Monday 23 September 2024

फैसला*

 एक ठन सुग्घर पोष्ट पढ़े बर मिलिस, जेकर छत्तीसगढ़ी मा अनुदान कर के महूँ पटल मा परोस पारे हवँ। मूल सिरजक गिरिश ठक्कर "स्वर्गीय" जी।


              *फैसला*

       एक झन बुढ़वा मनखे अदालत एकर सेती चल दिस कि वो अपन बेटा के खिलाफ कोर्ट मा शिकायत कर सके। जज साहब पूछिस, कि तोला अपन बेटा ले अइसे का शिकायत हे का तकलीफ अउ परेशानी हे, जेकर कारन तैं केस करना चाहत हवस। तब वो बुढ़वा बाप कथे------कि मँय अपन बेटा ले वोकर आमदनी कमाई अउ हैसियत के हिसाब ले हर महिना अपन बर खरचा लेना चाहत हवँ।

     जज साहेब किहिस - - - - - ये तो तोर हक बनथे तैं अपन बेटा ले खरचा माँग सकथस। एमा कोनो किसम के अदालती सुनवाई के जरूरत नइये। आपके बेटा ला हर महिना खरचा देना चाही। बाप कथे----मोर तिर धन दौलत रुपिया पइसा के कोनो कमती नइये। तभो ले मँय अपन बेटा ले हर महिना खरचा लेना चाहत हवँ। वो भले कम जादा कतको रहय। जज साहेब अचंभा मा परगे अउ बाप ले कहे लागिस-----तैं तो खुदे धनवान मालदार हवस कोनो जिनिस के कमती नइये, तब्भो ले बेटा ले खरचा माँगे के का जरुरत होगे?

        बूढ़वा बाप अपन बेटा के नाम पता ठिकाना के लिखित आवेदन जज साहेब ला देवत किहिस - - - - जज साहेब मोर बेटा ला अदालत मा बलाहू तौ सब पता चल जाही। जब बेट अदालत मा आइस तब जज साहेब बोलिस कि, तोर पिता जी हर तोर ले हर महिना खरचा लेना चाहत हे। भले वो कम जादा कतको होवय। बेटा घलो जज साहेब के बात ला सुन के अचंभा मा परगे। कहे लागिस कि, मोर बाप तो अइसने भरे बोजे अमीर सम्पन्न आदमी हे। कोनो किसम के काहीं जिनिस के कमती नइये। तभो ले वोला पइसा के का जरूरत आन परे हे? वोहू मा हर महिना। वो चाहे तौ मँय एके बखत जतका कही दे सकत हवँ।

     जज साहेब किहिस - - - - ये सब आपके पिताजी के माँग हे। बेटा के बाप कथे---जज साहेब मोर बेटा ला बोल देवव कि वो मोला हर महिना 100 रुपिया बिना देरी करे मोर हाथ मा लान के देही। मनिआडर या दूसर के हाथ बिगारी भेजाय पइसा ला नइ झोंकवँ।

      जज सहेब बुढ़वा आदमी के बेटा ले किहिस कि, तैं हर महिना 100 रुपिया बिना देरी के अपन बाप ला लान के दे देबे। ये अदालत तोर बर शक्त आदेश करत हे।

      मुकदमा खतम होय के बाद जज साहेब बुढ़वा आदमी ला अपन तिर बला के पूछथे कि, श्रीमान जी आप ला नराजगी नइ होही तौ एक बात पूछवँ? कि आप अपन बेटा के खिलाफ अइसन केस काबर करे हव। अउ ओहू मा एकदम छोटे रकम बर। तब बुढ़वा आदमी आँखी मा आँसू ढरकावत कथे----जज साहेब मोर बेटा ला देखे बर तरस जाथौं। काम धंधा अउ नौकरी के फेरा मा मोर ले दुरिहा शहर मा रहिथे। वो अपन काम धंधा मा अतका बिलमे रथे कि एक जुग जमाना कस हो गेहे मेल मुलाकात ला न तो गोठ बात होय ना सोर खबर नतो आमने सामने हो पावन ना फोन चिट्ठी। मोला अपन बेटा ले बहुते मया हे वो मोर बहुते मयारू बेटा आय। एकरे सेती ओकर उपर केस करे हवँ, जेकर लेअब  हर महिना वोकर ले मिल सकत हवँ। अउ वोला देखके खुश रहि सकत हवँ। अतका गोठ ला सुन के जज के घलो आँखी डब डबागे।

       जज साहेब बुढ़वा आदमी ले कथे---ये बात ला पहिली बताय रते ते मँय वोला तोर अनदेखी करे अउ देखरेख नइ करे के जुरुम मा सजा सुना देय रतेंव।

        बुढ़वा बाप जज कोती मुसकावत देखिस अउ किहिस - - - कहूँ आप मोर बेटा ला सजा सुनातेव तौ मोर बर बहुते दुख के बात होतिस। काबर कि सही मा मँय वोकर ले बहुते मया करथौं। अउ मँय नइ चाहवँ कि मोर सेती मोर बेटा ला कोनो किसम के सजा मिले। या कोनो किसम के दुख तकलीफ मिले। फेर आज अदालत के फैसला के बाद बुढ़वा बहुते आनंदित हे।


अनुवाद

राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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