जो पै यह रामायण .. तुलसी न गावतो
दुख हाबे .. त दुख के कारण घला हाबे । दुख ले छुटकारा मिल सकत हे । फेर अज्ञान हा दुख ला सकेल अऊ सहेज के राखे हाबे । एकर ले छुटकारा बर ज्ञान चाहि । फेर ज्ञान आही कहाँ ले ? कोन बाँटही ज्ञान ला । इहाँ जेला देखव तेकरे अँचरा खुदे भीजे हे । बिगन ज्ञान .. सब अपन अपन संताप के ताप म .. जरत लेसावत भुँजावत रहिथे । तब जीवन म अइसन संत के आगमन होथे जेकर हिरदे हा नवनीत जइसे दूसर के ताप संताप देख टघल जथे । संत हा अज्ञानता के घुप्प अंधियार मेटा के सबके हिरदे म ज्ञान के जोत जगमगा देथे ..
निज परिताप द्रवहिं नवनीता पर दुख द्रवहिं संत सुपुनीता
सोलहवीं सदी म अइसने संत जेला लोगन गोस्वामी तुलसीदास के नाव ले जानथे .. तेकर अवतरण होइस । तुलसी हा अनन्य रामभगत रिहिन .. युग द्रष्टा रिहिन । ओ समे .. चारों डहर संकट के बादर धुँधरा कस बरसत रहय जेमा सम्बलरहित मनखे के सोंच हा उबुक चुबुक करत रहय । अज्ञान के घटाघोप अंधियार म भटकत रहय मनखे । साम्प्रदायिकता के कतको विषधर फन उचाये निर्भीक किंजरत रहय । मनखे के चेतना घेरी बेरी मुरछा म चल देवत रहय । विषमता के बिख म सम्बंध एक एक करके मरत जावत रहय । जात पात उँच नीच के लबारी म खुसरे मनखियत घुटत रहय । डर अऊ लालच के सेती आस्था डगमगावत रहय । बेवस्था तंत्र शोषक अऊ न्याय तंत्र उदासीन हो चुके रिहिस । महतारी बाप पर बेटा के अश्रद्धा अऊ बेटा बेटी बर महतारी बाप के उपेक्षा पनपत रिहिस । भाई बर भाई के मन म दुराभाव जनम धर डरे रिहिस । आपस म प्रेम , सहयोग सेवा समर्पण खतम हो चुके रिहिस । छल कपट ईरखा द्वेष धोखा बैर जइसन आदत हा कोढ़ कस बगर चुके रिहिस । बाहिर के दुश्मन के दबाव तो रहिबे करे रिहिस .. भितरि के दुश्मन ओकरो ले जादा पदोवत रिहिस । शारीरिक , मानसिक , आर्थिक अऊ वैचारिक गुलामी म जकड़ चुके रिहिस ओ समे के बहुसंख्य मनखे मन । दैहिक दैविक भौतिक ताप म जरत रिहिन लोगन ... । इही सबो ला देखत तुलसीदास जी देखिन –
दिन दिन दुनों देखि दारिद दुकाल दुख दुरिस दुराज सुख सुकृति संकोच है
मांगे पैस पावस पालकी प्रचंड काल की करालता भले को होत पोच है ।।
संत तुलसी हा अइसन दुर्दशा देख बहुत दुखी रहँय । तब अइसन अव्यवस्था ले जूझे खातिर .. मनखियत अऊ मनखे ला बचाये खातिर .. विजय के रसदा अऊ अभीष्ट पाये खातिर .. मनखे के सामर्थ्य ला उभारे के जुगत जमावत रामयण के रचना करिन -
हुलसी को जनता को जनार्दन को रिझाकर , पापी को धर्मी को सबको बुझाकर
दोष को दर्प को और मोह को मिटाकर , अज्ञानी को ज्ञान का युक्ति बताकर
भक्त को भक्ति का सतपथ दिखाकर , ब्रम्हा जीव अरू माया चिन्हाकर
सबका उद्धार किया मानस बनाकर , तुलसी तू तुलसी भये हरि गुण गाकर ॥
उदात्त चरित्र अऊ जीवट पात्र के चयन करिन कवि तुलसीदास जी मन । चरित्र के माध्यम ले शिक्षा सुग्राह्य होथे तेकर सेती .. रामचरित मानस महाकाव्य के रचना करिन । येकर मुख्य नायक मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम जी आय । जागे ले सुते तक के दिनचर्या बताथे तुलसी के रामायण । लोक लाहू ... परलोक निबाहू ... के कुंजी बनाके सामाजिक उपकार .. इँकर बहुत महत्वपूर्ण देन आय । श्रीराम के बाललीला .. बनलीला .. अऊ रणलीला के प्रसंग ला आगू लानत पाठक के भ्रांति ला टोरे के बड़ उदिम करे हे रचनाकार तुलसी हा । जड़ता ला टोरे बिगन ज्ञान अऊ भक्ति के मिलन सम्भव नइहे । धनुष प्रसंग में सीता संग राम के बिहाव म इही दर्शन आय ।
छुवाछूत हा घिनौना बीमारी कस हरेक हिरदे म बगरे रिहिस । श्रीराम जी हा केंवट .. बेंदरा .. बनवासी .. पिछवाय अऊ उपेक्षित मनला संगवारी बनाके सबो ला बतइस के कोन्हो अस्पृश्य नइ आय । रामायण के बेवहार दर्शन ला यथार्थ म जनइया गुणग्राही पाठक मन भेदभाव जइसे मिथ्याचार ला कालांतर म नकारत गिन अऊ ओकरे परिणाम आय के सबो ला समान अधिकार के सोंच आज के युग म काम करत हे । सुक्ष्म रूप म येहा तुलसी के देन आय ।
खरदूषण के पदनी पाद ले त्रेताजुग के जीवधारी मन त्रस्त रिहिन । अइसन आततायी ला ओकर औकात देखावत ओकर त्रास ले मुक्त कर दिन भगवान श्रीराम हा । आजो के जुग म पंचमुखी खरदूषण अन्न .. जल .. वायु .. ध्वनि अऊ विचार .. प्रदूषण हा जम्मो ला लीले बर मुहुँ फार के ताकत झपटा मारत हे । तुलसी हा ज्ञान यज्ञ के शक्ति ले येकरो ले निपटे के सूत्र रामचरित मानस के माध्यम ले तभे दे डरे हाबे । भाई के भाई संग मधुर सम्बंध ला विश्वसनीय बनाये बर राम लखन भरत अऊ शत्रुघ्न के प्रेम .. त्याग .. तपस्या अऊ सेवा के उदाहरण ला बहुत सहजता अऊ सरलता ले मनखे के मन मश्तिष्क म डारे के भागीरथ प्रयास म सफल होय हे । आजो सँयुक्त परिवार म येकर निष्कलंक बानगी देखे जा सकत हे । समन्वय के कवि रिहिन तुलसी । शैव अऊ वैष्णव के बीच के मतभेद ला मेटाये बर एक कोति राम ला शिव के नमन करत बतइन त दूसर कोति शिव ला राम के दंडवत करत देखा दिन –
शंकर प्रिय मम द्रोही शिव द्रोही मम दास
ते नर करहिं कलप भर घोर नरक मह बास ॥
विश्वास शिव और ज्ञान राम अभिन्न आय । विश्वास बिगन श्रद्धा अपन आप ला छल के नकसान म रहिथे । शिव पार्वती के प्रसंग म सीखे बर मिलथे । उपलब्धि के प्रचार अभियान हा बुड़ो देथे .. नारद के मोह प्रसंग म येकर स्पष्ट उल्लेख हाबे । जुरियाये म कतेक ताकत हे ... सागर म पुलिया बनाके देखा दिस संगठन हा .. । तुलसी के महाकाव्य म येकर ले बड़के अऊ का प्रेरणा पाबोन हमन के मिल जुर के भिड़े ले रावण जइसन के समूल नाश करे जा सकत हे । रामायण ले प्रेरणा पाके संगठन के प्रयोग म तिलक जी हा स्वतंत्रता पाये बर अभियान चलइन । अपन सरी जिनगानी ला देश बर होम करइया महात्मा गांधी हा हरिजन उद्धार .. सेवा स्वच्छता सहयोग .. दीन दुखी बर प्रेम .. मातृ पितृ भक्ति तुलसी के रामायण ले सीखिन । सागर पार करे के पहिली रसदा मांगे बर रामजी हा तीन दिन सत्याग्रह म बइठ गिन ... गांधी जी हा उही सत्याग्रह के पालन जिनगी भर करिन । बंगलादेश ला जीत के मुक्त कराये के पाछू ... ओकरे मन के भाई बंधु के हाथ म सत्ता सौंप देवइ घला .. लंका विजय के पाछू विभीषण ला सत्ता सौंपे के प्रेरणा आय । हमर उदार नीति हा राम अऊ रामायण के देन आय जेला तुलसी हा चारो मुड़ा बगरइस । भारत के राष्ट्रीय चरित्र तुलसी के रामायण के सीख आय । गाँव के देश भारत म जे नैतिकता के बाँचे हाबे तेहा रामायण के आदर्श शिक्षा के बदौलत आय ।
राष्ट्र नायक के मन म सत्ता प्रेम के जगा सेवा प्रेम के भावना के संचार हो जाय तो .. स्वराज्य ला सुराज बनाये के जतन माने राम राज्य के परिकल्पना साकार हो सकत हे । तुलसी हा तो यहू ला बता चुके हे –
रामचंद्र मुख चंद्रमा चित चकोर जब होइ
राम राज्य कारज सुभग समय सुहावन सोइ ||
तुलसी के रामराज्य के भूमिका जनता बनाये रिहिस । गाँव गँवई जंगल पहाड़ ले शुरू होके अयोध्या नगर म पूरा होय रिहिस । श्रीराम के करूणा उदारता .. सीता के त्याग .. भरत के प्रेम .. लक्ष्मण के शौर्य .. शत्रुघ्न के समर्पण .. हनुमान के सेवा .. इही रामराज्य के आधार आय ।
उत्साहित करे के बात ये आय के .. गूढ़ अऊ उदात्तचरिता कैकेई .. असीम त्याग मूर्ति सुमित्रा अऊ अनुपम प्रेम वात्सल्य सरूपा कौशल्या ले हमर देश के महतारी मन बहुत सीखे हाबे । श्रुतिकीर्ति के युक्ति .. उर्मिला के शक्ति अऊ मांडवी के भक्ति के अनुकरण करके हमरो बेटी महतारी मन नारी अस्मिता ला बँचा के कीर्ति के अधिकारिणी बनिन हे ... हमर इतिहास म येकर कतको गवाही भरे हे । तुलसी हा जे रामायण के गायन करे हे तेहा .. आदर्श आचार सँहिता आवय जेहा अऊ कहाँचो नइ मिल सकय । सरी दुनिया ला सदाचार , भाईचारा , प्रेम , सौहार्द्य के शिक्षा देथे तुलसी के रामचरित मानस हा । तभे तो ओकर सन्मान म कहे जाथे –
भारी भवसागर से उतारते कवन पार
जो पै यह रामायण तुलसी ना गावतो
गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .
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