Wednesday 4 September 2024

सउत बेटा

 नान्हे कहिनी      *// सउत बेटा //* 

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                    बबा रमेसर कहत ले लागय,बने मोठ डांट,सांवर देंहे के बरन,धोती अऊ ऊपर मं बंडी अंगरक्खा जादा पहिरे,पटकू घलो धरेच रहे अऊ अपन के कुबरी लउठी ला कभू नी छोड़ीस।बबा रमेसर जबर रमायनिक,पोथी पुरान के गजब गुनीक अऊ संगे-संग मा सइताधारी घलो रहिस।गाँव मा बबा के जबर मान रहिस,गांव के सभा पंचइत मा बबा रमेसर ल बलाबेच करें काबर के नियाव गोठ करे,लरई-झगरा के नियाव ल *दूध के दूध अऊ पानी के पानी* कर देवै बने *फरियर नियाव* करे।बबा रमेसर के बिना तो पंचइत होबेच नी करे।

                   बबा रमेसर रोज बिहनिया बेरा भांठा टिकरा कोती बूले जावे तेकर सेथी वोकर देहें बने ठोसहा अऊ पोठ रहिस। कहे गे हावे *सुबे साम के हवा लाख रुपिया के दवा* कभू दवई-मांदी के जरुरत नी परे रहिस।बुल के आतीस तंह ले असनान करके रोज रमायन बांचे वोकर पाछू चहा-पानी करतीस अइसन रोजेच के रहिस।चहा-पानी के पाछू अपन घर के परसार म माढ़े खटिया ऊपर बइठ के गुनत रहितीस।कोनों कुछू पूछे आतीन ता वोला सलाव घलो बतावय वोकर सलाव हा बने नीक रहय तेकरे सेथी कतको झन सलाव लेहे बर आतेच रहे।

             बबा रमेसर के येके झन लइका रहिस गजब सुग्घर पातर देंहे के सोंटवा।वोकर नांव टिबलू धरे रहिस।टिबलू अपन ददा के एकेझन रहिस अऊ अपन ददा के पानी मा घलो रहिस।कुछू नसा-पानी नी करे।अपन पुरती पोठ रहिस।खेती-बारी,गाय-गरुवा मा कोठा हा भरे रहे।गरीबहा अऊ मंगइया-जंचइया मन ला देहे-लेहे के पाछू धान हा पीग के पीग पूर जात रहिस।खेत म ओन्हारी राहेर,तिवरा,अरसी,बउटरा,मसरी घलो उपजावत रहिन।

                टिबलू के बिहाव समे मा हो गे रहिस।गाँव ले थोरिक दूरिहा म ओकर ससुरार रहिस दूनों के गाँव के सिवाना लगे रहिस तेकर सेती ससुरार आय-जाय म समे नी लागे।हप्ता म अपन ससुरार ले किंजर-बुल के देख-ताक आ जावत रहिस।ओकर गोसाईंन छोटे खुंटी के गोल मुँहरन संवरेली बानी के नांव रहिस बिसाहीन।ओहा बने कमइलीन रहिस,घर के जम्मो बूता-काम ल झटके कर डारय,गाय-गरुवा मन ला पैरा-भूसा,गोबर कचरा ल घुरवा म फेंकतीस,घर ल रोज गोबर म लीपतीस।बपरी ल भिनसरिहा ले उठे बर परे।सबो बूता काम ल संकेरहा कर डारे।

            बिसाहीन ल भगवान ह घलो चिन्हीस थोरिक दिन म ओह गरु देंहे होगिस तभो ले घर के बुता-काम ल करे म कोनों किसीम के कोताही नी करे आने मन कस *जांगर चोट्टी* नी रहिस।टिबलू ह घलो ओकर आधा बूता ल करे लागे।पूस के महीना रहिस,भराय जाड़ के दिन,जाड़ के मारे *हाड़ा कांप* जावे उही समे म बिसाहीन के देंहे पीरा उसलगे।टिबलू ह अपन पारा के काकी अऊ बढ़खा दाई ल बलाइस झटके ओला अस्पताल ले जाय के जोखा जमावत रहिस तइसनहे घरेच म *हरु-गरु* होगिस जरोंधा लइका होइस दूनोंझन नंगरिहा रहिस।

              येती बबा रमेसर ह घर म नवा पहुना वोहू जरोंधा बाबू आये हे कहिके खुशी के मारे *कुलक भरीस*।छै दिन म छट्ठी कर डारिस अऊ संगे-संग म गाँव के मन ल बने खवाय-पियाय के बेवस्था ल थोरिक बने ढंग ले करे रहिस येकर बर के गाँव के मन झन कहें के रमेसर घर छट्ठी म गे रहेन त कुछू बेवस्था नी करे रहिस।रतिहा रमायन घलो करवाइस फेर दूसर दिन गाँव के पंडित करा जाके पोथी-पतरा देखाके एकझन के नांव लाभो अऊ दूसर के कुशो धरिस अऊ गाँव के कोटवार करा ओकर नांव लिखवा दिस।रमेसर ह अपन दूनों नाती मन संग भुलाय रहे,अइसनहे करत ओकर दिन पहा जावत रहिस।

              *जिनगी जीयत भर के* आय  कतका बेर काय हो जाही तेकर कोनों ठिकाना नी रहे ये तन ह *पानी के बोटका* आय कतका बेरा फूट जाही तेकर गम नी मिले।बिसाहीन के छेवरिहा देंहे कचलोइहा होगीस *भाय-भुर्रा फेंकिस* अऊ पनदराही के कटे ले बपरी के *हाथ नारी जूड़ा गीस* येती टिबलू वोकर ईलाज करवाय पातीस तेकर ले पहिली बपरी ह दूनों लइका ल ओकर ददा के हिले छोड़ के ये दूनिया ले बिदागरी लेलीस।

               टिबलू के दुख ल काय पूछबे वोकर अंतस ह हदरगे *अपन घाव के पीरा ल अपनेच जानथे* वोला बड़ करलाई होगिस येती लइका ल देखे कि घर-दुवार,गाय-गरुवा,पैरा-भूसा,कचरा-गोबर परे रहे।लइका मन बिन दाई के होगिस,दाई के मया दुलार नी पाईस।घर म एकठन कारी गाय ह लागत रहिस त वोकरे गोरस ल पिया-पिया के कइसनो करके अपन दूनों लइका ल पोसत रहिस।लइका मन कतका सुग्घर गोल मुहूंँ के चन्दा कस चमकत रहें फेर लाभो ह अपन दाई के मुंहरन ल उतारे रहिस।असकरुहा टिबलू घर ल देखे के खेत-डोली ल संभाले फेर नान-नान जरोंधा लइका बड़ मुसकुल होगे रहिस।लइका मन के रोवई-गवई म हिरदे के *पीरा पहार* होगे।

              अभी टिबलू के उमर घलो वोतका जादा नी होय रहिस।घर-दुवार अऊ दूनों लइका मन ल देख-रेख करे बर अपन बेटा टिबलू ल दूसर बिहाव करे बर रमेसर ह कहिस।टिबलू ल तो दूसर बिहाव करे के मन नी लागत रहिस काबर के जानत रहिस के नवा येकर दाई आही तेह येमन ल कोनजनी मया करही के नी करही।फेर अपन ददा के गोठ ल घलो काट नी सकिस टिबलू हां कहि दिस।

              गाँव के दू कोस दूरिहा म बरातू के बेटी फगनी के बिहाव हो गे रहिस फेर ससुरार म जादा दिन नी रहे पाइस।तीन-चार महीना रहे होही के वोकर गोसंईया सरग सिधार गे रहिस।तेकर ले बपरी फगनी ह मइके म दुख काटत रहत रहिस।सबो के कहइ म एक दिन टिबलू ह फगनी ल चूरी पहिरा के अपन घर लानिस अऊ घर-दुवार के तारा-कुंची ल फगनी ल सउप दिस।ये घर-दुवार अऊ ये लइका मन आज ले तोरेच आय कहिके।

               फगनी घलो अपन घर कस सबो ल बरोबर जाने लगिस।सबो ल *एके लउठी म हांकत* रहिस,लइका मन ल मया-दुलार देवत रहिस।लइका मन घलो दाई के चोनहा कभू नी पाय रहिन।दाई के मया म लइका घलो मन कुलक भरीस।फगनी ह अपन मुहूंँ ले लइका मन ल नांव लेके कभू नी बलाय भलुक भर-भर मुहूंँ म बेटा के सिवाय आने नी निकले अऊ लइका मन घलो दाई के सिवाय आने कभू नी कहंय। बने-बने म दिन ह कइसे पहाथे पता नी चले।देखते-देखत म लइका मन घलो बाढ़ गिन स्कूल जाय के लइक होगिन।फगनी घलो अपन मन म सोच डारिस के इही मोर हीरा मन *आँखी के जोगनी* आय चन्दा-सुरुज कस दूनोंझन मोर *जिनगी म अँजोर* करही,फगनी ह फफक के रोवत कहिस मैं अऊ लइका के सउख अब नी करंव।फगनी के *पथरा के छाती* रहिस।दूनों लइका मन ल अपन *अँचरा के छइँहा* म सुग्घर राखे रहिस।फगनी के अइसन संस्कार के खातिर कोनों गम नी पाइन के दूनों लइका लाभो अऊ कुशो वोकर *सउत बेटा* आय।

✍️ डोरेलाल कैवर्त  *"हरसिंगार"*

        तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)

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