराहवत हे। वसन्ती वर्मा हर अपन कविता ' बस्तर ' मा ठीकेच  लिखे हे-


कोनो ला कइसे समझाओं आज, 

बस्तर के फेर लुकागे भाग।

इहाँ सबो डहर, चारों पहर,

दीमक कस बगरे हे,

गोली-बारूद के कचरा। 

जेमा जरत हे, 

छत्तीसगढ़ महतारी के अँचरा।


.       कहानी ' एँहवाती ' विधवा विवाह के क्रांतिकारी अउ मार्मिक कहानी हे। इकलौता बेटा के बिहाव के सिर्फ एक बरस बाद अकाल मृत्यु हो जाथे। त फूलकेसर के ससुर बहू ला बेटी बनाके ओकर पुनर्विवाह कर देथे। सामाजिक ताना-बाना मा जकड़े ससुर बर ये सब बूता सरल नि रहिस। बिदाई के बेरा बहू फूलकेसर फफक-फफक के रोवत कहिथे- ' बाबू, मे हर अपन मइके ले बिदा हो के तुँहर अँगना म बहुरिया बनके आय रेहेंव। आज मोर नोनी संग मोला विदा कर देव, मोर सुख बर अपन करेजा म पथना रख के समाज अउ बिरादरी के डाँड़ सह के, समाज म नवा अंजोर लाय हो। इही दुवारी म बहू बन के आय रेहेंव अउ आज बेटी बन के बिदा होवय हँव,एँहवाती बनके बिदा होगेंव। कइसना ये भाग पाय हँवव ....।' फूलकेसर के चरित्र चित्रण अउ संवाद न केवल मार्मिक हे बल्कि लाजवाब घलो हे।

       ' डाँड़ ' अंतरजातीय बिहाव के कारण समाज ले बहिष्कृत होय के पीड़ा ला उजागर करत मार्मिक कथा हे। सावित्री के मृत्यु हो जाथे त पारा-परोसी तो आ जाथें फेर कांधा देवइया लरा-जरा, सगा-संबंधी मन नि आवँय। ए तरा वोहा मृत्योपरान्त घलो बहिष्कृत रहि गे। सामाजिक ताना-बाना म गूँथे ये कथा हर ग्रामीण कुरीति के एक यथार्थपरक उदाहरण हे।

        ' आसा अउ किरन ' वन के विनाश के कारण वन्य जीव-जन्तु खासकर जंगली वनभैसा के क्षीण होवत संख्या ला रेखाँकित करत  ' बेटी बचाओ ' के संदेश देवत हे।

       ' चढ़व निसयनी ' एक गरीब परिवार के बेटी गीता के मार्मिक अउ शिक्षाप्रद कहानी हे जेन अपन बलबूता मा पढ़-लिख के शिक्षिका बन जाथे अउ अपन छोटे भाई-बहन मन ला घलो पढ़ा-लिखा के स्वावलंबी बना देथे।

       ' किसान के पीरा ' न्यायप्रिय राजा जयपाल अउ एक किसान के मार्मिक कथा हे। किसान ला खुशहाल देखके राजा जयपाल किसान मन उपर भारी कर लगा देथे जेकर कारण किसान मन के जिनगी बदहाल हो जाथे। बाद में राजा ला अपन गलती के एहसास होथे अउ कर वापस लेके किसान मन के कर्जा ला माफ कर देथे।

        ' झोला वाला बबा ' एक ठग गिरोह के कहानी हे जेन धन ला दो गुना करे के लालच देके गाँव के भोला-भाला लोगन के धन-संपति ला ठगके भाग जाथे। एहा अइसन ठग मन ले बचे के संदेश देवत यथार्थपरक कथा हे। 

       ' अन्नदाता ' मा एक पौराणिक गाथा ला आधार बनाके ये सिद्ध करे गे हे कि मेहनतकश किसान ले बड़े भगवान भक्त अउ कोनो दूसरा नि हे। नारद घलो किसान ले छोटे भक्त हे जेन हर चौबीस घंटा नारायण-नारायण कहत रहिथे! भलेहि कोनो किसान भगवान के भजन करत ध्यान करके बइठे नि रहे।

          कहानी संग्रह ' शहीद के गाँव ' के विवेचन-विश्लेषण बर  सबो कहानी मन उपर टिप्पणी करे के जरूरत नि हे। हाँड़ी में पकत चाँउर के कुछ दाना ला अंगुरी मा मसलके ही ये पता लगाय जा सकत हे कि चावल पके हे कि निहीं। डाॅ जयभारती चंद्राकर के कहानी मन आदर्शोन्मुख के साथ ही यथार्थपरक घलो हे अउ समाज मा व्याप्त कुरीति अउ विसंगति मन ला उजागर करे मा सफल रहे हें।

.       छत्तीसगढ़ी मा कहानी लेखन के इतिहास बहुत पुराना नि हे। डाॅ विनोद कुमार वर्मा के संपादन मा प्रकाशनाधीन ग्रंथ  ' छत्तीसगढ़ी के समकालीन कथाकार ' मा छत्तीसगढ़ी के 36 समकालीन साहित्यकार मन के प्रतिनिधि कहानी संकलित हे। येहा छत्तीसगढ़ी कहानी के प्रतिनिधि संकलन हे। 

         खण्ड (01) छत्तीसगढ़ी के 06 पुरोधा साहित्यकार मन के कहानी उपर केन्द्रित हे जेन मन छत्तीसगढ़ी कहानी संसार मा सुकवा तारा जइसन प्रकाशवान हें। एमा केयूर भूषण, डाॅ परदेशीराम वर्मा, डाॅ पालेश्वर प्रसाद शर्मा, डाॅ विनय कुमार पाठक, पं श्यामलाल चतुर्वेदी अउ डाॅ सत्यभामा आडिल के कहानी शामिल हे।

         खण्ड (02) मा शामिल साहित्यकार मन के लेखन अभी गतिशील हे अउ ' सुरुज ' की तरह  किरण विखेरके नया लेखक मन ला  मार्गदर्शन करत हे। एमा अंजली शर्मा,  डाॅ अनिल कुमार भतपहरी,  कमलेश प्रसाद शर्माबाबू , कामेश्वर, कुबेर, चोवाराम वर्मा ' बादल ', दुर्गा प्रसाद पारकर, परमानन्द वर्मा, डाॅ बलदाऊ राम साहू,  डाॅ बिहारी लाल साहू, बन्धु राजेश्वर खरे,  रामनाथ साहू, डाॅ विनोद कुमार वर्मा,  वीरेन्द्र सरल, शकुन्तला तरार, डाॅ शैल चंद्रा, सुधा वर्मा,  डाॅ सुधीर पाठक,  सुशील भोले,  हरिशंकर देवांगन के संग डाॅ जयभारती चंद्राकर के कहानी ' एँहवाती ' घलो शामिल हे।

        ' शहीद के गाँव ' कहानी संकलन मा रूपायित डाॅ जयभारती चंद्राकर के छोटे-छोटे 23 छत्तीसगढ़ी कहानी मन हमर जीवन अउ समाज के सच्चाई ला उजागर करे के सामर्थ्य रखथें। जीवन के अत्यंत छोटे-छोटे प्रसंग ला कथा केन्द्र मा प्रतिष्ठित कर ओला कथा के रूप मा ढाले के कौशल कहानीकार के विशिष्टता के परिचायक हे। डाॅ जयभारती चंद्राकर के कहानी लेखन के अपन एक अलग शैली हे। उँकर विषयवस्तु के चयन मा मनुष्य के संरक्षा के भाव अन्तर्निहित हे। उँकर छत्तीसगढ़ी कहानी मन मा नारी के मनोभाव अउ ग्राम्य जीवन के दिग्दर्शन होथे। 

        वह अपन कहानी मा छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक छटा अउ ग्राम्य जीवन ला दर्शित करके ओकर पल-पल परिवर्तित रूप के न केवल लेखा-जोखा रखथे बल्कि रीति-रिवाज, आचार-विचार आदि ला प्रादर्श के रूप मा प्रस्तुत करके, संस्कार अउ रिश्ता-नाता के अनुभव ला बाँटत अउ अध्यात्म के आधारशिला ला सहेजके रखथे। एकर साथ ही वह ग्राम्य जीवन मा व्याप्त कुरीति ला न केवल उजागर करत हे बल्कि ओकर उपर प्रहार घलो करत हे। 

        ओकर कहानी मन के भाषा भाव, विचार अउ कल्पना ला सहयोग करत हे अउ मुहावरा-कहावत अउ सांस्कृतिक शब्द मन ला संजोके गँवई-गाँव मा रहइया लोगन के चरित्र ला ही वोहा प्रकारांतर मा प्रस्तुत करत हे।

        अपन आसपास के परिवेश के प्रति संवेदनशीलता अउ अभिव्यक्ति के सहजता  कहानी मन ला न केवल पठनीय बनावत हे बल्कि ओला बड़ प्रभावी ढंग ले सम्प्रेषित करे मा घलो सफल हे।  सीधे-सादे सहज प्रतीत होवइया  पात्र मन ला अपन कलात्मक कौशल ले महत्वपूर्ण बना देहे मा घलो कहानीकार सफल रहे हें। 

         डाॅ जयभारती चंद्राकर के कहानी के वितान बहुत लम्बा-चौड़ा नि हे। वह अपन कथा-वस्तु के सीमित आयतन मा रहके घलो मनुष्य-मन के गहराई ला पूरा विश्वसनीयता के साथ व्यक्त करे मा सफल हें। कहानी कहे के अनुपम शैली ला साधत रचना के मर्म ला सहजतापूर्वक उद्घाटित कर देना कथाकार के महत्वपूर्ण विशेषता हे। मानवीय बेहतरी, ओकर ले जुड़े सोच अउ भावना ओकर कथा मन के मूल प्रतिपाद्य हे। यद्यपि उँकर कहानी मन मा विन्ध्याचल के उच्चता नि हे  फेर वन-श्री के हरीतिमा हे-सहज सरिता के तरंग हे अउ सरसिज के मधुर मुस्कान हे। शुभाशंसा हे कि कथाकार डाॅ जयभारती चंद्राकर के सारस्वत साधना के मार्ग प्रशस्त होवय अउ पुण्य-पंथ होवय। 

       .............................................


 *समीक्षक* 

                       *डाॅ विनोद कुमार वर्मा* 

                       बिलासपुर (छत्तीसगढ)

मो- 98263 40331

ईमेल- vinodverma8070@gmail.com

Wednesday, 6 August 2025

छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ मोहम्मद रफी"

 "छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ मोहम्मद रफी"


अजी ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा ? 

बड़ी दूर से आये हैं, प्यार का तोहफ़ा लाये हैं


आज सुप्रसिद्ध गायक मोहम्मद रफी के पुण्यतिथि हे। छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के संग उनकर मया के नाता रहिस। सन् 1965 मा मोहम्मद रफी के आवाज मा पहिली छत्तीसगढ़ी गीत - 


"झमकत नदिया बहिनी लागे परबत मोर मितान",  


फ़िल्म कहि देबे संदेश बर रिकॉर्ड होए रहिस। इही फ़िल्म मा रफी साहेब के आवाज मा दूसर गीत 


"तोर पैरी के झनर झनर, तोर चूरी के खनर खनर" 


रिकॉर्ड होए रहिस। कहि देबे संदेश फ़िल्म के निर्माता मनु नायक आँय। गीत ला लिखे रहिन हनुमन्त नायडू जी अउ संगीतकार रहिन मलय चक्रवर्ती। ये फ़िल्म 1965 मा रिलीज होइस अउ कहि देबे संदेश के गाना मन जम्मो छत्तीसगढ़ मा धूम मचाइन। 1965 के दौर मा मोहम्मद रफी, गायिकी के सुपर स्टार रहिन। उनकर रेट घलो ज्यादा रहिस। मनु नायक जी जब मलय चक्रवर्ती के संग छत्तीसगढ़ी गीत गाये के अनुरोध कर बर रफी साहेब से संपर्क करके बताइन कि कहि देबे संदेश, छत्तीसगढ़ी भाषा मा पहिली फ़िल्म बनत हे, बजट बहुत छोटकुन हे। अगर आप मोर फ़िल्म मा गाना गाहू त ये आंचलिक भाषा के फ़िल्म ला नवा रद्दा दिखाए खातिर कदम साबित होही। उदार हिरदे के मालिक मो. रफी हाँस के कहिन - आप मन रिकार्डिंग के तैयारी करव, मँय जरूर गाहूँ। स्वीकृति मिले के बाद पहिली गीत के रिकार्डिंग होइस। ये गीत मोहम्मद रफी के गाए पहिली छत्तीसगढ़ी गीत के संगेसंग पहिली छत्तीसगढ़ी फिल्मी गीत बन गिस। तेकर बाद दूसर गीत के रिकार्डिंग होइस। मनु नायक जी अपन बजट के मुताबिक नाम-मात्र राशि के चेक सौंपिन जेला रफी साहब सहर्ष स्वीकार कर लिन। रफी साहेब के कारण मन्नाडे, महेंद्र कपूर आदि गायक कलाकार मन ला घलो मनु नायक जी के बजट अनुसार पारिश्रमिक मा संतोष करना पड़िस। 


1965 मा कहि देबे संदेश के रिलीज होए के बाद घर-द्वार फ़िल्म के तैयारी चालू होइस जेमा मोहम्मद रफी के एक सोलो अउ दू ठन डुएट गीत के रिकार्डिंग होइस। गायिका रहिन सुमन कल्याणपुरी। ये फ़िल्म 1971 मा रिलीज होए रहिस। घर द्वार फ़िल्म के निर्माता विजय कुमार पांडेय रहिन। कवि, गीतकार हरि ठाकुर के लिखे गीत ला संगीत मा सँवारे रहिन संगीतकार जमाल सेन। घर द्वार मा रफी साहब के आवाज मा ये गीत मन रहिन। 


गोंदा फुलगे मोरे राजा

आज अधरतिहा मोर सून बगिया मा

सुन सुन मोर मया पीरा के सँगवारी रे


कहि देबे संदेश अउ घरद्वार फ़िल्म के गीत आकाशवाणी ले घलो सुने बर मिल जाथें। 


26 अप्रैल 1980 के दल्लीराजहरा के पं. जवाहरलाल नेहरू फुटबॉल स्टेडियम मा "शंकर जयकिशन नाइट" के आयोजन होए रहिस।  ये कार्यक्रम मा संगीतकार शंकर, गायक मोहम्मद रफी, मन्नाडे, गायिका शारदा अउ उषा तिमोथी आये रहिन। चरित्र अभिनेत्री सोनिया साहनी कार्यक्रम के एंकरिंग करे रहिन। कार्यक्रम के शुरुआत मा स्वागत भाषण के औपचारिकता भिलाई निवासी अउ भारतीय स्टेट बैंक के अधिकारी राकेश मोहन विरमानी जी हर निभाये रहिन। भारत के भुइयाँ मा मोहम्मद रफी के ये आखरी स्टेज शो रहिस। ये कार्यक्रम के बाद 18 मई 1980 के श्रीलंका मा उनकर एक स्टेज शो घलो होए रहिस जेन हर रफी साहब के जिनगी के अंतिम स्टेज शो रहिस। 


दल्लीराजहरा मा आयोजित "शंकर जयकिशन नाइट" देखे के सौभाग्य मोला मिले रहिस। ये कार्यक्रम मा उनकर गाए दू गीत के सुरता करथंव तब अइसे लगथे कि ए गीत मन मा अंतिम विदाई के संदेश छुपे रहिस। एक गाना रहिस - बड़ी दूर से आये हैं, प्यार का तोहफा लाए हैं"। छत्तीसगढ़ के वासी मन बर मोहम्मद रफी ला साक्षात देखना अउ सुनना, कोनो अनमोल तोहफा ले कम नइ रहिस। दूसर गीत रहिस - अजी ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा, हमारे जैसा दिल कहाँ मिलेगा। ये गीत के बोल अटल सत्य बनगें। वइसन मौका फेर दल्लीराजहरा का, भारत के कोनो शहर मा नइ आइस अउ न मोहम्मद रफी के दिल असन कोनो दूसरा दिल मिल पाइस। दल्लीराजहरा के स्टेज शो, भारत के भुइयाँ मा रफी साहब के आखरी ओपन स्टेज शो बनके रहिगे। 31 जुलाई 1980 के ये महान गायक अपन पंचतत्व के काया ला पंचतत्व मा मिलाके रेंग दिस अउ दुनिया बर छोड़ दिस अपन अमर आवाज। 


आलेख - अरुण कुमार निगम

जो पै यह रामायण .. तुलसी न गावतो

 जो पै यह रामायण .. तुलसी न गावतो 


          दुख हाबे .. त दुख के कारण घला हाबे । दुख ले छुटकारा मिल सकत हे । फेर अज्ञान हा दुख ला सकेल अऊ सहेज के राखे हाबे । एकर ले छुटकारा बर ज्ञान चाहि । फेर ज्ञान आही कहाँ ले ? कोन बाँटही ज्ञान ला । इहाँ जेला देखव तेकरे अँचरा खुदे भीजे हे । बिगन ज्ञान .. सब अपन अपन संताप के ताप म .. जरत लेसावत भुँजावत रहिथे । तब जीवन म अइसन संत के आगमन होथे जेकर हिरदे हा नवनीत जइसे दूसर के ताप संताप देख टघल जथे । संत हा अज्ञानता के घुप्प अंधियार मेटा के सबके हिरदे म ज्ञान के जोत जगमगा देथे ..  

निज परिताप द्रवहिं नवनीता पर दुख द्रवहिं संत सुपुनीता 

          सोलहवीं सदी म अइसने संत जेला लोगन गोस्वामी तुलसीदास के नाव ले जानथे .. तेकर अवतरण होइस । तुलसी हा अनन्य रामभगत रिहिन .. युग द्रष्टा रिहिन । ओ समे .. चारों डहर संकट के बादर धुँधरा कस बरसत रहय जेमा सम्बलरहित मनखे के सोंच हा उबुक चुबुक करत रहय । अज्ञान के घटाघोप अंधियार म भटकत रहय मनखे । साम्प्रदायिकता के कतको विषधर फन उचाये निर्भीक किंजरत रहय । मनखे के चेतना घेरी बेरी मुरछा म चल देवत रहय । विषमता के बिख म सम्बंध एक एक करके मरत जावत रहय । जात पात उँच नीच के लबारी म खुसरे मनखियत घुटत रहय । डर अऊ लालच के सेती आस्था डगमगावत रहय । बेवस्था तंत्र शोषक अऊ न्याय तंत्र उदासीन हो चुके रिहिस । महतारी बाप पर बेटा के अश्रद्धा अऊ बेटा बेटी बर महतारी बाप के उपेक्षा पनपत रिहिस । भाई बर भाई के मन म दुराभाव जनम धर डरे रिहिस । आपस म प्रेम , सहयोग सेवा समर्पण खतम हो चुके रिहिस । छल कपट ईरखा द्वेष धोखा बैर जइसन आदत हा कोढ़ कस बगर चुके रिहिस । बाहिर के दुश्मन के दबाव तो रहिबे करे रिहिस .. भितरि के दुश्मन ओकरो ले जादा पदोवत रिहिस । शारीरिक , मानसिक , आर्थिक अऊ वैचारिक गुलामी म जकड़ चुके रिहिस ओ समे के बहुसंख्य मनखे मन । दैहिक दैविक भौतिक ताप म जरत रिहिन लोगन ... । इही सबो ला देखत तुलसीदास जी देखिन – 

दिन दिन दुनों देखि दारिद दुकाल दुख दुरिस दुराज सुख सुकृति संकोच है 

मांगे पैस पावस पालकी प्रचंड काल की करालता भले को होत पोच है ।। 

          संत तुलसी हा अइसन दुर्दशा देख बहुत दुखी रहँय । तब अइसन अव्यवस्था ले जूझे खातिर .. मनखियत अऊ मनखे ला बचाये खातिर .. विजय के रसदा अऊ अभीष्ट पाये खातिर .. मनखे के सामर्थ्य ला उभारे के जुगत जमावत रामयण के रचना करिन -

हुलसी को जनता को जनार्दन को रिझाकर , पापी को धर्मी को सबको बुझाकर 

दोष को दर्प को और मोह को मिटाकर , अज्ञानी को ज्ञान का युक्ति बताकर 

भक्त को भक्ति का सतपथ दिखाकर , ब्रम्हा जीव अरू माया चिन्हाकर 

सबका उद्धार किया मानस बनाकर , तुलसी तू तुलसी भये हरि गुण गाकर ॥

          उदात्त चरित्र अऊ जीवट पात्र के चयन करिन कवि तुलसीदास जी मन । चरित्र के माध्यम ले शिक्षा सुग्राह्य होथे तेकर सेती .. रामचरित मानस महाकाव्य के रचना करिन । येकर मुख्य नायक मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम जी आय । जागे ले सुते तक के दिनचर्या बताथे तुलसी के रामायण । लोक लाहू ... परलोक निबाहू ... के कुंजी बनाके सामाजिक उपकार .. इँकर बहुत महत्वपूर्ण देन आय । श्रीराम के बाललीला .. बनलीला .. अऊ रणलीला के प्रसंग ला आगू लानत पाठक के भ्रांति ला टोरे के बड़ उदिम करे हे रचनाकार तुलसी हा । जड़ता ला टोरे बिगन ज्ञान अऊ भक्ति के मिलन सम्भव नइहे । धनुष प्रसंग में सीता संग राम के बिहाव म इही दर्शन आय ।   

          छुवाछूत हा घिनौना बीमारी कस हरेक हिरदे म बगरे रिहिस । श्रीराम जी हा केंवट .. बेंदरा .. बनवासी .. पिछवाय अऊ उपेक्षित मनला संगवारी बनाके सबो ला बतइस के कोन्हो अस्पृश्य नइ आय । रामायण के बेवहार दर्शन ला यथार्थ म जनइया गुणग्राही पाठक मन भेदभाव जइसे मिथ्याचार ला कालांतर म नकारत गिन अऊ ओकरे परिणाम आय के सबो ला समान अधिकार के सोंच आज के युग म काम करत हे । सुक्ष्म रूप म येहा तुलसी के देन आय । 

          खरदूषण के पदनी पाद ले त्रेताजुग के जीवधारी मन त्रस्त रिहिन । अइसन आततायी ला ओकर औकात देखावत ओकर त्रास ले मुक्त कर दिन भगवान श्रीराम हा । आजो के जुग म पंचमुखी खरदूषण अन्न .. जल .. वायु .. ध्वनि अऊ विचार .. प्रदूषण हा जम्मो ला लीले बर मुहुँ फार के ताकत झपटा मारत हे । तुलसी हा ज्ञान यज्ञ के शक्ति ले येकरो ले निपटे के सूत्र रामचरित मानस के माध्यम ले तभे दे डरे हाबे । भाई के भाई संग मधुर सम्बंध ला विश्वसनीय बनाये बर राम लखन भरत अऊ शत्रुघ्न के प्रेम .. त्याग .. तपस्या अऊ सेवा के उदाहरण ला बहुत सहजता अऊ सरलता ले मनखे के मन मश्तिष्क म डारे के भागीरथ प्रयास म सफल होय हे । आजो सँयुक्त परिवार म येकर निष्कलंक बानगी देखे जा सकत हे । समन्वय के कवि रिहिन तुलसी । शैव अऊ वैष्णव के बीच के मतभेद ला मेटाये बर एक कोति राम ला शिव के नमन करत बतइन त दूसर कोति शिव ला राम के दंडवत करत देखा दिन – 

शंकर प्रिय मम द्रोही शिव द्रोही मम दास 

ते नर करहिं कलप भर घोर नरक मह बास ॥ 

          विश्वास शिव और ज्ञान राम अभिन्न आय । विश्वास बिगन श्रद्धा अपन आप ला छल के नकसान म रहिथे । शिव पार्वती के प्रसंग म सीखे बर मिलथे । उपलब्धि के प्रचार अभियान हा बुड़ो देथे .. नारद के मोह प्रसंग म येकर स्पष्ट उल्लेख हाबे । जुरियाये म कतेक ताकत हे ... सागर म पुलिया बनाके देखा दिस संगठन हा .. । तुलसी के महाकाव्य म येकर ले बड़के अऊ का प्रेरणा पाबोन हमन के मिल जुर के भिड़े ले रावण जइसन के समूल नाश करे जा सकत हे । रामायण ले प्रेरणा पाके संगठन के प्रयोग म तिलक जी हा स्वतंत्रता पाये बर अभियान चलइन । अपन सरी जिनगानी ला देश बर होम करइया महात्मा गांधी हा हरिजन उद्धार .. सेवा स्वच्छता सहयोग .. दीन दुखी बर प्रेम .. मातृ पितृ भक्ति तुलसी के रामायण ले सीखिन । सागर पार करे के पहिली रसदा मांगे बर रामजी हा तीन दिन सत्याग्रह म बइठ गिन ... गांधी जी हा उही सत्याग्रह के पालन जिनगी भर करिन । बंगलादेश ला जीत के मुक्त कराये के पाछू ... ओकरे मन के भाई बंधु के हाथ म सत्ता सौंप देवइ घला .. लंका विजय के पाछू विभीषण ला सत्ता सौंपे के प्रेरणा आय । हमर उदार नीति हा राम अऊ रामायण के देन आय जेला तुलसी हा चारो मुड़ा बगरइस । भारत के राष्ट्रीय चरित्र तुलसी के रामायण के सीख आय । गाँव के देश भारत म जे नैतिकता के बाँचे हाबे तेहा रामायण के आदर्श शिक्षा के बदौलत आय । 

          राष्ट्र नायक के मन म सत्ता प्रेम के जगा सेवा प्रेम के भावना के संचार हो जाय तो .. स्वराज्य ला सुराज बनाये के जतन माने राम राज्य के परिकल्पना साकार हो सकत हे । तुलसी हा तो यहू ला बता चुके हे – 

रामचंद्र मुख चंद्रमा चित चकोर जब होइ

राम राज्य कारज सुभग समय सुहावन सोइ ||

          तुलसी के रामराज्य के भूमिका जनता बनाये रिहिस । गाँव गँवई जंगल पहाड़ ले शुरू होके अयोध्या नगर म पूरा होय रिहिस । श्रीराम के करूणा उदारता .. सीता के त्याग .. भरत के प्रेम .. लक्ष्मण के शौर्य .. शत्रुघ्न के समर्पण .. हनुमान के सेवा .. इही रामराज्य के आधार आय । 

          उत्साहित करे के बात ये आय के .. गूढ़ अऊ उदात्तचरिता कैकेई .. असीम त्याग मूर्ति सुमित्रा अऊ अनुपम प्रेम वात्सल्य सरूपा कौशल्या ले हमर देश के महतारी मन बहुत सीखे हाबे । श्रुतिकीर्ति के युक्ति .. उर्मिला के शक्ति अऊ मांडवी के भक्ति के अनुकरण करके हमरो बेटी महतारी मन नारी अस्मिता ला बँचा के कीर्ति के अधिकारिणी बनिन हे ... हमर इतिहास म येकर कतको गवाही भरे हे । तुलसी हा जे रामायण के गायन करे हे तेहा .. आदर्श आचार सँहिता आवय जेहा अऊ कहाँचो नइ मिल सकय । सरी दुनिया ला सदाचार , भाईचारा , प्रेम , सौहार्द्य के शिक्षा देथे तुलसी के रामचरित मानस हा । तभे तो ओकर सन्मान म कहे जाथे – 

भारी भवसागर से उतारते कवन पार 

जो पै यह रामायण तुलसी ना गावतो 

 

गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

आखरी मनखे

 आखरी मनखे 

योजना हा बड़े जिनीस आफिस म उँघावत धुर्रा म सनावत रहय । एक कोति ओला जनता तक अमराय के फिकर म सरकार दुबरावत रहय । दूसर कोति .. नावा मैच खेले के समय लकठियागे रहय। योजना ला एन केन प्रकारेण जनता के फायदा बर जनता तक अमराय के योजना बनिस । ओला लकर धकर बाहिर निकालके .. नहवा धोवा के ... नावा पैजामा कुरता पहिराके बाहिर निकालिन ।  

योजना हा सोंचत रहय के कति जनता ला फायदा अमराय बर मोला बाहिर निकालत हे .. मेहा कायेच फायदा अमरा सकत हँव तेमा ... समझ नइ आवत रहय । सरकारी मुड़ी बतइस .. तोला देश के आखिरी मनखे ला फायदा अमराय बर पठोवत हाबन .. जतका जल्दी होय उहाँ तक पहुँचना हे । योजना हा बात समझ गिस । योजना के कुरता पैजामा सलूखा सबो ला धन दोगानी ले पाट दिन अऊ ओकर एक हाथ के मुठा म कुछ चीज ला धरा  दिन । निकलत समय योजना के पैजामा के नाड़ा ला धीरे से तिर दिन । पैजामा बोचके लगिस । योजना हा बिगन नाड़ा के पैजामा ला एक हाथ म सम्हारत ... आखरी मनखे ला खोजत सड़क म उतर गिस । 

मंजिल तक पहुँचे के रसता देखाय बताय के जुम्मेवारी पाये मनखे मन ... ओला अपन संग लेगे । रसता बतावत .. ओकर खींसा ला टमड़े लगिन । योजना सोंचिस .. येमन तो पहिली मिले हे मोला .. येमन आखरी मनखे नइ हो सकय .. । हाथ म धरे चीज ला झन नंगावय सोंच  .. मुठा ला किड़किड़ ले बांध लिस । दूसर हाथ हा पैजामा सम्हारे म लगे रहय । पैजामा के खींसा जुच्छा होके जब चिरागे .. तब योजना ला आगू बढ़े के रसता दिखिस । रसता रेंगत दूसर पड़ाव तक पहुँचिस । उहाँ तो पहिली ले जादा हरहर कटकट ... कुरता के एको खींसा साबुत नइ बाँचिस .. तब आगू के रसता खुलिस । थोकिन अऊ बढ़िस ... जे मिलिन तेमन कुरता चिरइया ... कुरता कुटी कुटी नोचागे । पैजामा उतरगे ... सरी खलास होगे तहन आगू जाय के कपाट भंगभंग ले उघरगे । 

योजना हा सोंचत रहय ... अतेक खक्खू होके कोन ला काय फायदा दे सकहूँ .. तेकर ले लहुँट जाँव का ... । जतका रिहिस सरी लुटागे । भेजइया के बदनामी हो जहि ... तेकर ले धीरे धीरे आगू खसकथँव ...  अपन हाथ के मुठा ला अऊ जादा किड़किड़ ले जमा डरिस । थोकिन आगू रेंगिस तहन ... कुछ भले मानुष मन बतइन के .. जेला खोजत हस ... उही आन हमन ... चल हमर संग .. अऊ हमर भाग ला निकाल ... । भले मानुष मन ..मुठा खोले के प्रयास म लग गिन .. मुठा नइ खुलिस । तहन घुस्सा म योजना के सलूखा ला चिर दिन ... बपरा दंगदंग ले उघरा होगे ... अब इँकर हाथ योजना के देंहे तक अमरगे । इज्जत बँचाय बर ... उहाँ ले निकल भागिस ...ओकर देंहें म बाँचे कपड़ा खसले बर धरिस ... । योजना कस के दँऊड़े लगिस । योजना के पिछु कतको लगगे । योजना बहुत तेजी से चलत हे ...चारों मुड़ा खबर बगरगे । 

कुछ समे पाछू ...... योजना तिर केवल योजना बाँचे रिहिस । अब खल्लु हो चुके योजना के आगू पिछु रेंगइया कोन्हो नइ बाँचिन । अब ओहा जेती जावय तिही कोति .. चार ठोसरा खावय । ओकर हाथ गोड़ टुटगे । एती वोती घिरले लगिस । कनिहा कूबर कोकरगे । मुठा बंधायेच रहय... आखरी मनखे मिलबेच नइ करे रहय । भागत भागत नानुक गाँव म पहुँचिस । बहुत मुश्किल से एक जगा खुसरे के हिम्मत करिस ... भितरि तक नइ खुसर सकिस । झोफड़ी के परछी म दम टोर दिस । ओकर हाथ म बंधाय मुठा हा अपने अपन खुलगे । कुदारी झऊँहा धरके निकलत आखरी मनखे ल योजना के दर्शन होगे । योजना के मुठा म बंधाय झुनझुना गरीब के भाग म रहय । झुनझुना पाके बपरा के अच्छे दिन लहुँटगे । सरी झन जान डरिन के गरीब घर योजना पहुँच चुके हे । सब ओकर तिर पहुँचे लगिन । बपरा गरीब हा उही झुनझुना ला बेंचके ... योजना के क्रियाकर्म के जुगाड़ करत ... गाँव से शहर तक के पहुँचे जम्मो छोटे बड़े मुड़ ला .. खवा डरिस । दूसर दिन अखबार म बड़े बड़े अक्षर म छपे रिहिस के ... योजना देश के आखरी मनखे तक पहुँच गिस। 

हरिशंकर गजानंद देवांगन ... छुरा .

राखी तिहार* (छत्तीसगढ़ी लघुकथा) - डाॅ विनोद कुमार वर्मा

 .                *राखी तिहार* (छत्तीसगढ़ी लघुकथा)


                  - डाॅ विनोद कुमार वर्मा


          'देख न दीदी! 10 बज गे हे। अभी तक बड़े भाई के फोन घलो नि आय हे! '

         ' हाँ सरिता, मँय घलो भैया के फोनेच् के अगोरा करत हँव। '

      'कविता दीदी, तोर राखी तो पहुँच गे हे न! '

       ' हाँ, वोहा तो एक हप्ता  पहलिच्  पहुँच गे हे। देख न बड़े भैया अइसे तो फोन नि करे फेर कम से कम राखी तिहार के दिन तो फोन करना चाही! '

      ' सब भाई अइसनेच होवत जावत हें! अपन घर-परिवार अउ काम-बूता मा व्यस्त। बहिनी मन के कोनो सुरता नि करें! '

      ' मँय तो भला दिल्ली मा हँव। तँय तो रायपुर म रहिथस। तोर करा तो भैया एक दिन के छुट्टी लेके आ ही सकत हे। जगदलपुर ले रायपुर आय म भला कतका देर लगही ? '

    ' हाँ, दीदी ठीक कहत हस ! ..... मोला आज बने नि लगत हे। ' - दोनों मयारूक बहिनी बहुत देर तक एक-दूसर के सुख-दुख के गोठ-बात करत रहिन। 

         रात 07 बजे बड़े भैया के विडिओ काल आइस। 

       ' का भैया, अतेक रात के तोला फुरसत मिलिस हे। एक दिन की छुट्टी घलो नि ले सके! तोला याद हे न कि आज राखी तिहार हे! '

      ' हाँ सरिता, याद हे, तभे तो बात करत हँव। ये बार छुट्टी नि मिलिस बहिनी! '

     तभे भैया के पीछे एक नर्स दिखाई पड़िस जो उन-ला जादा बात करे ले मना करत बोलिस - ' खून जादा बह गे हे। डाक्टर मन जादा बात करे ला आपला मना करे हें भैया! '

       ' का हो गे भैया! ' - दुनों बहिनी मन एके साथ सशंकित प्रश्न करिन। ओमन के चेहरा मा डर अउ विषाद के छाया स्पस्ट झलकत रहिस। 

      ' कुछ नि होय हे बहिनी, एक गोपनीय नक्सल आपरेशन मा पाछू चार दिन ले दरभा घाटी के बीहड़ जंगल मा रहेंव। ये आपरेशन के खतम होय के पहिली कुछु भी बताय के मनाही हे काबर कि एकर ले आपरेशन मा शामिल जवान मन के जान जाय के खतरा रहिथे। फेर तुमन ला बतावत हँव। हमन 10 नक्सली मन ला मार गिराये हन अउ चार जवान घायल घलो हो गएन जेमा महूँ शामिल हँव! उहाँ कम्पनी के 150 जवान अभी घलो मौजूद हें। काली संझा एक गोली जाँघ ला लछरहा छूवत निकलगे जेकर कारण लहू बहे हे। ठीक होय मा दू-तीन हप्ता ले जादा नि लगे! '

     ' भैया तँय ठीक ले नि बतावत हॅस। तोला जादा लागे हे!'- सरिता बोलिस। 

     ' पुलिस के नौकरी छोड़ दे भैया! '- कविता बोलिस। 

      दुनों बहिनी के कंठ अवरूद्ध होगे। आँखी ले झर-झर झर-झर आँसू गिरे लगिस। 

     ' अरे, चिन्ता झन करॅव! जगदलपुर के सरकारी अस्पताल मा भर्ती हँव। अब अस्पताल मा कुछ दिन आराम रही। थोरकुन देर पहिली तोर भाभी ले बात होइस हे फेर ओला नि बताय हँव। अभी तोर भाभी ला ये खबर झन बताहू। कमजोर दिल के हे। काली मँय खुदे बता देहूँ अउ ससुर जी के संग अस्पताल मा बुला लेहूँ। मँय तुमन दुनों ला घलो ये बात ला नि बताना चाहत रहेंव काबर कि आज राखी तिहार के दिन हे फेर नर्स दीदी के कारण बताना पड़िस। '

                              समाप्त 

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आज 145 वीं जयंती मा विशेष कलम के सिपाही- प्रेमचंद

 आज 145 वीं जयंती मा विशेष 


कलम के सिपाही- प्रेमचंद


साहित्य ल समाज के दर्पण कहे जाथे। साहित्य ह मानव समाज ल नवा रस्दा देखाथे। सुमता के दीया कइसे जलही येला सुध्घर ढंग ले बताथे। साहित्य के माध्यम ले तत्कालीन समाज के दशा कइसे रिहिस हे वोहा पता चलथे। साहित्य म इतिहास, संस्कृति ह उभर के आगू आथे। जिहां साहित्य म हमर देश अउ समाज के इतिहास ह पता चलथे त अब्बड़ मिहनत के सियाही ले लिखे साहित्य ह इतिहास घलो गढ़थे। अइसने अपन लेखनी ले एक नवा इतिहास लिखिस कलम के सिपाही, कहानी अउ उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ह। महान साहित्यकार प्रेमचंद के जनम 31 जुलाई 1880 म बनारस के के तीर लमही गांव म होय रिहिन। वोकर सही नांव धनपत राय श्रीवास्तव रिहिन। प्रेमचंद के पिता के नांव अजायब राय अउ महतारी के नांव आनंदी देवी रिहिस। प्रेमचंद नानपन म नंगत के तकलीफ पाइस। नानकुन रिहिन तभे 

वोकर महतारी ह ये दुनियां ले गुजर गे। सौतेली महतारी के रूखा बेवहार ल सहत जिनगी के गाड़ी चलत रिहिस त पिता ह घलो सरग सिधार गे। प्रेमचंद ह बछर 1919 म बी. ए. के परीक्षा पास करिस। प्रेमचंद के बिहाव वोकर सौतेली महतारी ह अपन बीच के रिश्तेदार के एक कुरुप लड़की ले कर दिस। फेर बाद म शिवरानी देवी ले बिहाव करिस।


जिनगी म समस्या ले जूझत प्रेमचंद ह अपन शिक्षा ल सरलग जारी रखिस। सुरू म मास्टरी काम करिस। वो समय हमर देश म अंग्रेज मन राज करत रिहिन। सरकारी नौकरी अउ उपर ले विदेशी शासन। ये स्थिति म दुब्बर बर दू असाढ़ जइसे दशा हो जाय। शुरूआती बेरा म प्रेमचंद ह उर्दू म लिखत रिहिन। अइसन समय म प्रेमचंद ह उर्दू म नवाबराय के नांव ले लेखन कारज ल जारी रखिन। वोकर संग्रह" सोजे वतन "ल अंग्रेज़ी शासन ह जप्त कर लिस अउ चेतावनी दिस कि दुबारा अइसे नउबत लाहू त ठीक नइ रहि। 


हिंदी म प्रेमचंद के नांव ले लिखे के शुरू करिस। ये नांव वोला दया नारायण निगम ह दय रिहिन। गांधी जी के प्रभाव म आके 

 नौकरी छोड़िस। प्रेमचंद ह महात्मा गांधी ले अब्बड़ प्रभावित होइस। अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आंदोलन के समय गांधी जी के ये कहे ले कि भारतीय मन अंगेज सरकार के नौकरी छोड़ दयत प्रेमचंद ह घलो नौकरी छोड़ दिस।


अब प्रेमचंद हिंदी म लिखे ल लगिस। वोकर कहानी अउ उपन्यास में गांधी जी के प्रभाव सुध्धर ढंग ले झलकथे। गबन, रंगभूमि, नमक का दरोगा येकर उदाहरण हरे। गबन म नायक के हिरदे परिवर्तन होथे अउ भ्रष्टाचार ल छोडे बर प्रन करथे। रंगभूमि के नायक सूरदास ह तो गांधी जी के छवि ल 

 देख के गढ़े में हावय। उपन्यास के विषय-वस्तु घलो अजादी के लड़ाई हरे।


 सर्वहारा वर्ग के पीरा ल उजागर करिस 


प्रेमचंद जइसे साहित्यकार सैकड़ों बछर म एक झन होथे। वोहर अपन कहानी अउ उपन्यास के माध्यम ले सर्वहारा वर्ग के पीरा ल उजागर करिस।शोषक वर्ग के करनी ल सबके सामने लाके समाज ल जागरूक करिस । पूस की रात, कफन, सवा सेर गेहूं ठाकुर का कुआं, पंच परमेश्वर, लांछन, सद्गति के माध्यम से समाज के दबे कुचले किसान, मजदूर, आम आदमी के पीरा ल अपन लेखनी के माध्यम ले कहानी धार दय है। शोषक वर्ग उपर जमगरहा प्रहार करे हावय। ईदगाह अउ पंच परमेश्वर के माध्यम ले हिंदू मुस्लिम एकता ल जोर दय हावय। हमर देश ल अलगू चौधरी अउ जुम्मन शेख के आजो जरूरत है। आजो पंच मन ल परमेश्वर होना चाही ताकि पीड़ित मनखे  मन ला नियाव मिल सकय। तथाकथित उच्च शिक्षित लोगन मन मा संवेदना रहना चाही अउ ये संदेश बूढ़ी काकी म देखे ल मिलथे। ठाकुर का कुआं तत्कालीन समाज में व्याप्त छुआछूत रूपी कोढ़ ल दर्शाथे कि कइसे निम्न वर्ग उपर अतियाचार करे जाय। धर्म के नांव म शोषण करइया मन उपर बाबा जी का भोग, सदगति कहानी अउ गोदान उपन्यास के माध्यम ले नंगत प्रहार करके आम जनता ल सावचेत करे हावय। प्रेमचंद ह नारी समाज के दयनीय दशा ल चित्रण करे हावय। दूसर कोति उंकर नारी पात्र ह अब्बड़ सबल घलो हावय। पूस की रात की मुन्नी, ठाकुर का कुआं, लांछन, पंच परमेश्वर, घासवाली, गोदान के नायिका मन मुखर अउ सबल हावय। बड़े घर के बेटी ये संदेश देथे कि बने आदत बेवहार ले मनखे बड़े होथे। जउन ह अपन दूनों कुल के मान मर्यादा ल सुघ्घर ढंग ले राखथे उही बड़े घर के बेटी कहलाय के हकदार हावय। प्रेमचंद के शुरू के कहानी मन म नैतिकता के दर्शन होथे ।1936 के आत -आत्त वोकर विचार प्रगतिशील हो जाथे। येकर कारन बाद के कहानी अउ उपन्यास म नैतिकता के बजाय समाज के सच्चाई ल उजागर करथे ।


आज कलम के सिपाही ल सरग सिधारे नवासी बछर होगे हावय तभी ले पोकर कहानी अउ उपन्यास मन आजो प्रासंगिक है। अमृत राय ह अपन पिता प्रेमचंद के जीवनी कलम का सिपाही नांव ले लिखिस जउन ह बछर 1963 म प्रकाशित होय रिहिस है। जब प्रेमचंद अउ विद्वान राजनेता कन्हैया लाल मुशी ह 1930 में गांधी जी ले प्रभावित होके हंस पत्रिका के संपादन करत रिहिन त मुंशी लिखे के बाद अल्प विराम राहय फेर प्रेमचंद लिखे जाय। पर बाद म साहित्य बिरादरी म प्रेमचंद म ही मुंशी प्रेमचंद लगाय ल लगगे। जबकि मुंशी मतलब कन्हैया लाल मुंशी है। प्रेमचंद खुद एक स्वतंत्र नांव है।


प्रेमचंद के निधन सरलग बीमारी के कारन 8 अक्टूबर 1936 में होगे। अपन जीवन काल म प्रेमचंद ह करीब 300 कहानी 3 नाटक, 15 उपन्यास, 10 अनुवाद अउ 7 बाल पुस्तक लिखिस।  कलम के सिपाही ला 145 वीं जयंती मा शत् शत् नमन है।


               ओमप्रकाश साहू अंकुर 

                सुरगी, राजनांदगांव

मनोरोगी के सुख*//

 //*मनोरोगी के सुख*//


                  फुलवा अपन मन के साध ल पूरा करे बर मन लगा के पढ़ाई करत रिहिस। फेर दूरिहा के स्कूल, आय-जाय के साधन नी रहे, बरसात के दिन म रस्दा के चीखल- काँदो, उपरहा ले मेड़-पार फूट जावय तरिया, नरवा मन टापी-टॉप होके सँइफो-सँइफो करयँ, देखे ले डर लागय । मेंढक मन के टर्र-टर्र अउ चिरइ-चुरगुन मन के आवाज ले फुलवा के मन सिहर-सिहर जावय ओकरे सेती स्कूल के नागा हो जावय । जाड़ के दिन अउ गरमी के दिन म भी स्कूल नी पहुँच पावय ए पाय के कक्षा बारहवीं म दू विषय म फेल होगिस, ओकर मन टूट गे। 


                 गाँव के तीर-ताखर म स्कूल नी होय ले कतको लइका मन के पढ़ाई हर ठोठक जाथे, ओमन के भविष्य बिगड़ जाथे , लड़की मन के पढ़ाई हर तो चोरो-बोरो हो जाथे, एकर चलते ओमन के बर-बिहाव भी कचलउहा उमर म हो जाथे । फुलवा ल गुनान पेले रहे कि कइसे करके पढ़े के साध पूरा होवय, ओकर मन ताला-बेली  होवत रहय। कतको लइका मन आघु कक्षा के पढ़ाई करे बर अपन रिश्ता-नाता म चल देवयँ । फुलवा भी अपन दाई-ददा ल कहिस कि मोला बारहवीं पास करना ही हे तौ कोनों रिस्तेदारी म छोड़ देवव, फेर बाढ़े-पोढ़े नोनी लइका मन ल आन के घर म रखे म दाई-ददा ल चिंता ब्यापे रहिथे, एखर सेती ओकर एहु मनसूबा धरे के धरे रहिगे। फेर फुलवा के ददा हर ओकर पढ़ाई ल पूरा करे बर ओपन स्कूल के फार्म भरा दीस । फुलवा घरे म मन लगा के पढ़ाई करिस अउ परीक्षा दिलाय बर शहर गिस, ओखर मुताबिक, ओखर एसो के ओकर पेपर बहुतेच बढ़िया बने रिहिस।


                 फुलवा ल रिजल्ट के अगोरा रिहिस, ओखर जी धुकुर-पुकुर करत रहय, रिजल्ट के अगोरा करत ओ गाँव जावत रिहिस । एसो के पढ़ाई अउ परीक्षा ल लेके ओखर मन कुलकित रिहिस । ओ मने मन म सपना सँजोत रहे कि कॉलेज भी पढ़ना हे भले ओ घर बइठे ही पढ़ाई कर लिहि, फेर विधि के लेखा कुछ अउ रिहिस । शहर ले गाँव आवत एक ठन सड़क दुर्घटना म ओकर मुड़ म चोट लग गे अउ फुलवा मनोरोगी होगे। कभु ओ बनेच बढ़िया रहय त कभु निचट मइहन रहय । एही बीच म ओकर रिजल्ट आगे, पास होगे फेर मानसिक रूप से असहाय होगे। 

ओला कोर्ट से सहायता मिलिस । बनेच ईलाज-पानी म बड़ दिन ले बनेच घलो रहय। 


               एही बीच एक म एक लड़का पहारू आघु आके ओकर हाथ माँग लिस ओकर बिहाव होगे फेर ओकर दशा हर आधा-आधा रहय, कभु- कभु बने अउ कभु अचेतही रहे। ए पाय के ओकर ससुराल के संसो बाढ़ गे रहे, ओमन फेर ओकर जोड़ी धीरज म मीरज कहि के धीरज धरे रहय। पहारू अपन जोड़ी फुलवा के मन लगा के सेवा करय, मनोरोगी मन के साथ जिनगी बिताना बनेच करलई बूता आय । कतको मनखे मन कतको पाछु पड़िन की फुलवा ल छोड़ दे अउ आने बिहाव कर ले, फेर पहारू टस ले मस नी होइस । पहारू कभु ओतियाइस नहीं, अपन रोजी-मजूरी तो करबे करय अउ फुलवा के सराजाम घलो करय । जइसन बन सके फुलवा भी अपन जोड़ी बर रोटी-पीठा, साग-भात बनाय अउ दुनों संगे- संग बइठ के खावयँ । कभु-कभु फुलवा के मन दुख-पीरा से भर जावय , ओहर ए दशा के लिए अपन आप ल दोषी समझय । ए जिनगी का काम के एला खतम कर दँव कहिके फुलवा हर गुने फेर अपन जोड़ी के सेवा ल देख के ओकर आँसू डबडबा जावय अउ ए सोच ले उबर गे। 


               अइसे लगथे कि भगवान सबके जिनगी बर कहानी गढ़त रहिथे । कभु दुख त कभु सुख देवत रहिथे । दुनों के रिश्ता मया-दुलार से भरे रहय फुलवा के गोद भर गे अउ फुलवा के फूल कस कन्या , फूलकैना अवतरिस । अब ओमन के धियान बेटी उपर लग गे , ओकर सेवा- जतन, हाँसी-ठिठोली, पढ़ाई-लिखाई तो अइसन कराइन कि फुलवा के मन के साध पूरा होगे। समय जात देर नी लगिस अउ अब तो फूलकैना डॉक्टर होगे ओ भी मनोरोगी डॉक्टर ।


डॉ. कृष्ण कुमार चन्द्रा

बालको- कोरबा

भंवरी* (छत्तीसगढ़ी कहानी) - डाॅ विनोद कुमार वर्मा

 .             *भंवरी* (छत्तीसगढ़ी कहानी)


                            - डाॅ विनोद कुमार वर्मा 


           पैंसठ बरस के भंवरी दाई बिहनिया खटिया ले उठबेच नि करिस! वइसे वोहा मुँह-अंधियारी तैयार होके घर ले निकल जावत रहिस। बिहनिया 07 बजे ये खबर आगी कस पूरा गाँव मा फैल गे कि भंवरी दाई नि रहिस! 

       परसों रात दुनों नतनिन के बिहाव के बाद विदा करे के बेरा वोहा खूब रोइस। सबो नता-रिश्तेदार मन आश्चर्य ले उहीच ला देखत रहिन। अतका तो वोहा कभू नि रोवय! लोगन मन ओला हाँसत मुँहरन ही देखे हें। ओ  दिन अइसन लगत रहिस मानों ओकर कोनों जुन्ना जखम् हरा हो गे हे! एकर बाद कालि दिन-भर वोहा गाँव के लोगन ले हाँस-हाँस के बात करत बिहाव के बाँहचे मिठई ला बाँटत एकदम निश्चिंत दिखत रहिस, मानो अपन जीवन के सबो कारज ला पूरा कर डारे हो, जइसे कि अब अउ कुछु कारज करे बर नि बाँहचे हो! 

         वइसे तो वोहा सदा-दिन बड़े-बुजुर्ग, जवान छोकरा-छोकरी, लइका-पिचका सबो ले हाँस-हाँस के ही बात करे। एहा कोनो नावा बात नि हे, एकरे खातिर लोगन मन ओला अपन नोटिस मा नइ लिन। ओ गाँव मा अइसन कोनो नि होही जेन ये दावा कर सके कि ओकर ले भँवरी दाई नि बतियावय, सिवा एक के जेन उमर मा ओकर ले बारह बरस बड़े रहिस। वोहा उन-ला ससुर समान मान देवत जीयत भर पर्दा करत रहिस। एक-दू बार ओमन ले बात घलो करिस फेर पल्लू के परदा डार के, तब ओकर आवाज काँपत रहे। वोही गाँव के सबले बुजुर्ग इंसान रहिस। 

         फेर आज बिहनिया के बेरा ये का अलहन हो गे? कोनो कुछु समझ ही नि पाइन! ..... काकरो आँखी नम रहिस त कोनो उदास। सबसे जादा वो लड़का रामू रोवत रहिस जेन आये दिन ओकर पल्लू पकड़के खींचे। ओला भंवरी दाई के मुँहु ले गारी सुनना बहुत अच्छा लगे! जब-तब कहूँ दिख जातिस त सब काम ला छोड़-छाड़ के दउड़त पहुँच जावय अउ पल्लू पकड़के खींचत बोले- ' डोकरी दाई! भंवरी दाई ..... गारी दे न ओ! '

       तब पल्लू ला झटक के भँवरी दाई चिल्लावय- ' जा भाग बेर्रा (गाली)! बड़ आय हस पल्लू पकड़ने वाला!! ' - अउ खेलखेला के हाँस परे। 

       12 बरस के रामू ला गारी अउ हाँसी सुनके अइसन लागे मानों फूल बरसत हो अउ एकर बाद हाँसत-कूदत सरपट भाग जावय। भंवरी दाई कोनो के उपर गुस्सा होवय त ओला देखके लोगन मन हाँसे लगें। दरअसल ओला गुस्सा करे आबेच नि करे! ..... वोहा अइसनेच् रहिस। सबले निराली, सबले अलग। नानकुन गाँव के वोहा चहेती दाई रहिस। न काकरो ले कुछु लेना, न देना। तभोले घलो गाँव के चहेती दाई। बिना नांगा करे वोहा जब-तब काकरोच् घर मा हाजिरी देहे पहुँच जावय। सुख-दुःख म अउ अइसनेच्च घलो -बिना कुछ काम के; केवल हालचाल जाने बर।

        आधुनिक भारत के नया तस्वीर हा भंवरी दाई ला थोरकुन घलो प्रभावित नि करे सकिस। वोहा जइसने पहले रहिस वइसनेच अभी घलो हवय। एहा बीसवीं शताब्दी के आखिरी दशक के बात हे तब गाँव के घर मन-मा बिजली-पंखा लग गे रहिस। स्कूल म कुर्सी मा बइठके लइका मन पढ़ाई करें। रेडियो के जगा टीवी ले लिए रहिस। चिकित्सा सुविधा बेहतर हो गे रहिस। गाँव-गाँव मा एसटीडी-पीसीओ खुलत रहिस। शहरी सभ्यता के आहट गाँव मन मा सुनाई देवत रहिस। भँवरी दाई के मउत के खबर सुनके वोही बुजुर्ग सज्जन आँखी मा आँसू धरे कहिस- ' हे भगवान आखिर तँय ओला मुक्ति दे ही दिये! .....  ओकर हाँसी के पाछू म न जाने कतका अभाव, कतका संघर्ष, कतका दुःख छिपे रहिस। फेर वोहा एला कोनो ला बतावय कहाँ ?..... बरसों ले लोगन मन  ओला हाँसत-मुस्कुरावत ही देखे हें! ' 

        ओकर नाम भंवरी कब परिस- कोनो ला सुरता नि हे। फेर ये नाम भंवरा ले ही परे होही। नान-नान लइका मन के खेले के भँवरा, जेहा चकरी कस गोल-गोल घुमथे। जवान छोकरा-छोकरी मन जब भंवरा मा रस्सी फँसाके हवा मा उछालके उपरेच-उपर हँथेली में ले लेथें अउ वोहा एक हँथेली मा एक स्थान म स्थिर होके जोर ले घुमे लगथे त ओला देखे के मजा कुछ और ही होथे।

       ओ गाँव के चार ठिन जिनिस दस कोस दूरिहा तक मशहूर रहिस। एक माध्यमिक स्कूल, दूसरा रेडियो, तीसरा हँथेली मा भँवरा घुमाय के प्रतियोगिता अउ चौथा भँवरी दाई! ..... सिरतोंन म ओकर नाम भंवरी नि रहिस। वोहा बुदेला गाँव की बेटी रहिस और बिहाव के बाद जब ये गाँव के बहू बनिस तब लोगन मन जानिन कि ओकर नाम बूंद कुँअर हे। वोहा बड़ सुग्घर अउ संस्कारवान रहिस फेर हमेशा पर्दा मा रहे। गाँव के लोगन मन ओकर एक झलक पाय बर  लालायित रहें! फेर उपर वाला ला कुछु अउ कहानी गढ़ना रहिस। गाँव मा महामारी फैलिस जेमा ओकर पति घलो काल-कवलित हो गे -ओकर गोदी मा एक नानकुन नोनी ला छोड़के! कुल मिलाके ओकर जीये के सहारा अब ओही बेटी रहिस जेन ओ समय केवल दू बछर के रहिस।

       भंवरी के बिहाव 20 बरस के उमर मा होइस त ओकर समय ठीक नि चलत रहिस -अइसन लोगन मन के कहना हे। साल-दर-साल गुजरत गइस फेर कोई लइका नि होइस। न जाने कतका मंदिर, कतका दरगाह मा मत्था टेकिन, मन्नत माँगिन फेर सब बेकार! वैद्य-हाकिम ले इलाज घलो करवाइन। तब कहीं जाके आठ बरस बाद एक नामी वैद्यराज के कृपा ले 28 बरस की उमर मा एक ठिन फूल-जइसन बेटी मिलिस। नाम रखिन- सोन कुँवर।

        एहा ओ समय के बात हे जब गाँव मा अखबार नि पहुँच पावत रहिस। केवल एक घर मा रेडियो रहिस अउ ओला सुने बर अक्सर लोगन मन के उहाँ आना-जाना लगे रहे। लोगन मन अनेक बार राष्ट्र के नाम पं नेहरू का संदेश घलो वोही रेडियो ले सुनेंव। कई साल बाद सन् 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय पं नेहरू के आह्वान मा गाँव-गाँव के महिला मन अपने गहना-गूठा, मंगलसूत्र तक दान कर दिये रहिन। दान करइया मन मा भँवरी घलो रहिस। गाँव के लोगन मन रेडियो मा विविध भारती के गाने घलो सुँनय। 

        सन् 1964 में जब पं नेहरू के निधन होइस त रेडियो मा समाचार सुने बर ओही घर के आघू मेला-जइसन भीड़ हो गे। वो समय वोही रेडियो संचार के एकमात्र सुलभ साधन रहिस।तीर-तखार के गाँवों के लोगन इकठ्ठा होय लगिन। तब रेडियो ला फुल-वाल्यूम मा चलाये गिस ताकि सब्बो लोगन तक आवाज पहुँच सके। भीड़ भारी रहिस फेर पिन-ड्राप साइलेन्स। चारों डहर सन्नाटा! सब्बो के आँखी नम! ओ दिन कई घर मा हाँड़ी नि चढ़िस अउ लोगन मन भूखा पेट ही सो गइन। यह एक अइसन सदमा रहिस जेला लोगन मन  बरसों तक नइ भूले सकिन। लोगन मन पं नेहरू ले बहुत प्यार करें मानों ओमन कोई घर के ही सदस्य हों। जो व्यक्ति ऐशोआराम मा अपन पूरा जिनगी जी सकत रहिस, ओहर देश के आजादी के खातिर 3259 दिन जेल मा बिताइस। महात्मा गाँधी घलो 2338 दिन जेल के सजा काटिन। पं नेहरू के धर्मपत्नी के निधन केवल 37 बरस के उमर म 1936 मा स्विट्जरलैंड के एक सेनेटोरियम मा होइस। अंग्रेजी हुकूमत ला जब ये पता चलिस कि पं नेहरू के धर्मपत्नी के बचना नामुमकिन हे त समय ले पहिली पं नेहरू ला जेल ले रिहा कर दीन, ताकि कोई बवाल खड़ा मत हो। एकर पहिली कमला नेहरू ला इलाज बर सन् 1935 मा सुभाषचंद्र बोस जर्मनी लेके गे रहिस। कमला नेहरू के मृत्यु के समय पं नेहरू ओकर पास ही रहिस। अइसने कतकोन घटनाक्रम मन ओ समय भारतीय जनमानस ला झकझोर के रख दिये रहिस। एकरे सेती पं नेहरू ' चाचा ' के नाम ले अउ महात्मा गाँधी ' बापू ' के नाम ले विख्यात होइन। अइसनेच अउ कतकोन जननायक रहिन जेमन भारतीय जनमानस के दिल मा बसे रहिन। तब तक भंवरी दाई के बेटी सोन कुँवर 14 बरस के हो गे रहिस। वोहा आश्चर्य ले ये सब घटनाक्रम ला देखत रहिस अउ समझे के उदिम करत रहिस। गोरी-चिट्टी, छरहरा बदन, आँखी हिरनी जइसन, कद छोटे, कक्षा सातवीं पास - अइसने रहिस सोन कुँअर। गाँव मा ओ समय माध्यमिक स्कूल खुल गे रहिस फेर गाँव मा बिजली नि रहिस। कक्षा पहली ले पाँचवी तक सबेरे अउ छठवीं ले आठवीं तक के कक्षा मंझनिया लगे। शनिवार के पूरा कक्षा सबेरे लगे अउ 11 बजे दिन छुट्टी हो जावत रहिस। तब पहली ले पाँचवीं तक के लइका मन पीपर पेड़ के छाँव तरी भुइयाँ मा बइठके पढ़ाई करँय। ओ समे लइका मन के बइठे बर कुर्सी नि रहे अउ ओमन टाटपट्टी मा बइठके पढ़ाई करँय। स्कूल के साफ-सफाई बड़े कक्षा के लइका मन के जिम्मा रहिस। आजादी के लड़ाई सोन कुँअर देखे नि रहिस फेर ओकर अम्मा भंवरी न केवल एला देखे रहिस बल्कि महसूस घलो करे रहिस। ओ दिन रोवत-रोवत अम्मा के आँखी सूज गे रहिस। 

          पति के मउत के पाछू बूंद कुँअर अपन दू साल के नानकुन नोनी ला लेके खेत-खार जाय लगिस। ओकर करा अउ कोई विकल्प नि रहिस। कई झन के बुरी नजर घलो ओकर उपर पड़िस फेर धीरे-धीरे वोहा एकर अभ्यस्त हो गे। ओकर चरित्र अउ चेहरा के तेज ला देखके लोगन मन ला ओकर ले बात करे बर अलग ले हिम्मत जुटाय ल पड़े। समय सबो घाव ला भर देथे फेर चिनहा तो बाकी रहिच जाथे! बेटी धीरे-धीरे बड़े होइस त 20 बरस के उमर मा ओकर बिहाव कर दिस अउ दामाद बाबू ला घरजँवाई रख लिस। थोरकुन दिन मा खेती-खार आदि सबो देखरेख के जवाबदारी दामाद बाबू संभाल लिस।

        एकर बाद बूंद कुँअर  के दिनचर्या ही बदल गइस। वोहा बिहनिया ले संझा तक घूम-घूम के  घर-घर के हालचाल जाने अउ दूसर घर के हालचाल ला घलो बतावय। धीरे-धीरे वोहा गाँव के चलती-फिरती अखबार बन गिस।  यहीं ले लोगन मन ओला ' भंवरी दीदी ' कहे लगिन। जमों घर मा ओकर अगोरा रहे। लोगन मन ओकर बात सुने के बर तकतकाय रहें, खासकर महिला मन ओकर पोठ्ठ अगोरा करें। ...... काकर टूरी काकर टूरा के संग उढ़रिया भाग गइस? काकर घर मा मारपीट होय हे? काकर घर मा का साग बने हे? कोन बिमार हे? काकर इहाँ बिहाव के लगन धरे गे हे? काकर घर मा अनाज के कमी के कारण खाना नि बने हे? काकर खेत मा चोरी होय हे? आदि,आदि! ..... समय जइसे ठहर-से गे रहिस -बिहनिया ले संझा तक वइसनेच दिनचर्या; मगर एहा तो ओकर जीवनशैली रहिस। एही बीच वो दू नोनी लइका के नानी घलो बन गे। भरे-पूरे परिवार रहिस। कमी रहिस त पतिदेव के, जेला प्रारब्ध छिन ले रहिस। पौराणिक गाथा मा पतिब्रता सावित्री यमराज के पीछा करके ओला सत्यवान ला वापस लौटाय बर विवश कर दिये रहिस। फेर एहा तो कलयुग हे अउ कलयुग मा अइसन कर पाना संभव नि रहिस। यदि अइसन संभव होतिस त भंवरी ओहू ला घलो कर लेतिस!

       ओकर जन्मनाम बूँद कुँअर ले सफर शुरू होइस जेन भँवरी दाई मा जाके खतम होइस। ओकर  जनम बुदेला गाँव में होइस अउ अम्मा-बाबूजी मन नाम दीन- ' बूंद कुँअर '। ससुराल आइस त नाम हो गिस - ' बुदेलहीन ' अर्थात बुदेला गाँव के बेटी बुदेलहीन। नाम के सरलीकरण, तब नाम ले ही पता चल जावय कि ओहर कोन गाँव के बेटी हे। बेटी के बिहाव के बाद  ' भँवरी दीदी ' -एक बार फेर नाम के रूपान्तरण, मगर एहा स्व-अर्जित रहिस। अउ सबले आखिर मा ' भँवरी दाई '! ......  सिरतोंन मा समय-काल के निर्मम प्रहार अउ प्रवाह के सेती जीवन के बीच काल मा वोहा एक बड़े भँवर मा फँस गे रहिस अउ अइसन काकरो साथ घलो हो सकता हे, फेर आज वोहिच भँवर ले वोहा पाक साफ निकल गे हे। भँवरी नाम के सार्थकता एही हे कि जीवन मा ओहा गोल-गोल घुमिस अउ साबुत निकल गे! फेर अइसना सब कोई तो नि कर पावँय!

                       समाप्त 

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Story written by-

      *डाॅ विनोद कुमार वर्मा* 

व्याकरणविद्,कहानीकार, समीक्षक 

                 बिलासपुर 

मो-  98263 40331

एक सशक्त महिला के कहानी -भंवरी

 एक सशक्त महिला के कहानी -भंवरी 


      डाँ. विनोद कुमार वर्मा जी के छत्तीसगढ़ी कहानी "भंवरी" एक सशक्त महिला भंवरी दाई के उथल-पुथल भरे जिंनगी के संघर्ष के कहानी हे।पति के मौत के बाद का का संघर्ष नइ करे बर परथे एक महिला ला । पालन-पोषण के संगे-संग अपन मान-सम्मान ला भी बचा के राखे बर पड़थे, कतको नीयतखोर मनके नजर रहिथे। येहू एक सामाजिक भंवर ये जिहाँ से एक जवान विधवा ला अपन-आप ला बँचा के निकले बर पड़थे ।येमा भंवरी दाई सौ प्रतिशत सफल होय हे। ग्रामीण वातावरण के सुघ्घर चित्रन के संग लेखक ह येमा 20 वी सदी के नया भारत के तस्वीर खींचत एस टी डी पी सी ओ, बिजली पंखा, ग्रामीण इस्कुल मा घलो लइका मनके बइठे के ब्यस्था सहित रेडियो से टीवी युग मा पहुंँचे के सुघ्घर कहानी गढ़े हे।बेटी सोन कुंवर के बर बिहाव सहित नतनीन मन के बिहाव अउ बिदाई के बिछोह एक परिवार के मार्मिक प्रेम ला दरशावत हे।

       हथेली मा भंँवरा चलाय के चलन हर पाठक मन ला अपन अतीत के सुरता देवावत हे।वोइसने जुन्ना समय मा महामारी के प्रकोप के कारण परिवार उजड़े के ब्यथा ला भी दरशावत हे। कहानी मा पं नेहरू जी के जिक्र करत लेखक हा 1962 भारत चीन के युद्ध ला भी रेखांकित करत भारत देश के वो समय के कालखंड  के वर्णन करे हे जब विभाजन के बाद भारत एक सशक्त देश नइ रिहिस अउ लड़ाई बर सब ला सहयोग करे बर परय। रुपिया पइसा गहना गूंठा सब अपन-अपन ले देके अपन मातृभूमि के रक्षा बर एक आह्वान मा खड़े हो जाँय।भँवरी दाई के भी येमा दान सहयोग कथा ला एक सशक्त महिला के जीवंटता के कहानी बया करत हे।

        बूंद कुंवर के माध्यम से लेखक ये कहानी मा एक महिला के जिंनगी कतका उतार चढ़ाव भरे होथे येखर सशक्त चित्र खींचे हे। कहानी के शीर्षक बरबस ही ये कहानी ला पढ़े बर आकर्षित करत हे। पात्र बूंद कुंवर अपन नाम के संग अपन गाँव बुंदेला के प्रतिनिधित्व घलो करत हे।

  लेखक विनोद भाई वर्मा अपन कहानी भँवरी ला पाठक के बीच पहुँचाके येला पढ़े बर जिज्ञासा जगावत हे। एक बहुत बढ़िया छत्तीसगढ़ी कहानी बर गाड़ा-गाड़ा हार्दिक बधाई हे।।


सादर 

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू कटंगी-गंडई जिला केसीजी 

छंद साधक एवं साहित्यकार 

(छत्तीसगढ़ी भाषा)

06-08-25