Wednesday, 6 August 2025

मनोरोगी के सुख*//

 //*मनोरोगी के सुख*//


                  फुलवा अपन मन के साध ल पूरा करे बर मन लगा के पढ़ाई करत रिहिस। फेर दूरिहा के स्कूल, आय-जाय के साधन नी रहे, बरसात के दिन म रस्दा के चीखल- काँदो, उपरहा ले मेड़-पार फूट जावय तरिया, नरवा मन टापी-टॉप होके सँइफो-सँइफो करयँ, देखे ले डर लागय । मेंढक मन के टर्र-टर्र अउ चिरइ-चुरगुन मन के आवाज ले फुलवा के मन सिहर-सिहर जावय ओकरे सेती स्कूल के नागा हो जावय । जाड़ के दिन अउ गरमी के दिन म भी स्कूल नी पहुँच पावय ए पाय के कक्षा बारहवीं म दू विषय म फेल होगिस, ओकर मन टूट गे। 


                 गाँव के तीर-ताखर म स्कूल नी होय ले कतको लइका मन के पढ़ाई हर ठोठक जाथे, ओमन के भविष्य बिगड़ जाथे , लड़की मन के पढ़ाई हर तो चोरो-बोरो हो जाथे, एकर चलते ओमन के बर-बिहाव भी कचलउहा उमर म हो जाथे । फुलवा ल गुनान पेले रहे कि कइसे करके पढ़े के साध पूरा होवय, ओकर मन ताला-बेली  होवत रहय। कतको लइका मन आघु कक्षा के पढ़ाई करे बर अपन रिश्ता-नाता म चल देवयँ । फुलवा भी अपन दाई-ददा ल कहिस कि मोला बारहवीं पास करना ही हे तौ कोनों रिस्तेदारी म छोड़ देवव, फेर बाढ़े-पोढ़े नोनी लइका मन ल आन के घर म रखे म दाई-ददा ल चिंता ब्यापे रहिथे, एखर सेती ओकर एहु मनसूबा धरे के धरे रहिगे। फेर फुलवा के ददा हर ओकर पढ़ाई ल पूरा करे बर ओपन स्कूल के फार्म भरा दीस । फुलवा घरे म मन लगा के पढ़ाई करिस अउ परीक्षा दिलाय बर शहर गिस, ओखर मुताबिक, ओखर एसो के ओकर पेपर बहुतेच बढ़िया बने रिहिस।


                 फुलवा ल रिजल्ट के अगोरा रिहिस, ओखर जी धुकुर-पुकुर करत रहय, रिजल्ट के अगोरा करत ओ गाँव जावत रिहिस । एसो के पढ़ाई अउ परीक्षा ल लेके ओखर मन कुलकित रिहिस । ओ मने मन म सपना सँजोत रहे कि कॉलेज भी पढ़ना हे भले ओ घर बइठे ही पढ़ाई कर लिहि, फेर विधि के लेखा कुछ अउ रिहिस । शहर ले गाँव आवत एक ठन सड़क दुर्घटना म ओकर मुड़ म चोट लग गे अउ फुलवा मनोरोगी होगे। कभु ओ बनेच बढ़िया रहय त कभु निचट मइहन रहय । एही बीच म ओकर रिजल्ट आगे, पास होगे फेर मानसिक रूप से असहाय होगे। 

ओला कोर्ट से सहायता मिलिस । बनेच ईलाज-पानी म बड़ दिन ले बनेच घलो रहय। 


               एही बीच एक म एक लड़का पहारू आघु आके ओकर हाथ माँग लिस ओकर बिहाव होगे फेर ओकर दशा हर आधा-आधा रहय, कभु- कभु बने अउ कभु अचेतही रहे। ए पाय के ओकर ससुराल के संसो बाढ़ गे रहे, ओमन फेर ओकर जोड़ी धीरज म मीरज कहि के धीरज धरे रहय। पहारू अपन जोड़ी फुलवा के मन लगा के सेवा करय, मनोरोगी मन के साथ जिनगी बिताना बनेच करलई बूता आय । कतको मनखे मन कतको पाछु पड़िन की फुलवा ल छोड़ दे अउ आने बिहाव कर ले, फेर पहारू टस ले मस नी होइस । पहारू कभु ओतियाइस नहीं, अपन रोजी-मजूरी तो करबे करय अउ फुलवा के सराजाम घलो करय । जइसन बन सके फुलवा भी अपन जोड़ी बर रोटी-पीठा, साग-भात बनाय अउ दुनों संगे- संग बइठ के खावयँ । कभु-कभु फुलवा के मन दुख-पीरा से भर जावय , ओहर ए दशा के लिए अपन आप ल दोषी समझय । ए जिनगी का काम के एला खतम कर दँव कहिके फुलवा हर गुने फेर अपन जोड़ी के सेवा ल देख के ओकर आँसू डबडबा जावय अउ ए सोच ले उबर गे। 


               अइसे लगथे कि भगवान सबके जिनगी बर कहानी गढ़त रहिथे । कभु दुख त कभु सुख देवत रहिथे । दुनों के रिश्ता मया-दुलार से भरे रहय फुलवा के गोद भर गे अउ फुलवा के फूल कस कन्या , फूलकैना अवतरिस । अब ओमन के धियान बेटी उपर लग गे , ओकर सेवा- जतन, हाँसी-ठिठोली, पढ़ाई-लिखाई तो अइसन कराइन कि फुलवा के मन के साध पूरा होगे। समय जात देर नी लगिस अउ अब तो फूलकैना डॉक्टर होगे ओ भी मनोरोगी डॉक्टर ।


डॉ. कृष्ण कुमार चन्द्रा

बालको- कोरबा

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