. *राखी तिहार* (छत्तीसगढ़ी लघुकथा)
- डाॅ विनोद कुमार वर्मा
'देख न दीदी! 10 बज गे हे। अभी तक बड़े भाई के फोन घलो नि आय हे! '
' हाँ सरिता, मँय घलो भैया के फोनेच् के अगोरा करत हँव। '
'कविता दीदी, तोर राखी तो पहुँच गे हे न! '
' हाँ, वोहा तो एक हप्ता पहलिच् पहुँच गे हे। देख न बड़े भैया अइसे तो फोन नि करे फेर कम से कम राखी तिहार के दिन तो फोन करना चाही! '
' सब भाई अइसनेच होवत जावत हें! अपन घर-परिवार अउ काम-बूता मा व्यस्त। बहिनी मन के कोनो सुरता नि करें! '
' मँय तो भला दिल्ली मा हँव। तँय तो रायपुर म रहिथस। तोर करा तो भैया एक दिन के छुट्टी लेके आ ही सकत हे। जगदलपुर ले रायपुर आय म भला कतका देर लगही ? '
' हाँ, दीदी ठीक कहत हस ! ..... मोला आज बने नि लगत हे। ' - दोनों मयारूक बहिनी बहुत देर तक एक-दूसर के सुख-दुख के गोठ-बात करत रहिन।
रात 07 बजे बड़े भैया के विडिओ काल आइस।
' का भैया, अतेक रात के तोला फुरसत मिलिस हे। एक दिन की छुट्टी घलो नि ले सके! तोला याद हे न कि आज राखी तिहार हे! '
' हाँ सरिता, याद हे, तभे तो बात करत हँव। ये बार छुट्टी नि मिलिस बहिनी! '
तभे भैया के पीछे एक नर्स दिखाई पड़िस जो उन-ला जादा बात करे ले मना करत बोलिस - ' खून जादा बह गे हे। डाक्टर मन जादा बात करे ला आपला मना करे हें भैया! '
' का हो गे भैया! ' - दुनों बहिनी मन एके साथ सशंकित प्रश्न करिन। ओमन के चेहरा मा डर अउ विषाद के छाया स्पस्ट झलकत रहिस।
' कुछ नि होय हे बहिनी, एक गोपनीय नक्सल आपरेशन मा पाछू चार दिन ले दरभा घाटी के बीहड़ जंगल मा रहेंव। ये आपरेशन के खतम होय के पहिली कुछु भी बताय के मनाही हे काबर कि एकर ले आपरेशन मा शामिल जवान मन के जान जाय के खतरा रहिथे। फेर तुमन ला बतावत हँव। हमन 10 नक्सली मन ला मार गिराये हन अउ चार जवान घायल घलो हो गएन जेमा महूँ शामिल हँव! उहाँ कम्पनी के 150 जवान अभी घलो मौजूद हें। काली संझा एक गोली जाँघ ला लछरहा छूवत निकलगे जेकर कारण लहू बहे हे। ठीक होय मा दू-तीन हप्ता ले जादा नि लगे! '
' भैया तँय ठीक ले नि बतावत हॅस। तोला जादा लागे हे!'- सरिता बोलिस।
' पुलिस के नौकरी छोड़ दे भैया! '- कविता बोलिस।
दुनों बहिनी के कंठ अवरूद्ध होगे। आँखी ले झर-झर झर-झर आँसू गिरे लगिस।
' अरे, चिन्ता झन करॅव! जगदलपुर के सरकारी अस्पताल मा भर्ती हँव। अब अस्पताल मा कुछ दिन आराम रही। थोरकुन देर पहिली तोर भाभी ले बात होइस हे फेर ओला नि बताय हँव। अभी तोर भाभी ला ये खबर झन बताहू। कमजोर दिल के हे। काली मँय खुदे बता देहूँ अउ ससुर जी के संग अस्पताल मा बुला लेहूँ। मँय तुमन दुनों ला घलो ये बात ला नि बताना चाहत रहेंव काबर कि आज राखी तिहार के दिन हे फेर नर्स दीदी के कारण बताना पड़िस। '
समाप्त
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