लघु कथा -
" चिंनगारी "
-मुरारी लाल साव
चूल्हा म भात चूरत रहिस l छेना लकड़ी जलत रहिस बीच बीच म चिंनगारी छटक जाय एला देख के केकती अपन नोनी बीना ला चेतावत कहिस -"
देख के नोनी चिंगारी ले बाँच के राह l कतका जोर कती लुक कती आ जही l कपड़ा लत्ता ले बचा के राख lआगी ले जादा चिंगारी ले डर लगथे l धुरिया रहिबे l "
बीना नोनी चूल्हा मेऱ साग सुधारत गुनत घलो रहीस l बीना ला अपन मइके म आये छै महीना होगे रहिस l सब पूछय घलो बीना नोनी बइठ गे हे का? ओकर ससुरार वाले मन आके लेगत नइ हे l जेखर ऊपर पहाड़ टूटथे उही जानथे l
बीना सुन सुन के तर तर आँसू के रेला बोहातीस l जेने पातिस तेने पूछत्तीस l सास मन के चलथे बहू के कोन सुनथे?काकर सो झगरा होगे हे अतेक तेमा तोला लेगत नइ हे? बीना के छाती म पखरा कचारे अस घात लगय l
इही चिंता म दिनों दिन मुराझावत जात रहीस चेहरा ह ओकर l
एक दिन अपन मौसी सास ला बताइस -
"मय ककरो सो लिगरी लाई के गोठ नइ करेव हँव l उल्टा मोर ननद शकुन हा लबारी गोठ करके भड़का देहे l
कोनो कुछु लेवय कुछु देवय मोला का करना हे l
फेर जेला मै नइ जानव त का बताहूँ l
अपने मन पइसा कौड़ी धरथे अपने मन ओरमांथे गहना ला l अपने मन पहिरथे कोन मेऱ कहाँ मढ़ाथे?हम का जानबो दाई l
इल्जाम लगाथे मोरे ऊपरl सहन नइ होवय l
इही लिगरी लाई ला सुन मोर पति समझावत कहिस -"घर म चिंगारी के लुक धर लेहे आगी लग गे हे भभके भर बर बाँचे हे एखर ले पहिली अभी अपन मइके म कुछ दिन राह l
मय तोला जइसे छोडत हँव ना ओइसने लेगे बर घलो आहूँ l
टेंशन म रहिबे त तोर कोंख बर बुरा असर होही l
दाई बहिनी अउ गोसाईन के जंजाल म फँसे केशव रस्ता निकालीस l चार महीना अइसने म सिरागे l
एक दिन केशव के दाई कहिथे -" बेटा तै ले अतेस बहू ला l
जादा दिन कोनो बहू ला ओकर मइके म नइ रखय l"
इही बीच ओकर बहिनी कइथे-" एके जघा म रहिबे त पूछा पाछी म कुछ बात निकल जथे l भउजी के बिना घर सुन्ना लगत हे l
मोर सो गलती होगे हे माफ़ी मांग लुंहू l "
चिनगारी छटकत रहिस l झोइला होगे आगी के संग l
"चल बहिनी, बीना ला लेके आबो l अपन घर बार ला अपन संभालय l"
अइसने कहत केशव अपन ससुरार लाये बर निकल जथे l
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