*कमरछठ के महता*
डॉ पद्मा साहू *पर्वणी*
हमर छत्तीसगढ़ के संस्कृति हा बड़ समृद्ध हे। इहाँ के लोक नृत्य, लोकगीत, तिहार-बार सबो हमर धरोहर के रूप मा जाने जाथे। लोगन देवारी, दशहरा, नवा खाई, आठे गोकुल, तीजा पोरा, जोत जँवारा जइसन तिहार ला बड़ धूमधाम ले मनाथें। अइसने इकठन तिहार आथे दाई-माईमन के जेला *कमरछठ* कहिथे।
भादो महीना के अंधियारी पाख के छठ के दिन भगवान बलराम जेन ला हलधर कहिथे वोकर जनम होय रहिस अउ वोकर जनम दिन ला कमरछठ (हलषष्ठी) के रूप मा मनाय जाथे। भगवान बलराम हा एक समृद्ध किसान रहिस अउ वो पशु पालन के काम करयँ। एक किसान के रूप मा वो नांगर ला अपन प्रमुख अस्त्र माने। तेकर सेती ये परब ला हलषष्ठी घलो कहिथें। एकर महता अउ नियम बड़ खास हे। ये दिन उपसहीन मन हलधर के अस्त्र हल (नांगर) के सनमान मा नांगर चले वाले खेत-खार, रद्दा मा नइ चले। उपसहीन महतारी मन ये उपास ला अपन संतान के लंबा उमर अउ अच्छा स्वास्थ बर रखथें। महिला मन कमरछठ के दिन बिहनिया ले सुत उठ के घर के साफ सफई करके नहा धो के तियार होथें। ये दिन उपसहीनमन महुआ के दतवन करथें काबर कि महुआ भगवान बलराम के मनपसंद चीज आय। कमरछठ के पूजा मा सगरी (तरिया के प्रतीक) के बहुतेच महता हे। ये सगरी मा उपसहीन मन शुद्ध जल भरथें। येकर चारो कोती पार बनाके काशी, बोरझरी बोइर, परसा (पलास) के डारा ला सजाथें। सगरी के जघा ला पवित्र करे बर गोबर ले लिपथें। सगरी हा सुख समृद्धि अउ बलराम जी के प्रतीक आय।
सगरी के तीर मा भगवान बलराम के संगे संग छठ माई, शिव भोले अउ गौरी गणेश के माटी के मुरती बना के आसन मा बइठाथें अउ पूजा के विधान शुरू करथें। पूजा मा भैंइस के दूध, दही, घी अउ सात जात के अनाज ला चढ़ाथें। जइसे कि पसहर चाउर, धान, महुआ, राहेर, जौ, गहूँ अउ हूम-धूप, चंदन-बंधन, फूल-पान, नरियर, सुपारी संग धान के लाई के सात ठन दोना भरथें। भँवरा बाँटी ला लइका मन के खेलउना बना के पूजा मा चढ़ाथें। पंडित जी मंत्र के संग कमरछठ ले जुड़े छै ठन कहानी सुनाथे। कहानी के बाद आरती पूजा करके दाई महतारी मन सगरी के सात भाँवर घूम के सात लोटा पानी सगरी मा डारथें। सब झन हाथ जोड़ के भगवान ला अपन-अपन लइकामन के सुख समृद्धि अउ दीर्घायु होय के कामना करथें। आखरी मा नवा-नवा, नान्हे-नान्हे चेन्दरी ला सगरी मा डूबा के अपन-अपन लइका मन के कनिहा मा पोता मारथें। एकर पाछू ये मान्यता हे कि एकर ले लइका मन के स्वास्थ हा अच्छा रहिथे। गाँव मा येला (कमरछठ) सब लइका-सियान, दाई-माई मन एक जघा जुरियाके बड़ धूमधाम ले मनाथें। सब ला लाई नरियर के प्रसाद देथें।
पूजा-पाठ के बाद उपसहीन मन छै जात के भाजी के साग बनाथें, पसहर चाउर के भात राँधथें अउ दही संग महुआ पाना के पतरी मा खाथें अउ अपन निर्जला उपास ला टोरथें। साँझ होय के पहिली सब झन मिलके पूजा के हवन-धूप, पान-पतरी ला तरिया नदिया मा जाके ठंडा (विसर्जित) करथें। ये प्रकार ले कमरछठ के तिहार हमर समृद्ध संस्कृति के पहिचान आय। जेला छत्तीसगढ़ के संग-संग बिहार, मध्यप्रदेश के माईलोगिन मन बड़ उछाह के संग नियम के पालन करत संतान के लंबा उमर खातिर उपास ला सब रखथें। अइसने तिहार मन हमर छत्तीसगढ़ के संस्कृति ला समृद्ध करथे। अभी नवा पीढ़ी के बहू-बेटी मन घलो कमरछठ के उपास ला आस्था अउ बिस्वास के संग अपन अवैया संतान बर हँसी-खुशी ले रखथें। एकर ले हमर रीति रिवाज परंपरा हा आगू बढ़थे।
डॉ पद्मा साहू *पर्वणी*
खैरागढ़
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