Monday 23 September 2024

गाँव के बेटी रानी - कहानी -------------------

 गाँव के बेटी रानी - कहानी

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रानी बहुत ही खूबसूरत रहिस हे। नाव रानी रहिस हे वइसने राजकुमारी असन.दिखय। नाक नक्सा परी कस रहिस हे। रानी के बाबू ओखर जनम के पहिली ही ट्रैक्टर ले गिरके मर गे। परेमा याने रानी के माँ पहिली ले थोरिक कमती बुद्धी के रहिस हे बाद म सदमा के कारण थोरिक झकली असन होगे। ओखर देखभाल गाँव  के मन.ही करत रहिन है। परेमा अपन बेटी ल बहुत मया करय। गोबर कचरा करना अउ साग भाजी टोरे के अलावा कुछू दूसर काम ओला आवत नइ रहिस हे।


रानी ह अउ लइकामन संग आँगनबाड़ी जाये ले लगगे। बाद म स्कूल भी गीस। देखत देखत पाँचवी पास होगे। महतारी के मया म काम बूता नइ करय। ओखर संग म अरुण कुमार शिक्षक के बेटी घलो पढ़त रहिस हे। परेमा ह बेटी के स्कूल म जाके बइठे राहय। छुट्टी होवय त संग संग म रेंगत आवय। घर आगे आगी सिपचावय अउ रांधय। परेमा के मन राहय त बढ़िया साग रांधय नइ त पेज पी के रहि जायें। अरुण कुमार के बेटी नीरा बने संगवारी बन गे रहिस हे। पांचवी के बाद दूसर गांव म पढ़े बर जाना रहिस हे। गाँव म पाँचवी तक ही रहिस हे।


परेमा ह सांझ कर ककरो घर.दूवारी ल बाहर देवय ककरो घर के साग भाजी सुधार देवय त कुछ जिनिस नइते पइसा मिल जाये। ओकर जेन भी जरुरत होतिस तेन ल गाँव के मन पूरा कर देवंय। रानी के फीस ,पुस्तक कापी अउ डरेस के जुगाड़ अरुण कुमार कर देवय। गांव के मन घलो रानी ल कपड़ा दे देवंय। अब रानी दूसर गाँव म पढ़े बर जात रहिस हे।


परेमा ह बेटी के पाछू पाछू ओकर स्कूल चल देवय।छुट्टी के होलत ले बइठे राहय। ओ ह बेटी ल छोड़बे नइ करय। एक दिन गौटिया कहिथे--" परेमा तोर बेटी बाढ़त हावय, बही का़ही कुछु कर अउ पइसा जमा कर, बेटी के बिहाल करबे के नहीं? दिनभर किंजरत रहिथस। मोर घर के बूता ल करे कर मैं पइसा देहूं।" परेमा ह " हाँ" कहिथे फेर काम म कभू कभू जाये। बेटी ल छोड़बे.नइ करय। अब रानी दसवीं पास होगे। दिन के स्कूल म खाना खावय अउ रात के भरोसा नइ राहय। रानी समझदार होगे रहिस हे। रात के कभू रांधय तेन ल मोला भूख नइ लागत हे कहिके माँ के बिहनिया खाये बर रख देवय। माँ ल बिहनिया खवा देवय। माँ ह ओला खाले कहिके बइठे राहय त रानी काहय "मैं स्कूल म खाहूं।" कभू कभू स्कूल के मन ल दया आवय त परेमा ल घलो खाना दे देवंय।


बाढ़त रानी के चिंता अब सब गांव के मन ल होय ले धर लीस। एक दिन गौंटिया ह अरुण कुमार ल कहिथे --" मास्टर जी अब रानी के बिहाव करना हे। बेटी बाढ़त हावय। गाँव के बेटी तो हमरे बेटी आये। जमाना ठीक नइये , माँ ह तो बही आये कुछु समझय नहीं।" 


अरुण गुरुजी कहिस -" नहीं दाऊ, अभी रानी छोटे हावय। ओला पढ़न देथन। रानी बहुत होशियार हावय। ओला बारहवीं करन देथन। ओखर पढ़ाई के खर्चा ल तो मैं देवत हावंव। ओखर बर कपड़ा लत्ता के कमी नइये गाँव के मन देवत रहिथें।"


दाऊ कहिस -"हाँ, ये बात तो सही हावय,ठीक कहिथस मास्टर जी रानी ल बारहवीं करन दे। दूसर डाहर लड़खा गोजत रहिथन।"


अरुण गुरुजी कहिस--" हाँ, दाऊ बने बात आये। बेटी के जात येला जादा दिन ले नइ राखन, अब ये हर हमर गाँव के जिम्मेदारी आये। अब येला मोर घर में ही राखहूं। नीरा संग रहिही अउ मास्टरिन संग काम बूता सिखही। जमाना ल देखत हुरे ये अब रात के ही अपन माँ संग घर जाही।"


देखत देखत रानी बारहवीं पास होगे। मास्टर जी ह रानी के गोठ ल कइ झन तीर गोठियाये रहिस हे। रानी के रिजल्ट आथे अउ ओखर पहला आये के समाचार सब जगह बगर.जथे। एक दूहर.गांव के मास्टर.ह अरुण कुमार जी तीर आथे अउ कहिथे--" देख गुरुजी मैं ह रानी के चर्चा सुनज हावंव, मैं रगनी ल बहु बनाना चाहथंव। जातपात ल मैं.नइ जानंव। मोर बेटा इंजिनियर हावय अउ निको म काम करथे।  मोला अइसने बेटी चाही जेन ह बेटी के रुप म रहि के हमर चर के बेटी के कमी ल पूरि खर देवय। तूमन सोच लेवव। बिहाव के खर्चा मोर डाहर ले रहिही नहीं त मैं अइसने बेटी ल बिदा करके लेग जहुं। भइगे मोला बहु बेटी के रूप म रानी चाही।"


अरुण कुमार ह ओला ले के दाऊ घर गीस। गाँव के चार झन ल अउ बलाये गीस। सब झन तय कर लीन के रानी के बिहाव धूमधाम से होही। अरुणकुमार ह कहिथे के मैं ह रानी के कन्यादान करहूं। सब खुश होगें। परेमा ल बलाये गीस अउ सब बात ओला बताये गीस। परेमा के रोना शुरु होगे --" मैं गरीबिन कइसे बिहाव कर सकथंव। अतेक बढ़हर घर म मोर बेटी कइसे रहिही? " दाऊ कहिस --" सरि दिन तो मास्टर घर म रहिके सीख गे हावय। बिहाव ल गाँव के सब झन मिल बांट के करबोन।"  


ये बात ह हवा कस बगर गे। सांझ कन सब गुड़ी म सकलागें। रानी के बिहिव बर सब कुछु न कुछु देय बर तइयार होंगे। दाऊ कहिस --" हमर गाँव के " रामकोठी" म  बीस गाड़ा धान सकलाये हावय। असो के छेरछेरा के सकेला ल हमन रानी के नाव ले करबो। ये सकेला रामकोठी म जाही। इही धान के पइसा ले रानी के बिहाव होही। ये रामकोठी के आसिस आये रानी बेटी ल।" सब झन खुश होगें। अभी तो जेठ के महिना चलत हावय। पूस के आत ले हम सब झन तइयारी घलो करबो अउ रानी ल कुछु सीखो घलो देबो। अभी तो घर गिरहस्थी ल जानय नहीं। इही सोच के संग बइठक उसल जथे।


रानी ल मितानिन ह सिलाई सिखोवत रहिस हे। गाँव के मन अपन आपन कपड़ा धागा लान के देवत रहिन हे। छः महिना म बने सीख गे। अब रोज बिहनिया परेमा दूनो अपन घर के बुता करके मास्टर जी घल आ जायें। परेमा ह घर बुता करय अउ रानी ह खाना बनावय। मास्टरिन ह कुछु न कुछु नवा नवा सिखोवय। सब झन संग म खाना खावंय। बरतन साफ करके परेमा ह दूसर डाहर चल देवय। रानी ह सिलाई सीखे बर चल देवय। कुछ लइकामन ल एक घर म सकेल के पढ़ावत भी रहिस हे। चार पांच बजे तक रानी ह आवय। परेमा अपनी बेटी तीर दू तीन चक्कर लगावय। रानी ओला अब नाव ले ले के सबके घर भेजय जेमा थोर बहुत काम करय। सांझ कन बर साग भाजी चाऊर दार मिल जाये। परेमा कोनो मेर ले लकड़ी घलो सकेल लेवय नइ मिलय त मांग लेवय अउ सांझ कन घर म रांधय। रानी ह मास्टर घर रांध के अपन घर आ जाय। दूनो माँ बेटी घर म रांध खा के गोठियावत सुत जांय। रात के भी रानी ल अपन संग म सुतावय। 


देखत देखत छेरछेरा के तिहार लकठियागे। अगहन भर बिरस्पत के पूजा म रास के कोठी म रखे म समय ह पहागे। एक महिना पहिली ले सब रानी के बिहाव के तइयारी म लगगे। का देना हे येला सब आपस म तय कर लीन। 


छेरछेरा के दिन सबके दूवारी लिपाये रहिस हे। सब घर सियान मन.दान करे बर धान ल निकाल के रखे रहिन हे। नहा के तइयार होगे दाऊ के अगवानी म गाँव के मन छेरछेरा माँगे बर निकलिन। सबले पहिली तो गौटनिन ह दिस। एक बोरा धान। मास्टर घर मास्टरिन ह ग्यारह ठन लुगरा दिन अउ एक दौंरी धान दिस। कुछ मन तो दार ,मसरी,वचन म दिन। मंझनिया तक तो गंज अकन जिनिस सकला गे। पइसा घलो सकला गे। सब झन तय करे रहिन हे के कोन काये दिही तेकर घोसना कर दिन। दाऊ घर गौटनिन ह गला के हार दिस। छेरछेरा म अइसना सकेला तो कोनो देखे नइ रहिस हे। सांझ कन सब दाऊ घर बइठ के चाय पीन। अउ तय करिन के अक्ती के भांवर परही। ये सब बात ले अंजान रहिस हे परेमा ह। रानी कुछ कुछ समझत तो रहिस हे फेर अकबका गे रहिस हे " काये होवत हे?"


रानी ह छै महिना म अन ब्लाऊज मन सिल डरे रहिस हे । सब झन पहिली ले ओला लुगरा ल दे दे रहिन हे सब ल ताइयार करत गीस अउ मास्टरिन ह एक कुरिया म सकेलत गीस। टिकावन बर अपन बिहाव के हंडा ल निकाले रहिस हे। ओला उजरा दिस। 


अक्ती के एक सप्ताह पहिली ले सब तइआरी सुरु कर दिन। घर ल जेवनासा बना दिन अउ परसार म बिहाव रखिन। परसार बहुत बड़े रहिस हे। उहां पांच छै ठन कुरिया भी रहिस हे। गाँवे के मनखे मन के कइ झन रिस्तेदार मन घलो आ गे रहिन हे। ये अनोखा बिहाव के चर्चा चालो डाहर होगे रहिस हे। सब टिकावन धर के देखे बर आये रहिन हे। हर कोई रानी के मइके वाला बनना चाहत रहिस हे। कंड़रा घर ले पर्रा बिंझना आगे। मड़वा बर बांस आगे। कुम्हार घर ले नांदी दीया करसा आगे। नाऊ घर से आम के पाना पतरी आगे। बड़ाई ह मंगलोहन बना दिस। एक टुकनी लाई आगे।चुल्हा बनगे ,चूल बनगे। बिहनिया ले तेल हरदी चढ़ाये के शुरु करिन। गांव के सात झन बेटी मन तेल चघाये बर आगें। दाऊ के बहिनी बिहनिया पहुंचगे अउ अपन भौजाई ल पुरोवत रहिस हे, "मोला नइ बलायेस?" मैं फूफू आंव। परेमा ह चुप देखत रहिस हे। ओला ये तो समझ म आवत रहिस हे के रानी के बिहाव होवत हे बाकी सब कुछ सून्य रहिस हे। अब तो परेमा मड़वा तीर म बइठ गे। चुपचाप सब देखत रहिस। अब तो रानी के फूफू घलो रिस्ता म बंधागे। सब झन हरदी चघाये म लगे रहिन हे। तीन बजे बारात आ गे। दाऊ के घर म जेवनासा रहिह हे सब उहें रहिन। बढ़िया फ्रूट सलाद अइरसा, जलेबी भजिया खाये बर रखे रहिन हे। मास्टर अरुण कुमार ह सेवा म लगे रहिस हे। समधी जी ह ये सब ल देख के बार बार काहय काबर अतेक करे हव?


सब नास्ता करके आराम करत रहिन.हे। येतिबर रानी के नहडोरी होवत रहिस हे। नहा के चुकचुक ले पिंवरी लुगरा पहिर के तइयार होइस। पिंवरी ल बड़े साव घर दे रहिन हे। बढ़िया गोटा लगे रहिस हे। जेवर पहिर के तइयार होगे। दाऊ घर के नेकलेस, मास्टरिन घर के पायजेब,  छोटे गौंटिया घर के कान के झुमका, महराजिन घर के हाथ के चाँदी के कड़ा पहिर के रानी ह राजकुमारी असन दिखत रहिस हे। 


पूरा गाँव के खाना दाऊ घर ही रहिस हे। ककरो घर के साग भाजी त ककरो घर के दार, हरदी ,धनिया, सरसों ,मिरचा तक गाँव के रहिस हे सिरिफ नून ल ही खरीदे रहिन हे। सब खाना खा के बराती मन के सुवागत म लगे रहिन हे। दाऊ ह समधी भेट करिस ओकर बाद गाँव के मन भेट करिन। बहुत झन.नवजवान लड़का के साथी म ये अनोखा बिहाव ल देगे बर आये रहिन हे। अतेक इंतजाम देख के सब अचरज म रहिन हे। बराती मध सत्तर झन रहिन.होही।


समधी बलाव होइस। समधी मन डाहर के जेवर कपड़ा चढ़ाव म अइस। सब देखत रहि गें। नेकलेस, कान ए टाप,अंगुठी, कंगन, करधन, पायजेब आये रहिस हे। सुग्घर बनारसी लुगरा आये रहिस हे। पहिरा के रानी ल मड़वा म लानिन त सब देखय रहिगें। गोरी नारी सुग्घर रानी के सुंदरई अउ बाढ़ गे रहिस हे। वर बुलाव होइस। दूनों झन मड़वा म बइठ गें। बिहाव के मंत्र पढ़े गीस। भांवर बर उठिन त सब देखत रहिगें। राम सीता कस लगत रहिन हें। भांवर सुरु होइस। अंजली भरे बर सारा बलइन त कइ झन लड़का मन आगे।.महराजिन के बेटि कहिथे " मै भरत हंव जी, तूमन सब झन मोर कांध म हाथ रखे राहव। " वइसने करिन। लड़का मन एक के बाद कंधा म हाथ रखत लाइन लगा लीन। अरे बीह झन लड़का खड़े रहिन हे। रान के बरोबर के गांव के सब लड़का भाई बन के खड़े होगें। बराती मन खड़े होगे देखे बर। हर फेरा के बाद लाई भरत जायें अउ विछोव ल सुरता करके उदास होवत जायें। रानी ल कभू लड़का मन संग हंसी मजाक करत कोई नइ रहिन हे, आज सब भाई बनके खड़े हावय। माँग भराये के बाद रानी ल लगिस के अब गाँव छूट जही। ओकर आंखी म आँसू आ गे। फूफू दाई कहिथे " तोर मइके नइ छूटय बेटी झन रो। दूरिहा नइ गेस, तीर म हावस सब तोर ले मिले बर जाहीं।"


टिकावन म दाऊ घर के हंडा राहय त बड़े साव घर के कोपरा, महराज ह पचहर देथे। गांव भर के मन अपन बिहाव के टिकावन में के जुन्ना बरतन ल रानी ल चिन्हा समझ के देथें।गाँव म सगाये मनखे मन भी टिकावन टिकथें। छेरछेरा म आये नगदी अउ मड़वा म आये.नगदी ल मिला के दू लाख हो जथे। मास्टर जी ह समधी ल देथे त समधी ह कहिथे " मैं ये पाइसा ल नइ रखंव येला रानी के नाव म खाता खोल के जमा कर दव। वक्त जरुरत म काम आही। अतेक बरतन ल हमन काये करबो समधी जी। हमला तो बेटी भर चाही।" दाऊ ह कहिथे " ये हमर गा्व के मन के मया आये। येला तो लेगे बर परही।"  सब रात भर गोठियावत रहिथें। तीन बजे राय के बिदा के तइयारी होथे। चाऋ बजे बेटी बिदा हो जथे। गांव भर म सन्नाटा छा जथे।


बिहाव पूरा हो जथे। ओ मन ल देवता के पांव परे बर लेखथें। ओकर बाद परसार के बर के रूख के पांव परवाथें। दाऊ कहिथे। " देख बेटी ये रूख ल देख ये गाँव ह पूरा रूख आये जेकर छांव म तंय पले बढ़े हस. येला कभू भुलाबे झन। अइसने कइ ठन रुख तइयार करबे,अउ अपन जीवन ल बर के रुख सरिख बनाबे जेकर छाया म कइ झन राहंय।"


रात के सब खाये बर बइठथें। उही बेरा म परेमा ह उठ के रानी ल खोजथे। एक झन ह ओला रानी तीर पहुंचा देथे। रात के फेर उही तीर म सुत जथे। रानी घलो खाना खा के थोरिक देर सुत जथे। परेमा भीड़ म रानी ल देखय भर ,तीर म जादा देर नइ राहय। बिहनिया बिदा हो जथे।


परेमा बिहनिया उठथे त बिदा होये के बाद म  कहिथे। मैं कइसे जाहुं।"  तै अभी सुत बिहनिया बताबो " कहिथे गौटनिन ह। परेमा अपन घर चल देथे। घर ल लीप बहार के दाऊ घर आथे। दाऊ ल कहिथे --" कोन मेर हावय रानी के घर ह? मोला अमरा दे। ओकर संग म रहिहूं।" गौटनिन निकलथे अउ कहिथे -"बही रानी के बिहाव होगे हावय अब ओ ह अपन ससुरार चल दिस। ये गाँव तोर ससुरार आये।तैं इहां रहिथस न वइसने रानी अब अपन ससुरार म रहिही। तीजा म ओला लानबो।" 


परेमा खड़े होके चुप सोचत रहिथे फेर कहिथे -" त मैं कहां जांव?"  गौटनिन कहिस " परेमा तैं मोर घर अउ मास्टरिन घर बुता कर अउ खाना खा। रात कन अपन घर म सुते बर जा। काबर के ओ ह रानी के माइके आये। बने लीप बहार के घर ल साफ रख। परेमा धारन ल धरे खड़े रहिस।गौटनिन अपन बुता म लगेगे। गाँव के सगा मन बहुरगें। सबके मुंह म एके बात अइसना बिहाव तो जिनगी म न सुने रहेन न देखे रहेन। रानी अपन गाँव घर के सुरता ले के अपन घर चल दिस। छेरछेरा तिहार के महिमा ल सोचत सोचत रानी बिदा होगे।

सुधा वर्मा

12/1/2014 म देशबंधु म प्रकाशित

गाँव के बेटी रानी - कहानी -------------------

 गाँव के बेटी रानी - कहानी

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रानी बहुत ही खूबसूरत रहिस हे। नाव रानी रहिस हे वइसने राजकुमारी असन.दिखय। नाक नक्सा परी कस रहिस हे। रानी के बाबू ओखर जनम के पहिली ही ट्रैक्टर ले गिरके मर गे। परेमा याने रानी के माँ पहिली ले थोरिक कमती बुद्धी के रहिस हे बाद म सदमा के कारण थोरिक झकली असन होगे। ओखर देखभाल गाँव  के मन.ही करत रहिन है। परेमा अपन बेटी ल बहुत मया करय। गोबर कचरा करना अउ साग भाजी टोरे के अलावा कुछू दूसर काम ओला आवत नइ रहिस हे।


रानी ह अउ लइकामन संग आँगनबाड़ी जाये ले लगगे। बाद म स्कूल भी गीस। देखत देखत पाँचवी पास होगे। महतारी के मया म काम बूता नइ करय। ओखर संग म अरुण कुमार शिक्षक के बेटी घलो पढ़त रहिस हे। परेमा ह बेटी के स्कूल म जाके बइठे राहय। छुट्टी होवय त संग संग म रेंगत आवय। घर आगे आगी सिपचावय अउ रांधय। परेमा के मन राहय त बढ़िया साग रांधय नइ त पेज पी के रहि जायें। अरुण कुमार के बेटी नीरा बने संगवारी बन गे रहिस हे। पांचवी के बाद दूसर गांव म पढ़े बर जाना रहिस हे। गाँव म पाँचवी तक ही रहिस हे।


परेमा ह सांझ कर ककरो घर.दूवारी ल बाहर देवय ककरो घर के साग भाजी सुधार देवय त कुछ जिनिस नइते पइसा मिल जाये। ओकर जेन भी जरुरत होतिस तेन ल गाँव के मन पूरा कर देवंय। रानी के फीस ,पुस्तक कापी अउ डरेस के जुगाड़ अरुण कुमार कर देवय। गांव के मन घलो रानी ल कपड़ा दे देवंय। अब रानी दूसर गाँव म पढ़े बर जात रहिस हे।


परेमा ह बेटी के पाछू पाछू ओकर स्कूल चल देवय।छुट्टी के होलत ले बइठे राहय। ओ ह बेटी ल छोड़बे नइ करय। एक दिन गौटिया कहिथे--" परेमा तोर बेटी बाढ़त हावय, बही का़ही कुछु कर अउ पइसा जमा कर, बेटी के बिहाल करबे के नहीं? दिनभर किंजरत रहिथस। मोर घर के बूता ल करे कर मैं पइसा देहूं।" परेमा ह " हाँ" कहिथे फेर काम म कभू कभू जाये। बेटी ल छोड़बे.नइ करय। अब रानी दसवीं पास होगे। दिन के स्कूल म खाना खावय अउ रात के भरोसा नइ राहय। रानी समझदार होगे रहिस हे। रात के कभू रांधय तेन ल मोला भूख नइ लागत हे कहिके माँ के बिहनिया खाये बर रख देवय। माँ ल बिहनिया खवा देवय। माँ ह ओला खाले कहिके बइठे राहय त रानी काहय "मैं स्कूल म खाहूं।" कभू कभू स्कूल के मन ल दया आवय त परेमा ल घलो खाना दे देवंय।


बाढ़त रानी के चिंता अब सब गांव के मन ल होय ले धर लीस। एक दिन गौंटिया ह अरुण कुमार ल कहिथे --" मास्टर जी अब रानी के बिहाव करना हे। बेटी बाढ़त हावय। गाँव के बेटी तो हमरे बेटी आये। जमाना ठीक नइये , माँ ह तो बही आये कुछु समझय नहीं।" 


अरुण गुरुजी कहिस -" नहीं दाऊ, अभी रानी छोटे हावय। ओला पढ़न देथन। रानी बहुत होशियार हावय। ओला बारहवीं करन देथन। ओखर पढ़ाई के खर्चा ल तो मैं देवत हावंव। ओखर बर कपड़ा लत्ता के कमी नइये गाँव के मन देवत रहिथें।"


दाऊ कहिस -"हाँ, ये बात तो सही हावय,ठीक कहिथस मास्टर जी रानी ल बारहवीं करन दे। दूसर डाहर लड़खा गोजत रहिथन।"


अरुण गुरुजी कहिस--" हाँ, दाऊ बने बात आये। बेटी के जात येला जादा दिन ले नइ राखन, अब ये हर हमर गाँव के जिम्मेदारी आये। अब येला मोर घर में ही राखहूं। नीरा संग रहिही अउ मास्टरिन संग काम बूता सिखही। जमाना ल देखत हुरे ये अब रात के ही अपन माँ संग घर जाही।"


देखत देखत रानी बारहवीं पास होगे। मास्टर जी ह रानी के गोठ ल कइ झन तीर गोठियाये रहिस हे। रानी के रिजल्ट आथे अउ ओखर पहला आये के समाचार सब जगह बगर.जथे। एक दूहर.गांव के मास्टर.ह अरुण कुमार जी तीर आथे अउ कहिथे--" देख गुरुजी मैं ह रानी के चर्चा सुनज हावंव, मैं रगनी ल बहु बनाना चाहथंव। जातपात ल मैं.नइ जानंव। मोर बेटा इंजिनियर हावय अउ निको म काम करथे।  मोला अइसने बेटी चाही जेन ह बेटी के रुप म रहि के हमर चर के बेटी के कमी ल पूरि खर देवय। तूमन सोच लेवव। बिहाव के खर्चा मोर डाहर ले रहिही नहीं त मैं अइसने बेटी ल बिदा करके लेग जहुं। भइगे मोला बहु बेटी के रूप म रानी चाही।"


अरुण कुमार ह ओला ले के दाऊ घर गीस। गाँव के चार झन ल अउ बलाये गीस। सब झन तय कर लीन के रानी के बिहाव धूमधाम से होही। अरुणकुमार ह कहिथे के मैं ह रानी के कन्यादान करहूं। सब खुश होगें। परेमा ल बलाये गीस अउ सब बात ओला बताये गीस। परेमा के रोना शुरु होगे --" मैं गरीबिन कइसे बिहाव कर सकथंव। अतेक बढ़हर घर म मोर बेटी कइसे रहिही? " दाऊ कहिस --" सरि दिन तो मास्टर घर म रहिके सीख गे हावय। बिहाव ल गाँव के सब झन मिल बांट के करबोन।"  


ये बात ह हवा कस बगर गे। सांझ कन सब गुड़ी म सकलागें। रानी के बिहिव बर सब कुछु न कुछु देय बर तइयार होंगे। दाऊ कहिस --" हमर गाँव के " रामकोठी" म  बीस गाड़ा धान सकलाये हावय। असो के छेरछेरा के सकेला ल हमन रानी के नाव ले करबो। ये सकेला रामकोठी म जाही। इही धान के पइसा ले रानी के बिहाव होही। ये रामकोठी के आसिस आये रानी बेटी ल।" सब झन खुश होगें। अभी तो जेठ के महिना चलत हावय। पूस के आत ले हम सब झन तइयारी घलो करबो अउ रानी ल कुछु सीखो घलो देबो। अभी तो घर गिरहस्थी ल जानय नहीं। इही सोच के संग बइठक उसल जथे।


रानी ल मितानिन ह सिलाई सिखोवत रहिस हे। गाँव के मन अपन आपन कपड़ा धागा लान के देवत रहिन हे। छः महिना म बने सीख गे। अब रोज बिहनिया परेमा दूनो अपन घर के बुता करके मास्टर जी घल आ जायें। परेमा ह घर बुता करय अउ रानी ह खाना बनावय। मास्टरिन ह कुछु न कुछु नवा नवा सिखोवय। सब झन संग म खाना खावंय। बरतन साफ करके परेमा ह दूसर डाहर चल देवय। रानी ह सिलाई सीखे बर चल देवय। कुछ लइकामन ल एक घर म सकेल के पढ़ावत भी रहिस हे। चार पांच बजे तक रानी ह आवय। परेमा अपनी बेटी तीर दू तीन चक्कर लगावय। रानी ओला अब नाव ले ले के सबके घर भेजय जेमा थोर बहुत काम करय। सांझ कन बर साग भाजी चाऊर दार मिल जाये। परेमा कोनो मेर ले लकड़ी घलो सकेल लेवय नइ मिलय त मांग लेवय अउ सांझ कन घर म रांधय। रानी ह मास्टर घर रांध के अपन घर आ जाय। दूनो माँ बेटी घर म रांध खा के गोठियावत सुत जांय। रात के भी रानी ल अपन संग म सुतावय। 


देखत देखत छेरछेरा के तिहार लकठियागे। अगहन भर बिरस्पत के पूजा म रास के कोठी म रखे म समय ह पहागे। एक महिना पहिली ले सब रानी के बिहाव के तइयारी म लगगे। का देना हे येला सब आपस म तय कर लीन। 


छेरछेरा के दिन सबके दूवारी लिपाये रहिस हे। सब घर सियान मन.दान करे बर धान ल निकाल के रखे रहिन हे। नहा के तइयार होगे दाऊ के अगवानी म गाँव के मन छेरछेरा माँगे बर निकलिन। सबले पहिली तो गौटनिन ह दिस। एक बोरा धान। मास्टर घर मास्टरिन ह ग्यारह ठन लुगरा दिन अउ एक दौंरी धान दिस। कुछ मन तो दार ,मसरी,वचन म दिन। मंझनिया तक तो गंज अकन जिनिस सकला गे। पइसा घलो सकला गे। सब झन तय करे रहिन हे के कोन काये दिही तेकर घोसना कर दिन। दाऊ घर गौटनिन ह गला के हार दिस। छेरछेरा म अइसना सकेला तो कोनो देखे नइ रहिस हे। सांझ कन सब दाऊ घर बइठ के चाय पीन। अउ तय करिन के अक्ती के भांवर परही। ये सब बात ले अंजान रहिस हे परेमा ह। रानी कुछ कुछ समझत तो रहिस हे फेर अकबका गे रहिस हे " काये होवत हे?"


रानी ह छै महिना म अन ब्लाऊज मन सिल डरे रहिस हे । सब झन पहिली ले ओला लुगरा ल दे दे रहिन हे सब ल ताइयार करत गीस अउ मास्टरिन ह एक कुरिया म सकेलत गीस। टिकावन बर अपन बिहाव के हंडा ल निकाले रहिस हे। ओला उजरा दिस। 


अक्ती के एक सप्ताह पहिली ले सब तइआरी सुरु कर दिन। घर ल जेवनासा बना दिन अउ परसार म बिहाव रखिन। परसार बहुत बड़े रहिस हे। उहां पांच छै ठन कुरिया भी रहिस हे। गाँवे के मनखे मन के कइ झन रिस्तेदार मन घलो आ गे रहिन हे। ये अनोखा बिहाव के चर्चा चालो डाहर होगे रहिस हे। सब टिकावन धर के देखे बर आये रहिन हे। हर कोई रानी के मइके वाला बनना चाहत रहिस हे। कंड़रा घर ले पर्रा बिंझना आगे। मड़वा बर बांस आगे। कुम्हार घर ले नांदी दीया करसा आगे। नाऊ घर से आम के पाना पतरी आगे। बड़ाई ह मंगलोहन बना दिस। एक टुकनी लाई आगे।चुल्हा बनगे ,चूल बनगे। बिहनिया ले तेल हरदी चढ़ाये के शुरु करिन। गांव के सात झन बेटी मन तेल चघाये बर आगें। दाऊ के बहिनी बिहनिया पहुंचगे अउ अपन भौजाई ल पुरोवत रहिस हे, "मोला नइ बलायेस?" मैं फूफू आंव। परेमा ह चुप देखत रहिस हे। ओला ये तो समझ म आवत रहिस हे के रानी के बिहाव होवत हे बाकी सब कुछ सून्य रहिस हे। अब तो परेमा मड़वा तीर म बइठ गे। चुपचाप सब देखत रहिस। अब तो रानी के फूफू घलो रिस्ता म बंधागे। सब झन हरदी चघाये म लगे रहिन हे। तीन बजे बारात आ गे। दाऊ के घर म जेवनासा रहिह हे सब उहें रहिन। बढ़िया फ्रूट सलाद अइरसा, जलेबी भजिया खाये बर रखे रहिन हे। मास्टर अरुण कुमार ह सेवा म लगे रहिस हे। समधी जी ह ये सब ल देख के बार बार काहय काबर अतेक करे हव?


सब नास्ता करके आराम करत रहिन.हे। येतिबर रानी के नहडोरी होवत रहिस हे। नहा के चुकचुक ले पिंवरी लुगरा पहिर के तइयार होइस। पिंवरी ल बड़े साव घर दे रहिन हे। बढ़िया गोटा लगे रहिस हे। जेवर पहिर के तइयार होगे। दाऊ घर के नेकलेस, मास्टरिन घर के पायजेब,  छोटे गौंटिया घर के कान के झुमका, महराजिन घर के हाथ के चाँदी के कड़ा पहिर के रानी ह राजकुमारी असन दिखत रहिस हे। 


पूरा गाँव के खाना दाऊ घर ही रहिस हे। ककरो घर के साग भाजी त ककरो घर के दार, हरदी ,धनिया, सरसों ,मिरचा तक गाँव के रहिस हे सिरिफ नून ल ही खरीदे रहिन हे। सब खाना खा के बराती मन के सुवागत म लगे रहिन हे। दाऊ ह समधी भेट करिस ओकर बाद गाँव के मन भेट करिन। बहुत झन.नवजवान लड़का के साथी म ये अनोखा बिहाव ल देगे बर आये रहिन हे। अतेक इंतजाम देख के सब अचरज म रहिन हे। बराती मध सत्तर झन रहिन.होही।


समधी बलाव होइस। समधी मन डाहर के जेवर कपड़ा चढ़ाव म अइस। सब देखत रहि गें। नेकलेस, कान ए टाप,अंगुठी, कंगन, करधन, पायजेब आये रहिस हे। सुग्घर बनारसी लुगरा आये रहिस हे। पहिरा के रानी ल मड़वा म लानिन त सब देखय रहिगें। गोरी नारी सुग्घर रानी के सुंदरई अउ बाढ़ गे रहिस हे। वर बुलाव होइस। दूनों झन मड़वा म बइठ गें। बिहाव के मंत्र पढ़े गीस। भांवर बर उठिन त सब देखत रहिगें। राम सीता कस लगत रहिन हें। भांवर सुरु होइस। अंजली भरे बर सारा बलइन त कइ झन लड़का मन आगे।.महराजिन के बेटि कहिथे " मै भरत हंव जी, तूमन सब झन मोर कांध म हाथ रखे राहव। " वइसने करिन। लड़का मन एक के बाद कंधा म हाथ रखत लाइन लगा लीन। अरे बीह झन लड़का खड़े रहिन हे। रान के बरोबर के गांव के सब लड़का भाई बन के खड़े होगें। बराती मन खड़े होगे देखे बर। हर फेरा के बाद लाई भरत जायें अउ विछोव ल सुरता करके उदास होवत जायें। रानी ल कभू लड़का मन संग हंसी मजाक करत कोई नइ रहिन हे, आज सब भाई बनके खड़े हावय। माँग भराये के बाद रानी ल लगिस के अब गाँव छूट जही। ओकर आंखी म आँसू आ गे। फूफू दाई कहिथे " तोर मइके नइ छूटय बेटी झन रो। दूरिहा नइ गेस, तीर म हावस सब तोर ले मिले बर जाहीं।"


टिकावन म दाऊ घर के हंडा राहय त बड़े साव घर के कोपरा, महराज ह पचहर देथे। गांव भर के मन अपन बिहाव के टिकावन में के जुन्ना बरतन ल रानी ल चिन्हा समझ के देथें।गाँव म सगाये मनखे मन भी टिकावन टिकथें। छेरछेरा म आये नगदी अउ मड़वा म आये.नगदी ल मिला के दू लाख हो जथे। मास्टर जी ह समधी ल देथे त समधी ह कहिथे " मैं ये पाइसा ल नइ रखंव येला रानी के नाव म खाता खोल के जमा कर दव। वक्त जरुरत म काम आही। अतेक बरतन ल हमन काये करबो समधी जी। हमला तो बेटी भर चाही।" दाऊ ह कहिथे " ये हमर गा्व के मन के मया आये। येला तो लेगे बर परही।"  सब रात भर गोठियावत रहिथें। तीन बजे राय के बिदा के तइयारी होथे। चाऋ बजे बेटी बिदा हो जथे। गांव भर म सन्नाटा छा जथे।


बिहाव पूरा हो जथे। ओ मन ल देवता के पांव परे बर लेखथें। ओकर बाद परसार के बर के रूख के पांव परवाथें। दाऊ कहिथे। " देख बेटी ये रूख ल देख ये गाँव ह पूरा रूख आये जेकर छांव म तंय पले बढ़े हस. येला कभू भुलाबे झन। अइसने कइ ठन रुख तइयार करबे,अउ अपन जीवन ल बर के रुख सरिख बनाबे जेकर छाया म कइ झन राहंय।"


रात के सब खाये बर बइठथें। उही बेरा म परेमा ह उठ के रानी ल खोजथे। एक झन ह ओला रानी तीर पहुंचा देथे। रात के फेर उही तीर म सुत जथे। रानी घलो खाना खा के थोरिक देर सुत जथे। परेमा भीड़ म रानी ल देखय भर ,तीर म जादा देर नइ राहय। बिहनिया बिदा हो जथे।


परेमा बिहनिया उठथे त बिदा होये के बाद म  कहिथे। मैं कइसे जाहुं।"  तै अभी सुत बिहनिया बताबो " कहिथे गौटनिन ह। परेमा अपन घर चल देथे। घर ल लीप बहार के दाऊ घर आथे। दाऊ ल कहिथे --" कोन मेर हावय रानी के घर ह? मोला अमरा दे। ओकर संग म रहिहूं।" गौटनिन निकलथे अउ कहिथे -"बही रानी के बिहाव होगे हावय अब ओ ह अपन ससुरार चल दिस। ये गाँव तोर ससुरार आये।तैं इहां रहिथस न वइसने रानी अब अपन ससुरार म रहिही। तीजा म ओला लानबो।" 


परेमा खड़े होके चुप सोचत रहिथे फेर कहिथे -" त मैं कहां जांव?"  गौटनिन कहिस " परेमा तैं मोर घर अउ मास्टरिन घर बुता कर अउ खाना खा। रात कन अपन घर म सुते बर जा। काबर के ओ ह रानी के माइके आये। बने लीप बहार के घर ल साफ रख। परेमा धारन ल धरे खड़े रहिस।गौटनिन अपन बुता म लगेगे। गाँव के सगा मन बहुरगें। सबके मुंह म एके बात अइसना बिहाव तो जिनगी म न सुने रहेन न देखे रहेन। रानी अपन गाँव घर के सुरता ले के अपन घर चल दिस। छेरछेरा तिहार के महिमा ल सोचत सोचत रानी बिदा होगे।

सुधा वर्मा

12/1/2014 म देशबंधु म प्रकाशित

देश के आजादी मा छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन के योगदान

 देश के आजादी मा छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन के योगदान


साहित्य ल समाज के दर्पन कहे जाथे. साहित्य के माध्यम ले जुन्ना बेरा के संगे संग वर्तमान बेरा के स्थित - परिस्थिति हा मालूम होथे. साहित्य ले हमर इतिहास के जानकारी होथे ता साहित्य हा इतिहास घलो गढ़थे. बंकिम चन्द्र चटर्जी के आनंद मठ के "वंदेमातरम", श्याम लाल पार्षद के "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा", डा. मोहम्मद इकबाल के" सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा",रामप्रसाद बिस्मिल के "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है",सुभद्रा कुमारी चौहान के "खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी "जइसन कालजयी रचना हा भारतवासी मन मा जिहां आजादी बर प्रेरणा दिस ता देश खातिर अपन जान के बाजी घलो लगा दिस. भारतेंदु हरिश्चंद्र हा" भारत दुर्दशा "लिखके जनता मन मा जागृति फैलाइस. हमर छत्तीसगढ मा घलो बुधियार साहित्यकार मन हा अपन फर्ज ला सुग्घर ढंग ले निभाइन. पं सुंदर लाल शर्मा,  गिरवर दास वैष्णव,कुंज बिहारी चौबे, खूबचंद बघेल, हरि ठाकुर, केयूर भूषण,कोदू राम दलित, द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र अउ आने  बुधियार साहित्यकार मन अपन कलम के माध्यम ले जिहां जन जागरण फैलाइस ता खुद आंदोलन के अगुवाई  घलो करिन.  माधव राव सप्रे हा सन 1900 मा पेण्ड्रा ( बिलासपुर) ले एक साहित्यिक पत्रिका' छत्तीसगढ़ मित्र ' के प्रकाशन करिन ता राजनांदगांव मा त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल लाल सिंह हा सन 1909 मा सरस्वती पुस्तकालय के स्थापना करिन. येकर माध्यम ले छत्तीसगढ़ के जनता मा जागृति आइस.  असहयोग आन्दोलन के बेरा मा  छात्र मन शासकीय स्कूल के बहिष्कार करिन. अइसन स्थिति मा 5 फरवरी 1921 मा रायपुर मा एक राष्ट्रीय विद्यालय खोले गिस. विद्यालय के स्थापना खातिर माधव राव सप्रे हा सियान मन के बैठक बुलाईस. येमा स्थानीय नेता मन के संग पं. रविशंकर शुक्ल के सक्रिय सहयोग रीहिन. पं. माखनलाल चतुर्वेदी जी हा राष्ट्रीय जागरण के उद्देश्य ले कर्मवीर पत्रिका के संपादन करिन. चतुर्वेदी जी ला अंगेज सरकार हा गिरफ्तार कर लिस .12 जून 1921 मा आरोप लगा के कारावास के सजा दे दिस.ये घटना के विरोध मा बिलासपुर मा पं. रविशंकर शुक्ल के अध्यक्षता मा एक बड़का सार्वजनिक सभा होइस. येमा प्रमुख वक्ता ई. राघवेन्द्र राव रीहिन. येकर ले बिलासपुर मा अंग्रेजी शासन के विरुद्ध असंतोष पनप गे.


ता आवव‌ हमन हमर छत्तीसगढ के साहित्यकार मन के आजादी मा कइसन योगदान हे वोकर चर्चा करथन.


पं. सुंदर लाल शर्मा - छत्तीसगढ़ के गांधी नांव ले प्रसिद्ध पं. सुंदर लाल शर्मा हा हमर छत्तीसगढ मा सामाजिक अउ राजनीतिक आंदोलन के अगुवा माने जाथे. वोहा बड़का साहित्यकार के संगे संग स्वतंत्रता सेनानी रिहिस.प्रयागराज राजिम के तीर चमसूर गांव मा सन 1881 मा अवतरे शर्मा जी हा दानलीला प्रबंध काव्य लिख के प्रसिद्धि पाइस ता आजादी के आंदोलन मा घलो बढ़- चढ़ के भाग लिन. अनुसूचित जाति मन के उद्धार खातिर अब्बड़ योगदान दिस ता वोमन ला राजीव लोचन मंदिर मा प्रवेश कराके एक बड़का कारज करिस. येकर बर खुद वोकर समाज ले नंगत ताना सुने ला पड़िस.  पर वोहा हार नइ मानिस. ये कारज ला तो वोहा सन 1917 ले चालू कर दे रिहिन तभे तो जब महात्मा गांधी के छत्तीसगढ़ आना होइस ता ये काम बर वोला अपन गुरु कहिके  अब्बड़ सम्मान दिस.


शर्मा जी हा अपन राजनीतिक जीवन के शुरूआत सन 1905 ले करिन. 1906 मा वोहा सामाजिक सुधार अउ जनता मा राजनीतिक जागृति फैलाय खातिर "संमित्र मंडल" के स्थापना करिन.1907 के सूरत कांग्रेस अधिवेशन मा शर्मा जी हा भाग लिस. इहां उपद्रव के बेरा लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ला मंच मा चढ़ाय मा जउन लोगन मन के भूमिका रिहिन वोमा नवजवान शर्मा घलो अगुवा रिहिन. ये अधिवेशन मा कांग्रेस हा गरम अउ नरम दल मा बंटगे. कांग्रेस अउ देश मा मा नवा तेवर के नेता लोकमान्य बालगंगाधर तिलक,लाला लाजपतराय अउ विपिन चन्द्र पाल हा अब्बड़ लोकप्रिय नेता के रूप मा उभरिन.


रायपुर मा सतनामी आश्रम खोलिस.वोहा सतनामी भजनावली ग्रंथ के रचना करिन. शर्मा जी हा लाल-बाल-पाल युग मा सन 1910 मा राजिम मा पहली स्वदेशी दुकान लगाय के कारज करिन.  शर्मा जी हा सन 1918 मा भगवान राजीव लोचन मंदिर राजिम मा कहार मन के प्रवेश के आंदोलन चलाइस.


सन 1920 मा असहयोग आंदोलन के बेरा मा हमर छत्तीसगढ मा कंडेल सत्याग्रह चलिस. येकर अगुवाई शर्मा जी, नारायण लाल मेघावाले अउ छोटे लाल श्रीवास्तव हा करिन.  किसान मन नहर जल कर ले नंगत परेसान रिहिस. शर्मा जी के अब्बड़ प्रयास ले 20 दिसंबर 1920 मा गांधीजी के रायपुर,धमतरी अउ कुरूद आना होइस. गांधीजी के पहली बार छत्तीसगढ़ आय ले इहां के जनता मा अब्बड़ उछाह छमागे. अइसन बेरा मा अंग्रेजी शासन ला झुके ला पड़िस अउ किसान मन के नहर जल कर हा माफ कर दे गिस.

21 जनवरी 1922 मा सिहावा नगरी मा जंगल सत्याग्रह होइस. लकड़ी काट के ये सत्याग्रह के शुरूआत करे गिस.येकर मौखिक सूचना वन विभाग के स्थानीय अधिकारी मन ला दे गिस.

येकर अगुवाई शर्मा जी अउ नारायण लाल मेघावाले करिन. इंहा वन विभाग के अधिकारी मन आदिवासी जनता ला कम मजदूरी देवय.संगे संग आने प्रकार ले शोषण क‌रय. आंदोलन के जोर पकड़े ले आदिवासी मन के मांग मान ले गिस. इही बेरा मा शर्मा जी ला अंग्रेज शासन हा गिरफ्तार कर लिस. वोला एक बछर अउ मेघावाले ला आठ माह के सजा सुनाय गिस.  ये बेरा मा 1922 मा जेल पत्रिका ( श्रीकृष्ण जन्म स्थान) रचना लिखिस.


शर्मा जी हा " भारत में अंग्रेजी राज" रचना लिखे रिहिन तेला अंग्रेज सरकार हा प्रतिबंधित कर दिस.

23 नवंबर 1925 मा शर्मा जी के अगुवाई मा अछूतोद्धार खातिर अस्पृश्य लोगन के एक बड़का समूह हा  राजीव लोचन मंदिर मा प्रवेश करके पूजा- पाठ करिन. अनुसूचित जाति मन ला जनेऊ धारन करवाइस. 

 23 से 28 नवंबर 1933 के बीच गांधीजी के दूसरइया बार छत्तीसगढ़ मा आना होइस. ये बेरा मा गांधी जी हा अछूतोद्धार कारज के अवलोकन करिन अउ अब्बड़ प्रशंसा करिन.28 दिसंबर 1940 मा शर्मा जी के निधन होइस. ता ये प्रकार ले हम देखथन कि शर्मा जी के सोर साहित्य के संगे संग आजादी के सेनानी के रूप मा बगरिस.वोहा संवेदनशील रचनाकार के संगे संग मंजे हुए राजनीतिज्ञ रीहिन. शर्मा जी हा छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम संकल्पना करिन 


कुंजबिहारी चौबे - संस्कारधानी राजनांदगांव मा 15 जुलाई 1916 मा जनम होइस.सिरिफ 16 साल के उमर ले वोहा हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी मा रचना लिखे के चालू करिस.वोकर कविता मा आक्रोश, क्रांतिकारी विचार, निर्भीकता, स्वाभिमान अउ विद्रोह के भाव राहय. वोकर पहिचान विद्रोही कवि के रूप मा होइस. वोहा कर्म ले क्रांतिकारी अउ मन ले कवि रीहिन.स्वतंत्रता आंदोलन मा छत्तीसगढ़ के क्रांतिकारी कवि के रूप मा नांव ले जाथे.विद्रोही कवि के रुप मा पहचान बनइया चौबे जी के प्रमुख कविता मा " बियासी के नागर","मैं पापों का शुचि गान किया करता हूं "शामिल हावय. छात्र जीवन मा अपन स्कूल मा अंग्रेज मन के झंडा ला निकाल दिस तेकर सेति वोला बेत ले मारे गिस तभो ले ये वीर बालक हा भारत माता की जय अउ महात्मा गांधी की जय बोलत रिहिन. वोकर ये रचना ले अब्बड़ प्रसिद्ध कमाइस - "अंग्रेज तंय हा हमला बनायेस कंगला, लूट - लूट के तंय हा टेकायेस बंगला".वोकर 100 कविता के संग्रह" अवशेष " नांव ले प्रकाशित होइस. छत्तीसगढ़ी मा कम रचना उपलब्ध होय के कारण साहित्यकार पं. दानेश्वर शर्मा जी हा येला छत्तीसगढ़ के चंद्रधर शर्मा गुलेरी किहिस. सन 1943 मा कम उमर मा ये विद्रोही कवि के देहावसान होगे. 


द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र - 


छत्तीसगढ़ ला एक अलग राज्य के रूप मा स्थापित करे खातिर साहित्य अउ जन आंदोलन के माध्यम ले सुग्घर उदिम करइया रचनाकार मन मा पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी' विप्र ' के नांव प्रसिद्ध हे.


 विप्र जी के जनम 6 जुलाई 1908 मा बिलासपुर मा  अउ 2 जनवरी 1982 मा निधन होइस.  विप्र जी 1922 ले सरलग 60 बछर तक छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी मा हजारों कविता, निबंध अउ एकांकी के सृजन करिन.विप्र जी हा नवजवान रीहिन तब ले छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के सेवा बर अपन जिनगी ला समर्पित कर दिस. उंकर पहली किताब" कुछु कांही" सन 1934 मा प्रकाशित होइस.पर 1958 मा प्रकाशित उंकर कविता संग्रह " सुराज गीत" ले अब्बड़ लोकप्रिय होइस. उंकर जिनगी एक रचनात्मक आंदोलन रीहिन. विप्र जी कवि सम्मेलन मा खूब सराहे गिस. विप्र जी के गीत 'धमनी के हाट' आजो जन जन मा लोकप्रिय हावय. 


कृति - सुराज गीत,  गांधी गीत , धमनी के हाट , कुछु कांही,डबकत गीत,राम अउ केंवट संवाद. विप्र जी के रचना के संकलन नंद किशोर तिवारी जी के संपादन मा लोकाक्षर पत्रिका के द्वारा प्रकाशित कराय गे हावय. 


गिरिवर दास वैष्णव - वैष्णव जी के जनम सन 1897 मा बलौदा बाजार के गांव मांचाभाठा देंदुआ मा होइस.


कृति- छत्तीसगढ़ सुराज गीत


कोदू राम दलित - जन कवि कोदू राम दलित  कुंडलियां लेखन खातिर अब्बड़ प्रसिद्ध हे. वोहा छत्तीसगढ़ के गिरधर कवि राय के नांव ले प्रसिद्ध हावय.दलित जी के जनम 5 मार्च1910 मा  बालोद जिला के अर्जुन्दा ले लगे गांव टिकरी मा होय रीहिस. दुर्ग मा शिक्षकीय कार्य के दायित्व निभावत साहित्य सेवा करिन.दलित जी के रचना मा अंग्रेजी शासन के खिलाफ प्रतिकार देखे ला मिलथे या दूसर कोति  गांधीवादी विचारधारा ले ओत प्रोत रचना के सृजन करे हावय. दलित जी के रचना मा सियानी गोठ ,हमर देश, कृष्ण जन्म, बहुजन हिताय बहुजन सुखाय ,छन्नर- छन्नर पैरी बाजय, कनवा समधी,अलहन,दू मितान प्रमुख हे.  दलित जी कवि सम्मेलन के सफल कवि रीहिन. हास्य व्यंग्य मा माहिर रीहिन. दलित जी के देहावसान 28 सितंबर 1967 मा होइस. दलित जी के पुत्र आदरणीय अरुण कुमार निगम जी छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार हे. छंद के छ नांव ले नि: शुल्क आनलाइन क्लास चलाथे. संगे संग छत्तीसगढ़ी पद्य खजाना अउ छत्तीसगढ़ी गद्य खजाना नांव ले ब्लाग चलात हे . 


खूबचंद बघेल - पेशे ले चिकित्सक,समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, साहित्यकार , राजनीतिज्ञ अउ पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के सपना देखइया डा. खूबचंद बघेल के जनम 19 जुलाई 1900 मा रायपुर जिले के पथरी गांव मा होइस. उंकर पिता जी के  जुड़ावन प्रसाद अउ माता के नांव केकती बाई रीहिन. राज कुंवर के संग बिहाव होइस.

रायपुर मा पढ़ाई करत रीहिन ता पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र के संपर्क मा आइन अउ राजनीति मा रूचि ले लगिस.सन 1920 मा कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन मा भाग लेइस.असहयोग आंदोलन के बेरा मा अपन मेडिकल कॉलेज के पढ़ाई ला छोड़ के खादी के प्रचार मा लग गे.जेल के सजा होइस फेर उहां ले लहुंट के 1923 मा एल.एम.पी. (एम. बी. बीएस.) के परीक्षा पास करिन.बघेल‌ जी 1925 मा एल.एल. बी. के परीक्षा पास करिन. 13 अप्रैल 1930 मा रायपुर मा आयोजित महाकौशल राजनीतिक परिषद के अधिवेशन मा भाग लिस.

1931 मा सहायक चिकित्सा अधिकारी के पद ला छोड़ के कांग्रेस मा प्रवेश करिन.1931 मा स्वयं सेवक संगठन के स्थापना करिन. भारत छोड़ो आन्दोलन के बेरा मा मुंबई अधिवेशन मा शामिल होय बर जावत रीहिन तब 9अगस्त 1942 मा छत्तीसगढ़ के आने नेता मन के संग मलकापुर रेलवे स्टेशन ले गिरफ्तार कर ले गिस. वोकर संग उंकर धर्म पत्नी राज कुंवर देवी ला घलो 6 माह के जेल होइस. डा. साहब ला नागपुर के सेन्ट्रल जेल मा राखे गिस.


नाटक के माध्यम ले समाज सुधार -


डा. साहब हा छत्तीसगढ़ मा व्यापत छुआछूत अउ पिछड़ा पन के पीरा ले भली भांति परीचित रीहिन. येहा वोला अब्बड़ पीरा देय. अउ ये पीरा ला दूर करे खातिर साहित्य सेवा के माध्यम ले एक आंदोलन चलाइस.  अपन समाज के एक सियान के सामाजिक बहिष्कार हा वोला नाटक लिखे बर प्रेरित करिन.डा. साहब छत्तीसगढ़ के पहली नाटककार माने जाथे.स्वतंत्रता आंदोलन के समय" ऊंच नीच" नाटक लिख के वोकर मंचन घलो कराइन. अपन कूर्मि समाज ला एकता के सूत्र मा बांधे पर सुग्घर उदिम करिन. वो खुद मनवा कुर्मी रीहिन अउ अपन बेटी के बिहाव दिल्लीवार कुर्मी समाज मा करिन. वइसने छोटे बेटी के बिहाव राजेश्वर पटेल संग करिन. ये कारज के कीमत वोहा अपन सामाजिक बहिष्कार के रूप मा चुकाइस.आजादी के बाद करम छंड़हा,लेड़गा,जनरैल सिंह ,बेटवा बिहाव, किसान के करलई

नाटक लिख के छत्तीसगढ़ अंचल मा जन जागृति फैलाय के काम करिन.


आजादी के बाद कांग्रेस ले वोकर मोह भंग होगे  1950 मा आचार्य कृपलानी के किसान मजदूर पार्टी मा शामिल होगे. डा. साहब 1951 ले 1962 तक विधायक रीहिन.1956 मा राजनांदगांव मा उंकर अध्यक्षता मा छत्तीसगढ़ महासभा के गठन होइस . डा. साहब येकर माध्यम ले अलग छत्तीसगढ़ राज्य बर उदिम करिन.1965 मा संसद बर चुने गिस. वोहा राज्य सभा के सदस्य बनाय गिस. राजनीति ले 1968 तक जुड़े रीहिन. डा. साहब 22 फरवरी 1969 मा अपन नश्वर शरीर ला छोड़ के स्वर्गवासी बन गे. छत्तीसगढ़ के अस्मिता के रखवार डा. साहब हा

 अपन जस रूपी शरीर ले  हम सब के बीच अमर हे. 


हरि ठाकुर -  छत्तीसगढ़ के अस्मिता के गायक, अलग छत्तीसगढ़ राज्य बर आंदोलन के अगुवाई करइया हरि ठाकुर के पूरा नांव ठाकुर हरिनारायण सिंह रीहिन. वोहा त्यागमूर्ति, स्वतंत्रता सेनानी अउ मजदूर नेता ठाकुर प्यारेलाल लाल सिंह के सपूत रीहिन. उंकर जनम 16 अगस्त 1927 मा रायपुर मा होइस. ठाकुर साहब स्वतंत्रता सेनानी परिवार ले रीहिन. स्वाभाविक रूप से वोहा स्वतंत्रता आंदोलन मा भाग लिस. 50 -60 के दशक मा नारायण लाल परमार अउ देवी प्रसाद वर्मा के संग मिल के छत्तीसगढ़ मा साहित्यिक चेतना बर सुग्घर उदिम करिन. 1963 मा ठाकुर प्यारेलाल लाल सिंह के जीवनी लिखिन. ठाकुर साहब के शोध निबंध उत्तर कौशल बनाम दक्षिण कौशल अउ शहीद वीर नारायण सिंह पर बड़का  कविता लिखिन जउन 1990 मा प्रकाशित होइस. ये दूनों कृति हा छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान ला जगाय के काम करिन. कुछ समीक्षक मन येला छत्तीसगढ़ी मा लिखे वीर रस के पहली खंड काव्य मानिन. कृतिकार अउ चिंतक ठाकुर साहब हा जिनगी भर सुग्घर कारज करिन.1965 मा राजनांदगांव के विद्रोही कवि कुंजबिहारी चौबे के छत्तीसगढ़ी कविता के संपादन अउ प्रकाशन के संगे संग "धनी धरम दास के छत्तीसगढ़ी पद" , छत्तीसगढ़ी दान लीला के संपादन करिन. हरि ठाकुर के देहावसान 3 दिसंबर 2001 मा होइस.


अइसने छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन  आजादी के आंदोलन मा भाग लिस या तो अपन रचना के माध्यम ले जनता मा आजादी के भावना जगाइस वोमा पं. मुकुटधर पांडे,कपिलनाथ कश्यप, प्यारे लाल गुप्त,केयूर भूषण,  पुरूषोत्तम लाल,विश्वंभर यादव मरहा,मेहत्तर राम साहू के नांव प्रमुख हे.


                      - ओमप्रकाश साहू 'अंकुर '

सुरगी, राजनांदगांव ( छ.ग.)


मो.7974666840

आजादी के लड़ाई म नारी शक्ति के योगदान

 आजादी के लड़ाई म  नारी शक्ति के योगदान


पहली हमर देश ह "सोन के चिरइया" कहलाय। भारत वर्ष ह धन धान्य, खनिज संपदा के संगे -संग संस्कृति अउ सभ्यता ले अब्बड़ समृद्ध रिहिन हे। सिंधु घाटी के सभ्यता, नालंदा विश्वविद्यालय के संगे संग इहां के ऐतिहासिक अउ धार्मिक ठउर येकर उदाहरण हावय।  हमर देश म विदेशी लोगन मन बेपारी मन के आइस। इहां के राजा- महाराजा मन ले बेपार के अनुमति लेके इहां बेपार करे लागिस। इहां पुर्तगाली, फ्रांसीसी, डच, अंग्रेज आइस अउ अपन-अपन बेपार म लग गे। इंकर बीच बेपार खातिर आपस म नंगत लड़ाई चलिस जेमा आगू चलके अंग्रेज मन अपन धाक जमाय म सफल होइस। अंग्रेज मन हमर देश म एक छत्र राज करिस। फूट डालो अउ राज करो,हड़प नीति ल अपना के इंहा के राजा - महाराजा ल आपस म लड़ाइस। अंग्रेज मन भारतवासी मन उपर नंगत अत्याचार करिस।1857 म पहली बार हमर देश के राजा- महाराजा मन सुनता के गांठी म बंधके  लड़ाई लड़िन। कित्तूर के रानी चेन्नमा,भीमा बाई होल्कर, रामगढ़ की रानी,रानी जिंदन कौर,रानी टेसबाई,बैजा बाई, चौहान रानी, तपस्विनी महारानी जइसे कतको नारी शक्ति मन घर के चार दीवारी ले निकल के अपन धरती माता के संगे संग नारी जात के स्वाभिमान बर लड़िन।


    हमर देश के आजादी के लड़ाई म नारी शक्ति मन के अब्बड़ योगदान हावय। 1857 के पहली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम म झांसी के रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई अउ झांसी के कतको वीर नारी मन के योगदान ल भला कभू भुलाय जा सकथे का। सुभद्रा कुमारी चौहान ह अमर कविता के रचना करिन - खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.......।अइसने रानी दुर्गावती, अहिल्या बाई, बेगम हजरत महल, अउ ऊंकर सहयोगी वीर नारी मन के वीरता ले पूरा भारतवासी परिचित हावय। इंकर वीरता ले अंग्रेज शासन म हड़कंप मच गे रिहिस।


 ‌ आधुनिक काल म आजादी के लड़ाई के संगे संग पुनर्जागरण म नारी शक्ति के अब्बड़ योगदान हे। सावित्री बाई फूले ह पहिली महिला शिक्षिका के रुप म अपन अलग पहिचान बनाइस त आजादी के लड़ाई म घलो योगदान दिस।।नाना प्रकार के पीरा सहिस पर अपन उदिम ल नइ छोड़िन अउ नारी मन के जिनगी म शिक्षा के सुघ्घर अंजोर बगराइस। आयरिश महिला एनी बेसेंट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहिली महिला अध्यक्ष बनिन। वोहा तिलक जी के साथ जुड़ के विदेशी जिनिस मन के बहिष्कार स्वदेशी जिनिस मन के प्रचार प्रसार म योगदान दिस। अंग्रेज सरकार के विरुद्ध अपन आवाज बुलंद करिन। अइसने मेडम भीकाजी कामा, सिस्टर निवेदिता ,कैप्टन लक्ष्मी सहगल,,सरोजिनी नायडू , सूचेता कृपलानी  कस्तूरबा गांधी, कमला नेहरू,राज कुमारी अमृत कौर,अरुणा आसफ अली,विजया लक्ष्मी पंडित, मीरा बेन, कमलादेवी चट्टोपाध्याय,इंदिरा गांधी जइसन महान नारी मन आजादी के  असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा अउ भारत छोड़ो आंदोलन म पुरुष मन संग कदम ले कदम मिला के भाग लिस अउ देश खातिर जेल गिस।


  हमर छत्तीसगढ के नारी शक्ति मन आजादी के लड़ाई म कइसे पाछू रहितिस। निकल पड़िस भारत महतारी के रक्षा खातिर। अंग्रेज मन ले जोम देके लड़िन। 1910 म बस्तर म भूमकाल विद्रोह म रानी सुवर्ण कुंवर के अब्बड़ योगदान रिहिन।रानी सुवर्ण कुंवर अउ लाल कलेन्द्र सिंह ह वीर गुंडाधूर ल भूमकाल विद्रोह के सेनापति बनाके अंग्रेज़ी शासन के अब्बड़ अत्याचार के विरोध म बस्तर के लोगन मन ल लड़े बर प्रेरित करिन।


  जब हमर देश म गांधी युग चलिस त वो बेरा म इंहा के नारी शक्ति मन असहयोग आंदोलन, कंडेल नहर सत्याग्रह, नमक कानून तोड़ो आंदोलन ( सविनय अवज्ञा आंदोलन), जंगल सत्याग्रह अउ भारत छोड़ो आंदोलन म अब्बड़ उछाह ले भाग लिस। गांधी जी के अहिंसक आंदोलन अउ उंकर बताय रद्दा शराब बंदी, स्वदेशी जिनीस के प्रचार प्रसार, विदेशी जिनिस मन के बहिष्कार अउ होली जलाना, कुटीर उद्योग ल अपनाय जइसे रचनात्मक कारज मन ल करिन। छत्तीसगढ़ म  आजादी के आंदोलन म भाग लेवइया 

नारी शक्ति मन म डा. राधा बाई,  बालिका दयावती,मिनीमाता,मूलमती, रोहिणी बाई परगनिहा,केकती बाई बघेल, रूक्मिणी बाई जइसन हजारों नारी मन  के  नांव सामिल हावय।


    ओमप्रकाश साहू" अंकुर"

    सुरगी, राजनांदगांव

आजादी के सिपाही - त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह

 आजादी के सिपाही -  त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह 


आजादी पाय बर भारत माता ह अपन कतको बेटा -बेटी मन के कुर्बानी दिस. अब्बड़ झन क्रांति कारी मन ल अ़ग्रेज शासन ह फांसी म चढ़ा दिस. भारतीय जनता मन उपर नाना प्रकार ले अत्याचार करे गिस. तभो ले हमर देश अउ प्रदेश के नेता अउ जनता मन हा गोरा मन के आगू नइ झुकिस.

   आजादी के लड़ाई म हमर छत्तीसगढ म शहीद गेंद सिंह,  वीर नारायण सिंह, वीर हनुमान सिंह, वीर गुंडाधूर,पं. सुंदर लाल शर्मा, वामन लाल लाखे, ई.राघवेन्द्र राव, पं. रविशंकर शुक्ल, ठाकुर छेदीलाल सिंह ,  रामाधीन गोंड,कुंज बिहारी चौबे, खूबचंद बघेल अउ ठाकुर प्यारेलाल सिंह जइसे  जुझारू,कर्मठ अउ मातृभूमि बर समर्पित नेता रिहिन  हे. ठाकुर प्यारेलाल सिंह  ल आजादी के आंदोलन के अर्जुन कहे जाथे.


   त्याग अउ न्याय मूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह के जनम 21 दिसंबर 1891 ई. म राजनांदगांव -खैरागढ़ मार्ग म ठेलकाडीह से  बुरती दिशा म  3 किलोमीटर दूरिहा    सेम्हरा दैहान गांव म होय रिहिस हे. ये ग्राम पंचायत डुमरडीहकला के आश्रित गांव हरे. ठाकुर प्यारेलाल लाल सिंह जी के 

 के पिताजी के नांव ठाकुर दीन दयाल सिंह अउ महतारी के नांव  नर्मदा देवी रिहिन हे. ठाकुर साहब के पिताजी राजनांदगांव के प्रतिष्ठित स्टेट स्कूल के प्रथम प्रधानाचार्य रिहिन हे अउ बाद म शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारी घलो बनिन.

ठाकुर साहब के पिताजी ह शांत, गंभीर अउ अनुशासन प्रिय मनखे रिहिन. प्यारेलाल के प्राथमिक शिक्षा राजनांदगांव म अउ उच्च शिक्षा रायपुर, नागपुर, जबलपुर अउ इलाहाबाद म होइस हे. बी. ए .पास करे के बाद सन् 1916 म इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वकालत पास करिन .


    छात्र मन के हड़ताल के अगुवाई करिन 


     आजादी के लड़ाई के समय म जब हमर देश म लाल- बाल- पाल के जोर चलत रिहिन हे त ठाकुर साहब बंगाल के कुछ क्रांतिकारी मन के संपर्क म आइस अउ क्रांतिकारी साहित्य के प्रचार करत  अपन राजनीतिक जीवन शुरू करिन. इही  समय ठाकुर साहब स्वदेशी कपड़ा पहने के व्रत ले लिस . युवावस्था म  विद्यार्थी मन ल संगठित करे के काम करिन. राजनांदगांव म 1905 में ठाकुर साहब के अगुवाई में छात्र मन की पहली हड़ताल होइस. ठाकुर साहब अपन सहयोगी छविराम चौबे अउ गज्जू लाल शर्मा के संग मिलके राजनांदगांव म राष्ट्रीय आंदोलन ल ठाहिल बनाइन.


येहा देश के छात्र मन के पहली हड़ताल माने जाथे.


     राजनांदगांव म सरस्वती पुस्तकालय के स्थापना 


 सन 1909 म ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह राजनांदगांव म सरस्वती पुस्तकालय के स्थापना करिन. आगू चल के येहा राजनीतिक गतिविधि के जगह बनगे. आगू  चल के ये पुस्तकालय ल  शासन ह  जब्त कर लिस.

ठाकुर साहब ह पढ़ईया  लइका मन के जुलूस म वंदेमातरम के नारा लगाय. वो बेरा म अइसन करना अपराध माने जाय.पर प्यारे लाल  सिंह जी डरने वाला मनखे  नइ रिहिन  हे. सन 1916 में ठाकुर साहब ह  वकालत चालू करिन. पहली दुर्ग म फेर बाद म रायपुर म वकालत करिन. कम समय म शठाकुर साहब ह  वकालत म प्रसिद्ध होगे.


   सितंबर 1920 म कलकत्ता म लाला लाजपत राय के अध्यक्षता म कांग्रेस के विशेष अधिवेशन आयोजित होइस. येमा गांधी जी के नेतृत्व म असहयोग आन्दोलन चलाय के स्वीकृति दे गिस. फेर कांग्रेस के अधिवेशन नागपुर म 26 दिसंबर 1920 म होइस जेकर अध्यक्षता विजय राघवाचार्य करिन. ये अधिवेशन म हमर छत्तीसगढ ले आने नेता मन के संग ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह घलो शामिल होइन. रोलेट एक्ट अउ जलियांवाला बाग़ हत्या कांड के सेति देश भर म अंग्रेज सरकार के विरुद्ध चिंगारी सुलगत  रिहिस हे. 


   अइसन समय म गांधी जी ह आह्वान कर चुके रिहिन  कि अंग्रेज सरकार के गुलामी ले छुटकारा  पाय खातिर स्थानीय समस्या ल आधार बना के असहयोग आन्दोलन चालू करय. 



   बी.एन.सी. मिल के बारे म जानकारी


 वो समय राजनांदगांव म बी.एन.सी.मिल्स चलत रिहिसि.बंगाल -नागपुर काटन मिल्स म हजारों मजदूर काम करय. येकर स्थापना 23 जून 1890 म होय रिहिस हे अउ उत्पादन के काम नवंबर 1894 म चालू होइस हे.  वो समय राजनांदगांव म वैष्णव राजा बलराम दास के राज्य चलत रिहिन  हे. राजा साहब मिल के संचालक बोर्ड के अध्यक्ष रिहिन  हे. ये मिल्स के निर्माता बम्बई के मि. जे.वी. मैकवेथ रिहिस हे. कुछ समय चले के बाद मिल ल घाटा होइस. येकर सेति ये मिल ल कलकत्ता के मि. शावालीश कंपनी ह खरीद लिस  जउन ह नांव बदलके बंगाल -नागपुर काटन मिल्स कर दिस. स्थापना के समय येकर नांव

सी.पी. मिल्स रिहिस हे.


 मजदूर मन के   ऐतिहासिक हड़ताल के अगुवाई 


सन 1919 ले ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह राजनांदगांव के मजदूर मन ल एक करके जागृति फैलाय के काम चालू कर दे रिहिन  हे. अंग्रेज शासन के समय म जनता के शोषण जिनगी के हर पहलू म आम बात रिहिस हे. इहां के मजदूर मन के नंगत शोषण होत रिहिस हे. मिल  मालिक ह मजदूर मन ले 12- 13 घंटा काम लेय .येकर ले सन् 1920 म बी.एन.सी. मिल्स के मजदूर मन म अंग्रेज सरकार के विरुद्ध असंतोष फैलगे. 


  अइसन बेरा म छत्तीसगढ़ म मजदूर आंदोलन के प्रमुख केन्द्र राजनांदगांव ह बनगे.ठाकुर प्यारे लाल सिंह अउ डॉ.बल्देव प्रसाद मिश्र मजदूर यूनियन के अगुवाई करय. ये काम म शिव लाल मास्टर अउ शंकर खरे सहयोग करय.


सन्  1920 में असहयोग आंदोलन के बेरा म ठाकुर प्यारेलाल सिंह  के अगुवाई म अप्रैल 1920 में बीएनसी मिल्स  के मजदूर मन  के  36 दिन के  ऐतिहासिक हड़ताल होइस. अत्तिक लंबा समय तक चलने वाला ये  देश के पहली हड़ताल रिहिस हे. ये हड़ताल ले राजनांदगांव के अब्बड़ सोर होइस. ये आंदोलन ले ठाकुर साहब के प्रसिद्धि देश भय म फैलगे. 

संस्कारधानी ह राष्ट्रीय आंदोलन के मुख्यधारा ले जुड़गे.


     

 असहयोग आंदोलन के समय वकालत छोड़िन


   गांधी जी के नेतृत्व म जब देश भर म असहयोग आंदोलन ह  चालू होइस त ठाकुर साहब ह अपन वकालत छोड़ दिस. राजनांदगांव म  राष्ट्रीय विद्यालय के स्थापना करिन. हजार भर के संख्या में चरखा बनवा के जनता ल  बांटिन ,चरखा के महत्व समझाइस अउ खादी के प्रचार करिन . ठाकुर साहब खुद खादी  पहने  लागिस. राजनांदगांव ले हाथ ले लिखे पत्रिका घलो निकालिन   जउन ह  जन चेतना  बर अब्बड़ सहायक होइस.


 झंडा सत्याग्रह म भागीदारी 


  सन 1923 में झंडा सत्याग्रह चालू होइस  त ठाकुर  साहब ल प्रांतीय समिति द्वारा दुर्ग जिला ले सत्याग्रही भेजे के काम सौंपे गिस . नागपुर म सत्याग्रह आंदोलन चालू होइस.एकदम जल्दी नागपुर सत्याग्रह के केंद्र बन गे.


    मजदूर मन के दुबारा हड़ताल


 सन 1924 में राजनांदगांव के मिल मजदूर मन ठाकुर साहब की अगुवाई में फिर हड़ताल करिन. कतको मन के गिरफ्तारी होइस. ठाकुर साहब पर सभा लेय अउ भाषण देय बर रोक लगा दे गिस. ठाकुर साहब  ल जिला बदर कर दे गिस .राजनांदगांव ले निष्कासित करे के बाद सन 1925 म ठाकुर साहब रायपुर चले गिस अउ आखरी तक ऊंहचे रहिके अपन राजनीतिक काम मन ल संचालन करत रिहिन. 


   सविनय अवज्ञा आंदोलन के अगुवाई करिन 


     सन 1930 में गांधी जी द्वारा चालू करे गे  सविनय अवज्ञा आंदोलन म  ठाकुर साहब बढ़- चढ़कर भाग लिस.शराब दुकान म धरना दिस. ठाकुर साहब किसान मन मा जागृति फैलाय बर अंग्रेज शासन लगान मत दो, पट्टा मत लो आंदोलन चलाइस. एकर  सेतिज्ञ ठाकुर साहब  ल 1 साल के सजा दे गिस. सिवनी जेल म  भेज दे गिस. गांधी- इरविन समझौता होइस त आने  राज -बंदी मन के संग रिहा होइन.

   सन 1932 में जब सत्याग्रह फिर से चालू होइस त ठाकुर साहब पंडित रविशंकर शुक्ल के संगे संग आने नेता मन संग संचालन के दायित्व संभालिन. 26 जनवरी 1932 में गांधी चौक मैदान में सविनय अवज्ञा के कार्यक्रम के संबंध में भाषण देत  समय ठाकुर साहब ल अंग्रेज सरकार गिरफ्तार कर लिस .  2 साल के कठोर सजा अउ जुर्माना लगाय गिस. ठाकुर साहब जब जुर्माना नहीं देइस त अंग्रेज सरकार ह उंकर  संपत्ति  ल कुर्की कर दिस . ठाकुर साहब के वकालत के लाइसेंस ला जप्त कर लिस. जेल के सी क्लास म रखे गिस.


  जेल से छूटे के बाद  ठाकुर साहब फिर से आजादी के लड़ाई अउ जनसेवा बर समर्पित होगे.


   हिंदू -मुस्लिम एकता बर काम करिन 


1933 में वह महाकौशल अंग्रेज कमेटी के मंत्री चुने गिस. 1938 तक ये पद म रहिके पूरा प्रदेश के दौरा करिन .  कांग्रेस संगठन ल फिर से मजबूत करे के काम करिन.  सन 1937 में ठाकुर साहब विधानसभा के सदस्य चुने गिस.  रायपुर नगर पालिका के अध्यक्ष घलो निर्वाचित होइस. ये  पद म रहिते  ठाकुर साहब राष्ट्र जागरण और हिंदू -मुस्लिम एकता बर काम करिन. डॉ बी.एन. खरे के मंत्रिमंडल में कुछ समय तक शामिल रिहिन.


तीसरा मजदूर आंदोलन के नेतृत्व करिन 


 रायपुर म  निष्कासन के समय घलो ठाकुर साहब के धियान राजनांदगांव के मजदूर मन डहर राहय.ये बीच म बी.एन.सी.मिल्स के मालिक मन मजदूर मन के पगार म 10 प्रतिशत कटौती कर दिस. येकर ले मजदूर मन  फेर नाराज होगे अउ हड़ताल के तैयारी करे लागिस. ठाकुर साहब ह मजदूर मन के जायज मांग के समर्थन करिन. इही बीच रूईकर समझौता के कारण 600 मजदूर बेकार होगे. मजदूर मन फिर से त्यागमूर्ति ठाकुर साहब के पास समस्या के निदान बर गोहार लगाइन. ठाकुर साहब ह नया समझौता प्रस्ताव प्रस्तुत करिन जेला मिल प्रबंधन ह स्वीकार कर लिस अउ काम ले निकाले गे मजदूर मन ल फिर से नौकरी मिलगे. ठाकुर साहब के राजनांदगांव ले जिलाबदर के आदेश घलो निरस्त होगे. ये प्रकार ले सन् 1937 म ठाकुर साहब के नेतृत्व म मजदूर मन के तीसरा आंदोलन सफल होइस.  ये प्रकार ले 1918 ले 1940 तक मजदूर आंदोलन के इतिहास म ठाकुर साहब ह सक्रिय भूमिका निभाइन. 





 छत्तीसगढ़ महाविद्यालय के स्थापना म योगदान 


   छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा के कमी ल  दूर करे खातिर 1937 महाकौशल समिति की स्थापना करिन अउ रायपुर म  1938 म छत्तीसगढ़ महाविद्यालय के स्थापना म योगदान दिस.



1942 म भारत छोड़ो आंदोलन म ठाकुर साहब बढ़-चढ़ के भाग लिस. ठाकुर साहब के नेतृत्व म  1942 के आंदोलन एकदम सफल होइस. कोनो प्रकार ले हिंसात्मक घटना नहीं घटिस.



           राजनांदगांव  म ठाकुर साहब के नाम म हायर सेकेंडरी स्कूल हे 


ठाकुर साहब छत्तीसगढ़ सहकारिता आंदोलन के जनक हरे। क्षेत्र के बुनकर मन के आर्थिक दशा ला सुधारे बर सन् 1945 ईस्वी म छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारिता समिति की स्थापना करिन। 1946 मा ठाकुर साहब छत्तीसगढ़ के सबो रियासत म जाके भारतीय संघ में विलय के जनमत तैयार करिन। ठाकुर साहब की निस्वार्थ सेवा पर सदा तइयार  राहय।

जब त्यागमूर्ति  ल जानकारी मिलिस असम के चाय बागान  म कतकों साल ले  कार्यरत सैकड़ों छत्तीसगढ़िया मजदूरों के शोषण होथे त 1950 ईस्वी में असम पहुंचेंगे। वह 2 महीना रुक के मजदूर मांगे समस्या पर एक प्रतिवेदन तइयार करिन ।असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री बारदोलाई ल सौंपिन।


 विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनिन 


1947 म  आजादी प्राप्त हुए के बाद घलो त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल 1951 तक कांग्रेस के सेवा करिन। 1951 म ही म. प्र. विधानसभा बर रायपुर से विधायक निर्वाचित होईस । वह समय नागपुर राजधानी रिहिस। नागपुर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष निर्वाचित होइस ।

भूदान और सर्वोदय आंदोलन में पैदल यात्रा करिन।


 भूदानआंदोलन म भागीदारी


राजनीति ले विरमत होके ठाकुर साहब है 1952 में भूदान और सर्वोदय आंदोलन ले  जुड़गे । पैदल हजारों किलोमीटर घूम के भू दान के खातिर जनमानस ला तैयार करिन । उही समय त्यागमूर्ति ठाकुर साहब की तबीयत बिगड़ गे। 20 अक्टूबर 1954 जबलपुर के पास ठाकुर साहब हा अपन नश्वर शरीर का त्याग स्वर्गवासी बन  गे । ठाकुर साहब ल भूदान आंदोलन के पहले शहीद कहे जाथे।

ठाकुर साहब सच्चा देशभक्त निर्भीक जाओ ठेठ बोलइया महामानव रिहिन । त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह्रदय अऊ व्यवहार सरल रिहिन। भारत की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईन। ठाकुर साहब छत्तीसगढ़ के जन-जन के मन म बसे सर्वमान्य नेता अऊ छात्र मजदूर किसान जन आंदोलन के  प्रणेता रिहिन । राजनांदगांव म ये  महान नेता के स्मृति में एक हायर सेकेंडरी स्कूल के नाम रखे गे हवय. त्यागमूर्ति ठाकुर *प्यारेलाल सिंह* ल शत-शत नमन हे.



ओम प्रकाश साहू  अंकुर 


सुरगी, राजनांदगाँव

छत्तीसगढ़ के सामाजिक ताना-बाना अउ लोक व्यवहार ल समेटे हे: खेतिहारिन*

 *छत्तीसगढ़ के सामाजिक ताना-बाना अउ लोक व्यवहार ल समेटे हे: खेतिहारिन*


       छत्तीसगढ़ी साहित्य के सेवा म रमे चेतलग रचनाकार कमलेश प्रसाद शर्माबाबू के साहित्य समर्पण अभिनंदनीय हे। वो सरलग कविता अउ कहानी लिखथें। बाल साहित्य जइसन मनोवैज्ञानिक अउ कठिन विधा म घलव उॅंकर दखल हे। छंद लेखन म उॅंकर कलम जोरदार चलत हे। कुल मिलाके कमलेश प्रसाद शर्माबाबू छत्तीसगढ़ी साहित्य बर समर्पित रचनाकार आँय। जिंकर रचना मन म विधागत शिल्प तो रहिबे करथे, उँकर भाव पक्ष के सजोरपन ह पाठक ल बाँधे रखथे। पाठक ल पढ़त खानी अइसे लगथे कि ए सब तो हमरे तिर के गोठबात आय। उँकर सतरंगी छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह 'खेतिहारिन' सात कहानी मन के संग्रह आय।

       हाथ म किताब के आत्ते साठ्ठ मुख पृष्ठ ल देखेंव, जउन आकर्षक हे। किताब के नाम के मुताबिक अउ नवा जुग (बेरा-बखत) के प्रतिनिधित्व करत फोटो ले सजे हे। पढ़े के पहिली पन्ना मन ल उलटेंव-पुलटेंव अउ के ठन कहानी हे? कहि अनुक्रमणिका ल झाँकेंव त सात कहानी के सकला पायेंव। सात कहानी मतलब सतरंगी, इही भाव मोर मन म आइस। किताब भेजत बखत शर्माबाबू जी आग्रह करिन आप ल जउन लगही तउन जरूर लिखिहव अउ मार्गदर्शन करिहव। मैं शर्माबाबू जइसन मँजाय अउ स्थापित सजोर रचनाकार ल का मार्गदर्शन करिहँव? मैं तो बस एक पाठक आँव। बस! अपन मन के बात ल किताब पढ़ के लिखे के उदिम करत हवँव।

      श्री अरुण कुमार निगम के लिखे भूमिका के हेडिंग देखत अपन सतरंगी कहानी संग्रह कहे के विचार मोला बदले ल पड़गे। किताब म लिखाय जिनिस ल दुबारा कहना कति ले सही कहे जाही। संगीत के सात सुर बरोबर ए सातो कहानी पाठक मन के मन ल जरूर भाहीं। जम्मो कहानी के भाव आने-आने हे। पुनरावृत्ति नइ हे। 

       पहलीच कहानी "खेतिहारिन'' अभी तक मोर पढ़े गे कहानी म सबले बड़का छत्तीसगढ़ी कहानी आय। बड़ लाम कहानी होय के बावजूद कहानी बोझिल अउ उबाऊ नइ लागय। बड़ लाम कहानी म प्रवाह अउ कथानक के पटरी ले उतरे के खतरा रहिथे, फेर कहानीकार भटके नइ हे। एक नारी के संघर्ष अउ साहस के चित्रण ले नारी जात ल नवा संदेश देना ए कहानी के उद्देश्य आय। मन के हारे हार हे। ए कहानी म जिनगी के जम्मो उतार-चढ़ाव हे। जिनगी के जम्मो रंग हे। नारी सशक्तिकरण ल समर्पित कहानी कहे जाय त कोनो दू मत के गोठ नइ होही। समाज अउ व्यवस्था ल आड़े हाथ ले के कहानीकार अपन सामाजिक दायित्व ल घलव पूरा करे हे। ए कहानी म समाज याने लोगन के मनोविज्ञान ल बने ढंग ले चित्रित करे गे हावय। सही बात आय कि समाज खासकर नारी परानी बर टेटका सहीं अपन रंग बदलत रहिथे। कोरोना के आय ले फिफियाय समाज के चित्रण जिंहाँ कहानी के रचनाकाल के आरो देथे, उहें व्यवस्था म लगे लोगन के चाल अउ चरित्तर दूनो ल उघार के रख देहे। 32 पेज म ....खेतिहारिन अंदर तक सिहरगे। ए वाक्य म मैं "अंदर" के जगह "भीतर" लिखतेंव।

       "पापी पेट" कहानी पेट बर संघर्षरत वो मनखे के कहानी आय जेन पेट के जुगत म गाँव छोड़ शहर जाथे अउ शहर जाय के पाछू ओकर जम्मो भरम टूट जथे। दूर के ढोल सुहावना होथे कहिनउ ढोल के पोल के जानबा होय ले गाँव लहुटथे। ए गुनान करे के लइक आय कि जब सबेच मनखे शहर के रस्ता धरहीं त शहर म हाहाकार तो मचबे करही। मारकाट अउ चोरी-चाकरी बढ़बे करही। पापी पेट के सवाल उहों खड़ा होबे करही।

     "बंठू-बुटिया" कहानी सचेत करथे कि जादा मया-दुलार दे ले, लइका बिगड़ सकथे। अलाल हो सकथे। बड़ उतलइन हो सकथे। एक हद तक ही मया दिखाना चाही। यहू हे कि दाई-ददा के एक फटकार लइका ल सही रस्ता म लाथे।

       "अनुकंपा" बड़ मार्मिक कहानी हे। जेन म आरक्षण ले बाहिर/छूटे वर्ग के पीरा हे। संविधान ले मिले आरक्षण कोनो बर वरदान हे त कोनो बर अभिशाप। कहानी सिरतोन घटना ल लेके भले लिखे गे होही, पर मोर नज़र म ए कहानी समाज म अपन बढ़िया छाप छोड़ही, अइसे मोला नइ लगत हे।

        पचवइया नंबर के कहानी "अंकुश ममा अउ निरंकुश भाँचा" बालकहानी के कलेवर के बढ़िया कहानी आय। जेन पात्र मन के नाँव ल सार्थक करत लइका ल सुधारे अउ ओकर हित बर कभू-कभू कड़क फइसला लेहे ले नइ हिचके के संदेश देथे। 

         "कउँवा मितान" कहानी बदलत समय म समाज  म आवत विकृति ले सावचेत करथे। कखरो ऊपर अतके विश्वास करन कि अपन अंतस् के आँखी ल हरदम खुल्ला राहय, काली पछताय के मउका झन आवय। कखरो भभकी नवा जोम झन करन। सोच विचार के संगत करन अउ उँकर हर बात आँखी मूँद के झन मानन।

           छत्तीसगढ़िया समाज अपन भोलापन म ढोंगी बाबा मन के चंगुल म झटकुन फँस जथे अउ अपन सरबस लुटा डरथे। अपन भोलापन म सबो ल अपने सहीं भोला समझे के भूल करथे। इही सब के लेखा-जोखा आय "जोगी या भोगी" कहानी। ए कहानी चतुरा अउ अंतस् म खोट रख हमर विश्वास के भरोसा के लहू करइया बाबा मन के पोल खोलथे। आखरी के दू डाँड़ अइसे लगत हे कि कहानी के शीर्षक लाय खातिर लिखे गे हे। 

        अब मैं एक सवाल पाठक वर्ग बर छोड़त हँव कि चिखत-चिखत सब ल चिखने वाला जोगी चिखत दास का असल म जोगी रहिस कि भोगी?  पृष्ठ 99

           ए संग्रह के जम्मो कहानी के भाषा अउ संवाद मन पात्र / चरित्र के मुताबिक हें। शिल्प बढ़िया हे। शब्द चयन सही हे। मुहावरा हाना के प्रयोग सहराय के लइक हे। कहानीकार के भीतर बइठे कवि के हावी होय ले दू-तीन कहानी म कविता के प्रयोग सुग्घर होय हे। फेर लम्बा कविता पाठक ल कहानी के कथानक ले दुरिहा सकथे। शुद्ध गद्य के पाठक ल उबासी लग सकथे।

       छत्तीसगढ़ के सामाजिक ताना-बाना अउ लोक व्यवहार ल सहेजे "खेतिहारिन" कहानी संग्रह छत्तीसगढ़ी कहानी बर नवा डहर गढ़ही, अइसे मोला लगथे। एकर कव्हर पेज अउ भीतरी पन्ना मन सुग्घर छपाई संग बढ़िया क्वालिटी के हे। 

०००

कहानी संग्रह- खेतिहारिन

कहानीकार- श्री कमलेश प्रसाद शर्माबाबू

प्रकाशन - शुभदा प्रकाशन जांजगीर चाँपा

प्रकाशन वर्ष-2022

मूल्य- 150/-

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पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पलारी)

जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग.

गुनान

 गुनान 

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      खिड़की के जरुरत कतका हे काबर हे ? अरे भाई सबो घर मं दरवाजा तो रहिबे करथे जेला खोलथन त बाहिर ले हवा , प्रकाश आबे करथे दूसर बात बाहिर के सोर , संदेश मिली जाथे त खिड़की ...??? 

    मोर कहे के मतलब  साहित्य के घर से हे ...। सबो कलमधारी मन के सृजन के घर होथे जिहां बइठे वो हर लिखथे ...इहां तक तो ठीक हे फेर अपन लिखे ल छोड़ के आने  मन काय लिखत हें , कइसे लिखत हें , काबर लिखत हें तेला जानना भी तो जरुरी हे न ? दूसर बात के हमर साहित्यिक अवदान के बारे मं कोन काय सोचत हे , काय कहत हे जानना भी तो जरुरी हे , जानबो तभे तो अपन लेखन मं साहित्यिक आयोजन मं सुधार लाने के उदिम करबो ...एकरे बर लिखे हंव खिड़की जरुरी हे । कभू कभू उमर मं छोटे मन के कोनो बात , सोच विचार हर जग जग ले आँखी उघार देथे ।

  काल एकझन मोर खिड़की ले झांक के कहिस " सबो झन कहिथें आप जौन लिखथव , जइसन आयोजन करथव सबो हर अपन घर , परिवार बर होथे , आने साहित्यकार मन बर आप काय करे हव ? " सुन के भारी गुस्सा लागिस , मन होइस तुरते खिड़की ल बंद कर देना चाही फेर बड़े मन के सिख़ौना सुरता आइस के कतको करु कस्सा गोठ होवय तुरते जवाब झन देवव चिटिक थिरा के गुनना चाही ...। हूं ...ठीक तो कहत हे मैं जौन लिखे हंव अपन विचार ल ही तो शब्द देहे हंव , जौन थोर बहुत करे सके हंव अपने मन बर तो करे हंव त काबर कोनो ल उजिर आपत्ति हे । चिटिक थिरा के गुनेवं त समझ मं आइस के जेमन ल  मंच , माइक नइ मिलिस ओमन दरवाजा ले आके नालिश फरियाद नइ करे सकिन ते पाय के खिड़की ले झांक के उजिर आपत्ति सुनावत हें । त सुन तो लेहे रहेंव फेर गुनत अभी हंव के कब साहित्यकार मन तुलसी दास जी के कहे ल गुनबो ...." स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा । " कब हमन कबीर कती देखबो......

" कबिरा खड़ा बजार में , सबकी मांगे खैर 

ना काहू सों दोसती , ना काहू सों बैर ..। " 

       साहित्यिक बिरादरी मं मैं , माइक अउ मंच के रोग बगरत जावत हे ...। गुनत हंव बने होइस मोर घर मं खिड़की हे ,सलामत रहय मोर खिड़की अउ जुग जुग जिययं खिड़की ले झांक के रात बिरात मोर कान मं मोरे कमी बेसी ल बतावत मनसे मन । 

    सरला शर्मा 

      दुर्ग

खुमरी

 खुमरी 

हमर छत्तीसगढ राज म जुन्ना सियान मन खुमरी पहिने के उपयोग जादा करत रहीन आज जमाना बदल गए हे नवा लइका शहर के चका मा आंखी ह  चौधियागे नवा नवा मिसिन नवा नवा तकनीकी हमर देश मा बगरगे l पुराना जमाना मा मूसलाधार वर्षा अऊ धुक धुक हवा पानी तन ला जाड़ मा कपा डारय पहिली जूना ओढना घर मा कम राह या पानी हवा के मिंझरा मा दांत किंकिनाय लगय एकर बचे के किसान खेतिहर मजदूर मन नवा उदिम सोचिन अऊ सोचत  सोचते खेत के पार मा लगे परसा के बड़े बड़े पत्ता तोड़ के चोंगा बना के अपन मुड़ मा लगा के देखीं न ऐकर से मुड़ मा पानी के बचाव होगे जेकर से ठंडा कम लगिस फेर ओकर बड़े रूप बना के देखी न येकर लगाय से पानी हवा दोनो के बचत होगे येला खुमरी के न नाम से जाने जत्थे

 पत्ता के खुमरी केवल बरसात भर बौउरे जाथे फेर मनखे ल नवा तरकीब सोचिस बांस के बेत बनाके घाम से अपन बचाव करथे खुमरी कौड़ी लगा के आकर्षक कर देथे अब हमर चरवाहा भाई मन जादा पहिन थे 

ये तोही ला खुले ना तो ही ल खुले ना, तो र कौड़ी के झुलना तोर खुमारी के कौड़ी तोहि ला खुले न l

जनाब मीर अली साहेब के ओ गीत हमर अन्तस ल छु लेथे l

नदा जाहि का  र नदा जा ही का

कमरा अ ऊ खुमरी नागर तुतारी 

नदा जहि का .....

सिरतो धीरे धीरे आज ये संस्कार कम देखे ल मिलथे l


मोहन लाल, निर्दोष,

रायपुर

नान्हे कहिनी *" ऊरई "*

 नान्हे कहिनी    *" ऊरई "*

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              एकठन छोटकुन गांव कापूभांठा डोंगरी के खालहे म सुग्घर बसे हे जिहांँ सुमता के डोरी हर तुमा के नार असन लामे हे, मया-दुलार के धार खल-खल बोहावत रहे।खेती-किसानी के बूता ल एक दूसर ले ओसरी-पारी सफंरीहा करंय।गाँव म धरम-करम के कामो घलो होवै कभू राम सप्ताह त कभू नवधा रामायन अउ दही कांदो तको होवत रहय।दुर्गा-दसेरा,देवारी अउ तीज-तिहार ल घलो बड़ उछाव ले मनांवय।गाँव म पुलिस केस कभू नी होईस नानमून लड़ई-झगरा गाँवेच म निपट जातीस।कोनों थाना-कछेरी के मुहांटी तको नी खुंदे रहिन।गाँव म तरिया,नरवा,पयठू अउ कुआँ-बवली पानी के जरिया रहय।पनपीया तरिया के फिटींग पानी पोरिस भर ले भुइँया ह रग-रग ले दिख जावे जिहाँ पुरईन पान अऊ कमल के फूल म कतका सुग्घर दिखय कोकड़ा उड़ियावत,पनबुड़ी चिरई मन पानी म तउँरत रहे त कतका बढ़िया लागय।मंझनिया तरिया पार म बइठ के सुग्घर जुड़-जुड़ हवा लेवत पहा जावे गम नी मिले।देख के छाती घलो जूड़ा जावय।

               जइसे बस्ती ले बाहिर निकलते त खेत-खार सुतिया,लमरी डुमराही,पीपराही,बसकट्टी माझांखार म ढेल-ढेलवानी, डोली,भर्री बाहरा मन म धान अउ ओन्हारी के भरमार रहय।गाँव के बरछा म सबोझन के कुसियार लगे रहय,कुसियार ल चरखा म पेर के बड़का कराव म गुड़ घलो बनावंय। धरसा म गाड़ा-पीढ़ा के रेंगान रहय। गाँव म मोर जानत ले कभू दुकाल नी परीस।अमरइया म कोईली के कुहू-कुहू सुग्घर गीत के सातो राग ह सुनावत रहिथे।मन बड़ नीक लागत रहिथे।अइसन सुम्मत के सुग्घर गाँव कापूभांठा कहत ले छेद ये।

             उही गांव म दुखू ठेठवार ऊँचपुर,मेछा अंटियाय,दोहरी काठी के अउ मुड़ी म पागा बांधे तेंदू के जबड़ लउठी धरे घेंच म चांदी के माला पहिरे  रहय। जबड़ भड़हां लिखरी गोठ करय त भंड़े बिना गोठेच नी निकले।वोकर गोसाईंन दुखिया निचट दुबर पातर राहेर कांड़ी कस देंहे फकफक गोरी अउ सतवंतिन वोकर एकेच झन लइका नानचूक गेदा टेंगनू रहय।दुखू ठेठवार रोज गाँव के गरुवा मन ल चराय बर जंगल कोती ले जावय अउ संझवाती बेरा म सबो गरुवा मन ल सकेल के गाँव लेके आवय अइसने रोजेच के बूता रहे। एती वोकर गोसाईंन ह गँवटिया घर के पानी भरे के बूता करे।एकर ले दू पइसा मिल जाय त घर के खरचा चलत रहीस।एती टेंगनू अपन संगी जहुँरिया मन संग खेलकूद के दिन ल पहावय अइसन वोमन के जिनगी पहावत रहिस।

            समे बरोबर नी रहे कभू घाम त कभू छाँव कभू सुख त कभू दुख एहर ओरवाती के छइँहा आय कतका बेर का हो जाही तेकरो ठिकाना नी रहे।अइसे ढंग ले एक दिन दुखू ठेठवार गरुवा चराय जंगल कोती गे रहिस एकठन रुख के छइँहा म सबो गरुवा ल ठोके रहिस अउ अपन ह रुख के तरी म बइठ के बंसुरी ल बिधुन होके बजावत रहिस।अलहन ह गोड़ तरी म रथे।एकठन सांप ह आके दुखू ठेठवार के तरपवां ल चाब दीस।वोकर देहें भर जहर ह चढ़ गीस बस भइगे अउ थोरिक बेरा म वोकर परान ह वोइच मेर निकलगे।देहें ह करा कर ठरत रहे।

           एती गांव बस्ती म चिहुर परत रहे आज दुखू ठेठवार गरुवा लेके कइसे नी लानत हे।अपन-अपन घर ले सबोझन घर के मुहांटी ले झांक -झांक देखे के आज अतेक बेर होगे गरुवा मन ल चराके कइसे नी लानथ हे।एती मुंधियार होवत रहे।दू-चार झन मन देखे बर निकलीन संगे-संग अउ संघरा होवत बनेच झन होगीस। सबो जंगल डहर जाय बर धर लीन। गरुवा मन के सोर ल सुनके वोमेर सबो पहुंचीन त रुख तरी दुखू ठेठवार के देहें परे रहे।हाथ के नारी ल छू-छू के देखिन त कोनों अपन कान ल वोकर छाती म मढ़ाके देखिन।वोकर सांसा नी चलत रहीस नारी जुड़ा गे रहीस।वोकर मुहूंँ मेर गेजरा ल देख डारिन अउ समझे म चिटिकोन समे नी लागीस।

        कइसनो करके दुखू ठेठवार के लहास ल लानीन।कोनों गरुवा ल खेदत लानिन।लानत ले मुंधियार होगे रहिस मनखे मन चिन्हात नी रहीन।दुखिया के ऊपर तो दुख के पहार टूटे रहिस।वोकर लइका टेंगनू गेदा रहिस त का जाने बपुरा।दुखिया ल करलाई होगीस पारा के मन आइन दुखिया ल समझा बुझा के चुप करइन कोनों कहत रहिस एतकेच दिन बर आय रहिस त कोनों करम के लेखा ऊपर दोस देवत रहिस।कोनों सादा धोती ओढ़ावत रहीन सबो कें आँखी ले आंँसू के नरवा ह बोहावत रहीस।बिहनिया बेरा गांव के पारा के अउ नता-गोता मन आके सकलइन अउ वोकर किरिया करम करे के संजोरा करे लागीन।तहं ले चार झन दुखू ठेठवार के लहास ल बोह के गांव के बाहिर अमरइया म सुपारी आमा के तरी मरघटिया म ले जाके वोकर किरिया करम करके घर आगीन।घर म गोलहत्थी चुरे खवइन अउ फेर दस दिन बाद म दसनहावन घलो होगे।

        एती बिचारी दुखिया के दुख के गठरी बंधाय रहिस वोकर जिनगी अँधियार होगे।।जेला काँटा गढ़ही वोकर मरम ल उहीच जानही।धीरे -धीरे दिन महिना अउ साल पुरत गीस थोरिक दुख ल भुलाके काकरो बनी भूती करत अपन अउ लइका के पेट भरत रहीस।कमोइया बिना वोकर दू खांड़ी के भर्री डोली परीया पर गे रहीस किसिम-किसिम के बंद-बुचरा आनी-बानी के काँटा-खुँटी जाम गे रहीस।

              टेंगनू के लइकई समे रहीस अपन संगी जहुँरिया संग खेलय कूदय।अपन ददा के मरे के सुरता नी रहिस कभू-कभू दाई ह सुरता करा देवै त आंखी ह डबडबा जावे।एक दिन पारा म अपन संगता के घर म खेलत रहीस त उही समे म वोकर घर पहुना आईस त खई-खजाना धर के आय रहीस।खई-खजाना ल बाँट के खावंय त टेंगनू घलो ल दे देवंय।पारा म दूसर संगी के घर म पहुना आवय त उहों खई-खजाना धरके लाने रहय तेन ल बाँट के खावय अउ टेंगनू ल घलो देवंय।

          हमर घर पहुना काबर नी आवंय टेंगनू ह एक दिन मन म सोचिस।हमरो घर पहुना आतीस त महूँ  बने खई खाय बर पाते।हमर घर पहुना काबर नी आवय टेंगनू ह अपन दाई ल एक दिन पूछिस।हमर पहुना मन भर्री डोली के ऊरई तरी म हांवे,दाई ह अपन दुलरु टेंगनू ल कहिस। तैं जाके रोज खनबे तंह ले पहुना मन बाहिर निकलहीं।

              *जेन मंजिल ल पाये के लालसा रखथे वोहर समुद्र म घलो पखरा के पुलिया बना डारथे* बिहिनिया होइस तहं ले टेंगनू अपन दाई ल कहीस अऊ गैंती रांपा धरके भर्री डोली कोती जाय ल धर लीस अऊ डोली ल खने के शुरू करीस।माटी ल खन के मेंड़ म करत गीस त डोली के मेड़ चाकर अऊ ऊंच होगे।देखते-देखत म परीया परे डोली ह बाहरा खेत बनगे।खेत म धान बोईस  अऊ मेंड़ म राहेर।धान के बढ़वार होईस पानी ह समे-समे पुरोदीस त धान घलो पोठ होईस ओन्हारी घलो उतेरिस।हर साल देखते-देखत म कोठी भरे रहय जम्मो जिनीस के उपजे ल धर लीस।फेर टेंगनू के घर म पहुना आय के शुरू होईस।हमर पहुना मन ऊरई तरी लुकाय रहिन महतारी ह अपन दुलरु टेंगनू ल कहीस। *सफलता के दीया मिहनत ले बरथे*।

✍️ *डोरेलाल कैवर्त*

*तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)*

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आँच/नान्हे कहिनी*

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*आँच/नान्हे कहिनी*

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             पनखत्ती तरिया म पुरइन पान मन गझाय रहिन । नील बरन जल बीच हरियर बरन पुरइन पान  ।  अउ हरियर बरन पुरइन पान बीच  म झाँकत गुलाबी बरन कमल दल । तरी म तउरत मछरी अउ ऊपर म गुन...गुन करत भंवरा ।


           ये सब ल देखत ऊपर चढ़त सुरुज , एक  निमिष बर , ठीक मुड़ ऊपर ठाढ़ हो गय । इहाँ तरिया के सबो कमल -दल मन रिग- बिग ले अउ चिलक उठिन  ।



           ठीक वोतकी बेरा सँवरे-पखरे नोनी हर, पानी लाने बर  गगरी धर के  वो तरिया म आइस।


       अब तो उहाँ के वो सब कमल-कमलिनी, कुमुद-कुमुदनी मन झुरमुराय के शुरू हो गय रहिन ।


            तरिया के पानी हर घलव डबके के शुरू हो गय रहिस ।



*रामनाथ साहू*



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आलेख - लोक संस्कृति कमरछठ परब*

 *आलेख - लोक संस्कृति कमरछठ परब*

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                  हमर देश भारत म अलग-अलग राज के संस्कृति अउ कला के भरमार हावे येमा छत्तीसगढ़ के संस्कृति,कला,भाखा,रीति-रिवाज,खान-पान अउ तीज तिहार के अलेगेच चिन्हारी हावे।छत्तीसगढ़ अपन रीति-रिवाज अउ कला संस्कृति के नांव ले पूरा देश मा अलगेच चिन्हारी बनाये जेहर काकरो ले नी लुकाय हे।हमर छत्तीसगढ़ म बारो महीना के अलग-अलग तीज तिहार ला अब्बड़ सुग्घर अपन परम्परा ले जुन्ना समे ले मनावत आवत हे।छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति म कमरछठ तिहार जेन ल हर बछर भादो के अँधियारी पाख के छठ के दिन मनाथें येकर अलगेच महत्तम हे।

          कमरछठ के दिन हमर महतारी अउ दीदी,बहिनी मन अपन लोग लइका मन के सुग्घर जिनगी जीये अउ उंकर बढ़ोत्तरी दिनों-दिन बाढ़े के खातिर उपास रहिथें।कमरछठ उपास बड़ कठिन सदाथे काबर के ये दिन उपसहीन मन जेन जघा म नांगर जोताय रहिथे वो जघा म नी रेंगय अउ बिना नांगर जोताय जघा ले उपजे धान के चाउंर जेन ल पसहर चाउंर कहिथे वोकरे पूजा म उपयोग करथें वोकरेच चाउंर ल रांध के परसाद के रुप म फरहारी करथें।अतकेच नी हे भलुक जेन जघा म नांगर नी जोताय अइसनहा जघा के मउंहा के पाना अउ वोकरेच मुखारी ला करथे कासी पउधा के अलगेच महत्तम बताये गे हावे।

           कमरछठ उपास जबर कठिन साधना के उपास हावे।बिहनिया बेरा ले पूरा सराजाम करे के तियारी करथें।कमरछठ उपास खातिर भइंस के दूध,दही,घी अउ वोकर गोबर के खास मानता रहिथे संगे-संग छै जात के भाजी जेन ह नांगर झन जोताय रहे अइसन जघा के भाजी जेन जघा म लमेरा जागे रहिथे उहीच भाजी ल उपयोग म लानथे।लइका मन के खिलउना माटी के चुकिया,डोंगा,बांटी भंवरा घलो बनाय रहिथे।

            कमरछठ उपास ल महतारी मन अपन लइका के उमर बढ़ोतरी वोकर खुशहाली जिनगी जिये के सेथी अउ नवा-नेवरनीन मन लइका पाये बर बजर कठिन साधना करथें। पूजा ल बड़का विधि-विधान अउ नियम-धरम ले करे जाथे।ये दिन के धार्मिक मानता के मुताबिक भगवान किशन के बड़े भाई बलदाऊ जेन ल हलधर घलो कहे जाथे वोकरे जनमदिन हरे तेकर सेथी वोकरो पूजा करे के विधान बताय गे हावे।कतको झन कमरछठ परब ल मनाय के पाछू गौरी माता ह कार्तिकेय ल बेटा के रुप म पाय रहिस वोकर गोसाईंन के नांव षष्ठी रहिस के तेकरे सेती कमरछठ उपास ल हलषष्ठी कहे गे हावे।

           छत्तीसगढ़ मा कमरछठ तिहार के अलगेच महत्तम हे। ये दिन महतारी अउ नवा-नेवरनीन मन महुआ के कोंवर डारा के मुखारी करथें अउ असनान करके तियार होके गाँव के बीच बस्ती म सगरी खनाय रहिथे सगरी ल फूल पान अउ काशी ले चारो मुड़ा ले सजाय रहिथे।उहाँ जाके सबोझन सकलाथें अउ अपन सरधा भक्ति पूजा-पाठ करथें। पूजा- पाठ बर मउहा के पाना,पतरी,दोना अउ मउहा फूल अउ मउहा के तेल जेन ल डोरी तेल घलो कहिथें ये जमो के अलगेच महत्तम रहिथे। कमरछठ के दिन भइंस के दूध दही चढ़ाए जाथे।येकर पाछू येहू कारन हे के इही दिन देवता मन मंत्र शक्ति ले भइंस के सिरजन करे रहिन।तेकरे सेती भइंस के दूध,दही अउ घी ल ही बउरे जाथे।

             कमरछठ के दिन गाँव के महाराज ह सबो उपसहीन मन ला कमरछठ तिहार के कहानी सुनाथे।पूजा होय के पाछू छुही/चंदन ल दोना म घोर के घर के लइका मन ला पीयंर पोथी जेन ह कपड़ा के बने रहिथे अपन लइका के पीठ म पोता करे के चलागत हे पीठ म पोता मारे के पाछू ये मानता हे के पीठ कोती अधर्म के वास होते अउ पोता लगे के पाछू अधर्म के नाश हो जाथे।अउ सगरी के पबरीत पानी ला पूरा घर में छिंचे जाथे। जेकर ले घर मा सुख समृद्धि के बढ़ोना बाढ़थे अइसे मानता हावे।कतको गुनीक मन के मुताबिक लक्ष्मी जी के जनम सागर ले होय रहीस वोकर सेती सगरी पूजा के विधान हे।

            पसहर चउंर के रांधे भात अउ छै जात के भाजी साग ल पूजा करे के बाद फरहारी करथें अउ पारा-परोस म एक दूसर घर घलो परसाद बांट के मिल-जूल के सुग्घर ढंग ले हमर लोक परब,लोक संस्कृति कमरछठ परब ल मनावत अउ सुख समृद्धि के संदेशा देवत रहिथें।

               *सबोझन ल जोहार हे*


*✍️डोरेलाल कैवर्त*  "*हरसिंगार*"

        *तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)*

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नीच भाखा/नान्हे कहिनी*

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   *नीच भाखा/नान्हे कहिनी*

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          *गांव- देहात म,आज ले भी घर में अवतरे नावा बाबू लइका ल ' नंगरिहा (नांगर जोतइया) आइस हे' अउ नोनी पिला ल 'पनिहारिन (पानी लनइया) आइस हे'...अइसन कहे के अपन ठेठ फेर बड़ मीठ अंदाज हे; फेर  आधा शहरी आधा देहाती दाऊ (तईहा के दाऊ; अब कहाँ के?) के मन आही, तब न...*



 -               


           दाऊ हर रहिस ,खाँटी गांव के मनखे । फेर वोकर पूत अउ वंशावली मन धीरे-धीरे पता नइ चलिस, कब न कब के शहरी हो गय रहिन । अउ अब कभु -कभु ये गंवई वाला घर म वोमन आँय । फेर जब फसल हर लुवा -मिसा जाय, तब कुटा-अधिया ल सँकेले बर, वोमन जरूर- जरूर आंवय ।


            अब वोमन के भाखा हर , गांव रहईया वोमन के नौकर -चाकर , पौनी-पसारी मन ल समझ नइ आय ।


            ए पइत शहर ले गांव आय दाउ के छोटकी  बहुरिया के देहें हर, रात में उसल गय । वइसे शहर हर तिरेच म रहिस अउ आजकल मोटर के जमाना। फेर भगवान के लाख -लाख असीस !बिना विघ्न -बाधा चीरा -फोरा के वोहर घर म ही  सुफल हो गय ।


            विहना परऊ पहटिया  येला सुनिस तब मुचमुचात छोटे दाऊ ल  जोहारिस अउ पूछ  बईठिस - का पहुना आय  हे दाऊ जी, नँगरिहा ये के पनिहारिन...?


          येला सुनिस तब छोटे दाऊ हर गुस्सा म भभक गय । वोहर वोकर गोठ के कोई उत्तर नई दिस ।


            परऊ घलव सहम गय अउ कुछु अल्हन, होंनी -बदी के डर ले चुपे-चाप गाय-गरु ल ढील,  पहट ल ले चलिस  ।


            अब तो येती छोटे दाऊ हर भभकत कहत रहिस...ये साले गांव -गंवार नीच लोगों की भाषा भी इतनी नीच और ठेठ होती है । मेरे घर आया नया मेहमान अगर लड़का है ,तो वह नँगरिहा होगा । बड़ा होकर सीधा हल ही चलाएगा और लड़की हुई तो पनिहारन , सीधी पानी ही ढोयेगी बड़ी होकर , इन नमकहरामों के अनुसार...


            वइसे छोटे दाऊ घर 'नँगरिहा' ही आय रहिस , वो दिन ।



*रामनाथ साहू*



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सुरता- 26 अगस्त - 61 वीं जयंती म विशेष

 सुरता-


26 अगस्त - 61 वीं जयंती म विशेष 


बहुमुखी प्रतिभा के धनी रिहिन नंद कुमार साहू "साकेत"


ये शरीर हा नश्वर हे. जउन ये दुनियां म

 आहे वोहा एक दिन इहां ले जरूर जाहि. लेकिन दुनियां ल छोड़ के जाय के बाद कोनो मनखे ला सुरता करथन त वोकर पीछे  कारन उंकर सुग्घर कारज ह होथे. कम उम्र म ये दुनियां ल छोड़ के अपन एक अलग पहिचान छोड़िस अइसन प्रतिभा म स्वर्गीय 

नंद कुमार साहू "साकेत" के नांव सामिल हे. वोहा गजब प्रतिभा के धनी रिहिन हे.     


       जीवन परिचय 


नंद कुमार साहू साकेत के जनम राजनांदगॉव जिला के मोखला गाँव म साधारन किसान परिवार म 26 अगस्त 1963 म होय रिहिन हे. उंकर बाबू जी के नाँव कृश लाल साहू  अउ महतारी के सोहद्रा बाई साहू नाँव

 हे. वोकर पत्नी के नाँव लता बाई साहू, बेटा के नाँव हितेश कुमार साहू, अउ बेटी मन के नाँव केशर साहू अउ प्रेमा साहू हे. 


 नानपन ले गायन अउ वादन म रुचि 


  पढ़ाई जीवन ले ही उंकर रुचि गायन, वादन म रिहिस हे. स्कूल म पढ़ाई करत -करत गाँव मा अपन सँगवारी मन सँग मिल के 1980 म मानस मंडली के गठन करिन । गाँव के नाचा मंडली म घलो योगदान दिस । उंकर सुरु ले  लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम डहर रुचि राहय. नाचा, रामायण के सँगे सँग 



जस गीत, फाग गीत मा गायन अउ हारमोनियम वादन करय. 


  आकाशवाणी म गीत प्रसारित 

 

 श्रद्धेय साकेत जी ह पढ़ाई जीवन ले गीत लिखे के सुरु कर दे रिहिस हे. वोहा लोक गीत, जस गीत अउ फाग गीत के  रचना करिस. 1990 -91म उंकर गाये लोकगीत आकाशवाणी रायपुर ले प्रसारित होइस ।


  नौकरी मिले के बाद प्रतिभा ह अउ निखरिस 


मैट्रिक  परीक्षा पास होय के बाद शासकीय प्राथमिक शाला में शिक्षक बनगे. अब उंकर प्रतिभा के सोर अउ बगरत गिस. वोहा धामनसरा,  मुड़पार, सुरगी, बुचीभरदा जिहां नौकरी करीस पढ़ाई के सँगे- सँग उहां अपन व्यहार ले सब झन ल गजब प्रभावित करिस।


   उद्घोषक अउ निर्णायक के जिम्मेदारी निभाइस 


अब वोहा सबो प्रकार के मंच जइसे सांस्कृतिक प्रतियोगिता, मानस गान टीका स्पर्धा, रामधुनी स्पर्धा जसगीत प्रतियोगिता,फाग स्पर्धा म उद्घोषक अउ निर्णायक के भूमिका निभात गिस. अपन गाँव मोखला के सँगे- सँग अब दूरिहा- दूरिहा म वोकर नाँव के सोर चले ल लगिस. स्कूली कार्यक्रम म घलो अपन प्रतिभा ल दिखाइस. लइका मन ल सुग्घर ढंग ले सांस्कृतिक कार्यक्रम 

खातिर सहयोग करय. 


  लोक कला मंच द्वारा उंकर गीत के प्रस्तुति 


आडियो, वीडियो प्रारुप के माध्यम ले उंकर गीत के गजब धूम मचिस ।उंकर गाना फेसबुक, वहाट्सएप, यू ट्यूब म खूब  चलिस. धरती के सिंगार भोथीपार कला अउ दौना सांस्कृतिक मंच दुर्ग के मंच ले उंकर गीत सरलग चलत गिस. कुछ गीत ल खुद गाइस अउ कुछ 

ला दूसर कलाकार मन आवाज दिस. 1 अप्रैल 2018 मा रवेली म  मंदराजी महोत्सव समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम म उंकर लोक गीत अउ जस भजन एल्बम के विमोचन लोक संगीत सम्राट   खुमान साव जी, स्वर कोकिला कविता वासनिक , वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. पीसी लाल यादव , वरिष्ठ साहित्यकार कुबेर सिंह साहू जी ,साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के अध्यक्ष अउ मंदराजी महोत्सव के मंच संचालक भाई लखन लाल साहू लहर  के द्वारा करे गिस. 


साकेत साहित्य परिषद् ले अब्बड़ लगाव 


 जसगीत मा उंकर प्रेरणा स्रोत सुरगी निवासी श्री मनाजीत मटियारा जी अउ कविता के क्षेत्र म  वोहा श्री लखन लाल साहू लहर  अध्यक्ष, साकेत साहित्य परिषद् सुरगी ल अपन प्रेरणा स्रोत माने. 

  नंद कुमार जी ह साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के सक्रिय पदाधिकारी रिहिन हे. कवि गोष्ठी म अपन नियमित उपस्थिति देय .साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव ले उंकर लगाव अत्तिक रीहिस कि अपन उपनाम " साकेत "रख लिस. 


कवि सम्मेलन म सराहे गिस 


अब कवि सम्मेलन म घलो  उंकर भागीदारी होय लगिस. साकेत के सँगे -सँग दूसर साहित्य साहित्य समिति मन के कार्यक्रम

म उछाह पूर्वक भाग लेय. कोरबा, बेमेतरा म छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के भव्य मंच म अपन काव्य प्रतिभा के एक अलगेच पहिचान छोड़िस।कवि सम्मेलन म 

वीरेंद्र कुमार तिवारी वीरू, पद्मलोचन शर्मा मुंहफट,प्यारेलाल लाल देशमुख,लखन लाल साहू लहर,  कैलाश साहू कुंवारा, संतू राम गंजीर,महेन्द्र कुमार बघेल, ओमप्रकाश साहू अंकुर के संगे -संग लक्ष्मण मस्तुरिहा, विश्वंभर यादव मरहा,मीर अली मीर जइसे बड़का कविअउ गीतकार मन सँग कविता पाठ करिन ।


सम्मान -


  नंद कुमार जी  ल कतको लोक कला मंच, रामायण मंडली, फाग मंडली, जस गीत मंडली,रामधुनी मंडली  अउ युवा संगठन मन ह निर्णायक अउ उद्घोषक के रुप म सम्मानित करिन. 

 सम्मान के कड़ी मा 29 फरवरी 2012 मा रघुवीर रामायण समिति राजनांदगॉव द्वारा उद्घोषक के रुप म विशेष सम्मान, 23 फरवरी 2014 म साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव द्वारा "साकेत साहित्य सम्मान",जिला साहू संघ राजनांदगॉव द्वारा  1 अप्रैल 2019 म कर्मा जयंती मा "प्रतिभा सम्मान ", शिवनाथ साहित्य धारा डोंगरगॉव द्वारा 25 अगस्त 2019 मा " साहित्य सम्मान ",  पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया जिला राजनांदगॉव द्वारा 2021 मा " पुरवाही साहित्य सम्मान -2020 " सहित आने सम्मान सामिल हावय।


ये गीत अउ कविता के गजब सोर 


उंकर लिखे गीत /कविता जउन ह लोगन मन के जुबान म छागे वोमा  "महतारी के लागा", " वो पानी म का जादू हे "",तीजा पोरा, " "विधवा पेंशन ", "आँखी के पुतरी," "जिन्दगी एक क्रिकेट", "तिरंगा," " सरग ले सुग्घर गाँव "

सामिल हे. साक्षरता , पर्यावरण संरक्षण ,अउ कोरोना जागरुकता उपर सुग्घर रचना लिखिस।


 मिलनसार अउ मृदुभाषी 


    वोहा अब्बड़ सरल, सहज ,मृदुभाषी अउ हंसमुख व्यक्तित्व के धनी रिहिन हे. वोहा बहुमुखी संपन्न कलाकार रिहिन हे. पर येकर बावजूद वोमा घमण्ड थोरको नइ रिहिस हे. एक डहर वोहा अपन ले वरिष्ठ मन के झुक के पैलगी अउ मान सम्मान करे बर कभू नइ भूलिस त दूसर कोति अपन ले छोटे मन ला वोहा कभू छोटे नइ समझिस. वहू मन ला गजब स्नेह दिस. 


   सीखे मा गजब उछाह दिखाय 


58 साल के उम्र म घलो वोकर मन म सीखे के गजब उछाह रहय।

   साकेत जी ह छंद के छ के संस्थापक आदरणीय अरूण कुमार निगम जी द्वारा स्थापित "छंद के छ " म छंद सीखे बर 2021 म तइयार होय रिहिन हे पर दुर्भाग्यवश वो सत्र के शुरु होय ले पहिली वोहा ये दुनियां ला छोड़ के चले गे. 

जब उंकर निधन के खबर चले ल लगिस त  गुरदेव निगम जी ह मोर करा फोन करके किहिस कि "ओमप्रकाश कइसे खबर ल सेन्ड करे हस. बने पता कर लव भई. खबर ल डिलीट करव. " त मेहा गुरुदेव जी ल बतायेंव कि "काश! ये खबर हा गलत होतिस गुरुदेव जी पर होनी के सामने हमन नतमस्तक हन. 


तब गुरुदेव जी ह मोला बताइस कि हफ्ता भर पहिली मोर ले गोठ -बात होय रिहिस कि गुरुदेव जी महू ह छंद सीखना चाहत हवँ. मोला आप मन ह शिष्य के रुप मा स्वीकार कर लेहू. मोर बिनती हे गुरुदेव जी. तब गुरुदेव जी हा श्रद्धेय साकेत जी ला किहीस कि -  ".नंद जी मँय हा आप ल का सिखाहूं . आप हा तो पहिली ले सुग्घर -सुग्घर रचना लिखत हवव .सबो डहर छाय हवव. " ता नंद कुमार साहू जी ह बोलिस कि " गुरुदेव जी छंद के छ अउ आपके मेहा गजब सोर सुने हवँ.  मँय हा आप मन ले छंद सीखना चाहत हवँ गुरुदेव जी. मोला निरास झन करहू. " 

श्रद्धेय नंद जी के सरल, सहज अउ सरस 

व्यवहार ले गुरुदेव जी हा गजब प्रभावित होइस. वोला अपन अगला सत्र मा छंद साधक के रुप मा सामिल कर ले रिहिन पर ये छंद सत्र हा चालू होय ले पहिली  नंद कुमार साहू ह 19 अप्रैल 2021 म 58 वर्ष के कम उम्र म ये दुनियां ल छोड़ के चल दिस. 

जब ये साल के छंद सत्र हा शुरु होइस ता गुरुदेव निगम जी ह मोर करा मेसेज करिस कि "- आज  नवा छंद सत्र शुरु होय के बेरा मा श्रद्धेय नंद कुमार साहू साकेत के गजब सुरता आथे. उंकर याद करके मोर आँखी हा डबडबागे. "

  सरल, सहज, सरस, मृदुभाषी, हंसमुख व्यक्तित्व ले भरपूर अउ गजब प्रतिभा के धनी श्रद्धेय नंद कुमार साहू जी साकेत ल उंकर 61 वीं जयंती म सत् सत् नमन हे।

                

 ओमप्रकाश साहू "अंकुर "

सुरगी, राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़)

मोहरी

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          *चौंसठ कला मन म ले,बारह कला धरके राम आईंन अउ मोहन -मारण - वशीकरण-उच्चाटन जइसन अउ चार कला ल संजोर के मोहन आईंन। वोई मोहना के अवतरे के दिवस म,उँकर वोई मोहन -मोहनी मया- पिरीत के एक नानकुन कहानी -*





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                    *मोहरी*

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               मोहरी बाजत हे।


           बाजा - रुंजी मन म , ये मोहरी के बड़ महत्तम हे। येहर हमर छत्तीसगढ़ीया -शहनाई आय। अइसनहेच मिलता- जुलता बड़े आकार के बाजा ल हमर  दक्षिण भारतीय भई मन - नाद स्वरम  घलव कहिथें ...रत्नाकर मोहरी के धुन ल सुनत मने मन गुनत हे।  वोहर अभी, अपन थोरकुन धुरिहा के रिश्तेदारी म बरात आये हे।अउ अभी वोकर  करा कुछु खचित काम घलव नइ ये। पूरा फुरसत ले , वोहर ये बिहोतरा- बाजा के आनन्द उठात हे ।  


        अपन मुड़ म परे कारज म तो मनखे ल मुड़ खुजियाय के फुरसत नइ मिलय। अउ निकट -सम्बन्धी  मन के  कारज ल तो कूद के उठाय बर लागथे ।तब अइसन बाजा -रुंजी सुने के अवसर कहाँ मिल पाथे।


     मोहरी के सुर कान म मिश्री ल घोलत हे ।


 "हाय.. रत्नाकर..! कइसन हावस बाबू अउ इहाँ तंय कइसन..? "आवाज हर जाने -चीन्हे कस लागिस, रत्नाकर ल।वोहर  वो    कोती ल  देखिस।  अब तो वोकर क्लासमेट श्रुति,वोकर तीर म आ के खड़ा हो गय रहिस ।

"कोन श्रुति...!! तंय इहाँ कइसन...?"

"येहर मोर गांव...मोर  छईंहा- भुइंया।"

श्रुति झरझरात कहिस,"अउ तंय बारात आय हस ।"

"वाह...!तँय कइसे जान डारे कि मंय बारात आँय हंव।" रत्नाकर घलव श्रुति ल अइसन अचानक आगु म पा के आनन्द -विभोर हो गय रहे।

"तँय अतेक फुरसत लेके ये दे मोहरी ल सुनत हावस अउ बरतिया मन के संग म मिंझरे हावस न।अउ येकर ल बड़खा बात...तँय इहाँ मोर गांव शायद पहिली बार आय हावस।"श्रुति पूरा विस्तार ल बता दिस।


        अउ वो मुचमुचात खड़े रहिस । अब  रत्नाकर विपत्तिया गय,अब श्रुति करा गोठियाव कि मोहरी ल सुनों। वोहर दुनों च छोड़ना नइ चाहत  रहिस ।


          श्रुति  अउ रत्नाकर कक्षा -संगवारी ये। वोमन के स्नातकोत्तर कक्षा म, मनखे के कमी नइ ये।श्रुति करा  रत्नाकर के विशेष परच..उठना- बैठना नइ रहिस।हाँ... फेर एके जात -बिरादरी के होय के सेती, वोकर उपर नजर हर परिच  जाय ।वोकरे कस अउ चार -पांच लड़की मन वोकर  ये कक्षा म हांवे वोइच जाति- बिरादरी के।वो सब  मन उपर जाने -अनजाने नजर परिच जाय ।


             मोहरी बाजत हे...!


"चल मोर घर...!"

"अभी नहीं...!"

"अभी नहीं त, तँय अउ कब आबे?"

"पता नइये।वो दे ध्यान लगा के सुन! मोहरी हर बाजत हे अउ का का कहत हे।"

"वो तो बहुत कुछ कहत हे। सुने सकबे तव सुन...!"श्रुति हर अब रत्नाकर कोती ल देखे नइ सकत रहिस।

"चल मोर घर...!" वो थोरकुन हड़बड़ी म कहिस।

"अभी पहिली... उहाँ,  जिहाँ जाना हे ।"

"वोकर बाद...?"

"मोर तो दुबारा इहाँ आये के मन करत हे।वो दे सुन मोहरी काय कहत हे।"

"तईंच सुन...!"श्रुति कहिस,फेर भागे नइ सकिस ।

"चल मोर घर...!"वो  आन कोती ल देखत फेर कहिस।जइसन ले जा के ही मानही अपन घर।

"पक्का बलावत हस कि कचिया।" रत्नाकर तो जइसन मोहरी के बोल म बोलत हे।

"अगर मंय कचिया कह हां तब...?"

"मंय तुरन्त चल दिहां।" रत्नाकार ल खुद अचम्भा होवत रहिस कि वोकर मुहँ ल  का... का ... ये ...आन...तान...निकलत हे।अउ ये मोहरी तो बाजतेच हे।

""अउ मंय पक्का कह हां तब...?"श्रुति खुदे कहत हे

"तब  तो   पाछु आहाँ  तोर घर...फेर अइसन मोहरी जरूर बाजही ...!रत्नाकर के मुँह ले तुरते निकल गय ,"अब बोल का कहत हस...तँय...!"


       श्रुति अब ले घलो भागे नइ सकिस।मोहरी हर बाजतेच रहिस।अब  तो दुनों झन वोला सुनत रहिन।

"का कहत हस...अब बोल।"रत्नाकर बड़ बेर बाद म पूछिस।

"  अब मोला नही ये मोहरी ले ...पूछ।"श्रुति अब भी रत्नाकर के तीर ल भागे बर समरथ नइ होय पाये रहिस। 


         हाँ..मोहरी हर अब ले भी बाजतेच रहिस।अउ येती बरात के पइरघनी,घलव हो गय रहिस। फेर ये बात ल, ये दुनों अभी भी  पता नई पाय रहिन।



*रामनाथ साहू*


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ज़ेहर जइसन दिखथे अउ जइसन लागथे; वोहर बस, वोतकिच भर नई रहय...*

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*ज़ेहर जइसन दिखथे अउ जइसन लागथे; वोहर बस, वोतकिच भर नई रहय...*


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 *हाथी अउ चांटी/लघुकथा*

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           हाथी अउ चांटी के मिल भेंट चलतेच रथे । ए पइत चांटी हाथी ल पुछिस - कस बाबू हाथी ,तँय कभु अपन बारे म सोचे हस ।


हाँ, बरोबर सोंचे हंव - हाथी जवाब दिस ।


"का सोंचे हस ,तँय ,चिटिक महुँ ल तो बता ।"


"येई कि दुनिया म सबले बड़खा मंय हंव ।"


"अउ कभु मोर बारे म सोचे हस जी ।"


"हां, बरोबर सोंचे हंव ।"


"का सोचे तँय मोर बारे म...? "


"बस, येई कि दुनिया म सबले  छोटे तँय हस ।"


"बस, अतकिच सोंचे हस तँय ,मोर बारे म...!"चांटी हाँसत हाँसत कठ्ठल गय रहिस ।


         फेर हाथी ल  गुनान धर देय रहिस ।


*रामनाथ साहू*


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कवि

 "कवि"

          कहिथे जिंहां नी पहुंचे रवि तिहा पहुंचे कवि।यहु एकठन अलकरहा किसम के जीव आय। इंकर बुद्धि के पार ल तो ब्राह्म घलो पार नी पा सके। घर म बईठे- बईठे पूरा दुनिया ल छांद -बांध डरथे।जेन ढंग ले कुदारी धरे ल नी जाने तेन हर मुंही पार बांध डारथे।

      हमर परोसी लेड़गा कथे भईया महूं कवि बनहूं।त मे कहेव  ताहन तहूं ह लमीया -लमीया के लिखबे।जईसे एक झन कवि लिखे हे,'दे दी आजादी हमें बिना खड्ग बिना ढाल '?ते जानथस रे लेड़गा हमर देस ल आजादी देवाय म कतिक मनखे, क्रांतिकारी मन बलिदान होगे। शहीद वीर नारायण सिंह ल तो तोप म बांध के उड़ा दिस। भगत सिंह ल फांसी म लटका दिस। सुभाष चन्द्र बोस के आज ले पता नी चलिस। चापलूस मन वो समे घलो जिंदाबाद रिहिस अऊ ए समे घलो।हमर देस बड़ बिचित्र हे रे लेड़गा आज छेरी के रस्सी सही सलामत हे फेर वो फांसी के रस्सी खोजे म नई मिलय।आज घलो हमन दिमागी रूप ले गुलाम हन।

       हां भई तोला कवि बनना हे ते संच ल लिखबे।जईसे एक झन कवियत्री ह लिखीस

      चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी 

खुब लड़ी मर्दानी वह तो 

झांसी वाली रानी थी।

      कविता लिखे के मतलब दशा दिशा ह मिलय जुलय।एकदम फेंकू राम कस नी होना चाहि।इहां तो एक ठन पेंड़ घलो नी लगाय तेन पर्यावरण संरक्षण के गोठ लिखथे।जईसे जादूगर मन ल मैजिसियन कथन वईने कुछ हद ले अईसन प्राणी मन ल फेंकोलाजिसियन भी कही सकथन।

यहू मन किसम -किसम के होथे जईसे तीन बेंदरा, बुरा देखो झन, बुरा सुनो झन, बुरा बोलो झन।ये जम्मो मानसिक गुलामी ले पीड़ित होथे। अभी कुन इही किसम के चलन जादा हे।

      लेड़गा कथे 'जिहां नी पहुंचे रवि तिहा पहुंचे कवि 'ये काय होथे भईया ।मे कहेंव एक तो ऊंकर सोच बिचार,दूसर इंखर मन के कवि सम्मेलन जन जागरुकता। आजकल तो छट्ठी बरही,परब, उत्सव, श्राद्ध असन म कविता पढ़ देथे।लेड़गा कथे ये कवि मन श्राद्ध म कइसे कविता पढ़हत होही भईया।एकर अनुभव तो  नई हे रे लेड़गा फेर एक ठन कव्वाली के लाइन सुरता आवत हे, 

तेरी याद आई जुदाई के बाद।

लेड़गा कथे एकात लाइन अऊ सुना देना भईया त सुन,

तुम तो ठहरे परदेसी साथ क्या निभाओगे।टनानना

त लेड़गा तहूं एकात दू लाइन सुना  तभे तो कवि बनबे।लेड़गा कथे गाड़ी के पाछू लिखाय रिहिस तेला सुनात हों भईया,

   कतनो झन झूलिस फांसी मे,

  कतनो झन गोली खाईस 

   काबर लबारी मारथो सहाब

  चरखा ले आजादी आईस।


         फकीर प्रसाद साहू 

             "फक्कड़ "

        २७-८- २०२४

दार्शनिक बने बर, दार्शनिक लइक खुराक भी तो चाहिए...*

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*दार्शनिक बने बर, दार्शनिक लइक खुराक भी तो चाहिए...*



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               *दार्शनिक/लघुकथा*               

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                     वो  दुनों के दुनों एकेठन साईकल म बइठ के  वो जगहा म पहुचींन ।

"कइसे?"पहला हर कहिस ।

"कइसे!" तब दूसरा कहिस ।

"अरे भईराम !अब कइसे?"

"तोर करा नइये?"

"नही । मंय तो तोर भरोसा  म आ गय हंव ।" पहला हर अपन जेब ल लहूटात कहिस ।

"मोर करा खाली चिखना के पुरता भर हे,अउ सच म कहिबे त मंय तोर भरोसा म आंय हंव ।" दूसर कहिस ।

"अब कइसे करबो?" पहला हर तो कंझा गय रहिस ।

"अउ कइसे करबो !सदाकाल जइसन करथन तइसन करबो । ये बनिया के अटक दुकान काबर हे । तोर साईकल ल गहना धरबो । हटकी ब्याज फेर लगही भई , दस रुपया सैकड़ा एक दिन के । बस एईच हर तोला जनाही ..."

"अरे कुछ नई जनाय ! खाय -पिए के नांव म सब हर चलथे ।" पहला कहिस । 


             अउ ये दुनों झन के तीर्थस्थल के तीर म अइसन तीर्थयात्री मन के सहूलियत बर जउन प्रतिष्ठान खुल गय रहिस ,उहाँ ले साईकल ल गहना धर के येमन तीर्थ म  बुड़की लगाईंन तब घर कोती फिरे के जोम करिन ।

"मुट्ठी बांध के आबे बन्दे..." 

"हाथ पसारे जाबे रे ...! " पहिली हर अपन गोठ ल पूरा नई करे पाय रहिस, कि दूसर हर तड़ाक ल कहे रहिस ।


                वोमन अब धरती म सायकल के जगहा म पैदल फिरत, दार्शनिक बन गय रहिन ।


*रामनाथ साहू*

 

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नान्हे कहिनी *// सउत बेटा //*

 नान्हे कहिनी      *// सउत बेटा //* 

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                    बबा रमेसर कहत ले लागय,बने मोठ डांट,सांवर देंहे के बरन,धोती अऊ ऊपर मं बंडी अंगरक्खा जादा पहिरे,पटकू घलो धरेच रहे अऊ अपन के कुबरी लउठी ला कभू नी छोड़ीस।बबा रमेसर जबर रमायनिक,पोथी पुरान के गजब गुनीक अऊ संगे-संग मा सइताधारी घलो रहिस।गाँव मा बबा के जबर मान रहिस,गांव के सभा पंचइत मा बबा रमेसर ल बलाबेच करें काबर के नियाव गोठ करे,लरई-झगरा के नियाव ल *दूध के दूध अऊ पानी के पानी* कर देवै बने *फरियर नियाव* करे।बबा रमेसर के बिना तो पंचइत होबेच नी करे।

                   बबा रमेसर रोज बिहनिया बेरा भांठा टिकरा कोती बूले जावे तेकर सेथी वोकर देहें बने ठोसहा अऊ पोठ रहिस। कहे गे हावे *सुबे साम के हवा लाख रुपिया के दवा* कभू दवई-मांदी के जरुरत नी परे रहिस।बुल के आतीस तंह ले असनान करके रोज रमायन बांचे वोकर पाछू चहा-पानी करतीस अइसन रोजेच के रहिस।चहा-पानी के पाछू अपन घर के परसार म माढ़े खटिया ऊपर बइठ के गुनत रहितीस।कोनों कुछू पूछे आतीन ता वोला सलाव घलो बतावय वोकर सलाव हा बने नीक रहय तेकरे सेथी कतको झन सलाव लेहे बर आतेच रहे।

             बबा रमेसर के येके झन लइका रहिस गजब सुग्घर पातर देंहे के सोंटवा।वोकर नांव टिबलू धरे रहिस।टिबलू अपन ददा के एकेझन रहिस अऊ अपन ददा के पानी मा घलो रहिस।कुछू नसा-पानी नी करे।अपन पुरती पोठ रहिस।खेती-बारी,गाय-गरुवा मा कोठा हा भरे रहे।गरीबहा अऊ मंगइया-जंचइया मन ला देहे-लेहे के पाछू धान हा पीग के पीग पूर जात रहिस।खेत म ओन्हारी राहेर,तिवरा,अरसी,बउटरा,मसरी घलो उपजावत रहिन।

                टिबलू के बिहाव समे मा हो गे रहिस।गाँव ले थोरिक दूरिहा म ओकर ससुरार रहिस दूनों के गाँव के सिवाना लगे रहिस तेकर सेती ससुरार आय-जाय म समे नी लागे।हप्ता म अपन ससुरार ले किंजर-बुल के देख-ताक आ जावत रहिस।ओकर गोसाईंन छोटे खुंटी के गोल मुँहरन संवरेली बानी के नांव रहिस बिसाहीन।ओहा बने कमइलीन रहिस,घर के जम्मो बूता-काम ल झटके कर डारय,गाय-गरुवा मन ला पैरा-भूसा,गोबर कचरा ल घुरवा म फेंकतीस,घर ल रोज गोबर म लीपतीस।बपरी ल भिनसरिहा ले उठे बर परे।सबो बूता काम ल संकेरहा कर डारे।

            बिसाहीन ल भगवान ह घलो चिन्हीस थोरिक दिन म ओह गरु देंहे होगिस तभो ले घर के बुता-काम ल करे म कोनों किसीम के कोताही नी करे आने मन कस *जांगर चोट्टी* नी रहिस।टिबलू ह घलो ओकर आधा बूता ल करे लागे।पूस के महीना रहिस,भराय जाड़ के दिन,जाड़ के मारे *हाड़ा कांप* जावे उही समे म बिसाहीन के देंहे पीरा उसलगे।टिबलू ह अपन पारा के काकी अऊ बढ़खा दाई ल बलाइस झटके ओला अस्पताल ले जाय के जोखा जमावत रहिस तइसनहे घरेच म *हरु-गरु* होगिस जरोंधा लइका होइस दूनोंझन नंगरिहा रहिस।

              येती बबा रमेसर ह घर म नवा पहुना वोहू जरोंधा बाबू आये हे कहिके खुशी के मारे *कुलक भरीस*।छै दिन म छट्ठी कर डारिस अऊ संगे-संग म गाँव के मन ल बने खवाय-पियाय के बेवस्था ल थोरिक बने ढंग ले करे रहिस येकर बर के गाँव के मन झन कहें के रमेसर घर छट्ठी म गे रहेन त कुछू बेवस्था नी करे रहिस।रतिहा रमायन घलो करवाइस फेर दूसर दिन गाँव के पंडित करा जाके पोथी-पतरा देखाके एकझन के नांव लाभो अऊ दूसर के कुशो धरिस अऊ गाँव के कोटवार करा ओकर नांव लिखवा दिस।रमेसर ह अपन दूनों नाती मन संग भुलाय रहे,अइसनहे करत ओकर दिन पहा जावत रहिस।

              *जिनगी जीयत भर के* आय  कतका बेर काय हो जाही तेकर कोनों ठिकाना नी रहे ये तन ह *पानी के बोटका* आय कतका बेरा फूट जाही तेकर गम नी मिले।बिसाहीन के छेवरिहा देंहे कचलोइहा होगीस *भाय-भुर्रा फेंकिस* अऊ पनदराही के कटे ले बपरी के *हाथ नारी जूड़ा गीस* येती टिबलू वोकर ईलाज करवाय पातीस तेकर ले पहिली बपरी ह दूनों लइका ल ओकर ददा के हिले छोड़ के ये दूनिया ले बिदागरी लेलीस।

               टिबलू के दुख ल काय पूछबे वोकर अंतस ह हदरगे *अपन घाव के पीरा ल अपनेच जानथे* वोला बड़ करलाई होगिस येती लइका ल देखे कि घर-दुवार,गाय-गरुवा,पैरा-भूसा,कचरा-गोबर परे रहे।लइका मन बिन दाई के होगिस,दाई के मया दुलार नी पाईस।घर म एकठन कारी गाय ह लागत रहिस त वोकरे गोरस ल पिया-पिया के कइसनो करके अपन दूनों लइका ल पोसत रहिस।लइका मन कतका सुग्घर गोल मुहूंँ के चन्दा कस चमकत रहें फेर लाभो ह अपन दाई के मुंहरन ल उतारे रहिस।असकरुहा टिबलू घर ल देखे के खेत-डोली ल संभाले फेर नान-नान जरोंधा लइका बड़ मुसकुल होगे रहिस।लइका मन के रोवई-गवई म हिरदे के *पीरा पहार* होगे।

              अभी टिबलू के उमर घलो वोतका जादा नी होय रहिस।घर-दुवार अऊ दूनों लइका मन ल देख-रेख करे बर अपन बेटा टिबलू ल दूसर बिहाव करे बर रमेसर ह कहिस।टिबलू ल तो दूसर बिहाव करे के मन नी लागत रहिस काबर के जानत रहिस के नवा येकर दाई आही तेह येमन ल कोनजनी मया करही के नी करही।फेर अपन ददा के गोठ ल घलो काट नी सकिस टिबलू हां कहि दिस।

              गाँव के दू कोस दूरिहा म बरातू के बेटी फगनी के बिहाव हो गे रहिस फेर ससुरार म जादा दिन नी रहे पाइस।तीन-चार महीना रहे होही के वोकर गोसंईया सरग सिधार गे रहिस।तेकर ले बपरी फगनी ह मइके म दुख काटत रहत रहिस।सबो के कहइ म एक दिन टिबलू ह फगनी ल चूरी पहिरा के अपन घर लानिस अऊ घर-दुवार के तारा-कुंची ल फगनी ल सउप दिस।ये घर-दुवार अऊ ये लइका मन आज ले तोरेच आय कहिके।

               फगनी घलो अपन घर कस सबो ल बरोबर जाने लगिस।सबो ल *एके लउठी म हांकत* रहिस,लइका मन ल मया-दुलार देवत रहिस।लइका मन घलो दाई के चोनहा कभू नी पाय रहिन।दाई के मया म लइका घलो मन कुलक भरीस।फगनी ह अपन मुहूंँ ले लइका मन ल नांव लेके कभू नी बलाय भलुक भर-भर मुहूंँ म बेटा के सिवाय आने नी निकले अऊ लइका मन घलो दाई के सिवाय आने कभू नी कहंय। बने-बने म दिन ह कइसे पहाथे पता नी चले।देखते-देखत म लइका मन घलो बाढ़ गिन स्कूल जाय के लइक होगिन।फगनी घलो अपन मन म सोच डारिस के इही मोर हीरा मन *आँखी के जोगनी* आय चन्दा-सुरुज कस दूनोंझन मोर *जिनगी म अँजोर* करही,फगनी ह फफक के रोवत कहिस मैं अऊ लइका के सउख अब नी करंव।फगनी के *पथरा के छाती* रहिस।दूनों लइका मन ल अपन *अँचरा के छइँहा* म सुग्घर राखे रहिस।फगनी के अइसन संस्कार के खातिर कोनों गम नी पाइन के दूनों लइका लाभो अऊ कुशो वोकर *सउत बेटा* आय।

✍️ डोरेलाल कैवर्त  *"हरसिंगार"*

        तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)

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छत्तीसगढ़ी लोक कथा जोगी डीह

 छत्तीसगढ़ी लोक कथा 

  जोगी डीह 

गाँव ले थोरिक धुरिया म लोगन  मन के भीड़ दिखत रहिस l भीड़ सीधा साधा नारी परानी मन के रहिस l कुछू तड़क भड़क नई दिखत रहीस l  भीड़ भाड़ म न ककरो अवाज न गोठ बात सुनावत रहिस l अावा जाही घलो धीरे -धीरे सुटुर- सुटुर,हलू -हलू l मंदिर घलो नोहय  न घर न धरमशाला l मठ चबूतरा आय l घाम पानी ले बंचे बांचे बर झाड़ी -झिटी ले छवाये रहिस l जोगी डीह नाम धरागे  l 

उही मेऱ हालत डोलत टमरत  छुवत एती ओती हाथ  गोड़ लमावत मैनखे  जेला जोगी बाबाजी  कहय  l  ओकर जै नई बुलावत रहिस कोनो फेर अंतस ले  सबके मन म जै जै के सुर समाये रहय l हाथ जोड़े बिनती करय सब l धुरिया ले कले चुप लोगन पाँव पळूटी करय l बड़ अचरज के 

जघा l जोगी डीह धाम बरोबर मानता वाले जघा होगे l जेन  जइसन मांगथे ओकर मानौती पूरा हो जाथे अइसे लोगन मन कइथे l

एक झन सियान गोठियावत रहिस l बतावत रहिस -जोगी डीह म आखरी वंस बांचे हे l जोगी बाबाजी अंधवा हे l नई देख सकय l भैरा घलो हे सुन नई सकय l कोंदा घलो हे बोल नई सकय  l हाथ हे फेर लूलवा l गोड़ हे  फेर लंगड़ा हे l  आँखी हे फेर अंधवा lमुँह हे उहू टेंडगा l लरहा हे जीभ निकले रहिथे l

नाक हे  तौन सोंडहा l चुंदी हे लट बंधाये l झूलफाहा  जोगी बबा l ए ठौर म आये बिना ओला देखे बिना कोनो काम नई कर सकय l जदुहा नोहय 

न बैगा गुनिया न टोनहा टमानहा l न चमत्कार न शिकार   बड़ अदभुत जीव l

अंधवा आँखी ले देख लीस जेला देखिस मान ले ओकर काम पूरा होगे l जेला टमड़ के छू लीस मान ले ओकर यात्रा पूरा होही l जेखर दे कुछु चीज ला खा दीस मान ले ओकर घर मंगल ही मंगल l अउ बड़े बात 

जोगी डीह म ओकरे सत्ता हे उही सरकार हे जेन नेंग धेग ला नई करही नई मानही कुपित हो जाथे l कोप के शिकार ले बांचे बर ओकर इही नियम ला मानथे l चबड़ चाबड़ करय्या मन मौनी हो जथे l चुगली चारी म बूड़े रहिथे  तौन मन सरीफ सराफत हो जाथे l नियत खोट्टा मन के नियत बदल जाथे l चोरहा दोगला मन दानी मानी बन जाथे l रोगी ढोंगी ठीक हो जथे l कुछु चढ़ावा नही


मुरारीसाव

छींट -बूंद/नान्हे कहिनी*

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*छींट -बूंद/नान्हे कहिनी*

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                 *(बड़े मनखे मन  के बर बिहाव म लाख - करोड़ के खरचा अउ छोटे मनखे मन के बिहाव म सब नेंगहा जोगहा।फेर बिहाव तो बिहाव होथे,उमा अउ महेश के मिलन होथे। अउ सबो बरतिया मन उमा महेश के गण ही तो आँय। वो बरतिया वो उमा महेश के गण मन बर, एक एक दोना छींट बूंद (रंगीन बुंदिया अउ सेव्) के व्यवस्था बनात बई के गाथा।)*



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           कइसन भी कर के बेटी के हाड़ा म हरदी चढ़ जाय...गुनत हे बेलमती । फेर काली बरतिया आहीं, तेमन बर कुछु करेच बर लागही । सब बरतिया मन ल  ओनहा- पटकु, कपड़ा लत्ता भेंट तो करे नई सकही, तब कम से कम वो मन ल एक जुवार नून -पसिया पियाही अउ आते साथ जलपान बर दिही एक -एक दोना छींट -बूंद ।

" पहारू बेटा ! बनत हे ग तोर बुंदिया हर?"बेलमती पूछिस ।

"हाँ, बई बनत हे , बढिया बनत हे ।"पहारू हलवाई ओझी दिस ।

"बेटा, एको घाना बने बट बट ले गोड़ रंगी, रंग ल दे के बना दे न ।"

"काबर ओ बई..."

"येकर ले छींट -बूंद नई बन जाही बेटा, तोर बुंदिया हर । जानतेच हस तब ले पूछत हस तँय !"

"गोड़ रंगी रंग हर महुरा ये, ओ बई !छींट- बूंद बनाय बर मंय खाय के रंग अलग धरे हंव ।"

"बढिया बेटा, कुछु भी कर , फेर तँय छींट-बूंद भर बना दे ।बने सुघ्घर लागथे ग वोहर देखे ले ही ।"बई तो लहरत कहिस ।

"अच्छा तँय ये बता , कोन -कोन रंग के बना दँव?"

"बस बेटा, लाल अउ हरियर !गोटेक- खाड़ेंक भर दिखत रहें लाल अउ हरियर बूंद मन ।"बेलमती कहिस ।


           छींट बूंद बन के सकिस ।पींयर पींयर बुंदिया के दाना बीच बीच म हरियर अउ लाल दाना ।

"छींट- बूंद ल का होही बई ?" पहारू हलवाई घलव तो एक नम्बर के बेलबेलहा ये ।

" एक एक दोना छींट- बूंद बरतिया मन खाहीं ..."

"अउ का ?"

"अउ का बेटा ! अशीष दिहीं , वो सब मन तो देवता रूप, गण- रूप आँय न उमा -महेश के !"

"पक्का बई ?"

"हाँ, बेटा !"

"कतेक अशीष दिहीं बोमन ?"

"वोतकी,जतका तोर बनाय ये परात भर के  छींट -बूंद मन हांवे !" बेलमती कहिस ।


   अब  पहारू हलवाई देखिस - वोकर बनाय ये छींट -बूंद मन तो उमा -महेश के गण मन के भोग यें !


*रामनाथ साहू*



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