Wednesday 4 September 2024

जोगी डीह

 छत्तीसगढ़ी लोक कथा 

  जोगी डीह 

गाँव ले थोरिक धुरिया म लोगन  मन के भीड़ दिखत रहिस l भीड़ सीधा साधा नारी परानी मन के रहिस l कुछू तड़क भड़क नई दिखत रहीस l  भीड़ भाड़ म न ककरो अवाज न गोठ बात सुनावत रहिस l अावा जाही घलो धीरे -धीरे सुटुर- सुटुर,हलू -हलू l मंदिर घलो नोहय  न घर न धरमशाला l मठ चबूतरा आय l घाम पानी ले बंचे बांचे बर झाड़ी -झिटी ले छवाये रहिस l जोगी डीह नाम धरागे  l 

उही मेऱ हालत डोलत टमरत  छुवत एती ओती हाथ  गोड़ लमावत मैनखे  जेला जोगी बाबाजी  कहय  l  ओकर जै नई बुलावत रहिस कोनो फेर अंतस ले  सबके मन म जै जै के सुर समाये रहय l हाथ जोड़े बिनती करय सब l धुरिया ले कले चुप लोगन पाँव पळूटी करय l बड़ अचरज के 

जघा l जोगी डीह धाम बरोबर मानता वाले जघा होगे l जेन  जइसन मांगथे ओकर मानौती पूरा हो जाथे अइसे लोगन मन कइथे l

एक झन सियान गोठियावत रहिस l बतावत रहिस -जोगी डीह म आखरी वंस बांचे हे l जोगी बाबाजी अंधवा हे l नई देख सकय l भैरा घलो हे सुन नई सकय l कोंदा घलो हे बोल नई सकय  l हाथ हे फेर लूलवा l गोड़ हे  फेर लंगड़ा हे l  आँखी हे फेर अंधवा lमुँह हे उहू टेंडगा l लरहा हे जीभ निकले रहिथे l

नाक हे  तौन सोंडहा l चुंदी हे लट बंधाये l झूलफाहा  जोगी बबा l ए ठौर म आये बिना ओला देखे बिना कोनो काम नई कर सकय l जदुहा नोहय 

न बैगा गुनिया न टोनहा टमानहा l न चमत्कार न शिकार   बड़ अदभुत जीव l

अंधवा आँखी ले देख लीस जेला देखिस मान ले ओकर काम पूरा होगे l जेला टमड़ के छू लीस मान ले ओकर यात्रा पूरा होही l जेखर दे कुछु चीज ला खा दीस मान ले ओकर घर मंगल ही मंगल l अउ बड़े बात 

जोगी डीह म ओकरे सत्ता हे उही सरकार हे जेन नेंग धेग ला नई करही नई मानही कुपित हो जाथे l कोप के शिकार ले बांचे बर ओकर इही नियम ला मानथे l चबड़ चाबड़ करय्या मन मौनी हो जथे l चुगली चारी म बूड़े रहिथे  तौन मन सरीफ सराफत हो जाथे l नियत खोट्टा मन के नियत बदल जाथे l चोरहा दोगला मन दानी मानी बन जाथे l रोगी ढोंगी ठीक हो जथे l कुछु चढ़ावा नही

मुतारीलाल साव

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