Wednesday 4 September 2024

आँच/नान्हे कहिनी

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*आँच/नान्हे कहिनी*

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             पनखत्ती तरिया म पुरइन पान मन गझाय रहिन । नील बरन जल बीच हरियर बरन पुरइन पान  ।  अउ हरियर बरन पुरइन पान बीच  म झाँकत गुलाबी बरन कमल दल । तरी म तउरत मछरी अउ ऊपर म गुन...गुन करत भंवरा ।


           ये सब ल देखत ऊपर चढ़त सुरुज , एक  निमिष बर , ठीक मुड़ ऊपर ठाढ़ हो गय । इहाँ तरिया के सबो कमल -दल मन रिग- बिग ले अउ चिलक उठिन  ।



           ठीक वोतकी बेरा सँवरे-पखरे नोनी हर, पानी लाने बर  गगरी धर के  वो तरिया म आइस।


       अब तो उहाँ के वो सब कमल-कमलिनी, कुमुद-कुमुदनी मन झुरमुराय के शुरू हो गय रहिन ।


            तरिया के पानी हर घलव डबके के शुरू हो गय रहिस ।



*रामनाथ साहू*



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