Monday 23 September 2024

कलजुग के परसाद"

"कलजुग के परसाद"
       कलजुग केवल नाम अधारा 
    सुमिर -सुमिर नर उतरही पारा।
लेड़गा कथे एकर काय मतलब होथे भईया। में कहेव तुलसीदास जी केहे हे कलजुग म तपस्या -झपस्या करे के कोनो जरूरत नई
हे ।ये हर आनलाईन कस हे।मात्र भगवान के नाम ले से उद्धार हो सकथे।पहिली के ऋषि मुनि,मनखे मन ल  बछर,दूं बछर अऊ कतनो दिन ले तपस्या करे।तब लटपट कोनो -कोनो ल दरसन दे। गंगा ल धरती म लाय बर भगीरथ के कई पीढ़ि निपटगे।लेड़गा कथे तेकरे सेती जगा जगा रामायण, रामधुनि,जस गीत होत रहिथे। 'आइये हम आपका इस मंच  पर हार्दिक अभिनन्दन करते हैं।'त एमन ल पोगरी -पोगरी दरसन देत होही न भईया?
एमन तो दिन लगे न रात भजन कीर्तन म लगे रहिथे? दिन -रात गाय बजाय ले का होही रे लेड़गा।मन शुद्ध रहना चाहि। मुंह म राम खनखोरी (बगल)म छुरी।इहां तो रमायनिक असन मन कार्यक्रम होय ले पहिली बेवस्था पूछथे। कतनो झन ह हूमदेवा टाईप (कस)घलो रहिथे। भले दूसर ल ज्ञान बांट दिही "विपरीत बुद्धि विनाश काले"।
       लेड़गा पूछथे कस भईया अब रामायण, कथा, पूजा म परसाद बांटथे के नही?त मै कहेंव  
बांटथे रे लेड़गा फेर ओकर क्वालिटी ह बदल गेहे, कहूं जगा लायचीदाना, कोनो जगा फल्लीदाना,, कोनो जगा नरियर,बिरले जगा म निरवा गहूं,सूजी के परसाद पाबे।ओखर खाय के ठेंका तो लईका लोग,अऊ महतारी मन ले हे।मरद जात मन ल देबे त कहिथे राहन दे।लेड़गा पूछथे काबर काहत होही भईया?मे कहेव ऊंकर मुंह म "कलजुग के परसाद "रहिथे।लेड़गा पूछथे ये "कलयुग के परसाद "काय होथे भईया। तहूं रे लेड़गा गुटखा पाऊच ह तो कलजुग के परसाद आय। एमन परसाद ल भले थूंक दीही फेर गुटखा,पाऊच ल नई थूंके। कोनो मेर सुने घला होबे कहिथे ले राहन दे भईया गुटखा खाथों।मानो गुटखा खाके वो हर अमर हो जही।लेड़गा कथे महूं देखे हो भईया टीवी म बुढ़वा- बुढ़वा मन काहत रहिथे 'दाने -दाने में केसर का स्वाद बोलो जुंबा केसरी ',का केसर अतिक सस्ता होही भईया? एक झन काहत रहिथे 'टशन का जशन '। गुटखा पाऊच म का टशन अऊ का जशन।ये हर तो 'मांछी मारे हांथ गंधाय' कस होगे न भईया। पाऊच गुटखा खवईया मन के दांत ह काई रचे कस रच जाय रथे।अऊ बस्साथे घलो।इंकर केसर के रंग म टट्टी खोली,मुतरी खोली (शौचालय) ह घलो छड़बड़ा जाय रहिथे।एला देख के सादा मनखे मन के एक्की  दूक्की घलो सटक जथे।एमन दवाखाना म घलो थूंक देथे। जाने माने गुरुजी ह एमन ल अमीबा, आक्टोपस के चित्र बनाए बर केहे हे। तहूं बड़ गोठियाथस रे लेड़गा अब थोकिन थिरा, नही ते स्वच्छ भारत के ठेकादार मन रिसा जाही।मोर संग चल बोल 
  गुटखा पाऊच नई खाना हे,
    स्वच्छ  भारत   बनाना  हे।
                   फकीर प्रसाद साहू।              
                   " फक्कड़"
                    ग्राम - सुरगी

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